Saturday, 28 June 2025
इजरायल-ईरान युद्ध के क्या निकले नतीजे
इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग के क्या नतीजे निकले? इस जंग में तीन प्रमुख देश शामिल थेö इजरायल, ईरान व अमेरिका। इसके तीन ही प्रमुख किरदार थे... अयातुल्ला अली खामेनेई, बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रंप। अगर हम किरदारों की बातें करें तो सबसे बड़े हीरो रहे अयातुल्ला खामेनेई। न सिर्फ उन्होंने इजरायल को उनके इतिहास में पहली बार ऐसी मार मारी की उसे अपने असितत्व को बचाने के लिए ट्रंप के आगे भीख मांगनी पड़ी। बता दें कि इजरायल ने 12 दिन के इस युद्ध को दो उद्देश्यों से शुरू किया था। पहला ः ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म करा जाए। दूसरा उद्देश्य था कि ईरान से अयातुल्ला रेजीम को खत्म करके अपने पिठ्ठओं को बैठाना। इजरायल दोनों मामलों में नाकाम रहा। ईरान ने इजरायल सेना पर तबाड़तोड़ जवाबी हमला किया कि उसके अस्तित्व पर ही खतरा हो गया और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ट्रंप की शरण में जाना पड़ा। रहा सवाल सत्ता परिवर्तन का तो ईरान पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हो गया और मजबूत हो गया। इजरायल की मध्य पूर्व में बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो गई। और जहां तक परमाणु कार्पाम रोकने का सवाल है बेशक अमेरिका ने ईरान के कुछ परमाणु संयंत्रों पर जबरदस्त हमले किए पर वह ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म नहीं कर सके। ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। अमेरिकी पेंटागन से जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है अमेरिका और इजरायल के हमले से ईरान का परमाणु कार्पाम पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि ट्रंप इसे फेक न्यूज कहते हैं। अब बात करते हैं इजरायल और नेतान्याहू की। नेतान्याहू ने इजरायल को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है जितना उसको 70-75 वर्षों के इतिहास में किसी ने नहीं पहुंचाया। इसने इजरायल के मध्य पूर्व में न केवल धौंस को ही खत्म कर दिया बल्कि दुनिया को यह साबित कर दिया कि वह अभेद देश नहीं, उस पर भी हमले हो सकते हैं। इजरायल की चौधराहट हमेशा के लिए खत्म हो गई है। नेतान्याहू चले तो खामेनेई को हटाने कहीं खुद को न हटना पड़ जाए? अब बात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। वह बार-बार झूठे साबित हो चुके हैं पर उनके सीज फायरों (युद्ध विराम) की घोषणाएं भी मजाक बनकर रह गई हैं। उल्लेखनीय है कि संघर्ष के 12वें दिन ट्रंप के सीजफायर ऐलान के कुछ ही घंटों में इजरायल और ईरान ने फिर से हमले करने शुरू कर दिए। यह खुशी की बात है कि फिलहाल युद्ध विराम लागू है, कितने दिनों तक रहता है यह कहना मुश्किल है। जहां तक ट्रंप के सीजफायर की बात है तो आपरेशन सिंदूर संघर्ष को रुकवाने का श्रेय वह अब तक 17 बार ले चुके हैं जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसे ही ट्रंप ने रूस-पोन के युद्ध विराम की झूठी घोषणा की थी किन्तु यह संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी सीजफायर घोषणाओं को भी नोबेल पुरस्कार के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हैं। हालांकि तथ्य यह है कि नोबेल पुरस्कार तत्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। कुल मिलाकर ईरान और अयातुल्ला का पलड़ा सबसे भारी रहा। मैंने लिखा था कि ईरान बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा यह सत्य होता जा रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 26 June 2025
ईरान के पास पलटवार के विकल्प
रविवार सुबह इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका के सीधे कूदने से पूरे विश्व में चिन्ता की लहर दौड़ गई। घोषित रूप से अमेरिका ने ईरान के परमाणु उपामों को निशाना बनाया और इसकी आशंका संघर्ष की शुरुआत से ही जताई जा रही थी। अमेरिका ने अपने सबसे दूसरे बड़े बम कल्संटर बम जो कि बी-2 बॉम्बर से फेंका गया या इस्तेमाल करके अब ईरान के लिए जवाबी कार्रवाई अपनी पूरी ताकत के साथ करने का रास्ता खोल दिया। इजरायल और अमेरिका दो प्रमुख लक्ष्य के साथ इस संघर्ष में उतरे थे। ईरान का परमाणु कार्पाम का पूरी तरह से खात्मा और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के शासन का अंत। हमें नहीं लगता कि अमेरिकी बमबारी के बाद भी वह अपने इन लक्ष्यों में से कोई भी लक्ष्य पूरा होने के करीब पहुंचा। आज ईरान को अमेरिका को भी मुहंतोड़ जवाब देने का मौका मिल गया। जब से इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु स्थलों पर बम फेंके हैं और युद्ध शुरू किया है। तब से ईरान के सर्वोच्च नेता से लेकर कई अधिकारियों ने अमेरिका को इस युद्ध से दूर रहने के कहा था। अब देखना है कि ईरान के पास जवाबी कार्रवाई करने के विकल्प क्या हैं? ईरान होर्मूज जलडमरूमध्य को को निशाना बना सकता है। ईरान फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। बता दें कि वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल तेल व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत इसी होर्मूज के जरिए ही होता है। इसका दुनिया पर क्या परिणाम होगा कल्पना भी करना मुश्किल है। दूसरा ः अमेरिकी ठिकानों और सहयोगियों पर हमला कर सकता है ईरान। अमेरिका ने इस क्षेत्र में हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं। इनमें कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में स्थायी अड्डे शामिल हैं। इन ठिकाने पर इजरायल जैसे ही अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्था है। लेकिन मिसाइलों की बौछार या सशस्त्र ड्रोनों के झुंडों से पहले अलर्ट के लिए बहुत कम समय होगा। ईरान उन देशों में प्रमुख तेल और गैस संयंत्रों पर भी हमला कर सकता है। ऐसा करके ईरान युद्ध में अमेरिका की भागीदारी के लिए इन देशों को सबक सिखाना चाहेगा। इजरायल अपनी प्रवासियों-हिजबुल्ला, हमास, हूती से भी अमेरिका और इजरायल पर हमले करवा सकता है। ईरान ने अमेरिकी हमलों की कड़ी निन्दा की है और इसे अपमानजनक बताया है। ईरान ने दूरगामी नतीजों की चेतावनी भी दी है। ईरान को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जवाब देने का हक है और वह इजरायल के साथ अमेरिका को भी निशाना बना सकता है। अव्वल तो ट्रंप के संघर्ष में कूदने की अमेरिका में ही निन्दा हो रही है। विपक्षी दल युद्ध भड़काने वाले इस एकतरफा कदम की तीखी आलोचना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इजरायल में नेतान्याहू की और अमेरिका में ट्रंप की सत्ता को ही चुनौती मिल सकती है। रहा सवाल ईरान का और अयातुल्ला अली खामेनेई को सत्ता से हटाने के लक्ष्य का। सवाल है आज ईरान एकजुट हो गया है और पूरी ताकत से अयातुल्ला खामेनेई के पीछे खड़ा है। एक के बाद एक महामारी और युद्धों से जूझती जा रही दुनिया का सबसे ज्यादा स्थायित्व और शांति की जरूरत थी लेकिन डर है कि अमेरिकी हमले ने ऐसी किसी उम्मीद पर पानी फेर दिया है। यही नहीं पूरे विश्व को तीसरे महायुद्ध के दरवाजे पर ला खड़ा कर दिया है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 19 June 2025
क्या ईरान मध्य-पूर्व एशिया का नया सुपर पावर बनेगा
शुक्रवार को इजरायल ने ईरान के खिलाफ यह कहते हुए बड़े हमलों को अंजाम दिया कि ईरान उनके लिए और दुनिया के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। इसी उद्देश्य को बताते हुए इजरायल ने तेहरान पर ताबड़तोड़ हमला किया। इजरायल और उसके समर्थक देशों ने सोचा था कि इस हमले के बाद जिसमें उसने ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशीप व परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी सोचा कि ईरान अब घबराकर चुप बैठ जाएगा पर इतनी बर्बादी के 24 घंटे के अंदर-अंदर ईरान ने इजरायल पर इतना जबरदस्त जवाबी हमला किया कि इजरायल-अमेरिका तमाम साथी तिलमिला गए। इजरायल के शुक्रवार को किए गए हमले के जवाब में ईरान ने शनिवार को ही जवाबी हमला कर दिया। इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) के मुताबिक ईरान ने शनिवार देर रात करीब 24 घंटे में 150 से ज्यादा इजरायली ठिकानों को निशाना बनाया और तब से लेकर इस लेख लिखने तक ईरान इजरायल पर अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों के जरिए ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। ईरान ने इजरायल के कई महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को सीधा निशाना बनाया है, इनमें सेना का हेडक्वार्टर से लेकर वाइजमैन सेंटर जहां से इजरायल सारी सैनिक कार्रवाईयां तय करता है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के निवास तक को नहीं छोड़ा। दरअसल ईरानी मिसाइलें इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम को गच्चा देकर अपने निशाने पर पहुंच गई। इससे सारी दुनिया चौंक गई। ईरान ने साबित कर दिया कि उसकी टेक्नोलॉजी अमेरिका, रूस और चीन के लगभग बराबर पहुंच गई है। इसी से इजरायल और अमेरिका में घबराहट पैदा हो गई है। यही नहीं अन्य अरब देशों में भी दहशत पैदा हो गई है। ईरान दरअसल पिछले बीस-पच्चीस साल से इस लम्हे की तैयारी कर रहा था। इजरायल का ईरान पर हमला करने के पीछे कई उद्देश्य थे। दरअसल वो चाहते हैं कि ईरान में इन आयतुल्ला रैजीम का तख्ता पलट करवा दें और अपनी मनपसंद, हमदर्द सरकार को सत्ता सौंप दे। इस मकसद में ईरान के अंदर से भी उसको मदद मिल रही है। मौसाद ने ईरान के अंदर कई स्लीपर सेल तैयार कर लिए हैं जो आयतुल्ला खामेनेई सरकार के खिलाफ इजरायल के लिए काम करते हैं। फिर शाह रजा पल्लवी के समर्थक अभी भी ईरान में मौजूद हैं। शुक्रवार को जब इजरायल ने पहली बार ईरान पर हमला किया था तो उसमें ईरान के अंदर ड्रोनों से हमला किया गया था। इसका मतलब है कि मौसाद ने ईरान के अंदर ही ड्रोन फैक्ट्री तैयार कर ली थी। ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशिप की पुख्ता जानकारी भी रही। ईरानी मौसाद एजेंटों ने इजरायल को जानकारी दी होगी तभी तो मौसद ने ठीक ठिकानों पर हमला किया। इस बीच इजरायल सरकार ने ईरानी लोगों से खामेनेई को सत्ता के विरोध का आ"ान किया है। इसके लिए इजरायल की ओर से फारसी भाषा में संदेश जारी किए जा रहे हैं। इस बीच यह भी संकेत मिला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या करने की इजरायल की योजना पर रोक लगा दी है। कुल मिलाकर जिस तरीके से ईरान इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा जो रूकने के नाम नहीं ले रहे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि मिडल ईस्ट में एक नया पावर सेंटर ईरान बनने जा रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 17 June 2025
अगर जंग बढ़ी तो क्या होगा?
पहले से युद्धरत इजरायल ने ईरान के परमाणु व सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसमें कई शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर मारे गए हैं। अपने लिए युद्ध का न केवल एक मोर्चा खोल दिया है बल्कि यूं कहें कि न केवल पश्चिम एशिया को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एक खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल, इजरायल का कहना है कि यह ऑपरेशन राइजिंग लायन ईरान की कथित परमाणु हथियार महत्वाकांक्षाओं को विफल करने के लिए किया गया है। इजरायल के हमले के जवाब में पावार रात ईरान ने अपना जवाबी ऑपरेशन लांच किया। इजरायल में राजधानी तेल अवीव, यरूशलम में कई जगहों पर कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गईं और ड्रोन से हमला किया। सोशल मीडिया में इजरायल ईरान के हमले से हुई बर्बादी की कई तस्वीरें आई हैं। ईरान ने दावा किया है कि उसने इजरायल के मिलिट्री कमांड सेंटर जहां से इजरायल के सारे हमले आपरेशन तय किए जाते हैं उसको भी नष्ट कर दिया है। इजरायल का शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम कई मिसाइलों और ड्रोन को गिरा सका पर बहुत से मिसाइलें और ड्रोन सटीक अपने निशाने पर लगे। अब इजरायल की बारी है और फिर ईरान उसका जवाब देगा। ईरान बेशक यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्पाम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है लेकिन उस पर गुप्त ढंग से परमाणु कार्पाम चलाने के जो आरोप लगते रहे हैं, वे आशंकाएं भी पैदा करता है। इसके अतिरिक्त ईरान की ओर से बार-बार यरूशलम को नष्ट करने की धमकियां और उसके द्वारा समर्पित हमास, हिजबुल्ला व हुती जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इजरायल की चिंताओं को और ठोस करती है। फिर सवाल केवल इजरायल की सुरक्षा का नहीं है, एक परमाणु संपन्न ईरान पूरे पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को बिगाड़ने का बताया जा रहा है। फिर सवाल यह भी किया जा सकता है कि पाकिस्तान भी तो एक इस्लामी परमाणु संपन्न देश है तो उससे न तो अमेरिका को कोई चिंता है और न ही इजरायल को। क्या हम यह मानकर चलें कि पाकिस्तान गुप्त रूप से अमेरिका और इजरायल के साथ है। सोशल मीडिया में तो यहां तक दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के करीबी संबंध हैं और सूचनाओं के आदान-प्रदान में साझे हैं। जब पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं तो ईरान से क्यों? विगत दशकों में हमने पश्चिम एशिया में बहुत खून-खराबा देखा है। लाखों बेगुनाह मारे जा चुके हैं। ऐसे में अगर इजरायल और ईरान के बीच युद्ध और बढ़ता है तो बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे। इराक व अफगानिस्तान की तबाही लोग भूले नहीं हैं और बीच में बसे इजरायल और ईरान की तबाही कोई नहीं चाहेगा। अगर सोशल मीडिया पर भरोसा किया जाए तो कुछ मध्य एशिया विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ईरान में अयातुल्लाह रेजीम को खत्म करके अपने हित वाली सरकार बनाना चाहता है। ईरान को बम बनाने की जल्दी है, जबकि अमेरिका के सहयोगी देश ऐसा नहीं चाहते। ईरान की इस कोशिश पर इजरायल को सख्त आपत्ति है और उसका मानना है कि अगर ईरान का परमाणु कार्पाम अभी न रोका गया तो बहुत देर हो जाएगी और ईरान एक परमाणु संपन्न देश बन जाएगा। जो इजरायल के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा। इसलिए वह जल्दी में है। आज युद्ध और युद्ध का माहौल दोनों से बचने की जरूरत है। कुछ लोगों के अहंकार की वजह से आम लोगों का खून नहीं बहना चाहिए। इसके साथ ही यह मुस्लिम देशों के लिए भी अमन-चैन से सोचने का समय है। उन्हें मजहब की बुनियाद पर किसी भी गुटबाजी या जंग की हिमायत से बचना होगा। रही बात इजरायल की तो अमेरिका ऐसे हर मोर्चे पर पल्ला झाड़कर खड़ा हो जाता है। यह किसी से छिपा नहीं कि इस लड़ाई में अमेरिका पूरी ताकत से इजरायल के साथ खड़ा है। बल्कि हम यह कहें कि यहां सारी खुराफात के पीछे अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हाथ है। उसका पिट्ठू नेतान्याहू बगैर अमेरिका के एक कदम नहीं उठाता है। ट्रंप को लगता है कि इस बात की भी कतई चिंता नहीं कि ईरान-इजरायल युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में न बदल जाए, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऊपर वाला सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे और जंग रोकने में मदद करे।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 14 June 2025
डिप्लोमेसी या डबल गेम?
