Thursday, 28 August 2025

वोट चोरी आरोप पर चुनाव आयोग का जवाब

भारत में चुनाव प्रािढया पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है तो इसके पीछे क्या राजनीति है? सात अगस्त को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेस के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं हमारी वोट तो काटी नहीं है? राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेस में वोट चोरी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सत्तारुढ़ भाजपा के साथ सांठगांठ की बात कही थी जिसे चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया है। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के साथी इसे बिहार में जोरशोर से उठा रहे हैं और इसे भारी जनसमर्थन भी मिलता दिख रहा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की हताशा वाली राजनीति कह रहे हैं। बता दें कि जिस दिन बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा शुरू हुई थी। उसी दिन चुनाव आयोग ने भी प्रेस कांफ्रेंस की थी। लेकिन इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद भी चुनाव आयोग आलोचकों के निशाने पर है। सवाल है कि क्या केंद्र सरकार इन आरोपों के बाद किसी तरह बैकफुट पर दिखती है? चुनाव आयोग अगर बचावे करे तो क्या उसे हर बार पक्षपात के तौर पर ही देखा जाएगा? और चुनाव आयोग आखिर राहुल गांधी से शपथ पत्र लेने की मांग पर क्यों अड़ा हुआ है? जबकि राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि जो दस्तावेज उन्होंने सात अगस्त को पेश किए वे सब चुनाव आयोग के ही दिए आंकड़े हैं? इन सवालों पर चर्चा के लिए इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ब्यूरो चीफ रितिका चोपड़ा और भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा बीबीसी के साप्ताहिक कार्पाम ‘द लेंस' में शामिल हुए। इसी साल जून के महीने में राहुल गांधी ने अखबारों में एक लेख लिखा था। लेख में उन्होंने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को मैच फिक्सिंग कहा था। अब बिहार में एसआईआर बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। एसआईआर पर अशोक लवासा कहते हैं, सबसे पहले उत्तेजन का कारण बिहार विधानसभा चुनाव है। चुनाव से पहले एसआईआर जैसी बड़ी प्रािढया अपनाने से लोगों में संशय हुआ है। दूसरा कारण है कि 2003 के रिवीजन में प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था। सासाराम में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिहार में एसआईआर करके नए वोटरों को जोड़कर और योग्य लोगों के नाम काटकर यह (भाजपा-संघ) बिहार का चुनाव चोरी करना चाहती है। जबकि चुनाव आयोग का तर्क है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों के दूर करने के लिए एसआईआर प्रािढया अपनाई जा रही है। अशोक लवासा का कहना है इस बार प्रािढया काफी जटिल बना दी गई है और इसके लिए लोगों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया है। इस बार सवाल मतदाता सूची पर उठाए जा रहे हैं और पिछले दस सालों में ऐसे सवाल नहीं उठाए गए थे। बीते चुनावों में राजनीतिक दल ईवीएम, चुनावी शेड्यूल या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट से संबंधित शिकायतें करते रहे हैं। सवाल अब भी चुनाव आयोग पर है लेकिन मुद्दा वोटर लिस्ट है इसलिए यह बाकी मामलों से अलग है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग सिर्फ उनसे शपथ पत्र मांग रहा है जबकि किसी और से नहीं मांगा। अशोक लवासा का कहना है, अगर इतने बड़े पैमाने पर एक विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा लोगों के बारे में दावा किया गया है तो किसी भी सार्वजनिक कार्यालय को इसकी जांच करनी चाहिए। मेरे ख्याल से उसके लिए किसी शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सियासी दलों से पूछा कि जब इतनी समस्याएं हैं तो सिर्फ आयोग के पास दो ही शिकायतें क्यों आई हैं? हालांकि तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि उनकी शिकायतों को स्वीकार नहीं किया गया है। यह भी सच है कि ज्ञानेश कुमार के बोलने के तरीके के कारण लोगों के मन की शिकायतें पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। अशोक लवासा ने आगे कहा कि चुनाव आयोग को यह समझना चाहिए कि अगर कोई भ्रांति फैलाई जा रही है तो उसे चुनाव आयोग को ही दूर करना होगा। आयोग को दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए। सही और गलत का निर्णय लोग स्वयं कर लेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय बचा है। समय सिर्फ तीन महीने का है और चुनाव आयोग को दस्तावेज जमा करने के साथ उनकी पुष्टि भी करनी है। कई वोटरों के पास तय दस्तावेज नहीं हैं और कुछ लोगों में भय का माहौल है। इन्हीं सब समस्याओं की वजह से इस मुद्दे की पकड़ ग्राउंड पर बढ़ती जा रही है। कई लोग इसे अपनी नागरिकता के साथ भी जोड़ रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने साफ किया है कि एसआईआर का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है पर बिहार के वोटरों में शंका बनी हुई है। अशोक लवासा बताते हैं प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप के इस्तेमाल से नागरिकता पर प्रश्न बना हुआ है। चुनाव आयोग बार-बार कह रहा है कि वोटर लिस्ट में नाम न आने से नागरिकता समाप्त नहीं होगी। लेकिन इसमें भी विरोधाभास यह है कि उसी वजह से तो आप उसे मतदाता सूची से बाहर निकाल रहे हैं? -अनिल नरेन्द्र

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