Thursday, 4 September 2025

क्या उपराष्ट्रपति चुनाव परिणाम चौंका सकते हैं?


उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, इस पद के लिए सत्तारूढ़ एनडीए के प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन और विपक्ष के उम्मीदवार जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी ने प्रचार तेज कर fिदया है। 2017 एवं 2022 उपराष्ट्रपति चुनाव के समय भाजपा को लोकसभा में स्वयं बहुमत प्राप्त था। इस समय लोकसभा में वह बहुमतविहीन है लेकिन राजग को बहुमत प्राप्त है। दोनों सदनों के अंकगणित को देखें तो लोकसभा में 542 और राज्यसभा में 240 सांसद हैं। कुल उपराष्ट्रपति चुनाव में संख्या हुई 782। दोनों सदनों में इंडिया गठबंधन सांसदों की संख्या 422 है। इनके अनुसार सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना प्राय निश्चित है, विपक्ष को भी पता है कि लोकसभा एवं राज्यसभा की संख्या बल के आधार पर उसके उम्मीदवार को जिताना अंसभव है। उम्मीदवारों के पीछे की रणनीति उनकी योग्यताएं और संदेशों को समझने के पूर्व ध्यान रखना आवश्यक है कि यह एक अभूतपूर्व चुनाव है। जिन परिस्थितियों में जगदीप धनखड़ ने त्यागपत्र दिया वैसा पहले कभी नहीं हुआ। चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं इसलिए उस स्थान को ज्यादा समय तक खाली नहीं छोड़ा जा सकता। सीपी राधाकृष्णन कभी भी विवादों में नहीं रहे। राधाकृष्णन कई महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर रहे हैं और संघ के करीबी माने जाते हैं। लगातार जनता के बीच रहने के बावजूद किसी तरह का राजनीतिक विवाद न होना उनकी विवेकशीलता का प्रमाण है। दूसरी ओर सुदर्शन रेड्डी आंध्र प्रदेश और गुवाहटी हाईकोर्ट में न्यायाधीश तथा उसके बाद 2007 से 2011 तक उच्चतम न्यायालय के जज रह चुके हैं और उनके वर्तमान तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जब सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, जातीय सर्वेक्षण करवाया तो उसकी रिपोर्ट के लिए सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता में ही एक समिति बनाई थी। इस तरह कांग्रेस के साथ उनका संपर्क बना हुआ था। हालांकि जब वे गोवा के लोकायुक्त थे तब कांग्रेस ने इनका विरोध किया था। उस समय उनकी नियुक्ति भाजपा सरकार की ओर से की गई थी और इसलिए कांग्रेस ने उन्हें पक्षपाती माना था। छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के विरुद्ध जनता के सलवाजुडूम संघर्ष को उन्होंने असंवैधानिक करार दिया था ऐसा कहना केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का है। हालांकि जस्टिस रेड्डी ने दो टूक जवाब fिदया कि यह फैसला मेरा नहीं था। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट का था। यह मानना पड़ेगा कि श्री सुदर्शन रेड्डी जबरदस्त चुनावी अभियान चला रहे हैं। उन्होंने बहुत से सांसदों से सीधा संपर्क किया है। यहां तक कहा है कि मुझे भाजपा सांसदों से भी समर्थन करने की अपील करने में कोई मुश्किल नहीं है। वह कहते हैं कि लड़ाई सिर्फ एक पद के लिए नहीं है बल्कि यह लड़ाई संविधान बचाने की है। देश में लोकतंत्र बचाने की है, चूंकि वह सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं इसलिए वह संविधान को समझते हैं, कानूनों को समझते हैं। वह कहते हैं मैं गैर राजनीतिक हूं इसलिए मैं सभी से अपील कर सकता हूं। चुनाव प्रचार चरम सीमा पर है। 9 सितम्बर को होने वाले इस चुनाव में जहां एक तरफ एनडीए ने अनुभवी नेता और पूर्व राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है, वहीं विपक्ष ने एक चौंकाने वाला दांव चला है। इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर इस चुनाव को सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं बल्कि संविधान बनाम विचारधारा की लड़ाई बना दिया है। भले ही संसद में एनडीए के पास संख्याबल ज्यादा हो, लेकिन विपक्ष भी अपना साझा उम्मीदवार उतारकर इस चुनाव को दिलचस्प बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। जस्टिस सुदर्शन रेड्डी ने सीपीआई (एम) नेताओं से मुलाकात की और समर्थन मांगा। चूंकि वह मूल रूप से आंध्र प्रदेश से हैं इसलिए एनडीए को डर है कि कहीं चंद्रबाबू नायडू गुप्त रूप से उनका समर्थन न कर दें। बता दें कि उपराष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान होता है, इससे पता नहीं चलता कि किसने किसको वोट दिया है। चूंकि वह तेलुगू भाषा क्षेत्र से हैं इसलिए तेलुगू प्राइड भी मुद्दा बन सकता है और अगर यह बना तो क्रास वोटिंग संभव हो सकती है। उधर सोशल मीडिया में भी यह खबर चल रही है कि कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार भी एक्टिव हो गए हैं और तमाम दक्षिण भारत के सांसदों से समर्थन साध रहे हैं और रेड्डी का समर्थन मांग रहे हैं। जस्टिस सुदर्शन रेड्डी ने कहा है कि उन्हें खुशी है कि न सिर्फ इडिया गठबंधन बल्कि उससे बाहर के लोग भी उनका समर्थन करने के लिए आगे आ रहे हैं, कुल मिलाकर आंकड़ों के हिसाब से तो विपक्ष की जीत भले ही मुश्किल हो, लेकिन वे इसे एक राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि 2029 के लोकसभा चुनाव और अगले दो सालों में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए एक मजबूत नींव रखी जा सके। अब देखना यह होगा कि क्या इस चुनाव में कोई चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं? 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 2 September 2025

क्या-क्या बोले सरसंघ चालक मोहन भागवत

 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में 26 से 28 अगस्त तक तीन दिवसीय कार्पाम आयोजित हुआ। मोहन भागवत ने देश में रोजगार परिदृश्य, संस्कृत की अनिवार्यता, भारत की अखंडता, हिन्दू-मुस्लिम एकता सहित कई ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बात कही। मैं यहां पर सरसंघचालक द्वारा प्रमुख मुद्दों और उनके जवाबों को प्रस्तुत कर रहा हूं। पाठक स्वयं फैसला कर लें कि मोहन भागवत जी के विचार क्या हैं? उन्होंने कहा, हमारे हिन्दुस्तान का प्रयोजन विश्व कल्याण है। दिखते सब अलग-अलग हैं लेकिन सब एक हैं। दुनिया अपनेपन से चलती है, यह सौदे पर नहीं चल सकती है। धर्म की रक्षा करने से सृष्टि ठीक चलती है क्योंकि जड़वाद बढ़ा और गति पर पहुंच गया, व्यक्तिवाद बढ़ा और अति पर पहुंच गया। 75 साल के बाद क्या राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए? इस सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा, मैंने ये बात मोरोपंत जी के बयान का हवाला देते हुए उनके विचार रखे थे। मैंने ये नहीं कहा कि मैं रिटायर हो जाऊंगा या किसी और को रिटायर होना चाहिए....हम जिंदगी में किसी भी समय रिटायर होने के लिए तैयार हैं और संघ हमसे जिस भी समय तक काम कराना चाहेगा, हम संघ के लिए उस समय तक काम करने के लिए भी तैयार हैं। भाजपा और संघ के बीच संबंधों पर भागवत ने कहा, सिर्फ इस सरकार के साथ नहीं, हर सरकार के साथ हमारा अच्छा संबंध रहा है...कहीं कोई झगड़ा नहीं है। उन्होंने कहा, मतभेद के मुद्दे कभी नहीं होते। हमारे यहां विचारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद बिल्कुल नहीं है। क्या भाजपा सरकार में सब कुछ संघ तय करता है? यह पूरी तरह गलत बात है। मैं कई सालों से संघ चला रहा हूं, वे सरकार चला रहे हैं, सलाह दे सकते हैं लेकिन उस क्षेत्र में फैसला उनका है और इस क्षेत्र में हमारा। जब सवाल पूछा गया कि भाजपा अध्यक्ष चुनने में इतना समय क्यों लग रहा है तो भागवत ने जवाब दिया, हम तय करते तो इतना समय लगता क्या? हम तय नहीं करते। कुछ पार्टियों के संघ विरोध पर भागरत ने कहा, परिवर्तन होते हुए भी हमने देखा है। 1948 में जयप्रकाश बाबू हाथ में जलती मशाल लेकर संघ का कार्यालय जलाने चले थे...बाद में इमरजेंसी के दौरान उन्होंने कहा कि परिवर्तन की आशा आप लोगों से ही है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से लेकर प्रणब मुखर्जी का पा करते हुए कहा कि वे संघ के आयोजन में आए। उन्होंने अपने मत नहीं बदले, लेकिन संघ के बारे में जो गलत फहमियां थीं वो दूर हुईं। तीन बच्चे होने चाहिए ः भागवत ने कहा कि भारत के हर नागरिक के तीन-तीन बच्चे होने चाहिए। जनसंख्या नियंत्रित रहे और पर्याप्त रहे। इस लिहाज से तीन ही बच्चे होने चाहिए, तीन से ज्यादा नहीं होने चाहिए। जन्म दर हर किसी की तय हो। इसलिए भारत के हर नागरिक को चाहिए कि उनके घर में तीन बच्चे हों। जन्म दर हर किसी की कम हो रही है। हिन्दुओं की पहले से ही कम थी तो ज्यादा कम हो रही है लेकिन दूसरे समुदायों की उतनी कम नहीं थी तो अब उनकी भी कम हो रही है। श्री भागवत जी ने कहा, बाहर से भी जो विचारधारा आई वह आाढामण के कारण आई, वहीं के लोगों ने उनको स्वीकार किया, लेकिन हमारा मत तो सबको स्वीकार करने का है। जो दूरियां बनी हैं उसको पाटने के लिए दोनों तरफ से प्रयास की जरूरत है। ये सद्भावना और सकारात्मकता के लिए अत्यन्त आवश्यक है, जिसे देश को राष्ट्रीय स्तर पर करना पड़ेगा। सरसंघ प्रमुख ने कहा हमारे हिन्दुस्तान का प्रयोजन विश्व कल्याण है। भारत में जितना बुरा दिखता है उससे 40 गुना ज्यादा समाज में अच्छा है। हमको समाज के कोने-कोने तक पहुंचाना पड़ेगा। कोई व्यक्ति बाकी नहीं रहे। समाज के सभी वर्गों में और सभी स्तरों में जाना पड़ेगा। गरीब से नीचे से लेकर अमीर तक के ऊपर तक संघ को पहुंचाना पड़ेगा। ये जल्दी से जल्दी करना पड़ेगा। जिससे सब लोग मिलकर समाज परिवर्तन के काम में लग जाएं। पर्यावरण में पानी बचाओ, सिंगल यूज प्लास्टिक हटाओ और तीसरा पेड़ लगाओ। इसके अलावा सामाजिक समरसता को लेकर काम करना होगा। मनुष्य को लेकर हम जाति के बारे में सोचने लगते हैं। इसको मन से खत्म करना होगा। मंदिर, पानी, श्मशान सबके लिए हैं। उसमें भेद नहीं होना चाहिए। भारत को आत्मनिर्भर होना जरूरी है। स्वदेशी की बात का मतलब विदेशों से संबंध नहीं होंगे ऐसा नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध और व्यापार चलते रहेंगे, लेकिन इसमें दबाव नहीं होना चाहिए बल्कि स्वेच्छा होनी चाहिए। अंत में भागवत ने कहा नींबू की शिकंजी पी सकते हैं तो कोका कोला और सप्राइट क्यों चाहिए। घर पर अच्छा खाना खाओ, बाहर से पिज्जा की क्या जररूत है? 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 30 August 2025

टैरिफ ने छीनी हीरे की चमक

भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी अमेरिकी टैरिफ बुधवार को लागू हो गया। इसी के साथ भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त टैरिफ बढ़कर 50 फीसद हो गया। माना जा रहा है 48 अरब डॉलर से ज्यादा का अमेरिका को दिए जाने वाला भारतीय निर्यात इससे प्रभावित होगा। भारत के वस्त्र, परिधान, रत्न आभूषण, झींगा, चमड़ा, टेक्सटाइल इत्यादि बहुत से उद्योगों पर सीधा असर पड़ेगा। मैंने कुछ दिन पहले हरियाणा के उद्योगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन किया था। आज मैं गुजरात के सूरत हीरा उद्योग के बारे में बताने का प्रयास करूंगा। सूरत दुनिया में हीरा की कटिंग और पालिशिंग के लिए जाना जाता है। लेकिन अब इस उद्योग पर निर्भर रहने वाले लोग मुश्किल में हैं। 50 फीसदी टैरिफ ने इस क्षेत्र के व्यापारियों के साथ-साथ मजदूरों को भी चिंता में डाल दिया है। हीरा उद्योग से जुड़े 25 लाख से ज्यादा कामगार इससे प्रभावित हो सकते हैं। 50 फीसदी टैरिफ लगाने का असर सबसे ज्यादा इस क्षेत्र पर पड़ रहा है क्योंकि सूरत का हीरा उद्योग अमेरिका के किए जाने वाले निर्यात पर ज्यादा निर्भर है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर टैरिफ कम नहीं किया गया तो कई व्यापारी हीरा उद्योग से बाहर हो जाएंगे। कई लोगों की नौकरियां चली जाएंगी और भयंकर मंदी आ जाएगी। हालांकि दूसरी ओर हीरा उद्योग से जुड़े संगठन जैसे सूरत डायमंड एसोसिएशन और साउथ गुजरात चेंबर ऑफ कॉमर्स का मानना है कि अमेरिकी टैरिफ से कुछ मंदी आएगी लेकिन समय के साथ स्थिति स्थिर हो जाएगी क्योंकि भारत को हीरा उद्योग की जितनी जरूरत है, अमेरिका में भी हीरों की उतनी ही मांग है। इसलिए वहां के लोग, व्यापारी भी इस समस्या का समाधान चाहते हैं। सूरत की कई छोटी फैक्ट्रियों में 20 से 200 श्रमिक तक काम करते हैं। राज्यों में तो यह संख्या 500 तक होती है और सूरत में ऐसी हजारों फैक्ट्रियां हैं। हाल ही में कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया है। सूरत में कई छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों का यह हाल है कि 20 साल पहले शैलेश मंगुकिया ने सिर्फ एक पॉलिशिंग व्हील (चक्की) से हीरा पालिश करने की एक यूनिट शुरू की थी जो अब इतनी बड़ी हो गई कि यहां कामगारों की संख्या 3 से बढ़कर 300 हो गई, हालांकि अब इस फैक्ट्री में सिर्फ 70 लोग ही बचे हैं। वे कहते हैं कि सारे आर्डर कैंसल कर दिए गए है। मजदूरों को कहना पड़ रहा है कि काम नहीं है। आर्डर नहीं होने की वजह से काम नहीं है और काम न होने की वजह से सैलरी देने के पैसे नहीं हैं। पिछले साल अगस्त में उनकी फैक्ट्री में हर महीने औसतन 2000 हीरें की प्रोसेसिंग हो रही थी। लेकिन इस साल घटकर मात्र 300 रह गई है। श्रमिक सुरेश राठौर ने कहा, आमतौर पर हमें जन्माष्टमी के दौरान सिर्फ 2 दिन की छुट्टी मिलती थी, इस बार हमें 1ˆ दिन की बिना वेतन छुट्टी दी गई। हम ऐसे कैसे रह सकते हैं? सुरेश राठौर जैसे कई कारीगर हैं, जो इस तरह प्रभावित हो रहे हैं। सूरत डायमंड पालिशर्स यूनियन के भावेश टांक कहते हैं कि हमारे पास इस समय बहुत से जौहरी शिकायत लेकर आ रहे हैं कि उनका वेतन कम कर दिया गया या उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। हजारों मजदूरों की आमदनी कम हो रही है। उद्योग जगत के नेताओं ने एक स्पेशल डायमंड टास्क फोर्स बनाई है। जो इस स्थिति का समाधान निकालने की कोशिश करेगी। दक्षिण गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष निखिल मद्रासी ने इस बारे में बीबीसी से कहा, अमेरिकी बाजार पर भारी निर्भरता के कारण लंबे समय में बड़ा झटका लगेगा। पुराने आर्डर पूरे हो गए हैं, लेकिन नए आर्डर का भविष्य अस्पष्ट है। सरकार को तुरंत मदद करनी होगी। उन्होंने कहा कि कई व्यापारी मध्य पूर्व और यूरोप जैसे बाजारों में अवसर तलाश रहे हैं और कुछ तो बाईपास मार्गों के जरिए अमेरिका तक माल पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि उनके अनुसार अब अलग-अलग यूरोपीय देशों में नए बाजारों की तलाश करने की जरूरत है। सवाल यह है कि सूरत के हीरा उद्योग को कैसे बचाया जा सकता है? इस उद्योग जगत के कुछ लोगों का कहना है कि आने वाले दिनों में स्थिति और खराब हो सकती है। जेम एंड ज्वैलरी एक्सपर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के गुजरात अध्यक्ष जयंति भाई सावलिया का मानना है कि अब समय आ गया है कि अमेरिका पर निर्भरता कम की जाए और अन्य बाजारों की ओर देखा जाए। उन्होंने कहा, अगर आर्डर नहीं मिले तो निश्चित रूप से श्रमिकों के वेतन और रोजगार पर असर पड़ेगा। असली मार आने वाले महीनों में दिखेगी। वे आगे कहते हैं कि वर्तमान में अमेरिका को होने वाला कुल निर्यात लगभग 12 अरब डॉलर का है, अगर हम इसका आधा व्यापार भी अन्य देशों में कर सके, तो सूरत का हीरा उद्योग बच सकता है। उस सूरत में भारत के हीरे की चमक टैरिफ से पड़ने वाले असर को कम कर देगी। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 28 August 2025

