Thursday, 31 July 2025

ऑपरेशन सिंदूर ः विपक्ष के सवाल

सोमवार को अंतत पहलगाम की आतंकी घटना पर लोकसभा में जबरदस्त बहस हुई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को बहस शुरू करते हुए कहा कि सेना के तीन अंगों के समन्वय का बेमिसाल उदाहरण बताते हुए यह भी कहा कि इस अभियान को यह कहना कि किसी दबाव में आकर रोका गया गलत और निराधार है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने हार मान ली थी और कहा कि अब कार्रवाई रोक दीजिए महाराज। बहुत हो गया। रक्षा मंत्री ने कहा 10 मई की सुबह जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कई एयरफील्ड पर करारा हमला किया तो पाकिस्तान ने हार मान ली और संघर्ष रोकने की पेशकश की। बहस में विपक्ष ने केंद्र सरकार पर तीखे सवाल दागे। विपक्ष ने एक सुर में कहा कि सेना के पराम पर उन्हें गर्व है, लेकिन सरकार की रणनीति और विदेश नीति पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। कांग्रेस सांसद गौरव गोगई और दीपेन्द्र हुड्डा ने खासतौर पर सरकार को निशाने पर लिया। कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि पहलगाम हमले के आतंकी अब तक गिरफ्त से बाहर क्यों हैं? उन्होंने पूछा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कितने विमान गिरे थे? संघर्ष विराम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की क्या भूमिका थी? उन्होंने पूछा कि जब हम जीत रहे थे तो कार्रवाई क्यों रोकी गई? पाकिस्तान के कब्जे से पीओके क्यों नहीं लिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि पहलगाम आतंकी हमले में सुरक्षा चूक की नैतिक जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह को लेनी चाहिए। अमित शाह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पीछे छिप नहीं सकते। यह चूक उनकी है। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश और विपक्ष प्रधानमंत्री के साथ खड़ा था तो अचानक युद्ध विराम कैसे हुआ? अगर पाकिस्तान घुटनों पर था तो आप क्यों झुके? आप किसके सामने झुके? कांग्रेस नेता ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 26 बार कहा कि उन्होंने व्यापार की बात करके युद्ध रूकवाया। ट्रंप की क्या भूमिका थी? उन्होंने सरकार से सवाल किया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को अब वापस नहीं लेंगे तो कब लेंगे। मैंने गौरव गोगोई के भाषण के प्रमुख अंश इसलिए बताए हैं क्योंकि मेरा मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर पर उठाए गए प्रश्नों पर यह बहुत सटीक और जोरदार भाषण था जिसका जवाब सत्ता पक्ष के स्पीकर अभी तक नहीं दे सके। टालने और इधर-उधर की बातों से उलझाए रखना और बयान बदलने से मसला हल नहीं होगा। कांग्रेस के दीपेन्द्र हुड्डा और टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी के भाषणों का भी पा करना जरूरी है। कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हमारी सेना ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया लेकिन सरकार की रणनीति में बड़ी खामी रही। विपक्ष ने सर्वदलीय बैठक की मांग की थी लेकिन सरकार ने नहीं बुलाई। दीपेन्द्र ने सरकार के अमेरिका के साथ संबंधों पर जमकर निशाना साधा। जब तुर्किए ने पाकिस्तान की मदद की तो प्रधानमंत्री साइप्रस गए, अच्छा संदेश दिया, लेकिन असली दुश्मन चीन को संदेश देना था तो वे ताइवान चले जाते। विदेश नीति की आलोचना करते हुए कहा कि बार-बार ट्रंप के इस दावे को लेकर सवाल पूछे जाते हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम करवाया। तृणमूल कांग्रेस नेता कल्याण बनर्जी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का ाsढडिट सेना का है, इसमें बंटवारा नहीं होना चाहिए। हमने विदेश नीति के मामले में पूरी तरह से सरकार का समर्थन किया, भारत को पाकिस्तान को ऐसा आघात देना चाहिए था, जिसको पूरी दुनिया देखती। उन्होंने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि ािढकेट में कभी सेंचुरी के करीब 90 रन पर पहुंचने पर इनिंग डिक्लियर करने की बात सुनी है? लेकिन यह काम मोदी जी नहीं कर सकते हैं। कोई और नहीं। उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि यहां 140 करोड़ देशवासी कह रहे थे कि लड़ाई जारी रखो, जीती हुई बाजी न हारो लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति के सामने आपका कद और छाती 56 इंच से घटकर 36 इंच रह गई है। वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पाकिस्तान का मकसद हमेशा भारत को कमजोर करने का ही है। सरकार का कहना है कि खून-पानी और आतंकवाद बातचीत एक साथ नहीं हो सकती। फिर किस सूरत में आप पाकिस्तान से ािढकेट मैच खेलेंगे। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 7.5 लाख सीआरपीएफ पुलिस और फोर्स है। पहलगाम आतंकी हमले के लिए किसकी जवाबदेही फिक्स होगी? एलजी, आईबी, पुलिस जो भी जिम्मेदार है। उस पर एक्शन होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर से 370 हटा दिया, लेकिन दशतगर्द फिर भी वहां पहुंच गए। उन्होंने कहा कि अगर 5 जेट नहीं गिरे, तो बोलिए। ओवैसी ने डोनाल्ड ट्रंप की सीजफायर का ऐलान करने पर भी जवाब मांगा। शिवसेना (यूबीटी) सांसद अरविन्द सावंत ने सवाल किया कि भारत ने बिना शर्त सीजफायर क्यों किया जबकि पाकिस्तान गिड़गिड़ा रहा था। क्या ऐसे में भारत को सख्त शर्तें नहीं रखनी चाहिए थी? पहलगाम में कोई जवान तैनात क्यों नहीं था? पहले दिन की बहस में मेरे विचार से विपक्ष बहुत भारी रहा और सरकार जवाबों को टालती रही। पर कितनी देर तक? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 29 July 2025

सवाल चुनाव आयोग की साख का


बिहार में मतदाता सूचियों का एसआईआर यानि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रािढया को लेकर हंगामा मचा हुआ है। संसद से लेकर बिहार की सड़कों पर इसे लेकर जमकर विरोध हो रहा है। यानि एक महीने की अवधि में लगभग 8 करोड़ मतदाताओं का गहन परीक्षण कैसे संभव हो सकता है? यही एक सवाल है जो विपक्षी पार्टियों और अन्य सामाजिक संस्थाओं को केंद्रीय चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह पैदा कर रहा है। विपक्ष का दावा है कि लाखों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। उधर चुनाव आयोग का कहना है कि सिर्फ मृतक और माइग्रेंट मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं। कांग्रेस और राजद इसे चुनावी रणनीति मानती है, जबकि भाजपा ने विरोध को एक राजनीतिक स्टंट बताया है। वहीं भाजपा के नेता यह भी दावा कर रहे हैं कि चुनाव में अपनी हार देखते हुए विपक्ष बौखला गया है और तरह-तरह के बहाने पेश कर रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि यदि विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्पाम याणि एसआईआर पर उनकी बातें नहीं सुन गई तो वे चुनाव का बहिष्कार करने पर भी विचार कर सकते हैं। यदि महागठबंधन सच में चुनाव बहिष्कार करता है तो स्थिति बेहद गंभीर होगी। इससे चुनाव आयोग की साख के साथ-साथ केंद्र सरकार की साख पर भी आंच आएगी। हालांकि मतदाता सूचियों का समय-समय पर गहन परीक्षण किया जाता रहा है। ऐसा अलग-अलग राज्यों में आवश्यकता पड़ने पर अलग-अलग अवधियों में गहन परीक्षण हुए हैं लेकिन बिहार में विशेष गहन परीक्षण को लेकर चुनाव आयोग की प्रािढया सवालों के घेरे में आ गई है। वास्तव में बिहार जैसे पिछड़े, बहुसंख्यक ग्रामीण और मजदूर आबादी वाले राज्य के नागरिकों की अधिकृत मतदाता की जांच इतने कम समय में होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। दूसरी वजह यह है कि चुनाव आयेग ने पहचान के लिए मतदाताओं के पास उपलब्ध तीन प्रमाण, आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को सुबूत मानने से इंकार कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को सुझाव दिया था कि वे इन तीनों को भी पहचान के सुबूत के तौर पर मान्य किया जाए। गहन परीक्षण प्रािढया की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए कई यूट्यूब चैनल और अन्य मीडिया वाले पत्रकारों ने प्रािढया पर सवाल उठाए हैं। बिहार के बेगुसराय जिले में यूट्यूबर और वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने सुबूतों के साथ इस प्रािढया में हो रही धांधलियों को उजागर किया। उन पर उल्टा एफआईआर दर्ज हो गई और उन पर सरकारी काम में बाधा डालने और बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसने का आरोप है। यह मामला बलिया थाना में दर्ज है। बिहार में अति अल्प समय में मतदाताओं को विशेष गहन परीक्षण के आयोग के आदेश को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने जब विपक्षी नेताओं का प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से मिलने गया तो मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार उनसे मिलने के लिए नहीं आए बल्कि मुलाकात के लिए अव्यवहारिक प्रािढया अपनाई गई जिससे मायूस और नाराज होकर विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग सत्ता के इशारे पर काम कर रहा है। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जा सकता। कानून देश के प्रत्येक नागरिक जो 18 साल या उससे अधिक है। मतदाता के तौर पर पंजीकरण करा सकता है। इसमें सिर्फ गैर-नागरिक का नाम दर्ज कराने को अयोग्य ठहराया गया है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में स्पष्ट कर चुका है कि मताधिकार केवल संवैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं। मगर भारतीय नागरिक होने के बावजूद उसे शर्तें पूरी करनी होती हैं और आवश्यक दस्तावेज देने होते हैं। आयोग की मंशा पर उंगली उठाने वालों का आरोप है कि गणना फार्म में मांगे गए दस्तावेज में आधार कार्ड मतदाता-पत्र व राशन कार्ड का न शामिल होना निश्चित रूप से चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह पैदा करता है। चूंकि सरकार आधार को ही केवल पहचान पत्र मान रही है, बैंक खाते से जोड़ रही है, चुनावी पहचान पत्र से जोड़ रही है। जिसका मतलब है कि सरकार इसे नागरिकता के सबूत मान रही है, इसलिए चुनाव आयोग द्वारा इन्हें न स्वीकार करना संशय पैदा करता है। यदि जल्द ही आयोग इसमें सुधार कर ले तो शायद इन आरोपों-प्रत्यारोपों से बचा जा सकता है। चुनाव आयोग ने अब यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा ही गहन पुनरीक्षण अब पूरे देश में होगा, सो मामला अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं। उम्मीद है कि जल्द इस पर सर्वमान्य फैसला होगा और एक संवैधानिक संकट को टाला जाएगा। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 26 July 2025

इस्तीफे से उठे दर्जनों सवाल


सोमवार रात अचानक सियासी विस्फोट हो गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसने सियासी हलकों में हलचल मचा दी। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफे से विपक्ष भी हैरान था। इससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया। ऐसा नहीं कि भारत के संसदीय इतिहास में पहले किसी उपराष्ट्रपति ने पद से इस्तीफा न दिया हो। श्री वीवी गिरी, श्री वेंकटरमन ने भी इस्तीफा दिया था, पर वह स्वेच्छा से दिया था। डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने भी पद से इस्तीफा दिया था। पर वे सब इस्तीफे स्वेच्छा से राष्ट्रपति बनने के लिए दिए गए थे। श्री धनखड़ से तो लगता है कि इस्तीफा जबरन लिया गया। धनखड़ जी ने अपने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य खराब होने का बताया पर यह किसी के गले से नहीं उतर रहा, मानसून सत्र के पहले दिन उन्होंने पूरे दिन की राज्यसभा चलाई। कहीं भी नजर नहीं आ रहा था कि वह इतने अस्वस्थ हैं कि सदन को नहीं चला सकते। उनके इस्तीफे के पीछे कई तरह के विश्लेषण हो रहे हैं। मीडिया में उनके इस्तीफे के पीछे कई विशलेषण चल रहे हैं। मैं इस लेख में कुछ प्रमुख समाचार पत्रांs के संपादकीय विश्लेषणों का वर्णन कर रहा हूं। इससे पाठकों को कुछ समझ आ जाएगी उम्मीद करता हूं। प्रमुख अखबारों ने भी इस्तीफे की असली वजह ढूढने की कोशिश की है। इस अचानक उठाए गए कदम के पीछे अधिकतर विश्लेषण कर रहे हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के यहां कथित नकद बरामदगी के चलते महाभियोग प्रस्ताव लाने को लेकर दो अलग-अलग हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत। मानसून सत्र की शुरुआत से पहले ही सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए प्रस्ताव लाएगी ताकि न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया सर्वसम्मति से हो और इसे पक्षपातपूर्ण न समझा जाए। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक विपक्षी सांसद के हवाले से लिखा है कि वह इस प्रक्रिया से एनडीए सदस्यें को दूर रखना चाहते थे कि इस मुद्दे पर सरकार नैतिक ऊंचाइयां हासिल कर ले, पर धनखड़ जी ने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर सरकार को नाराज कर दिया। यह प्रस्ताव राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। हो सकता है कि सदन चलाने के उनके तरीके को लेकर सत्ता पक्ष के शीर्ष नेतृत्व से भी उनका मतभेद हुआ हो। इसी साल अप्रैल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। यही नहीं उन्हें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से यहां तक कह दिया था कि वह न्यूक्लियर मिसाइल संसद पर चला रहे हैं। कोई भी सरकार यह नहीं चाहती कि कार्यपालिका का न्यायपालिका से इतना सीधा टकराव हो। यह भी एक कारण हो सकता है भाजपा आलाकमान के धनखड़ से नाराज होने का। श्री धनखड़ एकमात्र उपराष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने का भूतपूर्व कदम उठाया। धनखड़ जिस संवैधानिक पद पर आसीन थे, वहां नाटकीयता नहीं, शालीनता की जरूरत थी। यह कहना अन्यायपूर्ण नहीं होगा कि धनखड़ कई बार न संयमित नजर आए और न ही निष्पक्ष। उन्होंने कई बार ऐसी भाषा और तेवर अपनाए जो संवैधानिक पद के अनुरूप नहीं कहे जा सकते। हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा जगदीप धनखड़ ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि मैं सही समय पर रिटायर होंगा। अगस्त 2027 में अगर ईश्वर का कोई हस्तक्षेप न हो तो। लेकिन उन्होंने कुछ ही दिनों बाद अपना पद छोड़ दिया। उन्हें राज्य सभा में कोई औपचारिक विदाई तक नहीं दी गई। विपक्ष कह रहा है कि सरकार को चाहिए कि वह इसकी वजह बताए ताकि बगैर आधार वाली अटकलें और साजिश की थ्योरी को दरकिनार करा जा सकें। अखबार लिखता है, क्या धनखड़ ने कोई रेड लाइन पार कर ली थी? अगर ऐसा है तो क्यों और कैसे? देश को इस बारे में जानने का पूरा हक है। उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक पद है, इसकी गरिमा को पवित्रता, संदेह और अफवाहों के दायरे में नहीं आनी चाहिए। यह सही है कि उनका स्वास्थ्य पिछले दिनों खराब था। पर वह ठीक होकर सार्वजनिक जीवन में लौट आए थे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा कि धनखड़ जी ने सोमवार को सदन शुरू होते ही घोषणा कर दी कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष का प्रस्ताव उन्होंने स्वीकार कर लिया है। धनखड़ जानते थे कि सरकार लोकसभा में पहले ही नोटस दे चुकी है। उन्होंने सरकार को मात दे दी। धनखड़ का इस्तीफा यह तो साबित करता है कि भाजपा में अब भी आलाकमान पूरी ताकत से काम करता है। उनकी इच्छा के खिलाफ कोई भी जाने की कोशिश करेगा तो उसके साथ दूध से मक्खी निकालने जैसा काम होगा। पर हमारा मानना है कि धनखड़ का इस ढंग से इस्तीफा (या निकालना) भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। कहीं वह एक दूसरे सतपाल मलिक बनकर न खड़े हो जाएं? धनखड़ के प्रकरण से ये बात भी साबित होती है कि भाजपा एक कमजोर पार्टी नहीं कहलाना चाहती। जनता यह भी नहीं भूली कि किस तरह से जेपी नड्डा ने कहा था नथिंग विल गो ऑन रिकार्ड, ओनली व्हॉट् आई से विल बी ऑन रिकार्ड। इशारा साफ था कि धनखड़ जी आपके जाने का समय आ गया है। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि किसी बड़े नेता को संतुष्ट करने के लिए धनखड़ जी की कुर्बानी ली गई है। 
 -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 24 July 2025

