Tuesday, 24 December 2024

किसानों की मदद के लिए हमेशा याद रहेंगे

पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की विरासत को शिखर तक ले जाने वाले चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को जीवटता, प्रखर वक्ता, किसानों और कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनकी गिनती उन नेताओं में होती थी जो जमीनी कार्यकर्ताओं के नाम तक याद रखते थे। कई बार तो कार्यकर्ताओं के घर में रुक जाते थे। हरी पगड़ी ओमप्रकाश चौटाला की पहचान बन गई थी। एक जनवरी 1935 को जन्मे ओम प्रकाश चौटाला चौधरी देवीलाल के सबसे बड़े बेटे थे। श्री चौटाला का राजनीतिक सफर की शुरुआत एक अप्रत्याशित घटना से हुई। 1968 में छोटे भाई प्रताप सिंह के दल बदलने पर कांग्रेस ने उनको टिकट दिया और ओम प्रकाश चौटाला को सिरसा के ऐलानाबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में उतारा, मगर वह चुनाव हार गए। चुनाव में धांधली को लेकर वह सुप्रीम कोर्ट गए और चुनाव रद्द कराया। 1970 में ऐलानाबाद विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ तो चौटाला कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1989 में जब चौधरी देवीलाल ने देश के उपप्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली तो उन्होंने अपनी सियासी विरासत के लिए ओमप्रकाश चौटाला को चुना। ओमप्रकाश चौटाला भारतीय राजनीति में एक कद्दावर शख्सियत और जाट समुदाय के एक प्रमुख नेता थे। वह कम शिक्षित होने के बावजूद अपनी जबरदस्त राजनीतिक सूझबूझ और हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते थे। एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार में जन्मे चौटाला अपने पिता द्वारा स्थापित पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रमुख थे। चौधरी देवीलाल उपप्रधान मंत्री रहने के अलावा हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे थे और उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता था। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला भी अपने पिता के पदचिह्नों पर चले। 1989 में पहली बार ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। एक जनवरी 1935 को जन्मे चौटाला हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री भी रहे। वह 1989 से जुलाई 1999 तक वह बीच-बीच में मुख्यमंत्री रहे। वहीं 2000 से 2005 के बीच ही उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान भाजपा इनेलो की सहयोगी थी, हालांकि वह सरकार का हिस्सा नहीं थी। वर्ष 1989 में जब चौधरी देवीलाल जनता दल सरकार में उप प्रधानमंत्री बने तो ओम प्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने। वह छह बार विधायक भी रहे और 1970 में पहली बार सिरसा के ऐलानाबाद से विधायक चुने गए। यह चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता था। मुख्यमंत्री के रूप में अपने पूरे कार्यकाल में चौटाला का सरकार आपके द्वार कार्यक्रम इनेलो सरकार की एक बड़ी उपलब्धि और पहल थी। जब वह मुख्यमंत्री थे। तब हर गांव का दौरा करते रहते थे। लोगों को उनकी जरूरतों के बारे में पूछते रहते थे और उनकी मांगों पर अमल करते हुए उनके सामने ही फैसले लेने में नहीं हिचकते थे। शनिवार को उनकी अंतिम यात्रा में लाखों की भीड़ उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचीं थी जो उनकी लोकप्रियता को दर्शाती है। हमारे परिवार के चौधरी देवीलाल के परिवार से करीबी संबंध रहे हैं। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और चौधरी देवीलाल कई बार प्रताप भवन आए पिता जी और मुझसे मिलने। हमारे लिए यह बहुत बड़े दुख की बेला है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें। -अनिल नरेन्द्र

भागवत का बयान स्वागतयोग्य

मंदिर-मस्जिद के रोज नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं। ये बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को पुणे में हिंदू सेवा महोत्सव के उद्घाटन के दौरान कही। इसके लिए श्री भागवत ने कई अहम मुद्दों पर अपनी बात रखी है। भागवत के भाषण की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि इस वक्त देश में संभल, मथुरा, काशी जैसी कई जगहों को मस्जिदों के प्राचीन समय से मंदिर होने के दावे किए जा रहे हैं। इनके सर्वे की मांग हो रही है और कुछ मामले तो अदालतों में लंबित भी हैं। भागवत ने कहा, हमारे यहां हमारी ही बातें सही, बाकी सब गलत, यह नहीं चलेगा। अलग-अलग मुद्दे रहे तब भी हम सब मिलजुलकर रहेंगे। हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ न हो इस बात का ख्याल रखेंगे। जितनी श्रद्धा मेरी खुद की बातों में है, उतनी श्रद्धा मेरी दूसरों की बातों में भी रहनी चाहिए। उन्होंने वहां कि रामकृष्ण मिशन में आज भी 25 दिसम्बर (बड़ा दिन) मनाते हैं, क्योंकि यह हम कर सकते हैं। क्योंकि हम हिंदू हैं और हम दुनिया में सब के साथ मिलजुलकर रह रहे हैं। यह सौहार्द अगर दुनिया को चाहिए तो उन्हें अपने देश में यह मॉडल लाना होगा। उनका कहना है मंदिर और मस्जिद का संघर्ष एक सांप्रदायिक मुद्दा है और जिस तरह से ये मुद्दे उठ रहे हैं, कुछ लोग नेता बनते जा रहे हैं। अगर नेता बनना ही इसका मकसद है तो इस तरह का संघर्ष उचित नहीं है। लोग महज नेता बनने के लिए इस तरह के संघर्ष शुरू कर रहे हैं, तो यह सही नहीं है। संघ प्रमुख के इस बयान के मुरीद हुए मुस्लिम धर्म गुरु। मुस्लिम धर्मगुरुओं और नेताओं ने इस बयान पर खुशी जताई। मुस्लिम जगत के इन नेताओं ने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसा बयान आना बेहद मायने रखता है। मुस्लिम धर्म गुरु कल्बे सिब्ते नूरी ने कहा कि भागवत का बयान बहुत सकारात्मक है। 18-20 करोड़ मुसलमानों को अलग-थलग करके भारत विश्व गुरु नहीं बन सकता। डॉ. नूरी ने भाजपा नेताओं से आग्रह किया कि वो आरएसएस प्रमुख के संदेश को आगे बढ़ाएं और देश का माहौल खराब करने की कोशिशों को रोकें। कैराना से सपा सांसद इकरा हसन ने भी आरएसएस प्रमुख के बयान का समर्थन किया है। इकरा ने कहा, पहली बार उनके बयान से इत्तेफाक रखती हूं। वर्तमान की जरूरत भी यही है कि इस तरह के मुद्दे बंद हों। सपा सांसद अफजल अंसारी ने कहा भागवत के बयान का स्वागत करते हैं। कुछ नेता मशहूर होने के लिए और सस्ते ढंग से एक धर्म विशेष का नेता बनने की कोशिश करते हैं। अब भागवत बोले हैं, हम स्वागत करते हैं। वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी भागवत के कहे का हवाला देते हुए एक्स पर लिखा है, आरएसएस चीफ मोहन भागवत कहते हैं कि यहां सब बराबर हैं। इस देश की रीत ये रही है और यहां सब अपनी मर्जी से पूजा-अर्चना कर सकते हैं। इससे बेहतर बयान और क्या हो सकता है। उम्मीद है कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोदने वाले भी मोहन भागवत जी के बयान को मानेंगे और सम्मान करेंगे।

Saturday, 21 December 2024

इजराइल से लौटे कामगारों के अनुभव

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी बीते सोमवार को संसद में फलस्तीन लिखा हैंड बैग लेकर पहुंची थीं और अगले दिन यानी मंगलवार को इसका जिक्र उत्तर प्रदेश विधानसभा में हुआ। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, कल कांग्रेस की एक नेत्री फलस्तीन का बैग लेकर संसद घूम रही थीं और हम यूपी के नौजवानों को इजराइल भेज रहे हैं। प्रियंका गांधी ने सीएम योगी के इस बयान को शर्म की बात बताया। प्रियंका जो हैंड बैग लेकर पहुंची थीं उस पर फलस्तीन शब्द के साथ कई फलस्तीनी प्रतीक भी बने हुए थे। इस घटना क्रम के बाद बीबीसी ने यूपी के उन लोगों से बातचीत की जो इजराइल काम करने गए थे। अधिकतर कामगारों के लिए काम के घंटे और मनचाहा काम न मिलने की बड़ी समस्या बताई। बीबीसी ने कामगारों के दावों पर यूपी सरकार का पक्ष जानने के लिए संबंधित विभाग से संपर्क भी किया पर कोई जवाब नहीं मिला। उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन के चल रहे सत्र में सीएम योगी ने कहा कल कांग्रेस की नेत्री फलस्तीन का बैग लेकर घूम रही थीं और हम यूपी के नौजवानों को इजराइल भेज रहे हैं। यूपी के अब तक लगभग 5600 से अधिक नौजवान इजराइल में हैं। उन्हें रहने के लिए फ्री स्थान, डेढ़ लाख रुपए अतिरिक्त मिल रहे हैं और पूरी सुरक्षा की गारंटी भी है। आप यह मानकर चलिए कि वह नौजवान जब डेढ़ लाख रुपए अपने घर भेजता है तो प्रदेश के ही विकास में योगदान और अच्छा काम कर रहा है। हमास और इजराइल की जंग की वजह से इजराइल में मजदूरों की संख्या में कमी हुई है। इसलिए इस कमी को पूरी करने के लिए इजराइल सरकार ने भारत से मजदूरों को ले जाने की पहल की थी। इसके तहत यूपी के अलावा दूसरे राज्यों जैसे हरियाणा, तेलंगाना से भी मजदूर इजराइल गए हैं। योगी के बयान के बाद प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा ः यूपी के युवाओं को यहां रोजगार देने की जगह उन्हें युद्ध ग्रस्त इजराइल भेजने वाले इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। उन्होंने आगे लिखा ः अपने युवाओं को युद्ध में झोंक देना पीठ थपथपाने की नहीं बल्कि शर्म की बात है। प्रदीप सिंह यूपी के बाराबंकी जिले में देवा शरीफ के पास के गांव में रहने वाला है। 4 जून 2024 को प्रदीप सिंह यूपी से काम करने के लिए इजराइल गए थे। वह इजराइल में लगभग चार महीने रहे। बीबीसी से बातचीत में प्रदीप बताते हैं ः हम लोग पेरा टिकवा शहर में थे और सुविधाएं ठीक थीं लेकिन काम थोड़ा हाई था। मैंने प्लास्टरिंग कैटेगरी के लिए आवेदन किया था लेकिन वहां दूसरा काम करना पड़ा। हम लोग एक चीनी कंपनी शटरिंग और सरिया से जुड़ा काम कर रहे थे। प्रदीप का दावा है कि उन्हें वक्त से ज्यादा समय तक काम करना पड़ता था। हम लोगों को सुबह 7 बजे से शाम सात बजे तक कुल 12 घंटे काम करना होता था। इसमें आधा घंटे तक लंच होता था। प्रदीप वापस इजराइल जाना चाहते हैं लेकिन उनके ही इलाके के दिवाकर सिंह वापस इजराइल नहीं जाना चाहते। दिवाकर कहते हैं कि चीनी कंपनियों में वहां 12 घंटे काम करना होता था, बीच में आराम भी नहीं कर सकते थे। मैंने आयरन वैंडिंग (सरिया मोड़ने का काम) कैटेगरी में इंटरव्यू दिया था लेकिन दूसरे काम करने पड़ते थे। कई बार तो साफ-सफाई का काम भी करना पड़ता था। दिवाकर मई 2024 में इजराइल गए थे और दो महीने वहां रहे थे। वह बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने दो से ढाई लाख रुपए की बचत जमा कर ली थी। फिलहाल दिवाकर अपने घर के पास एक निजी कंपनी में 30 हजार रुपए की नौकरी कर रहे हैं। -अनिल नरेन्द्र

आंबेडकर पर सियासी भूचाल

अब यह एक फैशन हो गया है... आंबेडकर, आंबेडकऱ, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। संसद में केन्द्राrय मंत्री अमित शाह के संविधान पर चर्चा के दौरान एक लंबे भाषण के इस छोटे से अंश को लेकर ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्रवाई स्थगित करनी प़ड़ गई। इस बयान में आंबेडकर का अपमान देख रहे हमलावर विपक्ष को जवाब देने के लिए अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर कहा ः जिन्होंने जीवनभर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाई, वो लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर बताया कि उनकी सरकार ने भारत के संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर के सम्मान में क्या-क्या काम किए हैं लेकिन इसके बावजूद हंगामा नहीं रूका। अब यह मामला पूरे देश में आग की तरह फैल चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह पर आंबेडकर का उपहास करने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे तक की मांग कर ली। खड़गे ने कहा... बाबा साहेब का अपमान किया है, संविधान का अपमान किया है। उनकी आरएसएस की विचारधारा दर्शाती है कि वो स्वयं बाबा साहेब के संविधान का सम्मान नहीं करना चाहते हैं। समूचा विपक्ष अमित शाह का इस्तीफा मांग रहा है। वहीं शाह के इस बयान को आंबेडकर का अपमान इसलिए माना जा रहा है कि अगर ईश्वर शोषण से मुक्ति देने वाला है तो डॉ. भीमराव आंबेडकर जाति व्यवस्था में बंटे भारतीय समाज के इन करोड़ों लोगों के ईश्वर हैं, जिन्होंने सदियों तक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक भेदभाव झेला है। भीमराव आंबेडकर ने संविधान में बराबरी का अधिकार देकर अनुसूचित और पिछड़ी जातियों को शोषण से मुक्ति दी है। यही वजह है कि आंबेडकर की विचारधारा से जुड़े और दलित राजनीति से जुड़े लोग अमित शाह के इस बयान को आंबेडकर के अपमान के रूप में देख रहे हैं। लेकिन कटु सत्य यह भी है कि इस समय सभी राजनीतिक पार्टियों में आंबेडकर को अपनाने की होड़ मची है और राजनीतिक दल आंबेडकर के विचारों का इस्तेमाल करके दलित मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं। अमित शाह के इस विवादास्पद बयान के बाद से भाजपा बचाव की मुद्रा में है। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि अमित शाह को मुंह से भले ही निकल गया हो लेकिन इस पर बहुत हैरान नहीं होना चाहिए। उन्होंने वही बोला है जो वह महसूस करते होंगे, जो आरएसएस भी महसूस करती है। अमित शाह के बचाव में राजनीतिक शोरगुल के बीच सवाल उठता है कि क्या ये बयान भाजपा को सियासी नुकसान पहुंचा सकता है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसका कोई बड़ा राजनीतिक नुकसान नहीं होगा। दूसरी ओर विपक्षी दल इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़कों पर ले जा रही है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में दलितों, पिछड़ों, ओबीसी, अल्पसंख्यकों का मानना है कि यह भी बाबा साहेब आंबेडकर जी की बदौलत आज उन्हें इज्जत मिली है, सम्मान और सुरक्षा मिली है। बाबा साहेब का संविधान ही देश की स्वतंत्रता और समानता का प्रतीक है।

Thursday, 19 December 2024

महाराष्ट्र की महायुति सरकार में बढ़ता असंतोष


बावजूद इसके कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला पर गठबंधन में असंतोष थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहले तो 23 नवम्बर को चुनाव नतीजे आने के बाद लंबी जद्दोजहद के 12 दिन बाद देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री की शपथ ले पाए और उसके भी दस दिन बाद मंत्रिमंडल तय हो पाया और उनका शपथ ग्रहण हो सका। अब मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने सोमवार को नई महायुति सरकार में शामिल नहीं किए जाने पर निराशा व्यक्त की और कहा कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से बात करेंगे और फिर तय करेंगे कि उनकी भविष्य की राह क्या होगी। वहीं शिवसेना विधायक नरेन्द्र मोंडेकर ने महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कैबिनेट विस्तार में रविवार को महायुति के घटक दलों, भाजपा, शिवसेना और राकांपा के 19 विधायकों ने शपथ ली। कैबिनेट से 10 पूर्व मंत्रियों को हटा दिया गया और 16 नए चेहरों को शामिल किया गया। पूर्व मंत्री छगन भुजबल और राकांपा के दिलीप वाल्से पाटिल एवं भाजपा के सुधीर मुनगंटीवार और विजय कुमार गावित नए मंत्रिमंडल से बाहर किए गए कुछ प्रमुख नेता हैं। भुजबल ने कहा कि वे नई मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से नाखुश हैं। अपने भविष्य के कदम के बारे में पूछे जाने पर नासिक जिले के येआलो निर्वाचन क्षेत्र के विधायक ने कहा कि मुझे देखने दीजिए। मुझे इस पर विचार करने दीजिए। पूर्व मंत्री दीपक केसरकर को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। वहीं शिव सेना विधायक मोंडेकर ने दावा किया कि उनकी पार्टी के प्रमुख एवं उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उन्हें मंत्रिमंडल में जगह देने का वादा किया था। मोंडेकर शिव सेना के उपनेता और पूर्वी विदर्भ जिलों के समन्वयक हैं। महायुति गठबंधन में रस्साकशी जारी है। शिव सेना एकनाथ शिंदे के लिए गठबंधन में अपने दूसरे नंबर की पार्टी है। एकनाथ शिंदे को पचाना और अपने समर्थकों से स्वीकार कराना मुश्किल हो रहा है। उपमुख्यमंत्री पद के लिए वे बेशक अंतत राजी तो हुए पर मंत्रियों की कम संख्या का सवाल आड़े आया और अब विभागों के बंटवारे को लेकर आखिर दलों तक रस्साकशी होती रही है। तीनों पार्टियों में चल रही इस असामान्य रस्साकशी का एक रूप कहिए विधायकों की बढ़ी हुई संख्या का दबाव पर महाराष्ट्र के मंत्रियों के लिए ढ़ाई साल के कार्यकाल का ताजा फार्मूला कितना कारगर साबित होता है यह समय ही बताएगा। देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जितनी जद्दोजहद हुई वो किसी से छिपी नहीं। दिल्ली चाहती थी कि फडणवीस मुख्यमंत्री न बनें और इसी रणनीति के कारण एकनाथ शिंदे ने न केवल दिल्ली में डेरा डाला बल्कि आखिरी समय तक सस्पेंस जारी रखा। देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जहां दिल्ली नेतृत्व को पीछे हटना पड़ा। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जीत हुई और उन्होंने अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाया। फडणवीस के सामने गठबंधन को प्रभावी ढंग से चलाना और अच्छी सरकार देने की चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर विरासत की लड़ाई


नई दिल्ली विधानसभा सीट पिछले छह विधानसभा चुनाव से दिल्ली को मुख्यमंत्री देती आ रही है। 1998 से लेकर 2002 तक यहां से जीते विधायक ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। पिछले तीन टर्म शीला दीक्षित ने यहां से जीत हासिल की थी। यह सीट उनकी विरासत की बन गई थी। बाद में यह अरविंद केजरीवाल की सीट बन गई। वह यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इस बार 2025 विधानसभा चुनाव में लड़ाई दिलचस्प होने वाली है। यहां के विधायक व पूर्व सीएम केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के पूर्व दो सीएम के बेटों ने ताल ठोक रखी है। दो पूर्व सांसद मैदान में हैं। दरअसल नई दिल्ली विधानसभा हमेशा हाई प्रोफाइल सीट रही है। 1998 से 2008 के बीच तीन बार शीला दीक्षित यहां से विधायक रही हैं। तीनों बार वह मुख्यमंत्री बनीं। यहां से चौथे चुनाव में केजरीवाल ने बाजी पलटी और उन्हें यहां से पहली बार हार का सामना करना पड़ा। फिर 2013, 2015 और 2020 में हुए चुनाव में केजरीवाल यहां से विधायक बने और तीनों बार सीएम भी बने। यही नहीं एक न्यूज चैनल में केजरीवाल ने ऐलान किया कि नई दिल्ली से ही वह फिर चुनाव ल़ड़ेंगे और जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि पूर्व सीएम के सामने इस बार दो पूर्व सीएम के बेटे मैदान में होंगे। कांग्रेस ने यहां से शीला जी के बेटे संदीप दीक्षित को अपना उम्मीदवार बनाया है। संदीप के पास अपनी पुरानी विरासत को फिर से हासिल करने की भी चुनौती है। वहीं पोस्टबाजी और सोशल मीडिया में भाजपा के पूर्व सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा खुद को जिस प्रकार पेश कर रहे हैं, उसमें इस कयास को बल मिल रहा है कि नई दिल्ली से भाजपा के उम्मीदवार वही हो सकते हैं। बता दें कि प्रवेश वर्मा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के सुपुत्र हैं। इसलिए उन पर भी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती है। रही बात कि अगर संदीप दीक्षित या प्रवेश वर्मा में कोई भी जीतता है और अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो क्या उनकी पार्टी उन्हें मुख्ममंत्री के तौर पर देख रही है। इस पर सूत्रों का कहना है कि भविष्य में क्या होगा यह कहना मुश्किल है, लेकिन जिस प्रकार दोनों को उनकी पार्टियों ने केजरीवाल के खिलाफ ही लड़ाने का फैसला किया है, इससे तो यही संकेत मिलते हैं कि दोनों खुद को सीएम उम्मीदवार मान रहे हैं। क्योंकि वेस्ट दिल्ली से सांसद रह चुके प्रवेश वर्मा को अपने इलाके के 10 विधानसभा सीटें छोड़कर नई दिल्ली से केजरीवाल के खिलाफ उतारने के पीछे की क्या रणनीति हो सकती है? ंइसी प्रकार ईस्ट दिल्ली से सांसद रहे संदीप दीक्षित किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते थे, नई दिल्ली विधानसभा से ही क्यों? नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार का विधानसभा चुनाव इसलिए दिलचस्प माना जा रहा है क्योंकि अरविंद केजरीवाल के सामने दोनों ही पार्टियां बड़े चेहरे उतार रही हैं। देखें, आगे क्या होता है।

Tuesday, 17 December 2024

असद के पास 200 टन सोना, 1.80 लाख करोड़ रुपए



सीरिया के तानाशाह जिनका तख्ता पलट दिया गया है उनके बारे में चौंकाने वाली जानकारियां आ रही हैं। स्टील के मोटे दरवाजों के पीछे काल वाल कोठरियों की कतारें, उनके टार्चर चेम्बरों इत्यादि की बात तो हो रही है पर उनकी संपत्ति का ब्यौरा मिलने से सब चौंक गए हैं। एक बार बशर-अल-असद ने पिता से पूछा कि सत्ता को स्थायी रूप से कैसे मजबूत किया जा सकता है। पिता हाफिज अल असद ने जवाब दिया, अपनी जनता को कभी भी पूरी तरह खुश मत करो। जब वे थोड़े असंतुष्ट रहेंगे, तभी वो तुम्हारी और देखेंगे और तुमे जरूरी समझेंगे। पिता की इस सलाह को असद ने कुछ इस तरह लिया कि उनके 24 साल के शासन में सीरिया की जनता हमेशा जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करती रही। सऊदी अखबार ने ब्रिटिश इंटेलीजेंस सर्विसेज एमआई 6 के हवाले से लिखा है कि पूर्व राष्ट्रपति असद के पास करीब 200 टन सोना है। इसके अलावा 16 अरब डॉलर और 5 अरब यूरो हैं। जिनकी रुपए में कीमत करीब 1.80 लाख करोड़ है। हालांकि असद अब देश छोड़कर रूस में शरण ले चुके हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे सब कुछ अपने साथ ले गए हैं और कितना धन छोड़कर गए हैं इसका खुलासा नहीं हुआ है। असद बचपन में बेहद शांत और शर्मीले थे। उन्हें लोगों से आंख मिलाने में भी संकोच होता था। उन्हें धीमी आवाज में बात करने वाले शख्स के रूप में जाना जाता था। असद की सियासत में बिल्कुल भी रूचि नहीं थी। एक ब्रिटिश रिपोर्ट के अनुसार उनकी छवि को मजबूत बनाने के लिए पिता हाफिज ने उन्हें एक रणनीति के तहत भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का प्रमुख बनाया। असद ने इस दौरान कई बड़े अधिकारियों को पद से हटाया ताकि उनकी छवि कड़क शासक के रूप में सामने आए। उन्हें महंगी गा]िड़यों का शौक है। उनके काफिले में रोल्स रॉयस फैंटम, फेरारी, मर्सिडीज बेंजा, ऑडी लैंबोर्गिनी भी शामिल थी। बशर अल-असद का जन्म सीरिया की राजधानी दमिश्क में हाफिज अल-असद और अनीसा अखलाफ के घर हुआ था। हाफिज 29 साल तक सीरिया के राष्ट्रपति रहे। उनकी 5 संतानों में बशर तीसरे नंबर के थे। बशर शुरू में सेना और राजनीति से दूर रहकर मैडिकल क्षेत्र में करियर बनाना चाहते थे। दमिश्क यूनिवर्सिटी से स्नातक करने के बाद, नेत्र चिकित्सा में विशेज्ञता के लिए 1992 में वे लंदन चले गए। जनवरी 1994 में कार दुर्घटना से उनके बड़े भाई और तब सत्ता के वारिस बेसिल की मौत हो गई तो उन्हें वापस बुला लिया। स्वतंत्र मानिटरिंग ग्रुप सीरियन नेटवर्क के रिकार्ड के अनुसार असद के खिलाफ 2011 में शुरू हुए जन उभार के बाद पिछली जुलाई तक देश के जेलों में टार्चर की वजह से 15,102 मौते हुईं थी। अनुमान है कि इस साल अगस्त तक 1,30,000 लोग गिरफ्तार थे या जबरन हिरासत में लिए थे। उनकी देश की खुफिया एजेंसियों को गैर जवाबदेही बताया गया है। पर हर तानाशाह का ऐसा ही हश्र होता है। मुश्किल से दो-तीन हफ्ते में खेल खत्म हो गया और रातो-रात भागना पड़ा। ऐसे तानाशाहों की लिस्ट बहुत लम्बी है जिन्होंने अपने देश को लूट लिया और फिर भागना पड़ा। शेख हसीना ताजा उदाहरण हैं।

-अनिल नरेन्द्र

लंबे अरसे बाद सटीक वक्ता का भाषण


मैं बात कर रहा हूं कांग्रेsस की वानयाड सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पहले संसदीय भाषण की। बहुत अर्से बाद ऐसा जबरदस्त भाषण सुनने को मिला। प्रियंका के भाषण देने का अपना ही स्टाइल है। वह साधारण भाषा में प्रभावी ढंग से अपनी बात कहती हैं, मुद्दे को ऐसे उठाती हैं जो आम जनता को समझ आ जाए। अपने पहले भाषण में प्रियंका ने लगभग सभी महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। शुक्रवार को उन्होंने संविधान, आरक्षण और जाति जनगणना के मुद्दे उठाए। उन्हेंने कहा कि संविधान सुरक्षा कवच है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी इसे तोड़ने की कोशिश कर रही है। पहली बार संसद पहुंची प्रियंका ने कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की कम सीटों ने अकसर संविधान के बारे में बात करने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा चुनाव में भाजपा का ये हाल नहीं हुआ होता तो वो संविधान बदलने का काम शुरू कर चुकी होती। करीब 32 मिनट के भाषण में प्रियंका ने संविधान संशोधन, जवाहर लाल नेहरू के अच्छे कामों, किसानों के आंदोलन, दल-बदल और अडाणी प्रेम इत्यादि सभी मुद्दों पर सरकार को निशाने पर लिया। संविधान की बात करते हुए प्रियंका ने कहा कि सरकार की लेटरल एंट्री से संविधान कमजोर कर रही है। लोकसभा के नतीजे ऐसे न होते तो संविधान बदलने का काम शुरू हो गया होता। आज के राजा भेष को बदलते हैं, शौकीन भी हैं पर आलोचना नहीं सुनते हैं। देशवासियों को हक है कि सरकार बना भी सकते हैं, बदल भी सकते हैं। नेहरू पर बोलते हुए प्रियंका ने कहा कि सत्तापक्ष अतीत की बातें करता है। नेहरू ने क्या किया। वर्तमान की बात करिए कि आप क्या कर रहे हैं? अच्छे काम के लिए पंडित नेहरू का नाम नहीं लेते। देश निर्माण में उनकी भूमिका कभी नहीं मिटाई जा सकती। सत्ता पर उन्होंने कहा कि आप चुनी हुई सरकारों को पैसों के दम पर गिरा देते हैं। पूरा देश जानता है कि आपके पास एक वाशिंग मशीन है। जो विपक्ष का सत्ता की ओर जाता है। उसमें उसके सारे दाग धुल जाते हैं। आप बैलेट पर चुनाव करा लीजिए, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। जातिगत जनगणना को लेकर सरकार की गंभीरता का प्रमाण यह है कि जब चुनाव में पूरा विपक्ष जाति जनगणना की बात लाया तो पीएम मोदी कह रहे थे कि विपक्ष वाले आपकी भैंस चुरा लेंगे, मंगलसूत्र चुरा लेंगे। तानाशाही पर बोलते हुए प्रियंका ने कहा कि देश का किसान भगवान भरोसे है। हिमाचल में सेब के किसान रो रहे हैं। देश देख रहा है कि एक अडाणी को बचाने के लिए 142 करोड़ जनता को नकारा जा रहा है। बंदरगाह, एयरपोर्ट, सड़कें, रेलवे, खदानों, सरकारी कंपनियां सिर्फ एक व्यक्ति को दी जा रही हैं। उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), बीएचएल, सेल, गेल, ओएनजीसी, रेलवे, एनटीपीसी, आईआईटी, आईआईएम, आयल रिफाइनरी और कई सार्वजनिक उपक्रम लगवाए। उनका नाम किताबों से मिटाया जा सकता है। भाषणों से हटाया जा सका है, लेकिन देश की आजादी और इसके निर्माण में उनकी भूमिका को कभी नहीं मिटाया जा सका। प्रियंका के भाषण के बाद भाई राहुल गांधी ने कहा कि यह भाषण मेरे पहले भाषण से कहीं अच्छा था। दिलचस्प बात यह थी कि सत्तापक्ष भी बड़े ध्यान से प्रियंका का भाषण सुन रहा था, थोड़ी सी टोकाटोकी के अलावा सभी ने ध्यान से सुना। सोशल मीडिया में तो प्रियंका ने तहलका मचा दिया। कांग्रेस को अरसे बाद जबरदस्त वक्ता मिला है।

Saturday, 14 December 2024

आत्महत्या केस में इंसाफ मांगता परिवार



बेंगलुरु में कथित आत्महत्या करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के परिवार ने उनके लिए न्याय और उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। अतुल का परिवार सदमे में हैं। पिता पवन मोदी कुछ भी बोलने के बजाय इंसाफ मांग रहे हैं। उनका कहना है कि हमने बहू और उसके मायके वालों की प्रताड़ना के कारण अपना होनहार बेटा खोया है। हमें सिर्फ और सिर्फ इंसाफ चाहिए। उन्होंने बहू की खामियां गिनाते हुए अपनी समधन यानि बेटे की सास को इस घटना के लिए दोषी ठहराया है। कर्नाटक के बेंगलुरु में एक नामी कंपनी में एआई इंजीनियर के तौर पर काम करने वाले अतुल सुभाष ने सोमवार की रात फंदा लगाकर खुदखुशी कर ली थी। मौत को गले लगाने से पहले उन्होंने करीब सवा घंटे का वीडियो बनाया और 24 पेजों का सुसाइड नोट के साथ उसे सोशल मीडिया के एक ग्रुप में शेयर किया। वीडियो में उन्होंने आत्महत्या करने के पीछे अपनी पत्नी निकिता और ससुराल वालों की ओर से मिलने वाली मानसिक प्रताड़ना को कारण बताया। अतुल के पिता पवन मोदी ने फोन पर बताया कि हमारे घर में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन कोरोना काल के दौरान पूरा माहौल बदल गया। 2019 में हमने बेटे की शादी जौनपुर के निवासी सिंघानिया परिवार की बेटी निकिता से की। शादी के बाद बिदाई के बाद बहु केवल एक दिन हमारे घर यानि समस्तीपुर में रही। उसके बाद बेटे के साथ बेंगलुरु चली गई। इस बीच 2020 में पोता हुआ। तब तक सब ठीक था। इस बीच कोविड आया तो बेटे अतुल ने सास को बेंगलुरु बुला लिया। उसी समय से स्थिति बदली और मामला यहां तक बढ़ा कि हमने बेटा खो दिया। अतुल सुभाष ने अपने सवा घंटे के वीडियो में मुकदमों का भी जिक्र किया था। आरोप लगाया कि कभी केस वापस लेना, कभी केस दायर करना, पत्नी के लिए आदत-सी बन गई थी। जौनपुर से लेकर हाईकोर्ट तक एक ही तरह के मामलों में केस फाइल करने से परेशान किया गया। अतुल की तरफ से लगाए कुल नौ मामलों में से मौजूदा समय में चार मामले अदालत में लंबित हैं। दिसम्बर और जनवरी में मिलाकर कुल तीन डेट लगी हैं। अतुल सुभाष मोदी ने अपने सुसाइड नोट में एक पत्र अपने चार साल के बेटे को लिखा है। दावा किया जा रहा है कि उसने यह पत्र मौत को गले लगाने से कुछ ही देर पहले लिखा। पत्र के नीचे 9 दिसम्बर की तिथि अंकित करते हुए हस्ताक्षर भी किया है। अतुल ने बेटे को पत्र में लिखा है कि किसी पर भरोसा मत करना। तुम्हारे लिए मैं खुद को एक हजार बार कुर्बान कर सकता हूं। मैं कुछ कहना चाहता हूं। मुझे उम्मीद है कि एक दिन वह हमें समझने के लिए पर्याप्त समझदार बनेगा। बेटा जब तुम्हें पहली बार देखा तो सोचा था कि मैं तुम्हारे लिए कभी भी अपनी जाने दे सकता हूं, लेकिन दुख की बात है कि मैं अब तुम्हारी वजह से अपनी जान दे रहा हूं। आगे लिखा कि मेरे जाने के बाद कोई पैसा नहीं रहेगा। एक दिन तुम अपनी मां का असली चेहरा जरूर जान पाओगे। अतुल के 24 पेज के सुसाइट नोट में शादी शुदा जीवन में लंबे तनाव, उनके खिलाफ बढ़े कई मामले, उनकी पत्नी, ससुराल वालों और उत्तर प्रदेश के एक जज द्वारा प्रताड़ित किए जाने का ब्यौरा है। सुभाष के भाई विकास ने कहा, इस देश में एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया हो जिसके लिए पुरुषों को भी न्याय मिले। मैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहता हूं जो न्यायिक पद पर बैठे और भ्रष्टाचार कर रहे हैं। पुरुषों को भी लगने लगा है कि अगर उन्होंने शादी कर ली तो वो एटीएम बनकर रह जाएंगे।

-अनिल नरेन्द्र

इलाहाबाद हाईकोर्ट जज की विवादित टिप्पणी



जस्टिस शेखर कुमार यादव इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज हैं। वो रविवार को विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस मौके पर जस्टिस यादव ने एक नहीं कई अत्यंत विवादित और दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियां की। उन्होंने यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) के मुद्दे पर कहा, हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। आगे कहा कि एक से ज्यादा पत्नी रखने, तीन तलाक और हलाला के लिए कोई बहाना नहीं है और अब ये प्रथाएं नहीं चलेंगी। दरअसल 8 दिसम्बर को विहिप के विधि प्रकोष्ठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के लाइब्रेरी हॉल में एक कार्यक्रम में वक्फ बोर्ड अधिनियम, धर्मांतरण कारण एवं निवारण और समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता विषय पर बोलते हुए जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि मुझे ये कहने में बिलकुल गुरेज नहीं है कि ये हिंदुस्तान है। हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाईकोर्ट के जज ऐसा बोल रहे हैं। कानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। जस्टिस शेखर यादव आगे कहते हैं कि कठमुल्ले देश के लिए घातक हैं। जस्टिस यादव कहते हैं जो कठमुल्ला है शब्द गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है क्योंकि वह देश के लिए घातक हैं। जनता को बहकाने वाले लोग हैं और इनसे सावधान रहने की जरूरत है। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने और भी बहुत कुछ कहा। अगर जस्टिस यादव के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया मिल रही है तो वह स्वाभाविक ही है। जज साहब जिस तरह की बातें कहते दिख रहे हैं, वो देश के संविधान के खिलाफ तो है ही साथ-साथ न्यायपालिका पर भी सवाल उठाता है। एक मौजूदा न्यायाधीश के लिए अपने राजनीतिक एजेंडे पर हिंदू संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेना न केवल शर्म की बात है बल्कि जज द्वारा ली गई शपथ का भी उल्लंघन है। ये सचमुच परेशान करने वाली बात है। हैरत की बात है कि संविधान के संरक्षक की भूमिका निभाने वाली न्यायपालिका का वरिष्ठ सदस्य एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहता दिखता है कि देश संविधान, कानून के हिसाब से नहीं बल्कि बहुसंख्यकों की मर्जी के मुताबिक चलेगा और इसका कोई खंडन भी नहीं आता। ध्यान रहे यह ज्यूडिशियरी के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा जाने-अनजाने संवैधानिक मर्यादा के उल्लघंन से जुड़ा पहला मामला नहीं है। कुछ ही दिनों पहले कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज द्वारा एक मुस्लिम बहुल इलाके का जिक्र पाकिस्तान के रूप में किए जाने का मामला सामने आया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई भी शुरू की थी। हालांकि बाद में उस जज के माफी मांगने पर कार्रवाई रोक दी गई थी। यह संतोष की बात है कि जस्टिस शेखर यादव के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाईकोर्ट से न्यायमूर्ति यादव के बयान पर विस्तृत ब्यौरा देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की और कहा मैं चाहूंगा कि हम एकत्र होकर न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ महाभियोग चलाएं। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखकर जस्टिस यादव के आचरण पर विभागीय जांच का आग्रह किया है। वहीं खबर यह भी है कि संसद के विपक्षी दल के सांसद भी जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं और अब तक 35 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। एक सुझाव यह भी आया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शेखर से सारे केस वापस ले लें और उन्हें काम देना बंद कर दें।

Thursday, 12 December 2024

उपासना स्थल एक्ट को चुनौती



सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को प्लेसेज ऑफ वर्शिप पर (उपासना स्थल) एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इस सुनवाई पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं। पता चला है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल 3 जजों की बैंच इस मामले की सुनवाई करेगी। बता दें कि उपासना स्थल एक्ट 1991 का फैसला पांच जजों की पीठ ने किया था और अब उस पर सुनवाई 3 जजों की बैंच करेगी। शीर्ष अदालत के समक्ष अश्विनी उपाध्याय व अन्य द्वारा याचिकाओं में निवेदन किया गया है कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के उपासना स्थल को पुन प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छिनते हैं, ऐसा दावा किया है याचिकाकर्ताओं ने। इस मामले की सुनवाई वाराणसी में ज्ञानव्यापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित विभिन्न अदालतों में दायर मुकदमों की पृष्ठ भूमि में की जाएगी। याचिकाओं में दावा किया है कि इन मस्जिदों का निर्माण प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद किया गया था और हिंदुओं को वहां पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी जाए। बता दें कि उपासना स्थल एक्ट (प्लेसेज ऑफ वर्शिप) एक्ट 1991 के तहत प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था भविष्य में उसी का रहेगा। इस प्रावधान को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई 2022 को ज्ञानव्यापी मस्जिद मामले की सुनवाई की थी और तब तत्कालीन मुख्य न्यायधीश चंद्रचूड़ ने मौखिक टिप्पणी की थी कि उपासना स्थल एक्ट के तहत धार्मिक कैरेक्टर का पता लगाने पर रोक नहीं है। वहीं कमेटी की ओर से कहा गया है कि उपासना एक्ट के तहत इस तरह के विवाद को नहीं लाया जा सकता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उपासना स्थल अधिनियम 1991 के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए तर्क दिया गया था कि अब कानून को दरकिनार नहीं किया जा सकता। 1991 का प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का मकसद 15 अगस्त 1947 के बाद के धार्मिक स्थलों की स्थिति यथावत रखना था और किसी भी पूजा स्थल के परिवर्तन को रोकना था साथ ही उनके धार्मिक चरित्र की रक्षा करना था। 15 अगस्त 1947 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। जब वह स्वतंत्र लोकतांत्रिक और संपन्न राज्य बना, जिसमें कोई राज्य धर्म नहीं है और सभी धर्मों को बराबरी से देखा जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने भी हाल में कहा कि अब हमें हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग नहीं ढूंढना चाहिए। इससे देश का सौहार्द बिगड़ता है और आपसी भाईचारे पर असर पड़ता है। हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने का यह अभियान रुकना चाहिए नहीं तो यह बहुत नुकसान देगा। साथ-साथ यह भी कहना जरूरी है कि वक्फ बोर्ड को हर संपत्ति को वक्फ प्रापर्टी कहना बंद करना होगा। इसी का रिएक्शन है हर मस्जिद के नीचे मंदिर।

-अनिल नरेन्द्र

इंडिया गठबंधन के साथियों में बेचैनी



संसद के अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद अब पार्टियां गठबंधन के भीतर अपनी आवाजें उठाने लगी हैं। साथ ही राहुल गांधी की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। राहुल गांधी पर कोई सीधे सवाल खड़े कर रहा है तो कोई इंडिया कंवीनर को लेकर अपने सुझाव दे रहा है। महाराष्ट्र में सपा का शिव सेना उद्धव ठाकरे गुट से नाराजगी की बात कहते हुए महाविकास अघाड़ी गुट से नाता तोड़ लेने में राज्य की सियासत पर असर भले ही न डाले, लेकिन इसके गहरे मायने हैं। इसी तरह तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का इंडिया एलाइंस को लीड करने की इच्छा जाहिर करना भी बहुत कुछ कहता है। इन दोनों की नाराजगी गठबंधन के नेतृत्व और इस तरह से सीधे कांग्रेस को लेकर है। इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के बयानों पर यदि गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि उनमें भी कहीं न कहीं बेचैनी है। कटु सत्य तो यह है कि कांग्रेस चाहे लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा का कांग्रेस कहीं अच्छा परफार्म नहीं कर पाई। दरअसल कांग्रेस का संगठन बहुत कमजोर है। बेशक सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन कितना भी जोर लगाकर हवा बना दें पर संगठन नाम की कोई चीज कांग्रेस के पास नहीं है। खुद कांग्रेस के अंदर लोग राहुल को फेल करने में लगे हुए हैं। जहां कहीं भी कांग्रेस और भाजपा की डायरेक्ट फाइट होती है। कांग्रेस बुरी तरह से हार जाती है। राहुल बेशक जनता से जुड़े मुद्दे उठाते हैं पर उनका पार्टी के अंदर कोई फालोअप नहीं है और पार्टी नेतृत्व में थोक परिवर्तन करने की इच्छा शक्ति भी नहीं दिखती। आज तक ढंग से हरियाणा और महाराष्ट्र में करारी हार की जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी और न पार्टी के अंदर बैठे किसी जयचंदों की छुट्टी हो सकी। सो इस लिहाज से अगर ममता इंडिया गठबंधन को लीड करती हैं तो उसमें बुराई क्या है? मकसद तो भाजपा को हराना है और यह काम कांग्रेस या राहुल गांधी मौजूदा परिस्थितियों में नहीं कर सकते। हर हार से विपक्ष कमजोर होता जा रहा है और सत्तापक्ष मजबूत होता जा रहा है। राहुल गांधी को अपनी स्ट्रेटजी भी बदलनी होगी। उन्हें अब गौतम अडाणी पर इतना फोकस नहीं करना चाहिए। यह मेरी निजी राय है। क्योंकि अडाणी मुद्दे पर न तो उनकी पार्टी के अंदर उन्हें समर्थन मिल रहा है और न ही सहयोगी दलों से। सब अपने हितों को देखते हैं। गौतम अडाणी अब पूरी तरह एक्सपोज हो चुके हैं। उनके काले कारनामें पूरी दुनिया में उजागर हो रहे हैं। अडाणी से अमेरिका, केन्या, आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश इत्यादि देश निपट लेंगे। राहुल को दूसरे ज्वलंत मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, संविधान सुरक्षा, आपसी सद्भाव जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। बेशक आज ऐसा लगता हो कि इंडिया गठबंधन में दरार आ गई है ऐसा नहीं है। आज भी सब अपने-अपने तरीके से सत्तारूढ़ दल से निपटने में जुटे हुए हैं। रहा सवाल गठबंधन के नेतृत्व का तो सभी दलों को मिल-बैठकर आपसी मशविरा करके तय कर लेना चाहिए।

Tuesday, 10 December 2024

ट्रंप के आने का खौफ



अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन गंभीर आरोपों से घिरे अपने बेटे हंटर बाइडन को माफी (प्रेसिडेंशियल पार्डन) देने के बाद अब एक और कदम उठाने की तैयारी में है। रिपोर्ट है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बदले की कार्रवाई से अपने अधिकारियों और डेमोक्रेटिक नेताओं को बचाने के लिए बाइडन सामूहिक माफी देने पर विचार कर रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक बाइडन प्रशासन ने ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार कर ली है जो ट्रंप के बदले की कार्रवाई के शिकार बन सकते हैं। अब उन सभी लोगों को अपराध पूर्व माफी दे दी जाएगी। अगर ट्रंप उन पर कोई कार्रवाई करें तो उनकी रक्षा हो सके। बाइडन प्रशासन को लगता है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने शीर्ष कानून प्रवर्तन अधिकारी के रूप में काश पटेल का चयन किया है। इससे साफ है कि ट्रंप अपने दुश्मनों के खिलाफ प्रतिशोध का वादा पूरा करेंगे। बता दें कि अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने उन्हें निशाना बनाने वाले अधिकारियों को जेल भेजने की धमकी भी दी थी। अगर राष्ट्रपति जो बाइडन अपने सहयोगियों और डेमोक्रेटिक नेताओं की अपराध पूर्व माफी देते हैं तो अमेरिका में 47 साल बाद ऐसा वाक्या होगा। इससे पहले 1977 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर ने वियतनाम वार टॉपर आरोपियों को अपराध पूर्व सामूहिक माफी दी थी। इसके अलावा 1974 में राष्ट्रपति गैराल्ड फोर्ड ने पूर्व राष्ट्रपति को माफी दी थी, हालांकि बाद में उन पर आरोप साबित भी नहीं हो पाए थे। हालांकि बाइडन की अपराध पूर्व माफी को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी भी एकमत नहीं है। जेम्स जैसे डेमोक्रेटिक नेताओं का कहना है कि सामूहिक क्षमादान पर फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि इससे पार्टी की छवि को नुकसान होगा। जिन लोगों को अपराध पूर्व माफी देने की चर्चा चल रही है उनमें कैपिटल हिल हिंसा की जांच करने वाले सीनेटर एडम फिश और लिज चेनी का नाम सबसे ऊपर है। राष्ट्रपति जो बाइडन के सहयोगी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इफेक्शियंस डिजीज के पूर्व प्रमुख एंथनी घौसी का नाम भी अपराध पूर्व माफी लिस्ट में शामिल हैं। जो कोविड-19 महामारी के दौरान दक्षिण पंथी रिपब्लिकन समर्थकों की आलोचना का केंद्र बन गए थे। व्हाइट हाउस के वकील एंड सिस्केल और चीफ ऑफ स्टॉक जेफ लिएटंस पर भी कार्रवाई का डर है, उधर अमेरिकी फैडरल फाइलिंग से खुलासा हुआ है कि टेस्ला के सीईओ इलॉन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार में 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की वित्तीय सहायता की है । भले ही ये रकम मस्क की संपत्ति का एक छोटा हिस्सा है, लेकिन फिर भी ये किसी सिंगल डोनर की ओर से दी गई बहुत बड़ी रकम है जिसने सभी को चौंका दिया है। हालांकि ट्रंप की जीत की घोषणा होते ही मस्क की संपत्ति में कई गुना इजाफा हो गया और जितना उन्होंने चुनाव में लगाया था। उससे कई गुना कमा भी लिया और आज ट्रंप का दाहिना हाथ बने हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

असम में बीफ खाने पर पाबंदी



पिछले सप्ताह की शुरुआत में असम में रेस्तरां और सामुदायिक समारोहों सहित सार्वजनिक जगहों पर गाय का मीट यानी बीफ खाने पर पाबंदी लगा दी गई है। आलोचकों ने इस कदम को अल्पसंख्यक विरोधी करार दिया है और इसके पीछे असम में हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का मकसद संप्रदायों के बीच ध्रुवीकरण करना बताया है। भारत में सबसे ज्यादा आबादी कश्मीर के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में है। सरमा ने कहा कि अब किसी भी रेस्तरां या होटल में बीफ नहीं परोसा जा सकेगा। सरमा ने कहा कि यह फैसला 2021 के उस कानून को मजबूत करने के लिए किया गया है, जिसे उनकी सरकार असम में मवेशियों के व्यापार को रेगुलेर करने के लिए लेकर आई थी। असम कैटल प्रदर्शन एक्ट 2021, मवेशियों के ट्रांसपोर्ट पर पाबंदी को कड़ा करता है और मवेशियों की बलि के साथ-साथ हिंदू धर्म के केंद्रों के पांच किमी के किसी दायरे में बीफ खरीद बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाता है। हम तीन साल पहले इस कानून को लाए थे और अब इसे काफी कारगर पाया गया कहते हैं सरमा/ मुस्लिम हितो का प्रतिनिधित्व करने वाली सिविल सोसायटी संगठनों के साथ-साथ असम में विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री की इस घोषणा की आलोचना की है। वो इसे इस साल 2026 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उठाया गया कदम बता रहे हैं। कांग्रेsस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि मुख्यमंत्री झारखंड के भाजपा की अपमानजनक हार के बाद अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं असम कांग्रेस से अध्यक्ष भूपेन वोरा ने कहा कि इस फैसले का मकसद वित्तीय संकट, महंगाई और बेरोजगारी जैसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाना है। असम कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा हमारे (कांग्रेस) नेताओं ने कहा कि भाजपा ने हालिया चुनावों में जीतने के लिए अनुचित हथकंडे अपनाए, जिसमें धांधली और अधिकारियों की निक्रियता शामिल है। अब मुख्यमंत्री बैकफुट पर आ गए हैं। उन्होंने कैबिनेट के इस फैसले को आगे बढ़ाने के फैसले के रूप में बीफ का हवाला दिया है। राजनीतिक बयानबाजी को अलग रुख भी दें तो मुसलमानों की करीब 34 फीसदी आबादी (साल 2011 की जनगणना के मुताबिक) असम में बीफ खाने पर पूरी तरह पाबंदी से जुड़े कई अहम पहलू हैं। इसे सबसे ज्यादा राज्य का बंगाली मुस्लिम समुदाय महसूस करता है, मुस्लिम आबादी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्हें अक्सर बाहरी या बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी बताया जाता है। इसके अलावा ऐसे कदमों में राज्य के संचालन में चलने वाले मदरसों को ध्वस्त करना, बहु विवाह पर प्रतिबंध और लव जिहाद से निपटने के लिए कानून लाने की योजनाएं भी शामिल हैं। बंगाली मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले छात्र संगठन आल असम माइनारिटीज छात्र यूनियन के अध्यक्ष रेजाउल करीम ने प्रतिबंध को अल्पसंख्यक समुदाय को अलग-थलग करने और उन्हें निशाना बनाने की एक और घटना बताया। अगर बीफ खाने वालों की हम बात करें तो ऐसा नहीं कि बहुत से हिन्दू भी बीफ खाते हैं। गोवा राज्य में बीफ खुलेआम खाया जाता है, पूर्वोत्तर के कई राज्यों में बीफ खाने का प्रचलन है। बीफ न खाना एक धार्मिक मुद्दा तो हो सकता है पर किस को क्या खाना-पहनना है यह थोपा नहीं जा सकता। सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि भारत से बीफ सबसे ज्यादा निर्यात (एक्सपोर्ट) करने वाली चार सबसे बड़ी कंपनियां हिन्दुओं की हैं। बेशक नाम उन्होंने गुमराह कररने के लिए उर्दू और अरबी टाइप के रखे हुए हैं। खाना-पीना यह व्यक्तिगत फैसला है जिसे कानून से लागू करना ठीक नहीं है।