अमेरिका ने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की खुलकर तारीफ की है, बल्कि पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिका आमंत्रित किया है। इससे ठीक पहले असीम मुनीर ने एक ऐसा बयान दिया था, जिसे भारत ने जम्मू-कश्मीर में हुए 22 अप्रैल के आतंकी हमले से जोड़कर देखा। दरअसल ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के साथ ही यह देखा जा रहा है कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का ट्रंप प्रशासन का रुख कुछ बदला हुआ है। गत बुधवार को यह काफी स्पष्ट भी हो गया कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका का रवैया बदला हुआ है। पिछले कुछ घंटों में अमेरिकी सरकार ने तीन स्तरों पर ऐसे संकेत दिए हैं जो भारत की चिंताओं को बढ़ाते हैं। पहलाöअमेरिकी सेना के केंद्रीय कमांड (यूएस सेंटकॉम) के प्रमुख माइकल कुरिल्ला ने कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पाकिस्तान एक जबरदस्त साझीदार है। दूसराö14 जून को अमेरिकी सेना दिवस की परेड में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया है। तीसरा-व्हाइट हाउस ने संकेत दिए है कि कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हस्तक्षेप कर सकते हैं। अमेरिकी सेंटकॉम के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अमेरिकी सरकार के कानूनी बाडी हाउस कमेटी आन आर्मड सर्विसेज की एक सुनवाई में कई बातें कही। हमें भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रिश्ते बनाकर रखने की जरूरत है। हम ऐसा विचार नहीं रख सकते कि अगर भारत के साथ संबंध रखना है तो हम पाकिस्तान के साथ नहीं रख सकते। पाकिस्तान के साथ हमारी काफी जबरदस्त साझेदारी है। पाकिस्तान ने आईएसआईएस-खोरासान के आतंकियों के खिलाफ काफी कार्रवाई की है, दर्जनों आतंकवादियों को मारा है। अमेरिका के साथ सूचनाएं साझा की है और बड़े आतंकियों को पकड़ने में मदद की है। सेंटकॉम चीफ ने असीम मुनीर का भी जिक्र करते हुए तारीफ की है कि कैसे सबसे पहले उन्होंने सरीफुल्लाह की गिरफ्तारी की सूचना उनको दी। सेंटकॉम प्रमुख ने पाकिस्तान सरकार के इस तर्क पर भी मुहर लगाई कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई तो लंबे समय से लड़ी जा रही है। उसमें भी वह प्रभावित हुए हैं। उक्त बयान के कुछ घंटों के बाद ही सूचना आई कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को अमेरिकी सैन्य समारोह में आमंत्रित किया गया है। यह समारोह 14 जून को है। ये वही मुनीर हैं जिन्होंने 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में एक भाषण में कश्मीर को पाकिस्तान को अपनी अपनी जीवन रेखा बताया था। उन्होंने टू नेशन थ्योरी का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिमों को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे हिंदुओं से अलग हैं। मुनीर के इस भड़काऊ बयान के बाद ही 22 अप्रैल को बारीसरन, पहलगाम में आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक शहीद हो गए। आखिर अमेरिका क्या कहना चाहता है? असीम मुनीर जैसे विवादित व्यक्ति को बुलाना भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। हालांकि आज भारत वैश्विक मंचों पर बहुत ऊंचे स्थान पर है। एक विचार है कि अमेरिका का असीम मुनीर को बुलाना और पाकिस्तान को अभूतपूर्व साझेदार कहना भले ही रणनीतिक हो लेकिन भारत के लिए ये साफ संकेत है कि वाशिंगटन अब इस क्षेत्र में बैलेंस बनाकर चलना चाहता है। इससे भारत की नई थर्ड पार्टी पॉलिसी को चुनौती मिलती है। हालांकि दोनों देशों से संबंध बनाएं रखने में अमेरिका की पुरानी नीति रही है, फिर भी यह कदम कूटनीतिक रूप से भारत के लिए असहज जरूर हैं। टैंशन नहीं, लेकिन सतर्कता जरूरी है। अमेरिका की मंशा और सोच पर कई सवाल खड़े होते हैं। फील्ड मार्शल मुनीर के बयान पहलगाम आतंकी हमले से जुड़े हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका की यह डिप्लोमेसी है या डबल गेम?
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 12 June 2025
पाक को अलग-थलग करने में हम विफल रहे
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीते 9 मई को, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज के रूप में एक अरब डॉलर की किश्त की मंज़ूरी दे दी। ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को 40 बिलियन डॉलर देने का निर्णय लिया... फिर एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पाकिस्तान को 800 बिलियन डॉलर दिए और कुछ दिन पहले 4 जून को पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया। पाकिस्तान के संदर्भ में हुई इन सभी डेवलपमेंट्स को कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सामने रखा है और भारत की विदेश नीति के पतन से जोड़कर देखा है। साथ ही उन्होंने वैश्विक समुदाय पर भी सवाल खड़े किए हैं।
पाकिस्तान इन नियुक्तियों को एक बड़ी जीत के रूप में पेश कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है यह उनके देश के लिए बहुत गर्व की बात है। उन्होंने एक्स पर किए एक पोस्ट में लिखा है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महत्वपूर्ण नियुक्तियां प्रमाणित करती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की आतंकवाद-रोधी कोशिशों पर पूरा भरोसा है। शरीफ ने कहा पाकिस्तान उन देशों में से एक है जो आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित है। आतंकवाद के कारण अब तक देश में 90,000 लोगों की जान जा चुकी है। देश को 150 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हो चुका है। पर भारत ने इसे लेकर खासी आपत्ति जताई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बीते 22 अप्रैल को निर्दोष, निहत्थे पर्यटकों पर हुए हमले के लिए भारत ने पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है। इससे पहले भी अलग-अलग म़ौकों पर, मसलन साल 2016 में उरी में भारतीय सैनिकों पर हमला, साल 2019 में पुलवामा में हुआ विस्फ़ोट या फिर साल 2008 में मुंबई के होटलों पर हुए हमले .साबित करते हैं कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान है। उनकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। ऑपरेशन सिंदूर भारत को मजबूरी में करना पड़ा। तीन-चार दिन के संघर्ष के बाद भारतीय सांसदों के सात अलग-अलग शिष्टमंडलों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा किया। पीआईबी की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक इस दौरे का मकसद ऑपरेशन सिंदूर और सीमापार आतंकवाद के खिलाफ भारत की निरंतर लड़ाई के बारे में सदस्य देशों को अवगत कराना था, जहां एक तरफ भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों के समक्ष सीमापार आतंकवाद का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान को घेरने की कोशिश में जुटा था, वहीं पाकिस्तान को इस यूएनएससी के आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुन लिया गया। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के डिप्लोमेटिक एडिटर सुभाजित राय ने लिखा है-शायद इन्हीं कारणों से भारत में एक असहजता की स्थिति नजर आ रही है। राजस्थान के एक पुलिस, सिक्यूरिटी एंड क्रिमिनल जस्टिस के इंटरनेशनल अ़फेयर्स असिस्टेंट प्ऱोफेसर विनय कौड़ा का कहना है कि पाकिस्तान जैसे देश को यूएनएससी जैसी संस्था में कोई भी ज़िम्मेदारी देना केवल कूटनीतिक संवेदनहीनता नहीं बल्कि इस पूरे ढांचे की खामी को उजागर करता है। पाकिस्तान को इन समितियों का हिस्सा बनाना उसी देश को आतंकवाद पर निगरानी की ज़िम्मेदारी सौंपने जैसा है, जिस पर स्वयं आतंकवाद को पनाह देने, जन्म देने और उसे विदेश नीति के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप हैं। ये भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद-रोधी ढांचे की विश्वसनीयता के लिए भी एक चिंता का विषय है। पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति कोई नया मुद्दा नहीं है, यह ऐतिहासिक तथ्यों और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दर्ज है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादियों को शरण देना हो, जैसे ओसामा बिन लादेन या हा]िफज़ सईद या फिर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को खुला समर्थन देना हो। पाकिस्तान ने लगातार आतंकवाद को अपनी राजनीति का उपकरण बनाया है, विशेष रूप से भारत के विरुद्ध। जेएनयू में असिस्टेंट प्ऱोफेसर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ये खबर भारत के लिए चिंता पैदा करने वाली है। ऐसी नियुक्तियां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों की तऱफ से हरी झंडी मिलने के बाद ही होती हैं और हरी झंडी देने का मतलब है ये स्वीकारना की पाकिस्तान का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है। हमारी कोशिश रही है कि आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका रही है पर दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ऐसा शायद नहीं मानते। जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान को सर्टिफिकेट देना उसकी बड़ी उपलब्धि रही है, वहीं यह भारत की एक बड़ी विफलता मानी जाएगी। हमारी विदेश नीति एक बार फिर नाकारा साबित होती है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 10 June 2025
मस्क बनाम ट्रंप बनाम अडानी
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आजकल प्रमुख उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं। पहले बात करते हैं एलन मस्क की। दुनिया के सबसे अमीर शख्स में से एक एलन मस्क और सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरा टकराव हो गया है। दोनों के बीच की असहमति अब पूरी तरह जुबानी जंग में तब्दील हो चुकी है। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर उनमें तलवारें खींची हुई हैं। मस्क की तरफ से ट्रंप के बार-बार टैक्स बिल के आलोचना किए जाने पर ट्रंप ने बेहद नाराजगी जताई। ट्रंप ने संघीय सरकार के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले एलन मस्क के कारोबारी सौदों को लेकर धमकी दी है। ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया वेबसाइट पर धमकी देते हए लिखा, अगर बजट में बात करनी है तो इसका सबसे आसान तरीका है एलन मस्क को मिलने वाली अरबों डालर की सब्सिडी और कांट्रेक्ट खत्म कर दिए जाएं। फिलहाल तो ट्रंप और मस्क के झगड़े के बाद मस्क की कंपनी टेस्ला के शेयर गुरुवार को 14 फीसदी गिर गए। हालांकि यह जंग एकतरफा का नहीं थी। ट्रंप के हमले के बाद मस्क ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाने तक की बात की और मांग कर दी। मस्क ने पलटवार करते हुए यहां तक कह दिया कि मैं न होता तो ट्रंप चुनाव हार जाते। उन्होंने ट्रंप पर बेवफाई का आरोप भी लगाया। यही नहीं मस्क ने कहा कि अब नई पार्टी बनाने का समय आ गया है जोकि 80 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करे। इस टकराव का असर अमेरिका की राजनीति, अंतरिक्ष कार्पामों और वैश्विक टेक जगत पर भी पड़ सकता है। इधर ट्रंप और उनकी एजेसियां भारत के बड़े उद्योगपति गौतम अडानी के पीछे भी हाथ धोकर पड़ी हुई है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिकी अभियोजक जांच कर रहा है कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अडानी की कंपनियों ने मुद्रा पोर्ट के रास्ते में ईरानी लिक्विडफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का आयात किया था। हालांकि अडानी एंटरप्राइजेस ने एक बयान में इस रिपोर्ट को बेबुनियाद और नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा, हमें इस मामले पर अमेरिकी अधिकारियों की ओर से की गई किसी जांच के बारे में जानकारी नहीं है। वाल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि उसे गुजरात के मुद्रा बंदरगाह और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले टैकरों में कुछ ऐसे संकेत दिखे हैं, जो एक्सपर्ट्स के अनुसार प्रतिबंधों से बचने वाले जहाजों में आम होते हैं। अपनी रिपोर्ट में अखबार ने यह भी कहा कि अमेरिका का न्याय विभाग अडानी समूह की प्रमुख इकाई अडानी एंटरप्राइजेज को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई एलपीजी टैकरों की गतिविधियों की समीक्षा कर रहा है। ये जांच ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई में ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स की खरीद पर पूरी तरह रोकने का आदेश दिया था और कहा था कि जो देश या व्यक्ति ईरान से खरीददारी करेगा, उस पर तुरन्त से सेकेंडरी सेक्शंस लगाए जाएंगे। अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में लिखा कि एशिया के हमारे सबसे बड़े अमीर शख्स गौतम अडानी अपने खिलाफ अतीत में लगे आरोपों को खारिज करवाने की कोशिशों में जुटे हैं। बीते साल नवम्बर में ही गौतम अडानी पर अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वत का मुकदमा दायर किया गया था। अखबार ने लिखा है कि ब्रकलिन में अमेरिकी अटार्नी कार्यालय की ओर से की जा रही जांच अडानी के लिए समस्या साबित हो सकती है। वाल स्ट्रीट के अनुसार बीते साल की शुरुआत में अमेरिकी एजेंसियों ने मुद्रा पोर्ट से फारस की खाड़ी जाने वाले जहाजों की गतिविधियों को जांचा था। जहाजों को ट्रैक करने वाले एक्सपर्टस का कहना है कि ऐसे जहाजों में देखा गया है जो आवाजाही के दौरान अपनी पहचान स्पष्ट नहीं रखते। वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट पर अडानी समूह ने बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी है कि अडानी समूह की कंपनियों और ईरान एलपीजी के बीच संबंध का आरोप लगाने वाली वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट निराधार और नुकसान पहुंचाने वाली है। अडानी जानबूझकर किसी भी तरह के प्रतिबंधों से बचने का ईरानी एलपीजी से जुड़े व्यापार में संलिप्तता से साफ इंकार करते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 7 June 2025
न्यायपालिका में सवाल भ्रष्टाचार का
भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाओं का जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे पूरी व्यवस्था की अखंडता में विश्वास कम होता है। ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने पर एक गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यदि कोई जज सेवानिवृत्ति के तुरन्त बाद सरकार के साथ कोई अन्य नियुक्ति लेता है या चुनाव लड़ने के लिए बेंच से इस्तीफा देता है तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इसकी सार्वजनिक जांच होनी चाहिए। सीजेआई ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कहा कि जब भी भ्रष्टाचार और कदाचार के ये मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित उपाय किए हैं। इसके अलावा हर प्रणाली चाहे वह कितनी भी मजबूत क्यों न हो, पेशेवर कदाचार के मुद्दों के लिए अतिसंवेदनशील होती है। सीजेआई ने कहा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामलों से लोगों के मन में इसके प्रति विश्वास कम होता है। हालांकि, इस विश्वास को इन मुद्दों पर त्वरित निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई से दोबारा कायम किया जा सकता है। भारत में भी ऐसे मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित कदम उठाए हैं। सीजेआई की यह टिप्पणी इलाहाबाद के जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार आरोपों के मुद्दे पर आई। वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हर लोकतंत्र में न्यायपालिका को न केवल न्याय प्रदान करना चाहिए बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रख सकती है। हम सीजेआई के शब्दों के लिए उनकी सराहना करते हैं। अगर हम पिछले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना को छोड़ दें तो उससे पहले कई सीजेआई पर सत्ता की तरफ झुकने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ को तो सत्ता के हक में फैसले देने के लिए सेवानिवृत्त होने के बाद पुरस्कृत भी किया गया। प्रधान न्यायाधीश गवई ने भारतीय न्यायपालिका के भी जड़े जमा रही या जमा चुकी उन समस्याओं को दबे साफ शब्दों में स्वीकार किया। जिन्हें लेकर उंगुलियां उठती रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय और कुछ हाईकोर्टों के जजो के राजनीतिक दबाव में या निजी स्वार्थ साधने के मकसद से फैसले सुनाने को लेकर काफी असंतोष जाहिर किया जाता रहा है। कटु सत्य तो यह है कि राजनीतिक लाभ और सत्तापक्ष के दबाव से मुक्त हुए बिना न्यायपालिका सही अर्थों में अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह नहीं कर सकती। इसीलिए प्रधान न्यायाधीश का इस दिशा में प्रयास सराहनीय है। लोकतंत्र में न्यायपालिका पर जनता का विश्वास इसलिए भी बने रहना बहुत जरूरी है कि यही एक स्तंभ है जिस पर संविधान की रक्षा का दायित्व और राजनीतिक तथा व्यवस्थागत कदाचार पर नकेल कसने का मजबूत अधिकार है। चीफ जस्टिस गवई ने यह भी साफ कर दिया है कि देश में न तो कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया सबसे ऊपर है, सबसे ऊपर देश का संविधान है और देश संविधान से ही चलेगा। सीजेआई के वक्तव्यों की हम सराहना करते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 5 June 2025