सारी हदें पार करता प्रवर्तन निदेशालय

ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली को लेकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग, बिना पारदर्शिता अपनाए और राजनीतिक दुरुपयोग जैसे सवालों पर बार-बार सवाल आते रहे हैं और कई बार न्यायालय इसको चेतावनी भी दे चुका है। पर यह मानने को तैयार नहीं और बिना सोचे-समझे सही जांच करें, कहीं भी पहुंचे जाते हैं। ईडी पर विपक्षी दलों पर नाजायज दबाव डालकर यहां तक आरोप लगे हैं कि वह चुनी हुई सरकारों को भी गिराने में मदद करते हैं और एक बात ईडी का अदालत में केसों में आरोप साबित करने का ट्रैक रिकार्ड निहायत खराब है। दर्ज मामलों में दोष सिद्धी की दर कम होने पर भी सवाल उठता है। ये सवाल तब और गंभीर हो जाते हैं, जब कुछ मामलों में न्यायालय की ओर से भी जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को संदेह से देखा जाता है। ताजा उदाहरण वकीलों को तलब करने का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब करने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रहा है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायामूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ विधिक पेशे की स्वतंत्रता पर इस तरह की कार्रवाईयों के प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अदालत द्वारा स्वत संज्ञान लेते हुए शुरू की गई एक सुनवाई के दौरान की। गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की कि ईडी कोई ड्रोन नहीं जो आपराधिक गतिविधि का पता चलते ही हमला कर दे। साथ ही कहा कि जांच एजेंसी एक अत्याधिक दक्ष पुलिस अधिकारी (सुपर काप या सुपर मेन) की तरह नहीं है जो उनके संज्ञान में आने वाली हर चीज की जांच करे। हर जांच एजेंसी में बेशक कुछ न कुछ खामियां होती हैं, लेकिन जब सिलसिलेवार तरीके से सवाल उठने लगे तो यह दामन पर दाग लगने जैसा होता है। ईडी की शक्तियों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर जांच एजेंसी के पास मौलिक अधिकार है तो उसे लोगों के अधिकारों के बारे में भी सोचना चाहिए। जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व न करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब किए जाने पर जुड़े एक मामले में सोमवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रही है। इसके अलावा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी से संबंधित भूखंड आवंटन ममाले में अदालत ने चेताया है कि राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए, इसमें ईडी जैसी जांच एजेंसियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जाहिर है लगातार उठने वाले सवालों के बीच ईडी की अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता के मानक सुनिश्चित कर राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करना चाहिए ताकि उसकी साख पर कोई बट्टा न लगे। पीठ ने ईडी की भूमिका को खारिज कर दिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। याचिका में ईडी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती के खिलाफ एमयूडीए घोटाले में कार्रवाई करने पर रोक लगा दी थी। ईडी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू अदालत में पेश हुए। प्रधान न्यायाधीश ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कृपया हमें अपना मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें। वर्ना हमें ईडी के खिलाफ कुछ कड़े शब्दें का इस्तेमाल करना पड़ेगा। दुर्भाग्य से मुझे महाराष्ट्र में इसे लेकर कुछ अनुभव है। इसे पूरे देश में मत फैलाइए। राजनीतिक लड़ाई को मतदाताओं के सामने लड़ने देना चाहिए, उसमें आप क्यों इस्तेमाल हो रहे हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणियां साफ रेखांकित करती हैं कि किस तरह सत्तारूढ़ दल इन जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करते हैं और सियासी खेल खेलते हैं। इन जांच एजेसिंयों को चाहिए कि यह हर आदेश को आंख बंद करके अमल न करें बल्कि थोड़ी जांच पहले करें कि आरोपों में कोई दम है भी या नहीं ? या यह सिर्फ सियासी प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा है? उम्मीद की जाती है कि ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनके विवेक को सोचने पर मजबूर करेगा। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 22 July 2025

मानसून सत्र: टकराव के पूरे आसार

सोमवार से संसद का मानसून सत्र आरंभ हो गया है। यह 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा। इस एक महीने के लंबे सत्र की शुरुआत से ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव साफ दिखता नजर आ रहा है। तैयारी दोनों तरफ से पूरी है। विपक्ष ने जहां सरकार को विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर घेरने की तैयारी कर ली है वहीं सत्तापक्ष ने भी विपक्ष की रणनीति को कुंद करने की तैयारी पूरी कर ली है। संसद सत्र से ऐन पहले इंडिया गठबंधन की वर्चुअल बैठक शनिवार देर शाम आयोजित की गई, जिसमें मानसून सत्र को लेकर तमाम विपक्ष ने साझा रणनीति और सरकार के एजेंडे पर विस्तृत चर्चा की। मीटिंग के बाद सीनियर कांग्रेस नेता और राज्यसभा में उपनेता विपक्ष प्रमोद तिवारी ने मीडिया को बताया कि विपक्ष ने तय किया है कि आगामी सत्र में वह आठ अहम मुद्दों पर पीएम मोदी और उनकी सरकार को घेरेंगे। इनसे सवालों के जवाब मांगे जाएंगे। इनमें पहलगाम आतंकी हमला व आपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाक सीजफायर के 24 बार से ज्यादा बार दावे, बिहार में एसआईआर की कवायद, मतदान अधिकारों पर संकट, डीलिमिटेशन एससी, एसटी और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, अहमदाबाद में प्लेन दुर्घटना, अघोषित आपातकाल, सरकार की विदेश नीति जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा। प्रमोद तिवारी ने कहा कि इस वर्चुअल मीटिंग में 24 दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कुल मिलाकर बैठक बहुत ही सौहार्दपूर्ण रही। जल्द ही इंडिया गठबंधन के नेता आपस में मिलकर एक बैठक करेंगे, जिसमें वह अपनी आगामी राजनीति को धार देंगे। कांग्रेस ने कहा कि हम चाहते हैं कि संसद ठीक से चले, लेकिन इसके लिए सरकार को विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में मौजूद रहना चाहिए और खुद इन सवालों का जवाब देना चाहिए। विपक्ष का कहना है कि देश में लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है और ऐसे में विपक्ष की भूमिका और जिम्मेदारी और भी अहम हो जाती है। विदेश नीति पर भी चर्चा होगी। वहीं पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप से लेकर बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन जैसे मुद्दों पर सत्तापक्ष भी अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। पावार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर पर हुई बैठक में इस पर बात हुई। इसमें सरकार के सीनियर मंत्रियों को आर्म्ड फोर्सेस की तरफ से भी ब्रीफ किया गया। माना जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के अलग-अलग पहलुओं के बारे में स्थिति साफ की गई। राजनाथ सिंह संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बयान दे सकते हैं। रविवार को सरकार ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, जिसमें सरकार की तरफ से साफ किया कि रक्षा मंत्री ऑपरेशन सिंदूर पर बयान देंगे। बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए भी सरकार की तरफ से तैयारी है। मामला कोर्ट में है। साथ ही सत्ता पक्ष की तरफ से बार-बार कहा जाता रहा है कि यह चुनाव आयोग का फैसला है। इसी मुद्दे के बहाने भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के मसले पर विपक्ष को घेरने की कोशिश करेगी। अब देखना यह है कि क्या संसद चलेगी? उधर प्रधानमंत्री तो बीच में ही विदेशी दौरे पर जा रहे हैं तो वह तो जावब नहीं देंगे। तो फिर या तो राजनाथ सिंह या फिर अमित शाह को मोर्चा संभालना पड़ेगा। पूरे सत्र में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा सभापति जगदीश धनखड़ की भूमिका भी अहम होगी। देखना होगा कि यह इस सत्र में विपक्ष को कितना एकामोडेट करते हैं? अगर पिछले सत्रों को देखा जाए तो इनके रवैये में ज्यादा ढील की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे सरकार इस समय चौतरफा दबाव में है। एक तरफ विपक्ष हावी होने का प्रयास कर रहा है तो दूसरी तरफ भाजपा और एनडीए के अंदर भी सब ठीक नहीं है। आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी और नितिन गडकरी बार-बार ज्वलंत मुद्दे उठा रहे हैं। सरकार हर तरफ से दबाव में है। ऐसे में यह मानसून सत्र (अगर चला) बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। देखें क्या-क्या होता है? -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 19 July 2025

