Tuesday, 22 August 2023
मनमानी गिरफ्तारी, सम्पत्ति गिराने पर राहत
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ ने कहा है कि मनमाने ढंग से गिरफ्तार किए गए लोगों या सम्पत्ति को गिराए जाने या गैर-कानूनी तरीके से अटैक किए जाने जैसी कार्रवाईं में न्यायिक व्यवस्था में राहत मिलनी चाहिए। गत मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के स्वतंत्रता दिवस समारोह में उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की वास्तविक ताकत यही है कि उस तक आम आदमी की सरल पहुंच है। सीजेआईं ने कहा कि अदालतें जीवन और आजादी के लिए संरक्षण हासिल करने की सुरक्षित लोकतांत्रिक जगह है। उनकी टिप्पणी को हाल के दिनों में आरोपियों या उनके परिवारों के मकान आदि सम्पत्ति को अवैध घोषित कर गिराने की कार्रवाइयों के सिलसिले में देखा जा रहा है। सीजेआईं ने कहा—न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय तक पहुंचने में आने वाली बाधाओं को खत्म करना है। साथ ही कहा कि अदालतों की कार्यंक्षमता इस बात पर निर्धारित होती है कि वह संवैधानिक कर्तव्य का कितना प्राभावी ढंग से जवाब दे सकते हैं। अंतिम व्यक्ति तक न्याय की पहुंच पर जोर देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा—जब मैं भविष्य की ओर देखता हूं, मेरा मानना है कि भारतीय न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय तक पहुंचने में आने वाली बाधाओं को खत्म करना है। उन्होंने कहा—हमें उन बाधाओं को दूर करके प्राव््िरायात्मक रूप से न्याय तक पहुंच बढ़ानी होगी जो नागरिकों को अदालतों में जाने से रोकता है, हमारे पास यह सुनिाित करने के लिए रोड मैप है कि भविष्य की भारतीय न्यायपालिका समावेशी हो और कतार के अंत में खड़े व्यक्ति तक पहुंचे। सीजेआईं चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की विस्तार योजना के बारे भी बताया। इसके तहत 27 अतिरिक्त अदालतों, 57 न्यायाधीशों के कक्ष, चार रजिस्ट्रार के कक्ष, 16 सब-रजिस्ट्रार कक्ष और वकीलों और वादियों के लिए अन्य आवश्यक सुविधाओं को समायोजित करने के लिए एक, नईं इमारत शामिल है। सुप्रीम कोर्ट की कार्यंप्राणाली में कईं तकनीकी बदलावों को शामिल करने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा—न्यायिक प्राव््िरायाओं से जुड़ी अक्षमता और अस्पष्टता को खत्म करने के लिए टेक्नोलॉजी हमारे पास सबसे अच्छा उपकरण है। उन्होंने कहा—हम न्याय में प्राव््िरायात्मक बाधाओं को दूर करने के लिए टेक्नोलॉजी की पूरी क्षमता का उपयोग करना होगा। साथ ही बताया कि इसके लिए ईं-कोर्ट परियोजना का, तीसरा चरण लागू हो रहा है। जल्दी ही न्यायिक निर्णय लेने में रूढ़िवादिता से निपटने के लिए एक हैंडबुक जारी होगी।
——अनिल नरेन्द्र
संविधान बदलने पर छिड़ा विवाद
प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईंएएसी) के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने एक अखबार में भारत के लिए नए संविधान की मांग करते हुए लिखा था। इस लेख पर विवाद बढ़ा तो प्राधानमंत्री पैनल से सफाईं पेश करते हुए खुद को और वेंद्र सरकार को इससे अलग कर लिया।
ईंएएसी-पीएम ने सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा—डॉ. विवेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वो किसी भी तरह से ईंएएसी या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाता। ईंएएसी-पीएम भारत सरकार खासकर प्राधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गईं बॉडी है। इसमें उन्होंने लिखा था—अब हमारे पास वह संविधान नहीं है जो हमें 1950 में विरासत में मिला था। इसमें संशोधन किए जाते हैं और हर ब ार वो बेहतरी के लिए नहीं होते, हालांकि 1973 से हमें बताया गया कि इसकी बुनियादी संरचना को बदला नहीं जा सकता है। भले ही संसद के माध्यम से लोकतंत्र वुछ भी चाहता हो, जहां तक मैं इसे समझता हूं, 1973 का निर्णय मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, मगर नया संविधान होगा तो यह विषय उस पर लागू नहीं होगा। देबरॉय ने एक स्टडी के हवाले से बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल महज 17 साल होता है।
भारत के वर्तमान संविधान को औपनिवेशक विरासत बताते हुए उन्होंने लिखा—हमारा वर्तमान संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इसका मतलब है कि यह एक औपनिवेशक विरासत है। मुझे लगता है कि हमें संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि यह विवादास्पद है क्योंकि समय-समय पर दुनिया का हर देश संविधान पर पुनर्विचार करता है। हमने ऐसा संशोधन के जरिये किया है। देबरॉय के इस लेख की आलोचना की जा रही है। कईं नेता और सांसद इस पर प्रातिव््िराया दे रहे हैं। लालू प्रासाद यादव ने भी इस लेख पर कहा है कि क्या यह सब वुछ पीएम की मजा से हो रहा है। ट्विटर पर लिखा—प्राधानमंत्री मोदी का कोईं आर्थिक सलाहकार है बिबेक देबरॉय। वह बाबा साहेब के संविधान की जगह नया संविधान बनाने की वकालत कर रहा है। क्या प्राधानमंत्री की मजा से यह सब कहा और लिखा जा रहा है? सीपीएम सांसद जॉन विटॉस लिखते हैं कि विवेक देबरॉय नया संविधान चाहते हैं। उनकी मुख्य समस्या संविधान के बुनियादी ढांचे में दर्ज समाजवादी, सेक्युलर, लोकतांत्रिक जैसे शब्दों से है। हकीकत में वह हिन्दू राष्ट्र की वकालत करते हैं।