वोट चोरी आरोप पर चुनाव आयोग का जवाब

भारत में चुनाव प्रािढया पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है तो इसके पीछे क्या राजनीति है? सात अगस्त को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेस के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं हमारी वोट तो काटी नहीं है? राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेस में वोट चोरी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सत्तारुढ़ भाजपा के साथ सांठगांठ की बात कही थी जिसे चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया है। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के साथी इसे बिहार में जोरशोर से उठा रहे हैं और इसे भारी जनसमर्थन भी मिलता दिख रहा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की हताशा वाली राजनीति कह रहे हैं। बता दें कि जिस दिन बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा शुरू हुई थी। उसी दिन चुनाव आयोग ने भी प्रेस कांफ्रेंस की थी। लेकिन इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद भी चुनाव आयोग आलोचकों के निशाने पर है। सवाल है कि क्या केंद्र सरकार इन आरोपों के बाद किसी तरह बैकफुट पर दिखती है? चुनाव आयोग अगर बचावे करे तो क्या उसे हर बार पक्षपात के तौर पर ही देखा जाएगा? और चुनाव आयोग आखिर राहुल गांधी से शपथ पत्र लेने की मांग पर क्यों अड़ा हुआ है? जबकि राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि जो दस्तावेज उन्होंने सात अगस्त को पेश किए वे सब चुनाव आयोग के ही दिए आंकड़े हैं? इन सवालों पर चर्चा के लिए इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ब्यूरो चीफ रितिका चोपड़ा और भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा बीबीसी के साप्ताहिक कार्पाम ‘द लेंस' में शामिल हुए। इसी साल जून के महीने में राहुल गांधी ने अखबारों में एक लेख लिखा था। लेख में उन्होंने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को मैच फिक्सिंग कहा था। अब बिहार में एसआईआर बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। एसआईआर पर अशोक लवासा कहते हैं, सबसे पहले उत्तेजन का कारण बिहार विधानसभा चुनाव है। चुनाव से पहले एसआईआर जैसी बड़ी प्रािढया अपनाने से लोगों में संशय हुआ है। दूसरा कारण है कि 2003 के रिवीजन में प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था। सासाराम में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिहार में एसआईआर करके नए वोटरों को जोड़कर और योग्य लोगों के नाम काटकर यह (भाजपा-संघ) बिहार का चुनाव चोरी करना चाहती है। जबकि चुनाव आयोग का तर्क है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों के दूर करने के लिए एसआईआर प्रािढया अपनाई जा रही है। अशोक लवासा का कहना है इस बार प्रािढया काफी जटिल बना दी गई है और इसके लिए लोगों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया है। इस बार सवाल मतदाता सूची पर उठाए जा रहे हैं और पिछले दस सालों में ऐसे सवाल नहीं उठाए गए थे। बीते चुनावों में राजनीतिक दल ईवीएम, चुनावी शेड्यूल या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट से संबंधित शिकायतें करते रहे हैं। सवाल अब भी चुनाव आयोग पर है लेकिन मुद्दा वोटर लिस्ट है इसलिए यह बाकी मामलों से अलग है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग सिर्फ उनसे शपथ पत्र मांग रहा है जबकि किसी और से नहीं मांगा। अशोक लवासा का कहना है, अगर इतने बड़े पैमाने पर एक विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा लोगों के बारे में दावा किया गया है तो किसी भी सार्वजनिक कार्यालय को इसकी जांच करनी चाहिए। मेरे ख्याल से उसके लिए किसी शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सियासी दलों से पूछा कि जब इतनी समस्याएं हैं तो सिर्फ आयोग के पास दो ही शिकायतें क्यों आई हैं? हालांकि तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि उनकी शिकायतों को स्वीकार नहीं किया गया है। यह भी सच है कि ज्ञानेश कुमार के बोलने के तरीके के कारण लोगों के मन की शिकायतें पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। अशोक लवासा ने आगे कहा कि चुनाव आयोग को यह समझना चाहिए कि अगर कोई भ्रांति फैलाई जा रही है तो उसे चुनाव आयोग को ही दूर करना होगा। आयोग को दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए। सही और गलत का निर्णय लोग स्वयं कर लेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय बचा है। समय सिर्फ तीन महीने का है और चुनाव आयोग को दस्तावेज जमा करने के साथ उनकी पुष्टि भी करनी है। कई वोटरों के पास तय दस्तावेज नहीं हैं और कुछ लोगों में भय का माहौल है। इन्हीं सब समस्याओं की वजह से इस मुद्दे की पकड़ ग्राउंड पर बढ़ती जा रही है। कई लोग इसे अपनी नागरिकता के साथ भी जोड़ रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने साफ किया है कि एसआईआर का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है पर बिहार के वोटरों में शंका बनी हुई है। अशोक लवासा बताते हैं प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप के इस्तेमाल से नागरिकता पर प्रश्न बना हुआ है। चुनाव आयोग बार-बार कह रहा है कि वोटर लिस्ट में नाम न आने से नागरिकता समाप्त नहीं होगी। लेकिन इसमें भी विरोधाभास यह है कि उसी वजह से तो आप उसे मतदाता सूची से बाहर निकाल रहे हैं? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 26 August 2025

राज्यपाल बिल में देरी करें तो रास्ता क्या है?


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को पेडिंग रखते हैं तो इससे विधान मंडल निपिय हो जाएगा। ऐसी स्थिति में क्या अदालतें हस्तक्षेप करने में असमर्थ हैं? दरअसल मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि क्या न्यायालय आदेशों द्वारा राष्ट्रपति-राज्यपाल को समय-सीमा में बांध सकता है? चीफ जस्टिस आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस पाम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर की पीठ इसी प्रेजिटेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान पावार को भारत सरकार के सॉलिसीटर जनरल ने दलीलें दी कि न्यायपालिका राष्ट्रपति या राज्यपाल को बाध्यकारी निर्देश नहीं दे सकती। तब चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या हम यह कहें कि चाहे संवैधानिक पदाधिकारी कितने भी ऊंचे हों, यदि वे कार्य नहीं करते तो अदालत असहाय है? हस्ताक्षर करना है या अस्वीकार करना है, उस कारण पर हम नहीं जा रहे कि उन्होने क्यों किया। परन्तु यदि सक्षम विधान मंडल ने कोई अधिनियम पारित कर दिया है और माननीय राज्यपाल बस उस पर बैठे रहें तो सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि हर समस्या का समाधान कोर्ट में नहीं खोजा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर बैठे हुए हैं और उन पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, ऐसे में राज्यों को न्यायिक समाधान के बजाए राजनीतिक समाधान तलाशने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर राज्यपाल विधेयकों में देर करते हैं तो रास्ता क्या है? तब सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि व्यावहारिक उत्तर यह है कि यदि कोई राज्यपाल विधेयकों पर बैठे रहते हैं तो राजनीतिक समाधान होते हैं। और ऐसे समाधान हो भी रहे हैं। हर जगह ऐसा नहीं होता कि राज्य को सुप्रीम कोर्ट आने की सलाह दी जाए। मुख्यमंत्री जाते हैं और प्रधानमंत्री से अनुरोध करते हैं। मुख्यमंत्री राष्ट्रपति से मिलते हैं। प्रतिनिधिमंडल जाते हैं और कहते हैं कि ये विधेयक लंबित पड़े हैं, कृपया राज्यपाल से बात करें ताकि वे किसी न किसी रूप में निर्णय लें। कई बार टेलीफोन पर ही मामले को निपटा लिया जाता है। मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राज्यपाल की संयुक्त बैठकें होती हैं और इस तरह गतिरोध समाप्त होता है। लेकिन इससे ये अधिकार क्षेत्र यानी ज्यूरिएडिक्शन नहीं मिल जाती कि जुडिशियल निर्णय के द्वारा समय-सीमा तय कर दें। सवाल यह है कि जब संविधान में समय-सीमा निर्धारित नहीं है तो क्या अदालत समय-सीमा तय कर सकती हैं? भले ही उसके लिए औचित्य हो? ऐसे मुद्दे कई दशकों से हर राज्य में उठते रहे हैं। लेकिन जब राजनीतिक (स्टेटसमैन शिप) और राजनीतिक परिपक्वता दिखाई जाती है तो वे केंद्र के संवैधानिक कार्यवाहकों से मिलते हैं, चर्चा करते हैं और राजनीतिक समाधान निकाल लेते हैं, यही इन समस्याओं के समाधान हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि अगर राज्यपाल की निपियता के खिलाफ कोई पीड़ित राज्य अदालत के पास आता है तो क्या आपके अनुसार न्यायिक समीक्षा पूरी तरह निषिद्ध है। इन पर तुषार मेहता ने कहा कि वे राज्यपाल की कार्रवाई की न्याय संगलता के प्रश्न पर नहीं है, बल्कि इस प्रश्न पर है कि क्या अदालत राज्यपाल को समय-सीमा के भीतर कार्य करने का निर्देश दे सकती है। इन पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर कोई गलत है, तो उपाय तो होना चाहिए। मेहता ने उत्तर दिया कि देश की हर समस्या का समाधान इस मंच (सुप्रीम कोर्ट) से नहीं हो सकता। इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि अगर कोई संवैधानिक पदाधिकारी बिना किसी कारण अपना कर्तव्य नहीं निभाता, तो क्या इस न्यायालय के हाथ बंधे हुए हैं? जस्टिस सूर्यकांत ने इस दौरान जोड़ा कि अगर व्याख्या की शक्ति सुप्रीम कोर्ट में निहित है तो कानून की व्याख्या अदालत को ही करनी होगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 23 August 2025

विधेयक पर विपक्ष का हंगामा


गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार और लगातार 30 दिन हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों को पद से हटाने वाले बिल बुधवार को पेश हुए। हालांकि इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया है जो अगले सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष को जेपीसी के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराने का मौका मिलेगा। अभी जो कानून है, उसके अनुसार जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाए, तब तक ये आला मंत्री इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस बिल के जरिए संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन करना होगा, जिसमें प्रधानमंत्री के साथ मंत्रियों की नियुक्ति और जिम्मेदारियों की बातें हैं। ड्राफ्ट बिल के मुताबिक अगर किसी मंत्री के पद पर रहते हुए लगातार 30 दिन के लिए किसी कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में लिया जाता है जिसमें पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान है, उसे राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा दिया जाएगा। ऐसा हिरासत में लिए जाने के 31वें दिन हो जाना चाहिए। सरकार इस विधेयक को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने बिल पेश करते समय कहा, राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी सरकार की प्रतिबद्धता और जनता के आक्रोश को देखकर मैंने संविधान संशोधन बिल पेश किया ताकि पीएम, सीएम और मंत्री जेल में रहते हुए सरकार न चला सकें। इसका उद्देश्य राजनीति में शुचिता लाना है। हाल में ऐसी स्थिति बनी कि सीएम या मंत्री बिना इस्तीफा दिए जेल से सरकार चलाते रहे। उधर विपक्ष ने इस विधेयक का जबरदस्त विरोध किया। विपक्ष की ओर से एआईएमआईएम के चीफ व सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के मनीष तिवारी, केसी वेणुगोपाल, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन व समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने जमकर विरोध किया। प्रेमचंद्रन ने कहा कि तीनों विधेयकों को सदन में पेश करने की सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों है? इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रेमचन्द्रन जल्दबाजी की बात कर रहे हैं, लेकिन इनका सवाल इसलिए नहीं उठता क्योंकि मैं इन विधेयकों को जेपीसी को सौंपने का अनुरोध करने वाला हूं। इसके बाद कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि भाजपा के लोग कह रहे हैं कि यह विधेयक राजनीति में शुचिता लाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि क्या मैं गृहमंत्री से पूछ सकता हूं कि जब वह गुजरात के गृहमंत्री थे, उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब क्या उन्होंने नैतिकता का ध्यान रखा था? गृहमंत्री ने वेणुगोपाल को जवाब देते हुए कहा कि मैं रिकार्ड स्पष्ट करना चाहता हूं। मैंने गिरफ्तार होने से पहले नैतिकता के मूल्यों का हवाला देकर इस्तीफा भी दिया और जब तक अदालत से निर्दोष साबित नहीं हुआ तब तक मैंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया। शाह ने कहा कि हमें क्या नैतिकता सिखाएंगे? कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने विधेयक को अलोकतांत्रिक बताया और केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे विधेयक लाकर भाजपा सरकार लोगों की आंखें में धूल झोंकने की कोशिश कर रही है। यह पूरी तरह दमनकारी कदम है। यह हर चीज के खिलाफ है और इसे भ्रष्टाचार विरोधी कदम के रूप में पेश करना लोगों की आंख में धूल झोंकना जैसा है। सोशल मीडिया में भी इस विधेयक की जमकर चर्चा हो रही है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह विधेयक ही दो-मूही तलवार है। जहां इस विधेयक से चुनी हुई राज्य की विपक्षी सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, वहीं यह एनडीए सहयोगियों के लिए भी इशारा है कि आप अगर लाइन पर नहीं चले तो आपका भी क्या अंजाम हो सकता है, समझदार को इशारा ही काफी है। वैसे हमें लगता है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को पारित करना इतना आसान नहीं होगा। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत दोनों सदनों में चाहिए होगा। जो फिलहाल उसके पास नहीं है। वैसे भी मानसून सत्र खत्म हो गया है बिल अब तो विंटर सेशन में ही आएगा। केंद्र सरकार इस विधेयक को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है, जबकि विपक्ष इससे सहमत नहीं है। दोनों पक्षों को समन्वय के मार्ग पर चलना चाहिए। ध्यान रहे, हमारे संविधान सभा में शामिल नेताओं ने सोचा भी नहीं था कि कभी देश की राजनीति का नैतिक स्तर इतना गिर जाएगा। आज तो कोई दागी नेता पद नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में आज या कल कुछ कानूनी प्रावधान ऐसे करने ही पड़ेंगे, ताकि दागियों के लिए जगह न बचे और इस हमाम में सभी नंगे है। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 21 August 2025

