Tuesday, 8 April 2025
न्यायपालिका में पारदर्शिता जरूरी है
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने पर जो सहमति जताई है उसका हम स्वागत करते हैं। इसके पीछे कारण जो भी हो, वह सही दिशा में सही कदम है। इससे न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने में मदद मिलेगी जोकि पिछले कुछ दिनों में विवादों में आ गई है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के उपायों में पारदर्शिता को एक लंबे समय से अहम कड़ी माना जाता रहा है। पीठ की एक बैठक में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने अपनी सहमति का खुलासा करने का निर्णय लिया और इसका विवरण सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा मामले के बाद उठाया गया है। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना के बाद कथित तौर पर नकदी की जली हुई गड्डियां मिलीं थीं। विवाद के बाद उनका तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उनका तबादला नकदी मिलने के विवाद से संबंधित नहीं था। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया गया है कि न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक काम न सौंपा जाए। मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की अतिरिक्त जांच समिति कर रही है। जिसमें तीन जज हैं। इसी बीच जले हुए कचरे में नकदी की मौजूदगी दिखने वाले वीडियों को भी सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक किया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशंस के पूर्व अध्यक्ष आदेश अग्रवाल ने न्यायाधीशों की संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करने के निर्णय की प्रशंसा की है। उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस कदम के बाद उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी इस तरह का कदम उठाएंगे। देश में सुप्रीम कोर्ट को ऐसी संस्था के रूप में देखा जाता है जो आम, गरीब, बेसहारा लोगों के लिए न्याय की आखिरी उम्मीद है। फिर भी जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर कथित तौर पर जली हुई नोटों की गड्डियां मिलने जैसी घटनाओं और उनसे उपजे विवादों से कहीं न कहीं कुछ संदेह बनता है, पर विषय पुराना है कि न्यायाधीशों को भी अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी चाहिए। 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके अनुसार हर न्यायाधीशों को अपनी प्रापर्टी और देनदारी के बारे में मुख्य न्यायाधीशों को बताना होता है। बाद में एक और प्रस्ताव आया कि न्यायाधीश चाहें तो अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक कर सकते हैं। इस संबंध में एक संसदीय समिति भी अपनी एक रिपोट में यह कह चुकी है कि जजों की संपत्ति की घोषणा को अनिवार्य बनाने के लिए एक कानून लाना चाहिए। दरअसल, जब तक जजों की ओर से नियमित रूप से अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने की प्रािढया को संस्थागत रूप नहीं दिया जाएगा, तब तक इस संबंध में सिर्फ निजी स्तर पर की गई पहल या संकल्प के बूते इसमें निरंतरता बनाए रखना मुश्किल होगा। जहां हम मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के इस फैसले का स्वागत करते हैं वहीं यह भी कहना चाहेंगे कि न्यायपालिका के कामकाज में कई स्तर पर सुधार की जरूरत है। वर्तमान परिदृश्य में न्यायपालिका की निष्पक्ष एवं स्वतंत्र भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गई है।
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