Thursday, 14 August 2025
आसिम मुनीर की खुली धमकी
अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को धमकी भरा बयान दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए संघर्ष के तीन महीने बाद अब पाकिस्तानी सेना प्रमुख का बयान सामने आया है। मुनीर ने दावा किया है कि मई में हुए संघर्ष में पाकिस्तान को कामयाबी मिली थी। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने का दावा करता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। आसिम मुनीर का बयान ऐसे समय पर सामने आया है जब शनिवार और रविवार को ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय थल सेना और वायु सेना प्रमुखों के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। पहले बता दें कि भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि पहलगाम हमले के जवाब में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर किसी भी पारपंरिक मिशन से अलग था। शनिवार को भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने दावा किया था कि मई में हुए संघर्ष के दौरान भारत ने छह पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था। हालांकि उसी रोज पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने बयान जारी कर इसका खंडन किया। 10 मई को संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद गोलीबारी थम गई थी। उस समय पाकिस्तान ने भारत के पांच लड़ाकू विमान गिराने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। फ्लोरिडा में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने एक निजी कार्यक्रम में दावा किया था कि पाकिस्तान ने भारत के भेदभाव पूर्ण और दोहरे व्यवहार वाली नीतियों के खिलाफ एक सफल कूटनीतिक युद्ध लड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद में शामिल है और इस संबंध में उन्होंने कनाडा में एक सिख नेता की हत्या, कतर में आठ नौसेना अधिकारियों का मामला और कुलभूषण जाधव जैसी घटनाओं का उदाहरण दिया। गौरतलब है कि भारत पहले ही इन सभी आरोपों का खंडन कर चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बेहद आभारी है। जिनके राजनीतिक नेतृत्व में न केवल भारत पाक युद्ध को रोका बल्कि दुनिया में कई युद्धों को भी रोका। फील्ड मार्शल मुनीर ने अपने भाषण में कश्मीर को एक अधूरा एजेंडा बताया। आसिम मुनीर यहीं नहीं रूके उन्होंने भारत को खुली धमकी दे डाली। मुनीर ने कहा कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोकने के लिए बांध बनाया तो हम मिसाइल से उसे उड़ा देंगे। मुनीर ने कहा, हम भारत के सिंधु नदी पर डैम बनने का इंतजार करेंगे और जब वे ऐसा करेंगे तो हम मिसाइलों से उसे तबाह कर देंगे। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मुनीर यह गीदड़ भभकी देने से भी नहीं चूके कि अगर भविष्य में भारत के साथ युद्ध में उनके देश के अस्तित्व को खतरा हुआ तो वो इस पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देंगे। मुनीर ने कहा कि हम एक परमाणु संपन्न राष्ट्र हैं और अगर हमें लगता है कि हम डूब रहे हैं तो हम आधी दुनिया को अपने साथ ले जाएंगे। मुनीर का यह बयान इस लिहाज से सनसनीखेज है कि पहली बार अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश को परमाणु युद्ध की धमकी दी गई है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने जिस तरह खुलेआम परमाणु युद्ध की धमकी दी है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस पर अपनी-अपनी राय हो सकती है। बहरहाल इससे एक बात तो साबित होती ही है कि पाकिस्तान के पास परमाणु शfिक्त होना केवल भारत के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह दुखद है कि मुनीर का यह बयान अमेरिका की धरती से आया है। यह पहली बार है जब किसी ने अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश के लिए इस तरह के धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह भी पहली बार है जब किसी सेना प्रमुख ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हfिथयार भी इस्तेमाल कर सकता है। मुनीर के बयान का भारतीय विदेश मंत्रालय ने सही जवाब दिया है कि जिस देश में सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हो, वहां परमाणु कमांड और कंट्रोल की विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत किसी न्यूfिक्लयर ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सरकार का यही रुख रहा था। मुनीर के बयान का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए करना चाहिए। भारत को अमेरिकी सरकार से भी यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अपनी धरती से ऐसे बेहूदा, विस्फोटक भड़काऊ बयान देने की इजाजत कैसे दी?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 12 August 2025
वोट चोरी पर आर-पार की लड़ाई
लोकसभा चुनाव के 14 माह बाद एसआईआर और वोट बंदी के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने में सफल रहे हैं। भारत में राजनीति इस समय टॉप गीयर पर है। यह सही है कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव करवाना आसान नहीं है। यही नहीं भारत में इतने चुनाव होते हैं जो चुनाव आयोग की योग्यता के लिए चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सफल रहा है। वोट करना हर वोटर का संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। यह भी जरूरी है कि उसका वोट उसे ही मिले जिसे उसने वोट दिया है। जब यह आशंका पैदा हो जाए कि उसका वोट दिया किसी को है और गया कहीं ओर तो बड़ा संदेह और निराशा पैदा हो जाती है। किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती-विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें सरकार को चुने जाने की प्रक्रिया कितनी स्वच्छ, स्वतंत्र और पारदर्शी है। इसके लिए चुनाव आयोजित कराने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी नागरिक वोट देने के अधिकार से वंचित न हो, मतदान की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तथा चुनाव में हिस्सेदारी करने वाले सभी दलों के लिए भरोसेमंद हो और नतीजों को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट हों। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कर्नाटक की एक विधानसभा क्षेत्र का डाटा पेश करते हुए आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। दस्तावेज का ढेर मीडिया के समक्ष दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि यह सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध मतदाता सूची के ढेर से निकली है। उनका दावा है कि महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतों की चोरी हुर्ह है। संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि लोकसभा चुनावों, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। तथ्यों के साथ राहुल ने साबित करने की कोशिश की। मतदाता सूची में हेर-फेर, फर्जी मतदाता, गलत पते, एक पते पर कई मतदाता, एक मतदाता का नाम कई जगह की सूची में होने जैसे कुछ खास तरीकों पर आधारित वोट चोरी करने के इस माडल को कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमल में लाया गया ताकि भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि चुनाव गड़बड़ियां, ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायतें तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन आमतौर पर वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकीं या फिर निर्वाचन आयोग की ओर से उन्हें निराधार घोषित किया जाता रहा है। अब इस बार जिस गंभीर स्वरूप में इस मामले को उठाया गया है, उसके बाद देशभर में यह बहस खड़ी हो गई है कि अगर इन आरोपों का मजबूत आधार है तो इससे एक तरह से समूची चुनाव प्रक्रिया की वैधता कठघरे में खड़ी होती है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाए राहुल गांधी से शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर शिकायत देने या फिर देश की जनता को गुमराह न करने को कहा है। मगर राहुल गांधी ने वोट चोरी का दावा करते हुए जिस तरह अपने आरोपों को सुबूतों पर आधारित बताया है। उसके बाद चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह पूरी समूची प्रक्रिया पर भरोसे को बहाल रखने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ इस संबंध में उठे सवालें का जवाब सामने रखे। बहरहाल इस आरोप की गंभीरता को समझना आवश्यक है कि दो कमरों में क्रमश 80/46 लोग कैसे रह सकते हैं? इनमें तमाम मतदाताओं की तस्वीरें आकार में इतनी छोटी हैं कि पहचान करना मुश्किल है। इन आरोपों की पुष्टि आयोग को बगैर प्रत्यारोपों के करनी चाहिए। मतदाता सूचियों के प्रति आयोग जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। जो भी त्रुटियां सामने आती हैं उनके बारे में स्पष्टता से संतोषजनक जवाब देना चाहिए। सवाल आरोपों-प्रतिआरोपों का नहीं है। सवाल देश में संविधान की रक्षा का है जिसकी रक्षा तभी हो सकती है जब हर नागरिक को अपने वोट देने का अधिकार मिले और उसकी वोट उसे ही जाए जिसे वोट दिया गया है। हमारे लोकतंत्र की जड़ है स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव मगर इसमें भी हेराफेरी होती है तो हमारे संविधान व लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। उम्मीद है कि चुनाव आयोग प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देगा और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 9 August 2025