चुनावी सवालों का जवाब नहीं मिला

आखिर भारत के चुनाव आयोग ने चुनावी सवालों के मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस की। प्रेस कांफ्रेंस तो की पर ज्वलंत सवालों के जवाबों को टालने पर ज्यादा जोर दिया गया। बेहतर होता कि चुनाव आयोग यह प्रेस कांफ्रेंस न करता। प्रेस कांफ्रेंस भी उस दिन की गई जब रविवार था और उसी दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोड शो चल रहा था और बिहार के सासाराम में राहुल गांधी की वोट चोरी यात्रा आरंभ हो रही थी। नतीजा यह हुआ कि इस प्रेस कांफ्रेंस ने नए सवालों को जन्म दे दिया। लोकतंत्र में चुनाव केवल सरकार चलाने की वैधता हासिल करना नहीं, बल्कि यह उस चुनाव की बुनियाद का प्रमुख स्तंभ है, जिस पर देश, राज्य व लोकतंत्र का दारोमदार टिका हुआ है। इस प्रक्रिया के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से पारदर्शिता से संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है। रविवार को चुनाव आयोग ने विपक्षी राजनीतिक दलों के वोट चोरी से जुड़े आरोपों के जवाब दिए। प्रेस कांफ्रेंस के बाद कांग्रेस ने कहा कि इस प्रेस कांप्रेंस में विपक्ष के उठाए सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया गया। तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार चुनाव से ठीक पहले भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोट देने का अधिकार छीन रही है। आरजेडी ने यह सवाल उठाया कि एसआईआर ऐसे समय क्यों की जा रही है जब बिहार में बाढ़ आई हुई है। पत्रकारों ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा था। इस पर आयोग ने कहा, बिहार में 2003 में भी एसआईआर हुआ था और उसकी तारीख भी 14 जुलाई से 14 अगस्त थी। तब भी यह सफलतापूर्वक हुआ था। राहुल गांधी ने दावा किया था कि 2004 के लोकसभा और महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ, जिससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ। विशेष रूप से, उन्होंने बेंगलुरु की महादेवपुरा विधानसभा में एक लाख से ज्यादा फर्जी वोटर और कई अमान्य पतों का आरोप लगाया था। राहुल गांधी ने डुप्लीकेट वोटरों (जैसे एक ही व्यक्ति का कई राज्यों में वोटर के रूप में रजिस्ट्रेशन) और गलत पतों (जैसे एक छोटे से कमरे में सैंकड़ों वोटर) के उदाहरण दिए थे। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार और गैर जिम्मेदाराना बताते हुए खारिज किया और कहा कि वोट चोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करोड़ों मतदाताओं, लाखों चुनाव कर्मचारियों की ईमानदारी पर हमला है। क्या राहुल गांधी के सवालों का यही जवाब था? राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग उनसे शपथ पत्र मांग रहा है, मुझसे एफीडेविट मांगा है जबकि कुछ दिन पहले ही भाजपा के लोग प्रेस कांफ्रेंस करते हैं तो उनसे कोई एफीडेविट नहीं मांगा जा रहा है। ज्ञानेश कुमार ने जवाब दिया, जहां आप गड़बड़ी की बात कर रहे हैं और आप उस विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक नहीं हैं तो कानून के मुताबिक आपको शपथ पत्र देना होगा। आयोग का कहना है कि हलफनामा देना होगा या देश से माफी मांगनी होगी। अगर सात दिनों के अंदर हलफनामा नहीं मिलता है तो इसका मतलब है कि ये सभी आरोप निराधार हैं। पर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि चुनाव आयोग ने विपक्ष के सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया। खेड़ा ने कहा क्या ज्ञानेश कुमार ने उन लाख वोटर्स के बारे में कोई जवाब दिया जिन्हें हमने महादेवापुरा में बेनकाब किया था? नहीं दिया। उन्होंने कहा, हमने उम्मीद की थी कि श्री ज्ञानेश कुमार हमारे प्रश्नों के उत्तर देंगे... ऐसा लग रहा था कि (प्रेस कांप्रेंस में) भाजपा का एक नेता बोल रहा है। वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता चुनाव आयोग की इस प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे। उनका मानना है कि फिलहाल जो सफाई चुनाव आयोग ने दी है उससे यह मुद्दा खत्म होते नहीं दिखाई दे रहा है। ठाकुरता कहते हैं, प्रेस कांफ्रेंस में कुछ सवालों के स्पष्ट जवाब नहीं मिले है। जैसे मैंने पूछा कि क्या यह सच है कि महाराष्ट्र में आपने 40 लाख नए लोगों को वोटर लिस्ट में शामिल किया? इस पर आयोग ने कहा कि उस समय किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी। मैंने एक और सवाल पूछा कि क्यों लोगों से ज्यादा नाम मतदाता सूची में थे तो इसका जवाब मुझे नहीं मिला। इस तरह से कई और सवाल हैं जिनके स्पष्ट जवाब नहीं मिले हैं। चुनाव आयोग ने बिहार ड्राफ्ट लिस्ट से करीब 65 लाख मतदाता हटाए हैं। यह एक बड़ी संख्या है, इसका कोई जवाब नहीं मिला। चुनाव आयोग आज से पहले इस तरह कभी प्रेस कांफ्रेंस करने सामने नहीं आया था। विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव आयोग के जवाब को राजनीतिक संदर्भ में देखने की जरूरत है। टाइमिंग की बात करें तो निश्चित रूप से चुनाव आयोग का जवाब भी राजनीतिक है। जैसे राहुल गांधी इसे बिहार में राजनीतिक बना रहे है तो ठीक उसी तारीख को सरकार की ओर से चुनाव आयोग ने अपना पक्ष सामने रखा है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 19 August 2025

अलास्का में नहीं बनी बात

 
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की अलास्का की बैठक पर सारी दुनिया की नजरें थीं। पिछले तीन साल से चले आ रहे रूस, यूक्रेन युद्ध की समाप्ति पर उम्मीदें लगाई जा रही थीं। स्थायी शांति न भी होती तो इतना तो हो सकता था कि युद्ध विराम तो हो जाता। पर सारी उम्मीद टूट गई। बेशक कुछ मुद्दों पर जरूर दोनों देशों के राष्ट्रपतियों की सहमति बनी पर कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। तीन साल से अलग-थलग किए गए पुतिन का ट्रंप ने न सिर्फ खुले दिल से स्वागत किया, बल्कि लाल कालीन बिछाकर उनका सार्वजनिक रूप से सम्मान भी किया। हालांकि जिस मुद्दे के लिए यह अहम बैठक हुई थी उस पर कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। ट्रंप-पुतिन मुलाकात से यूक्रेन मुद्दे पर कोई तत्काल हल नहीं निकला, बावजूद यह मुलाकात खास रही। रूस के यूक्रेन पर हमले और युद्ध अपराधों के आरोपों के चलते पुतिन पश्चिमी दुनिया से अलग-थलग पड़ गए थे। इस मुलाकात ने उन्हें अचानक वैश्विक केंद्र में वापस ला दिया। अमेरिका के सैन्य अड्डे पर दोनों नेताओं का बगल-बगल खड़े होकर एक-दूसरे की तारीफ करना, बातचीत करना और यहां तक कि ट्रंप की लियोजीन में साथ बैठना ये सब ऐसे दृश्य थे जो अमेरिका-रूस संबंधों के इतिहास में कम ही देखे गए। दुनिया भर की मीडिया एक प्रेस कांफ्रेंस की उम्मीद कर रही थी, लेकिन दोनों नेताओं ने सिर्फ बयान दिए और किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। ट्रंप ने उम्मीद जताई थी और यहां तक दावा किया था कि वह रूस–यूक्रेन युद्ध को रूकवा देंगे। हालांकि पुतिन ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया था। पुतिन के लिए यह बैठक किसी जीत से कम नहीं थी। बिना कोई रियायत दिए उन्हें दुनिया की सबसे ताकतवर कुर्सी से सम्मान और स्वीकृति मिल गई। इस पूरी कवायद में यूक्रेन की भूमिका हाशिए पर रही। इस बैठक के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमीर जेलेंस्की को आमंत्रित तक नहीं किया गया। अलास्का में ट्रंप पुतिन बैठक को वैश्विक मीडिया शांति की दिशा में बहुत भरोसे के साथ नहीं देख रहा है। रूसी मीडिया ने पुतिन की कूटनीतिक जीत का सुबूत माना, यूरोपीय मीडिया ने उम्मीद और आशंका दोनों जताई। वहीं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों और घरेलू अमेरिकी राजनीतिक हल्कों में चर्चा का बड़ा हिस्सा ट्रंप की व्यक्तिगत शैली और उनकी मसखरी नेता जैसी छवि पर केंद्रित रहा। न्यूयार्क टाइम्स ने अपेक्षाकृत संशयपूर्ण रुख अपनाते हुए सवाल उठाया, क्या यह वार्ता सिर्फ फोटोशूट और अल्पकालिक सुर्खियां थीं या वास्तव में संघर्ष विराम की दिशा में ठोस कदम? अमेरिकी खुफिया व रक्षा हल्कों में आशंका है कि पुतिन ने बैठक का इस्तेमाल वैश्विक मंच पर अपनी छवि सुधारने और यह दिखाने के लिए किया कि अमेरिका अंतत रूस से बातचीत करने पर मजबूर हुआ। वाशिंगटन पोस्ट ने राजनीतिक दांव बताते हुए सवाल उठाया कि क्या ट्रंप का मूड आधारित नेतृत्व अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति को कमजोर कर रहा है। दोनों अखबारों ने लिखा कि ट्रंप के फैसले उनके मूड पर निर्भर हैं आज खुश तो शांति की बात करेंगे, पर गुस्से में होंगे तो पलट जाएंगे। एमएसएन ने ट्रंप को रियलिटी शो का होस्ट स्टार करार दिया। नोबेल की चाह में बेकरार राजनेता वैश्विक मंच पर कोई ड्रामा कर सकता है। ट्रंप वैश्विक मंच व वैश्विक राजनीति शो मैनशिप में बदल रहे हैं। सीएनएन ने कहा, ट्रंप शांति की ओर बढ़ रहे हैं पर उनका अप्रत्याशित रुख सब पर भारी है। वहीं ब्रिटिश अखबार व गार्डियन ने वार्ता को राजनीतिक विडम्बना बताया। लिखा ः वार्ता ऐसे समय हुई जब आर्कटिक क्षेत्र में रूस, अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की दौड़ तेज है, सुरक्षा विशेषज्ञों को यह कदम अमेरिका की आर्टिक रणनीति में नरमी का संकेत लगता है। गार्डियन ने चेतावनी दी, ट्रंप की अप्रत्याशित कूटनीति से वार्ता के नतीजे भरोसेमंद नहीं माने जा सकते। उधर रूस के अखबार इजवेसित्या ने लिखा ः ट्रंप को मानना पड़ा कि पुतिन के बिना यूक्रेन का भविष्य तय नहीं हो सकता। कोमरूट ने इसे रूस की कूटनीतिक वापसी बताया। टीवी चैनल आरटी ने भी बैठक को पुतिन की मजबूती और धैर्य का परिणाम करार दिया। इतना तो हम भी कह सकते हैं कि इस बैठक ने निसंदेह ब्लादिमीर पुतिन को वैश्विक कटूनीति का अपरिहार्य खिलाड़ी बना दिया है। उम्मीद की जाती है कि रूस-यूक्रेन जंग में जो बर्फ पिघलने का सिलसिला शुरू हुआ है यह आगे बढ़ेगा और अंतत यह जंग बंद होगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 17 August 2025

ट्रंप टैरिफ से निर्यात पर संकट


केंद्र सरकार के प्रमुख सलाहकार (आर्थिक) अनंता नागेश्वरन ने कहा कि ट्रंप टैरिफ का असर 6 महीने से ज्यादा नहीं रहने वाला है। उन्होंने कहा, लांग टर्म चैलेंज के लिए प्राइवेट सेक्टर को अहम योगदान देना होगा। नागेश्वरन ने चेताया कि छह महीने के दौरान जैम्स एंड जूलरी टेक्सटाइल और फूड इंडस्ट्री को बढ़े हुए टैरिफ का मुकाबला करना होगा। ट्रंप टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर खासकर कुछ क्षेत्रों में तो अभी से बुरा असर पड़ना शुरू हो गया है। दैनिक भास्कर की छपी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उत्पादों पर अमेरिका के भारी भरकम 50 फीसदी टैरिफ ने देश के कई प्रमुख निर्यात उद्योगों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। इसका असर न सिर्फ भारत के 55 फीसदी निर्यात पर पड़ेगा, बल्कि राज्यों के सामने भी नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हालांकि, टैरिफ का असर सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। लेकिन कहीं पुराने सौदों पर संकट है तो कहीं भविष्य में आर्डर ठप होने की आशंका बढ़ गई है। चावल निर्यातकों की चिंता! भारत 127 देशों को करीब 60 लाख टन बासमती चावल निर्यात करता है। इसमें से करीब 2.70 लाख टन यानि 4 फीसदी चावल अमेरिका को जाता है। इस निर्यात में करीब 40 फीसदी हिस्सा हरियाणा में तरावड़ी (करनाल) से जाता है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि अगर अमेरिका को बासमती चालव का निर्यात नहीं होता तो भी बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। 2.70 लाख टन अन्य देशों में खपाना मुश्किल नहीं होगा। फिलहाल चावल निर्यातक वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं, क्योंकि इस साल का निर्यात लगभग पूरा हो चुका है। पानीपत उत्तर भारत का बड़ा टेक्सटाइल हब है। जहां से हर साल करीब 20,000 करोड़ रुपए का निर्यात होता है। इसमें से 10,000 करोड़ रुपए तक का व्यापार अकेले अमेरिका से जुड़ा है। निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से 500 करोड़ रुपए के पुराने ऑर्डर पर संकट आ गया है। नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कुछ निर्यातक पहले से ही स्थिति को भांप गए थे। ऐसे में उन्होंने अमेरिका से बड़े ऑर्डर लेना बंद कर दिए और उत्पादों में भी कटौती की है। सिंगापुर के जरिए भी अमेरिका से व्यापार की गुंजाइश है। यूके से द्विपक्षीय समझौते से कुछ लाभ मिल सकता है। पानीपत में 35000 करोड़ टेक्सटाइल्स इकाइयां हैं जिसमें 500 एक्सपोर्ट हाउस हैं और इनमें करीब 2.5 लाख लोगों को रोजगार मिला है। नए ऑर्डर नहीं मिलने पर इनकी आजीविका पर असर पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर के हैंडलूम और हस्तशिल्प उद्योग (विशेषकर पश्मीना एवं घानी शॉल) ने बीते तीन साल में निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। टैरिफ के बाद कारोबारी सतर्क हो गए हैं। जम्मू के शॉल निर्यात संगठन ने कहा अमेरिका में माल महंगा होगा पर कोई आर्डर अभी तक रद्द नहीं हुआ है। हमारे लिए दूसरे देशों के बाजार खुले हुए हैं। मगर अमेरिका में मांग घटी तो निर्यात को दूसरे देशों के बाजारों में मोड़ देंगे। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय और जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वे से कुल निर्यात तीन साल में बढ़कर 2023-24 में 1,162 करोड़ पहुंच गया। इसमें शॉल का निर्यात 477.24 करोड़ था। रोहतक का नट-बोल्ट उद्योग सालाना 5,000 करोड़ रुपए का कारोबार करता है। इसमें 70 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता है। उद्यमियों का कहना है कि नया टैरिफ अगर लागू होता है तो न सिर्फ आपूर्ति प्रभावित होगी बल्कि कारोबार भी मुश्किल में आ जाएगा। चिंता की बात है कि कुछ कंपनियों को दो महीने से अमेरिका से कोई आर्डर नहीं मिला है। बड़ी कंपनियां पुराने आर्डर को पूरा करने में लगी हैं। भविष्य के लिए जो आर्डर मिले हैं। उनकी आपूर्ति पर टैरिफ का असर दिखेगा। अतिरिक्त टैरिफ से जिले की औद्योगिक इकाइयों के लिए दुनिया के बड़े बाजारों में माल बेचना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि उत्पाद 25 फीसदी तक महंगा हो जाएगा। इसका असर कंपनी पर सीधा न पड़कर ग्राहक पर पड़ेगा। जसमेर लाठा जिसने बताया हम अमेरिका, यूके, यूरोप में नट-बोल्ट की आपूर्ति करते हैं। टैरिफ के कारण यहां से करीब 50 करोड़ रुपए के ही आर्डर बुक हुए हैं। हमारा 70 फीसदी नट-बोल्ट अमेरिका जाता है। पहले कस्टम ड्यूटी तीन फीसदी थी। अब यह बढ़कर 25 फीसदी हो गई है । यह पिछले 40-50 वर्षों में बहुत ज्यादा है। इसके अलावा 25 फीसदी टैरिफ और भी है। इससे हमारा उत्पाद काफी महंगा हो जाएगा ऐसा यहां के उद्योग चलाने वालों का मानना है। मैंने यह तो सिर्फ हरियाणा के कुछ उद्योग और निर्यातकों की बात की है, शेष देश में प्रभावित उद्योगों की बात नहीं की। लाखों कामगार बेरोजगार होने की कगार पर खड़े हैं। पहले से ही बेरोजगारी देश में चरम पर है, इस नए धमाके का क्या असर पड़ेगा जल्द पता चल जाएगा। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 14 August 2025

आसिम मुनीर की खुली धमकी

अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को धमकी भरा बयान दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए संघर्ष के तीन महीने बाद अब पाकिस्तानी सेना प्रमुख का बयान सामने आया है। मुनीर ने दावा किया है कि मई में हुए संघर्ष में पाकिस्तान को कामयाबी मिली थी। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने का दावा करता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। आसिम मुनीर का बयान ऐसे समय पर सामने आया है जब शनिवार और रविवार को ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय थल सेना और वायु सेना प्रमुखों के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। पहले बता दें कि भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि पहलगाम हमले के जवाब में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर किसी भी पारपंरिक मिशन से अलग था। शनिवार को भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने दावा किया था कि मई में हुए संघर्ष के दौरान भारत ने छह पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था। हालांकि उसी रोज पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने बयान जारी कर इसका खंडन किया। 10 मई को संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद गोलीबारी थम गई थी। उस समय पाकिस्तान ने भारत के पांच लड़ाकू विमान गिराने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। फ्लोरिडा में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने एक निजी कार्यक्रम में दावा किया था कि पाकिस्तान ने भारत के भेदभाव पूर्ण और दोहरे व्यवहार वाली नीतियों के खिलाफ एक सफल कूटनीतिक युद्ध लड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद में शामिल है और इस संबंध में उन्होंने कनाडा में एक सिख नेता की हत्या, कतर में आठ नौसेना अधिकारियों का मामला और कुलभूषण जाधव जैसी घटनाओं का उदाहरण दिया। गौरतलब है कि भारत पहले ही इन सभी आरोपों का खंडन कर चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बेहद आभारी है। जिनके राजनीतिक नेतृत्व में न केवल भारत पाक युद्ध को रोका बल्कि दुनिया में कई युद्धों को भी रोका। फील्ड मार्शल मुनीर ने अपने भाषण में कश्मीर को एक अधूरा एजेंडा बताया। आसिम मुनीर यहीं नहीं रूके उन्होंने भारत को खुली धमकी दे डाली। मुनीर ने कहा कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोकने के लिए बांध बनाया तो हम मिसाइल से उसे उड़ा देंगे। मुनीर ने कहा, हम भारत के सिंधु नदी पर डैम बनने का इंतजार करेंगे और जब वे ऐसा करेंगे तो हम मिसाइलों से उसे तबाह कर देंगे। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मुनीर यह गीदड़ भभकी देने से भी नहीं चूके कि अगर भविष्य में भारत के साथ युद्ध में उनके देश के अस्तित्व को खतरा हुआ तो वो इस पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देंगे। मुनीर ने कहा कि हम एक परमाणु संपन्न राष्ट्र हैं और अगर हमें लगता है कि हम डूब रहे हैं तो हम आधी दुनिया को अपने साथ ले जाएंगे। मुनीर का यह बयान इस लिहाज से सनसनीखेज है कि पहली बार अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश को परमाणु युद्ध की धमकी दी गई है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने जिस तरह खुलेआम परमाणु युद्ध की धमकी दी है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस पर अपनी-अपनी राय हो सकती है। बहरहाल इससे एक बात तो साबित होती ही है कि पाकिस्तान के पास परमाणु शfिक्त होना केवल भारत के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह दुखद है कि मुनीर का यह बयान अमेरिका की धरती से आया है। यह पहली बार है जब किसी ने अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश के लिए इस तरह के धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह भी पहली बार है जब किसी सेना प्रमुख ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हfिथयार भी इस्तेमाल कर सकता है। मुनीर के बयान का भारतीय विदेश मंत्रालय ने सही जवाब दिया है कि जिस देश में सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हो, वहां परमाणु कमांड और कंट्रोल की विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत किसी न्यूfिक्लयर ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सरकार का यही रुख रहा था। मुनीर के बयान का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए करना चाहिए। भारत को अमेरिकी सरकार से भी यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अपनी धरती से ऐसे बेहूदा, विस्फोटक भड़काऊ बयान देने की इजाजत कैसे दी? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 12 August 2025

वोट चोरी पर आर-पार की लड़ाई

लोकसभा चुनाव के 14 माह बाद एसआईआर और वोट बंदी के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने में सफल रहे हैं। भारत में राजनीति इस समय टॉप गीयर पर है। यह सही है कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव करवाना आसान नहीं है। यही नहीं भारत में इतने चुनाव होते हैं जो चुनाव आयोग की योग्यता के लिए चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सफल रहा है। वोट करना हर वोटर का संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। यह भी जरूरी है कि उसका वोट उसे ही मिले जिसे उसने वोट दिया है। जब यह आशंका पैदा हो जाए कि उसका वोट दिया किसी को है और गया कहीं ओर तो बड़ा संदेह और निराशा पैदा हो जाती है। किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती-विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें सरकार को चुने जाने की प्रक्रिया कितनी स्वच्छ, स्वतंत्र और पारदर्शी है। इसके लिए चुनाव आयोजित कराने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी नागरिक वोट देने के अधिकार से वंचित न हो, मतदान की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तथा चुनाव में हिस्सेदारी करने वाले सभी दलों के लिए भरोसेमंद हो और नतीजों को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट हों। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कर्नाटक की एक विधानसभा क्षेत्र का डाटा पेश करते हुए आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। दस्तावेज का ढेर मीडिया के समक्ष दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि यह सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध मतदाता सूची के ढेर से निकली है। उनका दावा है कि महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतों की चोरी हुर्ह है। संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि लोकसभा चुनावों, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। तथ्यों के साथ राहुल ने साबित करने की कोशिश की। मतदाता सूची में हेर-फेर, फर्जी मतदाता, गलत पते, एक पते पर कई मतदाता, एक मतदाता का नाम कई जगह की सूची में होने जैसे कुछ खास तरीकों पर आधारित वोट चोरी करने के इस माडल को कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमल में लाया गया ताकि भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि चुनाव गड़बड़ियां, ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायतें तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन आमतौर पर वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकीं या फिर निर्वाचन आयोग की ओर से उन्हें निराधार घोषित किया जाता रहा है। अब इस बार जिस गंभीर स्वरूप में इस मामले को उठाया गया है, उसके बाद देशभर में यह बहस खड़ी हो गई है कि अगर इन आरोपों का मजबूत आधार है तो इससे एक तरह से समूची चुनाव प्रक्रिया की वैधता कठघरे में खड़ी होती है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाए राहुल गांधी से शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर शिकायत देने या फिर देश की जनता को गुमराह न करने को कहा है। मगर राहुल गांधी ने वोट चोरी का दावा करते हुए जिस तरह अपने आरोपों को सुबूतों पर आधारित बताया है। उसके बाद चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह पूरी समूची प्रक्रिया पर भरोसे को बहाल रखने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ इस संबंध में उठे सवालें का जवाब सामने रखे। बहरहाल इस आरोप की गंभीरता को समझना आवश्यक है कि दो कमरों में क्रमश 80/46 लोग कैसे रह सकते हैं? इनमें तमाम मतदाताओं की तस्वीरें आकार में इतनी छोटी हैं कि पहचान करना मुश्किल है। इन आरोपों की पुष्टि आयोग को बगैर प्रत्यारोपों के करनी चाहिए। मतदाता सूचियों के प्रति आयोग जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। जो भी त्रुटियां सामने आती हैं उनके बारे में स्पष्टता से संतोषजनक जवाब देना चाहिए। सवाल आरोपों-प्रतिआरोपों का नहीं है। सवाल देश में संविधान की रक्षा का है जिसकी रक्षा तभी हो सकती है जब हर नागरिक को अपने वोट देने का अधिकार मिले और उसकी वोट उसे ही जाए जिसे वोट दिया गया है। हमारे लोकतंत्र की जड़ है स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव मगर इसमें भी हेराफेरी होती है तो हमारे संविधान व लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। उम्मीद है कि चुनाव आयोग प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देगा और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 9 August 2025

बिहार वोटर लिस्ट पर टकराव

बिहार मतदाता सूची परीक्षण एसआईआर का मामला संसद से सड़क और सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक स्वाभाविक ही गरमाया हुआ है। विपक्षी दलों ने बिहार में जारी मतदाता सूची में एसआईआर को लेकर संसद में इसे वोटों की डकैती करार दिया और कहा कि इस विषय पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करना देश हित के लिए जरूरी है। यदि सरकार एसआईआर पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होती तो समझा जाएगा कि वह लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं रखती। वहीं संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और लोकसभा के कार्य संचालन और प्रक्रियाओं के नियमों एवं परिपाटी के तहत इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। उधर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं सूची की जांच के संकेत दिए हैं। बिहार में नई मतदाता सूची में करीब 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट यह परखना चाहता है कि लोगों के नाम सही ढंग से कटे हैं या नहीं? बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी गई थी। इसी याचिका के तहत सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं। तीन दिन के अंदर चुनाव आयोग को हटाए गए नामों का विवरण प्रस्तुत करना है। 9 अगस्त तक यह पेश करने को कहा गया है। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस उज्जवल भूइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा, वोटर लिस्ट में हटाए गए मतदाताओं का विवरण दें और एक कापी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स को भी दें। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेशों को चुनौती देने वाले संगठन एडीआर ने एक नया आवेदन दायर किया है। इसमें आयोग को हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। एडीआर ने कहा है, विवरण में यह भी आलेख हो कि वह मृत हैं या स्थायी रूप से विस्थापित हैं या किसी अन्य कारण से उनके नाम पर विचार नहीं किया गया है। पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण से कहा नाम हटाने का कारण बाद में पता चलेगा क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा सूची है। इस पर भूषण ने तर्क दिया, कुछ दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, लेकिन इस पर स्पष्ट नहीं है कि मतदाता की मृत्यु हो गई या वह कहीं और चले गए हैं। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यह रिकार्ड पर लाएंगे कि उन्होंने यह जानकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साझा की है। उन्होंने यह भी कहा कि बीएलओ ने जिनके नाम हटाने या न हटाने की सिफारिश की, उसकी सूची केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जारी हुई है। हम उसमें पारदर्शिता चाहते हैं। इस बार जस्टिस सूर्यकांत ने कहा-आयोग के नियमों के अनुसार हर राजनीतिक दल को यह जानकारी दी जाती है। कोर्ट ने उन राजनीतिक दलों की सूची मांगी जिन्हें लिस्ट दी गई है। भूषण ने कहा जिन लोगों के फार्म मिले, उनमें अधिकांश ने फार्म नहीं भरे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन मतदाताओं पर असर पड़ सकता है, उन्हें आवश्यक जानकारी दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने आयोग को इस बारे में शनिवार तक जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा, भूषण (एडीआर) उसे देखें, फिर हम देखेंगे कि क्या खुलासा किया गया और क्या नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, एडीआर 12 अगस्त से होने वाली सुनवाई में दलीलें दे सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए तो वह हस्तक्षेप करेगा। राजनीतिक दलों की चिंता जायज है, पर यह चिंता प्रत्येक दल को होनी चाहिए, केवल विपक्षी दलों को नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की जल्दबाजी की वजह से विवाद गहराया है। अगर पर्याप्त समय लेकर पुनरीक्षण का कार्य किया जाता तो संभव है कि विवाद की गुजांइश इतनी न होती। बहरहाल लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव आयोग सब सच सामने रखे। वोट का अधिकार हर नागरिक का मौलिक संवैधानिक अधिकार है जिसे कोई नहीं छोड़ सकता। इसी अधिकार पर लोकतंत्र टिका हुआ है। अगर कोई राजनीतिक दल किसी भी तरह से बेइमानी करके चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में कराता है तो यह देश के लोकतंत्र की जड़े खोद रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान की सबसे बड़ी संरक्षक है वह न्याय करेगी और निष्पक्ष होकर तथ्यों के आधार पर अपना फैसला करेगी। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 7 August 2025

बिछने लगी सियासी बिसात


उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गहमागहमी शुरू हो गई है। संसद के हालांकि दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के दलीय समीकरण में सत्तारूढ़ राजग के पास अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त संख्या तो है पर फिर भी लगता है कि इस बार यह चुनाव आसान नहीं होगा। विपक्ष चुनौती देने की तैयारी में लगा हुआ है। बेशक, विपक्ष चुनौती तो दे सकता है पर बिना बड़ी सेंध के उलटफेर करने की स्थिति में नहीं लगता। पर राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है कुछ भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन पर कोई व्हिप जारी नहीं होगा। सांसदों को अपनी आत्मा के अनुसार वोट करने का अधिकार होता है। इसीलिए ऐसे चुनावों में क्रास वोटिंग का बड़ा खतरा रहता है। पहले बात करते हैं सत्ता पक्ष की। भाजपा और उनके सहयोगी दलों की। भाजपा चाहेगी कि उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार चुना जाए जो उनका समर्थक हो और सरकार की लाइन पर चले। यह काम श्री जगदीश धनखड़ ने शुरू-शुरू में बाखूबी किया था। यह और बात है कि उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहती है कि जो भी उम्मीदवार हो वो संघ की पसंद व समर्थक हो। वह सरकार की लाइन पर चलने वाला नहीं हो। एक नेता ने कहा कि पिछली बार जब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था उस वक्त भी संघ परिवार में इसे लेकर चर्चा थी। इस बार लगभग सभी मान रहे हैं कि संघ अपनी विचारधारा को समझने वाला उम्मीदवार ही चाहता है। दक्षिण भारत की सियासी पार्टियां चाहती हैं कि जब राष्ट्रपति उत्तर से है तो कम से कम उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत का हो। इससे देश में एकता आएगी। वहीं यह जानते हुए कि भाजपा का पलड़ा भारी है फिर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एक साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। सूत्रों का कहना है कि योजना बिहार या आंध्र प्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी और जदयू को असमंजस में डाला जा सके। चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने की और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावानाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में पड़ जाएंगे। आंध्र प्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में 7 सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर ंइस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटता है तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा में भी इस मुद्दे पर एका नहीं है। संघ से जुड़े विचारधारा वाले भाजपा सांसद संघ के कहने पर अगर उम्मीदवार उन पर भाजपा हाई कमान द्वारा थोपा गया तो वह क्रास वोटिंग भी कर सकते हैं। हालांकि मेरी राय में यह मुश्किल होगा पर राजनीति में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता? ये किसी से छिपा नहीं कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है जो जिस तरह से जगदीप धनखड़ को अपमानित करके हटाया गया उससे वे खुश नहीं हैं। सरकार से इस समय कांग्रेस के जिस तरह के रिश्ते हैं उसे देखकर लगता नहीं कि विपक्ष सरकार के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। कांग्रेस के साथ सरकार के वरिष्ठ मंत्रियें के रिश्ते बहुत बिगड़े हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ से कांग्रेस की कथित नजदीकियों को लेकर जिस तरह की कहानियां बनाई गई उससे भी भाजपा खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन) उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी ओबीसी या मुस्लिम नाम पर भी विचार कर रहा है। इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं का सुझाव है कि विपक्ष को उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के रूप में लड़ना चाहिए। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 5 August 2025

