Friday, 10 February 2023
सरकार की आलोचना अपराध नहीं है
जामिया हिसा मामले में दिल्ली की निचली अदालत ने शरजील इमाम सहित 11 लोगों को आरोपमुक्त करते हुए सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि जांच एजेंसियों को विरोध करने और बगावत के बीच फर्व को समझना होगा। असहमति और वुछ नहीं बल्कि अनुच्छेद-19 के तहत अभिव्यक्ति के अमूल्य मौलिक अधिकार का ही रूप है, जो वाजिब रोक के दायरे में है। असहमति और विरोध प्रादर्शन को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कईं बार टिप्पणी कर चुकी है। 28 अगस्त 2018 को भीमा कोरेगांव हिसा मामले में पांच मानवाधिकार कार्यंकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मामला व्यापक है, आरोप है कि आप असहमति को वुचलना चाहते हैं। असहमति लोकतंत्र का सेफ्ट वॉल्व है और अगर आप इसकी इजाजत नहीं देंगे तो प्रोशर वॉल्व फट जाएगा। तीन जून 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने जर्नलिस्ट विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह के केस को खारिज कर दिया और तब कहा था कि सरकार की आलोचना का दायरा तय है और उस दायरे में आलोचना राजद्रोह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केदारनाथ से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट ने जो पैसला दिया था उस पैसले के तहत हर पत्रकार प्राोटेक्शन का हकदार है। हमारा मत है कि याचिकाकर्ता विनोद दुआ पर राजद्रोह और अन्य धाराओं के तहत कार्यंवाही अन्यायपूर्ण होगी। कोईं भी कानूनी कार्यंवाही अनुच्छेद-19(1)(ए) के तहत विचार अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उल्लंघन होगा। 1962 में दिए पैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर नागरिक को सरकार के व््िरायापालन यानि कामकाज पर टिप्पणी करने और आलोचना करने का अधिकार है। आलोचना का दायरा तय है और उस दायरे में आलोचना करना राजद्रोह नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि आलोचना ऐसी हो जिसमें पब्लिक ऑर्डर खराब करने या हिसा पैलाने की कोशिश न हो। 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ बनाम बिहार सरकार के वाद में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्राशासन पर कमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। 1995 में बलवंत सिह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्प नारेबाजी से राजद्रोह नहीं हो सकता। वैजुअल तरीके से कोईं नारेबाजी करता है तो वह राजद्रोह नहीं माना जाएगा। राजद्रोह तभी बनेगा जब नारेबाजी के बाद विवाद पैदा हो जाए और समुदाय में नफरत पैले। तीन मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार के मत से अलग विचार की अभिव्यक्ति करना राजद्रोह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला के बयान पर उनके खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की थी। याचिका में कहा गया था कि फारुख अब्दुल्ला ने 370 को बहाल करने का जो बयान दिया है, वह राजद्रोह है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment