Tuesday, 28 February 2023
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल?
मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईंसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति सेवा की शर्ते और पदावधि) विधेयक के तहत कानून मंत्री की अध्यक्षता में दो सदस्यों को शामिल करते हुए एक खोज समिति गठित करने का प्रावधान किया गया है। समिति में शामिल दोनों सदस्य सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे। यह समिति सीईंसी या ईंसी के रूप में नियुक्ति के लिए पांच नाम सुझाएगी।
इन नामों पर प्राधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति विचार कर नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को भेजेगी। बिल में सीईंसी और ईंसी की तीन सदस्यों वाली नियुक्ति कमेटी में सीजेआईं (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) की जगह वैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है। कांग्रोस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि वेंद्र सरकार स्वतंत्र चुनाव आयोग नहीं चाहती है। बिल की कवायद सरकार द्वारा चुनाव आयोग पर कब्जा कर इसे जेबी संस्था बनाना है। सुरजेवाला ने जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में इस बारे में दिए गए आदेश को पढ़ना शुरू किया तो सभापति जगदीप धनखड़ ने उन्हें रोक दिया। सांसद ने कहा कि संसद कानून बनाने वाली संस्था है और आप (सुरजेवाला) भी इसके सदस्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में अपने पैसले में कहा था कि चयन समिति में पीएम, नेता विपक्ष और देश के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने संसद में कानून बनने तक यही मानदंड लागू करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोहिग्टन नरीमन ने वर्तमान प्रावधानों पर चिता जताईं है। उनका कहना है कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्राधानमंत्री, एक वेंद्रीय मंत्री और एक विपक्ष के नेता की चयन समिति द्वारा की जाती है तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कल्पना बनकर रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो अदालत को इसे निरस्त कर देना चाहिए। अब नियुक्तियां विशुद्ध राजनीतिक होंगी। सरकार ने दावा किया कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार किया गया है। यह केवल आधा सच है, इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्राव््िराया तैयार करने का सुझाव दिया। कहा गया कि इसके तहत पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता और सीजेआईं चयन करेंगे, जिससे नियुक्तियों में विश्वास और मतदाता की नजर में आयोग का दावा मजबूत हो। लेकिन पारित बिल में सरकार ने प्राधान न्यायाधीश को प्राव््िराया से बाहर रखा है। समिति में भले ही विपक्ष की उपस्थिति है, लेकिन यह भागीदारी औपचारिक होगी। ऐसे में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता महत्वपूर्ण है, जो एक मजबूत लोकतंत्र का वेंद्र है। जाहिर है, आयोग में होने वाली नियुक्तियों को लेकर विश्वसनीयता का संकट उचित है। चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि देश में जहां भी चुनाव हो वहां स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराया जाए।
अकेले चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि निर्वाचन प्राणाली पर जनता का यकीन कायम रहना लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद जरूरी है।
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