एक और फ्रंट खुलता नजर आ रहा है


अमेरिका और रूस के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब रूस के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलने की ठान ली है। पिछले कई दिनों से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के खिलाफ ट्रंप जहर उगल रहे हैं और युक्रेन के साथ युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। पर पुतिन उनकी एक नहीं सुन रहे हैं। ट्रंप ने इस बार पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव पर निशाना साधते हुए पुतिन और रूस को धमकाया है। ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की ओर से बेहद उकसाने वाली टिप्पणियों के बाद दो परमाणु पनडुब्बियों को सही जगह पर तैनात करने का आदेश दिया है। बता दें कि मेदवेदेव ने हाल ही में अमेरिका के खिलाफ टिप्पणी की थी। ये ट्रंप के उस अल्टीमेटम के जवाब में था जिसमें उन्हेंने रूस से युक्रेन युद्ध विराम की मांग की थी। ट्रंप ने कहा मैंने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हो सकता है कि ये (मेदवेदेव की टिप्पणी) मूर्खतापूर्ण और भड़काऊ बयान सिर्फ बातें भर न हो। शब्दों की एहमियत होती है और कई बार इनके अंजाम अनचाहे हो सकते हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि इस बार ऐसा नहीं होगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि अमेरिकी नौसेना की ये पनडुब्बियां कहां भेजी गई हैं। ट्रंप ने कहा कि यह मामला उन परिस्थितियों में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह फाइनल अल्टीमेटम है। रूस और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और दोनों के पास परमाणु पनडुब्बियों का विशाल बेड़ा है। बता दें कि 29 जुलाई को ट्रंप ने कहा था कि यदि रूस 10-12 दिनों के अंदर यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं करता तो उस पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध और टैरिफ लगाए जाएंगे। अमेरिका शांति चाहता है लेकिन वह कमजोर नहीं है। इस पर 29 जुलाई को रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने लिखा ः हर नई डेडलाइन एक धमकी है और युद्ध की ओर एक कदम है। अमेरिका को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। मगर वह रूस को इस तरह धमकाता रहा। 30 जुलाई को ट्रंप ने मेदवेदेव को फेल पूर्व राष्ट्रपति कहते हुए कहा- उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। वे अब बहुत खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। अगले दिन ही मेदवेदेव ने फिर धमकी दी, कहाö सोवियत युग का डेड हैंड प्रणाली आज भी पीय है। यदि अमेरिका सोचता है कि वह एकतरफा आदेश दे सकता है तो वह गलतफहमी है। इसके बाद ही पावार को ट्रंप ने एटमी पनडुब्बियों की तैनाती का आदेश दिया। पिछले कुछ दिनों से जैसे मैने बताया ट्रंप और मेदवेदेव सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब ट्रंप ने पुतिन को युद्ध खत्म करने के लिए 8 अगस्त की नई समय सीमा दी है। लेकिन पुतिन ने इसका कोई संकेत नहीं दिया कि वह ऐसा करने वाले हैं। बता दें कि मेदवेदेव 2022 में पोन पर रूस के हमले के प्रबल समर्थक रहे हैं। वह पश्चिमी देशों के कड़े आलोचक भी हैं। केवल छह देशों के पास ही परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियां हैं। ये देश हैं चीन, भारत, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। उम्मीद करते हैं कि अमेरिका-रूस में बढ़ती तनातनी जरूर रूक जाएगी और कोई समझौता हो जाएगा। रूस भी बहुत ताकतवर देश है। वह आसानी से झुकने वाला नहीं। रूस–यूक्रेन से समझौता तो कर सकता है पर यह तभी हो सकता है जब उसकी शर्तें  युक्रेन माने जो बहुत मुश्किल लगता है। अमेरिका का यहां भी दोहरा चरित्र नजर आता है। एक तरफ तो ट्रंप युक्रेन को हथियार, पैसा दे रहे हैं। यूरोप के देशों से युक्रेन  की मदद करवा रहे हैं और दूसरी तरफ युद्ध विराम की बात करते हैं। अगर दुनिया में कोई आदमी बेनकाब हुआ है, एक्सपोज हुआ है तो वह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। नोबेल पुरस्कार लेने की इतनी जल्दी है कि अनाप-शनाप बाते करते हैं। धमकियों पर उतर आए हैं पर अब दुनिया उन्हें समझ चुकी है। वह जानती है कि अंदर से वह कितने खोखले हैं और शायद ही अब इसे कोई गंभीरता से लेता हो। पर रूस-युक्रेन का युद्ध रूकना चाहिए। दोनों पुतिन और जेलेंस्की को गंभीरता से बैठ कर हल निकालना चाहिए। हजारों जाने व्यर्थ में जा रही हैं। रूस-युक्रेन युद्ध रूकना चाहिए। अगर ट्रंप रूकवा सकते हैं तो भी कोई हर्ज नहीं है। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 2 August 2025

बहस दो घंटे चली मगर सवालों का उत्तर नहीं मिला

संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर कई घंटे की लंबी बहस हुई। बहस न केवल स्वस्थ सार्थक और जीवंत रही बल्कि इसने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनें को उसके बेहतर ढंग में देश के सामने रखा। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सीजफायर को लेकर मध्यस्थता वाले दावों को सिरे से खारिज कर दिया। पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की और न ही करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि 30 बार से ज्यादा दोहरा चुके हैं कि उन्होंने सीजफायर कराया। पीएम ने ट्रंप का नाम लिए बिना इन दावों को निराधार बताया था। पीएम मोदी के भाषण में बहुत सारे सवालों के जवाब तो मिले पर बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं मिले। सरकार ने इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि सीजफायर क्यों रोका गया? सवाल है कि जब पाकिस्तान घुटनों पर था, तब सीजफायर किन शर्तों पर और किसके कहने पर किया गया? देश तो चाहता था कि जब भारत का पलड़ा भारी था तो हमें रुकना नहीं चाहिए था और पीओके पर कब्जा कर लेना चाहिए था पर हम अचानक रुक गए। वहीं हमने पाकिस्तान को यह भी बता दिया कि हमने केवल आतंकी ठिकानें पर हमला किया है हमने पाकिस्तानी सेना और डिफेंस सिस्टम पर हमला नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारी ही जमीन पर हमारे ही विमान गिराने में पाकिस्तान सफल रहा। राज्यसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष ने पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाया जिसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। खरगे ने जम्मू-कश्मीर पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बयान का हवाला देते हुए सरकार पर हमला बोला। मनोज सिन्हा ने स्वीकार किया कि आतंकी हमले की वजह हमारी चूक थी। उन्होंने सवाल किया कि क्या सिन्हा का बयान किसी को बचाने के लिए था? हमले की किस-किस ने जिम्मेदारी ली? किसने इस्तीफा दिया? प्रियंका गांधी ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद किसी देश ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की यानि पूरी दुनिया ने भारत को पाकिस्तान की बराबरी पर रखा। सरकार ने जवाब में कहा कि पाकिस्तान के साथ सिर्फ तीन देश खड़े थे और दुनिया के कई देशों ने आतंकी हमले की निंदा की। बेशक, इस पर किसी ने भी पाकिस्तान को पहलगाम हमले का दोषी नहीं माना। क्या यह हमारी विदेश नीति का पर्दाफाश नहीं करती? सारी दुनिया जानती है कि भारत-पाक संघर्ष में पाकिस्तान तो महज मखौटा था। असल ताकत तो चीन की थी। हम पाकिस्तान से अकेले नहीं लड़ रहे थे, बल्कि पाक-चीन गठजोड़ से लड़ रहे थे। तमाम बहस में सरकार ने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया जबकि हमारी सेना ने साफ कहा कि चीन-पाकिस्तान को हथियार दे रहा है और चीन सैन्य उपकरणों के कारण ही भारत के विमान गिरे। इन पर सरकार ने एक शब्द नहीं कहा और न ही एक शब्द चीन द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही मदद पर कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूं ही नहीं दावा किया था कि भारत-पाक संघर्ष के दौरान 5 लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे, हालांकि ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस देश के कितने विमान गिराए गए। इससे पहले पाकिस्तानी भी भारत के 5 लड़ाकू विमान मार गिराने का दावा कर चुके हैं। हालांकि भारत ने इसे खारिज किया है। भारत की तुलना में पाकिस्तान के साथ ज्यादा देश क्यों? भारत-पाक संघर्ष के दौरान तुर्किए, अजरबैजान और चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था, जबकि भारत के पक्ष में केवल इजरायल स्पष्ट रूप से नजर आया। यहां तक कि रूस ने भी भारत को खुलकर समर्थन नहीं किया। इस मुद्दे पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दुनिया में किसी भी देश ने भारत को अपनी सुरक्षा में कार्रवाई करने से रोका नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र में 193 देश हैं और सिर्फ तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया था। ब्रिक्स फ्रांस, रूस और जर्मनी... कोई भी देश का नाम ले लीजिए, दुनिया भर से भारत को समर्थन मिला। पूरी बहस में एक महत्वपूर्ण मुद्दा कपिल सिब्बल ने भी उठाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने देश की रक्षा तैयारियों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि भारत के पास पाकिस्तान से युद्ध लड़ने और उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। जब हम पाक से युद्ध की बात करते हैं तो चीन को भी जोड़ें, क्योंकि दोनों अलग-अलग नहीं हैं। पाकिस्तान के पास चीन के उन्नत विमान, सैन्य प्रणाली है जबकि भारत का राफेल आधी क्षमता वाला विमान है। पाक के पास 25 स्क्वाड्रन है जबकि चीन के पास 138 स्क्वाड्रन है। वहीं भारतीय वायुसेना के वैसे कुल 32 स्क्वाड्रन है, जो किसी भी भारत-पाक युद्ध के दौरान सबसे कम संख्या है। हाल ही में एयरफोर्स चीफ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस कमी को उजाकर किया है। पिछले 11 सालों में सैन्य तैयारी में भारी कमी आई है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता और न ही इस बहस में इसका कोई जवाब मिला। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 31 July 2025

ऑपरेशन सिंदूर ः विपक्ष के सवाल

सोमवार को अंतत पहलगाम की आतंकी घटना पर लोकसभा में जबरदस्त बहस हुई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को बहस शुरू करते हुए कहा कि सेना के तीन अंगों के समन्वय का बेमिसाल उदाहरण बताते हुए यह भी कहा कि इस अभियान को यह कहना कि किसी दबाव में आकर रोका गया गलत और निराधार है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने हार मान ली थी और कहा कि अब कार्रवाई रोक दीजिए महाराज। बहुत हो गया। रक्षा मंत्री ने कहा 10 मई की सुबह जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कई एयरफील्ड पर करारा हमला किया तो पाकिस्तान ने हार मान ली और संघर्ष रोकने की पेशकश की। बहस में विपक्ष ने केंद्र सरकार पर तीखे सवाल दागे। विपक्ष ने एक सुर में कहा कि सेना के पराम पर उन्हें गर्व है, लेकिन सरकार की रणनीति और विदेश नीति पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। कांग्रेस सांसद गौरव गोगई और दीपेन्द्र हुड्डा ने खासतौर पर सरकार को निशाने पर लिया। कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि पहलगाम हमले के आतंकी अब तक गिरफ्त से बाहर क्यों हैं? उन्होंने पूछा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कितने विमान गिरे थे? संघर्ष विराम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की क्या भूमिका थी? उन्होंने पूछा कि जब हम जीत रहे थे तो कार्रवाई क्यों रोकी गई? पाकिस्तान के कब्जे से पीओके क्यों नहीं लिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि पहलगाम आतंकी हमले में सुरक्षा चूक की नैतिक जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह को लेनी चाहिए। अमित शाह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पीछे छिप नहीं सकते। यह चूक उनकी है। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश और विपक्ष प्रधानमंत्री के साथ खड़ा था तो अचानक युद्ध विराम कैसे हुआ? अगर पाकिस्तान घुटनों पर था तो आप क्यों झुके? आप किसके सामने झुके? कांग्रेस नेता ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 26 बार कहा कि उन्होंने व्यापार की बात करके युद्ध रूकवाया। ट्रंप की क्या भूमिका थी? उन्होंने सरकार से सवाल किया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को अब वापस नहीं लेंगे तो कब लेंगे। मैंने गौरव गोगोई के भाषण के प्रमुख अंश इसलिए बताए हैं क्योंकि मेरा मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर पर उठाए गए प्रश्नों पर यह बहुत सटीक और जोरदार भाषण था जिसका जवाब सत्ता पक्ष के स्पीकर अभी तक नहीं दे सके। टालने और इधर-उधर की बातों से उलझाए रखना और बयान बदलने से मसला हल नहीं होगा। कांग्रेस के दीपेन्द्र हुड्डा और टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी के भाषणों का भी पा करना जरूरी है। कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हमारी सेना ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया लेकिन सरकार की रणनीति में बड़ी खामी रही। विपक्ष ने सर्वदलीय बैठक की मांग की थी लेकिन सरकार ने नहीं बुलाई। दीपेन्द्र ने सरकार के अमेरिका के साथ संबंधों पर जमकर निशाना साधा। जब तुर्किए ने पाकिस्तान की मदद की तो प्रधानमंत्री साइप्रस गए, अच्छा संदेश दिया, लेकिन असली दुश्मन चीन को संदेश देना था तो वे ताइवान चले जाते। विदेश नीति की आलोचना करते हुए कहा कि बार-बार ट्रंप के इस दावे को लेकर सवाल पूछे जाते हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम करवाया। तृणमूल कांग्रेस नेता कल्याण बनर्जी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का ाsढडिट सेना का है, इसमें बंटवारा नहीं होना चाहिए। हमने विदेश नीति के मामले में पूरी तरह से सरकार का समर्थन किया, भारत को पाकिस्तान को ऐसा आघात देना चाहिए था, जिसको पूरी दुनिया देखती। उन्होंने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि ािढकेट में कभी सेंचुरी के करीब 90 रन पर पहुंचने पर इनिंग डिक्लियर करने की बात सुनी है? लेकिन यह काम मोदी जी नहीं कर सकते हैं। कोई और नहीं। उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि यहां 140 करोड़ देशवासी कह रहे थे कि लड़ाई जारी रखो, जीती हुई बाजी न हारो लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति के सामने आपका कद और छाती 56 इंच से घटकर 36 इंच रह गई है। वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पाकिस्तान का मकसद हमेशा भारत को कमजोर करने का ही है। सरकार का कहना है कि खून-पानी और आतंकवाद बातचीत एक साथ नहीं हो सकती। फिर किस सूरत में आप पाकिस्तान से ािढकेट मैच खेलेंगे। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 7.5 लाख सीआरपीएफ पुलिस और फोर्स है। पहलगाम आतंकी हमले के लिए किसकी जवाबदेही फिक्स होगी? एलजी, आईबी, पुलिस जो भी जिम्मेदार है। उस पर एक्शन होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर से 370 हटा दिया, लेकिन दशतगर्द फिर भी वहां पहुंच गए। उन्होंने कहा कि अगर 5 जेट नहीं गिरे, तो बोलिए। ओवैसी ने डोनाल्ड ट्रंप की सीजफायर का ऐलान करने पर भी जवाब मांगा। शिवसेना (यूबीटी) सांसद अरविन्द सावंत ने सवाल किया कि भारत ने बिना शर्त सीजफायर क्यों किया जबकि पाकिस्तान गिड़गिड़ा रहा था। क्या ऐसे में भारत को सख्त शर्तें नहीं रखनी चाहिए थी? पहलगाम में कोई जवान तैनात क्यों नहीं था? पहले दिन की बहस में मेरे विचार से विपक्ष बहुत भारी रहा और सरकार जवाबों को टालती रही। पर कितनी देर तक? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 29 July 2025

