Tuesday 21 February 2023

सरकार को सुप्रीम झटका

अडाणी-हिडनबर्ग मामले में नियामक संस्था सेबी के कामकाज की निगरानी के लिए विशेषज्ञों की समिति न्यायालय खुद बनाएगी। समिति की नियुक्ति से जुड़े मुद्दे पर प्राधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की पीठ ने शुव््रावार को अपना पैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में आदेश जारी करेगी, जिसमें समिति के बारे में जानकारी दी जाएगी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि वह वेंद्र द्वारा समिति के सदस्यों के लिए नामों के प्रास्ताव को सीलबंद लिफापे में स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि अदालत इस मामले में पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहती है। अदालत ने कहा कि समिति इस पर काम करेगी कि इस तरह के मामलों में आम निवेशकों के हितों की रक्षा वैसे हो व इसके लिए सुरक्षा नियामक को मजबूत वैसे किया जाए। दरअसल शेयर बाजार के लिए नियामक उपायों को मजबूत करने के मामले में विशेषज्ञ समिति के मुद्दे पर सरकार ने अदालत को सुझावों को सीलबंद लिफापे में देने का प्रास्ताव रखा था, जिससे न्यायालय ने अब साफ इंकार कर दिया है। पीठ में प्राधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। उच्चतम न्यायालय कांग्रोस नेता जया ठावुर की याचिका पर सुनवाईं कर रहा था। याचिका में शीर्ष अदालत के किसी मौजूदा न्यायाधीश की देखरेख में जांच कराने का अनुरोध किया गया था। जया ठावुर की याचिका में बड़ी मात्रा में लोगों का धन अडाणी उपव््रामों में निवेश करने में भारतीय जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक की भूमिका की जांच के लिए दिशानिर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। वेंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत किसी पूर्व न्यायाधीश को सुझाव पर तामील के लिए नियुक्त कर सकती है। लेकिन बस ऐसा न हो कि शेयर बाजार पर कोईं प्राभाव पड़े। पीठ ने कहा कि हम निवेशकों की सुरक्षा के लिए पूर्ण पारदर्शिता चाहते हैं। हम एक समिति बनाएंगे। अदालत के प्राति भरोसे की भावना होगी। प्राधान न्यायाधीश ने कहा (उच्चतम न्यायालय) के मौजूदा न्यायाधीश मामले की सुनवाईं कर सकते हैं और वह समिति का हिस्सा नहीं हो सकते हैं। अमेरिकी वंपनी हिडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडाणी समूह की वंपनियों पर धोखाधड़ी और शेयर के मूल्यों में पेरबदल करने के लगाए आरोपों को किसी समिति या उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में बड़ी वेंद्रीय एजेंसियों से जांच कराने वाली एक और याचिका गुरुवार को अदालत में दाखिल की गईं है। वेंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत किसी पूर्व न्यायाधीश को सुझाव पर तामील के लिए नियुक्त कर सकती है। लेकिन बस ऐसा न हो कि शेयर बाजार पर कोईं प्राभाव पड़े। लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को आपने कमेटी का अधिकार क्षेत्र के सुझाव संबंधी दस्तावेज नहीं मुहैया कराए हैं। हम पूरी तरह से पारदर्शिता चाहते हैं। पीठ ने कहा—हम सीलबंद लिफापे में वेंद्र के सुझावों को स्वीकार नहीं करेंगे, हम पारदर्शिता सुनिाित करना चाहते हैं। जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ब्यूरोव््रोसी या ज्यूडिश्यरी से जुड़े लोगों को शीर्ष पद छोड़ते ही सरकारी या राजनीतिक पद हासिल करना चाहिए या नहीं। इस पर एक बार फिर बहस शुरू हो गईं है। बहस के वेंद्र में हैं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जिन्हें रिटायर होने के चन्द दिनों के बाद ही आंध्र प्रादेश का राज्यपाल बना दिया गया। मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले जस्टिस नजीर इस साल चार जनवरी को अपने पद से रिटायर हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए वह कईं अहम पैसले देने वाली खंडपीठ में शामिल रहे हैं। नवम्बर 2019 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर ऐतिहासिक पैसला देने वाली बेंच में भी जस्टिस नजीर शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने तीन तलाक को अवैध ठहराया था, उसमें भी जस्टिस नजीर शामिल थे। जस्टिस नजीर को राज्यपाल बनाए जाने के पैसले पर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं लेकिन जस्टिस नजीर ऐसे पहले जज नहीं हैं, जिन्हें रिटायर होने के बाद अहम पद मिला है। साल 2014 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था। वह सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद अपने गांव लौट गए थे। उनका कार्यंकाल निर्विवाद रहा और उन्होंने कईं अहम पैसले दिए। हाल ही में भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रजन गोगोईं को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने मार्च 2020 में राज्यसभा के लिए नामित किया था। 2019 में अयोध्या विवाद पर पैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच की अध्यक्षता रंजन गोगोईं ने ही की थी। इसके अलावा उन्होंने रापेल सौदे की समीक्षा और राहुल गांधी के खिलाफ अदालत की अवमानना के मामलों की भी सुनवाईं की। रापेल सौदे में सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे लेकिन रंजन गोगोईं की बेंच ने रापेल सौदे की जांच को लेकर दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। जस्टिस रंजन गोगोईं ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 रद्द कर दिए जाने के बाद दायर की गईं बंदी प्रात्यक्षीकरण याचिका को भी खारिज कर दिया था। यह मामला सिर्प जजों के सरकारी पदों पर नियुक्ति तक सीमित नहीं है। चुनाव से ठीक पहले आईंएएस-आईंपीएस अधिकारी भी नौकरी छोड़कर चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं। आरोप लगाते रहे हैं कि कईं बार अपनी सेवा के अंतिम दिनों में राजनीतिक आकांक्षाओं के कारण ऐसे नौकरशाह खास राजनीतिक दल के नजदीक हो जाते हैं, जिससे इनकी निष्ठा भी प्राभावित होती है। रिटायरमेंट के तुरन्त बाद राजनीति में प्रावेश के मामले में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों का शुरू से विरोध रहा है। चुनाव आयोग ने इसे गलत परंपरा मानते हुए रिटायरमेंट के बाद कम से कम दो साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का प्रास्ताव किया है। इसे वूलिंग ऑफ पीरियड भी कहा जाता है। आयोग का तर्व था कि रिटायरमेंट के बाद प्राइवेट वंपनियों में भी काम करने के लिए वूलिंग ऑफ पीरियड दो साल होता है। हालांकि 2015 में इसमें बदलाव करते हुए दो साल से घटाकर एक साल कर दिया गया था। कांग्रोस और विपक्षी दलों का कहना है कि जस्टिस अब्दुल नजीर को सरकार के हक में महत्वपूर्ण केसों में अहम पैसले देने में योगदान के लिए पुरस्वृत किया गया है। ——अनिल नरेन्द्र

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