बिहार वोटर लिस्ट पर टकराव
बिहार मतदाता सूची परीक्षण एसआईआर का मामला संसद से सड़क और सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक स्वाभाविक ही गरमाया हुआ है। विपक्षी दलों ने बिहार में जारी मतदाता सूची में एसआईआर को लेकर संसद में इसे वोटों की डकैती करार दिया और कहा कि इस विषय पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करना देश हित के लिए जरूरी है। यदि सरकार एसआईआर पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होती तो समझा जाएगा कि वह लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं रखती। वहीं संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और लोकसभा के कार्य संचालन और प्रक्रियाओं के नियमों एवं परिपाटी के तहत इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। उधर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं सूची की जांच के संकेत दिए हैं। बिहार में नई मतदाता सूची में करीब 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट यह परखना चाहता है कि लोगों के नाम सही ढंग से कटे हैं या नहीं? बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी गई थी। इसी याचिका के तहत सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं। तीन दिन के अंदर चुनाव आयोग को हटाए गए नामों का विवरण प्रस्तुत करना है। 9 अगस्त तक यह पेश करने को कहा गया है। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस उज्जवल भूइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा, वोटर लिस्ट में हटाए गए मतदाताओं का विवरण दें और एक कापी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स को भी दें। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेशों को चुनौती देने वाले संगठन एडीआर ने एक नया आवेदन दायर किया है। इसमें आयोग को हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। एडीआर ने कहा है, विवरण में यह भी आलेख हो कि वह मृत हैं या स्थायी रूप से विस्थापित हैं या किसी अन्य कारण से उनके नाम पर विचार नहीं किया गया है। पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण से कहा नाम हटाने का कारण बाद में पता चलेगा क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा सूची है। इस पर भूषण ने तर्क दिया, कुछ दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, लेकिन इस पर स्पष्ट नहीं है कि मतदाता की मृत्यु हो गई या वह कहीं और चले गए हैं। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यह रिकार्ड पर लाएंगे कि उन्होंने यह जानकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साझा की है। उन्होंने यह भी कहा कि बीएलओ ने जिनके नाम हटाने या न हटाने की सिफारिश की, उसकी सूची केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जारी हुई है। हम उसमें पारदर्शिता चाहते हैं। इस बार जस्टिस सूर्यकांत ने कहा-आयोग के नियमों के अनुसार हर राजनीतिक दल को यह जानकारी दी जाती है। कोर्ट ने उन राजनीतिक दलों की सूची मांगी जिन्हें लिस्ट दी गई है। भूषण ने कहा जिन लोगों के फार्म मिले, उनमें अधिकांश ने फार्म नहीं भरे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन मतदाताओं पर असर पड़ सकता है, उन्हें आवश्यक जानकारी दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने आयोग को इस बारे में शनिवार तक जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा, भूषण (एडीआर) उसे देखें, फिर हम देखेंगे कि क्या खुलासा किया गया और क्या नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, एडीआर 12 अगस्त से होने वाली सुनवाई में दलीलें दे सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए तो वह हस्तक्षेप करेगा। राजनीतिक दलों की चिंता जायज है, पर यह चिंता प्रत्येक दल को होनी चाहिए, केवल विपक्षी दलों को नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की जल्दबाजी की वजह से विवाद गहराया है। अगर पर्याप्त समय लेकर पुनरीक्षण का कार्य किया जाता तो संभव है कि विवाद की गुजांइश इतनी न होती। बहरहाल लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव आयोग सब सच सामने रखे। वोट का अधिकार हर नागरिक का मौलिक संवैधानिक अधिकार है जिसे कोई नहीं छोड़ सकता। इसी अधिकार पर लोकतंत्र टिका हुआ है। अगर कोई राजनीतिक दल किसी भी तरह से बेइमानी करके चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में कराता है तो यह देश के लोकतंत्र की जड़े खोद रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान की सबसे बड़ी संरक्षक है वह न्याय करेगी और निष्पक्ष होकर तथ्यों के आधार पर अपना फैसला करेगी।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 7 August 2025
बिछने लगी सियासी बिसात
उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गहमागहमी शुरू हो गई है। संसद के हालांकि दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के दलीय समीकरण में सत्तारूढ़ राजग के पास अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त संख्या तो है पर फिर भी लगता है कि इस बार यह चुनाव आसान नहीं होगा। विपक्ष चुनौती देने की तैयारी में लगा हुआ है। बेशक, विपक्ष चुनौती तो दे सकता है पर बिना बड़ी सेंध के उलटफेर करने की स्थिति में नहीं लगता। पर राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है कुछ भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन पर कोई व्हिप जारी नहीं होगा। सांसदों को अपनी आत्मा के अनुसार वोट करने का अधिकार होता है। इसीलिए ऐसे चुनावों में क्रास वोटिंग का बड़ा खतरा रहता है। पहले बात करते हैं सत्ता पक्ष की। भाजपा और उनके सहयोगी दलों की। भाजपा चाहेगी कि उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार चुना जाए जो उनका समर्थक हो और सरकार की लाइन पर चले। यह काम श्री जगदीश धनखड़ ने शुरू-शुरू में बाखूबी किया था। यह और बात है कि उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहती है कि जो भी उम्मीदवार हो वो संघ की पसंद व समर्थक हो। वह सरकार की लाइन पर चलने वाला नहीं हो। एक नेता ने कहा कि पिछली बार जब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था उस वक्त भी संघ परिवार में इसे लेकर चर्चा थी। इस बार लगभग सभी मान रहे हैं कि संघ अपनी विचारधारा को समझने वाला उम्मीदवार ही चाहता है। दक्षिण भारत की सियासी पार्टियां चाहती हैं कि जब राष्ट्रपति उत्तर से है तो कम से कम उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत का हो। इससे देश में एकता आएगी। वहीं यह जानते हुए कि भाजपा का पलड़ा भारी है फिर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एक साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। सूत्रों का कहना है कि योजना बिहार या आंध्र प्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी और जदयू को असमंजस में डाला जा सके। चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने की और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावानाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में पड़ जाएंगे। आंध्र प्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में 7 सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर ंइस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटता है तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा में भी इस मुद्दे पर एका नहीं है। संघ से जुड़े विचारधारा वाले भाजपा सांसद संघ के कहने पर अगर उम्मीदवार उन पर भाजपा हाई कमान द्वारा थोपा गया तो वह क्रास वोटिंग भी कर सकते हैं। हालांकि मेरी राय में यह मुश्किल होगा पर राजनीति में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता? ये किसी से छिपा नहीं कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है जो जिस तरह से जगदीप धनखड़ को अपमानित करके हटाया गया उससे वे खुश नहीं हैं। सरकार से इस समय कांग्रेस के जिस तरह के रिश्ते हैं उसे देखकर लगता नहीं कि विपक्ष सरकार के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। कांग्रेस के साथ सरकार के वरिष्ठ मंत्रियें के रिश्ते बहुत बिगड़े हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ से कांग्रेस की कथित नजदीकियों को लेकर जिस तरह की कहानियां बनाई गई उससे भी भाजपा खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन) उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी ओबीसी या मुस्लिम नाम पर भी विचार कर रहा है। इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं का सुझाव है कि विपक्ष को उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के रूप में लड़ना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 5 August 2025
एक और फ्रंट खुलता नजर आ रहा है
अमेरिका और रूस के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब रूस के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलने की ठान ली है। पिछले कई दिनों से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के खिलाफ ट्रंप जहर उगल रहे हैं और युक्रेन के साथ युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। पर पुतिन उनकी एक नहीं सुन रहे हैं। ट्रंप ने इस बार पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव पर निशाना साधते हुए पुतिन और रूस को धमकाया है। ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की ओर से बेहद उकसाने वाली टिप्पणियों के बाद दो परमाणु पनडुब्बियों को सही जगह पर तैनात करने का आदेश दिया है। बता दें कि मेदवेदेव ने हाल ही में अमेरिका के खिलाफ टिप्पणी की थी। ये ट्रंप के उस अल्टीमेटम के जवाब में था जिसमें उन्हेंने रूस से युक्रेन युद्ध विराम की मांग की थी। ट्रंप ने कहा मैंने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हो सकता है कि ये (मेदवेदेव की टिप्पणी) मूर्खतापूर्ण और भड़काऊ बयान सिर्फ बातें भर न हो। शब्दों की एहमियत होती है और कई बार इनके अंजाम अनचाहे हो सकते हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि इस बार ऐसा नहीं होगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि अमेरिकी नौसेना की ये पनडुब्बियां कहां भेजी गई हैं। ट्रंप ने कहा कि यह मामला उन परिस्थितियों में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह फाइनल अल्टीमेटम है। रूस और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और दोनों के पास परमाणु पनडुब्बियों का विशाल बेड़ा है। बता दें कि 29 जुलाई को ट्रंप ने कहा था कि यदि रूस 10-12 दिनों के अंदर यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं करता तो उस पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध और टैरिफ लगाए जाएंगे। अमेरिका शांति चाहता है लेकिन वह कमजोर नहीं है। इस पर 29 जुलाई को रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने लिखा ः हर नई डेडलाइन एक धमकी है और युद्ध की ओर एक कदम है। अमेरिका को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। मगर वह रूस को इस तरह धमकाता रहा। 30 जुलाई को ट्रंप ने मेदवेदेव को फेल पूर्व राष्ट्रपति कहते हुए कहा- उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। वे अब बहुत खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। अगले दिन ही मेदवेदेव ने फिर धमकी दी, कहाö सोवियत युग का डेड हैंड प्रणाली आज भी पीय है। यदि अमेरिका सोचता है कि वह एकतरफा आदेश दे सकता है तो वह गलतफहमी है। इसके बाद ही पावार को ट्रंप ने एटमी पनडुब्बियों की तैनाती का आदेश दिया। पिछले कुछ दिनों से जैसे मैने बताया ट्रंप और मेदवेदेव सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब ट्रंप ने पुतिन को युद्ध खत्म करने के लिए 8 अगस्त की नई समय सीमा दी है। लेकिन पुतिन ने इसका कोई संकेत नहीं दिया कि वह ऐसा करने वाले हैं। बता दें कि मेदवेदेव 2022 में पोन पर रूस के हमले के प्रबल समर्थक रहे हैं। वह पश्चिमी देशों के कड़े आलोचक भी हैं। केवल छह देशों के पास ही परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियां हैं। ये देश हैं चीन, भारत, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। उम्मीद करते हैं कि अमेरिका-रूस में बढ़ती तनातनी जरूर रूक जाएगी और कोई समझौता हो जाएगा। रूस भी बहुत ताकतवर देश है। वह आसानी से झुकने वाला नहीं। रूस–यूक्रेन से समझौता तो कर सकता है पर यह तभी हो सकता है जब उसकी शर्तें युक्रेन माने जो बहुत मुश्किल लगता है। अमेरिका का यहां भी दोहरा चरित्र नजर आता है। एक तरफ तो ट्रंप युक्रेन को हथियार, पैसा दे रहे हैं। यूरोप के देशों से युक्रेन की मदद करवा रहे हैं और दूसरी तरफ युद्ध विराम की बात करते हैं। अगर दुनिया में कोई आदमी बेनकाब हुआ है, एक्सपोज हुआ है तो वह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। नोबेल पुरस्कार लेने की इतनी जल्दी है कि अनाप-शनाप बाते करते हैं। धमकियों पर उतर आए हैं पर अब दुनिया उन्हें समझ चुकी है। वह जानती है कि अंदर से वह कितने खोखले हैं और शायद ही अब इसे कोई गंभीरता से लेता हो। पर रूस-युक्रेन का युद्ध रूकना चाहिए। दोनों पुतिन और जेलेंस्की को गंभीरता से बैठ कर हल निकालना चाहिए। हजारों जाने व्यर्थ में जा रही हैं। रूस-युक्रेन युद्ध रूकना चाहिए। अगर ट्रंप रूकवा सकते हैं तो भी कोई हर्ज नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 2 August 2025
बहस दो घंटे चली मगर सवालों का उत्तर नहीं मिला
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर कई घंटे की लंबी बहस हुई। बहस न केवल स्वस्थ सार्थक और जीवंत रही बल्कि इसने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनें को उसके बेहतर ढंग में देश के सामने रखा। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सीजफायर को लेकर मध्यस्थता वाले दावों को सिरे से खारिज कर दिया। पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की और न ही करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि 30 बार से ज्यादा दोहरा चुके हैं कि उन्होंने सीजफायर कराया। पीएम ने ट्रंप का नाम लिए बिना इन दावों को निराधार बताया था। पीएम मोदी के भाषण में बहुत सारे सवालों के जवाब तो मिले पर बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं मिले। सरकार ने इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि सीजफायर क्यों रोका गया? सवाल है कि जब पाकिस्तान घुटनों पर था, तब सीजफायर किन शर्तों पर और किसके कहने पर किया गया? देश तो चाहता था कि जब भारत का पलड़ा भारी था तो हमें रुकना नहीं चाहिए था और पीओके पर कब्जा कर लेना चाहिए था पर हम अचानक रुक गए। वहीं हमने पाकिस्तान को यह भी बता दिया कि हमने केवल आतंकी ठिकानें पर हमला किया है हमने पाकिस्तानी सेना और डिफेंस सिस्टम पर हमला नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारी ही जमीन पर हमारे ही विमान गिराने में पाकिस्तान सफल रहा। राज्यसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष ने पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाया जिसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। खरगे ने जम्मू-कश्मीर पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बयान का हवाला देते हुए सरकार पर हमला बोला। मनोज सिन्हा ने स्वीकार किया कि आतंकी हमले की वजह हमारी चूक थी। उन्होंने सवाल किया कि क्या सिन्हा का बयान किसी को बचाने के लिए था? हमले की किस-किस ने जिम्मेदारी ली? किसने इस्तीफा दिया? प्रियंका गांधी ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद किसी देश ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की यानि पूरी दुनिया ने भारत को पाकिस्तान की बराबरी पर रखा। सरकार ने जवाब में कहा कि पाकिस्तान के साथ सिर्फ तीन देश खड़े थे और दुनिया के कई देशों ने आतंकी हमले की निंदा की। बेशक, इस पर किसी ने भी पाकिस्तान को पहलगाम हमले का दोषी नहीं माना। क्या यह हमारी विदेश नीति का पर्दाफाश नहीं करती? सारी दुनिया जानती है कि भारत-पाक संघर्ष में पाकिस्तान तो महज मखौटा था। असल ताकत तो चीन की थी। हम पाकिस्तान से अकेले नहीं लड़ रहे थे, बल्कि पाक-चीन गठजोड़ से लड़ रहे थे। तमाम बहस में सरकार ने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया जबकि हमारी सेना ने साफ कहा कि चीन-पाकिस्तान को हथियार दे रहा है और चीन सैन्य उपकरणों के कारण ही भारत के विमान गिरे। इन पर सरकार ने एक शब्द नहीं कहा और न ही एक शब्द चीन द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही मदद पर कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूं ही नहीं दावा किया था कि भारत-पाक संघर्ष के दौरान 5 लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे, हालांकि ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस देश के कितने विमान गिराए गए। इससे पहले पाकिस्तानी भी भारत के 5 लड़ाकू विमान मार गिराने का दावा कर चुके हैं। हालांकि भारत ने इसे खारिज किया है। भारत की तुलना में पाकिस्तान के साथ ज्यादा देश क्यों? भारत-पाक संघर्ष के दौरान तुर्किए, अजरबैजान और चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था, जबकि भारत के पक्ष में केवल इजरायल स्पष्ट रूप से नजर आया। यहां तक कि रूस ने भी भारत को खुलकर समर्थन नहीं किया। इस मुद्दे पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दुनिया में किसी भी देश ने भारत को अपनी सुरक्षा में कार्रवाई करने से रोका नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र में 193 देश हैं और सिर्फ तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया था। ब्रिक्स फ्रांस, रूस और जर्मनी... कोई भी देश का नाम ले लीजिए, दुनिया भर से भारत को समर्थन मिला। पूरी बहस में एक महत्वपूर्ण मुद्दा कपिल सिब्बल ने भी उठाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने देश की रक्षा तैयारियों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि भारत के पास पाकिस्तान से युद्ध लड़ने और उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। जब हम पाक से युद्ध की बात करते हैं तो चीन को भी जोड़ें, क्योंकि दोनों अलग-अलग नहीं हैं। पाकिस्तान के पास चीन के उन्नत विमान, सैन्य प्रणाली है जबकि भारत का राफेल आधी क्षमता वाला विमान है। पाक के पास 25 स्क्वाड्रन है जबकि चीन के पास 138 स्क्वाड्रन है। वहीं भारतीय वायुसेना के वैसे कुल 32 स्क्वाड्रन है, जो किसी भी भारत-पाक युद्ध के दौरान सबसे कम संख्या है। हाल ही में एयरफोर्स चीफ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस कमी को उजाकर किया है। पिछले 11 सालों में सैन्य तैयारी में भारी कमी आई है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता और न ही इस बहस में इसका कोई जवाब मिला।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 31 July 2025
ऑपरेशन सिंदूर ः विपक्ष के सवाल
सोमवार को अंतत पहलगाम की आतंकी घटना पर लोकसभा में जबरदस्त बहस हुई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को बहस शुरू करते हुए कहा कि सेना के तीन अंगों के समन्वय का बेमिसाल उदाहरण बताते हुए यह भी कहा कि इस अभियान को यह कहना कि किसी दबाव में आकर रोका गया गलत और निराधार है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने हार मान ली थी और कहा कि अब कार्रवाई रोक दीजिए महाराज। बहुत हो गया। रक्षा मंत्री ने कहा 10 मई की सुबह जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कई एयरफील्ड पर करारा हमला किया तो पाकिस्तान ने हार मान ली और संघर्ष रोकने की पेशकश की। बहस में विपक्ष ने केंद्र सरकार पर तीखे सवाल दागे। विपक्ष ने एक सुर में कहा कि सेना के पराम पर उन्हें गर्व है, लेकिन सरकार की रणनीति और विदेश नीति पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। कांग्रेस सांसद गौरव गोगई और दीपेन्द्र हुड्डा ने खासतौर पर सरकार को निशाने पर लिया। कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि पहलगाम हमले के आतंकी अब तक गिरफ्त से बाहर क्यों हैं? उन्होंने पूछा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कितने विमान गिरे थे? संघर्ष विराम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की क्या भूमिका थी? उन्होंने पूछा कि जब हम जीत रहे थे तो कार्रवाई क्यों रोकी गई? पाकिस्तान के कब्जे से पीओके क्यों नहीं लिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि पहलगाम आतंकी हमले में सुरक्षा चूक की नैतिक जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह को लेनी चाहिए। अमित शाह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पीछे छिप नहीं सकते। यह चूक उनकी है। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश और विपक्ष प्रधानमंत्री के साथ खड़ा था तो अचानक युद्ध विराम कैसे हुआ? अगर पाकिस्तान घुटनों पर था तो आप क्यों झुके? आप किसके सामने झुके? कांग्रेस नेता ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 26 बार कहा कि उन्होंने व्यापार की बात करके युद्ध रूकवाया। ट्रंप की क्या भूमिका थी? उन्होंने सरकार से सवाल किया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को अब वापस नहीं लेंगे तो कब लेंगे। मैंने गौरव गोगोई के भाषण के प्रमुख अंश इसलिए बताए हैं क्योंकि मेरा मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर पर उठाए गए प्रश्नों पर यह बहुत सटीक और जोरदार भाषण था जिसका जवाब सत्ता पक्ष के स्पीकर अभी तक नहीं दे सके। टालने और इधर-उधर की बातों से उलझाए रखना और बयान बदलने से मसला हल नहीं होगा। कांग्रेस के दीपेन्द्र हुड्डा और टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी के भाषणों का भी पा करना जरूरी है। कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हमारी सेना ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया लेकिन सरकार की रणनीति में बड़ी खामी रही। विपक्ष ने सर्वदलीय बैठक की मांग की थी लेकिन सरकार ने नहीं बुलाई। दीपेन्द्र ने सरकार के अमेरिका के साथ संबंधों पर जमकर निशाना साधा। जब तुर्किए ने पाकिस्तान की मदद की तो प्रधानमंत्री साइप्रस गए, अच्छा संदेश दिया, लेकिन असली दुश्मन चीन को संदेश देना था तो वे ताइवान चले जाते। विदेश नीति की आलोचना करते हुए कहा कि बार-बार ट्रंप के इस दावे को लेकर सवाल पूछे जाते हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम करवाया। तृणमूल कांग्रेस नेता कल्याण बनर्जी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का ाsढडिट सेना का है, इसमें बंटवारा नहीं होना चाहिए। हमने विदेश नीति के मामले में पूरी तरह से सरकार का समर्थन किया, भारत को पाकिस्तान को ऐसा आघात देना चाहिए था, जिसको पूरी दुनिया देखती। उन्होंने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि ािढकेट में कभी सेंचुरी के करीब 90 रन पर पहुंचने पर इनिंग डिक्लियर करने की बात सुनी है? लेकिन यह काम मोदी जी नहीं कर सकते हैं। कोई और नहीं। उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि यहां 140 करोड़ देशवासी कह रहे थे कि लड़ाई जारी रखो, जीती हुई बाजी न हारो लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति के सामने आपका कद और छाती 56 इंच से घटकर 36 इंच रह गई है। वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पाकिस्तान का मकसद हमेशा भारत को कमजोर करने का ही है। सरकार का कहना है कि खून-पानी और आतंकवाद बातचीत एक साथ नहीं हो सकती। फिर किस सूरत में आप पाकिस्तान से ािढकेट मैच खेलेंगे। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 7.5 लाख सीआरपीएफ पुलिस और फोर्स है। पहलगाम आतंकी हमले के लिए किसकी जवाबदेही फिक्स होगी? एलजी, आईबी, पुलिस जो भी जिम्मेदार है। उस पर एक्शन होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर से 370 हटा दिया, लेकिन दशतगर्द फिर भी वहां पहुंच गए। उन्होंने कहा कि अगर 5 जेट नहीं गिरे, तो बोलिए। ओवैसी ने डोनाल्ड ट्रंप की सीजफायर का ऐलान करने पर भी जवाब मांगा। शिवसेना (यूबीटी) सांसद अरविन्द सावंत ने सवाल किया कि भारत ने बिना शर्त सीजफायर क्यों किया जबकि पाकिस्तान गिड़गिड़ा रहा था। क्या ऐसे में भारत को सख्त शर्तें नहीं रखनी चाहिए थी? पहलगाम में कोई जवान तैनात क्यों नहीं था? पहले दिन की बहस में मेरे विचार से विपक्ष बहुत भारी रहा और सरकार जवाबों को टालती रही। पर कितनी देर तक?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 29 July 2025
सवाल चुनाव आयोग की साख का
बिहार में मतदाता सूचियों का एसआईआर यानि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रािढया को लेकर हंगामा मचा हुआ है। संसद से लेकर बिहार की सड़कों पर इसे लेकर जमकर विरोध हो रहा है। यानि एक महीने की अवधि में लगभग 8 करोड़ मतदाताओं का गहन परीक्षण कैसे संभव हो सकता है? यही एक सवाल है जो विपक्षी पार्टियों और अन्य सामाजिक संस्थाओं को केंद्रीय चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह पैदा कर रहा है। विपक्ष का दावा है कि लाखों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। उधर चुनाव आयोग का कहना है कि सिर्फ मृतक और माइग्रेंट मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं। कांग्रेस और राजद इसे चुनावी रणनीति मानती है, जबकि भाजपा ने विरोध को एक राजनीतिक स्टंट बताया है। वहीं भाजपा के नेता यह भी दावा कर रहे हैं कि चुनाव में अपनी हार देखते हुए विपक्ष बौखला गया है और तरह-तरह के बहाने पेश कर रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि यदि विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्पाम याणि एसआईआर पर उनकी बातें नहीं सुन गई तो वे चुनाव का बहिष्कार करने पर भी विचार कर सकते हैं। यदि महागठबंधन सच में चुनाव बहिष्कार करता है तो स्थिति बेहद गंभीर होगी। इससे चुनाव आयोग की साख के साथ-साथ केंद्र सरकार की साख पर भी आंच आएगी। हालांकि मतदाता सूचियों का समय-समय पर गहन परीक्षण किया जाता रहा है। ऐसा अलग-अलग राज्यों में आवश्यकता पड़ने पर अलग-अलग अवधियों में गहन परीक्षण हुए हैं लेकिन बिहार में विशेष गहन परीक्षण को लेकर चुनाव आयोग की प्रािढया सवालों के घेरे में आ गई है। वास्तव में बिहार जैसे पिछड़े, बहुसंख्यक ग्रामीण और मजदूर आबादी वाले राज्य के नागरिकों की अधिकृत मतदाता की जांच इतने कम समय में होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। दूसरी वजह यह है कि चुनाव आयेग ने पहचान के लिए मतदाताओं के पास उपलब्ध तीन प्रमाण, आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को सुबूत मानने से इंकार कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को सुझाव दिया था कि वे इन तीनों को भी पहचान के सुबूत के तौर पर मान्य किया जाए। गहन परीक्षण प्रािढया की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए कई यूट्यूब चैनल और अन्य मीडिया वाले पत्रकारों ने प्रािढया पर सवाल उठाए हैं। बिहार के बेगुसराय जिले में यूट्यूबर और वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने सुबूतों के साथ इस प्रािढया में हो रही धांधलियों को उजागर किया। उन पर उल्टा एफआईआर दर्ज हो गई और उन पर सरकारी काम में बाधा डालने और बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसने का आरोप है। यह मामला बलिया थाना में दर्ज है। बिहार में अति अल्प समय में मतदाताओं को विशेष गहन परीक्षण के आयोग के आदेश को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने जब विपक्षी नेताओं का प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से मिलने गया तो मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार उनसे मिलने के लिए नहीं आए बल्कि मुलाकात के लिए अव्यवहारिक प्रािढया अपनाई गई जिससे मायूस और नाराज होकर विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग सत्ता के इशारे पर काम कर रहा है। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जा सकता। कानून देश के प्रत्येक नागरिक जो 18 साल या उससे अधिक है। मतदाता के तौर पर पंजीकरण करा सकता है। इसमें सिर्फ गैर-नागरिक का नाम दर्ज कराने को अयोग्य ठहराया गया है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में स्पष्ट कर चुका है कि मताधिकार केवल संवैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं। मगर भारतीय नागरिक होने के बावजूद उसे शर्तें पूरी करनी होती हैं और आवश्यक दस्तावेज देने होते हैं। आयोग की मंशा पर उंगली उठाने वालों का आरोप है कि गणना फार्म में मांगे गए दस्तावेज में आधार कार्ड मतदाता-पत्र व राशन कार्ड का न शामिल होना निश्चित रूप से चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह पैदा करता है। चूंकि सरकार आधार को ही केवल पहचान पत्र मान रही है, बैंक खाते से जोड़ रही है, चुनावी पहचान पत्र से जोड़ रही है। जिसका मतलब है कि सरकार इसे नागरिकता के सबूत मान रही है, इसलिए चुनाव आयोग द्वारा इन्हें न स्वीकार करना संशय पैदा करता है। यदि जल्द ही आयोग इसमें सुधार कर ले तो शायद इन आरोपों-प्रत्यारोपों से बचा जा सकता है। चुनाव आयोग ने अब यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा ही गहन पुनरीक्षण अब पूरे देश में होगा, सो मामला अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं। उम्मीद है कि जल्द इस पर सर्वमान्य फैसला होगा और एक संवैधानिक संकट को टाला जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 26 July 2025
इस्तीफे से उठे दर्जनों सवाल
सोमवार रात अचानक सियासी विस्फोट हो गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसने सियासी हलकों में हलचल मचा दी। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफे से विपक्ष भी हैरान था। इससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया। ऐसा नहीं कि भारत के संसदीय इतिहास में पहले किसी उपराष्ट्रपति ने पद से इस्तीफा न दिया हो। श्री वीवी गिरी, श्री वेंकटरमन ने भी इस्तीफा दिया था, पर वह स्वेच्छा से दिया था। डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने भी पद से इस्तीफा दिया था। पर वे सब इस्तीफे स्वेच्छा से राष्ट्रपति बनने के लिए दिए गए थे। श्री धनखड़ से तो लगता है कि इस्तीफा जबरन लिया गया। धनखड़ जी ने अपने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य खराब होने का बताया पर यह किसी के गले से नहीं उतर रहा, मानसून सत्र के पहले दिन उन्होंने पूरे दिन की राज्यसभा चलाई। कहीं भी नजर नहीं आ रहा था कि वह इतने अस्वस्थ हैं कि सदन को नहीं चला सकते। उनके इस्तीफे के पीछे कई तरह के विश्लेषण हो रहे हैं। मीडिया में उनके इस्तीफे के पीछे कई विशलेषण चल रहे हैं। मैं इस लेख में कुछ प्रमुख समाचार पत्रांs के संपादकीय विश्लेषणों का वर्णन कर रहा हूं। इससे पाठकों को कुछ समझ आ जाएगी उम्मीद करता हूं। प्रमुख अखबारों ने भी इस्तीफे की असली वजह ढूढने की कोशिश की है। इस अचानक उठाए गए कदम के पीछे अधिकतर विश्लेषण कर रहे हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के यहां कथित नकद बरामदगी के चलते महाभियोग प्रस्ताव लाने को लेकर दो अलग-अलग हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत। मानसून सत्र की शुरुआत से पहले ही सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए प्रस्ताव लाएगी ताकि न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया सर्वसम्मति से हो और इसे पक्षपातपूर्ण न समझा जाए। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक विपक्षी सांसद के हवाले से लिखा है कि वह इस प्रक्रिया से एनडीए सदस्यें को दूर रखना चाहते थे कि इस मुद्दे पर सरकार नैतिक ऊंचाइयां हासिल कर ले, पर धनखड़ जी ने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर सरकार को नाराज कर दिया। यह प्रस्ताव राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। हो सकता है कि सदन चलाने के उनके तरीके को लेकर सत्ता पक्ष के शीर्ष नेतृत्व से भी उनका मतभेद हुआ हो। इसी साल अप्रैल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। यही नहीं उन्हें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से यहां तक कह दिया था कि वह न्यूक्लियर मिसाइल संसद पर चला रहे हैं। कोई भी सरकार यह नहीं चाहती कि कार्यपालिका का न्यायपालिका से इतना सीधा टकराव हो। यह भी एक कारण हो सकता है भाजपा आलाकमान के धनखड़ से नाराज होने का। श्री धनखड़ एकमात्र उपराष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने का भूतपूर्व कदम उठाया। धनखड़ जिस संवैधानिक पद पर आसीन थे, वहां नाटकीयता नहीं, शालीनता की जरूरत थी। यह कहना अन्यायपूर्ण नहीं होगा कि धनखड़ कई बार न संयमित नजर आए और न ही निष्पक्ष। उन्होंने कई बार ऐसी भाषा और तेवर अपनाए जो संवैधानिक पद के अनुरूप नहीं कहे जा सकते। हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा जगदीप धनखड़ ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि मैं सही समय पर रिटायर होंगा। अगस्त 2027 में अगर ईश्वर का कोई हस्तक्षेप न हो तो। लेकिन उन्होंने कुछ ही दिनों बाद अपना पद छोड़ दिया। उन्हें राज्य सभा में कोई औपचारिक विदाई तक नहीं दी गई। विपक्ष कह रहा है कि सरकार को चाहिए कि वह इसकी वजह बताए ताकि बगैर आधार वाली अटकलें और साजिश की थ्योरी को दरकिनार करा जा सकें। अखबार लिखता है, क्या धनखड़ ने कोई रेड लाइन पार कर ली थी? अगर ऐसा है तो क्यों और कैसे? देश को इस बारे में जानने का पूरा हक है। उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक पद है, इसकी गरिमा को पवित्रता, संदेह और अफवाहों के दायरे में नहीं आनी चाहिए। यह सही है कि उनका स्वास्थ्य पिछले दिनों खराब था। पर वह ठीक होकर सार्वजनिक जीवन में लौट आए थे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा कि धनखड़ जी ने सोमवार को सदन शुरू होते ही घोषणा कर दी कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष का प्रस्ताव उन्होंने स्वीकार कर लिया है। धनखड़ जानते थे कि सरकार लोकसभा में पहले ही नोटस दे चुकी है। उन्होंने सरकार को मात दे दी। धनखड़ का इस्तीफा यह तो साबित करता है कि भाजपा में अब भी आलाकमान पूरी ताकत से काम करता है। उनकी इच्छा के खिलाफ कोई भी जाने की कोशिश करेगा तो उसके साथ दूध से मक्खी निकालने जैसा काम होगा। पर हमारा मानना है कि धनखड़ का इस ढंग से इस्तीफा (या निकालना) भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। कहीं वह एक दूसरे सतपाल मलिक बनकर न खड़े हो जाएं? धनखड़ के प्रकरण से ये बात भी साबित होती है कि भाजपा एक कमजोर पार्टी नहीं कहलाना चाहती। जनता यह भी नहीं भूली कि किस तरह से जेपी नड्डा ने कहा था नथिंग विल गो ऑन रिकार्ड, ओनली व्हॉट् आई से विल बी ऑन रिकार्ड। इशारा साफ था कि धनखड़ जी आपके जाने का समय आ गया है। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि किसी बड़े नेता को संतुष्ट करने के लिए धनखड़ जी की कुर्बानी ली गई है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 24 July 2025
सारी हदें पार करता प्रवर्तन निदेशालय
ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली को लेकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग, बिना पारदर्शिता अपनाए और राजनीतिक दुरुपयोग जैसे सवालों पर बार-बार सवाल आते रहे हैं और कई बार न्यायालय इसको चेतावनी भी दे चुका है। पर यह मानने को तैयार नहीं और बिना सोचे-समझे सही जांच करें, कहीं भी पहुंचे जाते हैं। ईडी पर विपक्षी दलों पर नाजायज दबाव डालकर यहां तक आरोप लगे हैं कि वह चुनी हुई सरकारों को भी गिराने में मदद करते हैं और एक बात ईडी का अदालत में केसों में आरोप साबित करने का ट्रैक रिकार्ड निहायत खराब है। दर्ज मामलों में दोष सिद्धी की दर कम होने पर भी सवाल उठता है। ये सवाल तब और गंभीर हो जाते हैं, जब कुछ मामलों में न्यायालय की ओर से भी जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को संदेह से देखा जाता है। ताजा उदाहरण वकीलों को तलब करने का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब करने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रहा है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायामूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ विधिक पेशे की स्वतंत्रता पर इस तरह की कार्रवाईयों के प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अदालत द्वारा स्वत संज्ञान लेते हुए शुरू की गई एक सुनवाई के दौरान की। गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की कि ईडी कोई ड्रोन नहीं जो आपराधिक गतिविधि का पता चलते ही हमला कर दे। साथ ही कहा कि जांच एजेंसी एक अत्याधिक दक्ष पुलिस अधिकारी (सुपर काप या सुपर मेन) की तरह नहीं है जो उनके संज्ञान में आने वाली हर चीज की जांच करे। हर जांच एजेंसी में बेशक कुछ न कुछ खामियां होती हैं, लेकिन जब सिलसिलेवार तरीके से सवाल उठने लगे तो यह दामन पर दाग लगने जैसा होता है। ईडी की शक्तियों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर जांच एजेंसी के पास मौलिक अधिकार है तो उसे लोगों के अधिकारों के बारे में भी सोचना चाहिए। जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व न करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब किए जाने पर जुड़े एक मामले में सोमवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रही है। इसके अलावा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी से संबंधित भूखंड आवंटन ममाले में अदालत ने चेताया है कि राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए, इसमें ईडी जैसी जांच एजेंसियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जाहिर है लगातार उठने वाले सवालों के बीच ईडी की अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता के मानक सुनिश्चित कर राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करना चाहिए ताकि उसकी साख पर कोई बट्टा न लगे। पीठ ने ईडी की भूमिका को खारिज कर दिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। याचिका में ईडी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती के खिलाफ एमयूडीए घोटाले में कार्रवाई करने पर रोक लगा दी थी। ईडी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू अदालत में पेश हुए। प्रधान न्यायाधीश ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कृपया हमें अपना मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें। वर्ना हमें ईडी के खिलाफ कुछ कड़े शब्दें का इस्तेमाल करना पड़ेगा। दुर्भाग्य से मुझे महाराष्ट्र में इसे लेकर कुछ अनुभव है। इसे पूरे देश में मत फैलाइए। राजनीतिक लड़ाई को मतदाताओं के सामने लड़ने देना चाहिए, उसमें आप क्यों इस्तेमाल हो रहे हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणियां साफ रेखांकित करती हैं कि किस तरह सत्तारूढ़ दल इन जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करते हैं और सियासी खेल खेलते हैं। इन जांच एजेसिंयों को चाहिए कि यह हर आदेश को आंख बंद करके अमल न करें बल्कि थोड़ी जांच पहले करें कि आरोपों में कोई दम है भी या नहीं ? या यह सिर्फ सियासी प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा है? उम्मीद की जाती है कि ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनके विवेक को सोचने पर मजबूर करेगा।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 22 July 2025
मानसून सत्र: टकराव के पूरे आसार
सोमवार से संसद का मानसून सत्र आरंभ हो गया है। यह 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा। इस एक महीने के लंबे सत्र की शुरुआत से ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव साफ दिखता नजर आ रहा है। तैयारी दोनों तरफ से पूरी है। विपक्ष ने जहां सरकार को विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर घेरने की तैयारी कर ली है वहीं सत्तापक्ष ने भी विपक्ष की रणनीति को कुंद करने की तैयारी पूरी कर ली है। संसद सत्र से ऐन पहले इंडिया गठबंधन की वर्चुअल बैठक शनिवार देर शाम आयोजित की गई, जिसमें मानसून सत्र को लेकर तमाम विपक्ष ने साझा रणनीति और सरकार के एजेंडे पर विस्तृत चर्चा की। मीटिंग के बाद सीनियर कांग्रेस नेता और राज्यसभा में उपनेता विपक्ष प्रमोद तिवारी ने मीडिया को बताया कि विपक्ष ने तय किया है कि आगामी सत्र में वह आठ अहम मुद्दों पर पीएम मोदी और उनकी सरकार को घेरेंगे। इनसे सवालों के जवाब मांगे जाएंगे। इनमें पहलगाम आतंकी हमला व आपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाक सीजफायर के 24 बार से ज्यादा बार दावे, बिहार में एसआईआर की कवायद, मतदान अधिकारों पर संकट, डीलिमिटेशन एससी, एसटी और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, अहमदाबाद में प्लेन दुर्घटना, अघोषित आपातकाल, सरकार की विदेश नीति जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा। प्रमोद तिवारी ने कहा कि इस वर्चुअल मीटिंग में 24 दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कुल मिलाकर बैठक बहुत ही सौहार्दपूर्ण रही। जल्द ही इंडिया गठबंधन के नेता आपस में मिलकर एक बैठक करेंगे, जिसमें वह अपनी आगामी राजनीति को धार देंगे। कांग्रेस ने कहा कि हम चाहते हैं कि संसद ठीक से चले, लेकिन इसके लिए सरकार को विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में मौजूद रहना चाहिए और खुद इन सवालों का जवाब देना चाहिए। विपक्ष का कहना है कि देश में लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है और ऐसे में विपक्ष की भूमिका और जिम्मेदारी और भी अहम हो जाती है। विदेश नीति पर भी चर्चा होगी। वहीं पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप से लेकर बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन जैसे मुद्दों पर सत्तापक्ष भी अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। पावार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर पर हुई बैठक में इस पर बात हुई। इसमें सरकार के सीनियर मंत्रियों को आर्म्ड फोर्सेस की तरफ से भी ब्रीफ किया गया। माना जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के अलग-अलग पहलुओं के बारे में स्थिति साफ की गई। राजनाथ सिंह संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बयान दे सकते हैं। रविवार को सरकार ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, जिसमें सरकार की तरफ से साफ किया कि रक्षा मंत्री ऑपरेशन सिंदूर पर बयान देंगे। बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए भी सरकार की तरफ से तैयारी है। मामला कोर्ट में है। साथ ही सत्ता पक्ष की तरफ से बार-बार कहा जाता रहा है कि यह चुनाव आयोग का फैसला है। इसी मुद्दे के बहाने भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के मसले पर विपक्ष को घेरने की कोशिश करेगी। अब देखना यह है कि क्या संसद चलेगी? उधर प्रधानमंत्री तो बीच में ही विदेशी दौरे पर जा रहे हैं तो वह तो जावब नहीं देंगे। तो फिर या तो राजनाथ सिंह या फिर अमित शाह को मोर्चा संभालना पड़ेगा। पूरे सत्र में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा सभापति जगदीश धनखड़ की भूमिका भी अहम होगी। देखना होगा कि यह इस सत्र में विपक्ष को कितना एकामोडेट करते हैं? अगर पिछले सत्रों को देखा जाए तो इनके रवैये में ज्यादा ढील की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे सरकार इस समय चौतरफा दबाव में है। एक तरफ विपक्ष हावी होने का प्रयास कर रहा है तो दूसरी तरफ भाजपा और एनडीए के अंदर भी सब ठीक नहीं है। आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी और नितिन गडकरी बार-बार ज्वलंत मुद्दे उठा रहे हैं। सरकार हर तरफ से दबाव में है। ऐसे में यह मानसून सत्र (अगर चला) बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। देखें क्या-क्या होता है?