Saturday, 7 December 2024

सुखबीर बादल पर जानलेवा हमला

श्री अकाल तख्त साहिब में तनखैया घोषित हो चुके सुखबीर बादल और उनकी तत्कालीन कैबिनेट में रहे मंत्रियों को धार्मिक सजा सुनाते हुए श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों ने बड़ा ऐलान किया है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत नेता प्रकाश सिंह बादल को दिया गया। फक्र-ए-कौम सम्मान वापस लेने का ऐलान किया है। इसके साथ ही उनके बेटे सुखबीर बादल को भी धार्मिक सजा सुनाई गई। दरअसल, ये मामला गुरमीत सिंह राम रहीम से जुड़ा हुआ है। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने कहा कि यह शर्म की बात है कि श्री अकाल तख्त साहिब से बनी पार्टी मुद्दों से हटकर बात करने लगी है। दरअसल जिस वक्त पंजाब में गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबियों के मामले हुए उस दौरान पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल थे। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने कहा, सुखबीर सिंह बादल ने अपराध कबूल कर लिया है कि उन्होंने जत्थेदार साहिबों को अपने आवास पर बुलाया और गुरमीत राम रहीम को माफी के लिए दबाव डाला। इस काम में दिवंगत मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी शामिल थे। सुखबीर सिंह बादल सहित कोर कमेटी मेंबर और साल 2015 में कैबिनेट रहे नेता 3 दिसम्बर को 12 बजे से लेकर 1 बजे तक बाथरूम साफ करेंगे। इसके बाद वो नहाकर लंगर घर में सेवा करेंगे। बाद में श्री सुखमणि साहिब का पाठ होगा। सुखबीर सिंह बादल दरबार साहिब के बाहर बरछा लेकर बैठेंगे। उन्हें गले में तनखैया घोषित किए जाने की तख्ती पहननी होगी। इसी दौरान जब सुखबीर सिंह बादल दरबार साहिब के बाहर बरछा लेकर बैठे थे तभी उनपर एक जानलेवा हमला हुआ। बुधवार सुबह खालिस्तान समर्थक आतंकी ने सुखबीर को जान से मारने का प्रयास किया। सादी वर्दी में तैनात पुलिस के एएसआई की सतर्कता से वह सुरक्षित बच गए। एएसआई जसबीर सिंह ने आतंकी का हाथ पकड़ कर पिस्तौल ऊपर उठा दी। जिससे गोली दीवार पर लगी और कोई हताहत नहीं हुआ। पुलिसकर्मियों ने आतंकी नारायण सिंह चौड़ा को मौके पर ही दबोच लिया। इस बीच सीएम भगवंत मान ने बादल पर हमले की जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने डीजीपी से रिपोर्ट भी तलब की है। कट्टरपंथी संगठन दल खालसा से जुड़ा चौड़ा गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक का रहने वाला है। बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) और खालसा लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) से भी उसके संबंध रहे हैं। बेअदबी के आरोप में अकाल तख्स से मिली सजा के तौर पर दूसरे दिन सुबह नौ बजे शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल स्वर्ण मंदिर के द्वार पर व्हीलचेयर पर बैठकर पहरा दे रहे थे। आतंकी चौड़ा काफी घंटे से इधर-उधर घूम रहा था। करीब 9.30 बजे मौका पाकर वह सुखबीर के सामने आ गया और पाकेट से पिस्तौल निकाल ली। इससे पहले कि वह गोली चलाता एएसआई जसबीर ने उसे पकड़ लिया। इस दौरान हुई हाथापाई में चौड़ा ने गोली चलाई, जो दीवार पर जा लगी। बादल को जेड प्लस सुरक्षा मिली है। इस हमले के पीछे प्राथमिक जांच के दौरान पुलिस को बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े इनपुट मिले हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अलगाववाद के मंसूबे को बढ़ावा देने के लिए सुखबीर पर यह हमला हुआ है, ताकि प्रदेश की न केवल शांति भंग की जा सके। बल्कि हमले के जरिए कट्टरपंथी खालिस्तानी और अलगाववादी विचारधारा को हावी दिखाया जा सके। -अनिल नरेन्द्र

बैलेट पेपर से चुनाव कराने का प्रयास

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मालशिरस विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीणों का एक समूह मतपत्रों से पुनर्मतदान कराने पर जोर दे रहा था, लेकिन पुलिस-प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने मंगलवार को अपनी योजना रद्द कर दी। इस सीट से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चन्द्र पवार), राकांपा-एसपी के विजयी उम्मीदवार ने यह सनसनीखेज जानकारी दी। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उन्होंने ग्रामीणों को चेतावनी दी कि अगर वे मतदान की अपनी योजना पर आगे बढ़े तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इससे पहले, सोलापुर जिले के मालशिरस क्षेत्र के मरकड़वाड़ी गांव के निवासियों ने बैनर लगाकर दावा किया था कि तीन दिसम्बर को पुनर्मतदान कराया जाएगा। इसके लिए उन्होंने बाकायदा मतपत्र भी छपवाए थे और वे चाहते थे कि मतपत्र से पुनर्मतदान कराया जाए। ताकि ईवीएम के परिणामों से उनको मिलाया जा सके। यह गांव मालशिरस विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहां से राकांपा उम्मीदवार उत्तम जानकार ने भाजपा के राम सतपुते को 13,147 मतों से हराया था। चुनाव के नतीजे 23 नवम्बर को घोषित किए गए थे और इस सीट से जानकार विजयी रही। आमतौर पर हारने वाले उम्मीदवार ही ईवीएम के परिणाम को चुनौती देता है। यहां तो जीते हुए उम्मीदवार के वोटरों ने ही ईवीएम परिणाम को चुनौती दे डाली? मरकड़वाड़ी निवासियों ने दावा किया कि उनके गांव में जानकर को सतपुते के मुकाबले कम वोट मिले, जो संभव नहीं था। स्थानीय लोगों ने ईवीएम पर संदेह जताया। एक अधिकारी ने बताया कि मालशिरस उपमंडल अधिकारी (एसडीएम) ने कुछ स्थानीय लोगों की पुनर्मतदान की योजना के कारण किसी भी संघर्ष या कानून-व्यवस्था सबकी स्थिति से बचने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 (जो पहले 144 होती थी) के तहत दो से पांच दिसम्बर तक क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू कर दी। गांव में मंगलवार सुबह अत्याधिक संख्या में पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया, क्योंकि कुछ ग्रामीणों ने मतपत्रों से पुनर्मतदान के लिए इंतजाम किए थे। डीएसपी नारायण शिरगावकर ने कहा कि हमने ग्रामीणों को कानूनी प्रक्रिया समझाई और चेतावनी भी दी ]िक अगर एक भी वोट डाला गया तो मामला दर्ज हो जाएगा। जानकार ने बताया कि पुलिस प्रशासन के रुख को देखते हुए ग्रामीणों ने मतदान प्रक्रिया रोकने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा, हालांकि हम अन्य तरीके से अपना विरोध जारी रखेंगे। हम सब मुद्दे को निर्वाचन आयोग और न्यायपालिका जैसे विभिन्न अधिकारियों के समक्ष ले जाने का प्रयास करेंगे और जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता, हम नहीं रुकेंगे। इससे पूर्व स्थानीय निवासी रंजीत ने दावा किया कि मतदान के दिन गांव में 2000 मतदाता थे और उनमें से 1900 ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। गांव ने पहले भी हमेशा जानकर का समर्थन किया है, लेकिन इस बार ईवीएम के जरिए हुई मतगणना के अनुसार जानकर को 843 वोट मिले, जबकि भाजपा के महायुते को 1003 वोट मिले। यह संभव नहीं है और हमें ईवीएम के इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं है, इसलिए हमने मतपत्रों के जरिए पुनर्मतदान कराने का फैसला किया ताकि ईवीएम की धांधली का भांडा फोड़ सकें। खबर है कि महाराष्ट्र के अन्य गांवों में भी ऐसी वोटिंग की योजनाएं चल रही हैं। इससे पता चलता है ईवीएम की विश्वसनीयता का।

Thursday, 5 December 2024

महाराष्ट्र में ईवीएम पर बढ़ता बवाल

महाराष्ट्र में ईवीएम मशीनों और उनके द्वारा निकले विधानसभा चुनाव में नतीजों पर बवाल बढ़ता ही जा रहा है। अब तो महाराष्ट्र में कई स्थानों पर जनता, उम्मीदवार सड़कों पर उतर आए हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पाटी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र में पूरे चुनावी तंत्र को नियंत्रित करने के लिए सत्ता और धन का दुरुपयोग जो हुआ है वह पहले कभी किसी विधानसभा या राष्ट्रीय चुनाव में नहीं देखा गया। पवार ने यह बयान 90 वर्ष से ऊपर की आयु के समाजसेवी बाबा आढ़ाव से मुलाकात के दौरान दिया। बाबा आढ़ाव महाराष्ट्र में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कfिथत रूप से ईवीएम के दुरुपयोग के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। आढ़ाव (90) ने गुरुवार को समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के पुणे स्थित निवास फुले वाडा में अपना तीन दिवसीय प्रदर्शन किया। शरद पवार ने कहा कि देश में हाल में चुनाव हुए हैं और लोगों में उन्हें लेकर बेचैनी है। उन्होंने कहा कि बाबा आढ़ाव का आंदोलन इसी बेचैनी का प्रतिनिधित्व करता है। लोगों में यह सुगबुगाहट है कि महाराष्ट्र में हाल में हुए चुनाव में सत्ता का दुरुपयोग और बड़ी मात्रा में धन का इस्तेमाल हुआ है जो पहले कभी नहीं देखा गया। स्थानीय स्तर के चुनावों में ऐसी बातें सुनने को मिलती रहीं पर धन की मदद से पूरे चुनावी तंत्र पर कब्जा और सत्ता का दुरुपयोग पहले कभी नहीं देखा। पवार ने कहा कि लोग दिवंगत समाजवादी विचारक जयप्रकाश नारायण को याद कर रहे हैं और उन्हें लगता है कि किसी को आगे आकर कदम उठाना चाहिए। कदम उठा भी लिया गया है। महाराष्ट्र में हार का सामना करने वाले महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के उम्मीदवारों ने अपने क्षेत्रों में ईवीएम और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपेट) इकाइयों में सत्यापन की मांग करने का फैसला ले लिया है। कई हारे हुए उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट के ईवीएम सत्यापन के फैसले पर चुनाव आयोग में ईवीएम की कंट्रोल यूनिट पर पुन गिनती कराने की अपनी याचिका दायर भी कर दी है। सोशल मीडिया में दावा किया जा रहा है कि दर्जनों हारे हुए उम्मीदवार ने पुन गिनती की फीस भी जमा कर दी है। अकेले बारामति के हारे उम्मीदवार पवार के भतीजे ने भी 9 लाख रुपए फीस जमाकर दी है। महाराष्ट्र में कई और अन्य दर्जनों उम्मीदवारों ने भी ऐसा ही किया है। लोकतंत्र में शिकायतों का सत्यापन होना जरूरी है और चुनाव आयोग को इसमें पूरा सहयोग करना चाहिए न कि खानापूर्ति करके छुटकारा पाने की कोशिश करनी चाहिए। मुंबई के शिव सेना (यूबीटी) के एक विधायक ने दावा किया कि डाले गए वोट और ईवीएम में गिने गए वोट की संख्या में विसंगतियां हैं। विधायक ने कहा, लगभग सभी उम्मीदवारों ने ईवीएम की कार्यप्रणाली पर संदेह जताया है। मराठी के एक समाचार पत्र ने 95 विधानसभा क्षेत्रों की एक सूची बकायदा छापी है जहां पर चुनावी धांधली के आरोप लग रहे हैं। वोटों की मिसमैच के आरोप लग रहे हैं। चुनाव आयोग ने इन आरोपों से इंकार किया है और कहा है कि आयोग हर सवाल का जवाब देगा। देखें, आगे क्या होता है। -अनिल नरेन्द्र

क्या कांग्रेस कठोर निर्णय लेने में सक्षम है?

पहले हरियाणा अब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस ने इसकी वजहों पर हर बार हार के बाद मंथन किया और माना कि आपसी कलह, संगठन की कमजोरी के साथ-साथ किसी की जवाबदेही स्पष्ट न होने से पार्टी की यह दुर्गति हुई है। साथ ही, ईवीएम पर संदेह का मुद्दा भी उठाया। कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में प्रस्ताव पारित कर आरोप लगाया गया कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संवैधानिक जनादेश है। पर चुनाव आयोग की पक्षपाती कार्यप्रणाली से गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी ने आरोप लगाया कि समाज के कई वर्गों में निराशा व आशंकाएं बढ़ रही हैं। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो टूक कहा कि अब पुराना ढर्रा नहीं चलने वाला है। पार्टी नेताओं को बिना सोचे-समझे एक-दूसरे पर टीका-टिप्पणी करने से बाज आना होगा। खरगे ने कहा, हमें तुरंत चुनावी नतीजों से सबक लेते हुए संगठन के स्तर पर अपनी कमजोरियों और खामियों को दुरुस्त करने की जरूरत है। ये नतीजे हमारे लिए स्पष्ट संदेश हैं। खरगे ने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल के बावजूद हरियाणा व महाराष्ट्र में हार को आश्चर्यजनक बताया। कहा सिर्फ छह महीने पहले जो नतीजे आए थे, उसके बाद ऐसे नतीजे? क्या कारण है कि हम माहौल का फायदा उठा नहीं पाते? मल्लिकार्जुन हfिरयाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान से बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं। अगर वे सही मायने में कांग्रेस संगठन को मजबूत करना चाहते हैं। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और खुद मल्लिकार्जुन बेशक माहौल तैयार करें पर उसका फायदा तभी होगा जब कांग्रेस का संगठन इस हवा को कैश कर सकेगा। कटु सत्य तो यह है कि इन तीन नेताओं को छोड़कर बाकी कांग्रेसी अब मेहनत करने के आदी नहीं रहे, जमीन पर उतरने को तैयार नहीं हैं। जनता की भावनाओं से कट चुके हैं। हाई कमान के करीबी लोग अनचाहे टिकटों का बंटवारा करते हैं, यह भी कहा जाता है कि टिकटों की सेल भी होती है। पार्टी को इससे छुटकारा पाना होगा। वह संगठन मंत्री ही क्या जो आज तक जिला अध्यक्ष, ब्लाक अध्यक्ष, बूथ अध्यक्ष तक नहीं बना सके? छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार को करीब छह महीने बीत चुके हैं पर, पार्टी अभी तक इन राज्यों में जवाबदेही तय करते हुए बदलाव नहीं कर पाई हैं। दोनें राज्यों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अपने पदों पर अभी भी बरकरार हैं। हिमाचल प्रदेश और ओडिशा में पार्टी प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर चुकी है पर काफी कोशिशों के बावजूद नए अध्यक्ष के नाम पर प्रदेश कांग्रेस के दोनों गुटों में सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में पार्टी जवाबदेही तय करने की हिम्मत जुटाती है, तो उसे पार्टी के अंदर काफी विरोध का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि, प्रदेश क्षत्रप बदलाव के लिए तैयार नहीं है। महाराष्ट्र में भी पार्टी को नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुfिक्त करते हुए प्रदेश प्रभारी को भी बदलना होगा। प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले और प्रदेश प्रभारी रमेश दोनों के खिलाफ अंदर-अंदर नाराजगी है। हरियाणा चुनाव परिणाम को दो महीने से ज्यादा समय हो चुका है पर पार्टी ने अभी तक हार से कोई सबक नहीं लिया है। आपसी गुटबाजी की वजह से पार्टी विधानसभा में नेता विपक्ष तक इतने दिनों के बाद भी तय नहीं कर पाई। कांग्रेस का ऊपर से नीचे तक ओवर हॉल करना होगा पर सवाल है कि क्या मल्लिकार्जुन ऐसा कर कर सकते हैं।

Tuesday, 3 December 2024

क्या इजरायल और हिजबुल्ला जंग थमी है



7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर आतंकी हमले के चलते पूरे पश्चिम एशिया में अराजकता फैलाने के बाद करीब 14 महीने (418 दिन) के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पहल पर इजरायल और हिजबुल्ला के बीच सीजफायर यानि युद्ध विराम की घोषणा हुई है। इजरायल-हमास ने युद्ध शुरू होने के बाद से ही उत्तरी सीमा पर हमला करना शुरू किया था। अमेरिका और फ्रांस के संयुक्त बयान में कहा गया कि इस समझौते से लेबनान में जारी जंग रूकेगी और इजरायल पर भी हिजबुल्ला और अन्य आतंकी संगठनों के हमले का खतरा बढ़ जाएगा। युद्ध विराम की कोशिशें आखिर रंग लाई और दुनिया ने चैन की सांस ली। हालांकि यह युद्ध विराम कितना प्रभावी होगा इस पर प्रश्न चिह्न लग रहे हैं। वैसे तो युद्ध विराम के प्रयास कई महीने से चल रहे थे पर नेतन्याहू मान नहीं रहे थे। अब जब हिजबुल्ला ने इजरायल के होश ठिकाने लगा दिए हैं इसलिए नेतन्याहू युद्ध विराम करने पर मजबूर हो गए हैं। दरअसल इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 26 नवम्बर को कहा कि वह तीन कारणों और शर्तों पर युद्ध विराम पर सहमत हुए हैं। पहला कारण बताया कि इजरायली सैन्य बलों को हिजबुल्ला से दूर रखने और ईरान के बढ़ते खतरे पर फोकस करने की जरूरत थी। दूसरा इजरायल के सैन्य अभियानों में रसद संबंधी चुनौतियों विशेष रूप से हथियार और युद्ध सामग्री प्राप्त करने में देरी को स्वीकारा है यानि के इजरायल के पास हथियार और युद्ध सामग्री लगभग समाप्त हो गई है और फिर से सप्लाई को पूरा करने के लिए समय चाहिए। तीसरा कारण उन्होंने बताया कि युद्ध के मैदान से हिजबुल्ला को किनारे कर हमास को अलग-थलग करना। साधारण शब्दों में कहा जाए तो हिजबुल्ला ने इजरायल को ठिकाने लगा दिया है और अपने असित्व को बचाने के लिए घुटने टिकवा दिए हैं। उधर लेबनान में हिजबुल्ला के प्रमुख नईम कासिम ने इस समझौते को हिजबुल्ला की महान जीत बताया और लेबनान के लोगों के धर्म की तारीफ की। हिजबुल्ला के साथ इजरायल की पिछली लड़ाई 2006 में हुई थी जिसमें इजरायल को मुंह की खानी पड़ी थी। उन्होंने कहा हम जीते क्योंकि दुश्मन को हिजबुल्ला को नष्ट करने से रोक दिया। हम जीते क्योंकि रेजिस्टेंस को खत्म करने या पंगु करने से रोक दिया। फिलस्तीन के लिए हमारा समर्थन रूकेगा नहीं। हमने बार-बार कहा है कि हम युद्ध नहीं चाहते हैं लेकिन हम गाजा का समर्थन करना चाहते हैं और अगर इजरायल जंग थोपता है तो हम इसके लिए तैयार हैं। लेबनान का कहना है कि अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक 3961 लेबनानी नागरिक मारे गए हैं जिनमें अधिकांश संख्या हाल के सप्ताहों की है। इजरायल की ओर से जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक हिजबुल्ला के साथ हुए संघर्ष में उसके 82 सैनिक और 47 नागरिक मारे गए हैं। उधर इजरायली सेना ने बृहस्पतिवार को कहा कि उसके लड़ाकू विमानों ने एक राकेट भंडारण इकाई पर हिजबुल्ला की गतिविधि का पता लगने के बाद दक्षिणी लेबनान पर गोलीबारी की। यह इजरायल और हिजबुल्ला के बीच संघर्ष विराम लागू होने के एक दिन बाद पहला इजरायली हमला था। इससे प्रश्न यह उठ रहा है कि इजरायल और हिजबुल्ला के बीच जंग जारी है? वैसे अब युद्ध विराम का स्वागत किया जाना चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सिलसिला आगे बढ़े और हमास व इजरायल के बीच भी युद्ध विराम हो और यह युद्ध थमे।