अगर उन्होंने इसे निजी हैसियत से लिखा है तो अपना पद लेखक के साथ क्यों लिखा? साल 2017 में तत्कालीन वेंद्रीय राज्यमंत्री अनंत हेगड़े ने भी संविधान बदलने को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि भाजपा संविधान बदलने के लिए सत्ता में आईं है और निकट भविष्य में ऐसा किया जाएगा।
हम यहां संविधान को बदलने के लिए आए हैं। हम इसे बदल देंगे।
Thursday, 17 August 2023
सवाल न्याय के मंदिर की सुरक्षा का
दिल्ली की अदालतों में गोलीबारी की हालिया घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने देशभर के प्रात्येक न्यायिक परिसर में स्थायी अदालत सुरक्षा ईंकाइयों (सीएसयू) की तैनाती सहित एक सुरक्षा योजना की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अदालत ने कहा कि न्याय के मंदिर में ही सुरक्षा कवच का अभाव है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाओं से न केवल न्यायाधीशों बल्कि वकीलों, अदालत के कर्मचारियों, वादियों और आम जनता की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करती है। न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि न्यायिक संस्थान सभी हितधारकों की भलाईं की रक्षा के लिए व्यापक कदम उठाएं। न्याय प्रादान करने वाले ही जब असुरिक्षत होंगे तो वादी अपने लिए न्याय की क्या उम्मीद कर सकते हैं? पीठ ने कहा कि सीसीटीवी वैमरों सहित आधुनिक सुरक्षा कवच व उपाय होने के बावजूद अदालत की सुरक्षा खामियां अकसर उजागर होती रहती हैं। सीसीटीवी लगाने की रूपरेखा जिलावार आधार पर बनानी होगी, जहां संबंधित राज्य सरकारों को ऐसी योजनाओं के व््िरायान्वयन के लिए समय पर आवश्यक धन उपलब्ध कराना चाहिए। उच्च न्यायालय संबंधित जिला और सत्र न्यायाधीशों को सीसीटीवी वैमरों की स्थापना और रखरखाव की जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। यह भयावह है कि राष्ट्रीय राजधानी में अदालत परिसर में पिछले एक साल में गोलीबारी की कम से कम तीन बड़ी घटनाएं देखी गईं हैं। इस साल जुलाईं में तीस हजारी कोर्ट में वकीलों के दो गुटों में फायरिग हुईं थीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालयों के प्रामुख सचिवों, प्रात्येक राज्य सरकार के गृह विभागों और राज्यों/वेंद्र शासित प्रादेशों के पुलिस महानिदेशकों या पुलिस आयुक्तों के परामर्श से एक सुरक्षा योजना तैयार करनी चाहिए। सुरक्षा योजना के तहत प्रात्येक अदालत परिसर में स्थायी न्यायालय सुरक्षा इकाईं स्थापित करने का प्रास्ताव शामिल हो सकता है। ऐसी प्रात्येक इकाईं के लिए सशस्त्र/निहत्थे कर्मियों और पर्यंवेक्षक अधिकारियों की तैनाती की जा सकती है। इससे सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होगी। हाल के दिनों में दिल्ली के कईं अदालती परिसरों में गोलीबारी की घटनाएं हुईं हैं। जुलाईं में तीस हजारी अदालत में वकीलों के दो गुटों के बीच गोलीबारी के अलावा अप्रौल में रोहिणी अदालत परिसर में वकीलों और उनके मुवक्किलों के बीच विवाद के बाद गोलीबारी की घटना हुईं थी। इसी महीने साकेत अदालत परिसर में वकील ने एक महिला को गोली मार दी थी। गिरोहबाज जितेन्द्र गोगी की सितम्बर 2021 में रोहिणी अदालत परिसर में दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
——अनिल नरेन्द्र
प्रियंका पर 41 एफआईंआर
मध्य प्रादेश सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर भाजपा ने शनिवार को इंदौर में कांग्रोस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ समेत अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराईं। मध्य प्रादेश में 41 से अधिक जगहों पर उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ है। इंदौर, ग्वालियर और अन्य शहरों में यह केस दर्ज किए गए हैं। इसे लेकर भाजपा काफी आव््रामक है। वहीं कांग्रोस भी मुंहतोड़ जवाब दे रही है। इंदौर के पुलिस आयुक्त मवंरद देउस्कर ने बताया कि मामले की जांच की दिशा तय करने के लिए एक्स से विवादास्पद पोस्ट को लेकर जानकारी मांगी जाएगी। उन्होंने बताया कि भाजपा के विधि प्राकोष्ठ की स्थानीय इकाईं के संयोजक नीमेष पाठक ने शिकायत की है कि ज्ञानेंद्र अवस्थी नाम के व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर कथित रूप से फजा पत्र सार्वजनिक किया, जिसमें ठेकेदारों से 50 प्रातिशत कमीशन मांगे जाने की बात लिखी गईं है।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि यह प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 469 (ख्याति को नुकसान पहुंचाने) के इरादे से जालसाजी के तहत दर्ज की गईं। मामले से जुड़ी विवादास्पद पोस्ट को लेकर एक्स से जानकारी मांगी जाएगी और इस ब्यौरे के आधार पर अगला कदम उठाया जाएगा। उधर कांग्रोस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि भाजपा सरकार का काम लोगों को डराना है, हम लोगों से कहना चाहते हैं कि डरे नहीं। कांग्रोस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि वह प््िरायंका गांधी, राहुल गांधी, खड़गे व कांग्रोस नेताओं के खिलाफ सैकड़ों एफआईंआर दर्ज कर सकते हैं, लेकिन हम इन सब चीजों से डरने वाले नहीं हैं। हम भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाएंगे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि जब ठेकेदार खुद लिख रहे हैं कि 50 प्रातिशत कमीशन लिया जाता है तो इससे ज्यादा क्या सुबूत चाहिए? मध्य प्रादेश में विधानसभा चुनावी साल में कथित ठेकेदार संगठन के कथित पत्र को पोस्ट करते हुए वरिष्ठ कांग्रोस नेताओं के ट्वीट के एक दिन बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान ने कांग्रोस और उसके नेताओं को निशाने पर लेते हुए कहा कि यह लोग सोशल मीडिया पर रणनीति के तहत झूठ और भ्रम पैलाने का प्रायास कर रहे हैं। श्री चौहान ने इस संबंध में एक कार्यंव््राम के दौरान अपने भाषण का वीडियो ट्विटर के जरिये पोस्ट किया है। इसमें श्री चौहान ने कहा कि कांग्रोस सकारात्मक, विकास, जनकल्याण के मामले में भाजपा सरकार का सामना नहीं कर सकती है, इसलिए सोशल मीडिया पर रणनीति के तहत झूठ और भ्रम पैलाने का पूरा प्रायास कर रही है। चुनाव करीब होने से मुख्यमंत्री चौहान को कर्नाटक की तरह इससे राजनीतिक नुकसान नजर आया इसलिए उन्होंने इस मामले में कार्यंवाही के खुद निर्देश दिए।
Sunday, 13 August 2023
चुनाव आयोग को कठपुतली बनाने की कोशिश
देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईंसी) और अन्य आयुक्तों (ईंसी) की नियुक्ति के लिए बने पैनल में अहम बदलाव से जुड़ा एक विधेयक गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया गया। बिल के मुताबिक सभी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्राधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और वैबिनेट मंत्री का तीन सदस्यीय पैनल करेगा। कानून के प्राभाव में आने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बैंच द्वारा दो मार्च, 2023 को दिया गया वह पैसला खारिज हो जाएगा जिसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्राधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पैनल की सलाह पर की जाएगी। तब कोर्ट ने साफ कहा था कि यह पैसला तब तक प्राभावी रहेगा, जब तक आयुक्तों की नियुक्ति वाला कानून नहीं बन जाता। इसीलिए सरकार ने पैसले के पांच महीने बाद कानून बनाने की पहल कर दी है। प्रास्तावित बिल के माध्यम से सियासी टकराव का एक और रास्ता खुल गया है। संसद के इसी सत्र में संसद ने दिल्ली ऑर्डिनेंस से जुड़ा बिल पास किया गया जिस पर विपक्ष का कहना था कि वेंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश जबरन पलट रही है। अब अगले वुछ दिनों में इस पर भी राजनीति तेज होगी। हालांकि सरकार का तर्व है कि चाहे दिल्ली से जुड़ा बिल हो या चुनाव आयोग में बदलाव वाला बिल, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप ही काम कर रही है। सरकार का तर्व है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह मानदंड तब तक प्राभावी रहेगा, जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोईं कानून नहीं बन जाता। हालांकि अगर कानून पास होता है तो इसकी कानूनी समीक्षा का भी रास्ता खुल सकता है। विपक्ष ने गुरुवार को प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि यह चुनाव निकाय को प्राधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रायास है। आम आदमी पाटा (आप) ने कहा की पीएम भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं और नियुक्त होने वाले चुनाव आयुक्त भाजपा के प्राति बफादार होंगे। वहीं तृणमूल कांग्रोस ने आरोप लगाया कि यह 2024 के चुनाव में धांधली की दिशा में एक स्पष्ट कदम है। कांग्रोस नेताओं ने सवाल किया, इसका मकसद चुनाव आयोग को अपनी कठपुतली बनाना है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि मौजूदा वेंद्र सरकार हमेशा कोर्ट के ऐसे किसी भी आदेश को पलट देगी जो उसे पसंद नहीं आएगा। यह एक खतरनाक स्थिति है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्राभावित हो सकती है।
तृणमूल कांग्रोस के राष्ट्रीय प्रावक्ता साकेत गोखले ने कहा कि भाजपा 2024 के चुनावों के लिए धांधली कर रही है। ईंसी की पूरी ताकत वेंद्र के हाथ में आ जाएगी क्योंकि पैनल में सरकार के दो सदस्य होंगे।
——अनिल नरेन्द्र
आपने भारत की हत्या की है
कांग्रोस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को मणिपुर में जारी हिसा के मुद्दे पर संसद में सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रास्ताव पर मोदी सरकार की तीखी आलोचना की। पिछले महीने 20 जुलाईं से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में राहुल गांधी का यह पहला भाषण था। इससे पहले तक मोदी सरनेम विवाद में अपनी संसद सदस्यता खोने की वजह से वह लोकसभा की कार्यंवाही में शामिल नहीं हो पा रहे थे। राहुल गांधी ने अपने 37 मिनट लंबे भाषण में से लगभग 50 प्रातिशत वक्त मणिपुर को दिया। भाषण की शुरुआत में उन्होंने अपनी भारत जोड़ो यात्रा और उससे मिले अनुभवों का जिव््रा किया। इसके बाद मणिपुर में जारी हिसा पर उन्होंने बोलना शुरू किया। उन्होंने कहा—मैं वुछ ही दिन पहले मणिपुर गया। हमारे प्राधानमंत्री आज तक नहीं गए क्योंकि उनके लिए मणिपुर हिन्दुस्तान नहीं है, मणिपुर को आपने दो भागों में बांट दिया है। अपने मणिपुर दौरे के दौरान मिले अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा—एक औरत ने मुझसे कहा कि उनका बेटा हिसा में मारा गया और वो उसकी लाश के