यूक्रेन ने रूस में 4000 किमी घुसकर मारा
करीब तीन साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन ने रविवार को रूस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला (ड्रोन) किया। इसमें यूक्रेन के अनुसार रूस के सैन्य विमान तबाह करने का दावा किया गया है। हमले से हुए नुकसान की अनुमानित लागत 1.5 अरब पाउंंड (करीब 1.72 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा बताई गई है। यूक्रेन ने इस अभियान को ऑपरेशन स्पाइडर वेब का नाम दिया। उधर रूस पर हुए इस हमले को रूस का पर्ल हार्बट कहा जा रहा है। इस बीच रूस ने भी यूक्रेन पर अब तक का सबसे बड़ा हमला ड्रोन से किया है। 472 ड्रोन और 7 मिसालें दागी गईं। इस हमले में यूक्रेन के 12 सैनिक मारे गए और 60 से ज्यादा घायल हुए। रूसी मीडिया और युद्ध समर्थकों ने इसे रूस के लिए एविएशन का सबसे बड़ा काला दिन बताया और पुतिन से परमाणु हमले की मांग की। ड्रोन को ट्रकों में कंटनेर के जरिए रूस के अंदर ले जाया गया। एक ट्रक मुरमांस्क के ओलेनेर्गस्क में पेट्रोल पंप पर रूका था, जहां से ड्रोन निकालकर एयरबेस की ओर बढ़े। ड्रोन एफपी की तकनीक से लैस थे और सैटेलाइट से नियंत्रित हो रहे थे। बाद में इस कंटेनर को भी उड़ा दिया गया। रूस के बेलाया एयरबेस समेत कई एयरफील्डस को निशाना बनाया गया। हमला रूस के इरकुत्स्क क्षेत्र में हुआ जो यूक्रेन से 4 हजार किलोमीटर दूर है। जिन विमानों पर यूक्रेन ने हमला किया, वे परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थे। रूस की परमाणु नीति के अनुसार अगर किसी हमले से उसकी परमाणु क्षमता प्रभावित होती है तो वह परमाणु जवाब दे सकता है। इसीलिए पुतिन के समर्थक खुलेआम मांग कर रहे हैं कि रूस यूक्रेन पर परमाणु जवाबी हमला करे। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता होनी है। इससे पहले इस तरह का बड़ा हमला रूस पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। कुछ अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक में स्थित रूस के परमाणु बेस पर भी हमला हुआ है। यह बेस रूस की उत्तरी पलीर का मुख्यालय है। कोला प्रायद्वीप पर हुए विस्फोटों के बाद काले धुएं का वीडियो भी सामने आया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि वहां क्या निशाना बना। एक यूक्रेनी सैन्य अफसर ने बताया कि यह ऑपरेशन करीब डेढ़ साल की तैयारी के बाद अंजाम दिया गया। इसकी योजना खुद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की निगरानी में बनाई गई। इन हमले में इस्तेमाल ड्रोन यूक्रेन में विकसित और निर्मित थे, जो रूस की सीमा पर सटीकता से निशाना बनाने में सफल रहे। यह हमला रूसी डिफेंस को कमजोर करने के लिए था। इसके जरिए रूसी वायुसेना को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान होने का भी दावा किया जा रहा है। इस हमले में मिग और सुखोई जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान, निगरानी विमान और कुछ परिवहन विमानों को नष्ट करने की बात भी सामने आई है। रूस को जो नुकसान पहुंचा हो शायद विश्लेषक उसका आंकलन कर रहे हों या न कर रहे हों। लेकिन ऑपरेशन स्पाइडर वेब से एक महत्वपूर्ण संदेश सिर्फ न रूस बल्कि यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों को भी गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा कर रहे थे कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध को रूकवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। यह तो उल्टा बढ़ गया है और निहायत खतरनाक दौर में पहुंच गया है। ऊपर वाला दोनों रूस-यूक्रेन को सद्बुद्धि दे और इस युद्ध को रोकने का हरसंभव प्रयास करें।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 3 June 2025
रक्षा सौदों की आपूर्ति में देरी
पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को लेकर तीनों सेनाओं की हो रही सराहना के बीच वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने मानो एक बम फोड़ दिया है। वायुसेना प्रमुख ने रक्षा सौदे होने के बावजूद आपूर्ति में देरी पर खुलेतौर पर गंभीर चिंता का इजहार किया। भारतीय वायुसेना को लाइट काम्बेट एयराफ्ट (एलसीए) तेजस की आपूर्ति में हो रही देरी की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई बार हम रक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय जानते हैं कि ये उपकरण सिस्टम में समय पर नहीं आएंगे। वायुसेना प्रमुख ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि एक भी परियोजना समय पर पूरी नहीं हुई है। रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों और एजेंसियों को बेबाक संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि हम ऐसा वादा ही क्यों करें, जो पूरा नहीं हो सकता। वायुसेना प्रमुख ने पावार को शीर्ष उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना बैठक के एक सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। दुनिया फिलहाल जिस संवेदनशील दौर से गुजर रही है और भारत के सामने अपने कुछ पड़ोसी देशों के अस्थिर रुख की चुनौतियां खड़ी रहती हैं, वैसे में सुरक्षा का हर मोर्चा हर वक्त पूरी तरह चौकन्ना और दूरुस्त रहना एक अनिवार्य तकाजा है। रक्षा परियोजनाओं में देरी पर एयर मार्शल एपी सिंह की चिंता और सवाल वाजिब है। दोतरफा मोर्चे पर जूझ रही भारतीय सेना के आधुनिकता में तेजी लाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत भी रक्षा उत्पादन में तेजी लानी होगी। कटु सत्य तो यह है कि पिछले दस-ग्यारह सालों से केंद्र सरकार ने रक्षा उत्पादों की ओर ध्यान नहीं दिया है। हमारी वायुसेना में 200 फाइटर जेट्स की कमी पिछले कई सालों से चली आ रही है। एयर मार्शल एपी सिंह समय-समय पर चेताते भी रहे हैं। पर न तो रक्षा मंत्री ने कोई ध्यान दिया न केंद्र सरकार ने। हम अभी 10 साल पहले के दौर में हैं जहां तक काम्बेट एयराफ्ट का सवाल है और हमारे दुश्मन चीन 5वीं जेनेरेशन के फाइटर एयराफ्ट बना चुका है और पाकिस्तान को देने को तैयार है। भारतीय वायुसेना के पास 42.5 स्क्वाडन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 301 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तैनात मार्क ए की डिलीवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायुसेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही जिस तरह चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। रक्षा परियोजनाओं के तहत अगर किसी संदर्भ में वादे किए जाते हैं तो उन्हें समय पर पूरा करने को लेकर भी उतनी ही सत्यता होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी और संसाधनों के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता सबसे बेहतर समाधान है, लेकिन तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। एयर मार्शल एपी सिंह की पीड़ा को हम समझ सकते हैं। बावजूद इन कमियों के हमारे जवानों ने दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारतीय वायुसेना की है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 31 May 2025
संघर्ष विराम के बाद भी अनसुलझे सवाल
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम को लगभग 2 सप्ताह होने को जा रहे हैं। बेशक हमने 7 मईं को 22 अप्रैल की पहलगाम आतंकी घटना के बाद पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। उनके 9 आतंकी अड्डों को नष्ट किया, कईं एयरबेस तबाह किए पर हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।
इतने दिन बाद भी कईं अनसुलझे सवाल पूछे जा रहे हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि वो तीन-चार आतंकी कहां हैं जिन्होंने पहलगाम में नरसंहार किया था? आज तक उनका पता नहीं चला कि वह मर गए या जिंदा हैं? कहां है? सरकार की ओर से आज तक कोईं जवाब नहीं मिला। सवाल पूछा जा रहा है कि जिन उद्देश्यों को लेकर हमने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था क्या वह उद्देश्य पूरे हो गए? बेशक हमने जैश और लश्कर-एतै यबा के ठिकानों को नष्ट कर दिया हो, पर क्या यह आतंकवाद की जड़ है। जड़ तो पाक सेना और आईंएसआईं है। पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर का करारा जवाब देते हुए उस जेहादी जनरल आसिम मुनीर को पदोन्नति करके उसे फील्ड मार्शल बना दिया। खबर तो यह भी है कि चीन पाकिस्तान की ऑपरेशन सिंदूर में हुईं क्षति की पूर्ति करने में लगा है।
गोला-बारूद से लेकर ऑर्टिलरी गन, सर्वेलैंस इक्वीपमेंट से लेकर अत्याधुनिक विमान तक देने की कोशिश कर रहा है और हमारा क्या हाल है? चौंकाने वाली बात सामने आईं है कि जब भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने खुलकर कहा कि हमारे को पर्यांप्त लड़ावू विमान नहीं मिल रहे और भारतीय वायुसेना में कम से कम 200 विमानों की कमी है।
उन्होंने चौंकाने वाली बात यह भी कही कि हमें मालूम है कि एचएएल अपनी समय सीमा में विमानों की आपूर्ति नहीं कर सकती? यह सरकार को खुली चुनौती भी है और आलोचना भी। चाहे भाजपा भक्त हों चाहे आम नागरिक हो, सवाल पूछे रहे हैं कि आपने जीती हुईं बाजी क्यों हारी? यहां तक कि भाजपा के भक्त भी कह रहे हैं कि आपने जीत से हार क्यों छीन ली? आप पर कौन सा दबाव था जिसके कारण आपने ऐसा किया? क्या अमेरिकी राष्ट्रपति का कोईं ऐसा दबाव था जिसका आज तक आप जवाब नहीं दे सके। जम्मू-कश्मीर में विश्वास बहाली के लिए वेंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए? आज तक इतने दिन बीतने के बाद भी न तो नंबर बनाए, न दो नंबर या नंबर तीन। उधर उमर अब्दुल्ला बधाईं के पात्र हैं कि वह कम से कम विश्वास बहाली का प्रयत्न तो कर रहे हैं। पर्यंटकों को वापस बुलाने के लिए वह पहलगाम में वैबिनेट बैठक कर रहे हैं, सड़कांे पर साइकिल चला रहे हैं और आपके पास इतना समय नहीं, न ही आपकी प्राथमिकता है कि जम्मू-कश्मीर की जनता को यह विश्वास दिलाएं कि हम आपके इस दुख की बेला में साथ खड़े हैं। पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उसकी मनुस्थिति घायल जानवर की तरह है जो मौका देखते ही फिर झपटा मारेगा। इसलिए हमें पूरी चौकसी रखनी होगी। सेना की जरूरतों को हर हालत में पूरा करना होगा। ऑपरेशन सिंदूर से सियासी फायदा लेने का प्रयास नहीं होना चाहिए। इसका सारा व्रेडिट हमारी पराव्रमी सेना को जाता है और आपके नेता खुलेआम सेना के अधिकारियों की बेइज्जती करने में लगे हैं और आप राजनीतिक हानि-लाभ के चलते उनके खिलाफ वुछ नहीं करते। उम्मीद है कि वेंद्र सरकार इन कमियों को जल्द पूरा करेगी। जय हिंद।
——अनिल नरेन्द्र
Thursday, 29 May 2025
ट्रंप के पाक परस्त होने के पीछे
होने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के व्रिप्टो कारोबार की गूंज अब पाकिस्तान पहुंच गईं है। रिपोट्र्स के मुताबिक, ट्रम्प और उनके परिवार द्वारा समर्थित व्रिप्टो फर्मो का नया ठिकाना अब पाकिस्तान बनने जा रहा है। इस वंपनी की कमान खुद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बेटे सलमान शहबाज के हाथों में होगी। दुबईं में बनी एक संदिग्ध ब्लॉकचेन फर्म हाईंलैंड सिस्टम्स के जरिए यह सारा नेटवर्व खड़ा किया जा रहा है। हाईंलैंड सिस्टम्स की मदद से पाकिस्तान सरकार ब्लॉकचेन और व्रिप्टो माइनिग तकनीक विकसित करेगी। वंपनी में ट्रम्प के बेटे एरिक ट्रम्प और पाकिस्तान के टॉप मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर्स भी साझेदार हैं। दरअसल, ट्रम्प के करीबी निवेशक और व्रिप्टो लॉबी पहले से ही अमेरिका में रेगुलेशन की सख्ती से नाराज है। ऐसे में वे ऐसे देशों की तलाश में हैं, जहां नियम ढीले हों और सत्ता से सीधा तालमेल हो। पाकिस्तान इस समय वह गढ़ बनकर उभरा है। आर्थिक अस्थिरता और सरकार की अमेरिका के साथ संबंध सुधारने की तत्परता जैसे कारण पाक को ट्रम्प के वुनबे के लिए व्रिप्टो हब बनाने के लिए एक आदर्श देश बना रहे हैं। बता दें कि शहबाज सरकार व्रिप्टो को वैध करेंसी के रूप में मान्यता देने की भी योजना बना रही है।
वल्र्ड लिबटा फाइनेंशियल (डब्ल्यूएलएफ) ने शहबाज सरकार द्वारा गठित पाकिस्तान व्रिप्टो काउंसिल (पीकेके) से डील की है। डब्ल्यूएलएफ में ट्रम्प वुनबे की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के वुछ महीने पहले ही यह वंपनी लॉन्च हुईं थी। डब्ल्यूएलएफ ने मार्च में यूएसडी 1 नामक स्टेबलकॉइन लॉन्च किया, जो 18 हजार करोड़ के माव्रेट वैप तक पहुंच गया है। डब्ल्यूएलएफ में ट्रम्प खुद चीफ व्रिप्टो एडवोकेट हैं। उनके बेटे एरिक भी शीर्ष पोस्ट पर हैं। इसके अलावा ट्रम्प परिवार की वंपनियों के पास ट्रम्प मीमकॉइन का 80 प्रतिशत हिस्सा भी है, जिसकी वर्थ एक लाख करोड़ तक पहुंच चुकी है। मेलानिया भी अलग मीमकॉइन लॉन्च कर चुकी हैं। वहीं, बेटे एरिक, दामाद जेरेड वुश्नर ने भी व्रिप्टो में बड़ा निवेश किया है। ट्रम्प वुनबे का व्रिप्टो में दांव अब उनके अचल संपत्तियों का बड़ा हिस्सा हो गया है। सलमान की अगुवाईं वाली एसएसआईं टेक्नोलॉजीज पाकिस्तान की सबसे बड़ी सोलर पैनल इंपोर्टर है। अब ये वंपनी हाईंलैंड सिस्टम्स के साथ मिलकर पाकिस्तान में व्रिप्टो माइनिग नेटवर्व तैयार करेगी। दरअसल, व्रिप्टो माइनिग में सबसे ज्यादा खर्च बिजली का होता है। इसी समस्या के समाधान के लिए एसएसआईं टेक्नोलॉजीज को इस नेटवर्व का अहम भागीदार बनाया गया है। सूत्रों के अनुसार, वंपनी पाकिस्तान के सिध और बलूचिस्तान में सोलर फर्म स्थापित करेगी, जिनकी बिजली से माइनिग ऑपरेशंस को चलाया जाएगा। पाकिस्तान व्रिप्टो अपनाने के मामले में अभी दुनिया में नौवें नंबर पर है। अमेरिका से व्रिप्टो ब्लॉकचेन और माइनिग तकनीक विकसित करने को लेकर हुईं डील के बाद इसमें और बढ़त के आसार हैं। अब धीरे-धीरे समझ आ रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान की ओर झुकने और भारत को दिन-रात कोसने का एक कारण। यह नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप के लिए सबसे बड़ा धंधा व्यापार है, पैसा है और यह जहां से भी अर्जित हो सके वे करेंगे।
——अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 27 May 2025
चीन, पाकिस्तानतालिबान की दोस्ती
पाकिस्तानतालिबान की दोस्ती पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार अपनी चीन यात्रा पूरी कर चुके हैं। गत बुधवार को बीजिग में इसहाक डार ने अफगानिस्तान के कार्यंकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। तीनों देशों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गालियारे (सीपीईंसी) का अफगानिस्तान तक विस्तार करने पर सहमति जताईं है।