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र में सरकार गठन में फंसा पेंच



महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आए हुए लगभग 10 दिन हो चुके हैं। 23 नवम्बर को नतीजे आए थे और 25 नवम्बर तक सरकार का गठन होना जरूरी था। अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे अनुसार राष्ट्रपति शासन लग सकता था। पर इतने दिन बीतने के बाद महायुति गठबंधन न तो सरकार बनाने का दावा पेश कर सका है और न ही इस संपादकीय लिखने तक यह तय कर सका है कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? संभव है कि आगामी एक दो दिन में यह तय हो जाए। पेंच कहां फंसा है? महाराष्ट्र में सरकार गठन से पहले महायुति में मुख्यमंत्री पद और विभागों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर बृहस्पतिवार देर रात तीन घंटे चली बैठक में भी कोई फैसला नहीं हो पाया। सारा पेंच एकनाथ शिंदे का फंसा हुआ है। शिंदे समर्थक कहते हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में लड़ा गया था इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री पद मिलना चाहिए। वहीं भाजपा नेताओं का मानना है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तो मुख्यमंत्री उसका ही होना चाहिए। कायदे से यह बात भी ठीक है। सबसे बड़ी पार्टी का ही मुख्यमंत्री होना चाहिए। पर यह भी सही है कि विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे ने कड़ी मेहनत की है, उनकी कई योजनाएं रंग लाई हैं, उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था तो मुख्यमंत्री पद पर उनका ही हक बनता है। पर भाजपा इसके लिए तैयार नहीं है। एकनाथ शिंदे नाराज होकर अपने गांव सतारा चले गए थे और कोपभाजन में जाकर बैठ गए थे। इधर भाजपा में भी किसको मुख्यमंत्री बनाना है इस पर भी असमंजस की स्थिति है। एक वर्ग देवेन्द्र फडणवीस को बनाना चाहता है, और फडणवीस को कहा जा रहा है कि संघ का भी समर्थन है। पर भाजपा के अंदर एक तबका इसका विरोध कर रहा है कि एक ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाया तो ओबीसी और खासकर मराठा मतदाता नाराज हो जाएगा। सामाजिक समीकरण भी देखने होंगे। इसलिए किसी अन्य मराठा नेता की तलाश की जा रही है। पर भाजपा नेतृत्व की गले की फांस बने हुए हैं एकनाथ शिंदे। शिंदे को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं करना चाहता भाजपा नेतृत्व। उसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला कि पिछले ढाई साल से एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र की कमान संभाली हुई है। उनके पास कई ऐसी जानकारियां होंगी जिनके उभरने से नेतृत्व को नुकसान हो सकता है। अगर शिंदे के खिलाफ नेतृत्व के पास फाइल तैयार है तो शिंदे के पास भी सारे कारनामों की फाइल तैयार होगी। इसके अलावा हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि केंद्र में शिवसेना (शिंदे गुट) के सात सांसद हैं जो भाजपा सरकार का समर्थन कर रहे हैं। कहीं इस विवाद में वह अपना समर्थन वापस न ले लें और केंद्रीय सरकार अस्थिर हो जाए। कुल मिलाकर हमें लगता है कि तुरुप के पत्ते एकनाथ शिंदे के हाथों में हैं। देखें, अब ऊंट किस करवट बैठता है।

Saturday, 30 November 2024

सवाल ईवीएम से चुनाव कराने का

कांग्रेस ने एक बार फिर बैलेट पेपर या मतपत्रों की वापसी की मांग उठाई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मंगलवार को तालकटोरा स्टेfिडयम में बैलेट पेपर से चुनाव के लिए भारत जोड़ो यात्रा की तरह देशव्यापी अभियान चलाने का ऐलान किया। संविधान रक्षक अभियान के दौरान खरगे ने कहा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जाति गणना से डरते हैं। उन्हें डर है कि सभी वर्ग अलग हिस्सा मांगेंगे। खरगे ने कहा, महाराष्ट्र चुनाव ने दिखा दिया है कि एससी/एसटी/ओबीसी, गरीब तबके के लोग अपनी पूरी शक्ति लगाकर वोट देते हैं लेकिन उनका वोट फिजूल जा रहा है। ईवीएम मशीनों को लेकर खरगे ने कटाक्ष किया कि मोदी जी के घर या अमित शाह के घर में मशीन रखने दो, अहमदाबाद के किसी गोदाम में रखने दो, हमें ईवीएम नहीं चाहिए हमें मतपत्र चाहिए। उनका प्रस्ताव था कि जैसे राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत यात्रा निकाली वैसे ही मतपत्र चाहिए कि मुहिम शुरू की जाए। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में ईवीएम को लेकर ढेर सारी शिकायते आई हैं। उम्मीदवार सुबूत इकट्ठा करके चुनाव आयोग और अदालतें के दरवाजे खटखटा रहे हैं। जहां तक अदालतों का सवाल है तो कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने मतपत्रों का इस्तेमाल करने संबंधी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा चुनाव जीत जाएं तो ईवीएम सही हार जाएं तो छेड़छाड़ की गई है। न्यायामूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पीबी वराले की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह टिप्पणी की थी। याचिका में मतपत्र से मतदान कराए जाने के अलावा कई अन्य दिशा-निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया गया था। जब याचिकाकर्ता केए पाल ने कहा कि जनहित याचिका उन्होंने दायर की है तो पीठ ने कहा, आपके पास दिलचस्प जनहित याचिकाएं हैं। आपको ये शानदार विचार आते कहां से हैं! याचिकाकर्ता पाल ने कहा कि वे एक ऐसे संगठन के अध्यक्ष हैं जिसने तीन लाख से अधिक अनाथों और 40 लाख विधवाओं को बचाया है। पीठ ने इनके जवाब में कहा, आप इस राजनीतिक क्षेत्र में क्यों उतरे हैं? आपका कर्म क्षेत्र बहुत अलग है। पाल ने जब बताया कि वह 150 से अधिक देशों की यात्रा कर चुके हैं तो पीठ ने उनसे पूछा कि क्या इन देशों में मतपत्रों के जरिए मतदान होता है या वहां ईवीएम का इस्तेमाल होता है। इस पर श्री पाल ने कहा कि अन्य देशों ने मतपत्रों के जरिए मतदान की प्रक्रिया अपनाई है जिसमें अमेरिका, कई यूरोप जैसे विकसित देश शामिल हैं। भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार हुआ है, इस साल (2024) जून में निर्वाचन आयोग ने 9000 करोड़ रुपए जप्त किए हैं। पीठ ने कहा, लेकिन इससे आपकी बात कौन सी प्रासंगिक हो जाती है। यदि आप मतपत्र की ओर लौटते हैं तो क्या भ्रष्टाचार नहीं होगा, चंद्रबाबू नायडू व जगन रेड्डी का जिक्र किए जाने पर पीठ ने कहा, जब चंद्रबाबू नायडू हारे थे तो उन्होंने कहा था कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है। अब इस बार जगन मोहन रेड्डी हारे हैं तो वह कह रहे हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है। सवाल न तो ईवीएम का है न राजनीतिक दलों का, असल सवाल तो लोकतंत्र का है। असल सवाल मतदाता को पता होना चाहिए कि उसने जिसको वोट दिया है क्या उसी को गया है। देश की जनता का विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। -अनिल नरेन्द्र

समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष संविधान का अंग

सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा बताते हुए कहा कि इन्हें संविधान की प्रस्तावना से नहीं हटाया जा सकता। इस बारे में दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में बदलाव की अनुमति देती है। प्रस्तावना भी संविधान का अंग है और संसद की संशोधन शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है। संविधान से धर्मनिरेपक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य के द्वारा दायर की गई थी। गौरतलब है कि साल 1976 में पारित हुए संविधान संशोधन के तहत धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को जोड़ा गया था। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द 1976 में संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए थे और इनसे 1949 में अपनाए गए संविधान पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इस संशोधन के बाद प्रस्तावना में भारत का स्वरूप संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य से बदलकर संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य हो गया था। सुनवाई के दौरान अपनी दलील देते हुए याचिकाकर्ता अधिवक्ता विष्णु जैन ने नौ न्यायाधीश की संविधान पीठ के एक हालिए फैसले का हवाला दिया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) पर 9 जजों की पीठ के फैसले का fिजक्र करते हुए कहा कि उस फैसले में शीर्ष कोर्ट ने समाजवादी शब्द की व्याख्या पर असहमति जताई जिसे शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर और चिन्नप्पा रेड्डी ने प्रतिपादित किया था। सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि भारतीय संदर्भ में हम समझते हैं कि भारत में समाजवाद अन्य देशों से बहुत अलग है। हम समाजवाद का मतलब मुख्य रूप से लोक कल्याणकारी राज्य समझते हैं। कल्याणकारी राज्य में उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1994 के एसआर बोम्मई मामले में धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना था। यह महज संयोग है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर संविधान के प्रस्तावना में निहित समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों के महत्व और उसकी उपयोगिता की व्याख्या की है, जिनका स्वागत किया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बैंच ने समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के बारे में कहा कि भारत के नागरिकों से इन दो शब्दों को अंगीकार करके आत्मसात कर लिया है। इसलिए 44 वर्षों बाद इन शब्दों को संविधान की प्रस्तावना से निष्प्रभावी किए जाने का कोई नैतिक आधार दिखाई नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने रेखांकित किया है कि चाहे धर्मनिरपेक्ष हो या समाजवादी, ये शब्द हमारे संविधान की प्रगतिशीलता को बनाए रखने में सहायक है। जहां धर्मनिरपेक्षता नागरिकों की समानता और धार्मिक आजादी जैसे मूल्य अधिकारों को सुनिश्चित करता है, वहीं समाजवाद के प्रतिनिष्ठा राज्य के कल्याणकारी स्वरूप को बनाए रखने में मदद करता है। आज के माहौल में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का महत्व और भी बढ़ जाता है। हम इसका स्वागत करते हैं।

Thursday, 28 November 2024

क्या शरद पवार का सियासी अस्तित्व खत्म?

महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों से सबसे निराशाजनक संकेत अगर किसी के लिए निकले हैं तो वह राजनीतिक चाणक्य कहे जाने वाले वयोवृद्ध 84 साल के एनसीपी (पवार गुट) के मुखिया शरद पवार के लिए हैं। लगभग ढाई साल पहले उनकी पार्टी की टूट ने न सिर्फ एमवीए की सत्ता छीन ली, बल्कि उनकी पार्टी, सिंबल से लेकर जमीन तक छीनली। नतीजों ने शरद पवार के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया, क्योंकि सीटें, वर्कर्स, जमीन सब जाती हुई दिख रही है। 84 साल की उम्र में शरद पवार के लिए महाराष्ट्र का जनादेश उनके अब तक के सियासी सफर में सबसे बड़े झटके की तरह है। भले ही पांच साल पहले पवार ने अपने राजनीतिक कौशल से कांग्रेस और शिव सेना को साथ लाकर एमवीए को आकार दिया लेकिन इस बार वह बतौर शिल्पकार असफल हुए। जमीन पर उनकी पार्टी एनसीपी की घड़ी ने जो पहचान बनाई, उसे तो भतीजे अजित दादा पवार ले गए, लेकिन इस उम्र और इस जानलेवा बीमारी के चलते फिर से पार्टीं के लिए अलख जगाना आसान नहीं है। इसके पीछे वजह सेहत संबंधी चुनौतियां व बढ़ती उम्र है। शरद पवार ने अपनी विरासत के तौर पर जहां प्रदेश की सियासत अजित के लिए छोड़ी थी और राजनीतिक सियासत बेटी सुप्रिया सुले के लिए तो नई स्थिति में उन्हें सुप्रिया की सियासी जमीन को बनाए रखने के लिए प्रदेश में आधार खड़ा करना होगा। अजित दादा पवार ने भाजपा के साथ मिलकर लकीर इतनी बड़ी कर दी है कि उसे छोटा करना आसान नहीं होगा। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर एक वाक्य धूम मचा रहा था। वो था जहां बूढ़ा आदमी चल रहा है, वहां अच्छा हो रहा है... कम से कम शरद पवार से प्यार करने वाले हर व्यक्ति को इस लाइन का मतलब पता था। शरद पवार के गुट के उम्मीदवार यह सोच रहे थे कि वो अपने नेता के जादू से विधानसभा जरूर पहुंच जाएंगे। यही कारण था कि जहां एनसीपी के घटक एसपी के उम्मीदवार लड़ रहे थे, वहां शरद पवार की रैलियों की खूब मांग थी। 84 वर्षीय शरद पवार ने भी इस मांग के मद्देनजर राज्यभर में 69 सार्वजनिक बैठक की। उन्होंने लोगों को अपने पक्ष में करने का प्रयास भी किया लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी शरद पवार को 86 में से सिर्फ 10 सीटें ही मिलीं। तो क्या शरद पवार का करिश्मा खत्म हो गया? एक बार फिर से शरद पवार के राजनीतिक प्रभाव पर सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या शरद पवार एक बार फिर राजनीति में खड़े हो पाएंगे? साथ ही ये भी कि शरद पवार और उनकी पार्टी का भविष्य क्या होगा? और सबसे अहम बात यह है कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का करिश्मा व चाणक्य कहे जाने वाले व्यक्ति का सब कुछ खत्म हो गया है? पिछले चार दशकों में शरद पवार ने अपने राजनीतिक अनुभव और हुनर का इस्तेमाल करके हर बार राजनीति में वापसी की है। कहा जाता है कि शरद पवार हार मानने वाले नहीं हैं। सुप्रिया सुले और रोहित पवार जैसे एनसीपी (पवार गुट) को भविष्य में कितना संभाल पाएंगे? इस बारे में एक पत्रकार ने कहा मैं कभी नहीं कहूंगा कि शरद पवार खत्म हो गए हैं, क्योंकि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। क्या पता कोई ऐसा मौका बने, संकेत बने कि पवार साहब फिर से बाउंस करें। -अनिल नरेन्द्र

भाजपा विफल, नहीं चला घुसपैठ का मुद्दा

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली भाजपा झारखंड की चुनावी परीक्षा में बुरी तरह फेल हो गई। राज्य में कथित घुसपैठ और आfिदवासियों से जुड़े भाजपा के मुद्दे लोगें पर अपेक्षा के अनुरूप असर नहीं छोड़ सके। झारखंड में भाजपा की करारी हार हुई है। भाजपा ने चुनाव के आगाज के साथ ही बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा बनाने की कोशिश की। रोटी, बेटी, माटी सब घुसपैठ ले जाएंगे यह कहना था असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का, लेकिन सतोल में जहां पर यह मुद्दा बन नहीं पाया। वहीं राज्यभर में भाजपा के खिलाफ ही अल्पसंख्यक और आदिवासियों के वोटों के ध्रुवीकरण का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। पार्टी के पुराने आदिवासी चेहरे अपनी खोई हुई स्वीकृति को पाने के लिए व्यापक जनसमर्थन जुटाने में सफल नहीं हो पाए। साथ ही राज्य में मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा पेश नहीं करना भी भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। झारखंड में भाजपा का चुनाव प्रचार कथित घुसपैठियों और आदिवासियों के इर्द-गिर्द रहा। भाजपा ने दावा किया था कि अगर वह राज्य में सत्ता में आई तो विदेशी घुसपैठियों को वापस भेजा जाएगा। साथ ही राज्य की जमीन को घुसपैठियों के कब्जे से मुक्त कराएंगे। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रचार अभियान के केंद्र बिंदु महिलाएं, युवा, किसान और आदिवासी शामिल रहे। खासकर महिलाओं के लिए राज्य सरकार की ओर से शुरू की गई मैय्या सम्मान योजना का लाभ झामुमो को मिला। भाजपा नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार की मैय्या सम्मान योजना, जो वंचित महिलाओं को 1000 रुपए प्रदान करती है, सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में रही। महिला मतदाताओं का रूझान झामुमो की ओर रहा। जीत के बाद झामुमो के सीएम हेमंत सोरेन काफी उत्साहित नजर आए। उन्होंने पार्टी की जीत का श्रेय पत्नी कल्पना सोरेन को दिया। एक्स पर पत्नी कल्पना सोरेन और बच्चों के साथ फोटो साझा करते हुए उन्होंने लिखा-हमारे स्टार कैंपेनर का स्वागत है। जीत के बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सोरेन ने कहा कि इस जीत में कल्पना सोरेन और उनकी टीम का बड़ा योगदान है। लोकसभा चुनाव में झामुमो ने पांच सीट जीती थी अगर मैं बाहर होता तो और बेहतर प्रदर्शन करती। उस वक्त मेरी पत्नी कल्पना सोरेन ने वन मैन आर्मी की तरह काम करते हुए पूरा जिम्मा संभाला। इस चुनाव में हमने साथ मिलकर काम किया। इसके लिए पहले ही पूरा होम वर्क कर लिया था, जमीन पर जुटकर काम किया। हम वह संदेश देने में सफल रहे जो हम देना चाहते थे। इसी के साथ भाजपा के अंदर यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि झारखंड में चुनाव हरवाने का जिम्मेदार कौन है? उत्तर है असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा। उन्होंने इतना घटिया प्रचार किया, ऐसे-ऐसे बेतुके भाषण दिए, मुद्दे उठाए जिससे पार्टी को भारी नुकसान हुआ। उत्तर पूर्व में आज जो स्थिति बनी हुई है उसके लिए भी हिमंत बिस्वा सरमा ही जिम्मेदार हैं। आज की तारीख में हेमंत सरमा भाजपा के लिए एक लाइविलिटी बन गए हैं।

Tuesday, 26 November 2024

क्या पुतिन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेंगे?