बिहार में पुनरीक्षण अभियान बना एक मजाक

बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) में लापरवाही, अव्यवस्था और गड़बड़झाले के कारनामे अब खुलकर सामने आ चुके हैं। अब यह सारी कवायद एक मजाक बनकर रह गई है। इस अभियान में कई स्तर पर गड़बड़ी की गई और की जा रही है। इन अनियमितताओं पर पत्रकारों से लेकर तमाम विपक्षी दलों ने प्रश्न चिह्न लगा दिया है। भास्कर की जमीनी पड़ताल में कहीं बीएलओ खेत में बैठकर फार्म भर रहे हैं, कहीं वाह्टसअप से पहचान पत्र मांग रहे थे। पटना में कई मतदाताओं के घर दो-दो तरह के फार्म पहुंचे। नगर निगम कर्मचारी और बीएलओ अलग-अलग फार्म दे रहे हैं। पावती फार्म नहीं दिए गए जबकि नियमानुसार यह जरूरी है। उधर एनडीए सरकार में शामिल तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर संबंधित कई सवाल पूछे हैं। तेदेपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर समावेश की धारणा का समर्थन करते हुए कि मतदाता पहले से ही नवीनतम प्रमाणित मतदाता सूची में नामांकित हैं। उन्हें अपनी पात्रता पुन स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। जब तक कि विशिष्ट और सत्यापन योग्य कारण दर्ज न किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मतदाता सूची में किसी व्यक्ति का नाम पहले से शामिल करने से उसकी वैधता की धारणा बनती है और नाम हटाने से पहले वैध जांच होनी चाहिए। तेदेपा ने कहा कि सुबूत का भार निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी या आपत्तिकर्ता पर होता है। मतदाता पर नहीं, विशेषकर जब नाम अधिकारिक सूची में मौजूद हो। तेदेपा के इस प्रतिनिधिमंडल ने सीआईसी ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू व विवेक जोशी से मुलाकात की। इधर निर्वाचन आयोग ने बुधवार को कहा कि बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से केवल 6.85 फीसदी ने अभी तक विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत गणना फार्म नहीं भरे हैं। यानी आयोग ने अंतिम तिथि से नौ दिन पहले ही 93 फीसदी काम पूरा कर लिया है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता राहुल गांधी, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव ने निर्वाचन आयोग और भाजपा पर जोरदार हमला बोला। राहुल गांधी ने असम के गुवाहाटी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करे हुए आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच मिलीभगत है। यह इससे साबित हो जाता है कि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव से चार महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में करीब एक करोड़ नए मतदाता जोड़े गए और भाजपा चुनाव जीत गई। विपक्ष के मांगने पर भी चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सूची और मतदान केन्द्राsं की वीडियोग्राफी देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की तरह ही अब बिहार में चुनाव चोरी करने की साजिश रची जा रही है। बिहार में मतदाता सूची से गरीबों, मजदूरों और कांग्रेस-राजद समर्थकों के नाम हटाने का प्रयास किया जा रहा है। चुनाव आयोग खुलकर भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की आलोचना करते हुए कहा कि जब भी चुनाव आते हैं, भाजपा मतदाता सूची से नाम हटाना शुरू कर देती है। मैंने सुना है कि उन्होंने बिहार में 30.5 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं। इसी तरह भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव जीते थे। वे बिहार और बंगाल के लिए भी यही योजना लागू कर रहे हैं। इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने एक्स पर लिखा कि बिहार में कुल 7 करोड़ 90 लाख मतदाता हैं। कल्पना कीजिए भाजपा के निर्देश पर अगर एक फीसदी मतदाताओं को भी छांटा जाता है तो लगभग 7 लाख 90 हजार मतदाताओं के नाम कटेंगे। यहां हमने केवल एक फीसद की बात की है, जबकि इनका इरादा इससे भी अधिक चार से पांच फीसद का है। इस हिसाब से हर विधानसभा में 3200 से अधिक मतदाताओं के नाम कटेंगे। पिछले चुनावों में वोट बढ़ाए गए थे इस बार घटाए जा रहे हैं। तेजस्वी ने कहा, पिछले दो विधानसभा चुनावों में कम अंतर से हार जीत वाली सीटों का आंकड़ा देखें तो 2015 विधानसभा चुनाव में 3000 से कम मतों से हार जीत वाली कुल 15 सीटें थी, जबकि 2020 में यह 35 सीटें हो गई थीं। अगर चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर इस प्रकार के गंभीर आरोप लगने लगे तो संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है। आयोग पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब सर्वोच्च अदालत ने समयाभाव और समीक्षा की प्रक्रिया की दुरुस्ता पर सवाल किया और अगली सुनवाई की तिथि 28 जुलाई तय की है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग का संवैधनिक कर्तव्य है। अगर इस प्रक्रिया में कोई आपत्ति दर्ज होती है तो उसे सही करना, उसमें संशोधन करना, गलत आदेश वापस लेना यह सब चुनाव आयोग का फर्ज है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 17 July 2025