पाक विदेश मंत्रालय ने जारी किया बयान में कहा- चीन और पाकिस्तान ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआईं) सहयोग के व्यापक ढांचे के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईंसी) का अफगानिस्तान तक विस्तार करने का समर्थन किया है, चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता, संप्राभुता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा करने का भी समर्थन किया है। भारत सीपीईंसी की आलोचना करता रहा है क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान प्राशासित कश्मीर से होकर गुजरता है। सीपीईंसी चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना का हिस्सा है। इसलिए भारत इसका भी विरोध करता है। यह त्रिपक्षीय बैठक विदेश मंत्री एस. जयशंकर की आमिर खान मुत्तकी से बातचीत के वुछ दिन बाद हुईं है। हालांकि भारत नेअभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। जब इस बारे में विदेश मंत्रालय के प्रावक्ता रणधीर जायसवाल से इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, हमने वुछ रिपोट्र्स देखी है। इसके अलावा हमें इस बारे में और वुछ नहीं कहना है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रावक्ता लिन जियान ने बीजिग में हुईं इस बैठक को अनौपचारिक बताया है। चीन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, अफगानिस्तान और पाकिस्तान ने राजनयिक संबंधों को आगे बढ़ाने का स्पष्ट रुख व्यक्त किया है। चीन और पाकिस्तान, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास का समर्थन करता है। चीन साल 2021 में आने के बाद तालिबान सरकार के साथ राजनीतिक संबंध जारी रखने वाले शुरुआती देशों में से एक था। इस मुलाकात को पाकिस्तान की भारत के खिलाफ वूटनीतिक रणनीति और क्षेत्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश के रूप में एक और कदम देखा जा सकता है। चीन-पाकिस्तान और अफगानिस्तान अगर करीब आते हैं तो भारत की विदेश नीति को एक और करार झटका लगता है। वैसे ही आपरेशन सिदूर ने इतना तो साबित कर ही दिया है कि भारत की विदेश नीति, कोर नीति पूरी तरह से असफल ही है। इसका जीता जागत सुबूत है कि आपरेशन सिदूर के दौरान सिवाय इक्का-दुक्का देश के और कोईं देश भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ। माने या न माने हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर बुरी तरह से पेल हो गए है और मोदी जी के लिए एक बोझ बन गए हैं जिन्हें बदलना अति आवश्यक हैं। प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संयुक्त दलों का प्रातिनिधिमंडल विदेश में भारत के स्टैंड को बताने का पैसला सराहनीय है। यह भी अच्छा कदम है कि इस व््राइसिस के समय पूरी पिछली सरकार और वेंद्र सरकार मिलकर काम करें। पाकिस्तान वूटनीति और विदेश नीति में हमारे से बेहतर रहा है। अब अगर चीन-पाक और तालिबान भी एक मंच पर आ जाते हैं तो भारत की चिता और बढ़ जाती है। दुर्भाग्य यह है कि तालिबान सरकार भूल गईं है कि उसके पुनर्निर्माण में भारत ने कितनी मदद की और कर रही है। पर चीन के सामने शायद ही कोईं टिक सके और चीन हमें घेरने में कोईं कसर नहीं छोड़ रहा है।
——अनिल नरेन्द्र
Saturday, 24 May 2025
छत्तीसगढ़ में मारा माओवादियों का शीर्ष कमांडर
का शीर्ष कमांडर छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में 27 नक्सलियों को मार गिराया। सूत्रों के मुताबिक सुरक्षा बलों ने इस मुठभेड़ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्प बसवराजू को मार गिराया। इस घटना में हमारा एक जवान भी शहीद हो गया। 70 साल के नंबाला केशव राव को नक्सली आंदोलन में बसवराजू के नाम से जाना जाता है। बुधवार को नारायणपुर में पुलिस ने मुठभेड़ में 27 माओवादियों के साथ बसवराजू को मार गिराया। केशव राव का मारा जाना कितना महत्वपूर्ण है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इसकी अधिकारिक घोषणा बस्तर के किसी पुलिस अधिकारी या राज्य के गृहमंत्री, मुख्यमंत्री ने नहीं की। सबसे पहले देश के गृहमंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर केशव राव के मारे जाने की अधिवृत जानकारी दी। वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक्स पर पोस्ट किया- नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाईं में एक ऐतिहासिक उपलब्धि आज छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों ने 27 खूंखार माओवादियों को मार गिराया है, जिनमें सीपीआईं माओवादी के महासचिव शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ नंबाला केशव राव उर्प बसवराजू भी शामिल हैं। बस्तर के आईंजी पुलिस सुंदरराज पी कहते हैं वर्ष 2024 में जिस तरीके से सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ एक निर्णायक और प्रभावी अभियान संचालित किया गया, उसे 2025 में भी हम लगातार आगे ले जा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि माओवादी संगठन के महासचिव, जो सीपीआईं माओवादी का पोलित ब्यूरो मेंबर भी है, मारा गया। एनआईंए से लेकर सीबीआईं और अलग-अलग राज्यों की सरकारों द्वारा केशव राव उर्प बसवराजू पर घोषित इनाम की रकम डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक पहुंच गईं है।
बसवराजू की उम्र करीब 70 साल थी। बसवराजू जितना वुख्यात था उतना ही दुष्ट-दरिंदा भी। वह गुरिल्ला शैली के हमलों के लिए जाना जाता था। यह सराहनीय है कि वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अगले वर्ष मार्च तक माओवाद के खात्मे को लेकर प्रतिबद्ध हैं। इसी कारण ऑपरेशन सिंदूर के समय भी माओवादियों पर प्रहार जारी है। पिछले एक वर्ष में नक्सली कहे जाने वाले माओवादी बड़ी संख्या में मारे गए हैं।
सुरक्षा बलों के दबाव में कईं माओवादियों ने आत्मसमर्पण भी किया है।
यह दबाव कायम रहना चाहिए ताकि वे फिर से सिर न उठा सवें।
माओवादी जिस विषैली विचारधारा से लैस हैं, वह बंदूक के बल पर सत्ता छीनने में यकीन रखते हैं, इसी कारण माओवादी न तो लोकतंत्र मानते हैं और न ही संविधान। वे यह मुगालता पाले हैं कि एक दिन शासन, प्रशासन, न्याय व्यवस्था आदि को पंगू करके भारत पर काबिज हो जाएंगे। अर्बन नक्सल कहे जाने वाले ऐसे तत्वों से सतर्व रहने के साथ यह समझना चाहिए कि माओवादी इन गरीबों, वंचितों के हित की फर्जी आड़ लेते हैं, उनके शत्रु भी हैं। इस शानदार उपलब्धि पर गृहमंत्री, तमाम सुरक्षा बलों को बधाईं।
——अनिल नरेन्द्र
Thursday, 22 May 2025
आईंएसआईं की जासूस ज्योति मल्होत्रा
हरियाणा और पंजाब पुलिस ने पाकिस्तान की आईंएसआईं को खुफिया जानकारी मुहैया कराने के आरोप में जिन लोगों को हाल ही में गिरफ्तार किया है, उनमें हरियाणा की ट्रैवल ब्लॉगर और यूटाूबर ज्योति मल्होत्रा भी शामिल हैं। हरियाणा पुलिस के मुताबिक ज्योति मल्होत्रा के मोबाइल और लैपटॉप से वुछ संदिग्ध सामग््िरायां मिली हैं। उनके खिलाफ ऑफिशियल सीव््रोटस एक्ट, भारतीय न्याय संहिता धारा-152 के तहत उनकी गिरफ्तारी की गईं। गिरफ्तारी के बाद से ही ज्योति की पाकिस्तान यात्रा की काफी चर्चा हो रही है। ज्योति मल्होत्रा के यूटाूब चैनल और इंस्टाग्राम पन्नों का नाम ट्रैवल विद जो चला रही हैं। उनके यूटाूब चैनल पर 3.79 लाख से ज्यादा सब्सव््राइबर हैं और इंस्टा पर 1.40 लाख फालोअर्स हैं। उन्होंने देश के अलग-अलग राज्यों में अपनी यात्रा के वीडियोज से लेकर अपनी विदेश यात्रा के कईं वीडियो पोस्ट किए हैं। ज्योति की गिरफ्तारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईंएसआईं से जुड़े जासूसी नेटवर्व के खिलाफ देश की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तेज करने के नतीजे से हुईं है। दावा किया जा रहा है कि ज्योति मल्होत्रा को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों एसेट के तौर पर तैयार कर रही थी। ज्योति पर कईं तरह के आरोप लगे हैं। वैसे वो पाकिस्तानी उच्चायोग के संपर्व में आईं और आगे क्या हुआ यह सब डिटेलस मीडिया में आ चुकी है। उन्हें दोहराने की आवश्यकता नहीं है।
काम की बात यह है कि पाक खुफिया एजेंसियों से भी संपर्व में थी और यहां तक दावा किया जा रहा है कि उन्होंने आपरेशन सिदूर की भी खुफिया जानकारी पाक को पहुंचाईं। हिसार के एसपी शशांक वुमार सवान ने रविवार को बताया कि ज्योति पाकिस्तान हाईं कमीशन में तैनात अधिकारी दानिश उर्प एहसान-उर-रहीम के संपर्व में थी। यह संपर्व 22 अप्रौल को पहलगाम हमले के बाद भारत-पाक के चार दिवसीय सैन्य तनाव के बाद भी बना रहा। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि ज्योति के पास सैन्य जानकारी तक सीधी पहुंच थी या नहीं लेकिन पाकिस्तान इंटेलीजेंस आपरेशन के भी सीधे संपर्व में थी। एफआईंआर के अनुसार 2023 में पाकिस्तानी वीजा के लिए आवेदन करते समय वह दानिश के संपर्व में आईं थी। ज्योति ने दो बार पाकिस्तान और चीन की एक बार यात्रा की। पीटीआईं के अनुसार हिसार एसपी का कहना है कि ज्योति पीआईंओ के संपर्व में थी। इंडियन एक्सप्रोस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्योति पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने और अपने वंटेंट के जरिए पाकिस्तान की सकारात्मक छवि पेश करने के लिए वहां के हैंडलर्स से सीधे संपर्व में रहने का आरोप है। ज्योति के पिता हरीश वुमार ने बीबीसी को बताया कि पुलिस अधिकारी गुरुवार सुबह साढ़े नौ बजे आए और ज्योति को अपने साथ ले गए। पांच-छह लोग आए और आधे घंटे तक घर की तलाशी ली। जिसके बाद तीन मोबाइल और लैपटॉप धर लिया। उन्होंने कहा मेरी बेटी सरकार की अनुमति से पाकिस्तान गईं थी। उसकी जांच भी की गईं और फिर से वीजा दिया गया जिसके बाद वह पाकिस्तान गईं थी। रिपोर्ट के अनुसार ज्योति के मोबाइल फोन में पाकिस्तान उच्चायोग के कईं अधिकारियों के नंबर मिले हैं। जिनसे वह निरंतर संपर्व में रहती थी और देश की महत्वपूर्ण जानकारी और सूचनाएं उन तक पहुंचा रही थी। हैरान करने वाली बात यह है कि वह देश भक्ति का लबादा ओढ़कर अपनी करतूतों को अंजाम दे रही थी। इन लोगों की गिरफ्तारियां भारतीय एजेंसियों की बहुत बड़ी सफलता है। पर जरूरी है कि ज्योति जैसे पाकिस्तानी एसेट्स को पूरे नेटवर्व को जड़ से खत्म किया जाए। उन लोगों तक भी पहुंचा जाए जिसमें ये लोग संपर्व में थे।
इससे पहले एक महिला समेत दो लोगों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईंएसआईं से जुड़े जासूसी नेटवर्व के खिलाफ हमारी एजेंसियों द्वारा कार्यंवाही तेज करने के नतीजे से हुईं। देश जहां विदेशी ताकतों से लड़ रहा है वहां देश के अंदर से दुश्मन के एसेट्स से पहले निपटा जाए? ——अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 20 May 2025
ब्रह्मोस का खौफ
भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच 8-9 मई की रात जब ब्रह्मोस मिसाइल ने रावलपिंडी के एयरबेस तक कहर बरपा दिया तो पाकिस्तान सेना के पैरों तले जमीन खिसक गई। नतीजा यह हुआ कि सैन्य हेडक्वाटर्स को रावलपिंडी से पाक की राजधानी इस्लामाबाद में शिफ्ट करने के बरसों से अटके प्रोजेक्ट में तेजी आ गई। नए जनरल हेडक्वाटर्स (जीएचक्यू) को इस्लामाबाद की मरगला हिल्स की तलहटी में शिफ्ट किया जा रहा है। जीएचक्यू यानी पाकिस्तानी सेना की सीधी रिपोर्टिंग और कमांड पोस्ट यहीं होती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने मीडिया रिपोर्टें के अनुसार यह स्वीकार किया है कि ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तानी सेना के अड्डों पर भारी नुकसान किया है। ब्रह्मोस को भारतीय सेना का एक ताकतवर हfिथयार माना जाता है। अब तो दुनिया भी ब्रह्मोस की मारक क्षमता को मानने लगी हैं। ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसे पनडुब्बी, शिप, एयर क्राफ्ट पर जमीन पर कहीं से भी छोड़ा जा सकता है। भारत ने रूस के साथ एक साझेदारी में ब्रह्मोस को विकसित किया है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है। ब्रह्मोस मिसाइल की गति ही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। यह आवाज की गति से करीब तीन गुना तेजी से उड़ती है। यही स्पीड इसे बहुत ही मारक और दुश्मन के रडार में कभी न पकड़ में आने वाली मिसाइल बनाती है। इसका निशाना इतना सटीक है कि 290 किलोमीटर की दूरी पर भी अपने लक्ष्य से एक मीटर घेरे के अंदर ही गिरती है, यह एक क्रूज मिसाइल है। इस मिसाइल का इंजन अंत तक चलता रहता है। इस दौरान यूएवी की तरह ही इसके लक्ष्य को बदला जा सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका सीकर सेंसर इतना घातक है कि एक समान लक्ष्य में से असली लक्ष्य पहचान कर उसे तबाह करने में सक्षम है। इसकी सटीक ड्राइविंग तकनीक कमाल की है, यह मिसाइल सतह से चंद मीटर ऊपर उड़ती हुई सामने आने वाली बाधा को पार कर दुश्मन पर अचानक हमला करने की क्षमता रखती है। इस मिसाइल के निर्माण के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी डीआरडीओ के तत्कालीन प्रमुख डा. एपीजे अब्दुल कलाम और रूस के उप रक्षामंत्री एनबी मिखाइलोव ने 12 फरवरी 1998 को हस्ताक्षर किए। इसके बाद ब्रह्मोस एयरोस्पेस कंपनी का गठन किया गया। इस समय यही कंपनी मिसाइल का उत्पादन कर रही है। ब्रह्मोस 290 किलोमीटर तक उड़ सकती है इस। यह दस मीटर से पंद्रह मीटर तक की ऊंचाई से उड़ान भरने में सक्षम है। साल 2007 में भारतीय सेना में भी इसे शामिल किया गया। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30 और एमकेआई विमान से हवा से लांच किया जाने वाला संस्करण अपनाया। अभी ब्रह्मोस मिसाइल का वजन 2900 किलोग्राम है। इसके कारण लड़ाकू विमानों पर एक बार में एक ही मिसाइल लग पा रही है। इसका वजन कम होने के बाद एक ही जगह पांच मिसाइलें लगाई जा सकेंगी। रक्षा मामलों के जानकार कर्नल ओझा (रिटायड) कहते हैं कि भारत को बहुत घातक, सटीक और लंबी दूसरी तक मार करने वाली मिसाइल बना दिया है। उन्होंने बताया कि सुखोई में लगने के बाद इस मिसाइल की मारक क्षमता और भी बढ़ गई है। ऑपरेशन सिंदूर की तीसरी रात पाकिस्तान के 11 एयरबेस पर कहर बरपाने में ब्रह्मोस की अहम भूमिका रही। सबसे ज्यादा दूरी पर स्थित 6 एयरबेस को सुखोई-30 एमकेआई की अंडरवैली से निकली हवा से सतह मार करने वाली ब्रह्मोस ने निशाना बनाया। सूत्रों के अनुसार पाकिस्तानी वायुसेना के बेहद सुरfिक्षत ठिकानों को निशाना बनाने की जमीन एक रात पहले ही तैयार कर ली थी। लाहौर स्थित कमांड एंड कंट्रोल सेंटर पर हमले से पाकिस्तानी वायुसेना बहुत हद तक लाचार हो चुकी थी। बता दें कि ब्रह्मोस मिसाइल ने रावलपिंडी में चकलाल स्थित नूरखान एयरबेस पर भी तबाही मचाई थी। यह मौजूदा जीएचक्यू से महज 8 किलोमीटर ही दूर था। जय हिंद। भारतीय वैज्ञानिकों को आज पूरा देश सलाम करता है। जय हिंद।
-अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान का कबूलनामा
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना की एयर स्ट्राइक ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद जहां भारत में जश्न का माहौल है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पहली बार कबूल किया है कि भारतीय सेना की ओर से रावलपिंडी के नूरखान एयरबेस पर 9ö10 मई की रात को भारत ने एयर स्ट्राइक किया था। भारतीय सेना ने एयर स्ट्राइक में कई पाकिस्तानी एयरबेस पर मिसाइल से हमले किए थे। शरीफ का यह बयान यौम-ए-तशक्कुर (धन्यवाद) नामक भव्य समारोह में अपने भाषण के दौरान किया। इस्लामाबाद के प्रतिष्ठित स्थल द मॉन्यूमेंट में आयोजित समारोह के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने घटनाक्रम की श्रृंखला का विवरण दिया और उसके बाद भारत के प्रति अपनी प्रतिक्रिया दी। पाक पीएम ने अपने संबोधन में नूरखान एयरबेस पर भारतीय मिसाइल हमले को लेकर भारत के दावे को स्वीकार किया। शरीफ ने कहा, 9 और 10 मई की रात करीब 2.30 बजे सेना प्रमुख ने मुझे बताया कि भारत ने अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिए हम पर हमला किया है। एक मिसाइल नूरखान एयरबेस पर गिरी और कुछ अन्य मिसाइलें अन्य इलाकों में गिरी। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक का पूरी ताकत से जवाब देने की अनुमति मांगी थी। भारत की एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों के जरिए हमले किए। पाक प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं उन सभी मित्र देशों का बहुत आभारी हूं जो दुनिया के हिस्से में शांति और युद्ध विराम को बढ़ावा देने में बहुत मददगार रहे हैं। पाक पीएम ने कहा कि मैं राष्ट्रपति ट्रंप को उनके नेतृत्व के लिए धन्यवाद देना चाहूंगा। शरीफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने में मदद के लिए सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, ईरान, तुर्की, चीन, ब्रिटेन और अन्य देशों का धन्यवाद करता हूं। यह पाकिस्तान की ओर से पहली बार स्वीकार किया गया है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने मिसाइलों से पाकिस्तान के एयरबेसों पर हमला किया।
Saturday, 17 May 2025
परमाणु मुखौटा अब उतर चुका है
