उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गहमागहमी शुरू हो गई है। संसद के हालांकि दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के दलीय समीकरण में सत्तारूढ़ राजग के पास अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त संख्या तो है पर फिर भी लगता है कि इस बार यह चुनाव आसान नहीं होगा। विपक्ष चुनौती देने की तैयारी में लगा हुआ है। बेशक, विपक्ष चुनौती तो दे सकता है पर बिना बड़ी सेंध के उलटफेर करने की स्थिति में नहीं लगता। पर राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है कुछ भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन पर कोई व्हिप जारी नहीं होगा। सांसदों को अपनी आत्मा के अनुसार वोट करने का अधिकार होता है। इसीलिए ऐसे चुनावों में क्रास वोटिंग का बड़ा खतरा रहता है। पहले बात करते हैं सत्ता पक्ष की। भाजपा और उनके सहयोगी दलों की। भाजपा चाहेगी कि उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार चुना जाए जो उनका समर्थक हो और सरकार की लाइन पर चले। यह काम श्री जगदीश धनखड़ ने शुरू-शुरू में बाखूबी किया था। यह और बात है कि उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहती है कि जो भी उम्मीदवार हो वो संघ की पसंद व समर्थक हो। वह सरकार की लाइन पर चलने वाला नहीं हो। एक नेता ने कहा कि पिछली बार जब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था उस वक्त भी संघ परिवार में इसे लेकर चर्चा थी। इस बार लगभग सभी मान रहे हैं कि संघ अपनी विचारधारा को समझने वाला उम्मीदवार ही चाहता है। दक्षिण भारत की सियासी पार्टियां चाहती हैं कि जब राष्ट्रपति उत्तर से है तो कम से कम उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत का हो। इससे देश में एकता आएगी। वहीं यह जानते हुए कि भाजपा का पलड़ा भारी है फिर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एक साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। सूत्रों का कहना है कि योजना बिहार या आंध्र प्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी और जदयू को असमंजस में डाला जा सके। चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने की और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावानाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में पड़ जाएंगे। आंध्र प्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में 7 सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर ंइस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटता है तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा में भी इस मुद्दे पर एका नहीं है। संघ से जुड़े विचारधारा वाले भाजपा सांसद संघ के कहने पर अगर उम्मीदवार उन पर भाजपा हाई कमान द्वारा थोपा गया तो वह क्रास वोटिंग भी कर सकते हैं। हालांकि मेरी राय में यह मुश्किल होगा पर राजनीति में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता? ये किसी से छिपा नहीं कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है जो जिस तरह से जगदीप धनखड़ को अपमानित करके हटाया गया उससे वे खुश नहीं हैं। सरकार से इस समय कांग्रेस के जिस तरह के रिश्ते हैं उसे देखकर लगता नहीं कि विपक्ष सरकार के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। कांग्रेस के साथ सरकार के वरिष्ठ मंत्रियें के रिश्ते बहुत बिगड़े हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ से कांग्रेस की कथित नजदीकियों को लेकर जिस तरह की कहानियां बनाई गई उससे भी भाजपा खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन) उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी ओबीसी या मुस्लिम नाम पर भी विचार कर रहा है। इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं का सुझाव है कि विपक्ष को उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के रूप में लड़ना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
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