Thursday, 1 May 2025

जरूरत है सैनिक, आर्थिक, कूटनीतिक दबाव बनाने की

यह लड़ाई अब हिंदू-मुसलमान के बीच नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर गहरी नाराजगी जताई है। भागवत का मानना है कि यह हमला एक जघन्य कृत्य था, जिसमें आतंकवादियों ने न केवल निर्दोष नागरिकों की हत्या की, बल्कि धर्म के नाम पर हत्याएं की। हमारे सैनिकों या नागरिकों ने कभी भी किसी से उसका धर्म नहीं पूछा, लेकिन आतंकवादियों ने धर्म पूछकर लोगों की हत्या की। हिंदू कभी ऐसा नहीं करेगा। भागवत ने इस हमले पर गुस्से और शोक का इजहार करते हुए यह भी कहा कि राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना। आज पूरा देश एक जुट है और जवाबी कार्रवाई की मांग कर रहा है। हमारा मानना है कि हमें ऐसा कड़ा जवाब देना चाहिए जो आतंक परस्त पाकिस्तान को सदियों तक याद रहे। मुट्ठी भर आतंकियों या उनके कैम्पों को तबाह करने से कुछ नहीं होगा। हमें इस पाक प्रायोजित आतंकवाद की जड़ में जाना होगा और उसे तबाह करना होगा। आतंकवाद की जड़ में है पाकिस्तान की सेना और उसकी आईएसआई। हमें इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। इस पाक मिलिट्री एस्टेबलिशमेंट को ऐसा करारा तमाचा मारना होगा कि वो आगे से ऐसे हमले करवाने से पहले दस बार सोचे। पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमला खुफिया विफलता के कारण हुआ और इसके लिए उच्चतम स्तर पर जवाबदेही तय करने की मांग की। देश के 18वें सेना प्रमुख रहे रॉय चौधरी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, मुझे खुफिया विफलता का संदेह है। किसी को तो इस चूक के लिए जवाब देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पहलगाम हमले के पीछे पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका है। लश्कर-ए-तैयबा के छद्म संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है। यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान पर भारत सरकार के कूटनीतिक प्रतिबंध पर्याप्त नहीं हैं, रॉय चौधरी ने कहा कि कूटनीतिक कदम पर्याप्त नहीं हैं। प्रतिरोध के उपाय करने होंगे। वे जिस रूप में सामने आते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। पारंपरिक उपाय पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा, हमें भी उसी तरह से प्रतिक्रिया देनी होगी। मैं इसे केवल इसी तरह देखता हूं। वायुसेना के पूर्व प्रमुख अरुप राहा ने पहलगाम हत्याकांड के मद्देनजर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य अभियान चलाने की बात कही और उरी व पुलवामा हमलों के बाद किए गए हमलों का हवाला देते हुए कहा कि भारत ने उन मिथक को तोड़ दिया है कि परमाणु शक्ति संपन्न देश युद्ध नहीं लड़ सकते। राहा ने कहा, यह जरूरी है कि भारतीय सुरक्षा बल फिर से वैसे हमले करें, ताकि हमारे दुश्मानों को पता चले कि उनका किससे पाला पड़ा है। यह समय की मांग है। पूरा देश आज मांग कर रहा है कि भारत सख्त कार्रवाई करे। पानी रोकने समेत कूटनीतिज्ञ फैसलों से काम नहीं चलेगा। भारत के पास पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पर आतंकवाद का जवाब देने और उसे रोकने के लिए राजनयिक, आर्थिक, रणनीतिक और कानूनी जैसे कई विकल्प मौजूद है। सबसे पहले भारत को पाकिस्तान के प्रति वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक अलगाव की नीति अपनानी चाहिए जिससे पाकिस्तान को अलग-थलग किया जा सके। आतंकवाद के खिलाफ भारत की चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखने वाले देशों के साथ गठबंधन मजबूत कर पाक को आतंकवाद प्रायोजक करने के लिए वैश्विक समर्थन जुटाना चाहिए। आज भारत सैन्य रूप से काफी शक्तिशाली राष्ट्र है। हमें गुलाम कश्मीर के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना के महत्वपूर्ण ठिकानों में आतंकी कैंपों और नेटवर्क को तबाह करना चाहिए। हालांकि हमें देखना होगा कि आज पाकिस्तान बहुत कमजोर हो चुका है। आर्थिक रूप से वह दिवालिया हो चुका है। अफगानिस्तान और ब्लूचिस्तान में उसके अलग मोर्चे खुले हुए हैं। बेशक वह घबराहट में परमाणु युद्ध की गीदड़ भबकी देर रहा है। पर सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि वह ऐसा नहीं कर सकता। उसने कारगिल युद्ध के दौरान भी ऐसी धमकियां दी थी। कुछ लोगों को खतरा है कि कहीं चीन पाकिस्तान की ओर न आ जाए। ऐसा नहीं होगा। चीन ऊपर-ऊपर से कोरा समर्थन करता रहेगा पर वह भारत से बढ़ते व्यापार को कभी नजरअंदाज नहीं कर सकता। अमेरिका और रूस भी बीच में नहीं कूदेगा। कुल मिलाकर भारत सरकार को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। पूरे देश की यह मांग है और पाकिस्तान के आतंकवाद को मिटाने में सब एक मत हैं, एक जुट हैं। बस इंतजार है निर्णायक कदमों को उठाने का। -अनिल नरेन्द्र

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