पिछले दो दशक से एक मिथक भारत और पाकिस्तान के तमाम टकरावों पर हावी रहा है वह यह कि इस्लामाबाद के पास परमाणु हथियार हैं और हर बार जब किसी आतंकी घटना के बाद भारत जवाबी कार्रवाईं करता था तो पाक परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दे देता था और भारत को दुनिया डरा देती थी कि कार्रवाईं को आगे न बढ़ाओ। इस बार के छद्म युद्ध में भी यही हुआ। पर ऑपरेशन सिदूर ने यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान का परमाणु मखौटा अब उतर चुका है। इसलिए प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कहा कि भारत अब कोईं भी न्यूक्लिर ब्लैकमेल नहीं सहेगा। ऑपरेशन सिदूर में भारतीय वायु सेना द्वारा लक्षित सैन्य कार्रवाईं के बाद पाकिस्तान की परमाणु सुविधाओं की सुरक्षा के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं। विशेष रूप से सरगोधा एयरबेस से सटे हुईं किराना हिल्स क्षेत्र को लेकर। हालांकि भारत ने किसी परमाणु स्थल को निशाना बनाने से इंकार करता आ रहा है, लेकिन अटकले और अंतर्राष्ट्रीय बयान इसको लेकर बढ़ता जा रहा है। भारतीय आव््रामक और रणनीतिक प्राभाव ऑपरेशन सिदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने नूर खान, रफीकी, मुरीद, सुक्कर और सियालकोट जैसे प्रामुख एयरबेस कथित तौर पर प्राभावित हुए और इन हमलों ने पाकिस्तान के रक्षा बुनियादी ढांचे को कमजोर किया। सरगोधा से सटी हुईं किराना हिल्स में पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार छिपा कर रखता है। ऐसा कहा जाता है। किराना हिल्स परमाणु सुविधा के आसपास अटकलें सबसे खतरनाक दावे सोशल मीडिया पर अटकलों से उपजे हैं, जो बताते हैं कि किराना हिल्स परमाणु सुविधा में एक बड़ी घटना हो सकती है। वुछ रिपोर्टो में दावा है कि अमेरिकी राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा प्राशासन (एनएनएसए) के विमान पाकिस्तान में देखे गए थे, जो परमाणु आपातकाल की संभावना को दर्शाता है। हालांकि इसकी कोईं आधिकारिक पुष्टि नहीं की गईं है लेकिन ऑनलाइन चैट की विशाल यात्रा ने सैन्य विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय पर्यंवेक्षकों को बयान देने पर मजबूर किया है। सोशल मीडिया में दावा किया जा रहा है कि किराना हिल्स के आसपास के इलाकों से नागरिकों को हटा दिया गया है। अपुष्ट खबरों में कहा जा रहा है कि वुछ नागरिकों को परमाणु रेडिएशन का भी खतरा जताया जा रहा है। आधिकारिक भारतीय प्रातिव््िराया अफवाहों के बावजूद भारत अपने सैन्य इरादों के बारे में खुलकर बता रहा है। एक प्रोस वार्ता के दौरान एयर मार्शल एके भारती ने स्पष्ट किया कि भारतीय वायुसेना ने सरगोधा एयरबेस पर हमला किया है और किसी भी परमाणु स्थल पर जानबूझकर हमला नहीं किया गया। सोशल मीडिया अक्सर अविश्वसनीय होता है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान के परमाणु सुरक्षा को लेकर चितित हैं। किराना हिल्स में क्या हुआ यह तो शायद ही पता चले क्योंकि पाकिस्तान हर बात को छिपाता है पर इतना जरूर है कि वुछ तो हुआ है। मुद्दे की बात यह है कि लगता है कि पाकिस्तान की न्यूक्लियर धमकी का असर भारत पर शायद ही हो तभी तो प्राधानमंत्री ने कहा कि भारत पाकिस्तान की न्यूक्लियर ब्लैकमैलिग के सामने न ही झुकेगा और न ही जवाबी कार्रवाईं करने से कतराएगा।
अनिल नरेन्द्र
Thursday, 15 May 2025
मान न मान मैं तेरा मेहमान
भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे के सैन्य हवाई अड्डों पर हमले और नुकसान पहुंचाने के दावे किए। दोनों देशों के बीत तनाव शीर्ष पर था। इसी बीच अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वैंस सािढय हुए और उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर से बातचीत की। भारत की तरफ से पाकिस्तान के साथ जारी संघर्ष को खत्म करने का ये पहला संकेत था। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ से फोन पर बात की। इस बातचीत में दोनों देशों में जमीन, वायु और जल क्षेत्र से एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बनी। इस सहमति की हैरान करने वाली घोषणा न तो भारत के प्रधानमंत्री ने की और न ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने। यह घोषणा दुनिया के स्वयंभू ठेकेदार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को 5.30 बजे अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म सवाल पर किए एक पोस्ट में की। ट्रंप ने अपनी पोस्ट में कहा, मैं आप दोनों के साथ मिलकर यह पता लगाने के लिए बात करूंगा कि क्या कश्मीर के संबंध में कोई समाधान निकाला जा सकता है। भारत और पाकिस्तान दोनों के बीच संघर्ष विराम की घोषणा करते हुए ट्रंप ने दावा किया कि रात भर चली बातचीत में अमेरिका की मध्यस्थता का दावा किया। भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम, मैं इसे संघर्ष विराम ही कहूंगा क्योंकि युद्ध तो हुआ ही नहीं जो तीन-चार दिन चला उसे संघर्ष ही कहा जाएगा। देश प्रश्न पूछ रहा है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप का दावा सही है? अगर अमेरिका ने संघर्ष विराम रुकवाने में कोई भूमिका निभाई तो इसमें हमें कोई ऐतराज नहीं है। क्योंकि संभव है कि ट्रंप के पास ऐसी कोई खुफिया जानकारी हो जिससे लगता हो कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की तैयारी में हो। हमें ऐतराज इस बात का है कि डोनाल्ड ट्रंप कौन होते हैं भारत-पाक संघर्ष विराम की घोषणा करने वाले? वो भी जब न तो भारत की तरफ से और न ही पाकिस्तान की तरफ से ऐसी घोषणा हुई। फिर पूरा देश इससे उत्तेजित है कि ट्रंप का यह कहना कि मैं दोनों देशों के साथ बैठकर कश्मीर का मुद्दा हल करवाने की कोशिश करूंगा, क्या इसका मतलब है कि भारत ने कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिकी की मध्यस्थता स्वीकार कर ली है? बता दे कि न तो प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के अपने संबोधन में इस पर कोई स्पष्टीकरण दिया है और न ही भारत सरकार ने किसी भी स्तर पर इसका खंडन किया है। पिछले कई वर्षों से भारत का यही स्टैंड रहा है कि यह मामला द्विपक्षीय है जिसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं होगी। शिमला समझौते में इसका साफ पा किया गया है। भारत सरकार को इसका स्पष्टीकरण देना होगा। अभी यह विवाद चल ही रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप धमकियों पर उतर आए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच खतरनाक टकराव को रोकते हुए युद्ध विराम में मदद की थी। ट्रंप ने कहा, हमने इसमें बहुत मदद की। मैंने दोनों देशों से कहा कि अगर आप संघर्ष रोकते हैं तो हम व्यापार करेंगे। नहीं तो कुछ नहीं। ट्रंप ने कहा कि अगर दोनों देश युद्ध विराम नहीं करते तो मैं दोनों देशों से व्यापार बंद कर दूंगा और अगर वे मानते हैं तो व्यापार (ट्रेड) बढ़ा दूंगा। ट्रंप ने आगे दावा किया कि दोनों मान गए और युद्ध विराम पर राजी हो गए। उल्लेखनीय है कि ट्रंप का यह पोस्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र को संबोधन के ठीक एक घंटे पहला आया। अमेरिकी राष्ट्रपति को लगता है और कोई काम नहीं है। पिछले तीन दिन से लगातार भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है। सबसे अफसोस जनक बात यह है कि इतना कुछ होने के बावजूद भी भारत ने चुप्पी साध रखी है। भारत के सामने पोन जैसे छोटे देश के प्रधानमंत्री जेलेंस्की ने व्हाइट हाउस के अंदर ही ट्रंप को हड़का दिया था और भी कई देशों के प्रमुखों ने ट्रंप को मुंहतोड़ जवाब दिया पर पता नहीं भारत की क्या मजबूरी है जो एक शब्द अमेरिका के खिलाफ नहीं निकलता। रहा सवाल भारत-पाक युद्ध रूकवाने का तो ट्रंप तो रूस-पोन युद्ध भी रूकवा रहे थे और इजरायल और हमास युद्ध भी रूकवा रहे थे? मान न मान मैं तेरा मेहमान।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 13 May 2025
पाकिस्तान का भस्मासुर आसिम मुनीर
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की सहमति शनिवार को शाम 5 बजे हुई। अभी जश्न मनाना आरंभ भी नहीं हुआ था कि इस कहानी और युद्ध विराम के तीन घंटे के अंदर पाकिस्तान ने भारत के विभिन्न राज्यों में ड्रोन हमले शुरू कर दिए और युद्ध विराम की धज्जियां उड़ा दी। पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया? इन पर आंकलन चल रहे हैं। पर हमारा मानना है कि इसके पीछे अगर कोई खासतौर पर जिम्मेदार है तो वह पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर और उनके सैन्य कमांडर हैं। पाकिस्तान की आतंरिक स्थिति ठीक नहीं है। क्या यह संभव है कि पाक सेना प्रमुख ने अपनी ही सरकार और प्रधानमंत्री के फैसले का विरोध करके हमले जारी रखे? जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी तो सेना प्रमुख उसका खुला उल्लंघन दर्शाता है कि पाक सेना प्रमुख प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की बात, उनके फैसले को नहीं मानते। दरअसल इस सारी लड़ाई के पीछे आसिम मुनीर ही हैं। उसने अपनी नीयत पहलगाम हमले से पहले ही जाहिर कर दी थी। जब उसने 17 अप्रैल को दिए गए अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान कश्मीर से लेकर जीवन शैली तक हर मामले में हिन्दुओं से अलग है। इस भाषण में जनरल मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर के लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। माना जा रहा है कि इसी भाषण के बाद पहलगाम हमला हुआ। इस हमले की सारी भूमिका मुनीर ने ही बनाई थी और इसको अंजाम भी उसने दिलवाया। भारत को याद रखना चाहिए कि कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस नहीं है जैसा कि मुनीर यकीन दिलाते हैं। असल में नस तो ब्लूचिस्तान और सिंध हैं। कश्मीर तो बस उस नैरेटिव को बनाएं रखना चाहता है। अगर ऐसा न होता तो पहलगाम पर हमला क्यों करवाता जहां पर पर्यटकों को निशाना बनाकर कश्मीरियों की रोटी रोजी पर लात मार दी? कहा जा रहा है कि नवम्बर 2022 में सेना प्रमुख बने मुनीर नवम्बर 2025 के बाद किसी भी कीमत पर एक्सटेंशन पाने की जुगाड़ में हैं। भारत के साथ एक सीमांत सीमित युद्ध पर उसके खिलाफ एक बड़ा आतंकवादी हमला उन्हें उस मकसद तक पहुंचा सकता है। जाहिर है, पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ सस्ते युद्ध के एक साधन के रूप में जिहाद का इस्तेमाल जारी रखने वाली है। पाकिस्तान की आतंरिक स्थिति ठीक नहीं है। इस समय पाकिस्तान में कई फैक्टर काम कर रहे हैं। चीन उसके पीछे सीधे तौर पर खड़ा होता ना दिखे पर वो अपने हथियारों के जरिए मुनीर की मदद कर रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में अब खुलकर चीनी हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है। लड़ाकू विमान से लेकर सर्विलांस यंत्र के साथ-साथ चीनी राइफलों का भी भारत सीमा पर इस्तेमाल हो रहा है। पाकिस्तान भारत का मुकाबला करने की कोशिश में चीन में निर्मित एसएच-15 आर्टिलरी का भी इस्तेमाल कर रहा है। इसी चाइनिज गन के सहारे पाकिस्तान भारत के पोस्ट और सीमावर्ती गांवों को निशाना बना रहा है। दूसरा फैक्टर है तुर्की पाकिस्तान ने भारत के अलग-अलग हिस्से में बड़े पैमाने पर ड्रोन्स का इस्तेमाल किया है और कर रहे हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तानी सेना द्वारा गुरुवार की रात सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाते हुए 300 से 400 ड्रोन छोड़े गए। और ड्रोन से हमले अभी भी जारी हैं। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि ये ड्रोन तुर्की के एसिसगार्ड सोनगर ड्रोन हैं। सोनगर ड्रोंस हथियार ले जाने में सक्षम यूएवी यानि मानव रहित हवाई वाहन है जिसे तुर्की ने डिजाइन और विकसित किया। पता नहीं कि तुर्की ने कितने हजारों ड्रोन पाकिस्तान को दिए हैं जिनका पूरा इस्तेमाल जनरल मुनीर भारत के खिलाफ कर रहा है? तुर्की की सैन्य मदद के अलावा एक तीसरा फैक्टर भी पाकिस्तान में काम कर रहा है वह है हमास के लड़ाकू। कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए अब हमास भी एक्टिव है। हमास के अनुभवी कमांडर अब जैश-ए-मोहम्मद के साथ मिलकर भारत पर हमले कर रहे हैं। जैश के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में हमास के लड़ाकू देखे गए हैं। जिस तरीके से भारत पर ड्रोन से हमले हो रहे हैं इसी तरह हमास इजरायल में ताबड़तोड़ हमले करता रहा है। इन हमलों के पीछे सीधे-सीधे हमास का हाथ नजर आ रहा है। इस साल 5 फरवरी को कश्मीर ]िदवस के मौके पर जैश और लश्कर के जलसे में भी हमास का पॉलिटिक्ल चीफ नजर आया था यह जलसा पीओके के रावलकोट में मनाया गया था। भारत के लिए यह एक खतरनाक और चिंताजनक संकेत हैं। कुल मिलाकर आज पाकिस्तान में सेना प्रमुख आसिम मुनीर की ही चल रही है। यह पाकिस्तान के लिए भस्मासुर साबित होगा। युद्ध विराम तोड़ने पर भारत जबरदस्त जवाबी कार्रवाई करेगा यह मुनीर जानता है। सेना में तख्ता पलट भी हो सकता है, शाहबाज शरीफ का तख्ता भी पलट सकता है। कुछ भी हो सकता है। हमें 24 घंटे चौंकन्ना रहना होगा। न हम अमेरिका पर विश्वास करें और पाकिस्तान की तो बात ही न करें। हमारी सेना मुंहतोड़ जवाब देगी। जय हिंद!
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 10 May 2025
दुनिया ने देखा सिंदूर का शौर्य
जब पाकिस्तान ने पहलगाम के बैसरान पर निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या नाम पूछकर की तो उसके पीछे उनकी नापाक नीति थी। भारत में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द को बिगाड़ दें और दंगे करवा दें ताकि देश हिंदू-मुस्लिम में बंट जाए पर हुआ इसका उल्टा। आज सारा देश एक है और चाहे वे सियासी पार्टियां हो, भारत की तमाम जनता हो वह सब अपनी बहादुर सेना के पीछे चट्टान की तरह खड़ी है। और रही पाकिस्तान की तो उसे शायद अब समझ आ रहा हो कि सिंदूर उजाड़ने की कितनी भारी कीमत अदा करनी पड़ रही है। सबसे पहले मैं अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने न केवल अभूतपूर्व साहस दिखाया हमारी सेनाओं को जवाबी कार्रवाई करने की खुली छूट दी बल्कि पूरे ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन सिंदूर रखा। सूत्रों ने कहा आतंकवादियों ने पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या कर दी थी जिनमें सभी पुरुष थे और उन मृतकों की पीड़ित पत्नियों को ध्यान में रखते हुए जवाबी अभियान के लिए ऑपरेशन सिंदूर नाम सबसे मुफीद समझा गया। यह न केवल एक सैन्य जवाबी कार्रवाई है बल्कि यह भारत की नारी शक्ति के सम्मान और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। सैन्य कार्रवाई की प्रेस ब्रीफिंग करने में भी विशेष ध्यान रखा गया। प्रेस ब्रीफिंग के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी (मुस्लिम) और विंग कमांडर व्योमिका सिंह (हिंदू) को खासकर चुना गया ताकि पूरी दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत एक है और नारी शक्ति के साथ खड़ा है। जिस किसी ने भी यह फैसला किया वह बधाई का पात्र है। जब जंग छिड़ती है तो दोनों तरफ के निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं। पाकिस्तान ने जानबूझकर सोची-समझी रणनीति के तहत या यूं कहे बौखलाहट में भारत के सिविलियन इलाकों पर हमले किए हैं जिसमें बहुत से निर्दोष नागरिक मारे गए हैं। पर यह कीमत तो चुकानी होगी। आए दिन इन आतंकी हमलों में भी तो निर्दोष मारे जाते हैं। इसलिए बेहतर रणनीति यही है कि इस बार आतंकवाद और उनके प्रायोजकों को ही खत्म किया जाए। कई आतंकी अड्डों को तबाह कर दिया गया है पर असल समस्या पाकिस्तान सेना और उसकी आईएसआई है। जब तक इनको ऐसी जबरदस्त चोट न पहुंचाई जाए तब तक यह समस्या निपटने वाली नहीं। हमें खुशी है कि भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सीधे हमले किए हैं और कइयों को तबाह किया है। ऑपरेशन सिंदूर का पहला निशाना पाकिस्तान में जैश-ए-मुहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयाब के मुख्यालय और आतंकी प्रशिक्षण शिविर थे जिन्हें तबाह कर दिया गया है। अब सारे हमले पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर किए जा रहे हैं। गौरतलब बात यह है कि भारत ने किसी आम नागरिक या सिविलियन इलाकों पर हमले नहीं किए बल्कि सिर्फ सैन्य ठिकानें पर। ऑपरेशन सिंदूर के लिए भारतीय सेना ने हर लक्ष्य का चयन विश्वसनीय इंटेलिजेंस सूचनाओं के आधार पर किया। पहलगाम के 15 दिनों बाद जवाबी कार्रवाई कर पाकिस्तान को सुधरने का पूरा मौका दिया गया यानी पाकिस्तान अपनी गलती सुधारे और अपनी जमीन पर पल रहे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का पूरा मौका fिदया गया। पर जब पाकिस्तान ने सुधार की जगह उल्टा धमकियां देनी शुरू कर दी तो जवाब देना जरूरी हो गया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से जब भारतीय हमलों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा हमने हनुमान के उस आदेश का पालन किया है जो उन्होंने अशोक वाटिका उजाड़ते समय दिया था। जिन मोहि मारा, तिन मोहि मारे अर्थात केवल उन्हीं को मारा है जिन्होंने हमारे मासूमों को मारा है। आज पूरा भारत देश एक है। लड़ाई तो सेना लड़ती है पर पीछे खड़ा होता है पूरा मुल्क। आज पूरा देश अपनी बहादुर सेना के पीछे खड़ा है और अपने जबाजों की बहादुरी पर सबको गर्व है। जय हिंद।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 8 May 2025