सत्ता के लिए खींचा गाजा युद्ध लंबा

इजरायल में सबसे ज्यादा समय सत्ता में रहने का रिकार्ड बेंजामिन नेतन्याहू के नाम है। वे 17 साल 9 महीने से इजरायल के प्रधानमंत्री हैं। दिसम्बर 2022 के बाद नेतन्याहू के तीसरे कार्य काल के 30 माह में से 21 माह तक इजरायल युद्ध में घिरा रहा है। नई न्यूयार्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक नेतन्याहू ने घटती लोकप्रियता, भ्रष्टाचार के आरोपों से और अदालतों में चल रही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के केसों से बचने व ध्यान हटाने के लिए गाजा युद्ध लंबा खींचा। आरोप है कि नेतन्याहू ने कतर के जरिए हमास की बाकायदा फंडिंग भी की। जानिए कैसे नेतन्याहू ने पीएम पद पर बने रहने और अपने फायदे के लिए बाकायदा युद्ध का इस्तेमाल किया। नेतन्याहू ने खुफिया इनपुट की अनदेखी की जिससे हमास मजबूत हुआ और उसे तैयारियों का मौका मिला। नेतन्याहू 2020 से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे, जिससे उनकी सियासी पकड़ कमजोर हुई। सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने दक्षिणपंथी और अतिवादी दलों के साथ गठबंधन किया। नेतन्याहू ने कतर के माध्यम से गाजा को आर्थिक सहायता देने की नीति अपनाई जिसे वे शांति खरीदने का तरीका मानते थे। लेकिन इससे हमास को सैन्य तैयारियों के लिए संसाधन जुटाने का मौका मिला। जुलाई 2023 में सैन्य खुफिया इकाई ने चेतावनी दी कि नेतन्याहू की न्यायपालिका सुधार योजना ने देश को कमजोर किया, जिससे हमास, हिजबुल्ला और ईरान को हमले का अवसर मिल सकता है। रिज बेट तत्कालीन प्रमुख रोनन बार रणनीतिक युद्ध की चेतावनी दी, लेकिन नेतन्याहू ने इसे खारिज कर दिया और प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे हमास को लाभ मिला। नेतन्याहू का दोहरा खेल, क्षेत्र के लिए युद्ध का ऐलान, नाकामी का ठीकरा सेना, एजेंसियों पर फोड़ा। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले ने इजरायल को चौंका दिया। हमले में 1195 इजरायली मारे गए और 251 को अगवा किया गया। नेतन्याहू ने तुरंत हमास नेतृत्व को खत्म करने के आदेश दिए। खुफिया विफलता की जिम्मेदारी से बचने के लिए उन्होंने सेना और खुफिया एजेंसियों पर ठीकरा फोड़ा। उनकी पहली रणनीति थी सैन्य जवाब को तेज करना, जिसमें गाजा पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शामिल थे। उन्होंने मध्यमार्गी बेनी गैंट्स और गादी आईजेनकारे को सरकार में शामिल किया। इस कदम ने गठबंधन सरकार को स्थिरता दी और युद्ध को लंबे खींचने की उनकी रणनीति को समर्थन मिला। पीएम ने दोहरा खेल खेलते हुए हमास हमले के लिए सार्वजनिक रूप से दावा किया कि उन्हें हमास के इरादों की कोई चेतावनी नहीं मिली थी, जिससे उनकी छवि को बचाने की कोशिश की। नेतन्याहू ने अपनी सियासी छवि को चमकाने और सत्ता में बने रहने के लिए युद्ध का इस्तेमाल किया। सितम्बर 2024 में बंधकों की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन बढ़े। उनके प्रवक्ता ने एक हमास दस्तावेज को जर्मन अखबार बिल्ड में लीक किया, जिसमें दावा किया गया कि प्रदर्शनकारी हमास के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे थे। इस रणनीति ने जनता का ध्यान युद्ध विराम की मांग से हटाकर, हमास के खिलाफ एकजुटता की ओर मोड़ा। हिज्बुल्ला व ईरान के खिलाफ सैन्य सफलताओं ने नेतन्याहू की लोकप्रियता बढ़ा दी। हमास नेता माल्या सिनवार और हिज्बुल्ला नेता नसरूल्ला की मौत, लेबनान पर वाकी टॉकी हमले और ईरान के परमाणु fिठकानों पर हमले ने नेतन्याहू की स्थिति को और मजबूत किया। अप्रैल 2024 में नेतन्याहू ने एक युद्ध विराम योजना को मंजूरी दी जिसमें 30 से अधिक इजरायली बंधकों की रिहाई और सऊदी अरब के साथ शांति समझौते की संभावना शामिल थी। कैबिनेट बैठक में कट्टर दक्षिणपंथी और वित्त मंत्री ने धमकी दी कि अगर यह योजना आई तो सरकार गिर जाएगी। नेतन्याहू ने तुरंत अपनी सत्ता को प्राथमिकता देते हुए इस योजना को रद्द कर दिया। 1 जुलाई 2024 में एक और युद्ध विराम समझौता करीब था लेकिन नेशनल सिक्यूरिटी मंत्री के दबाव में नेतन्याहू ने गाजा-मिस्र सीमा पर नई शर्तें जोड़ दी जिससे बातचीत विफल हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में नेतन्याहू ने जनवरी 2025 में गाजा युद्ध विराम लागू तो किया लेकिन अपनी सत्ता बचाने के लिए मार्च में ही उसे तोड़ दिया। अल्ट्रा आर्थोडॉक्स सांसदों के विरोध में सरकार गिरने के खतरे को देखते हुए नेतन्याहू ने बेन ग्वीर को फिर से गठबंधन में जोड़ा जिसकी शर्त थी गाजा में बमबारी जारी रहे। 18 मार्च को हमले शुरू हुए, 19 को गठबंधन बहाल हुआ और बजट पारित। नेतन्याहू ने ट्रंप को ईरान पर हमले के लिए मना लिया। ट्रंप ने सैन्य समर्थन दिया और इजरायल का साथ देकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर जबरदस्त बमबारी की। इसी के बाद नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया। साफ है कि बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सत्ता बचाने के लिए गाजा युद्ध जारी रखा। 50 हजार से ज्यादा लोग बली चढ़ चुके हैं जिनमें 28000 बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। सत्ता की खातिर यह तानाशाह कुछ भी कर सकते हैं। ऊपर वाला सब देख रहा है और सही समय पर उनके कुकर्मों की सजा देगा। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 15 July 2025

क्या ट्रंप और नेतन्याहू ने फिर हमले की तैयारी कर ली है?


नेतन्याहू की हाल की अमेरिकी यात्रा के बाद ईरान पर फिर हमले की आशंका बढ़ गई है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बड़ा मकसद पूरा हो गया लगता है जिसके लिए वो खासतौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने अमेरिका गए थे। माना जा रहा है कि ट्रंप ने इजरायल को ईरान पर फिर से हमले करने की अनुमति दे दी है। तो सवाल यही है कि क्या नेतन्याहू ईरान पर हमले का दूसरा चरण शुरू करने जा रहे हैं? ईरान पर हमले का खतरा इसलिए बढ़ गया है क्योंकि ट्रंप और नेतन्याहू ईरान पर आाढमण का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके हैं। ऐसा अमेरिकी मीडिया दावा कर रहा है। नेतन्याहू जब वाशिंगटन गए थे तभी ये साफ हो गया था कि वो ट्रंप से ईरान पर हमले की अनुमति मांगेंगे। अब जबकि नेतन्याहू का दौरा पूरा हो गया है तो माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नेतन्याहू को ईरान पर हमले की हरी झंडी दे दी है। इसके संकेत इस बात से भी मिल रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों में वाशिंगटन में सब कुछ वैसा ही हो रहा हैं। जैसा पिछली बार हमले से पहले हुआ था। ट्रंप और नेतन्याहू में वाशिंगटन दौरे के दौरान दो बार आपात बैठक हुई। एक बैठक में तो ट्रंप के साथ तमाम अमेरिकी सेना के अध्यक्ष भी बैठक में शामिल थे। यानि कि सैनिक दृष्टि से भी हमले के सारे पहलुओं पर विचार हुआ होगा। नेतन्याहू की यात्रा के बाद ट्रंप अपने इटेंलीजेंस एजेंसियों से मिले। ट्रंप पिछली बार ईरान पर हुए हमले से पहले इसी तरह के शेड्यूल पर थे। इजरायल ने जिस दिन ईरान पर हमला किया था, उस दिन भी ट्रंप ने इंटेलीजेंस से ब्रीफिंग लिया था। नेतन्याहू का आाढामक रुख तो इसी बात का संकेत दे रहा है कि ईरान पर हमले का दूसरा राउंड किसी भी समय शुरू हो सकता है। अमेरिका और इजरायल के हमें दोबारा जंग छेड़ने के पीछे तीन मकसद नजर आते हैं। पहला है ईरान को हर हालत में परमाणु शक्ति बनने से रोकना। पहले राउंड में जब अमेरिका ने बी-2 स्टैल्थ बाम्बर से बंकर बस्टर बम गिराये थे तो ईरान की परमाणु प्रतिष्ठानों को इतना नुकसान नहीं हुआ था और विशेषज्ञों का दावा था कि ईरान परमाणु बम बनाने में सिर्फ 2-3 महीने पीछे हुआ है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ईरान ने अपने 400 किलो एनरिच्ड यूरेनियम को अमेरिकी हमले से पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान अब जब चाहे कम से कम दस परमाणु बम बना सकता है। ट्रंप-नेतन्याहू ईरान के परमाणु ठिकानों को हमेशा से मिटाना चाहते हैं। दूसरा मकसद ईरान को इतना कमजोर कर दें कि वह मध्य पूर्व एशिया में महज एक बिना प्रभाव का देश बन कर रह जाए। तीसरा मकसद ईरान से अयातुल्ला रेजीम को हमेशा के लिए खत्म करना। इसमें अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या का भी प्लान है। इजरायल का दावा है कि उसने ईरान के यूरेनियम का पता लगा लिया है। माना जा रहा है कि सीज फायर के बाद मोसाद ने उस लोकेशन का पता लगा लिया है, जहां ईरान ने अपना सर्वाधिक यूरेनियम छिपा रखा है। उधर अमेरिका इस बात से भड़का हुआ है कि ईरान अपने एटमी मिशन का निरीक्षण नहीं करने दे रहा है। इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी और आईएईए प्रमुख राफेल ग्रैसी ने ईरान के एटमी मिशन को लेकर कहा है कि ईरान के पास एटमी हथियार हैं। इस बात के सुबूत तो नहीं हैं। लेकिन खतरा हर बीतते दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। ग्रैसी के कहने का मतलब ये है कि ईरान इतना सक्षम हो चुका है कि वो बहुत जल्द परमाणु परीक्षण कर सकता है। अपुष्ट दावों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि ईरान ने परमाणु बम तैयार कर लिए हैं। उधर ईरान भी अगले राउंड के लिए पूरी तरह तैयार है। वह चुनौती दे रहा है और कह रहा है कि अगर इस बार अमेरिका और इजरायल ने फिर ईरान पर हमला किया तो उन्हें ऐसा सबक सिखाया जाएगा जिसे वह भूलेंगे नहीं। हम पूरी ताकत से जवाब देंगे। पिछले 12 दिन के राउंड में हमने साबित कर दिया था कि हम कितनी तबाही कर सकते हैं। इस बार तो ईरान और ज्यादा मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है क्योंकि चीन, रूस और उत्तरी कोरिया का भी उसे पूरा खुला समर्थन मिल चुका है। कुल मिलाकर स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। उम्मीद करते हैं, ऊपर वाले सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे ताकि कहीं तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत न हो जाए। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 12 July 2025