सवाल चुनाव आयोग की साख का


बिहार में मतदाता सूचियों का एसआईआर यानि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रािढया को लेकर हंगामा मचा हुआ है। संसद से लेकर बिहार की सड़कों पर इसे लेकर जमकर विरोध हो रहा है। यानि एक महीने की अवधि में लगभग 8 करोड़ मतदाताओं का गहन परीक्षण कैसे संभव हो सकता है? यही एक सवाल है जो विपक्षी पार्टियों और अन्य सामाजिक संस्थाओं को केंद्रीय चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह पैदा कर रहा है। विपक्ष का दावा है कि लाखों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। उधर चुनाव आयोग का कहना है कि सिर्फ मृतक और माइग्रेंट मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं। कांग्रेस और राजद इसे चुनावी रणनीति मानती है, जबकि भाजपा ने विरोध को एक राजनीतिक स्टंट बताया है। वहीं भाजपा के नेता यह भी दावा कर रहे हैं कि चुनाव में अपनी हार देखते हुए विपक्ष बौखला गया है और तरह-तरह के बहाने पेश कर रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि यदि विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्पाम याणि एसआईआर पर उनकी बातें नहीं सुन गई तो वे चुनाव का बहिष्कार करने पर भी विचार कर सकते हैं। यदि महागठबंधन सच में चुनाव बहिष्कार करता है तो स्थिति बेहद गंभीर होगी। इससे चुनाव आयोग की साख के साथ-साथ केंद्र सरकार की साख पर भी आंच आएगी। हालांकि मतदाता सूचियों का समय-समय पर गहन परीक्षण किया जाता रहा है। ऐसा अलग-अलग राज्यों में आवश्यकता पड़ने पर अलग-अलग अवधियों में गहन परीक्षण हुए हैं लेकिन बिहार में विशेष गहन परीक्षण को लेकर चुनाव आयोग की प्रािढया सवालों के घेरे में आ गई है। वास्तव में बिहार जैसे पिछड़े, बहुसंख्यक ग्रामीण और मजदूर आबादी वाले राज्य के नागरिकों की अधिकृत मतदाता की जांच इतने कम समय में होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। दूसरी वजह यह है कि चुनाव आयेग ने पहचान के लिए मतदाताओं के पास उपलब्ध तीन प्रमाण, आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को सुबूत मानने से इंकार कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को सुझाव दिया था कि वे इन तीनों को भी पहचान के सुबूत के तौर पर मान्य किया जाए। गहन परीक्षण प्रािढया की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए कई यूट्यूब चैनल और अन्य मीडिया वाले पत्रकारों ने प्रािढया पर सवाल उठाए हैं। बिहार के बेगुसराय जिले में यूट्यूबर और वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने सुबूतों के साथ इस प्रािढया में हो रही धांधलियों को उजागर किया। उन पर उल्टा एफआईआर दर्ज हो गई और उन पर सरकारी काम में बाधा डालने और बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसने का आरोप है। यह मामला बलिया थाना में दर्ज है। बिहार में अति अल्प समय में मतदाताओं को विशेष गहन परीक्षण के आयोग के आदेश को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने जब विपक्षी नेताओं का प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से मिलने गया तो मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार उनसे मिलने के लिए नहीं आए बल्कि मुलाकात के लिए अव्यवहारिक प्रािढया अपनाई गई जिससे मायूस और नाराज होकर विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग सत्ता के इशारे पर काम कर रहा है। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जा सकता। कानून देश के प्रत्येक नागरिक जो 18 साल या उससे अधिक है। मतदाता के तौर पर पंजीकरण करा सकता है। इसमें सिर्फ गैर-नागरिक का नाम दर्ज कराने को अयोग्य ठहराया गया है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में स्पष्ट कर चुका है कि मताधिकार केवल संवैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं। मगर भारतीय नागरिक होने के बावजूद उसे शर्तें पूरी करनी होती हैं और आवश्यक दस्तावेज देने होते हैं। आयोग की मंशा पर उंगली उठाने वालों का आरोप है कि गणना फार्म में मांगे गए दस्तावेज में आधार कार्ड मतदाता-पत्र व राशन कार्ड का न शामिल होना निश्चित रूप से चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह पैदा करता है। चूंकि सरकार आधार को ही केवल पहचान पत्र मान रही है, बैंक खाते से जोड़ रही है, चुनावी पहचान पत्र से जोड़ रही है। जिसका मतलब है कि सरकार इसे नागरिकता के सबूत मान रही है, इसलिए चुनाव आयोग द्वारा इन्हें न स्वीकार करना संशय पैदा करता है। यदि जल्द ही आयोग इसमें सुधार कर ले तो शायद इन आरोपों-प्रत्यारोपों से बचा जा सकता है। चुनाव आयोग ने अब यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा ही गहन पुनरीक्षण अब पूरे देश में होगा, सो मामला अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं। उम्मीद है कि जल्द इस पर सर्वमान्य फैसला होगा और एक संवैधानिक संकट को टाला जाएगा। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 26 July 2025

इस्तीफे से उठे दर्जनों सवाल


सोमवार रात अचानक सियासी विस्फोट हो गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसने सियासी हलकों में हलचल मचा दी। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफे से विपक्ष भी हैरान था। इससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया। ऐसा नहीं कि भारत के संसदीय इतिहास में पहले किसी उपराष्ट्रपति ने पद से इस्तीफा न दिया हो। श्री वीवी गिरी, श्री वेंकटरमन ने भी इस्तीफा दिया था, पर वह स्वेच्छा से दिया था। डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने भी पद से इस्तीफा दिया था। पर वे सब इस्तीफे स्वेच्छा से राष्ट्रपति बनने के लिए दिए गए थे। श्री धनखड़ से तो लगता है कि इस्तीफा जबरन लिया गया। धनखड़ जी ने अपने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य खराब होने का बताया पर यह किसी के गले से नहीं उतर रहा, मानसून सत्र के पहले दिन उन्होंने पूरे दिन की राज्यसभा चलाई। कहीं भी नजर नहीं आ रहा था कि वह इतने अस्वस्थ हैं कि सदन को नहीं चला सकते। उनके इस्तीफे के पीछे कई तरह के विश्लेषण हो रहे हैं। मीडिया में उनके इस्तीफे के पीछे कई विशलेषण चल रहे हैं। मैं इस लेख में कुछ प्रमुख समाचार पत्रांs के संपादकीय विश्लेषणों का वर्णन कर रहा हूं। इससे पाठकों को कुछ समझ आ जाएगी उम्मीद करता हूं। प्रमुख अखबारों ने भी इस्तीफे की असली वजह ढूढने की कोशिश की है। इस अचानक उठाए गए कदम के पीछे अधिकतर विश्लेषण कर रहे हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के यहां कथित नकद बरामदगी के चलते महाभियोग प्रस्ताव लाने को लेकर दो अलग-अलग हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत। मानसून सत्र की शुरुआत से पहले ही सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए प्रस्ताव लाएगी ताकि न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया सर्वसम्मति से हो और इसे पक्षपातपूर्ण न समझा जाए। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक विपक्षी सांसद के हवाले से लिखा है कि वह इस प्रक्रिया से एनडीए सदस्यें को दूर रखना चाहते थे कि इस मुद्दे पर सरकार नैतिक ऊंचाइयां हासिल कर ले, पर धनखड़ जी ने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर सरकार को नाराज कर दिया। यह प्रस्ताव राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। हो सकता है कि सदन चलाने के उनके तरीके को लेकर सत्ता पक्ष के शीर्ष नेतृत्व से भी उनका मतभेद हुआ हो। इसी साल अप्रैल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। यही नहीं उन्हें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से यहां तक कह दिया था कि वह न्यूक्लियर मिसाइल संसद पर चला रहे हैं। कोई भी सरकार यह नहीं चाहती कि कार्यपालिका का न्यायपालिका से इतना सीधा टकराव हो। यह भी एक कारण हो सकता है भाजपा आलाकमान के धनखड़ से नाराज होने का। श्री धनखड़ एकमात्र उपराष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने का भूतपूर्व कदम उठाया। धनखड़ जिस संवैधानिक पद पर आसीन थे, वहां नाटकीयता नहीं, शालीनता की जरूरत थी। यह कहना अन्यायपूर्ण नहीं होगा कि धनखड़ कई बार न संयमित नजर आए और न ही निष्पक्ष। उन्होंने कई बार ऐसी भाषा और तेवर अपनाए जो संवैधानिक पद के अनुरूप नहीं कहे जा सकते। हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा जगदीप धनखड़ ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि मैं सही समय पर रिटायर होंगा। अगस्त 2027 में अगर ईश्वर का कोई हस्तक्षेप न हो तो। लेकिन उन्होंने कुछ ही दिनों बाद अपना पद छोड़ दिया। उन्हें राज्य सभा में कोई औपचारिक विदाई तक नहीं दी गई। विपक्ष कह रहा है कि सरकार को चाहिए कि वह इसकी वजह बताए ताकि बगैर आधार वाली अटकलें और साजिश की थ्योरी को दरकिनार करा जा सकें। अखबार लिखता है, क्या धनखड़ ने कोई रेड लाइन पार कर ली थी? अगर ऐसा है तो क्यों और कैसे? देश को इस बारे में जानने का पूरा हक है। उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक पद है, इसकी गरिमा को पवित्रता, संदेह और अफवाहों के दायरे में नहीं आनी चाहिए। यह सही है कि उनका स्वास्थ्य पिछले दिनों खराब था। पर वह ठीक होकर सार्वजनिक जीवन में लौट आए थे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा कि धनखड़ जी ने सोमवार को सदन शुरू होते ही घोषणा कर दी कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष का प्रस्ताव उन्होंने स्वीकार कर लिया है। धनखड़ जानते थे कि सरकार लोकसभा में पहले ही नोटस दे चुकी है। उन्होंने सरकार को मात दे दी। धनखड़ का इस्तीफा यह तो साबित करता है कि भाजपा में अब भी आलाकमान पूरी ताकत से काम करता है। उनकी इच्छा के खिलाफ कोई भी जाने की कोशिश करेगा तो उसके साथ दूध से मक्खी निकालने जैसा काम होगा। पर हमारा मानना है कि धनखड़ का इस ढंग से इस्तीफा (या निकालना) भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। कहीं वह एक दूसरे सतपाल मलिक बनकर न खड़े हो जाएं? धनखड़ के प्रकरण से ये बात भी साबित होती है कि भाजपा एक कमजोर पार्टी नहीं कहलाना चाहती। जनता यह भी नहीं भूली कि किस तरह से जेपी नड्डा ने कहा था नथिंग विल गो ऑन रिकार्ड, ओनली व्हॉट् आई से विल बी ऑन रिकार्ड। इशारा साफ था कि धनखड़ जी आपके जाने का समय आ गया है। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि किसी बड़े नेता को संतुष्ट करने के लिए धनखड़ जी की कुर्बानी ली गई है। 
 -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 24 July 2025

सारी हदें पार करता प्रवर्तन निदेशालय

ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली को लेकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग, बिना पारदर्शिता अपनाए और राजनीतिक दुरुपयोग जैसे सवालों पर बार-बार सवाल आते रहे हैं और कई बार न्यायालय इसको चेतावनी भी दे चुका है। पर यह मानने को तैयार नहीं और बिना सोचे-समझे सही जांच करें, कहीं भी पहुंचे जाते हैं। ईडी पर विपक्षी दलों पर नाजायज दबाव डालकर यहां तक आरोप लगे हैं कि वह चुनी हुई सरकारों को भी गिराने में मदद करते हैं और एक बात ईडी का अदालत में केसों में आरोप साबित करने का ट्रैक रिकार्ड निहायत खराब है। दर्ज मामलों में दोष सिद्धी की दर कम होने पर भी सवाल उठता है। ये सवाल तब और गंभीर हो जाते हैं, जब कुछ मामलों में न्यायालय की ओर से भी जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को संदेह से देखा जाता है। ताजा उदाहरण वकीलों को तलब करने का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब करने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रहा है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायामूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ विधिक पेशे की स्वतंत्रता पर इस तरह की कार्रवाईयों के प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अदालत द्वारा स्वत संज्ञान लेते हुए शुरू की गई एक सुनवाई के दौरान की। गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की कि ईडी कोई ड्रोन नहीं जो आपराधिक गतिविधि का पता चलते ही हमला कर दे। साथ ही कहा कि जांच एजेंसी एक अत्याधिक दक्ष पुलिस अधिकारी (सुपर काप या सुपर मेन) की तरह नहीं है जो उनके संज्ञान में आने वाली हर चीज की जांच करे। हर जांच एजेंसी में बेशक कुछ न कुछ खामियां होती हैं, लेकिन जब सिलसिलेवार तरीके से सवाल उठने लगे तो यह दामन पर दाग लगने जैसा होता है। ईडी की शक्तियों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर जांच एजेंसी के पास मौलिक अधिकार है तो उसे लोगों के अधिकारों के बारे में भी सोचना चाहिए। जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व न करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब किए जाने पर जुड़े एक मामले में सोमवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रही है। इसके अलावा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी से संबंधित भूखंड आवंटन ममाले में अदालत ने चेताया है कि राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए, इसमें ईडी जैसी जांच एजेंसियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जाहिर है लगातार उठने वाले सवालों के बीच ईडी की अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता के मानक सुनिश्चित कर राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करना चाहिए ताकि उसकी साख पर कोई बट्टा न लगे। पीठ ने ईडी की भूमिका को खारिज कर दिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। याचिका में ईडी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती के खिलाफ एमयूडीए घोटाले में कार्रवाई करने पर रोक लगा दी थी। ईडी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू अदालत में पेश हुए। प्रधान न्यायाधीश ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कृपया हमें अपना मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें। वर्ना हमें ईडी के खिलाफ कुछ कड़े शब्दें का इस्तेमाल करना पड़ेगा। दुर्भाग्य से मुझे महाराष्ट्र में इसे लेकर कुछ अनुभव है। इसे पूरे देश में मत फैलाइए। राजनीतिक लड़ाई को मतदाताओं के सामने लड़ने देना चाहिए, उसमें आप क्यों इस्तेमाल हो रहे हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणियां साफ रेखांकित करती हैं कि किस तरह सत्तारूढ़ दल इन जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करते हैं और सियासी खेल खेलते हैं। इन जांच एजेसिंयों को चाहिए कि यह हर आदेश को आंख बंद करके अमल न करें बल्कि थोड़ी जांच पहले करें कि आरोपों में कोई दम है भी या नहीं ? या यह सिर्फ सियासी प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा है? उम्मीद की जाती है कि ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनके विवेक को सोचने पर मजबूर करेगा। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 22 July 2025

मानसून सत्र: टकराव के पूरे आसार

सोमवार से संसद का मानसून सत्र आरंभ हो गया है। यह 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा। इस एक महीने के लंबे सत्र की शुरुआत से ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव साफ दिखता नजर आ रहा है। तैयारी दोनों तरफ से पूरी है। विपक्ष ने जहां सरकार को विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर घेरने की तैयारी कर ली है वहीं सत्तापक्ष ने भी विपक्ष की रणनीति को कुंद करने की तैयारी पूरी कर ली है। संसद सत्र से ऐन पहले इंडिया गठबंधन की वर्चुअल बैठक शनिवार देर शाम आयोजित की गई, जिसमें मानसून सत्र को लेकर तमाम विपक्ष ने साझा रणनीति और सरकार के एजेंडे पर विस्तृत चर्चा की। मीटिंग के बाद सीनियर कांग्रेस नेता और राज्यसभा में उपनेता विपक्ष प्रमोद तिवारी ने मीडिया को बताया कि विपक्ष ने तय किया है कि आगामी सत्र में वह आठ अहम मुद्दों पर पीएम मोदी और उनकी सरकार को घेरेंगे। इनसे सवालों के जवाब मांगे जाएंगे। इनमें पहलगाम आतंकी हमला व आपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाक सीजफायर के 24 बार से ज्यादा बार दावे, बिहार में एसआईआर की कवायद, मतदान अधिकारों पर संकट, डीलिमिटेशन एससी, एसटी और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, अहमदाबाद में प्लेन दुर्घटना, अघोषित आपातकाल, सरकार की विदेश नीति जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा। प्रमोद तिवारी ने कहा कि इस वर्चुअल मीटिंग में 24 दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कुल मिलाकर बैठक बहुत ही सौहार्दपूर्ण रही। जल्द ही इंडिया गठबंधन के नेता आपस में मिलकर एक बैठक करेंगे, जिसमें वह अपनी आगामी राजनीति को धार देंगे। कांग्रेस ने कहा कि हम चाहते हैं कि संसद ठीक से चले, लेकिन इसके लिए सरकार को विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में मौजूद रहना चाहिए और खुद इन सवालों का जवाब देना चाहिए। विपक्ष का कहना है कि देश में लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है और ऐसे में विपक्ष की भूमिका और जिम्मेदारी और भी अहम हो जाती है। विदेश नीति पर भी चर्चा होगी। वहीं पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप से लेकर बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन जैसे मुद्दों पर सत्तापक्ष भी अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। पावार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर पर हुई बैठक में इस पर बात हुई। इसमें सरकार के सीनियर मंत्रियों को आर्म्ड फोर्सेस की तरफ से भी ब्रीफ किया गया। माना जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के अलग-अलग पहलुओं के बारे में स्थिति साफ की गई। राजनाथ सिंह संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बयान दे सकते हैं। रविवार को सरकार ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, जिसमें सरकार की तरफ से साफ किया कि रक्षा मंत्री ऑपरेशन सिंदूर पर बयान देंगे। बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए भी सरकार की तरफ से तैयारी है। मामला कोर्ट में है। साथ ही सत्ता पक्ष की तरफ से बार-बार कहा जाता रहा है कि यह चुनाव आयोग का फैसला है। इसी मुद्दे के बहाने भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के मसले पर विपक्ष को घेरने की कोशिश करेगी। अब देखना यह है कि क्या संसद चलेगी? उधर प्रधानमंत्री तो बीच में ही विदेशी दौरे पर जा रहे हैं तो वह तो जावब नहीं देंगे। तो फिर या तो राजनाथ सिंह या फिर अमित शाह को मोर्चा संभालना पड़ेगा। पूरे सत्र में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा सभापति जगदीश धनखड़ की भूमिका भी अहम होगी। देखना होगा कि यह इस सत्र में विपक्ष को कितना एकामोडेट करते हैं? अगर पिछले सत्रों को देखा जाए तो इनके रवैये में ज्यादा ढील की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे सरकार इस समय चौतरफा दबाव में है। एक तरफ विपक्ष हावी होने का प्रयास कर रहा है तो दूसरी तरफ भाजपा और एनडीए के अंदर भी सब ठीक नहीं है। आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी और नितिन गडकरी बार-बार ज्वलंत मुद्दे उठा रहे हैं। सरकार हर तरफ से दबाव में है। ऐसे में यह मानसून सत्र (अगर चला) बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। देखें क्या-क्या होता है? -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 19 July 2025