वो साल 2022 का अत्तूबर महीना था, जब अमेरिका के ख़ु]िफया अधिकारियों के कान अचानक खड़े हो गए। उन अधिकारियों ने रूस के सैन्य अधिकारियों की गुप्त बातचीत सुन ली थी। तब ये चिंताएं सामने आई थीं कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन यूक्रेन के किसी सैन्य ठिकाने को परमाणु हथियारों से निशाना बना सकते हैं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यूक्रेन पर रूसी हमले के 1,000 से ज्यादा दिन पूरे हो चुके हैं और चर्चा एक बार फिर परमाणु हथियारों की हो रही है। पुतिन ने रूस की परमाणु नीति को बदल दिया है और ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि यूक्रेन ने अमेरिका से मिली एटीएसीएमएस मिसाइलों को रूस पर दागा है। पिछले दिनों राष्ट्रपति पुतिन ने रूस के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नीति में बदलाव को मंज़ूरी दे दी है। रूस की नई परमाणु नीति में कहा गया है कि कोई ऐसा देश जिसके पास खुद परमाणु हथियार न हों, लेकिन वो देश किसी परमाणु हथियार संपन्न देश के साथ मिलकर हमला करता है, तो इसे रूस संयुक्त हमला मानेगा। यूक्रेन के पास तो परमाणु हथियार नहीं हैं, लेकिन अमेरिका के पास हैं और इस युद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन दोनों यूक्रेन के साथ हैं। साथ ही 32 देशों का सैन्य संगठन नाटो भी यूक्रेन को समर्थन दे रहा है। रूस की परमाणु नीति में ये भी कहा गया है कि अगर रूस को पता चला कि दूसरी तऱफ से रूस पर मिसाइलों, ड्रोन और हवाई हमले हो रहे हैं तो वो परमाणु हथियारों से जवाब दे सकता है। यूक्रेन अब तक रूस पर कई बार हवाई हमले करते आया है जिसमें ड्रोन भी शामिल है, लेकिन अब उसने हमलों के लिए अमेरिकी मिसाइलों का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा कुछ और स्थितियों की बात रूस की परमाणु नीति में की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी ने नया सैन्य संगठन बनाया, पुराने संगठन को और बढ़ाया, रूस की सीमा के करीब कोई सैन्य बुनियादी ढांचे को लाया गया या रूस की सीमा के आस-पास कोई सैन्य गतिविधियां की, तो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। रूस परमाणु हमले को लेकर पहले भी अमेरिका और ब़ाकी देशों को आगाह कर चुका है। देखा जाए तो रूस के पास ही सबसे ज़्यादा परमाणु हथियार भी हैं। वैसे तो कोई देश अपने हथियारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं देते हैं। लेकिन, अब तक अलग-अलग एजेंसियों के हवाले से जितना पता चला है, उसके अनुसार रूस के पास ही सबसे ज़्यादा परमाणु हथियार हैं। ये लगभग 5,977 हैं। ये अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के परमाणु हथियारों को मिलाने के बाद भी उससे कुछ ज़्यादा ही हैं। कुछ विशेषज्ञो मानते हैं कि अगर रूस को बार-बार झटका लगता रहा या अपनी हार का डर हुआ, तो शायद टैक्टिकल हथियार का इस्तेमाल करे। हालांकि, हो सकता है कि ऐसा करने के लिए चीन भी रूस का साथ न दे। पुतिन की इस नई नीति से फिर से पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी जाते-जाते आग में घी डाल दिया है। ऊपर वाला महर करे और सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे और पूरे विश्व को किसी परमाणु युद्ध में न धकेले।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रंप प्लान :अवैध प्रवासियों को निकालो


नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अवैध प्रवासियों को खदेड़ने का ऐलान कर चुके हैं। इनमें भारतीय भी शामिल हैं। बता दें कि अमेरिका में डंकी रूट से भारतीयों की अवैध एंट्री का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी बार्डर पर इस साल 30 सितम्बर तक 90,415 भारतीय पकड़े जा चुके हैं। हर घंटे 10 भारतीयों को गिरफ्तार किया जा रहा है। पकड़े गए भारतीयों में से लगभग 50 प्रतिशत गुजराती हैं। दूसरे नंबर पर पंजाब के लोग पकड़े गए हैं। अमेरिकी बॉर्डर एंड कस्टम ने आशंका जताई हैं कि इस साल तक भारतीयों की संख्या एक लाख तक हो जाएगी। जबकि पिछले साल 93000 भारतीय ही पकड़े गए थे। बताया जा रहा है कि अमेरिका में इस समय लगभग 9 लाख अवैध प्रवासी हैं। ट्रंप का कहना है इन्हें भी डिपोर्ट किया जाएगा। लेकिन ये सब ट्रंप के लिए इतना आसान भी नहीं होने वाला है। ट्रंप को अमेरिकी इकानमी के मुद्दे से भी निपटना होगा। 9 लाख अवैध भारतीय प्रवासी अमेरिका में लगभग 30 हजार करोड़ रुपए टैक्स के रूप में चुकाते हैं। इन्हें डिपोर्ट करने से फेडरल और स्टेट का टैक्स रैवेन्यू का नुकसान होगा। थिंक टैंक न्यू अमेरिका इकोनॉमी के अनुसार अवैध भारतीय प्रवासियों की खर्च क्षमता को भी जोड़ा जाए तो इन्हें डिपोर्ट करने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बड़ा असर पड़ सकता है। अमेरिका में मोटे तौर पर अवैध भारतीय प्रवासी लगभग 2 लाख करोड़ रुपए खर्च भी करते हैं। ये अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा है। इमीग्रेशन वकील कल्पना के अनुसार अमेरिका में आने वाले भारतीय प्रवासी दो तरीको का इस्तेमाल करते हैं। पहला अवैध दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के साथ अमेरिका में आते हैं और फिर यहां पर ओवर स्टे कर जाते हैं। 2010 से 2020 के दौरान लगभग 4 लाख भारतीयों ने ओवर स्टे किया। अवैध प्रवासी जनगणना और सोशल सर्विस नेट से दूर रहते हैं। जिससे धरपकड़ न हो। दूसरा तरीका बार्डर पार कर अमेरिका पहुंचना होता है। मैक्सिको से अमेरिका में घुसना आसान होता है पर पकड़े जाने का खतरा ज्यादा है। कनाडा बार्डर में जान का जोखिम ज्यादा होता है, लेकिन पकड़े जाने का खतरा कम होता है। ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल में अवैध प्रवासियों को रोकने और पहचान करने के लिए बड़ी तैयारी की है। इसमें वर्क प्लेस पर औचक छापों का प्लान बनाया है। वर्क प्लेस में अक्सर अवैध प्रवासी बिना डाक्यूमेंट के काम करते हैं। नियोक्ता भी इन लोगों को तयशुदा वेज से कम देते हैं। ट्रंप ने बार्डर पर सेना लगाने की बात भी कही है। सभी वहां बार्डर पर डेरा डाले हैं। अवैध प्रवासी अमेरिका के घरों में ऐसे काम करते हैं जो आमतौर पर अमेरिकन खुद नहीं करना चाहते। उदाहरण के तौर पर बाथरूम साफ करने, खाना बनाना, साफ-सफाई करना, मरीजों की देखभाल करना इत्यादि-इत्यादि। अगर अवैध प्रवासियों को निकाला जाएगा तो इन अमेरिकनों को खुद से यह सब काम करने होंगे जिनकी शायद अब उन्हें आदत नहीं रही। इसलिए डोनाल्ड ट्रंप का डिपोर्ट का प्लान कितना सफल होगा। इस पर संदेह बना हुआ है। देखें, पदभार संभालने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप इस प्लान का कितना अमल करते हैं।

Saturday, 23 November 2024

मणिपुर में राजग विधायकों का अल्टीमेटम

 

मणिपुर में बिगड़ते हालात के बीच सत्तारूढ़ राजग के fिवधायकों ने अपनी ही सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है। मणिपुर हिंसा की आग में अब मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा सरकार झुलसती नजर आ रही है। भाजपा सरकार पर सियासी संकट कम होता नहीं दिख रहा है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की कुर्सी भी खतरे में आ रही है। राज्य की स्थिति का आकलन करने के लिए सीएम बीरेन सिंह की अध्यक्षता में सोमवार को बुलाई गई बैठक में 37 में से 19 विधायक (भाजपा के) नहीं शामिल हुए। मैतई समाज में आने वाले एक कैबिनेट मंत्री भी बैठक में शामिल नहीं हुए। उधर विधायकों ने एक महत्वपूर्ण बैठक कर प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव में जिरीबाम जिले में तीन महिलाओं और तीन बच्चों की हत्या के लिए जिम्मेदार कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया गया है, कहा कि यदि इन प्रस्तावों को लागू नहीं किया गया तो राजग के सभी विधायक मणिपुर के लोगों के परामर्श के बाद आगे की कार्रवाई करेंगे। मणिपुर में हिंसा का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अब तो पहली बार मंत्रियों-विधायकों के घरों पर बड़े स्तर पर हमले हुए हैं। गत रविवार शाम इंफाल पश्चिम में भीड़ ने एक भाजपा विधायक का घर फूंक दिया। वहीं, जिरीबाम में भाजपा-कांग्रेस के दफ्तर और एक निर्दलीय विधायक की बिल्डिंग में तोड़-फोड़ की। दो दिन में तीन मंत्रियों सहित 9 विधायकों के घर पर हमला हो चुका है। शनिवार को भीड़ ने एनसीपी विधायक शमशेर सिंह को घर से निकालकर पीटा था। दहशत के चलते कई मंत्री विधायकों ने परिजनों को राज्य से बाहर भेज दिया है। वहीं सीएम एन बीरेन सिंह के आवास पर भी सुरक्षा बड़ा दी गई है। इंफाल घाटी के छह पार्टी के घर जिलों में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है और कई जिलों में इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है। इस बीच 565 दिन से जारी हिंसा की आंच राज्य की भाजपा सरकार तक पहुंच गई। सरकार में शामिल नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने बीरेन सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर सूचित कर दिया है। राज्य विधानसभा में एनपीपी के 7 विधायक हैं। राज्य के एक विधायक ने बताया कि भाजपा के 14 और 5 अन्य विधायक इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। एक दिन पहले ही विधानसभा स्पीकर सहित भाजपा के 19 विधायकों का एक पत्र सामने आया था, जिसमें बीरेन सिंह को तत्काल पद से हटाने की मांग की गई थी। एनपीपी के एक विधायक ने बताया कि हम कुछ दिन केंद्र के फैसले का इंतजार करेंगे। बीरेन fिसंह की जगह नया नेता नहीं बना तो हम फ्लोर टेस्ट की मांग करेंगे, क्योंकि सरकार अल्पमत में है। दूसरी ओर, मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष कैशाममेघाचंद्रा ने भी कहा है कि अगर जनता कहेगी तो हमारे सभी विधायक इस्तीफा देंगे। राज्य विधानसभा में कांग्रेस के पांच विधायक हैं। देखना यह है कि अब केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर कैसा फैसला करती है।

-अनिल नरेन्द्र

गौतम अडाणी पर धोखाधड़ी, रिश्वत का केस


गौतम अडाणी पर अमेरिका में धोखाधड़ी का अभियोग लगाया गया है। पर उन अमेfिरका में एक कंपनी को कांट्रैक्ट दिलाने के लिए 25 करोड़ डॉलर की रिश्वत देने और इस मामले को छिपाने का आरोप लगाया गया है। बुधवार को न्यूयार्क में दायर किया गया। आपराधिक मामला, भारत के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक 62 साल के गौतम अडाणी के लिए एक बड़ा झटका है। गुरुवार दोपहर अडाणी ग्रुप ने एक बयान जारी कर आरोपों का खंडन किया और उन्हें बेबुनियाद बताया। आपको पूरा मामला विस्तार से बताते हैं कि आखिर धोखाधड़ी के आरोप किस सिलसिले में हैं? जांच के घेरे में कौन-कौन आए हैं। गौतम अडाणी पर क्या आरोप लगे? अमेरिका की सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन यानि एसईसी ने 20 नवम्बर को इस मामले में गौतम अडाणी के भतीजे सागर अडाणी समेत ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के अधिकारियों समेत अन्य फर्म अश्योर ग्लोबल पावर लिमिटेड के कार्यकारी सिरोल कोपनसे के खिलाफ रिपोर्ट में बताया गया है कि गौतम अडाणी, सागर के साथ 7 अन्य प्रतिवादियों ने अपने रिन्यूवल एनर्जी कंपनी को कांट्रेक्ट दिलाने और भारत की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संयत्र परियोजना विकसित करने के लिए भारतीय सरकारी अधिकारियों को लगभग 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने पर सहमति जताई थी। दरअसल यूनाइटेड स्टेटस अटार्नी ऑफिस अमेरिका कानून लागू करने वाली एजेंसी है। इसके मुताबिक 2020 से 2024 के बीच अडाणी को भारत में अपने ही सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार से कांट्रेक्ट चाहिए थे। जिसके लिए अडाणी ने भारतीय अधिकारियें को 265 मिलियन डॉलर के रिश्वत देने की बात कही। अडाणी को इस प्रोजेक्ट से 20 साल में लगभग दो बिलियन डॉलर से ज्यादा का मुनाफा कमाने की उम्मीद थी। आरोप है कि अडाणी ने इस पैसे को जुटाने के लिए अमेरिकी निवेशकों और बैंकों से झूठ बोला और उनसे 175 मिलियन डॉलर लिए। इन पैसों को रिश्वत के लिए इस्तेमाल किया गया था। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई के पास इन आरोपों को सिद्ध करने के पुख्ता सुबूत हैं। सफाई दी जा रही है कि जब अपराध भारत में हुआ है तो केस अमेरिका में कैसे चल सकता है। भारतीय अदालतों में चलना चाहिए। इसका जवाब यह है कि अडाणी ने पैसे जुटाने के लिए अमेरिकी निवेशकों और अमेरिकी बैंकों से झूठ बोलकर, गलत आंकड़े देकर पैसा उगाया जो अमेरिका में अपराध है। अमेरिकी न्याय विभाग ने स्वयं कहा है कि अभियोग में लगाए गए आरोप फिलहाल आरोप हैं और जब तक दोष साबित नहीं हो जाते, तब तक शामिल लोगों को निर्दोष माना जाता है। अडाणी ग्रुप की ओर से कहा गया है कि सभी संभव कानूनी उपाय किए जाएंगे। भारत में लंबे समय से विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती रही हैं कि राजनीतिक संबंध के कारण अडाणी को फायदा मिलता रहा है। आम धारणा बनी हुई है कि मोदी जी, अमित शाह और गौतम अडाणी के करीबी रिश्ते हैं। हालांकि अडाणी इन आरोपों को खारिज करते रहे हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति अटार्नी जनरल की नियुक्त करता है। यह मामला तब आया जब डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ हफ्ते पहले ही चुनाव जीता है। ट्रंप ने अमेरिकी जस्टिस fिडपार्टमेंट में आमूलचूल परिवर्तन की बात कही है। पिछले हफ्ते गौतम अडाणी ने न केवल डोनाल्ड ट्रंप की जीत की बधाई ही दी थी। साथ-साथ यह आश्वासन भी दिया कि उनका समूह अमेरिका में 10 अरब डॉलर का निवेश करेगा और 15000 नौकरियां भी देंगे। देखें, यह केस आगे कैसे बढ़ता है।