पुलवामा हमला:टेरर फंडिंग भी ऑनलाइन

आतंकवादी पिछले कुछ वर्षों से अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देने के लिए पारंपरिक तरीके की बजाय आधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं। खासकर इंटरनेट के जरिए विभिन्न तरह की मदद हासिल करना उनके लिए आसान और सुलभ तरीका बन गया है। वैश्विक आतंकवाद वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ ने फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और गोरखनाथ मंदिर में हुई 2022 की घटना का हवाला देते हुए गत मंगलवार को कहा कि ई-कामर्स और ऑनलाइन भुगतान सेवाओं का दुरुपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। अपने विश्लेषण में एफएटीएफ ने आतंकवाद को सरकार द्वारा प्रायोजित किए जाने को भी चिह्नित करते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के विभिन्न स्त्राsतों और इस रिपोर्ट में प्रतिनिधिमंडलें के विचार से संकेत मिलता है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था एफएटीएफ की हालिया रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग पहलू की ओर ध्यान खिंचा है। इसमें बताया गया है कि कैसे टेक्नोलॉजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति की जरूरत हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर अमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों का लेन-देन में भी ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। यही नहीं आतंकी बम बनाने की विधि भी इंटरनेट से सीख रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में हुई कई आतंकी हमलों की जांच में इसके प्रमाण भी मिले हैं। इससे साफ है कि ऑनलाइन सेवाओं का दुरुपयोग किस कदर खतरनाक रूप ले चुका है। एफएटीएफ के अनुसार पुलवामा हमले में एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल विस्फोट के प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया गया था। जैश-ए-मुहम्मद ने फरवरी, 2019 में सुरक्षा बलें के काफिले पर आत्मघाती हमला किया था। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए विस्फोट में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा अतांकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। अब वे अपने को इंटरनेट की gदुनिया की ओर ले जा रहे हैं। एफएटीएफ की इस अपडेट रिपोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के दावे पर भी परोक्ष रूप से मुहर लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी अपने हिंसक अभियानों के लिए उपकरण, हथियार, रसायन और यहां तक कि थ्री डी प्रिटिंग सामग्री की खरीददारी भी ऑनलाइन सेवाओं के जरिए कर रहे हैं। यह बात सही है कि ऑनलाइन खरीददारी की व्यवस्था से लोगों को काफी सहुलियत हुई हैं, लेकिन इस सुविधा का उपयोग खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए न हो, इस पर सरकार को कड़ी नजर रखनी है और ऐसे नियम बनाने होंगे जिससे यह ऑनलाइन साइट्स की इस सुविधा का दुरुपयोग न कर सकें और आतंकवाद फैलाने में मदद न कर पाएं। साथ ही ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाले मंचों की भी जिम्मेदारी है कि वे इस तरह की सामग्री की नियमित निगरानी करें, ताकि इसके दुरुपयोग पर रोक सुनिश्चित हो सके। एफएटीएफ का यह खुलासा भी अहम है कि आतंकवादी संगठनों को कुछ देशों की सरकारों से वित्तीय और अन्य मदद मिलती रही है, जिसमें साजो-सामान और सामग्री संबंधित सहायता एवं प्रशिक्षण भी शामिल है। भारत समेत कई देश आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट प्रयासों पर बल दे रहे हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा देशों द्वारा आतंकियों के वित्त-पोषण से इस पर पलीता लग रहा है। आतंकवाद की इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास करने होंगे। इससे पहले भी हमने देखा कि किस तरह पाक प्रायोजित आतंकी घटनाएं हमारे खिलाफ की जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान आतंकियों का पालन-पोषण कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा कि कैसे इन ई-कामर्स कंपनियों पर पाबंदी लगाई जाए ताकि वे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां बंद करें। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 10 July 2025

राफेल गिरने पर चीन ने फैलाया भ्रम

आपको याद होगा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने भारत के कई विमानों को मार गिराया है। इनमें राफेल, सुखोई और मिग शामिल थे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या भारत के राफेल फाइटर जेट गिरे थे? एक इंटरव्यू में रक्षा सचिव आर के सिंह ने सीएनवीसी-टीवी-18 को कहा कि आपने राफेल्स शब्द बहुवचन में इस्तेमाल किया है। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यह बिल्कुल भी सही नहीं है। पाकिस्तान को ह्यूमन और सैन्य साजो समान दोनों स्तरों पर भारत की तुलना में कई गुना अधिक नुकसान हुआ और 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। वहीं, पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर ने कहा कि भारत से सैन्य संघर्ष के दौरान बाहरी समर्थन मिलने का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है। अब खबर आई है कि ऑपरेशन सिंदूर के दरम्यान हुई झड़पों के बाद निर्मित राफेल जेट विमानों के विषय में संदेह फैलाया गया था। चीन ने इस काम पर अपने दूतावास को तैनात किया था। फ्रांसीसी सैन्य अधिकारियों व खुफिया एजेंसियों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर बताया जा रहा है, फ्रांस के प्रमुख लड़ाकू विमान की प्रतिष्ठा व पी को क्षति पहुंचाने का बीजिंग प्रयास कर रहा था और लगातार कर भी रहा है। फ्रांसीसी खुफिया सेवा की रपट के आधार पर बताया कि चीन के दूतावासों में रक्षा अधिकारियों ने राफेल की पी को प्रभावित करने के लिए अभियान चलाया। इसका उद्देश्य उन राज्यों को राजी करना था, जिन्होंने पहले से ही फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान का आर्डर दे रखा है, विशेष रूप से इंडोनेशिया कि वे राफेल विमान न खरीदे तथा अन्य संभावित खरीददारों को चीन निर्मित विमान एफ-10 और एफ-15 इत्यादि या एफ-35 लड़ाकू विमान चुनने के लिए प्रोत्साहित हों। राफेल समेत अन्य तमाम हथियारों की पी फ्रांस के रक्षा उद्योग का प्रमुख कारोबार है, जिससे पेरिस के दुनिया भर के देशों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसमें चूंकि एशियाई देश भी शामिल हैं। जहां चीन प्रमुख शक्ति बन चुका है। चीन का पूर्वी एरिया में लगातार प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भारत-पाक संघर्ष के दौरान पड़ोसी मुल्क की वायु सेना द्वारा 5 भारतीय विमानों के मार गिराने का छद्म प्रचार किया गया था। जिनमें तीन राफेल बताए गए। फ्रांसीसी अधिकारियों का मानना है कि इस प्रमुख प्रचार से राफेल के प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगाने का प्रयास चीन ने किया। फ्रांसीसी वायुसेना प्रमुख जनरल जेरोम बेलगार ने कहा कि उन्होंने केवल तीन भारतीय विमानों को क्षति होने की ओर इशारा करते हुए सुबूत देखे हैं। जेरोम के मुताबिक इनमें एक राफेल, एक सुखोई और फ्रांस निर्मित एक मिराज 2000 लड़ाकू विमान शामिल हैं। फ्रांस ने 8 देशों को राफेल लड़ाकू विमान बेचे हैं जिनमें से भारत-पाक संघर्ष में इस विमान के गिरने का पहला ज्ञात मामला आया है। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट, कथित राफेल मलबा, छेड़छाड़ की गई तस्वीरों, एआई से बनाए कंटेंट व युद्ध का अनुकरण करने वाले वीडियो गेम वगैरह इस अभियान का हिस्सा था। हमारी राय में तो भारत सरकार को देश को अब बता देना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने विमानों को नुकसान हुआ था और यह कौन-कौन से विमान थे? छिपाने से अफवाह फैलती है और दुश्मनों को भ्रम फैलाने का अवसर मिल जाता है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 8 July 2025