बिहार में पुनरीक्षण अभियान बना एक मजाक

बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) में लापरवाही, अव्यवस्था और गड़बड़झाले के कारनामे अब खुलकर सामने आ चुके हैं। अब यह सारी कवायद एक मजाक बनकर रह गई है। इस अभियान में कई स्तर पर गड़बड़ी की गई और की जा रही है। इन अनियमितताओं पर पत्रकारों से लेकर तमाम विपक्षी दलों ने प्रश्न चिह्न लगा दिया है। भास्कर की जमीनी पड़ताल में कहीं बीएलओ खेत में बैठकर फार्म भर रहे हैं, कहीं वाह्टसअप से पहचान पत्र मांग रहे थे। पटना में कई मतदाताओं के घर दो-दो तरह के फार्म पहुंचे। नगर निगम कर्मचारी और बीएलओ अलग-अलग फार्म दे रहे हैं। पावती फार्म नहीं दिए गए जबकि नियमानुसार यह जरूरी है। उधर एनडीए सरकार में शामिल तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर संबंधित कई सवाल पूछे हैं। तेदेपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर समावेश की धारणा का समर्थन करते हुए कि मतदाता पहले से ही नवीनतम प्रमाणित मतदाता सूची में नामांकित हैं। उन्हें अपनी पात्रता पुन स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। जब तक कि विशिष्ट और सत्यापन योग्य कारण दर्ज न किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मतदाता सूची में किसी व्यक्ति का नाम पहले से शामिल करने से उसकी वैधता की धारणा बनती है और नाम हटाने से पहले वैध जांच होनी चाहिए। तेदेपा ने कहा कि सुबूत का भार निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी या आपत्तिकर्ता पर होता है। मतदाता पर नहीं, विशेषकर जब नाम अधिकारिक सूची में मौजूद हो। तेदेपा के इस प्रतिनिधिमंडल ने सीआईसी ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू व विवेक जोशी से मुलाकात की। इधर निर्वाचन आयोग ने बुधवार को कहा कि बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से केवल 6.85 फीसदी ने अभी तक विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत गणना फार्म नहीं भरे हैं। यानी आयोग ने अंतिम तिथि से नौ दिन पहले ही 93 फीसदी काम पूरा कर लिया है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता राहुल गांधी, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव ने निर्वाचन आयोग और भाजपा पर जोरदार हमला बोला। राहुल गांधी ने असम के गुवाहाटी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करे हुए आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच मिलीभगत है। यह इससे साबित हो जाता है कि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव से चार महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में करीब एक करोड़ नए मतदाता जोड़े गए और भाजपा चुनाव जीत गई। विपक्ष के मांगने पर भी चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सूची और मतदान केन्द्राsं की वीडियोग्राफी देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की तरह ही अब बिहार में चुनाव चोरी करने की साजिश रची जा रही है। बिहार में मतदाता सूची से गरीबों, मजदूरों और कांग्रेस-राजद समर्थकों के नाम हटाने का प्रयास किया जा रहा है। चुनाव आयोग खुलकर भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की आलोचना करते हुए कहा कि जब भी चुनाव आते हैं, भाजपा मतदाता सूची से नाम हटाना शुरू कर देती है। मैंने सुना है कि उन्होंने बिहार में 30.5 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं। इसी तरह भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव जीते थे। वे बिहार और बंगाल के लिए भी यही योजना लागू कर रहे हैं। इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने एक्स पर लिखा कि बिहार में कुल 7 करोड़ 90 लाख मतदाता हैं। कल्पना कीजिए भाजपा के निर्देश पर अगर एक फीसदी मतदाताओं को भी छांटा जाता है तो लगभग 7 लाख 90 हजार मतदाताओं के नाम कटेंगे। यहां हमने केवल एक फीसद की बात की है, जबकि इनका इरादा इससे भी अधिक चार से पांच फीसद का है। इस हिसाब से हर विधानसभा में 3200 से अधिक मतदाताओं के नाम कटेंगे। पिछले चुनावों में वोट बढ़ाए गए थे इस बार घटाए जा रहे हैं। तेजस्वी ने कहा, पिछले दो विधानसभा चुनावों में कम अंतर से हार जीत वाली सीटों का आंकड़ा देखें तो 2015 विधानसभा चुनाव में 3000 से कम मतों से हार जीत वाली कुल 15 सीटें थी, जबकि 2020 में यह 35 सीटें हो गई थीं। अगर चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर इस प्रकार के गंभीर आरोप लगने लगे तो संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है। आयोग पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब सर्वोच्च अदालत ने समयाभाव और समीक्षा की प्रक्रिया की दुरुस्ता पर सवाल किया और अगली सुनवाई की तिथि 28 जुलाई तय की है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग का संवैधनिक कर्तव्य है। अगर इस प्रक्रिया में कोई आपत्ति दर्ज होती है तो उसे सही करना, उसमें संशोधन करना, गलत आदेश वापस लेना यह सब चुनाव आयोग का फर्ज है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 17 July 2025

सत्ता के लिए खींचा गाजा युद्ध लंबा

इजरायल में सबसे ज्यादा समय सत्ता में रहने का रिकार्ड बेंजामिन नेतन्याहू के नाम है। वे 17 साल 9 महीने से इजरायल के प्रधानमंत्री हैं। दिसम्बर 2022 के बाद नेतन्याहू के तीसरे कार्य काल के 30 माह में से 21 माह तक इजरायल युद्ध में घिरा रहा है। नई न्यूयार्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक नेतन्याहू ने घटती लोकप्रियता, भ्रष्टाचार के आरोपों से और अदालतों में चल रही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के केसों से बचने व ध्यान हटाने के लिए गाजा युद्ध लंबा खींचा। आरोप है कि नेतन्याहू ने कतर के जरिए हमास की बाकायदा फंडिंग भी की। जानिए कैसे नेतन्याहू ने पीएम पद पर बने रहने और अपने फायदे के लिए बाकायदा युद्ध का इस्तेमाल किया। नेतन्याहू ने खुफिया इनपुट की अनदेखी की जिससे हमास मजबूत हुआ और उसे तैयारियों का मौका मिला। नेतन्याहू 2020 से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे, जिससे उनकी सियासी पकड़ कमजोर हुई। सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने दक्षिणपंथी और अतिवादी दलों के साथ गठबंधन किया। नेतन्याहू ने कतर के माध्यम से गाजा को आर्थिक सहायता देने की नीति अपनाई जिसे वे शांति खरीदने का तरीका मानते थे। लेकिन इससे हमास को सैन्य तैयारियों के लिए संसाधन जुटाने का मौका मिला। जुलाई 2023 में सैन्य खुफिया इकाई ने चेतावनी दी कि नेतन्याहू की न्यायपालिका सुधार योजना ने देश को कमजोर किया, जिससे हमास, हिजबुल्ला और ईरान को हमले का अवसर मिल सकता है। रिज बेट तत्कालीन प्रमुख रोनन बार रणनीतिक युद्ध की चेतावनी दी, लेकिन नेतन्याहू ने इसे खारिज कर दिया और प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे हमास को लाभ मिला। नेतन्याहू का दोहरा खेल, क्षेत्र के लिए युद्ध का ऐलान, नाकामी का ठीकरा सेना, एजेंसियों पर फोड़ा। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले ने इजरायल को चौंका दिया। हमले में 1195 इजरायली मारे गए और 251 को अगवा किया गया। नेतन्याहू ने तुरंत हमास नेतृत्व को खत्म करने के आदेश दिए। खुफिया विफलता की जिम्मेदारी से बचने के लिए उन्होंने सेना और खुफिया एजेंसियों पर ठीकरा फोड़ा। उनकी पहली रणनीति थी सैन्य जवाब को तेज करना, जिसमें गाजा पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शामिल थे। उन्होंने मध्यमार्गी बेनी गैंट्स और गादी आईजेनकारे को सरकार में शामिल किया। इस कदम ने गठबंधन सरकार को स्थिरता दी और युद्ध को लंबे खींचने की उनकी रणनीति को समर्थन मिला। पीएम ने दोहरा खेल खेलते हुए हमास हमले के लिए सार्वजनिक रूप से दावा किया कि उन्हें हमास के इरादों की कोई चेतावनी नहीं मिली थी, जिससे उनकी छवि को बचाने की कोशिश की। नेतन्याहू ने अपनी सियासी छवि को चमकाने और सत्ता में बने रहने के लिए युद्ध का इस्तेमाल किया। सितम्बर 2024 में बंधकों की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन बढ़े। उनके प्रवक्ता ने एक हमास दस्तावेज को जर्मन अखबार बिल्ड में लीक किया, जिसमें दावा किया गया कि प्रदर्शनकारी हमास के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे थे। इस रणनीति ने जनता का ध्यान युद्ध विराम की मांग से हटाकर, हमास के खिलाफ एकजुटता की ओर मोड़ा। हिज्बुल्ला व ईरान के खिलाफ सैन्य सफलताओं ने नेतन्याहू की लोकप्रियता बढ़ा दी। हमास नेता माल्या सिनवार और हिज्बुल्ला नेता नसरूल्ला की मौत, लेबनान पर वाकी टॉकी हमले और ईरान के परमाणु fिठकानों पर हमले ने नेतन्याहू की स्थिति को और मजबूत किया। अप्रैल 2024 में नेतन्याहू ने एक युद्ध विराम योजना को मंजूरी दी जिसमें 30 से अधिक इजरायली बंधकों की रिहाई और सऊदी अरब के साथ शांति समझौते की संभावना शामिल थी। कैबिनेट बैठक में कट्टर दक्षिणपंथी और वित्त मंत्री ने धमकी दी कि अगर यह योजना आई तो सरकार गिर जाएगी। नेतन्याहू ने तुरंत अपनी सत्ता को प्राथमिकता देते हुए इस योजना को रद्द कर दिया। 1 जुलाई 2024 में एक और युद्ध विराम समझौता करीब था लेकिन नेशनल सिक्यूरिटी मंत्री के दबाव में नेतन्याहू ने गाजा-मिस्र सीमा पर नई शर्तें जोड़ दी जिससे बातचीत विफल हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में नेतन्याहू ने जनवरी 2025 में गाजा युद्ध विराम लागू तो किया लेकिन अपनी सत्ता बचाने के लिए मार्च में ही उसे तोड़ दिया। अल्ट्रा आर्थोडॉक्स सांसदों के विरोध में सरकार गिरने के खतरे को देखते हुए नेतन्याहू ने बेन ग्वीर को फिर से गठबंधन में जोड़ा जिसकी शर्त थी गाजा में बमबारी जारी रहे। 18 मार्च को हमले शुरू हुए, 19 को गठबंधन बहाल हुआ और बजट पारित। नेतन्याहू ने ट्रंप को ईरान पर हमले के लिए मना लिया। ट्रंप ने सैन्य समर्थन दिया और इजरायल का साथ देकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर जबरदस्त बमबारी की। इसी के बाद नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया। साफ है कि बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सत्ता बचाने के लिए गाजा युद्ध जारी रखा। 50 हजार से ज्यादा लोग बली चढ़ चुके हैं जिनमें 28000 बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। सत्ता की खातिर यह तानाशाह कुछ भी कर सकते हैं। ऊपर वाला सब देख रहा है और सही समय पर उनके कुकर्मों की सजा देगा। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 15 July 2025

क्या ट्रंप और नेतन्याहू ने फिर हमले की तैयारी कर ली है?


नेतन्याहू की हाल की अमेरिकी यात्रा के बाद ईरान पर फिर हमले की आशंका बढ़ गई है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बड़ा मकसद पूरा हो गया लगता है जिसके लिए वो खासतौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने अमेरिका गए थे। माना जा रहा है कि ट्रंप ने इजरायल को ईरान पर फिर से हमले करने की अनुमति दे दी है। तो सवाल यही है कि क्या नेतन्याहू ईरान पर हमले का दूसरा चरण शुरू करने जा रहे हैं? ईरान पर हमले का खतरा इसलिए बढ़ गया है क्योंकि ट्रंप और नेतन्याहू ईरान पर आाढमण का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके हैं। ऐसा अमेरिकी मीडिया दावा कर रहा है। नेतन्याहू जब वाशिंगटन गए थे तभी ये साफ हो गया था कि वो ट्रंप से ईरान पर हमले की अनुमति मांगेंगे। अब जबकि नेतन्याहू का दौरा पूरा हो गया है तो माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नेतन्याहू को ईरान पर हमले की हरी झंडी दे दी है। इसके संकेत इस बात से भी मिल रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों में वाशिंगटन में सब कुछ वैसा ही हो रहा हैं। जैसा पिछली बार हमले से पहले हुआ था। ट्रंप और नेतन्याहू में वाशिंगटन दौरे के दौरान दो बार आपात बैठक हुई। एक बैठक में तो ट्रंप के साथ तमाम अमेरिकी सेना के अध्यक्ष भी बैठक में शामिल थे। यानि कि सैनिक दृष्टि से भी हमले के सारे पहलुओं पर विचार हुआ होगा। नेतन्याहू की यात्रा के बाद ट्रंप अपने इटेंलीजेंस एजेंसियों से मिले। ट्रंप पिछली बार ईरान पर हुए हमले से पहले इसी तरह के शेड्यूल पर थे। इजरायल ने जिस दिन ईरान पर हमला किया था, उस दिन भी ट्रंप ने इंटेलीजेंस से ब्रीफिंग लिया था। नेतन्याहू का आाढामक रुख तो इसी बात का संकेत दे रहा है कि ईरान पर हमले का दूसरा राउंड किसी भी समय शुरू हो सकता है। अमेरिका और इजरायल के हमें दोबारा जंग छेड़ने के पीछे तीन मकसद नजर आते हैं। पहला है ईरान को हर हालत में परमाणु शक्ति बनने से रोकना। पहले राउंड में जब अमेरिका ने बी-2 स्टैल्थ बाम्बर से बंकर बस्टर बम गिराये थे तो ईरान की परमाणु प्रतिष्ठानों को इतना नुकसान नहीं हुआ था और विशेषज्ञों का दावा था कि ईरान परमाणु बम बनाने में सिर्फ 2-3 महीने पीछे हुआ है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ईरान ने अपने 400 किलो एनरिच्ड यूरेनियम को अमेरिकी हमले से पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान अब जब चाहे कम से कम दस परमाणु बम बना सकता है। ट्रंप-नेतन्याहू ईरान के परमाणु ठिकानों को हमेशा से मिटाना चाहते हैं। दूसरा मकसद ईरान को इतना कमजोर कर दें कि वह मध्य पूर्व एशिया में महज एक बिना प्रभाव का देश बन कर रह जाए। तीसरा मकसद ईरान से अयातुल्ला रेजीम को हमेशा के लिए खत्म करना। इसमें अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या का भी प्लान है। इजरायल का दावा है कि उसने ईरान के यूरेनियम का पता लगा लिया है। माना जा रहा है कि सीज फायर के बाद मोसाद ने उस लोकेशन का पता लगा लिया है, जहां ईरान ने अपना सर्वाधिक यूरेनियम छिपा रखा है। उधर अमेरिका इस बात से भड़का हुआ है कि ईरान अपने एटमी मिशन का निरीक्षण नहीं करने दे रहा है। इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी और आईएईए प्रमुख राफेल ग्रैसी ने ईरान के एटमी मिशन को लेकर कहा है कि ईरान के पास एटमी हथियार हैं। इस बात के सुबूत तो नहीं हैं। लेकिन खतरा हर बीतते दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। ग्रैसी के कहने का मतलब ये है कि ईरान इतना सक्षम हो चुका है कि वो बहुत जल्द परमाणु परीक्षण कर सकता है। अपुष्ट दावों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि ईरान ने परमाणु बम तैयार कर लिए हैं। उधर ईरान भी अगले राउंड के लिए पूरी तरह तैयार है। वह चुनौती दे रहा है और कह रहा है कि अगर इस बार अमेरिका और इजरायल ने फिर ईरान पर हमला किया तो उन्हें ऐसा सबक सिखाया जाएगा जिसे वह भूलेंगे नहीं। हम पूरी ताकत से जवाब देंगे। पिछले 12 दिन के राउंड में हमने साबित कर दिया था कि हम कितनी तबाही कर सकते हैं। इस बार तो ईरान और ज्यादा मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है क्योंकि चीन, रूस और उत्तरी कोरिया का भी उसे पूरा खुला समर्थन मिल चुका है। कुल मिलाकर स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। उम्मीद करते हैं, ऊपर वाले सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे ताकि कहीं तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत न हो जाए। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 12 July 2025