साथ पूरी रात रहीं। वो अपना घर-बार छोड़कर आ गईं और उनके पास सिर्प अपने मारे गए बेटे की फोटो थी। मैं एक दूसरी औरत से मिला जिससे मैंने पूछा कि तुम्हार साथ क्या हुआ तो वो औरत कांपने लगी और बेहोश हो गईं। मैंने यह सिर्प दो उदाहरण दिए हैं। इन्होंने मणिपुर का नहीं बल्कि हिन्दुस्तान का कत्ल किया है। जब राहुल गांधी हिन्दुस्तान का कत्ल किए जाने की बात कर रहे थे तभी उनके साथ बैठे किसी सांसद ने भारत माता शब्द इस्तेमाल करने की ओर इशारा किया। इसके बाद राहुल ने कहा कि मणिपुर के लोगों की हत्या करके आपने भारत माता की हत्या की है। आपने यह करके देशद्रोह किया है। इस वजह से पीएम मोदी मणिपुर में नहीं जाते हैं। एक ओर मेरी मां यहां बैठी हैं और दूसरी मां को आपने मणिपुर में मारा है। भारत अहंकार को एकदम मिटा देता है। क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा में पहले दो-तीन में मेरे घुटने में दर्द शुरू हो गया। जब भी यह (घुटनों को लेकर) डर बढ़ता था तब कोईं न कोईं शक्ति आ जाती थी। इसके साथ ही उन्होंने रामायण का जिव््रा करते हुए कहा कि रावण की लंका को हनुमान ने नहीं, उसके अहंकार ने जलाया था। उन्होंने कहा—रावण दो लोगों की सुनता था, मेघनाथ और वुंभकरण। इसी तरह नरेंद्र मोदी जी दो लोगों की सुनते हैं—अमित शाह और अडानी की। लंका को हनुमान ने नहीं बल्कि रावण के अहंकार ने जलाया था। राम ने रावण को नहीं मारा था बल्कि रावण के अहंकार ने उसे मारा था। विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी ने जिस अंदाज में भाषण दिया, उसमें नैतिक साहस की झलक मिलती है। वह जो भी कह रहे थे दिल से कह रहे थे। राहुल गांधी ने जिस तरह भाषण दिया, उसमें आत्मविश्वास, नैतिक साहस और दृढ़निाय नजर आया। मणिपुर पर बोले तो दिल से बोले। एक खास बात देखने को मिली।
भाषण के दौरान सत्तापक्ष शोरशराबा, टोकाटाकी करता रहा, पर राहुल ने इनकी बिना परवाह करते अपना संबोधन जारी रखा। बिना कहीं अटके उन्होंने पूरी बात रखी। राहुल गांधी ने बेहद पैनेपन के साथ कम समय में अपनी पूरी बात रखी। अब राहुल उभरते हुए राजनेता की तरह दिखने लगे हैं।
Thursday, 10 August 2023
छोटी गड़बिड़यों पर अब जेल नहीं होगी
इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् कारोबार में छोटी-मोटी गड़बिड़यों के लिए अब जेल की सजा नहीं मिलेगी। लोकसभा ने कारोबार सुगमता बढ़ाने के लिए 42 अधिनियमों में संशोधन कर ऐसे मामलों में जेल की जगह जुर्माने का प्रावधान वाले जन विश्वास प्रावधान संशोधन विधेयक पर मुहर लगा दी है। विपक्ष के हंगामे के बीच लोकसभा में 65 अप्राचलित कानूनों को निरस्त करने वाले सिस्टम और संशोधन विधेयक भी पारित हो गया है। इनके अलावा इसी दिन उपतट क्षेत्र खनिज विकास अधिनियम संशोधन विधेयक पेश किया गया।
जन विश्वास विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा—सरकार कारोबार में सुगमता चाहती है। विश्वास बहाली के लिए 42 अधिनियमों के 183 प्रावधानों में संशोधन कर सरकार विश्वास का वातावरण करना चाहती है। उन्होंने बताया कि विधेयक में सरकार ने संसद की संयुक्त समिति के सुझावों को भी शामिल किया है।
मोदी सरकार ने अपने करीब नौ साल के कार्यंकाल में अब तक 1486 ऐसे कानूनों को निरस्त किया है, जो अप्राभावित हैं। इसी दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए सरकार ने 65 ऐसे अप्राचलित कानूनों को निरस्त करने संबंधी प्रावधानों वाला निरस्त और संशोधक विधेयक लोकसभा में पारित कराया है। इस विधेयक पर राज्यसभा की मुहर लगते ही मोदी सरकार के कार्यंकाल में निरस्त कानूनों की संख्या 1551 हो जाएगी।
जिन कानूनों को निरस्त करने का प्रावधान है, उनमें सबसे ज्यादा रेलवे के 18 विनियोग अधिनियम शामिल है। छोटे-छोटे अपराधों व गड़बिड़यों में जेल की सजा हटाने का हम स्वागत करते हैं। इससे न केवल जेलों में 352 ट्रायलों की संख्या कम होगी, साथ-साथ अदालतों पर पैंडिंग केसों में भी कमी आएगी। सरकार का यह अच्छा पैसला है।
——अनिल नरेन्द्र
क्या डोनाल्ड जेल जा सकते हैं?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर छह जनवरी, 2021 को हुए वैपिटल हिल हिसा के मामले में मुकदमा चल रहा है। रिपब्लिकन नेता ने किसी भी तरह के गलत काम में शामिल होने से इंकार किया है और इस केस को मूर्खतापूर्ण बताया है। ट्रंप पहले से ही जरूरी सरकारी गुप्त फाइलों को गलत तरीके से रखने और एक पोर्न स्टार से गुपचुप तरीके से पैसे का भुगतान करने जैसे दो मामलों में आरोप झेल रहे हैं। ट्रंप पर आरोप क्या है? ट्रंप 2020 का राष्ट्रपति चुनाव डेमोव््रोट नेता जो बाइडन से हार गए थे? उन पर अपनी हार के नतीजों को पलटने की साजिश रचने का आरोप है। उन पर चार अवैध काम करने का आरोप है। अमेरिका को धोखा देने की साजिश, सरकारी कार्यंवाही को रोकने की साजिश, किसी सरकारी कार्यंवाही में बाधा डालना और नागरिकों के अधिकारों के खिलाफ साजिश रचना। यह चारों आरोप चुनाव यानि तीन नवम्बर, 2020 के तुरन्त बाद से लेकर 20 जनवरी, 2021 यानि व्हाइट हाउस छोड़ने के दिन तक, लगभग दो महीने की अवधि में ट्रंप के काम से जुड़े हैं। पहला आरोप वोटों को जुटाने, गिनती और सर्टिफाईं करने के काम में बाधा डालने के कथित प्रायासों को लेकर है। दूसरा और तीसरा आरोप इलैक्ट्रोल कॉलेज वोटों के