पाकिस्तान तो महज चेहरा, सीमा पर कई दुश्मन थे

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को किस-किस मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह रहस्य अभी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। आपरेशन सिंदूर की परतें खुलने लगी हैं। ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य रणनीति में एक मील का पत्थर बनकर उभरा है। जो खुफिया जानकारी से संचालित युद्ध, वृद्धि पर नियंत्रण और तकनीकी तत्परता के बारे में बहुमूल्य सबक प्रदान करता है, यह बात डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही हैं। पावार को न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजी पर फिक्की के एक कार्पाम में बोलते हुए जनरल सिंह ने इस ऑपरेशन को भारत की एकीकृत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए सही समय पर संघर्ष को रोकने के लिए तैयार किया गया एक मास्टरली स्ट्रोक बताया। पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना रणनीतिक वृद्धि युद्ध शुरू करना आसान है, लेकिन इसे नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है। फिक्की के कार्पाम को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन की भूमिका पर बात की। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 5 साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है। सिंह का कहना है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान के साथ चीन की तो बड़ी भूमिका थी ही पर इस दौरान तुर्कीये की पाकिस्तान को दी गई सैन्य मदद का भी पा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन इस्तेमाल किए गए। जो तुर्किये से आए थे। वो कहते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कुछ सबक है जो मैं जरूरी समझता हूं बताना। सबसे पहले एक सीमा पर दो दुश्मन नहीं थे। हमने सिर्फ पाकिस्तान को तो सामने देखा, लेकिन दुश्मन असल में दो थे, बल्कि अगर कहें तो तीन या चार भी थे। पाकिस्तान तो सिर्फ सामने दिखने वाला चेहरा था। हमें चीन से (पाकिस्तान को) हर तरह की मदद मिलती दिखी और ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से पाकिस्तान की हर क्षेत्र में मदद करता रहा है। उनका कहना है एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो ये कि वो अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की लाइव लैब उसे मिल गई हो। इसके अलावा तुर्कीये ने भी बहुत अहम भूमिका निभाई, जो पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा था। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ उनके प्रशिक्षित लोग भी थे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक ये है कि कम्युनिकेशन निगरानी और सेना नागरिक तालमेल। इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब डीजीएमओ लेवल की बातचीत हो रही थी, तब पाकिस्तान कह रहा था कि हमें मालूम है कि आपकी एक यूनिट पूरी तरह तैयार है। कृपा इसे पीछे कर लें। यानि चीन उन्हें लाइव इनपुट दे रहा था। इस मामले में हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। मैंने इलेक्ट्रानिक वार फेयर की बात की और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत भी बताई। लेकिन हमारे आबादी वाले इलाकों की रक्षा भी जरूरी है। जहां तक बाकी बात है, हमारे पास वो सहूलियते नहीं है जो इजरायल के पास है। वहां आयरन डोम जैसा सिस्टम है और कई एयर डिफेंस फीचर हैं। हमारे देश का दायरा बहुत बड़ा है तो इस तरह की चीजों पर बहुत पैसा लगता है इसलिए हमें सैंसेटिव हल ढूंढने होंगे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक मिला कि हमारे पास मजबूत और सुरक्षित सप्लाई चेन होनी चाहिए। उन्होंने इसे सोच के नजरिए से समझाते हुए कहा कि जो उपकरण हमें इस साल जनवरी या पिछले साल अक्टूबर-नवम्बर तक मिलने चाहिए थे, वो वक्त पर नहीं पहुंच सके। मैंने ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को बुलाया था और पूछा था कि कितने लोग तय समय पर उपकरण दे सकते हैं। तो कई लोगों ने हाथ उठाए। लेकिन एक हफ्ते बाद जब फिर से बात की, तब कुछ भी सामने नहीं आया। इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि डिप्टी चीफ आर्मी स्टॉफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने सार्वजनिक मंच से वही बात साफ कर दी है जो लम्बे वक्त से चर्चा में थी। उन्हेंने एक्स पर लिखा और बताया कि किस तरह चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स की असाधारण तरीके से मदद की। यह वही चीन है जिसने पांच साल पहले लद्दाख में यथास्थिति पूरी तरह बदल दी थी। जनरल सिंह ने देश को चेता दिया है कि अगले संघर्ष में भारत को फिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 5 July 2025

ईरान का मोसाद से बदला

इजरायल के ईरान पर हमले की शुरुआत के बाद सामने आई रिपोर्ट्स से स्पष्ट संकेत मिला कि युद्ध का मोर्चा आसमान में नहीं बल्कि जमीन में भी पहले से ही खुल चुका था। काफी समय से ईरान में गहरी खुफिया और ऑपरेशन घुसपैठ के जरिए इजरायल में तैयारी कर रहा था। हालांकि, ईरानी अधिकारी पहले भी ये आशंका जता चुके हैं कि इजरायल ईरानी सुरक्षा बलों में घुसपैठ कर सकता है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इजरायल आमतौर पर मोसाद के कामकाज पर टिप्पणी नहीं करता और ईरान में चली रही कार्रवाईयों में दूसरी खुफिया एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं। फिर भी ऐसा माना जाता है कि मोसाद ने ईरानी जमीन पर लक्ष्यों की पहचान और ऑपरेशनों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ इजरायली अधिकारियों की टिप्पणियों से साफ होता है कि ईरान के भीतर एंटी-सबमरीन सिस्टम, मिसाइल गोदाम, कमांड सेंटर्स और चुनिंदा टॉप मिलिट्री और साइंटिस्टों को निशाना बनाकर एक साथ और बेहद सटीक हमले किए गए। ये हमले उन खुफिया गतिविधियों के जरिए मुमकिन हो पाए, जो काफी समय से ईरान के अंदर सक्रिय थीं। इजरायल के हमलों ने न सिर्फ ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि देश के भीतर उनकी खुफिया क्षमताओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया। उधर इजरायल के साथ हाल के संघर्ष के बाद ईरान में गिरफ्तारियों और मौत की सजा देने का मोसाद से बदला लेने का सिलसिला शुरू हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि इजरायल के एजेंटों ने ईरानी खुफिया सेवाओं में अभूतपूर्व ढंग से घुसपैठ कर ली है। इन अधिकारियों को इस बात का शक है कि ईरान के हाई प्रोफाइल नेताओं की जिस तरह से हत्या हुई है, उसमें इजरायली सेना को दी खुफिया एजेंटों से मिली जानकारियों का हाथ रहा होगा। इजरायल ने हाल के संघर्ष में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कई सीनियर कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी। ईरानी अधिकारियों ने इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में तीन लोगों को फांसी दे दी है। तेहरान ने संघर्ष विराम के एक दिन बाद जहां 3 मोसाद जासूसों को फांसी दी वहीं सेना ने 700 से अधिक इराकी संबंध रखने वाले जासूसों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा ईरान ने यह भी कहा है कि सुरक्षा एजेंसियें ने हाल के हफ्तों में तेहरान और अन्य शहरों में मोसाद एजेंटों द्वारा संचालित कई भूमिगत ड्रोन सुविधाओं को भी नष्ट कर दिया है। इन तीन मोसाद एजेंटों को ईरानी शहर उरमिया में फांसी दी गई। ईरानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को बरकरार रखा जिसके बारे में उनका कहना है कि यह व्यापाक कानूनी कार्रवाई के बाद हुआ था। तीनों लोगों की पहचान इदरीस अली, आजाद शोजाई और रसूल अहमद रसूल के रूप में हुई है। उन पर आरोप था कि तीनों लोगों ने इजरायल की मोसाद के सहयोग करके प्रतिष्ठित ईरानी हस्तियों के लिए ईरान के अंदर ही बम और विध्वंस के सामान की तस्करी की। ईरानी टीवी रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायिक रिकार्ड बताते हैं कि इन व्यक्तियों ने पड़ोसी देश में एक प्रमुख मोसाद एजेंट के माध्यम से पेय पदार्थों की तस्करी की और तदनुसार किसी ईरानी व्यक्ति की हत्या कर सकते थे। जैसा मैंने कहा ईरान ने मोसाद से बदला लेना शुरू कर दिया है और घर के अंदर दुश्मनों की सफाई शुरू कर दी है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 3 July 2025