पहले ही मिल गई थी हमले की खुफिया जानकारी
पहलगाम में हुए भयानक आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई। जिनमें 25 पर्यटक थे और एक स्थानीय, मरने वाले सभी 24 पर्यटक हिन्दू समुदाय से थे। अब इस मामले में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि सुरक्षा एजेंसियों को हमले की आशंका पहले से ही थी, लेकिन लोकेशन और तारीख को लेकर अनुमान गलत साबित हुआ। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार खुफिया ब्यूरो (आईबी) और अन्य एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर व स्थानीय सुरक्षा अधिकारियों को आगाह किया था कि पर्यटकों को निशाना बनाकर आतंकी हमला हो सकता है। यह अलर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 19 अप्रैल को होने वाली श्रीनगर यात्रा के मद्देनजर किया गया था। इसके बाद श्रीनगर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी, खासकर उन जगहों पर जहां पर्यटक अधिक आते हैं, जैसे डाचीगाम नेशनल पार्क। हालांकि मौसम खराब होने की वजह से प्रधानमंत्री की यह यात्रा रद्द कर दी गई थी। इसके ठीक बाद आतंकी 22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन इलाके में हमला कर बैठे। यह इलाका श्रीनगर से लगभग 90 किलोमीटर दूर है और पूरे साल खुला रहता है। अमरनाथ यात्रा के दौरान ही इसे बंद किया जाता है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया दस में से नौ बार ऐसे अलर्ट बेकार जाते हैं, लेकिन इस बार पर्यटकों को लेकर चेतावनी सही थी। इसमें मुश्किल हिस्सा होता है कि हम सही जगह की पहचान करें। इस बार वह गलत हो गई। उन्होंने पुष्टि की कि सेना और सिविल सुरक्षा बलों को प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान श्रीनगर के निकट किसी पर्यटन स्थल पर हमले की आशंका को लेकर सतर्क रहने के निर्देश दिए गए थे। अब जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो यह स्पष्ट है कि आतंकी प्रधानमंत्री की यात्रा रद्द होने का इंतजार कर रहे थे। सबसे बड़ी चूक बैसरन क्षेत्र में संभावित हमले की आशंका न जता पाने की रही, जो साल भर खुला रहता है और केवल अमरनाथ यात्रा के दौरान बंद होता है। एक अधिकारी के अनुसार स्थानीय दो आतंकवादियों ने पर्यटकों को एक ओर खदेड़ा जब]िक विदेशी आतंकियों ने गोलियां चलाईं। चूंकि इस स्थल पर प्रवेश और निकास एक ही निर्धारित स्थान से होता है। पर्यटकों के लिए भागना मुश्किल हो गया। यह अब स्पष्ट है कि आतंकी क्षेत्र में पहले से ही रह रहे थे और अब भी इलाके में सािढय हैं। अधिकारियों के मुताबिक सबसे बड़ी चूक स्थानीय खुफिया एजेंसियों की थी। जो इस उपस्थिति और योजना को भांपने में नाकाम रही। समय आ गया है कि अब पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए जाएं। सारा देश भारत की जवाबी कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहा था। भारत के लोगों का गुस्सा अभी उफान पर है। भारत ने अभी तक जो दंडात्मक कदम उठाए हैं, उनसे ऐसा नहीं लगता कि जपोश में किसी तरह की प्रभावी कमी आई है। स्वयं प्रधानमंत्री ने, भाजपा नेताओं ने और मेन स्ट्रीम मीडिया ने जो वातावरण बनाया है, उसमें यह अपेक्षा निहित है कि पाकिस्तान को ऐसा दंड दिया जाए जो दंड प्रतीत हो। अगर ऐसा नहीं होता तो जनता के विश्वास को ठेस पहुंचेगी और कहा जाएगा बड़े-बड़े दावे करने वाले अंदर से खोखले निकले।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 6 May 2025
क्या कहते हैं पूर्व रॉ प्रमुख दुलत
भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख और आईपीएस अफसर अमरजीत सिंह दुलत जो कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में बतौर जम्मू-कश्मीर मामलों के सलाहकार रहे ने पहलगाम हमले पर बीबीसी से एक महत्वपूर्ण बातचीत की। आज के परिप्रेक्ष्य में मेरे विचार में देश को कुछ बातों पर जरूर गौर करना चाहिए। प्रस्तुत है उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश दुलत ने अपने करियर के शुरुआती सालों में बतौर जम्मू-कश्मीर मामलों के सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं और शुरुआती सालों में उन्होंने जे एंड के में 2 इंटेलिजेंस ब्यूरो का काम भी देखा है। दुलत कहते हैं, पहलगाम में जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ और उसे सुरक्षा और खुफिया तंत्र की चूक बताया। मुझे लगता है कि पहलगाम हमला एक सिक्यूरिटी फेलियर है। वहां किसी किस्म की सिक्यूरिटी भी नहीं थी। जहां हम इंटेलिजेंस या खुफिया तंत्र की बात करते हैं, वहां हमें समझना होगा कि कश्मीर में जो सबसे जरूरी इंटेलिजेंस है, वह आपको कश्मीरियों से ही मिलेगी। तो कश्मीरियों को अपने साथ रखना बहुत जरूरी है। मैं किसी को दोषी नहीं कहना चाहता लेकिन जे एंड के में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी तो केंद्र सरकार के हाथ में है न कि वहां के मुख्यमंत्री के हाथ में है। तो केंद्र सरकार को देखना चाहिए वहां के एलजी को देखना चाहिए था। पहलगाम के हमले से पहले जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहां 2020 में 34 लाख से अधिक पर्यटक आए थे। वहीं साल 2023 के खत्म होते-होते ये आंकड़ा दो करोड़ 11 लाख के पार चला गया था। लेकिन क्या चरमपंथी हिंसा में कोई कमी आई? साउथ एशिया टेरिज्म पोर्टल के मुताबिक साल 2012 में जम्मू-कश्मीर में 19 आम नागरिकों की मौत चरमपंथी हिंसा में हुई, उसी साल 18 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए। 84 चरमपंथी मारे गए थे। उसके मुकाबले साल 2023 में 12 नागरिकों की मौत हुई, 33 सुरक्षा कर्मी मारे गए और 87 चरमपंथी मारे गए। पिछले साल 2024 में 31 आम नागरिक 26 सुरक्षाकर्मी और 69 चरमपंथी मारे गए थे। यानि हमले जारी थे। लेकिन सरकार के बयानों में जम्मू-कश्मीर से चरमपंथ लगभग खत्म कर दिया गया है का दावा किया जा रहा था। साथ ही पर्यटक ऐसे इलाकों में भी जाने लगे जहां प्रशासन ने सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए थे। जम्मू-कश्मीर में पिछले दो सालों में ज्यादा हमले हुए हैं। टूरिज्म या पर्यटन एक बात है और नॉर्मल्सी दूसरी चीज है। जब भी हमने कहा कि जम्मू-कश्मीर में नॉर्मल्सी है, तभी आतंकी हमले ज्यादा हो गए। जिस तरह पर्यटन बढ़ रहा था, लोग मर्जी से वहां जा रहे थे तो आप यह कह सकते हैं कि सरकार को खतरा पहले ही नजर आ जाना चाहिए था। हमले में मारे गए लोगों के परिजनों ने बताया कि पहलगाम में लोगों का धर्म पूछकर मारा गया तो दुलत ने कहा कि पहलगाम में जो हुआ, वह हिन्दु-मुस्लिम मुद्दा नहीं है। न जम्मू-कश्मीर है और न ही भारत में कोई हिन्दू-मुस्लिम है। बल्कि यहां हिन्दू-मुस्लिम एक हैं। यह मैसेज साफतौर पर जाना चाहिए। आज खासतौर से मैं कहूंगा कि कश्मीरियत को हमें खोना नहीं चाहिए। उसे जिन्दा रखना बहुत जरूरी है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 3 May 2025
कनाडा में खालिस्तानियों की करारी हार
जस्टिन ट्रूडो ने भारत से खूब दुश्मनी निभाई। अपनी सत्ता की लालच में उन्होंने क्या-क्या नहीं किया। कभी भारत पर मनगढ़ंत आरोप तो कभी खालिस्तानियों को सिर पर चढ़ाया। जस्टिन ट्रूडो की वजह से भारत और कनाडा के रिश्तों में तल्खी आ गई। जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानियों के दम पर भारत से पंगा लिया। इसमें खालिस्तानियों के कथित आका जगमीत सिंह ने खूब मदद की। जगमीत सिंह के सपोर्ट पर ही जस्टिन ट्रूडो की सरकार चल रही थी। जगमीत सिंह ने सरकार को समर्थन के बदले अपने खालिस्तानी एजेंडों को पाला-पोसा। पर कनाडा की नजर से उसकी चालाकी नहीं बच पाई। कनाडा में जगमीत सिंह की पार्टी एनडीपी यानी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की करारी हार हुई है। एनडीपी को कुल 343 में से 7 ही सीटें मिली हैं। एनडीपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी छिन गया है। जबकि पिछले चुनाव में एनडीपी 25 सीटें जीतकर किंगमेकर बनी थी। एनडीपी के समर्थन से तत्कालीन पीएम जस्टिन ट्रूडो ने चार साल सरकार चलाई। एनडीपी प्रमुख जगमीत सिंह अपनी परंपरागत बर्नबी सेंट्रल से भी चुनाव हार गए। जगमीत सिंह इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे, जबकि पिछले चुनाव में इस सीट पर एक तरफ 56 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार जगमीत को मात्र 27 प्रतिशत ही वोट मिले। जगमीत की पार्टी ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के जो 7 प्रत्याशी जीते हैं उसमें से कोई भी भारतीय मूल का नहीं है। एनडीपी सिख बहुल अपनी सीट भी नहीं जीत पाई है। चुनाव में भारत विरोधी एनडीपी के जगमीत सिंह और लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो कनाडा की राजनीति से आउट हो गए हैं। जगमीत ने एनडीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के केस में जगमीत ने भारत के खिलाफ बहुत जहर उगला था। कनाडा द्वारा पिछले साल भारतीय राजनयिकों को उच्चायोग से निकालने की कार्रवाई का जगमीत ने समर्थन किया था। कनाडा में इस बार रिकार्ड 23 भारतवंशी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे है। पिछली बार 19 भारतीय सांसदों ने चुनाव में जीत हासिल की थी। इस बार लिबरल पार्टी में 13 जबकि कंजरवेटिव पार्टी से 10 भारतवंशी सांसदों को जीत मिली है। जहां तक भारत -कनाडा के संबंधों की बात है, ये पूर्व पीएम ट्रूडो के दौर से निश्चित रूप से बेहतर रहने वाले हैं। ट्रूडो ने कई मुद्दों पर भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने का काम किया। नए नेता मार्क कार्नी कह चुके हैं कि दोनों देशों के हित आपसी विश्वास पर कायम होंगे। कार्नी का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के वर्तमान दौरे में भारत-कनाडा अहम भूमिका निभा सकते हैं। कार्नी के रूप में सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी के नए नेतृत्व का उभार हो रहा है। ट्रूडो और लिबरल को समर्थन देने वाले जगमीत हाशिए पर चले गए हैं। कार्नी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच तनावपूर्ण रिश्ता रहा है। ट्रंप ने कनाडा पर भारी टैरिफ लगाया, जिसका कनाडा की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा। ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने जैसी विवादित बातें कहीं, जिस पर कार्नी समेत पूरे कनाडा ने नाराजगी जताई। यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्नी को लिबरल पार्टी के दोबारा सत्ता में आने में ट्रंप का बड़बोलापन काम आया।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 1 May 2025
जरूरत है सैनिक, आर्थिक, कूटनीतिक दबाव बनाने की
यह लड़ाई अब हिंदू-मुसलमान के बीच नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर गहरी नाराजगी जताई है। भागवत का मानना है कि यह हमला एक जघन्य कृत्य था, जिसमें आतंकवादियों ने न केवल निर्दोष नागरिकों की हत्या की, बल्कि धर्म के नाम पर हत्याएं की। हमारे सैनिकों या नागरिकों ने कभी भी किसी से उसका धर्म नहीं पूछा, लेकिन आतंकवादियों ने धर्म पूछकर लोगों की हत्या की। हिंदू कभी ऐसा नहीं करेगा। भागवत ने इस हमले पर गुस्से और शोक का इजहार करते हुए यह भी कहा कि राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना। आज पूरा देश एक जुट है और जवाबी कार्रवाई की मांग कर रहा है। हमारा मानना है कि हमें ऐसा कड़ा जवाब देना चाहिए जो आतंक परस्त पाकिस्तान को सदियों तक याद रहे। मुट्ठी भर आतंकियों या उनके कैम्पों को तबाह करने से कुछ नहीं होगा। हमें इस पाक प्रायोजित आतंकवाद की जड़ में जाना होगा और उसे तबाह करना होगा। आतंकवाद की जड़ में है पाकिस्तान की सेना और उसकी आईएसआई। हमें इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। इस पाक मिलिट्री एस्टेबलिशमेंट को ऐसा करारा तमाचा मारना होगा कि वो आगे से ऐसे हमले करवाने से पहले दस बार सोचे। पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमला खुफिया विफलता के कारण हुआ और इसके लिए उच्चतम स्तर पर जवाबदेही तय करने की मांग की। देश के 18वें सेना प्रमुख रहे रॉय चौधरी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, मुझे खुफिया विफलता का संदेह है। किसी को तो इस चूक के लिए जवाब देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पहलगाम हमले के पीछे पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका है। लश्कर-ए-तैयबा के छद्म संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है। यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान पर भारत सरकार के कूटनीतिक प्रतिबंध पर्याप्त नहीं हैं, रॉय चौधरी ने कहा कि कूटनीतिक कदम पर्याप्त नहीं हैं। प्रतिरोध के उपाय करने होंगे। वे जिस रूप में सामने आते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। पारंपरिक उपाय पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा, हमें भी उसी तरह से प्रतिक्रिया देनी होगी। मैं इसे केवल इसी तरह देखता हूं। वायुसेना के पूर्व प्रमुख अरुप राहा ने पहलगाम हत्याकांड के मद्देनजर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य अभियान चलाने की बात कही और उरी व पुलवामा हमलों के बाद किए गए हमलों का हवाला देते हुए कहा कि भारत ने उन मिथक को तोड़ दिया है कि परमाणु शक्ति संपन्न देश युद्ध नहीं लड़ सकते। राहा ने कहा, यह जरूरी है कि भारतीय सुरक्षा बल फिर से वैसे हमले करें, ताकि हमारे दुश्मानों को पता चले कि उनका किससे पाला पड़ा है। यह समय की मांग है। पूरा देश आज मांग कर रहा है कि भारत सख्त कार्रवाई करे। पानी रोकने समेत कूटनीतिज्ञ फैसलों से काम नहीं चलेगा। भारत के पास पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पर आतंकवाद का जवाब देने और उसे रोकने के लिए राजनयिक, आर्थिक, रणनीतिक और कानूनी जैसे कई विकल्प मौजूद है। सबसे पहले भारत को पाकिस्तान के प्रति वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक अलगाव की नीति अपनानी चाहिए जिससे पाकिस्तान को अलग-थलग किया जा सके। आतंकवाद के खिलाफ भारत की चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखने वाले देशों के साथ गठबंधन मजबूत कर पाक को आतंकवाद प्रायोजक करने के लिए वैश्विक समर्थन जुटाना चाहिए। आज भारत सैन्य रूप से काफी शक्तिशाली राष्ट्र है। हमें गुलाम कश्मीर के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना के महत्वपूर्ण ठिकानों में आतंकी कैंपों और नेटवर्क को तबाह करना चाहिए। हालांकि हमें देखना होगा कि आज पाकिस्तान बहुत कमजोर हो चुका है। आर्थिक रूप से वह दिवालिया हो चुका है। अफगानिस्तान और ब्लूचिस्तान में उसके अलग मोर्चे खुले हुए हैं। बेशक वह घबराहट में परमाणु युद्ध की गीदड़ भबकी देर रहा है। पर सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि वह ऐसा नहीं कर सकता। उसने कारगिल युद्ध के दौरान भी ऐसी धमकियां दी थी। कुछ लोगों को खतरा है कि कहीं चीन पाकिस्तान की ओर न आ जाए। ऐसा नहीं होगा। चीन ऊपर-ऊपर से कोरा समर्थन करता रहेगा पर वह भारत से बढ़ते व्यापार को कभी नजरअंदाज नहीं कर सकता। अमेरिका और रूस भी बीच में नहीं कूदेगा। कुल मिलाकर भारत सरकार को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। पूरे देश की यह मांग है और पाकिस्तान के आतंकवाद को मिटाने में सब एक मत हैं, एक जुट हैं। बस इंतजार है निर्णायक कदमों को उठाने का।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 29 April 2025
आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता
कुछ स्थानीय कश्मीरियों को भी इन सीमापार से आए आतंकियों का गुप्त समर्थन है। शायद यही समझकर पाकिस्तान ने पहलगाम के बैसरन पर्यटक स्थल पर हमला करवाया। आतंकियों के हुक्मरानों ने सोचा होगा कि बैसरन में चुन-चुन कर मजहब के नाम पर निर्दोषों की निर्मम हत्या की जाए तो इससे भारत के अंदर हिन्दु-मुस्लिम टकराव बढ़ेगा और भारत में गृह युद्ध की स्थिति आ जाएगी और देश बुरी तरह से बंट जाएगा। पर हुआ
इसके विपरीत। पूरा देश एकजुट होकर आतंकवाद खिलाफ खड़ा हो गया। तमाम सियासी पार्टियों ने सरकार के साथ खड़ा होकर एकजुटता का जो प्रदर्शन किया उसकी शायद पाकिस्तान ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
रही बात मजहब की तो पाकिस्तान के सामने जीता जागता उदाहरण आदिल हुसैन शाह का है। आदिल हुसैन ने बैसरन में जब आतंकियों ने
हालांकि जम्मू-कश्मीर कई दशकों से आतंकवाद से प्रभावित है और इसका असर स्थानीय आबादी पर भी पड़ता है। कहा यह भी जाता है कि निर्दोष सैलानियों पर हमला किया तो आदिल हुसैन एक आतंकी से भिड़ गया। पहले तो उसने उस आतंकी से कहा कि निर्दोष सैलानियों पर हमला न करें। ये हमारी रोजी-रोटी का जरिया हैं। हमारे मेहमान हैं। पर जब वो आतंकी नहीं माना तो आदिल उससे भिड़ गया और उसने उसकी राइफल छीनने की कोशिश की। इस लड़ाई में आतंकी ने गोली चला दी और आदिल हुसैन के शरीर को छलनी कर दिया। आदिल हुसैन शाह गरीब परिवार और बहादुर टट्ट वाला था। उसने दर्जनों हिन्दुओं की जान बचाई। अगर वह न भिड़ता तो पता नहीं कितने और शहीद हो जाते। आदिल एक मुसलमान था जिसने दर्जनों हिन्दुओं को बचाया और कश्मीरियों की लाज रखी। पूरी कश्मीर घाटी में इन निर्मम हत्याओं के खिलाफ सड़कों पर कश्मीरी उतर आए और ऐसा कम ही देखा गया है कि जब स्थानीय कश्मीरी आतंक के खिलाफ सड़कों पर उतरे हों। आतंकी हमले के विरोध में जम्मू-कश्मीर में प्रदेश के मुसलमानों ने जुमे की नमाज अदा करने के बाद आक्रोश जाहिर किया और पाकिस्तान के विरोध में नारेबाजी की। पूरे देश में मुसलमानों ने इस हमले के विरोध में प्रदर्शन किए। संभल, सहारनपुर, बरेली, हापुड़ और बुलंदशहर समेत यूपी के कई जिलों में मुसलमानों ने आतंकवादी घटना की निंदा की और पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाए और सख्त जवाबी कार्रवाई की मांग की। कश्मीर के पहलगाम शहर के बैसरन में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें से अधिकतर पर्यटक थे। संभल जैसे सैनसेटिव जिले की कई मस्जिदों में शुक्रवार को जुमे की नमाज अता करने नमाजी काली पट्टी बांधकर पहुंचे और पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी की। शाही जामा मस्जिद में नमाज पढ़कर निकले साकिर हुसैन ने कहा कि जिन निहत्थे लोगों के साथ यह जुल्म हुआ और हमारी बहनों का सुहाग उजाड़ दिया गया, बेहद ही दुखद घटना है। मेरी सरकार से गुजारिश है कि इन आतंकवादियों को ऐसा सबक मिले कि नस्ले भी याद रखें। इधर दिल्ली में 900 से अधिक बाजार इस आतंकी हमले के खिलाफ बंद रहे। कनाट प्लेस, सदर बाजार और चांदनी चौक जैसे दिल्ली के मशहूर शापिंग हब समेत 900 से ज्यादा बाजार शुक्ररार को वीरान नजर आएं। क्योंकि व्यापारियों ने पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में दिल्ली बंद का आह्वान किया था। कपड़ा, मसाले, बर्तन और सर्राफा जैसे क्षेत्रों के विभिन्न व्यापारियों के संघों ने भी अपनी दुकानें बंद रखीं। सीएआईटी के अनुसार दिल्ली में आठ लाख से अधिक दुकाने बंद रहीं। जिसके परिणामस्वरूप दिन भर में 1500 करोड़ रुपए का व्यापार घाटा हुआ। जम्मू-कश्मीर में ऐसे आरोप भी सामने आए कि वहां आतंकवादी हमलों के खिलाफ अपेक्षित प्रतिरोध मुखर नहीं दिखता। अगर पहलगाम के आतंकी ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए जिस तरह 26 पर्यटकों को मार डाला, उसके बाद कश्मीरी जनता का गुस्सा उभरा है। खासकर अनंतनाग और उसके आसपास के इलाकों को आतंक का गढ़ माना जाता है। वहां रहने वालों के भीतर इस घटना के खिलाफ जैसा आक्रोश पैदा हुआ वह दर्शाता है कि कश्मीरी आवाम में इस हमले को लेकर कितना रोष है। समूची कश्मीर घाटी में इस हमले पर स्थानीय आबादी के बीच स्वतः स्फूर्त विरोध उभरा और व्यापाक पैमाने पर लोगों ने इस घटना की निंदा की, प्रदर्शन किया और आपसी भाईचारे का मुजाहरा किया। जैसे मैंने कहा कि इन आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता।
- अनिल नरेन्द्र
Saturday, 26 April 2025
पहलगाम हमला ः सवाल तो पूछे जाएंगे
बैसरन ही क्यों निशाना बना? आतंकियों का पनाहकार आखिर कौन? ऐसे सवाल आज पूरा देश पूछा रहा है। यह कोई छोटा-मोटा हमला नहीं था। जम्मू-कश्मीर में 2019 में पुलवामा में हुए हमले के बाद मंगलवार को पहलगाम में पर्यटकों पर हुआ हमला सबसे बड़ा आतंकी हमला है। पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को जैश-ए-मोहम्मद के एक आत्मघाती हमलावर ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के काफिले पर विस्फोटक से भरी गाड़ी से हमला किया गया था। इस हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे। आज तक इस बात का संतोषजनक जवाब नहीं मिला कि आतंकी विस्फोट से भरी अपनी गाड़ी सीआरपीएफ के कापिले में लेकर घुसे कैसे? खैर आज बात करते हैं बैसरन के आतंकी हमले की। इस हमले ने हर भारतीय का कलेजा चीर के रख दिया है। किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी की गोद, किसी के कमाने वाले ने दम तोड़ा तो किसी का भाई अब कभी भी लौटकर घर नहीं आएगा। दहशतगर्दों ने एक बार फिर से धरती की जन्नत पर खून की होली खेली है, जिसने न केवल मानवता को शर्मसार किया बल्कि कश्मीरियों की कमर तोड़ कर रख दी है। इस बार ना तो आतंकियों ने रात के अंधेरे का इंतजार किया और न ही किसी सुनसान जगह को टारगेट किया। इस बार उन्होंने भरी दोपहर पहलगाम के बैसरन को चुना जिसे स्विट्जरलैंड से कम नहीं कहा जाता है। घृणित आतंकी हमले ने कई बड़े सवाल खड़े किए हैं। अब तक जो बैसरन प्यार, मोहब्बत के लिए जाना जाता था वो अब डर, खौफ, मौत, दहशत के लिए हमेशा याद किया जाएगा। पहला सवाल ः बैसरन घाटी को आतंकियों ने निशाना क्यों बनाया? बैसरन घाटी पर्यटकों के लिए काफी सेफ मानी जाती रही है इसलिए पहलगाम की तुलना में यहां सेना और पुलिस की तैनाती नहीं होती है। क्या इसका फायदा आतंकियों ने उठाया? क्या ये आतंकी बैसरन वैली में काफी दिन से रुके थे? जिस तरह से आतंकियों ने इस घटना को अंजाम दिया है उससे तो यही लगता है कि सब कुछ प्लान के तहत किया है। इसका मतलब तो वो काफी समय से पहलगाम या बैसरन के आसपास यहां मौजूद थे? क्या स्थानीय नागरिकों भी इस हमले में शामिल हैं? क्या स्थानीय लोगों ने इन्हें पनाह दी है? आतंकी (4-5) एक दिन में ही बैसरन कैसे पहुंच सकते हैं? अमरनाथ यात्रा से पहले क्यों बनाया पहलगाम में पर्यटकों को निशाना? आतंकियों के पास इतने आधुनिक हथियार कहां से आए? यह हमला ऐसे समय हुआ जब प्रधानमंत्री सऊदी अरब में थे और अमेरिका के उपराष्ट्रपति वैंस दिल्ली में थे तो क्या संदेश देना चाहते थे ये आतंकी और उनके आका? सेना के दिग्गजों ने सामरिक विफलताओं और सुरक्षाकर्मियों की कमी को भी उजागर किया। जैसे-जैसे देश इस भयावह त्रासदी से उभर रहा है वैसे-वैसे भारत की सुरक्षा और कमजोरियों पर कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। कर्नल आशुतोष काले जिन्होंने कश्मीर में लंबे समय तक उग्रवाद से लड़ते हुए और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाने में कई कमियां गिनाई। योजना बनाते समय कई कारणों पर विचार किया गया होगा। इनमें स्थानीय गाइड का इस्तेमाल, हमले की जगह के नजदीक बेस बनाना और घटना स्थल पर भीड़ जमा होने के पीक ऑवर्स के आधार पर हमले के समय का विश्लेषण करना शामिल हो सकता है। आतंकियों के घुसपैठ के रास्ते के साथ-साथ बाहर निकलने के रास्ते का भी पता लगाना होगा जिसके आधार पर बिना पकड़े जाने का गुप्त रास्ता ]िमलता और हमले के बाद वे जल्दी से भाग निकले। एक अन्य अफसर ने कहा कि यह हमारी इंटैलीजेंस फेलियर है। बैसरन में हमले के समय 2000 से ज्यादा पर्यटक मौजूद थे और एक भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था। न आर्मी, न पुलिस? ऐसा क्यों हुआ? क्या हमारे खुफिया विभाग को इस प्रस्तावित हमले की कोई जानकारी थी या नहीं? अगर नहीं थी तो यह बहुत बड़ी इंटैलीजेंस फेलियर है और अगर थी तो समय रहते कदम क्यों नहीं उठाए गए? को देखते हुए, एक ऐसा क्षेत्र जहां पर्यटक अक्सर आते हैं, आतंकियों ने जांच की होगी यहां केवल पैदल या घोड़ों से आया जाता है। सुरक्षा रोटेशन अंतराल की पहचान की होगी और कम सतर्कता का फायदा उठाया। क्या पाक सेना प्रमुख जनरल मुनीर का भाषण एक चेतावनी थी जब उन्होंने अपनी सभा में कहा कि कश्मीर में हमारी सरकार का रुख बिल्कुल स्पष्ट है। क्या यह एक चेतावनी थी? फिर सवाल यह भी उठता है कि बैसरन कोई सीमावर्ती इलाका नहीं है। यह कम से कम कश्मीर के बार्डर से 150 किलोमीटर अंदर है। आतंकी इतना अंदर कैसे सुरक्षित आ गए? यह घटना सुरक्षा प्रोटोकाल में बहुस्तरीय युद्ध को दर्शाती है। संभावित खामियों में गतिशील निगरानी की कमी शामिल है। विशेष रूप से माध्यम और बम गश्त वाले मार्गों पर। एक सुरक्षित क्षेत्र माने जाने वाले क्षेत्र में हथियारों से घुसपैठ न केवल परिधि सुरक्षा में उल्लंघन को उजागर करती है, बल्कि खतरे के आंकलन में लापरवाही को स्थायी शांति समझ लेना भी उजागर करती है, इस तरह का ऑपरेशन पेशेवर समर्थन के बिना नहीं किया जा सकता। पाक सेना और आईएसआई को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। अंत में हम उन शहीदों के परिवारों को अपनी श्रद्धाजंलि देते हैं जिन्होंने अपनों को खोया है। ऊपर वाला उन्हें धैर्य दे इस क्षति से उभरने के लिए?
- अनिल नरेन्द्र
Thursday, 24 April 2025
तीन महीने में ही ट्रंप ने तारे दिखा दिए
अमेरिका में जबसे डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभाली है, उनका हर कदम विवादों में घिर जाता है। अभी हॉवर्ड विश्वविद्यालय का अनुदान रोकने पर विवाद थमा भी न था कि विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के एक हजार से अधिक अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों का वीजा रद्द किए जाने को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। शनिवार को डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ लाखों प्रदर्शनकारी एक बार फिर सड़कों पर उतर आए। इन प्रदर्शनों को हैंडस ऑफ नाम दिया गया। 50 राज्यों के हजारों लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। ये प्रदर्शन नागरिकों के अधिकारों, आजीविका और अमेरिकी लोकतंत्र के मूलभूत ढांचे को खतरा माने जाने वाले मुद्दों पर हो रहा है। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति आवास व्हाइट हाउस का भी घेराव किया। प्रदर्शन सभी अमेरिका के 50 राज्यों में हुए। प्रदर्शनकारियों ने ट्रंप पर नागरिक और कानून के शासन को कुचलने का आरोप लगाया। इस आंदोलन को 50501 नाम दिया गया है जिसका मतलब 50 विरोध प्रदर्शन, 50 राज्य, 1 आंदोलन है। प्रदर्शन के दौरान लोगों ने व्हाइट हाउस के अलावा टेस्ला के शोरूम का भी घेराव किया। प्रदर्शन के दौरान पोस्टर पर लिखा था, ट्रंप के अल साल्वाडोर जेल में डिपोर्ट कर दिया जाए। साथ ही ट्रंप के खिलाफ शर्म करो, जैसे नारे भी लगाए गए। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति पर नागरिक स्वतंत्रता और कानून के शासन को कमजोर करने के आरोप लगाए हैं। प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि हमारा मकसद ट्रंप प्रशासन के तहत बढ़ते सत्तावादी रवैये से लोकतंत्र को बचाना है। उन्होंने इसे अहिंसक आंदोलन बताया है। इस विरोध प्रदर्शन में कई राजनीतिक दलों के शामिल होने की बात कही जा रही है। इतना ही नहीं प्रदर्शकारियों ने अल साल्वाडोर से निर्वासित होने वाले किल्मर अब्रेगो गार्सिया की वापसी की भी मांग की है। अमेरिका के लोग ट्रंप की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कई कारणों से कर रहे हैं। इसमें टैरिफ वार और सरकारी नौकरी समेत कई मुद्दे शामिल हैं। यह विरोध प्रदर्शन का दूसरा दौर है जब अमेरिकी जनता फिर से सड़कों पर उतरी है। इससे पहले 5 अप्रैल को ट्रंप के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हुए थे। प्रदर्शन के पीछे कौन है जवाब में कहा जा सकता है कि इसको लोकतंत्र समर्थक समूहों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और महिला अधिकार जैसे 150 समूह आयोजित कर रहे है। प्रमुख आयोजक जैसे मूव ऑन ट्रंप प्रशासन के खिलाफ चुनाव से काफी पहले से सक्रिय रहे हैं। फंडिंग के मामले में कहा जा रहा है कि क्राउड फंडिंग डोनेशन और दो ग्रुप अपने संसाधनों से प्रदर्शन को मैनेज कर रहे हैं। सेन फ्रांसिस्को में सैकड़ों लोगों ने प्रशांत महासागर के किनारे समुद्री रेत पर महाभियोग लाओ और ट्रंप हटाओ नारा लिख रखा था। एंक्रोरेज में लोगों ने हाथ में तख्तियां ले रखी थी जिस पर लिखा था कोई राजा नहीं है। उसके साथ एक प्रदर्शनकारी हाथ में कार्ड बोर्ड को लेकर चल रहा था जिस पर लिखा था सामंती युग खत्म हो चुका है। प्रदर्शन का आयोजन करने वालों का कहना है कि वे नागरिक और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघनों का विरोध करते हैं। राष्ट्रपति ने अप्रवासियों को निर्वासित करने और हजारों सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से निकालकर संघीय सरकार को कमजोर करने का प्रयास किया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब से आए हैं उन्होंने सारी दुनिया में अपनी नीतियों को लेकर उथल-पुथल मचा दी है। जिस तरह से उन्हें अमेरिकी जनता ने मैंडेट दिया था उम्मीद की जाती थी कि यह अमेरिकी हितों व व्यापार को नई दिशा देंगे। इन्होंने तो ऐसे कदम उठाएं है जिससे न केवल शेष दुनिया परेशान है बल्कि खुद अमेfिरकी जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गई है। अभी तो इन्हें पदभार संभाले मुश्किल से तीन महीने हुए हैं और यह हाल है। उन्हें अगले चार साल झेलना बहुत ही कष्टदायक होने वाला है। अगर यह तब तक राष्ट्रपति रहे तो?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 22 April 2025
धनखड़ के बयान पर छिड़ा सियासी घमासान
राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में तीन महीने की समय-सीमा तय करने के मामले में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट की आलोचना किए जाने के बाद राजनीतिक और कानूनी विशेषज्ञों के बीच बहस तेज हो गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शीर्ष अदालत पर निशाना साधते हुए कहा कि वह सुपर संसद नहीं बन सकता और भारत के राष्ट्रपति को निर्देश देना शुरू नहीं कर सकता। उपराष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 142 को लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल तक कह डाला। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार देता है। जब पूर्ण न्याय के लिए कोई और रास्ता नहीं बचता तब सुप्रीम कोर्ट इस अनुच्छेद से मिली पूर्ण शक्तियों का इस्तेमाल करता है। यह किसी संवैधानिक संस्था के खिलाफ हथियार नहीं कहा जा सकता बल्कि यह एक उम्मीद का दरवाजा है। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा दिए गए इस बयान पर कहा कि ये न केवल असंवैधानिक है बल्कि उचित भी नहीं है। उन्होंने कहा आज तक किसी सभापति ने ऐसी राजनीतिक टिप्पणी नहीं की। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति किसी पार्टी के प्रवक्ता नहीं हो सकते। अगर ऐसा प्रतीत होता है तो यह पद की गरिमा के खिलाफ है और पद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। सिब्बल ने कहा, न्यायपालिका अपनी बात नहीं कह सकती, इसलिए जब कार्यपालिका हमला करे तो बचाव करना चाहिए। पूर्व कानून मंत्री ने कहा, राष्ट्रपति और राज्यपाल भी मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं। बिल लटकाना संवैधानिक अधिकार नहीं है। अगर संसद से पास बिल राष्ट्रपति लटकाकर बैठ जाएं तो क्या होगा? सिब्बल ने 24 जून 1975 का पा करते हुए कहा, इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करने का फैसला एक जज जस्टिस कृष्ण अय्यर ने सुनाया था जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था। उन्होंने कहा जब इंदिरा गांधी के चुनाव के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था तब केवल एक न्यायाधीश जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। धनखड़ जी को यह मंजूर था लेकिन अब दो जजों की पीठ का फैसला सही नहीं है क्योंकि यह सरकार के पक्ष में नहीं है। उधर महेश जेठमलानी ने धनखड़ के इस दमदार कदम की तारीफ करने के साथ इसकी कानूनी व्याख्या करते हुए एक्स पर लिखा, जहां कुछ लोग सरकार के दो अंगों (कार्यपालिका और विधायिका) के बीच संघर्ष के बीच देश के दूसरे प्रमुख उपराष्ट्रपति के आने के औचित्य पर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन बिल्कुल स्पष्ट संवैधानिक दोष और इशारा करना (उपराष्ट्रपति एक कुशल कानूनविद भी हैं।) की संविधान अनुच्छेद 145(3) के अनुसार संवैधानिक प्रावधान की व्याख्या से संबंधित सवाल पर केवल पांच जजों की पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए और दो न्यायाधीशों की पीठ का फैसला अमान्य था। यह निश्चित रूप से संविधान की मर्यादा बनाए रखने की उपराष्ट्रपति के शपथबद्ध दायित्व का निर्वहन होगा। बेशक अपने देश में अनेक ऐसे बड़े वकील हैं, जिन्हें लगता है कि वे न्यायपालिका को प्रभावित कर सकते हैं, माननीय जजों को जबरदस्त तरीके से ट्रोल कर प्रभावित कर सकते हैं पर उन्हें समझना चाहिए कि आज की तारीख में अगर जनता को न्याय की कोई उम्मीद बची है तो केवल न्यायालयों से। राजनीतिक पार्टियां भी ऐसे वकीलों को कुछ ज्यादा मजबूती देने लगती हैं। इंसाफ की कोशिश और सियासत के बीच दूरियां मिटने लगती हैं। सही इंसाफ के लिए सियासत को परे रखना होता है। तमिलनाडु के राज्यपाल का मामला हो या वक्फ बोर्ड कानून का दोनों ही मोर्चो पर न्यायालय पर सबकी निगाहें हैं। सियासत से प्रभावित हुए बिना, ट्रोल आर्मी और नेताओं के बयानों से प्रभावित हुए बिना शुद्ध संविधान की पृष्ठभूमि में हुआ फैसला ही ऐसे विवादों का निपटारा कर सकेगा। देश के आम नागरिकों के लिए सियासत से ज्यादा इंसाफ जरूरी है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 19 April 2025