सर्टिफिकेशन के काम में बाधा डालने की कथित कोशिशों से जुड़ा है, जिसके कारण वैपिटल हिल हमले को अंजाम दिया गया। चौथा आरोप नागरिकों के वोट देने और उनके वोटों की गिनती के अधिकार में हस्ताक्षेप करने के कथित कोशिशों को लेकर है। ट्रंप 2020 का राष्ट्रपति चुनाव डेमोव््रोट नेता जो बाइडन से हार गए थे, उन पर उनकी हार को पलटने की साजिश का आरोप है। उनके खिलाफ कईं केस चल रहे हैं और कब कौन से केस में ट्रायल होगा यही तय करेगा कि इस केस में कितना वक्त लगेगा। सभी केस एक ही समय में नहीं चलाए जा सकते। इस बात के आसार काफी कम हैं कि चुनाव के दौरान किसी मुख्य केस की सुनवाईं हो। जल्द ही रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन होने वाला है, जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को औपचारिक रूप से चुनेगी। अमेरिकी न्याय प्राणाली में मुकदमे के लिए अधिक समय देने के कईं तरीके हैं, तो यह काफी हद तक संभव है कि ट्रंप एक बार और राष्ट्रपति चुन लिए जाएं और फिर यह ट्रायल शुरू हो। 73 साल के ट्रंप दोषी पाए गए तो उन्हें कड़ी सजा मिलने की संभावना है। मामले की सुनवाईं के लिए जज तान्या चुटकन को नियुक्त किया गया है। तान्या चुटकन की नियुक्ति ओबामा प्राशासन ने की थी। उन्हें ऐसे जज के रूप में जाना जाता है जो कड़ी सजा देते हैं। उधर ट्रंप कहते हैं कि मुझ पर जितने केस करेंगे, मुझे चुनाव में उतना ही फायदा मिलेगा। अभियोजकों पर निशाना साधते हुए कहा कि उन पर जो आरोप लगे हैं, उनसे 2024 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में उन्हें फायदा मिलेगा।
पाकिस्तान के पूर्व शासकों का यही अंजाम
पाकिस्तान अपने पूर्व प्राधानमंत्रियों को जेल भेजने के लिए वुख्यात रहा है, जबकि यह देश बार-बार संविधान का उल्लंघन करने वाले सैन्य तानाशाहों के खिलाफ कोईं कार्रवाईं करने में कतराता दिखा है। इमरान खान जेल जाने वाले पहले पूर्व प्राधानमंत्री नहीं हैं पाकिस्तान में। पाकिस्तान के इतिहास में निर्वाचित नेताओं के साथ किए गए व्यवहार के कईं अप््िराय उदाहरण हैं। सूची में पहले स्थान पर हुसैन शहीद सुहरावदा हैं, जो तत्कालीन पूवा पाकिस्तान के एक बंगाली राजनेता थे, जिन्होंने पांचवें प्राधानमंत्री के रूप में कार्यं किया था। सुहरावदा को जनवरी 1962 में गिरफ्तार कर देश-विरोधी गतिविधियों के फजा आरोप में जेल में डाल दिया गया था। उन्हें सैन्य शासक जनरल अयूब खान का समर्थन करने से इंकार करने का परिणाम भुगतना पड़ा था। नौवें प्राधानमंत्री के रूप में कार्यं करने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो को 1974 में एक राजनीतिक प्रातिद्वंद्वी की हत्या की साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें मौत की सजा सुनाईं गईं और चार अप्रौल, 1979 को फांसी दे दी गईं। बेनजीर भुट्टो 1988 से 1990 तक और फिर 1993 से 1996 तक दो बार प्राधानमंत्री रहीं। देश की एकमात्र महिला प्राधानमंत्री को कईं बार गिरफ्तार किया गया। पहली बार 1985 में उन्हें 90 दिनों के लिए घर में नजरबंद रखा गया। इसके बाद अगस्त, 1986 में कराची की एक रैली में सैन्य तानाशाह जिया उल हक की निंदा करने के लिए बेनजीर भुट्टो को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद क्या हुआ यह सबको मालूम ही है। अब इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया गया है। देखना यह है कि क्या इमरान का भी वही हश्र होता है जो पूर्व प्राधानमंत्रियों का हुआ है? हम उम्मीद करते हैं कि ऐसा न हो। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट काफी मजबूत है, यह उसने साबित कर दिया जब इमरान को पहले गिरफ्तार किया गया था और सुप्रीम कोर्ट ने उसी दिन जमानत दे दी थी।
Tuesday, 8 August 2023
पाक संसद नौ को भंग होगी
पाकिस्तान के प्राधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है कि निचले सदन का कार्यंकाल खत्म होने से पहले ही संसद को नौ अगस्त को भंग कर दिया जाएगा। इस कदम से देश में 90 दिनों के भीतर आम चुनाव कराना होगा। डॉन अखबार ने शुव््रावार को एक समाचार में बताया कि शरीफ ने गुरुवार को प्राधानमंत्री आवास पर सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगियों के लिए आयोजित रात्रि-भोज समारोह में यह बात कही। पाकिस्तान की संसद का पांच साल का कार्यंकाल 12 अगस्त को पूरा होने जा रहा है। ऐसे में सत्ताधारी गठबंधन सरकार चुनाव की तैयारी कर रही है।
संविधान के प्रावधान के तहत संसद का कार्यंकाल पूरा होने पर 60 दिन में आम चुनाव कराने होते हैं। लेकिन अगर कार्यंकाल पूरा होने से पहले ही संसद को भंग कर दिया जाए तो यह अवधि 90 दिन तक बढ़ाईं जा सकती है। एक्सप्रोस ट्रिब्यून अखबार की खबर के अनुसार प्राधानमंत्री नौ अगस्त को संसद भंग करने के लिए राष्ट्रपति आरिफ अलवी को अधिसूचना भेजेंगे। संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के अधिसूचना पर हस्ताक्षर करते ही संसद भंग हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर किसी कारण से राष्ट्रपति हस्ताक्षर नहीं करते हैं, तो प्राधानमंत्री को अधिसूचना प्राप्त होने के 48 घंटे बाद असैंबली स्वत: ही भंग हो जाएगी। रात्रि-भोज समारोह में शरीफ ने सहयोगी दलों के नेताओं को बताया कि सत्ताधारी दल पाकिस्तान मुस्लिम-लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने पाटा के भीतर विचार-विमर्श को अंतिम रूप दे दिया है और प्राधानमंत्री शहबाज शरीफ शुव््रावार को कार्यंवाहक ढांचे पर सहयोगियों के साथ अंतिम दौर की चर्चा शुरू करेंगे। इसमें कम से कम तीन दिन लगने की उम्मीद है। इधर चुनावों की घोषणा की तैयारी हो रही है, उधर पूर्व प्राधानमंत्री इमरान खान को शुव््रावार को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दे दिया। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने शुव््रावार को पूर्व प्राधानमंत्री इमरान खान की वह याचिका खारिज कर दी जिसे भ्रष्टाचार के एक मामले (तोशाखाना मामला) में सुनवाईं के खिलाफ दायर किया गया था। इमरान पर आरोप है कि उन्होंने उन तोहफों का विवरण छिपाया जिसे उन्होंने सरकारी भंडार (तोशाखाना) से हासिल किया था। याचिका खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध करने वाली अजा पर इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईंएचसी) में सुनवाईं चल रही है। अदालत ने उम्मीद जताईं कि निचली अदालत और आईंएचसी कानून के अनुरूप निर्णय लेगी। इमरान को तीन साल की जेल की सजा सुनाईं गईं है।
——अनिल नरेन्द्र
संसद में एक बार फिर दहाड़ेगा शेर
राहुल गांधी को संसद का दर्जा फिर मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुव््रावार को मोदी उपनाम वाली टिप्पणी पर मानहानि मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। कांग्रोस ने कहा कि कोईं भी ताकत लोगों की आवाज को चुप नहीं करा सकती। यह नफरत पर प्यार की जीत है। सत्यमेव जयते—जय हिन्द। प््िरायंका गांधी ने पैसले की सराहना करते हुए भगवान बुद्ध की एक बात उद्धृत की। तीन चीजें लंबे समय तक छिपी नहीं रह सकतीं—सूर्यं, चंद्रमा और सत्य-गौतम बुद्ध। हम सुप्रीम कोर्ट के पैसले का तहेदिल से स्वागत करते हैं, संसद में एक बार फिर दहाड़ेगा शेर। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवईं, जिन्होंने आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने वाली पीठ का नेतृत्व किया, ने सुनवाईं के दौरान कहा कि उन्हें हाल में गुजरात की अदालतों के पैसले दिलचस्प देखने को मिले। इसी तरह हाईं कोर्ट की सिगल बैंच का 125 पेज का पैसला है। इसमें हाईं कोर्ट ने याची (राहुल) की सजा पर रोक लगाने से इंकार किया और सांसद के तौर पर उनके आचरण के बारे में तो काफी नसीहतें दीं, लेकिन अधिकतम सजा देने के किसी भी कारण का उल्लेख नहीं किया। कोर्ट ने यह भी कहा—इसमें कोईं शक नहीं है कि उनका (राहुल गांधी) लहजा अच्छी नहीं था। सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतनी चाहिए। जस्टिस बीआर गवईं, जस्टिस नरसिहा व जस्टिस संजय वुमार की पीठ ने कहा—सजा पर रोक इस आधार पर लगाईं है क्योंकि सूरत कोर्ट यह बताने में विफल रही कि राहुल अधिकतम दो साल की सजा के हकदार क्यों थे? सजा की इस अवधि के चलते ही उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित किया गया। सजा एक दिन भी कम होती तो वह अयोग्य नहीं होते। इस पैसले का असर सिर्प एक व्यक्ति पर नहीं पड़ा, बल्कि इससे उनके निर्वाचन क्षेत्र (वायनाड) के मतदाताओं के अधिकार भी प्राभावित हुए।
इसलिए अंतिम पैसले तक दोषसिद्धि पर रोक रहेगी। अब राहुल के 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है। अंतिम पैसला लंबित रहते हुए भी राहुल गांधी अगला चुनाव लड़ सवेंगे।
2024 के लोकसभा चुनाव पर क्या राहुल की वापसी पर असर पड़ेगा? 2014 और 2019 के चुनावों में कांग्रोस करीब 208 सीटों पर भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में थी। जिन 208 सीटों पर दोनों दलों के बीच सीधा मुकाबला था। उसमें से 90 प्रातिशत के करीब पर कांग्रोस को हार का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी क्या उन 208 सीटों में से 50 प्रातिशत पर कांग्रोस को जिता सकते हैं? ऐसी स्थिति में वह 2024 में प्राधानमंत्री के पद के दावेदार के रूप में सामने आ सकते हैं। लेकिन इसका आकलन करना अभी संभव नहीं है। इतना जरूर है कि यह पैसला इंडिया गठबंधन के लिए बूस्टर साबित होगा। राहुल के व्यक्तिगत कद के साथ-साथ कांग्रोस पाटा का ग्राफ भी बढ़ेगा। भाजपा को असल चिंता यही है कि राहुल अब संसद में तो गरजेंगे ही, बाहर भी दहाड़ेंगे।
Thursday, 3 August 2023
मुस्लिमों के खिलाफ भीड़ हिंसा
भीड़ हिंसा सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिमों के खिलाफ लिंचिंग, भीड़ हिंसा मामलों में चिंताजनक वृद्धि को लेकर दाखिल नेशनल पेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईंडब्ल्यू) की जनहित याचिका पर केन्द्र के साथ कईं राज्यों को नोटिस जारी किया किया है। इनमें ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, मध्यप्रदेश और हरियाणा शामिल हैं। जनहित याचिका में कहा गया है कि तहसीन पूनावाला का पैसला (2018) में शीर्ष अदालत के स्पष्ट, दिशा-निर्देश के बावजूद मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों में चिंताजनक वृद्धि हो रही है। जस्टिस वीआर गवईं और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष आईं याचिका पर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि विभिन्न हाईं कोर्ट के क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करना व्यर्थ होगा। अगर यचिकाकर्ता को संबंधित हाईंकोर्ट में जाने के लिए कहा जाता है तो वुछ नहीं होगा और इस प्रव्रिया में पीिड़तों को वुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि तहसीन पूनावाला पैसले के बावजूद घटनाएं हो रही हैं। हम कहां जाएं? यह बहुत गंभीर मामला है। 2018 के पूनावाला पैसले में शीर्ष अदालत ने लिंचिंग और भीड़ हिंसा को रोकने के लिए वेंद्र व राज्य सरकारों को व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए थे।
