सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि असुरक्षित लोगों के आधार पर अभिव्यक्ति की आजादी को नहीं आंका जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा जरूरी है क्योंकि इसके बिना सम्मानजनक जीवन जीना असंभव है। सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी को लोकतंत्र का अहम अंग बताते हुए कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात में दर्ज एफआईआर रद्द कर दी। कोर्ट ने कहा, भले बड़ी संख्या में लोग किसी के विचार को नापसंद करते हों, पर उसके विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान व संरक्षण होना चाहिए। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा, 75 वर्ष पुराना लोकतंत्र इतना कमजोर नहीं कि किसी कविता या कॉमेडी से समाज में शत्रुता या घृणा फैले। यह कहना कि किसी कला या स्टैण्डअप कॉमेडी से नफरत फेल सकती है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल देगा। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ कांग्रेस से सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ सोशल मीडिया पर भड़काऊ गीत का संपादित वीडियो पोस्ट करने के मामले में गुजरात पुलिस की एफआईआर को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने जोर देकर कहा, भाषण व अभिव्यक्ति की आजादी प्रतिबंधों से ऊपर है। भारतीय न्याय संहिता की धारा-196 के तहत धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए अपराध के किसी व्यक्ति के बोल या लिखे गए शब्दों के प्रभाव को मजबूत दिमाग वाले दृढ़ व साहसी व्यक्ति के मानकों के आधार पर विचार करना होगा। इसे उन लोगों के समर्थन के आधार पर नहीं आंका जा सकता, जो कमजोर व अस्थिर दिमाग वाले हैं, जिनमें सदैव असुरक्षा की भावना होती है या जो हमेशा आलोचना को यानि ताकत व पद के लिए खतरा मानते हैं। पीठ ने कहा, लोगों या उनके समूहों के विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति स्वस्थ व सभ्य समाज का अभिन्न अंग है। विचारों व दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति की आजादी के बिना, संविधान के अनुच्छेद-21 में दी गई गारंटी वाला सम्मानजनक जीवन असंभव है। पीठ ने कहा, यह सुनिश्चित करना कोर्ट का परम कर्तव्य है कि संविधान व इसके आदर्शों का उल्लंघन न हो। गुजरात हाईकोर्ट के 17 जनवरी के आदेश को इमरान ने चुनौती दी थी। जिसमें उन पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि जांच शुरुआती चरण में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अभिव्यक्ति की आजादी के संरक्षण को सर्वोपरि बताया और साफ किया कि किसी भी बयान या लेख की व्याख्या तार्किक और दृढ़ व्यक्ति की दृष्टि से होनी चाहिए न कि उन लोगों के अनुसार जो असुरक्षा के चलते आलोचना को खतरा मानते हैं। साथ ही धारा-196 के तहत जांच प्रक्रिया को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया गया ताकि अनावश्यक मुकदमों से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन न हो। हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि भविष्य में सभी संबंधित पक्ष इसको ध्यान में रखेंगे और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नाजायज तरीके से दबाने का प्रयास नहीं करेंगे।
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