हज यात्रियों का कोटा क्यों रद्द किया
कई साल से हज जाने की हसरत रखने वाले एडवोकेट फिरोज अंसारी ने इस साल अपनी पत्नी के साथ हज जाने के लिए सभी तैयारियां कर ली थीं। उन्होंने एक निजी टूर ऑपरेटर को आठ लाख रुपये भी जमा करवा दिए, लेकिन अब उन्हें नहीं मालूम कि वो हज पर जा पाएंगे या नहीं। दरअसल, इस साल सऊदी अरब ने भारत के निजी टूर ऑपरेटरों को मिलने वाला हज कोटा रद्द कर दिया है। हालांकि, भारत सरकार के दख़ल के बाद सऊदी सरकार निजी टूर ऑपरेटरों के ज़रिए हज पर जाने वाले दस हज़ार लोगों को वीज़ा देने के लिए तैयार हो गई है। भारत से इस साल लगभग 1.75 लाख लोग हज पर जाने वाले थे। हज कमेटी ऑफ इंडिया और निजी टूर ऑपरेटरों के जरिए भारतीय हज पर जाते हैं। इनमें से करीब 1.22 लाख हज कमेटी के ज़रिए जाएंगे जबकि ब़ाकी (लगभग 52,500) निजी टूर ऑपरेटरों के ज़रिए हज पर जाने वाले थे। सऊदी अरब सरकार ने इस साल निजी ऑपरेटरों का कोटा रद्द कर दिया है। भारत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने इसके लिए निजी टूर ऑपरेटरों को ज़िम्मेदार ठहराया है जबकि निजी टूर ऑपरेटर इसके लिए मंत्रालय की लापरवाही को ज़िम्मेदार बता रहे हैं। दिल्ली हज कमेटी की चेयरपर्सन कौसर जहाँ बताती हैं-जो लोग हज कमेटी के ज़रिए हज पर जाने वाले हज यात्री इससे प्रभावित नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अल्पसंख्यक मंत्रालय के दख़ल के बाद सऊदी अरब दस हज़ार यात्रियों का कोटा खोलने के लिए तैयार हुआ है। इससे हज पर जाने वाले लोगों को कुछ राहत जरूर मिलेगी। निजी टूर ऑपरेटरों के जरिए जाने वाले एक हज यात्री पर आमतौर पर पर 7.5 लाख रुपए तक खर्च आता है। जो हज कमेटी के जरिए जाते हैं उनका खर्च कुछ कम आता है। दिल्ली हज कमेटी के मुताबिक एक हज यात्री पर करीब 3 लाख 80 हज़ार रुपए का ख़र्च आता है। हज के दौरान इन यात्रियों के रहने और यातायात की व्यवस्था हज समिति करती है। प्राइवेट टूर ऑपरेटर भी कहते हैं कि निजी ऑपरेटरों के जरिए जाने वाले एक यात्री पर आमतौर पर 7.5 लाख रुपये तक ख़र्च आता है। ये ख़र्च और बेहतर सुविधाएं लेने की स्थिति में 13-15 लाख रुपये तक पहुंच जाता है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताब़िक, साल 2024 में भारत से क़रीब एक लाख 40 हज़ार लोग हज पर गए थे। सऊदी अरब किसी देश की आबादी के लिहाज से हज पर आने वाले लोगों की संख्या निर्धारित करता है। आमतौर पर एक हज़ार मुसलमानों पर हज के लिए एक सीट दी जाती है। सऊदी अरब सरकार के निजी टूर ऑपरेटरों का कोटा रद्द करने पर पीडीपी की प्रमुख और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि इस फ़ैसले से देशभर में टूर ऑपरेटरों और हज पर जाने वाले लोगों को तनाव हो रहा है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से अपील करते हुए कहा कि वो सऊदी अरब के साथ वार्ता करके इस मुद्दे का तुरंत समाधान निकालें। उमर अब्दुल्ला ने कहा, 52 हज़ार भारतीय हाजियों का कोटा रद्द होना, जिनमें से अधिकतर भुगतान भी कर चुके हैं, बेहद परेशान करने वाला है। वहीं भारत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने इसके लिए टूर ऑपरेटरों को ज़िम्मेदार ठहराया है। एक बयान में मंत्रालय ने कहा, अल्पसंख्यक मंत्रालय हज कमेटी के ज़रिए मुख्य कोटे के तहत इस साल 1 लाख 22 हज़ार 518 हज यात्रियों के लिए व्यवस्थाएं कर रहा है। फ्लाइट, यातायात, मीना में कैंप, रहने की व्यवस्था समेत सभी ज़रूरी तैयारियां सऊदी अरब के दिशानिर्देशों के हिसाब से पूरी कर ली गई हैं। शेष कोटा, पारंपरिक रूप से निजी टूर ऑपरेटरों को आवंटित किया गया था। सऊदी अरब के दिशानिर्देशों में बदलाव करने की वजह से मंत्रालय ने 800 निजी टूर ऑपरेटरों को 26 कंबाइंड हज ग्रुप ऑपरेटरों (सीएचजीओ) में मिला दिया गया था और उन्हें क़ाफी पहले ही कोटा भी आवंटित कर दिया गया था। हालांकि, कई बार याद दिलाने के बावजूद सीएचजीओ सऊदी अरब की तऱफ से निर्धारित अहम डेडलाइन को पूरा नहीं कर पाए और मीना में कैंपों, रहने की जगह और यातायात के लिए ज़रूरी कॉन्ट्रैक्ट पूरे नहीं कर पाए। सऊदी सरकार ने समय पर भुगतान ना होने की वजह से निजी ऑपरेटरों के कोटा को रद्द किया है। बीबीसी से बात करते हुए टूर ऑपरेटर ने कहा, टूर ऑपरेटरों ने मंत्रालय में पैसा जमा कर दिया था और उन्हें यह लग रहा था कि मंत्रालय भुगतान करने की व्यवस्था कर रहा है। उन्होंने बताया कि इस नोटिस में स्पष्ट है कि मंत्रालय भुगतान कर रहा है और सऊदी अरब को भुगतान मिल चुका है तो फिर जाने क्यों रद्द कर रहा है। मीना में यात्रियों के लिए जोन बुक करने के लिए सऊदी अरब ने भुगतान की समय-सीमा 14 फरवरी तय की थी। ये समय-सीमा पार होने के बाद ही कोटा रद्द किया गया।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 17 April 2025
तीन महीने में फैसला लें राष्ट्रपति
राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति रोकने में राज्यपाल के विवेक पर सीमाएं तय करने वाले अपने 8 अप्रैल के आदेश के बाद सर्वोच्च न्यायालय न राज्य के कानून को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की राष्ट्रपति की शक्ति पर भी रोक लगा दी है। इस फैसले का भारतीय राजनीति पर गंभीर असर पड़ना तय है, खासकर भारत के संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बहाल करने में। यह राज्यों के अधिकारों के पक्ष में बहुत ही परिणामी और राज्यों की दृष्टि से स्वागतयोग्य कदम माना जाएगा। खासकर उन विपक्षी राज्यों में जहां केंद्र द्वारा इसके दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि न तो राज्यपाल और न ही राष्ट्रपति के पास राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित किसी भी विधेयक पर पूर्ण वीटो का प्रयोग करने की अनियंत्रित शक्तियां हैं। इसने राज्यपालों के लिए एक महीने की समय-सीमा के बाद राष्ट्रपति के किसी विधेयक पर बैठने के अधिकार पर तीन महीने की समय -सीमा तय की, यदि सहमति दी जाती है। विधानसभाओं द्वारा राज्यपाल को लौटाए गए विधयेकों पर कार्रवाई के लिए प्रक्रिया और समय-सीमा भी तय कर दी गई है। फैसले में स्पष्ट किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत अपने कार्यों के निवर्हन में राष्ट्रपति को कोई पॉकेट वीटो का पूर्ण वीटो उपलब्ध नहीं है। अपने 415 पृष्ठों के फैसले में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन ने यह दूरगामी फैसला दिया है। फैसले से साफ है कि संविधान के अनुसार इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती कि एक चुनी हुई सरकार और लोगों की इच्छा का सम्मान न किया जाए। यह लोकप्रिय संप्रभुता का एक मूलभूत मुद्दा है जिस पर संविधान के माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण किया गया है। जहां तमाम विपक्ष इस फैसले का स्वागत कर रहा है वहीं सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार समीक्षा याचिका दाखिल करने की तैयारी में है। सरकार का मानना है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों के लिए समय- सीमा निर्धारित करना न्यायपालिका की सीमा से बाहर जा सकता है। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले पर कानून के जानकारों के बीच भी बहस छिड़ गई है और वह भविष्य के संवैधानिक संकट को लेकर आशंकित हैं। कुछ विधि विशेषज्ञों का मानना है कि जब राज्यपालों के निर्णयों में राष्ट्रपति की कोई भूमिका नहीं है तो फिर उनको पार्टी क्यों बनाया गया? संवैधानिक और विधिक विशेषज्ञों के बीच बहस छिड़ गई है कि क्या सुप्रीम कोर्ट वास्तव में भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि यह शायद पहली बार है जब न्यायपालिका ने सीधे तौर पर राष्ट्रपति को कोई समय-सीमा तय करने संबंधी निर्देश दिया है। कोर्ट को यह हस्तक्षेप इसलिए करना पड़ा क्योंकि राज्यपाल अपनी संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन न करें। उनका मानना है कि यह फैसला एक तरह से अनुशासनात्मक कदम है, जिसे अन्य राज्यपालों को भी एक स्पष्ट संदेश मिलेगा कि वे संविधान के दायरे में रहकर ही काम करें। यह तर्क दिया जा रहा है कि राष्ट्रपति कोई सामान्य सरकारी पदाधिकारी नहीं है, बल्कि वह देश का प्रमुख, संविधान का संरक्षक और सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर है। वह प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता से काम करता है। यदि कोर्ट राष्ट्रपति को कोई आदेश देता है, तो इससे उस संवैधानिक व्यवस्था पर सवाल उठ सकता है, जिसमें राष्ट्रपति केवल कार्यपालिका की सलाह पर काम करता है। इससे यह भी शंका उत्पन्न होती है कि क्या कोर्ट कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच की लक्ष्मण रेखा को पार कर रहा है? क्या सुप्रीम कोर्ट इस फैसले के जरिए एक नई संवैधानिक स्थिति तो नहीं बना रहा है? अगर राष्ट्रपति इस निर्देश को मानने से इंकार कर रहा है तो क्या उसे अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया जा सकता है? यह एक कठिन संवैधानिक सवाल है। दूसरी ओर यह मानने वालों की भी कमी नहीं जो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं और लोकतंत्र को सही दिशा-निर्देश देने में सही कदम मान रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस फैसले से जनता में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के प्रति विश्वास बढ़ेगा। देखें, आगे क्या होता है?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 15 April 2025
स्कूलों में बढ़ती फीस
स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से लगाए जा रहे आरोपों के बीच दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों के ऑडिट करने का निर्णय लिया है। वहीं शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने आरोप लगाया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान घपला करने के बाद भी स्कूलों ने कई बार फीस बढ़ाई थी। शिक्षा मंत्री ने बताया कि दिल्ली में 1677 निजी स्कूल हैं। इनमें 335 सरकारी जमीन पर बने हैं। जिनके लिए 1973 के दिल्ली स्कूल एक्ट में यह नियम है कि राज्य सरकार से फीस बढ़ाने से पहले अनुमति लेना जरूरी है। 114 स्कूल ही ऐसे हैं जिनकी फीस बढ़ाने की अनुमति लेने के लिए कोई बाध्यता नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि द्वारका स्थित एक निजी स्कूल ने बीते 5 साल में 20, 13, 9, 8, 7 फीसदी फीस बढ़ाई। डीएम कापसहेड़ा के नेतृत्व में इस स्कूल की जांच चल रही है। आप सरकार के शासन में एक और निजी स्कूल ने 2024-25 में 36 प्रतिशत फीस बढ़ाई। उन्होंने कहा ]िक एक निजी स्कूल ने 15 करोड़ रुपए खर्च कर घपला किया था। फिर भी उस स्कूल को 2022-23 में 15 फीसदी फीस बढ़ाने की अनुमति दी गई। स्कूल ने 2024-25 में भी 13 फीसदी फीस बढ़ाई फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसी तरह एक अन्य निजी स्कूल को 42 लाख रुपए की अनियमितता के लिए नोटिस दिया था। फिर भी स्कूल ने 2022-23 में 14 फीसदी फीस बढ़ा दी। हर वर्ष सिर्फ 75 स्कूलों का हुआ ऑडिट। शिक्षा मंत्री ने बताया कि पिछली सरकार के दस साल के शासनकाल में सिर्फ 75 स्कूलों की ही हर साल ऑडिट हुआ। उन्होंने स्पष्ट किया कि साल 2024 में निजी स्कूल के केस में दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कर दिया था कि किसी भी स्कूल को फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय की मंजूरी लेना जरूरी है। द्वारका स्थित नामी स्कूल को लेकर फीस बढ़ोत्तरी के मामले में जांच जारी है। बच्चों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। अभिभावकों का आरोप है कि गैर मंजूर फीस की अदायगी न करने पर लगभग 20 छात्रों को दोबारा से सोमवार को लाइब्रेरी में बिठाकर मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। अभिभावक ने कहा कि आखिर यह कब तक चलेगा। स्कूल के खिलाफ उचित कार्रवाई होनी चाहिए। बढ़ी हुई फीस के विरोध में अभिभावकों को अलग-अलग स्कूलों के बाहर विरोध प्रदर्शन जारी है। मंगलवार का द्वारका स्थित एक नामी स्कूल के बाहर अभिभावकों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर फीस वृद्धि के खिलाफ विरोध दर्ज कराया। वहीं बढ़ी फीस का विरोध करने पर स्कूल अभिभावकों को अब कानूनी नोटिस भी भेज रहे हैं। इसमें स्कूल को बदनाम करने का आरोप लगाए गए हैं। एक स्कूल एसोसिएशन के पदाधिकारी ने बताया कि फीस के खिलाफ आवाज उठाने पर दो करोड़ रुपए से अधिक का कानूनी नोटिस स्कूल की तरफ से मिला है, लेकिन हम डरेंगे नहीं। अभिभावकों का विरोध जारी रहेगा। फीस बढ़ोत्तरी का मामला, सिर्फ दिल्ली-एनसीआर तक ही सीमित नहीं है। देश भर के निजी स्कूलों में फीस बढ़ोतरी का मुद्दा उठा हुआ है। एक रिसर्च संस्था द्वारा किए गए एक सर्वे में 36 फीसदी पेरेंटस ने बताया कि पिछले तीन सालों में उनके बच्चों की स्कूल की फीस 80 फीसदी तक बढ़ाई गई। वहीं 8 फीसदी ने कहा कि स्कूल फीस में 80 फीसद से भी ज्यादा बढ़ोतरी की गई। यह इजाफा बिना किसी स्पष्ट कारण के किया गया। वहीं 93 फीसदी पैरेंटस का कहना है कि उनकी राज्य सरकारें इस बढ़ोतरी को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही हैं। सर्वे में 309 जिलों में 31 हजार से ज्यादा पैरेंटस ने हिस्सा लिया। इनमें से 62 फीसदी पुरुष और 38 फीसदी महिलाएं थीं। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि कई पैरेन्टस अब स्कूलों की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठा रहे हैं और एआई आधारित होम लर्निंग विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। यह चिंता भी जताई जा रही है कि मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवार कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। हमें इस बात की खुशी है कि दिल्ली सरकार और विशेष कर शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने इस ज्वलंत मुद्दे की ओर ध्यान दिया है और इसमें जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया है। बढ़ती महंगाई के इस दौर में अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए कितनी कठिनाई उठानी पड़ती हैं हम समझ सकते हैं। कर्जा लेकर, अपना पेट काटकर अपने बच्चों को अच्छी तालीम मिले इसके ]िलए उनसे हमें सहानुभूति है और हम उम्मीद करते हैं कि उन्हें जल्द राहत मिलेगी।
-अनिल नरेन्द्र
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