वकील सुमिता हजारिका और रश्मि सिंह के माध्यम से दायर एनएफआईंडब्ल्यू की याचिका में कईं घटनाओं को उजागर किया गया है जो लिंचिंग और भीड़ हिंसा के खतरे को रोकने के तंत्र की लगातार विफलता को दर्शाती है। इस याचिका में कहा गया कि लिंचिंग और भीड़ हिंसा की वर्तमान घटनाओं को झूठे प्रचार के माध्यम से अल्पसंख्यकों के बहिष्कार की कहानी के परिणाम के रूप में देखा जाना चाहिए। याचिका में कहा गया कि भीड़ हिंसा व लिंचिंग के पीिड़तांे को तत्काल राहत सुनिश्चित करने के लिए दिए जाने वाले मुआवजे की वुल राशि का एक हिस्सा अंतरिम मुआवजे के रूप में करने के तुरंत बाद पीिड़तों के और उनके परिवारों को दिया जाना चाहिए। मॉब लिंचिंग और भीड़ हिंसा एक गंभीर मामला है इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देखने में आया है कि इनके कसूरवार को सियासी संरक्षण मिलता है, या तो मामले को बहुत हलका कर दिया जाता है या पूरी तरह से नजरंदाज। बहाने बनाकर नईं-नईं कहानियां गढ़ कर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है।
उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इसमें ठोस कदम उठाएगी और ऐसी घटनाओं पर वैसे नियंत्रण लगे इस पर विचार करेगी।
——अनिल नरेन्द्र
जख्म अब भी गहरे हैं
विपक्ष के भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (इंडिया) के 21 संसद सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने रविवार को मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा करार दिया और कहा कि प्रधानमंत्री की चुप्पी इस मुद्दे पर उनकी उदासीनता को दर्शाती है।
सांसदों ने कहा है कि पीिड़तों के जख्म अब भी गहरे हैं। उनके जीवन में सुधार लाने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा। विपक्षी दलों के गठबंधन के 21 सांसद शनिवार को दो दिन के दौरे पर मणिपुर पहुंचे थे। इन सांसदों ने दो समूहों में पीिड़तों से मुलाकात की। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत ने वेंद्र और राज्य सरकार पर सवाल उठाए, वहीं भाजपा के नेताओं ने विपक्ष के मणिपुर दौरे को सियासी पर्यंटन बताते हुए पलटवार किया। कांग्रेस नेता गौरव गोगोईं ने कहा कि विपक्षी सांसदों के लिए शनिवार का दिन मुश्किल भरा रहा। उन्होंने मणिपुर के लोगों की दुख और तकलीफों को सुना। उन्होंने बताया कि विपक्ष के सांसदों ने चार राहत वैंपों का दौरा किया। इनमें से दो चुराचांदपुरा में, एक इंफाल और एक मोइरांग में है। ये आसान नहीं था। कईं बार महिलाएं हमें अपनी बाते बताते हुए रो पड़ीं। हर कोईं शांति चाहता है। सब चाहते हैं कि उनका जीवन एक बार फिर पटरी पर आ जाए। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने एक राहत शिविर का दौरा करने के बाद पत्रकारों से कहा, वे (अपराधी) सीबीआईं से जांच की बात कर रहे हैं.., मैं पूछना चाहता हूं कि क्या वे (केन्द्र सरकार) अब तक सो रही थी। लोगों के दर्द को समझना चाहते हैं, उन्होंने कहा हम आकर देख रहे हैं कि आज भी लोग भूले नहीं कि उनके साथ क्या हुआ, जो दहशत उन्होंने अनुभव की है वह जख्म आज भी भरे नहीं हैं। बहुत वुछ हमको साथ मिलकर करना पड़ेगा ताकि उनके जीवन में हम सुधार ला सवें। लोग वैंप में हैं इससे साफ-साफ जाहिर है कि उनका विश्वास सरकार पर नहीं है कि वो अपने घर वापस जा पाएं।
टीएमसी सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि हम दोनों समुदायों के लोगों से बात कर रहे हैं। मैं दूसरी बार यहां आईं हूं, लोग पीिड़त हैं। देखिए कितने बच्चे हैं आज यहां पर। केन्द्र सरकार पर सवाल उठाते हुए दुख यही है कि भारत सरकार को डेलीगेशन भेजना चाहिए था। उन्होंने मना कर दिया, इसलिए इंडिया अलायंस की जितनी पार्टियां हैं उनके सांसद आए हुए हैं। राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा कि विपक्ष के नेता हालात में सुधार के इरादे से आए हैं। हम सबको यही बात कह रहे हैं कि सब ठीक हो जाएगा, हिंदुस्तान या इंडिया इसका विशाल हृदय है, सरकारे आती-जाती हैं। मनोज झा के मुताबिक उन्होंने लोगों को दिलासा दिया, आप ये मत सोचो की यहां की सरकार वुछ नहीं कर रही है। यूनियन गवर्नमेंट वुछ नहीं कर रही है। हम सब साइक्लॉजिकल हीलिंग चाहते हैं। आज हमारी छोटी-सी कोशिश उसी दिशा में पहला कदम है। हम कितने कामयाब होंगे, मैं नहीं जानता।
Tuesday, 1 August 2023
बिहार में सूखे की मार
देश के कईं इलाकों में जहां तेज बारिश और बाढ़ से लोग जूझ रहे हैं वहीं बिहार बारिश की कमी का सामना कर रहा है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस साल बिहार में अब तक औसत से करीब आधी बारिश ही हुईं है जबकि राज्य के 16 जिलों में औसत के मुकाबले आधी बारिश भी नहीं हुईं है। बहुत कम बारिश के कारण धान की ही रोपनी बुरी तरह प्राभावित हुईं है, इससे लाखों किसानों के सामने संकट खड़ा हो गया है। बिहार में करीब 36 लाख हेक्टेयर में इस साल में धान की खेती होनी थी लेकिन बारिश नहीं होने से धान की आधी रोपनी नहीं हो पाईं है।