ईरान और आईएईए के बीच तनातनी

ईरान और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने भरोसे की कमी और बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के डायरेक्टर जनरल रफाएल ग्रोसी की संभावित यात्रा से साफ इंकार कर दिया। अरागची ने यह भी साफ किया कि ईरान एक नया कानून लागू करने जा रहा है, जिसमें खास शर्तें पूरी होने तक आईएईए से सहयोग रोकने की बात है। उधर, ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ नाराजगी को देखते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसकी निंदा की है और आईएईए के काम का खुलकर समर्थन किया। आईएईए के लिए ईरान का यह सख्त रुख उसके परमाणु ठिकानों पर हुए इजरायल और अमेरिका के हमलों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिससे आगे परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ी निगरानी और ज्यादा पेचीदा हो सकती है। आईएईए प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने 24 जून को ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम की घोषणा के बाद अब्बास अरागची से मिलने और आईएईए-ईरान की बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने 26 जून को सरकारी चैनल आईआरआईएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा ः इस वक्त हमारा बिल्कुल भी कोई इरादा नहीं है कि हम रफाएल ग्रोसी को बुलाएं। वह हमारे परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इजरायल के हमलों से हुए ऩुकसान का आकलन करना चाहते हैं। उन्होंने कहा ग्रोसी ने अपनी रिपोर्ट में ईमानदारी से काम नहीं लिया। जब हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ तब एजेंसी ने उस हमले की निंदा तक नहीं की। अरागची ने यह भी बताया कि ईरान ने आईएईए के साथ सहयोग रोकने के लिए एक नया कानून पारित किया है। इस मामले पर एक विधेयक संसद से पास हुआ, गार्डियन काउंसिल से मंजूरी भी मिल गई है और अब यह कानून बन चुका है, जिसे हमें मानना ही पड़ेगा। अमेरिका ने ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ उठ रही आवाजों पर सख़्त रुख़ अपनाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा-ईरान में आईएईए के महानिदेशक रफाएल ग्रोसी की गिरफ्तारी और फांसी की मांगें अस्वीकार्य हैं और इनकी निंदा की जानी चाहिए। हम ईरान में आईएईए के अहम जांच और निगरानी काम का समर्थन करते हैं। बता दें कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जिसे दुनिया के एटम्स फॉर पीस एंड डवेलपमेंट के नाम से भी जाना जाता है। यह परमाणु क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मुख्य केंद्र है, जो अपने सदस्य देशों और दुनियाभर के कई साझेदारों के साथ मिलकर परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, भरोसेमंद और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। 2018 में अमेरिका के इस संगठन से बाहर होने के बाद और नए प्रतिबंधों के बाद ईरान ने समझौते की शर्तों का पालन कम कर दिया। उसने यूरेनियम संवर्धन की सीमा बढ़ा दी। अमेरिका के ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी के बाद अब यह संभावना तय है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा और जल्द ही हमें यह जानकारी मिल सकती है कि ईरान अब परमाणु शक्ति बन गया है और जिस दिन यह घोषणा हुई उसी दिन से पूरी दुनिया की राजनीति बदल सकती है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 1 July 2025

भारत में एफ-35बी का उतरना रहस्यमय

केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर कुछ दिन पहले शनिवार के दिन रात एक अत्याधुनिक ब्रिटिश स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 बी की इमरजैंसी लैंडिंग ने न सिर्फ हमारी सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अटकलों का बाजार भी गर्म कर दिया। यह वहीं एफ-35 बी है जिसे अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है और जो नाटो देशों का राजनीतिक हथियार माना जाता है। यह अमेरिका का सबसे आधुनिक पांचवीं जेनरेशन का एडवांस जैट फाइटर है, जिसे अमेरिका भारत को बेचने का प्रयास व दबाव डाल रहा है। लैंडिंग का कारण ः ईंधन या तकनीकी गड़बड़ी या फिर भारत की जासूसी? शुरुआती रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि विमान का ईंधन खत्म होने के कारण इसे लैंडिंग करनी पड़ी। लेकिन बाद में सामने आया कि हाइड्रोलिक सिस्टम में गंभीर खराबी भी आ गई थी और यह तकनीकी गड़बड़ी इतनी गंभीर थी कि अब तक विमान उड़ान नहीं भर सका है और अभी भी तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर खड़ा है। रायल नेवी के युद्धपोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स से रातोंरात विशेषज्ञों को हेलीकॉप्टर के जरिए भेजा गया ताकि मरम्मत तुरन्त शुरू हो सके। लैंडिंग के बाद विमान से एक पल के लिए भी दूर नहीं होना चाहता पायलट। जब तकनीकी की टीम नहीं पहुंची वह एयरसाइड पर ही विमान के पास एक कुर्सी पर बैठा रहा। इसी दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटिड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ने विमान को ट्रैप करके उसकी पहचान कर ली। इस एफ-35 बी को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग साजिश की थ्योरी चल रही है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों और वेरिफाइड अकांट्स का कहना है कि यह भारतीय वायु सुरक्षा प्रणाली की परख भी हो सकती हैö जैसे यह देखना कि भारत के राडार इस स्टेला विमान को पकड़ सकते हैं या नहीं? विशेषकर जब तक भारत में हाल ही में आपरेशन सिंदूर के तहत चीन और पाकिस्तान के पास आए ड्रोन और मिसाइलों को रोककर अपनी एयर डिफेंस क्षमता का प्रदर्शन किया है। क्या इमरजेंसी थी या? कोई रणनीतिक योजना? इस सवाल का कोई आधिकारिक जवाब अब तक नहीं मिला है। लेकिन भारत की सतर्कता ने एक बात तो साफ कर दी कि भारतीय एयरफोर्स और एटीसी की प्रतिािढया तेज, सटीक और पेशेवर थी। ब्रिटिश नौसेना पहले जैट को हैंगर में नहीं ले जाना चाहती थी। उन्हें डर था जैट की तकनीकी जानकारी दूसरे लोग देख सकते हैं। दो सप्ताह इंकार के बाद ब्रिटेन ने आखिरकार फंसे विमान को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के हैंगर में शिफ्ट करने की सहमति दे दी। ब्रिटिश नेवी को डर है कि कहीं भारत या दूसरे मित्र देश (रूस) जैट की खास तकनीक को न देख सकें और उसे एनालाइन करके कापी न कर लें। एफ-35बी पांचवीं पीढ़ी का अमेरिकी निर्मित रटेल्स फाइटर जेट है और सबसे उन्नत स्टेन्थ फाइटर जेट है। इतिहास का सबसे महंगा फाइटर जेट प्रोग्राम है। एफ-35बी मल्टी रोल वाला विमान है और ये हवाई, जमीनी जंग में मदद और इलैक्ट्रोनिक युद्ध में महारत रखता है। ये इलैक्ट्रानिक युद्ध, खुफिया जानकारी जुटाने, हवा से जमीन और एयर टू एयर में एक साथ मिशन चलाने की क्षमता रखता है। इसके सैंसर से जमा हुई जानकारी अपने कमांड सेंटर को सुरक्षित भेज सकता है। - अनिल नरेन्द्र