Thursday, 21 November 2024

लाभ के पद से जुड़े सांसदों की अयोग्यता



सरकार 65 साल पुराने उस कानून को निरस्त करने की योजना बना रही है, जो लाभ के पद पर होने के कारण सांसदों को अयोग्य ठहराने का आधार प्रदान करता है। वह एक नया कानून लाने की योजना बना रही है, जो वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप हो। केन्द्राrय विधि मंत्रालय के विधायी विभाग ने 16वीं लोकसभा में कलराज मिश्र की अध्यक्षता वाली लाभ के पदों पर संयुक्त समिति (जेसीओपी) द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर तैयार संसद (अयोग्यता निवारण) विधेयक, 2024 का मसविदा पेश किया है। प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य मौजूदा सांसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम 1959 की धारा-3 को युक्तिसंगत बनाना और अनुसूची में दिए गए पदों की नकारात्मकता सूची से हटाना है, जिसके कारण पर किसी जन प्रतिनिधि को अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसमें मौजूदा अधिनियम और कुछ अन्य कानूनों के बीच टकराव को दूर करने का भी प्रस्ताव है, जिसमें अयोग्य न ठहराए जाने का स्पष्ट प्रावधान है। मसविदा विधेयक में कुछ मामलों में अयोग्यता का अस्थाई निलंबन से संबंधित मौजूदा कानून की धारा-4 को हटाने का भी प्रस्ताव है। इसमें इनके स्थान पर केंद्र सरकार को अधिसूचना जारी करके अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार देने का भी प्रस्ताव है। मसविदा विधेयक पर जनता की राय मांगते हुए विभाग ने याद दिलाया कि संसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1959 इसलिए बनाया गया था कि सरकार के अधीन आने वाले लाभ के कुछ पद अपने धारकों को संसद सदस्य बनने या चुने जाने के लिए अयोग्य नहीं ठहराएंगे। हालांकि, अधिनियम में उन पदों की सूची शामिल है, जिनके धारक अयोग्य नहीं ठहराएं जाएंगे और उन पदों का भी जिक्र है, जिनके धारक अयोग्य करार दिए जाएंगे। संसद ने समय-समय पर इस अधिनियम में संशोधन किए हैं। सोलहवीं लोकसभा के दौरान ही संसदीय समिति ने इस कानून की व्यापक समीक्षा करने के बाद एक रिपोर्ट पेश की थी। समिति ने विधि मंत्रालय के वर्तमान कानून की अप्रचलित प्रविष्टियों को ध्यान में रखने की आवश्यकता पर बल दिया। इसकी एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि लाभ के पद शब्द को व्यापक तरीके से परिभाषित किया जाए। मसविदा विधेयक में कुछ मामलों में अयोग्यता के अस्थायी निलंबन से संबंधित मौजूदा कानून की धारा-4 को हटाने का भी प्रस्ताव है। इसमें इनके स्थान पर केंद्र सरकार की अधिसूचना जारी करके अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार देने का भी प्रस्ताव है।

-अनिल नरेन्द्र

समय से पहले हो सकते हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव



दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल समय से पहले बज सकता है। बता दें कि पिछली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 8 फरवरी को मतदान हुआ था। राज्य चुनाव आयोग ने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी है। राजधानी में फरवरी 2025 से पहले विधानसभा का गठन होना है। इसके चलते जनवरी के अंत तक और फरवरी के शुरू में चुनाव की उम्मीद थी लेकिन सूत्रों के मुताबिक चुनाव दिसंबर में हो सकता है। इसके लिए मतदाता सूची में रिवीजन का काम शुरू हो चुका है। 2019 में दिल्ली विधानसभा चुनाव 8 फरवरी को हुए थे। इसके बाद 11 फरवरी को मतगणना हुई थी। यह चुनाव पहले हो सकता है इसका एक संकेत उन्हें दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के पत्र ने इन कयासों को बढ़ा दिया है। पत्र में सभी विभाग प्रमुखों से मैनपावर की स्थिति मांगी गई है। यह जानकारी अधिकारियों के ग्रेड के हिसाब से मांगी गई है। इससे चुनाव ड्यूटी तय की जा सकती है। दस वर्ष से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) ने समय से पहले चुनाव की संभावना को देखते हुए प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है। पार्टी के पदाधिकारी पद यात्राएं कर रहे हैं और उन्होंने बूथ मैपिंग भी शुरू कर दी है। उधर भाजपा लगातार आम आदमी पार्टी के नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर रही है। कैलाश गहलोत ताजा उदाहरण हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि आम आदमी पार्टी (आप) अति आत्मविश्वासी कांग्रेस के साथ जाने के बजाए अकेले मैदान में उतरेगी। उधर भाजपा बड़ी संख्या में नए प्रत्याशियों पर दांव लगाने की फिराक में है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि पार्टी दिसंबर के मध्य तक विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र भी जारी कर सकती है। आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। बीते चार विधानसभा चुनाव की बात करें तो दिल्ली में ऐसी 24 विधानसभा सीटें हैं जहां एक बार भी भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीत नहीं सके। ऐसे में भाजपा के लिए 70 सीटों में से 36 सीटें जीतने की चुनौती कहीं ज्यादा बड़ी है, क्योंकि पहले ही 24 विधानसभा सीटों पर पार्टी हारती आ रही है। ऐसे में जीत के लिए पार्टी किस गणित पर काम करेगी, यह बात अहम है। जहां केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार लगातार तीसरी बार जीतकर आई है, वहीं तीन बार से लगातार आम आदमी पार्टी की सरकार भी दिल्ली की सत्ता पर काबिज है, ऐसे में दिल्ली भाजपा का सपना दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतकर डबल इंजन की सरकार बनाने का पूरा हो पाएगा या नहीं। यह दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम तय करेगा, लेकिन भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर उतरकर जनता में अपनी पकड़ बनाना बेहद जरूरी है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी हरियाणा में भाजपा की जीत के बावजूद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में बंपर जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार खुद पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने नेताओं को अति आत्मविश्वास और आपसी कलह से बचने की सलाह दी है, साथ ही ये नसीहत भी दी है कि ये चुनाव हल्के में न लें। इससे यह संकेत भी मिलता है कि हालिया झटकों से पार्टी का आत्मविश्वास कहीं न कहीं घटा है और वह अपने कार्यकर्ताओं का आत्मबल बढ़ाने का प्रयास कर रही है। फिलहाल कांग्रेस का अभियान ठंडे बस्ते में पड़ा है।

Tuesday, 19 November 2024

झारखंड में ज्यादा मतदान किसको फायदा मिलेगा



झारखंड में पहले चरण का बेहतर मतदान स्वागत योग्य है। इस पठारी राज्य में मतदान के अंतिम आंकड़े देर से आए पर जो आंकड़े सामने आए वे बहुत उत्साह जगाने वाले हैं। झारखंड के प]िश्चमी सिंहमूम जिले के नक्सल प्रभावित इलाके में माओवादियों के चुनाव बहिष्कार के बावजूद बूथों पर लंबी कतारों से साफ है कि वहां की जनता ने नक्सलियों की धमकियों की परवाह नहीं की और खुलकर मतदान किया। झारखंड के पहले दौर में 43 सीटों पर हुए मतदान का आंकलन सभी दल इस लिहाज से कर रहे हैं कि यह 2019 के मुकाबले तीन प्रतिशत ज्यादा है। झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 15 जिलों की 43 विधानसभा सीटों पर मतदान में जबरदस्त उत्साह दिखा। चुनाव आयोग के मुताबिक यहां 66.48 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। झारखंड की 43 सीटों पर पिछली विधानसभा चुनाव में 63.9 फीसदी मतदान हुआ था। आयोग के मुताबिक नक्सल प्रभावित सीटों पर नक्सलियों की धमकियां बेअसर रही और मतदाताओं ने जमकर मतदान किया। पहले फेज में पिछली बार जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा से ज्यादा सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार 3 प्रतिशत ज्यादा मतदान किसको जीत दिलाएगा इस पर आंकलन और दावे हो रहे हैं। भाजपा का एनडीए गठबंधन इसे अपने लिए और उसका विरोधी गठबंधन अपने लिए फायदेमंद बता रहा है। 2019 में पहले फेज में 38 सीट पर 63.75 फीसदी वोटिंग के बाद जेएमएम 17, कांग्रेस 8, आरजेडी और एनसीपी भी एक सीट जीती थी। इनके मुकाबले में भाजपा को 13 सीट ही मिल पाई थी। इस हिसाब से इस बार की 38 और बाकी 5 सीटों का अनुमान बूथ वाइज लगाने की कोशिश सभी दल कर रहे हैं। इसके आधार पर 20 नवम्बर को 38 सीटों के लिए अपने समर्थकों द्वारा ज्यादा से ज्यादा वोटिंग कराने की रणनीति पर भी काम हो रहा है। इसी बीच पहले चरण के लिए पीएम मोदी ने गोड्डा और देवघर की रैली में माटी, बेटी और रोटी बचाने का चुनाव कहकर आदिवासियों और अन्य मतदाताओं को आक्रोषित करने का प्रयास किया। योगी ने बंटेंगे तो कटेंगे के अपने बोल के साथ ही अब पीएम मोदी के एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे को भी बोला। उधर हेमंत सोरेन और झारखंड की नई उभरती सितारा कल्पना सोरेन भी गरज रही हैं और भाजपा गठबंधन की कलई खोल रही हैं। आदिवासी क्षेत्रों में भारी मतदान से इंडिया गठबंधन डर गया है और अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ, अपनी जमीन उद्योगपतियों को देने से बचाओ के नारे दिए जा रहे हैं। हेमंत सोरेन को जेल में डालने से भी आदिवासियों में हमदर्दी की लहर दौड़ रही है। कहा जा रहा है कि दोनों गठबंधनों में कांटे की टक्कर है। इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी होगा, यह कहना राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी मुश्किल हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो चुनाव में जिस प्रकार की टक्कर है, मत प्रतिशत एक से दो प्रतिशत का अंतर किसी पक्ष का खेल बिगाड़ सकता है। खासकर जब इन चुनावों में झारखंड लोकतांत्रिक कल्याणकारी मोर्चा जैसी पार्टियां मैदान में हैं जिन्होंने पिछले चुनाव (2019) में 5.5 फीसदी वोट हासिल करके 3 सीटें अपने खाते में करने वाली भाजपा में विलय हो चुकी झविमो के ये मतदाता किस ओर जा रहे हैं। आमतौर पर माना जा रहा है कि पहला फेज झामुमो के पक्ष में जाता नजर आ रहा है। बाकी तो मशीनें खुलने पर पता लगेगा।

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र की सत्ता किसके हाथ में?


23 नवम्बर को महाराष्ट्र की सत्ता में कौन आएगा ये सवाल महाराष्ट्र और राजनीतिक दिलचस्पी रखने वाला हर शख्स जानना चाहता है। विधानसभा चुनाव में क्या चर्चा चल रही है और चुनाव में कौन-सा फैक्टर काम करेगा, किन जातीय समीकरणों का गणित चलेगा? मराठवाड़ों में क्या होगा, दौड़ में कौन आगे है इत्यादि-इत्यादि सवाल पूछे जा रहे हैं। कुछ ही महीने पहले लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को मिली जीत का टैम्पो वह बरकरार रख सकेगा। दूसरी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के  नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने राज्यभर में विभिन्न योजनाओं को लागू करके चुनाव में वापसी करने की कोशिश की है। विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा 2014 के बाद महाराष्ट्र में एक प्रमुख पार्टी बनकर उभरी है। इसलिए वह इस चुनाव मे भी प्रमुख पार्टी के रूप में उभरने की कोशिश करेगी। राज्य में कई छोटी पार्टियां भी मैदान में है, कई बागी भी मैदान में हैं। यह दोनों ही गठबंधनों का समीकरण बदल सकती हैं। महाराष्ट्र में महायुति (भाजपा गठबंधन) में विचारों की भिन्नता की दरार भी खुलकर सामने आ रही है। महायुति के साथी अजित दादा पवार और उनकी पार्टी एनसीपी खुलकर भाजपा नेताओं के बयानों का विरोध कर रही है। शिंदे और देवेन्द्र फण्डनवीस में आपसी खींचतान है। ऐसे में सवाल उठता है कि वोटिंग के दिन क्या गठबंधन के कार्यकर्ता एक-दूसरे की पार्टी को वोट ट्रांसफर करा पाएंगे? चुनाव के दौरान गौतम अडानी का मुद्दा भी बीच में आ गया है। महाविकास अघाड़ी पार्टी जहां एक तरफ यह प्रचार कर रही है कि अब उद्योगपति मेज पर बैठकर सरकारें बना रहे हैं, तोड़ रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में लगने वाले कई उद्योग (प्रोजेक्ट्स) गुजरात ले जाए जा रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र की अस्मिता को धक्का लगा है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टियों को तोड़ने से भी जनता की सहानुभूति महाविकास अघाड़ी के साथ है। दूसरी ओर एकनाथ शिंदे की कल्याणकारी योजनाएं, थोक भाव में धन-बल का प्रयोग करना भी एक चुनावी फैक्टर है। फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चूंकि महाराष्ट्र में उनका मुख्यालय है कई क्षेत्रों खासकर  कि धर्म में महत्व रखता है और  संघ खुलकर भाजपा के लिए बैटिंग कर रहा है। हालांकि विदर्भ की बात करे तो नितिन गडकरी को पूरी तरह से नजरअंदाज करना महायुति को भारी पड़ सकता है। हमें लगता है कि भाजपा का प्रयास यह भी होगा कि वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे ताकि राज्यपाल उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें। अगर एक बार सरकार बन गई तो फिर खेल खेलने में भाजपा माहिर है। दूसरी ओर विश्लेषकों का यह भी मानना है कि महाविकास अघाड़ी का पोस्ट पोल एलायंस है और राज्यपाल को पहले सबसे बड़े पोस्ट एलायंस को मौका देना चाहिए। हवा का रुख महाविकास अघाड़ी की ओर लग रहा है पर हमारे सामने हरियाणा का परिणाम है जहां दावा तो कांग्रेस की जीत का किया जा रहा था और परिणाम भाजपा की रिकार्ड जीत के सामने आए। इसलिए चुनाव में किसी की भविष्यवाणी करना ठीक नहीं होता। देखें कि ईवीएम में किसकी किस्मत खुलती है।

Saturday, 16 November 2024

उपचुनाव में दिग्गजों की यूपी में अग्नि परीक्षा


 उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दिग्गजों की अग्नि परीक्षा है। कांग्रेस के मैदान से बाहर होने से अब चुनाव भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है। हालांकि बसपा भी त्रिकोणीय लड़ाई में बनी हुई है। भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लगातार तीन दिनों तक ताबड़तोड़ प्रचार कर हर सीट पर माहौल बनाने का प्रयास किया। अखिलेश यादव भी सियासी रुख को भांप रहे हैं। राजनीति के जानकारों के मुताबिक उपचुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा मुखिया अखिलेश यादव और मायावती की प्रतिष्ठा दांव पर है। हालांकि 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं लेकिन इस उपचुनाव को विधानसभा के सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है। यही कारण है कि सभी दलों ने इसे जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। अंबेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने पूर्व विधायक धर्मराज निषाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा ने लाल जी वर्मा की पत्नी शोभावती को टिकट दिया है। वहीं बसपा ने अमित वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने कटेहरी सीट के लिए जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को प्रभारी बनाकर उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। वह चुनाव की घोषणा के कई माह पहले से ही यहां कैंप कर रहे है और पूरी शिद्दत से यहां भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। भाजपा की सहयोगी पार्टी सुभासपा के मंत्री ओम प्रकाश राजभर भी कटेहरी में पूरा जोर लगा रहे हैं। वहीं इस सीट से विधायक रहे अब सांसद बने लालजी वर्मा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है क्योंकि उनकी पत्नी यहां से सपा की उम्मीदवार हैं। उपचुनाव की सबसे हॉट सीट करहल है। यहां पर मुलायम सिंह यादव के परिवार की साख दांव पर है। इस सीट पर मुलायम के पोते और अखिलेश के भतीजे तेज प्रताप को सपा ने उम्मीदवार बनाया है। वहीं, सूबे की सत्ता पर काबिज भाजपा ने इस सीट से मुलायम सिंह यादव के भाई अभय राम यादव के दामाद अनुजेश यादव को मैदान में उतरा है। मुलायम सिंह यादव के परिवार के बेटे और दामाद की लड़ाई ने यादव बाहुल्य करहल की चुनावी जंग को दिलचस्प बना दिया है। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के लिए भी यहां से भाजपा की हार का सूखा खत्म करने का बड़ा लक्ष्य है। इसके साथ ही योगेन्द्र उपाध्याय, जयवीर सिंह और अजीत पाल जैसे मंत्रियें की प्रतिष्ठा भी इस चुनाव में जुड़ी हुई है। वहीं इस सीट पर मुलायम परिवार के सभी सदस्य लगातार चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सपा सांसद डिंपल यादव इस सीट पर जमकर प्रचार कर रही हैं। इसके अलावा शिवपाल यादव, बदायूं से सांसद आदित्य यादव, आजमगढ़ सांसद धर्मेन्द्र यादव भी इस सीट पर लगातार पसीना बहा रहे हैं। प्रयागराज से फूलपुर कुर्मी बहुसंख्यक होने की वजह से यहां से भाजपा सरकार के एससी/एसटी मंत्री राकेश सचान और सपा महासचिव इन्द्रजीत सरोज डटे हैं। यह सीट उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा से भी जुड़ी हुई है। कुंदरकी की विधानसभा सीट में भाजपा ने रामवीर को उम्मीदवार बनाया है, सपा ने पूर्व विधायक रिजवान पर दांव लगाया है, भाजपा ने यहां से सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर और जसवंत सिंह को प्रभारी बनाया है। कुल मिलाकर बड़े दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है।
 -अनिल नरेन्द्र