वहीं अब पानी की कमी से कईं इलाकों में बछड़े भी मरने लगे हैं। बांका के फतहर पंचायत के मिर्जापुर गांव के धर्मेद्र मिश्र कहते हैं कि उनके इलाके में इस साल अब तक सिर्प एक प्रातिशत धान की रोपनी हो पाईं है। मिश्र कहते हैं कि इस बार पूरे का पूरा बिहार सूख गया है। हर जगह पानी की कमी हो जाए फिर भी हम डंका बजाते हैं कि हमारे यहां पानी की कमी नहीं है। लेकिन इस बार हमारे गांव में भी पानी खत्म हो गया है।
जिन किसानों की रोजी-रोटी का आधार खेती है, वह क्या करेंगे? बिहार के जुमईं जिले के कोराने गांव के भरत राम के सामने भी ऐसी ही समस्या है। भरत के पास करीब चार बीघा खेत हैं, लेकिन बारिश न होने से अब तक वो धान के पौधे की रोपनी शुरू नहीं कर पाए। वह कहते हैं कि हमारे पास अपना वुआं हैं लेकिन इससे मुश्किल से पीने का पानी ही मिल पाता है, सिचाईं कहां से होगी। बारिश नहीं होने से अब तो बीज भी फटने लगे हैं। 27 जुलाईं तक के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इस मौसम में औसत से करीब 47 प्रातिशत बारिश कम हुईं है। राज्य में बारिश की कमी का आलम यह है कि बिहार के 10 जिलों में औसत से 60 से 82 प्रातिशत तक कम बारिश हुईं है। जबकि राज्य के 38 में से 16 जिलों में औसत के मुकाबले आधी बारिश भी नहीं हुईं है। कहा जाता है कि बारिश और बाढ़ बिहार के लिए आपदा भी है और इसी में बिहार की खुशहाली भी छिपी है। हर साल आने वाली बाढ़ के साथ राज्य के विशाल मैदानी इलाके में मिट्टी की 100 प्रातिशत उर्वरक शक्ति भी बढ़ती है और किसानों की पैदावार भी अच्छी होती है। लेकिन इस साल बारिश नहीं होने से राज्य के लाखों किसान बुरी तरह प्राभावित हो रहे हैं। बिहार देश का वो राज्य है जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वुल आबादी का करीब 75 प्रातिशत हिस्सा खेती पर निर्भर है। बिहार के लाखों किसानों के धान की फसल के लिए अगली वुछ दिन काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इस दौरान अगर अच्छी बारिश हो जाए तो उनकी मरती फसल को नया जीवन मिल सकता है।
——अनिल नरेन्द्र
विपक्ष का अविश्वास प्रास्ताव?
यह जानते हुए भी कि सरकार संख्याबल में मजबूत है, विपक्ष ने अविश्वास प्रास्ताव लोकसभा में पेश कर दिया है। विपक्ष समेत सभी जानते हैं कि प्रास्ताव गिर जाएगा, क्योंकि विरोध में कहीं ज्यादा मत पड़ेंगे और पक्ष में कम। पर प्राश्न यह उठता है कि यह सब जानते हुए भी विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रास्ताव क्यों ला रही है, क्या उसे इसमें वुछ हासिल होगा? राजनीतिक जानकार मानते हैं कि विपक्ष को इस अविश्वास प्रास्ताव पर होने वाली विस्तृत चर्चा के जरिये सरकार को सभी मुद्दों पर घेरने का मौका मिलेगा। लोकसभा के पूर्व सचिव डॉ. देवेंद्र सिह ने कहा कि विपक्ष जिन भी मुद्दों को उठाती है, तो सरकार उस पर चर्चा के लिए तैयार होने की बात तो कहती है लेकिन उसमें कईं किन्तु-परन्तु होते हैं। जैसे मणिपुर पर ही चर्चा की बात ले लें। इस पर अल्प अवधि चर्चा के लिए सरकार तैयार है, जो महज ढाईं घंटे की होती है। जबकि विपक्ष प्राधानमंत्री के बयान सहित व्यापक चर्चा चाहता है। ऐसे में विपक्ष ने अविश्वास प्रास्ताव लाकर न सिर्प मणिपुर बल्कि उन तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है, जिन्हें वह सरकार के विरुद्ध उठाना चाहती है। प्रास्ताव पेश होने और स्वीकार होने के बाद अगले सप्ताह इस पर चर्चा होना तय है। उनके अनुसार प्राथम दृष्ट्या इस मामले में विपक्ष ने राजनतिक बढ़त हासिल करने में सफलता हासिल कर ली है। पूरे देश का ध्यान उसने आकर्षित कराया है। लेकिन यह भी देखना होगा कि जब चर्चा होगी तो सरकार किस प्राकार से विपक्ष पर आव््रामक होती है। कईं राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, ऐसे में महिला सुरक्षा से लेकर महंगाईं तक के मुद्दों पर विपक्ष को सत्तापक्ष की तरफ से पलटवार का सामना करना पड़ सकता है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि जब प्राधानमंत्री चर्चा का जवाब देंगे तो अब तक हमेशा यह देखने में आया है कि वह ही विपक्ष पर भारी पड़ जाते हैं। इसलिए पक्ष-विपक्ष के बीच होने वाली चर्चा महत्वपूर्ण होगी। देखना होगा कि जनता को स्पष्ट संदेश विपक्ष की तरफ से जाता है या फिर सत्तापक्ष से? एक तर्व विपक्ष की तरफ से यह दिया जा रहा है कि इस प्रास्ताव के जरिये प्राधानमंत्री को मणिपुर पर बयान देने के लिए बाध्य कर दिया है। वह इसे सफलता भी मानेंगे लेकिन यह स्पष्ट है कि मणिपुर पर होने वाली चर्चा का जवाब देने की जिम्मेदारी गृहमंत्री की होती है।
विपक्ष मणिपुर पर पहले प्राधानमंत्री के बयान और फिर चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ था। लेकिन अविश्वास प्रास्ताव पर चर्चा के बाद प्राधानमंत्री अकेले मणिपुर नहीं, सभी मुद्दों पर जवाब देंगे। इसलिए यदि इस प्रास्ताव के बाद संसद में गतिरोध खत्म होता है तो इससे सत्तापक्ष भी राहत की सांसें लेगा।
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