पुलवामा हमला:टेरर फंडिंग भी ऑनलाइन

आतंकवादी पिछले कुछ वर्षों से अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देने के लिए पारंपरिक तरीके की बजाय आधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं। खासकर इंटरनेट के जरिए विभिन्न तरह की मदद हासिल करना उनके लिए आसान और सुलभ तरीका बन गया है। वैश्विक आतंकवाद वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ ने फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और गोरखनाथ मंदिर में हुई 2022 की घटना का हवाला देते हुए गत मंगलवार को कहा कि ई-कामर्स और ऑनलाइन भुगतान सेवाओं का दुरुपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। अपने विश्लेषण में एफएटीएफ ने आतंकवाद को सरकार द्वारा प्रायोजित किए जाने को भी चिह्नित करते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के विभिन्न स्त्राsतों और इस रिपोर्ट में प्रतिनिधिमंडलें के विचार से संकेत मिलता है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था एफएटीएफ की हालिया रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग पहलू की ओर ध्यान खिंचा है। इसमें बताया गया है कि कैसे टेक्नोलॉजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति की जरूरत हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर अमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों का लेन-देन में भी ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। यही नहीं आतंकी बम बनाने की विधि भी इंटरनेट से सीख रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में हुई कई आतंकी हमलों की जांच में इसके प्रमाण भी मिले हैं। इससे साफ है कि ऑनलाइन सेवाओं का दुरुपयोग किस कदर खतरनाक रूप ले चुका है। एफएटीएफ के अनुसार पुलवामा हमले में एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल विस्फोट के प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया गया था। जैश-ए-मुहम्मद ने फरवरी, 2019 में सुरक्षा बलें के काफिले पर आत्मघाती हमला किया था। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए विस्फोट में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा अतांकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। अब वे अपने को इंटरनेट की gदुनिया की ओर ले जा रहे हैं। एफएटीएफ की इस अपडेट रिपोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के दावे पर भी परोक्ष रूप से मुहर लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी अपने हिंसक अभियानों के लिए उपकरण, हथियार, रसायन और यहां तक कि थ्री डी प्रिटिंग सामग्री की खरीददारी भी ऑनलाइन सेवाओं के जरिए कर रहे हैं। यह बात सही है कि ऑनलाइन खरीददारी की व्यवस्था से लोगों को काफी सहुलियत हुई हैं, लेकिन इस सुविधा का उपयोग खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए न हो, इस पर सरकार को कड़ी नजर रखनी है और ऐसे नियम बनाने होंगे जिससे यह ऑनलाइन साइट्स की इस सुविधा का दुरुपयोग न कर सकें और आतंकवाद फैलाने में मदद न कर पाएं। साथ ही ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाले मंचों की भी जिम्मेदारी है कि वे इस तरह की सामग्री की नियमित निगरानी करें, ताकि इसके दुरुपयोग पर रोक सुनिश्चित हो सके। एफएटीएफ का यह खुलासा भी अहम है कि आतंकवादी संगठनों को कुछ देशों की सरकारों से वित्तीय और अन्य मदद मिलती रही है, जिसमें साजो-सामान और सामग्री संबंधित सहायता एवं प्रशिक्षण भी शामिल है। भारत समेत कई देश आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट प्रयासों पर बल दे रहे हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा देशों द्वारा आतंकियों के वित्त-पोषण से इस पर पलीता लग रहा है। आतंकवाद की इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास करने होंगे। इससे पहले भी हमने देखा कि किस तरह पाक प्रायोजित आतंकी घटनाएं हमारे खिलाफ की जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान आतंकियों का पालन-पोषण कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा कि कैसे इन ई-कामर्स कंपनियों पर पाबंदी लगाई जाए ताकि वे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां बंद करें। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 10 July 2025

राफेल गिरने पर चीन ने फैलाया भ्रम

आपको याद होगा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने भारत के कई विमानों को मार गिराया है। इनमें राफेल, सुखोई और मिग शामिल थे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या भारत के राफेल फाइटर जेट गिरे थे? एक इंटरव्यू में रक्षा सचिव आर के सिंह ने सीएनवीसी-टीवी-18 को कहा कि आपने राफेल्स शब्द बहुवचन में इस्तेमाल किया है। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यह बिल्कुल भी सही नहीं है। पाकिस्तान को ह्यूमन और सैन्य साजो समान दोनों स्तरों पर भारत की तुलना में कई गुना अधिक नुकसान हुआ और 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। वहीं, पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर ने कहा कि भारत से सैन्य संघर्ष के दौरान बाहरी समर्थन मिलने का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है। अब खबर आई है कि ऑपरेशन सिंदूर के दरम्यान हुई झड़पों के बाद निर्मित राफेल जेट विमानों के विषय में संदेह फैलाया गया था। चीन ने इस काम पर अपने दूतावास को तैनात किया था। फ्रांसीसी सैन्य अधिकारियों व खुफिया एजेंसियों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर बताया जा रहा है, फ्रांस के प्रमुख लड़ाकू विमान की प्रतिष्ठा व पी को क्षति पहुंचाने का बीजिंग प्रयास कर रहा था और लगातार कर भी रहा है। फ्रांसीसी खुफिया सेवा की रपट के आधार पर बताया कि चीन के दूतावासों में रक्षा अधिकारियों ने राफेल की पी को प्रभावित करने के लिए अभियान चलाया। इसका उद्देश्य उन राज्यों को राजी करना था, जिन्होंने पहले से ही फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान का आर्डर दे रखा है, विशेष रूप से इंडोनेशिया कि वे राफेल विमान न खरीदे तथा अन्य संभावित खरीददारों को चीन निर्मित विमान एफ-10 और एफ-15 इत्यादि या एफ-35 लड़ाकू विमान चुनने के लिए प्रोत्साहित हों। राफेल समेत अन्य तमाम हथियारों की पी फ्रांस के रक्षा उद्योग का प्रमुख कारोबार है, जिससे पेरिस के दुनिया भर के देशों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसमें चूंकि एशियाई देश भी शामिल हैं। जहां चीन प्रमुख शक्ति बन चुका है। चीन का पूर्वी एरिया में लगातार प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भारत-पाक संघर्ष के दौरान पड़ोसी मुल्क की वायु सेना द्वारा 5 भारतीय विमानों के मार गिराने का छद्म प्रचार किया गया था। जिनमें तीन राफेल बताए गए। फ्रांसीसी अधिकारियों का मानना है कि इस प्रमुख प्रचार से राफेल के प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगाने का प्रयास चीन ने किया। फ्रांसीसी वायुसेना प्रमुख जनरल जेरोम बेलगार ने कहा कि उन्होंने केवल तीन भारतीय विमानों को क्षति होने की ओर इशारा करते हुए सुबूत देखे हैं। जेरोम के मुताबिक इनमें एक राफेल, एक सुखोई और फ्रांस निर्मित एक मिराज 2000 लड़ाकू विमान शामिल हैं। फ्रांस ने 8 देशों को राफेल लड़ाकू विमान बेचे हैं जिनमें से भारत-पाक संघर्ष में इस विमान के गिरने का पहला ज्ञात मामला आया है। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट, कथित राफेल मलबा, छेड़छाड़ की गई तस्वीरों, एआई से बनाए कंटेंट व युद्ध का अनुकरण करने वाले वीडियो गेम वगैरह इस अभियान का हिस्सा था। हमारी राय में तो भारत सरकार को देश को अब बता देना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने विमानों को नुकसान हुआ था और यह कौन-कौन से विमान थे? छिपाने से अफवाह फैलती है और दुश्मनों को भ्रम फैलाने का अवसर मिल जाता है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 8 July 2025

पाकिस्तान तो महज चेहरा, सीमा पर कई दुश्मन थे

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को किस-किस मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह रहस्य अभी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। आपरेशन सिंदूर की परतें खुलने लगी हैं। ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य रणनीति में एक मील का पत्थर बनकर उभरा है। जो खुफिया जानकारी से संचालित युद्ध, वृद्धि पर नियंत्रण और तकनीकी तत्परता के बारे में बहुमूल्य सबक प्रदान करता है, यह बात डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही हैं। पावार को न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजी पर फिक्की के एक कार्पाम में बोलते हुए जनरल सिंह ने इस ऑपरेशन को भारत की एकीकृत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए सही समय पर संघर्ष को रोकने के लिए तैयार किया गया एक मास्टरली स्ट्रोक बताया। पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना रणनीतिक वृद्धि युद्ध शुरू करना आसान है, लेकिन इसे नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है। फिक्की के कार्पाम को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन की भूमिका पर बात की। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 5 साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है। सिंह का कहना है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान के साथ चीन की तो बड़ी भूमिका थी ही पर इस दौरान तुर्कीये की पाकिस्तान को दी गई सैन्य मदद का भी पा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन इस्तेमाल किए गए। जो तुर्किये से आए थे। वो कहते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कुछ सबक है जो मैं जरूरी समझता हूं बताना। सबसे पहले एक सीमा पर दो दुश्मन नहीं थे। हमने सिर्फ पाकिस्तान को तो सामने देखा, लेकिन दुश्मन असल में दो थे, बल्कि अगर कहें तो तीन या चार भी थे। पाकिस्तान तो सिर्फ सामने दिखने वाला चेहरा था। हमें चीन से (पाकिस्तान को) हर तरह की मदद मिलती दिखी और ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से पाकिस्तान की हर क्षेत्र में मदद करता रहा है। उनका कहना है एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो ये कि वो अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की लाइव लैब उसे मिल गई हो। इसके अलावा तुर्कीये ने भी बहुत अहम भूमिका निभाई, जो पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा था। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ उनके प्रशिक्षित लोग भी थे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक ये है कि कम्युनिकेशन निगरानी और सेना नागरिक तालमेल। इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब डीजीएमओ लेवल की बातचीत हो रही थी, तब पाकिस्तान कह रहा था कि हमें मालूम है कि आपकी एक यूनिट पूरी तरह तैयार है। कृपा इसे पीछे कर लें। यानि चीन उन्हें लाइव इनपुट दे रहा था। इस मामले में हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। मैंने इलेक्ट्रानिक वार फेयर की बात की और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत भी बताई। लेकिन हमारे आबादी वाले इलाकों की रक्षा भी जरूरी है। जहां तक बाकी बात है, हमारे पास वो सहूलियते नहीं है जो इजरायल के पास है। वहां आयरन डोम जैसा सिस्टम है और कई एयर डिफेंस फीचर हैं। हमारे देश का दायरा बहुत बड़ा है तो इस तरह की चीजों पर बहुत पैसा लगता है इसलिए हमें सैंसेटिव हल ढूंढने होंगे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक मिला कि हमारे पास मजबूत और सुरक्षित सप्लाई चेन होनी चाहिए। उन्होंने इसे सोच के नजरिए से समझाते हुए कहा कि जो उपकरण हमें इस साल जनवरी या पिछले साल अक्टूबर-नवम्बर तक मिलने चाहिए थे, वो वक्त पर नहीं पहुंच सके। मैंने ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को बुलाया था और पूछा था कि कितने लोग तय समय पर उपकरण दे सकते हैं। तो कई लोगों ने हाथ उठाए। लेकिन एक हफ्ते बाद जब फिर से बात की, तब कुछ भी सामने नहीं आया। इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि डिप्टी चीफ आर्मी स्टॉफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने सार्वजनिक मंच से वही बात साफ कर दी है जो लम्बे वक्त से चर्चा में थी। उन्हेंने एक्स पर लिखा और बताया कि किस तरह चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स की असाधारण तरीके से मदद की। यह वही चीन है जिसने पांच साल पहले लद्दाख में यथास्थिति पूरी तरह बदल दी थी। जनरल सिंह ने देश को चेता दिया है कि अगले संघर्ष में भारत को फिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 5 July 2025

ईरान का मोसाद से बदला

इजरायल के ईरान पर हमले की शुरुआत के बाद सामने आई रिपोर्ट्स से स्पष्ट संकेत मिला कि युद्ध का मोर्चा आसमान में नहीं बल्कि जमीन में भी पहले से ही खुल चुका था। काफी समय से ईरान में गहरी खुफिया और ऑपरेशन घुसपैठ के जरिए इजरायल में तैयारी कर रहा था। हालांकि, ईरानी अधिकारी पहले भी ये आशंका जता चुके हैं कि इजरायल ईरानी सुरक्षा बलों में घुसपैठ कर सकता है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इजरायल आमतौर पर मोसाद के कामकाज पर टिप्पणी नहीं करता और ईरान में चली रही कार्रवाईयों में दूसरी खुफिया एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं। फिर भी ऐसा माना जाता है कि मोसाद ने ईरानी जमीन पर लक्ष्यों की पहचान और ऑपरेशनों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ इजरायली अधिकारियों की टिप्पणियों से साफ होता है कि ईरान के भीतर एंटी-सबमरीन सिस्टम, मिसाइल गोदाम, कमांड सेंटर्स और चुनिंदा टॉप मिलिट्री और साइंटिस्टों को निशाना बनाकर एक साथ और बेहद सटीक हमले किए गए। ये हमले उन खुफिया गतिविधियों के जरिए मुमकिन हो पाए, जो काफी समय से ईरान के अंदर सक्रिय थीं। इजरायल के हमलों ने न सिर्फ ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि देश के भीतर उनकी खुफिया क्षमताओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया। उधर इजरायल के साथ हाल के संघर्ष के बाद ईरान में गिरफ्तारियों और मौत की सजा देने का मोसाद से बदला लेने का सिलसिला शुरू हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि इजरायल के एजेंटों ने ईरानी खुफिया सेवाओं में अभूतपूर्व ढंग से घुसपैठ कर ली है। इन अधिकारियों को इस बात का शक है कि ईरान के हाई प्रोफाइल नेताओं की जिस तरह से हत्या हुई है, उसमें इजरायली सेना को दी खुफिया एजेंटों से मिली जानकारियों का हाथ रहा होगा। इजरायल ने हाल के संघर्ष में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कई सीनियर कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी। ईरानी अधिकारियों ने इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में तीन लोगों को फांसी दे दी है। तेहरान ने संघर्ष विराम के एक दिन बाद जहां 3 मोसाद जासूसों को फांसी दी वहीं सेना ने 700 से अधिक इराकी संबंध रखने वाले जासूसों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा ईरान ने यह भी कहा है कि सुरक्षा एजेंसियें ने हाल के हफ्तों में तेहरान और अन्य शहरों में मोसाद एजेंटों द्वारा संचालित कई भूमिगत ड्रोन सुविधाओं को भी नष्ट कर दिया है। इन तीन मोसाद एजेंटों को ईरानी शहर उरमिया में फांसी दी गई। ईरानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को बरकरार रखा जिसके बारे में उनका कहना है कि यह व्यापाक कानूनी कार्रवाई के बाद हुआ था। तीनों लोगों की पहचान इदरीस अली, आजाद शोजाई और रसूल अहमद रसूल के रूप में हुई है। उन पर आरोप था कि तीनों लोगों ने इजरायल की मोसाद के सहयोग करके प्रतिष्ठित ईरानी हस्तियों के लिए ईरान के अंदर ही बम और विध्वंस के सामान की तस्करी की। ईरानी टीवी रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायिक रिकार्ड बताते हैं कि इन व्यक्तियों ने पड़ोसी देश में एक प्रमुख मोसाद एजेंट के माध्यम से पेय पदार्थों की तस्करी की और तदनुसार किसी ईरानी व्यक्ति की हत्या कर सकते थे। जैसा मैंने कहा ईरान ने मोसाद से बदला लेना शुरू कर दिया है और घर के अंदर दुश्मनों की सफाई शुरू कर दी है। -अनिल नरेन्द्र