भाजपा और अजित पवार में बढ़ती दूरी



 महाराष्ट्र में गठबंधन में होते हुए भी भाजपा और राकांपा (अजित पवार) में कई मुद्दों पर दूरी बरकरार है। उम्मीदवार तय करने से लेकर चुनाव प्रचार तक में दोनों अपनी-अपनी लाइन पर अलग-अलग काम कर रहे हैं। गठबंधन में सामूहिक चुनाव प्रचार और प्रचारकों को लेकर मोटे-तौर पर सहमति तो है, लेकिन कई मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आ रहा है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर उठे विवाद को ले लीजिए। राकांपा (अजित पवार) ने भाजपा नेता को साफ कह दिया है कि उनके उम्मीदवारों के चुनाव क्षेत्रों में योगी आदित्यनाथ की सभाएं न लगाई जाएं। योगी आदित्यनाथ के विवादास्पद बयान बंटेंगे तो लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया को देखते हुए अजित पवार नहीं चाहते हैं कि उनको मिलने वाले समर्थन में कोई कमी आए। अजित पवार ने भाजपा के विरोध के बावजूद नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाया है। अब जबकि पार्टी के दो धड़े हैं, तब भी दोनों की मुस्लिम समुदाय में अच्छी खासी पैठ है, जबकि नवाब मलिक की बेटी सना मलिक भी चुनाव लड़ रही हैं। बता दें कि भाजपा नेताओं ने खुलेआम नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाने का विरोध किया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि नवाब मलिक के दाउद इब्राहिम से करीबी संबंध रहे हैं और भाजपा नवाब मलिक के लिए प्रचार भी नहीं करेगी। तमाम दवाबों के बावजूद अजित पवार ने नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाया बल्कि उनका प्रचार भी किया है। चार दिन पहले अजित पवार ने एक बम ही फोड़ दिया। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने दावा किया है कि पांच साल पहले भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए हुई बैठक में उद्योगपति गौतम अडाणी भी शामिल थे। एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में अजित पवार ने कहा पांच साल पहले क्या हुआ सब जानते हैं ... सब जानते हैं बैठक कहां हुई... मैं फिर से बता देता हूं। वहां अमित शाह थे, गौतम अडाणी थे, प्रफुल्ल पटेल थे, देवेन्द्र फडनवीस थे, मैं था, पवार साहब (शरद पवार) थे। अजित ने कहा कि इसके लिए पांच बैठकें हुई थी। कार्यकर्ता के रूप में मैंने वही किया जो नेता (शरद पवार) ने कहा, गौरतलब है कि इस बैठक के बाद ही 23 नवम्बर 2019 की सुबह फडनवीस सीएम और अजित ने डिप्टी सीएम की शपथ ली थी। हालांकि शरद पवार ने भाजपा के साथ सरकार बनाने से इंकार कर दिया। ऐसे में करीब 80 घंटे बाद अजित को इस्तीफा देकर वापस चाचा के साथ आना पड़ा। इसके चलते 28 नवम्बर को फडनवीस को इस्तीफा देना पड़ा और कुछ दिन बाद राज्य में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाई। अजित फिर डिप्टी सीएम बने। यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन अगर सही है तो यह अत्यंत चिंता का विषय है कि सरकार बनाने, उखाड़ने में गौतम अडाणी का नाम आया है। इस खबर का न तो भाजपा ने खंडन किया है और न ही गौतम अडानी ने। अगर यह सही है तो इससे पता चलता है कि महाराष्ट्र चुनाव में उद्योगपतियों की कितनी बड़ी भूमिका है। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में हजारों करोड़ रुपए बांटे जा रहे हैं। हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते। सोशल मीडिया में यह खुद चल रहा है।
 

Thursday, 14 November 2024

मैं व्यवसाय नहीं, एकाधिकार के खिलाफ हूं

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल में भारत के कई बड़े समाचार पत्रों में एक लेख लिखा था जो विवादों में आ गया है। जहां कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं और गलत तथ्यों का दावा कर रहे हैं वहीं ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इसकी तारीफ कर रहे हैं। आखिर इस लेख में राहुल गांधी ने लिखा क्या था? राहुल ने कहा कि वह व्यवसायों के नहीं, बल्कि एकाधिकार के खिलाफ हैं। उन्होंने अपने एक लेख का हवाला देते हुए यह दावा भी किया कि नियम-कायदे के अनुसार काम करने वाले कुछ कारोबारी समूहों को केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के कार्यक्रमों की तारीफ करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। उनके इस दावे पर सरकार की तरफ से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाने के लिए बुधवार को राहुल गांधी की आलोचना की थी और उनसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले तथ्यों की जांच करने की सलाह दी थी। राहुल गांधी ने गुरुवार को एक वीडियो जारी कर कहा, भाजपा के लोगों द्वारा मुझे व्यवसाय विरोधी बताने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन मैं व्यवसाय विरोधी नहीं हूं बल्कि एकाधिकार के खिलाफ हूं। उनका कहना है कि वह एक-दो-तीन या पांच लोगों द्वारा उद्योग जगत में एकाधिकार स्थापित करने के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, मैंने अपने करियर की शुरुआत प्रबंधक सलाहाकार के रूप में की थी। मैं कारोबार को समझता हूं और उनके लिए जरूरी चीजों को भी जानता हूं। इसलिए स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि मैं व्यवसाय विरोधी नहीं हूं, एकाधिकार विरोधी हूं। राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, मैं नौकरियों के सृजन का समर्थक हूं, व्यवसाय का समर्थक हूं, नवोन्मेष का समर्थक हूं, प्रतिस्पर्धा का समर्थक हूं। मैं एकाधिकार विरोधी हूं। हमारी अर्थव्यवस्था तभी फूलेगी-फलेगी जब सभी व्यवसायों के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष स्थान होगा। बाद में उन्होंने एक अन्य पोस्ट में दावा किया कि मेरे लेख के बाद नियम-कायदे से चलने वाले व्यवसायिक समूहों ने मुझे बताया कि एक वरिष्ठ मंत्री फोन पर कह रहे हैं और उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और सरकार के कार्यक्रमों के बारे में सोशल मीडिया पर अपनी बातें कहने के लिए मजबूर कर रहे हैं। राहुल गांधी ने कहा कि इससे उनकी बात बिलकुल सही साबित होती है, कांग्रेस नेता ने बुधवार को एक लेख में दावा किया था कि ईस्ट इंडिया कंपनी भले ही सैकड़ों साल पहले खत्म हो गई है, लेकिन उसने जो डर पैदा किया था वह आज फिर से दिखाई देने लगा है और एकाधिकारवादियों की एक नई पीढ़ी ने उसकी जगह ले ली है। उनका कहना है कि वह एक-दो, तीन या पांच लोगों द्वारा उद्योग जगत में एकाधिकार स्थापित करने के खिलाफ हैं। गांधी ने अपने लेख में कहा कि भारत माता अपने सभी बच्चों की मां है। उनके संसाधनों और सत्ता पर कुछ लोगों का एकाधिकार भारत मां को चोट पहुंचाता है। मैं जानता हूं कि भारत के सैकड़ों प्रतिभाशाली कारोबारी हैं पर वह एकाधिकारवादियों से डरते हैं। -अनिल नरेन्द्र

चुनाव नतीजे तय करेंगे कि असली कौन है और नकली कौन है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार अब धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंचता जा रहा है। 20 नवम्बर को वोट पड़ेंगे और 23 नवम्बर को पता चलेगा कि सरकार महायुति बनाने जा रही है या महाविकास अघाड़ी जीतेगी। विधानसभा के इस चुनाव में दोनों गठबंधन आमने-सामने हैं। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) और महायुति गठबंधन जीत के लिए प्रचार में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। जहां दोनों गठबंधनों के बीच कांटे की लड़ाई है वहीं कई छोटी लड़ाइयां गठबंधन के अंदर भी लड़ी जा रही हैं। जैसे असली शिव सेना कौन-सी है, असली एनसीपी कौन-सी है? विधानसभा चुनाव परिणाम दोनों गठबंधनों की हार-जीत के साथ यह भी तय करेंगे कि शिवसेना का कौन सा धड़ा मुंबई में ज्यादा असर पर है। बता दें मुंबई अविभाजित शिवसेना का गढ़ रही है। अभी मुंबई विधानसभा की 36 सीट हैं। वर्ष 2019 में भाजपा अविभाजित शिवसेना एक साथ थे और इस चुनाव में दोनों ने 30 सीट पर जीत दर्ज की थी। इन चुनाव में स्थिति अलग है। शिवसेना (शिंदे) महायुति में शामिल हैं, जबकि शिवसेना (यूबीटी) एमवीए का हिस्सा है। एमवीए के घटक दलों में मुंबई सीट को लेकर काफी तकरार भी हुई। वर्ष 2019 में कांग्रेस ने 36 में से 30 सीट पर चुनाव लड़ा था। इस बार इसके हिस्से सिर्फ 11 सीट आई हैं। वहीं शिवसेना (यूबीटी) 22 सीट पर चुनाव लड़ रही है, बाकी तीन सीट पर दूसरे घटक दल हैं। वहीं महायुति में शामिल एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता वाली शिवसेना 16, भाजपा 18 और अजित पवार की एनसीपी सिर्फ दो सीट पर चुनाव मैदान में है। वर्ष 2019 विधानसभा चुनाव में अविभाजित शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन में मुंबई में 19 पर चुनाव लड़कर 14 सीट जीती थी। मुंबई की 36 सीट चुनाव के हार जीत में बेहद अहम भूमिका निभाएगी क्योंकि, मुंबई के मतदाता तय करेंगे कि विभाजित के बाद असल शिवसेना कौन है? विधानसभा में शिवसेना के दोनों धड़े 49 सीट पर एक-दूसरे के आमने-सामने लड़ रहे हैं। मुंबई की 14 सीट पर एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता वाली शिवेसेना आमने-सामने है। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि एमवीए एकजुट है। पिछले ढाई वर्षों में विभाजित हुए शिवसेना के दोनों गुटों के बीच कौन शिवसेना का असली सेनापति होगा यह तय होगा। शिव सेना के दोनों गुट 49 सीटों और राकंपा के दोनों गुट 38 सीटों पर एक-दूसरे के सामने मैदान में हैं। ये 87 सीटें भी भविष्य में उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे, शरद पवार और अजित पवार का वर्चस्व तय करेंगी। 49 सीटों पर सीधा मुकाबला एकनाथ शिंदे व उद्धव ठाकरे की शिवसेना के बीच और 38 सीटों पर सीधा मुकाबला शरद पवार और अजित पवार की राकंपा के बीच हो रहा है। जहां यह चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि असली शिवसेना कौन-सी है वहीं यह भी तय होगा कि असली एनसीपी कौन-सी है? शरद पवार का 38 सीटों पर मुकाबला उनके भतीजे अजित पवार से हो रहा है। इसमें ज्यादातर सीटें पश्चिम महाराष्ट्र बेल्ट की है। इनमें से एक सीट बारामती सीट है जहां अजित पवार का मुकाबला भतीजे युगेन्द्र पवार से हो रहा है।

Tuesday, 12 November 2024

क्या राष्ट्रपति रहते भी जेल का खतरा बना रहेगा?



अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं। कई हफ्तों के चुनावी अभियान और कड़ी टक्कर के बाद रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीत लिया है। ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति कार्यालय पहुंचने वाले ऐसे पहले राष्ट्रपति बनेंगे जिनके खिलाफ कई आपराधिक मामलों में फैसला आना अभी बाकी है। चूंकि ट्रंप के खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज होने के बावजूद वह एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति कार्यालय में पहुंचने के लिए तैयार हैं। इसके चलते वहां अनसुलझी स्थिति पैदा हो गई है। जब ट्रंप व्हाइट हाउस पहुंचेंगे तो उनके सामने चार चुनौतियां होंगी। इनमें हर स्थिति के साथ क्या हो सकता है, उसे समझने का प्रयास करते हैं। डोनाल्ड ट्रंप को न्यूयॉर्क में 34 गंभीर मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है। यह मामला व्यापार से जुड़े रिकार्ड्स में हेराफेरी करने से जुड़ा है। मई महीने में न्यूयॉर्क की एक ज्यूरी ने ट्रंप को दोषी पाया था। यह मामला पोर्न फिल्म स्टार को चुपचाप भुगतान किए जाने से जुड़ा था। ज्यूरी के मुताबिक ट्रंप इस भुगतान प्रक्रिया में शामिल थे। जज जुआन मर्चेंट ने ट्रंप की सजा को सितम्ब से 26 नवम्बर तक (अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद) के लिए टाल दिया था। बुकलेन के भूतपूर्व अतियोजनक जूलिया रेडलोन ने कहा कि ट्रंप के चुनाव जीतने के बावजूद जज मर्चेंट अपनी योजना के अनुसार सजा को आगे बढ़ा सकते हैं। कानूनी जानकार मानते हैं कि ऐसी संभावनाएं बेहद कम हैं कि ट्रंप को पहली बार उम्रदराज अपराधी के तौर पर सजा सुनाई जाएगी। सुश्री रेंडलमेन कहती हैं कि यदि ऐसा होता है तो ट्रंप के वकील तुरन्त सजा के खिलाफ अपील कर सकते हैं कि यदि ट्रंप को जेल भेजा जाता है तो वो अपने आधिकारिक काम नहीं कर पाएंगे। ऐसे में उनको आजाद रखना चाहिए। अपील करने की प्रक्रिया कई साल आगे बढ़ाई जा सकती है। स्पेशल काउंसिल जैक स्मिथ ने पिछले साल ट्रंप के खिलाफ आपराधिक आरोप तय किए थे। यह मामला जो बाइडन के खिलाफ 2020 का राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद नतीजे को पलटने के लिए की गई कोशिश और हिंसा भड़काने का है। ट्रंप ने इस मामले में खुद को निर्दोष बताया था। यह केस तब से कानूनी अधर में लटका हुआ है। भूतपूर्व फेडरेल प्रॉसिक्यूटर नीम रहमानी के मुताबिक जब से ट्रंप चुनाव जीते हैं, आपराधिक मुकदमों से जुड़ी उनकी समस्याएं दूर हो चुकी हैं। उन्होंने कहा यह बहुत अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि मौजूदा राष्ट्रपति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। ऐसे में वाशिंगटन डीसी की जिला अदालत में चल रहा चुनावी धोखाधड़ी से जुड़ा मामला खारिज हो जाएगा। एक और मामला गोपनीय दस्तावेजों को गैर-कानूनी रूप से अपने पास रख लिया था और कानून विभाग ने जब उन फाइलों को वापस लाने की कोशिश की तो ट्रंप ने उस काम में बाधा पहुंचाई। जज ने यह मामला ट्रंप द्वारा नियुक्त एलीन केनन को सौंपा था। उन्होंने जुलाई में यह कहकर खारिज कर दिया था कि कानून विभाग ने इस पूरे मामले की पैरवी करने के लिए स्मिथ की नियुक्ति अनुचित ढंग से की थी। अब जब ट्रंप राष्ट्रपति बन गए हैं तो कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति कार्यालय में ट्रंप के रहते सभी मुकदमों पर रोक की संभावना है। अमेरिका के राष्ट्रपति होने के नाते जब तक वो राष्ट्रपति कार्यालय में हैं, तब तक उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या असर होगा?


जो यह उम्मीद कर रहे थे कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर हां या न में स्पष्ट जवाब मिल जाएगा। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार को आए फैसले से थोड़ी राहत भी मिली होगी और थोड़ी निराशा भी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की एहमीयत इस मायने में है कि इस मसले को देखने समझने के तरीकों में निहित कमियों पर रोशनी डालता और उन्हें दूर करता है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को 1967 के अपने फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता था। सात जजों की संवैधानिक पीठ को बहुमत के फैसले में एस अजीज बाशा बनाम केंद्र सरकार मामले के फैसले को पलटा है। हालांकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा या नहीं इसका फैसला शीर्ष अदालत की एक रेगुलर बेंच करेगी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और एससी शर्मा सात जजों की बेंच में शामिल थे। इस कानूनी विवाद की जटिलता को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि यह आधी सदी से भी ज्यादा पुराना है, इसकी शुरुआत 1967 में अजीज बाशा के आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से मानी जाती है जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि यह एक कानून अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 के जरिए अस्तित्व में आया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले को पलटते हुए कुछ परीक्षण भी निर्धारित किए हैं। अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर अगली सुनवाई का फैसला इन्हीं परीक्षणों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। व्यापक तौर पर परीक्षण यह है कि संस्थान की स्थापना किसने की, क्या संस्थान का चरित्र अल्पसंख्यक है और क्या यह अल्पसंख्यकों के हित में काम करता है? माइनारिटी स्टेटस का सवाल यूनिवर्सिटी प्रबंधन के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं से तो जुड़ा है ही, यहां लागू होने वाली आरक्षण व्यवस्था पर भी निर्णायक प्रभाव डालने वाला है। यूनिवर्सिटी में मुस्लिमों का कितना आरक्षण रहेगा और एससी एसटी ओबीसी आरक्षण मिलेगा या नहीं, यह भी इस सवाल के जवाब में निर्भर करता है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली बेशक हो गई है हालांकि अभी तीन सदस्यीय पीठ को इस स्वरूप से जुड़े मानदंड तय करने होंगे। एएमयू इंतेजामिया और अलीगढ़ बिरादरी इसे अपनी बड़ी जीत और रास्ता खुलना मान रहे हैं। इस फैसले के साथ ही सवाल खड़ा हो रहा है कि अब एएमयू के संचालन और व्यवस्थाओं में क्या बदलाव हो सकें। जिस पर एक ही जवाब है कि अभी आदेश के कानूनी पहलुओं की समीक्षा और बारीकियों पर कानूनी राय लेने के बाद ही कुछ कहा जाएगा। और फिर तय होगी। एएमयू के संचालन में अगर गौर करें तो अब तक एएमयू अपने एक्ट, यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय के नियमों से संचालित होता है। इसके तहत एएमयू में 50 फीसदी छात्रों को आंतरिक कोटे का लाभ मिलता है। हालांकि अगर अल्पसंख्यक स्वरूप हटता है तो शायद आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। जानकार कहते हैं कि अब स्थितियां यथावत रहेंगी।