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 19 July 2025
बिहार में पुनरीक्षण अभियान बना एक मजाक
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) में लापरवाही, अव्यवस्था और गड़बड़झाले के कारनामे अब खुलकर सामने आ चुके हैं। अब यह सारी कवायद एक मजाक बनकर रह गई है। इस अभियान में कई स्तर पर गड़बड़ी की गई और की जा रही है। इन अनियमितताओं पर पत्रकारों से लेकर तमाम विपक्षी दलों ने प्रश्न चिह्न लगा दिया है। भास्कर की जमीनी पड़ताल में कहीं बीएलओ खेत में बैठकर फार्म भर रहे हैं, कहीं वाह्टसअप से पहचान पत्र मांग रहे थे। पटना में कई मतदाताओं के घर दो-दो तरह के फार्म पहुंचे। नगर निगम कर्मचारी और बीएलओ अलग-अलग फार्म दे रहे हैं। पावती फार्म नहीं दिए गए जबकि नियमानुसार यह जरूरी है। उधर एनडीए सरकार में शामिल तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर संबंधित कई सवाल पूछे हैं। तेदेपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर समावेश की धारणा का समर्थन करते हुए कि मतदाता पहले से ही नवीनतम प्रमाणित मतदाता सूची में नामांकित हैं। उन्हें अपनी पात्रता पुन स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। जब तक कि विशिष्ट और सत्यापन योग्य कारण दर्ज न किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मतदाता सूची में किसी व्यक्ति का नाम पहले से शामिल करने से उसकी वैधता की धारणा बनती है और नाम हटाने से पहले वैध जांच होनी चाहिए। तेदेपा ने कहा कि सुबूत का भार निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी या आपत्तिकर्ता पर होता है। मतदाता पर नहीं, विशेषकर जब नाम अधिकारिक सूची में मौजूद हो। तेदेपा के इस प्रतिनिधिमंडल ने सीआईसी ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू व विवेक जोशी से मुलाकात की। इधर निर्वाचन आयोग ने बुधवार को कहा कि बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से केवल 6.85 फीसदी ने अभी तक विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत गणना फार्म नहीं भरे हैं। यानी आयोग ने अंतिम तिथि से नौ दिन पहले ही 93 फीसदी काम पूरा कर लिया है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता राहुल गांधी, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव ने निर्वाचन आयोग और भाजपा पर जोरदार हमला बोला। राहुल गांधी ने असम के गुवाहाटी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करे हुए आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच मिलीभगत है। यह इससे साबित हो जाता है कि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव से चार महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में करीब एक करोड़ नए मतदाता जोड़े गए और भाजपा चुनाव जीत गई। विपक्ष के मांगने पर भी चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सूची और मतदान केन्द्राsं की वीडियोग्राफी देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की तरह ही अब बिहार में चुनाव चोरी करने की साजिश रची जा रही है। बिहार में मतदाता सूची से गरीबों, मजदूरों और कांग्रेस-राजद समर्थकों के नाम हटाने का प्रयास किया जा रहा है। चुनाव आयोग खुलकर भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की आलोचना करते हुए कहा कि जब भी चुनाव आते हैं, भाजपा मतदाता सूची से नाम हटाना शुरू कर देती है। मैंने सुना है कि उन्होंने बिहार में 30.5 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं। इसी तरह भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव जीते थे। वे बिहार और बंगाल के लिए भी यही योजना लागू कर रहे हैं। इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने एक्स पर लिखा कि बिहार में कुल 7 करोड़ 90 लाख मतदाता हैं। कल्पना कीजिए भाजपा के निर्देश पर अगर एक फीसदी मतदाताओं को भी छांटा जाता है तो लगभग 7 लाख 90 हजार मतदाताओं के नाम कटेंगे। यहां हमने केवल एक फीसद की बात की है, जबकि इनका इरादा इससे भी अधिक चार से पांच फीसद का है। इस हिसाब से हर विधानसभा में 3200 से अधिक मतदाताओं के नाम कटेंगे। पिछले चुनावों में वोट बढ़ाए गए थे इस बार घटाए जा रहे हैं। तेजस्वी ने कहा, पिछले दो विधानसभा चुनावों में कम अंतर से हार जीत वाली सीटों का आंकड़ा देखें तो 2015 विधानसभा चुनाव में 3000 से कम मतों से हार जीत वाली कुल 15 सीटें थी, जबकि 2020 में यह 35 सीटें हो गई थीं। अगर चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर इस प्रकार के गंभीर आरोप लगने लगे तो संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है। आयोग पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब सर्वोच्च अदालत ने समयाभाव और समीक्षा की प्रक्रिया की दुरुस्ता पर सवाल किया और अगली सुनवाई की तिथि 28 जुलाई तय की है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग का संवैधनिक कर्तव्य है। अगर इस प्रक्रिया में कोई आपत्ति दर्ज होती है तो उसे सही करना, उसमें संशोधन करना, गलत आदेश वापस लेना यह सब चुनाव आयोग का फर्ज है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 17 July 2025
सत्ता के लिए खींचा गाजा युद्ध लंबा
इजरायल में सबसे ज्यादा समय सत्ता में रहने का रिकार्ड बेंजामिन नेतन्याहू के नाम है। वे 17 साल 9 महीने से इजरायल के प्रधानमंत्री हैं। दिसम्बर 2022 के बाद नेतन्याहू के तीसरे कार्य काल के 30 माह में से 21 माह तक इजरायल युद्ध में घिरा रहा है। नई न्यूयार्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक नेतन्याहू ने घटती लोकप्रियता, भ्रष्टाचार के आरोपों से और अदालतों में चल रही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के केसों से बचने व ध्यान हटाने के लिए गाजा युद्ध लंबा खींचा। आरोप है कि नेतन्याहू ने कतर के जरिए हमास की बाकायदा फंडिंग भी की। जानिए कैसे नेतन्याहू ने पीएम पद पर बने रहने और अपने फायदे के लिए बाकायदा युद्ध का इस्तेमाल किया। नेतन्याहू ने खुफिया इनपुट की अनदेखी की जिससे हमास मजबूत हुआ और उसे तैयारियों का मौका मिला। नेतन्याहू 2020 से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे, जिससे उनकी सियासी पकड़ कमजोर हुई। सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने दक्षिणपंथी और अतिवादी दलों के साथ गठबंधन किया। नेतन्याहू ने कतर के माध्यम से गाजा को आर्थिक सहायता देने की नीति अपनाई जिसे वे शांति खरीदने का तरीका मानते थे। लेकिन इससे हमास को सैन्य तैयारियों के लिए संसाधन जुटाने का मौका मिला। जुलाई 2023 में सैन्य खुफिया इकाई ने चेतावनी दी कि नेतन्याहू की न्यायपालिका सुधार योजना ने देश को कमजोर किया, जिससे हमास, हिजबुल्ला और ईरान को हमले का अवसर मिल सकता है। रिज बेट तत्कालीन प्रमुख रोनन बार रणनीतिक युद्ध की चेतावनी दी, लेकिन नेतन्याहू ने इसे खारिज कर दिया और प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे हमास को लाभ मिला। नेतन्याहू का दोहरा खेल, क्षेत्र के लिए युद्ध का ऐलान, नाकामी का ठीकरा सेना, एजेंसियों पर फोड़ा। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले ने इजरायल को चौंका दिया। हमले में 1195 इजरायली मारे गए और 251 को अगवा किया गया। नेतन्याहू ने तुरंत हमास नेतृत्व को खत्म करने के आदेश दिए। खुफिया विफलता की जिम्मेदारी से बचने के लिए उन्होंने सेना और खुफिया एजेंसियों पर ठीकरा फोड़ा। उनकी पहली रणनीति थी सैन्य जवाब को तेज करना, जिसमें गाजा पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शामिल थे। उन्होंने मध्यमार्गी बेनी गैंट्स और गादी आईजेनकारे को सरकार में शामिल किया। इस कदम ने गठबंधन सरकार को स्थिरता दी और युद्ध को लंबे खींचने की उनकी रणनीति को समर्थन मिला। पीएम ने दोहरा खेल खेलते हुए हमास हमले के लिए सार्वजनिक रूप से दावा किया कि उन्हें हमास के इरादों की कोई चेतावनी नहीं मिली थी, जिससे उनकी छवि को बचाने की कोशिश की। नेतन्याहू ने अपनी सियासी छवि को चमकाने और सत्ता में बने रहने के लिए युद्ध का इस्तेमाल किया। सितम्बर 2024 में बंधकों की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन बढ़े। उनके प्रवक्ता ने एक हमास दस्तावेज को जर्मन अखबार बिल्ड में लीक किया, जिसमें दावा किया गया कि प्रदर्शनकारी हमास के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे थे। इस रणनीति ने जनता का ध्यान युद्ध विराम की मांग से हटाकर, हमास के खिलाफ एकजुटता की ओर मोड़ा। हिज्बुल्ला व ईरान के खिलाफ सैन्य सफलताओं ने नेतन्याहू की लोकप्रियता बढ़ा दी। हमास नेता माल्या सिनवार और हिज्बुल्ला नेता नसरूल्ला की मौत, लेबनान पर वाकी टॉकी हमले और ईरान के परमाणु fिठकानों पर हमले ने नेतन्याहू की स्थिति को और मजबूत किया। अप्रैल 2024 में नेतन्याहू ने एक युद्ध विराम योजना को मंजूरी दी जिसमें 30 से अधिक इजरायली बंधकों की रिहाई और सऊदी अरब के साथ शांति समझौते की संभावना शामिल थी। कैबिनेट बैठक में कट्टर दक्षिणपंथी और वित्त मंत्री ने धमकी दी कि अगर यह योजना आई तो सरकार गिर जाएगी। नेतन्याहू ने तुरंत अपनी सत्ता को प्राथमिकता देते हुए इस योजना को रद्द कर दिया। 1 जुलाई 2024 में एक और युद्ध विराम समझौता करीब था लेकिन नेशनल सिक्यूरिटी मंत्री के दबाव में नेतन्याहू ने गाजा-मिस्र सीमा पर नई शर्तें जोड़ दी जिससे बातचीत विफल हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में नेतन्याहू ने जनवरी 2025 में गाजा युद्ध विराम लागू तो किया लेकिन अपनी सत्ता बचाने के लिए मार्च में ही उसे तोड़ दिया। अल्ट्रा आर्थोडॉक्स सांसदों के विरोध में सरकार गिरने के खतरे को देखते हुए नेतन्याहू ने बेन ग्वीर को फिर से गठबंधन में जोड़ा जिसकी शर्त थी गाजा में बमबारी जारी रहे। 18 मार्च को हमले शुरू हुए, 19 को गठबंधन बहाल हुआ और बजट पारित। नेतन्याहू ने ट्रंप को ईरान पर हमले के लिए मना लिया। ट्रंप ने सैन्य समर्थन दिया और इजरायल का साथ देकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर जबरदस्त बमबारी की। इसी के बाद नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया। साफ है कि बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सत्ता बचाने के लिए गाजा युद्ध जारी रखा। 50 हजार से ज्यादा लोग बली चढ़ चुके हैं जिनमें 28000 बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। सत्ता की खातिर यह तानाशाह कुछ भी कर सकते हैं। ऊपर वाला सब देख रहा है और सही समय पर उनके कुकर्मों की सजा देगा।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 15 July 2025
क्या ट्रंप और नेतन्याहू ने फिर हमले की तैयारी कर ली है?
नेतन्याहू की हाल की अमेरिकी यात्रा के बाद ईरान पर फिर हमले की आशंका बढ़ गई है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बड़ा मकसद पूरा हो गया लगता है जिसके लिए वो खासतौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने अमेरिका गए थे। माना जा रहा है कि ट्रंप ने इजरायल को ईरान पर फिर से हमले करने की अनुमति दे दी है। तो सवाल यही है कि क्या नेतन्याहू ईरान पर हमले का दूसरा चरण शुरू करने जा रहे हैं? ईरान पर हमले का खतरा इसलिए बढ़ गया है क्योंकि ट्रंप और नेतन्याहू ईरान पर आाढमण का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके हैं। ऐसा अमेरिकी मीडिया दावा कर रहा है। नेतन्याहू जब वाशिंगटन गए थे तभी ये साफ हो गया था कि वो ट्रंप से ईरान पर हमले की अनुमति मांगेंगे। अब जबकि नेतन्याहू का दौरा पूरा हो गया है तो माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नेतन्याहू को ईरान पर हमले की हरी झंडी दे दी है। इसके संकेत इस बात से भी मिल रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों में वाशिंगटन में सब कुछ वैसा ही हो रहा हैं। जैसा पिछली बार हमले से पहले हुआ था। ट्रंप और नेतन्याहू में वाशिंगटन दौरे के दौरान दो बार आपात बैठक हुई। एक बैठक में तो ट्रंप के साथ तमाम अमेरिकी सेना के अध्यक्ष भी बैठक में शामिल थे। यानि कि सैनिक दृष्टि से भी हमले के सारे पहलुओं पर विचार हुआ होगा। नेतन्याहू की यात्रा के बाद ट्रंप अपने इटेंलीजेंस एजेंसियों से मिले। ट्रंप पिछली बार ईरान पर हुए हमले से पहले इसी तरह के शेड्यूल पर थे। इजरायल ने जिस दिन ईरान पर हमला किया था, उस दिन भी ट्रंप ने इंटेलीजेंस से ब्रीफिंग लिया था। नेतन्याहू का आाढामक रुख तो इसी बात का संकेत दे रहा है कि ईरान पर हमले का दूसरा राउंड किसी भी समय शुरू हो सकता है। अमेरिका और इजरायल के हमें दोबारा जंग छेड़ने के पीछे तीन मकसद नजर आते हैं। पहला है ईरान को हर हालत में परमाणु शक्ति बनने से रोकना। पहले राउंड में जब अमेरिका ने बी-2 स्टैल्थ बाम्बर से बंकर बस्टर बम गिराये थे तो ईरान की परमाणु प्रतिष्ठानों को इतना नुकसान नहीं हुआ था और विशेषज्ञों का दावा था कि ईरान परमाणु बम बनाने में सिर्फ 2-3 महीने पीछे हुआ है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ईरान ने अपने 400 किलो एनरिच्ड यूरेनियम को अमेरिकी हमले से पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान अब जब चाहे कम से कम दस परमाणु बम बना सकता है। ट्रंप-नेतन्याहू ईरान के परमाणु ठिकानों को हमेशा से मिटाना चाहते हैं। दूसरा मकसद ईरान को इतना कमजोर कर दें कि वह मध्य पूर्व एशिया में महज एक बिना प्रभाव का देश बन कर रह जाए। तीसरा मकसद ईरान से अयातुल्ला रेजीम को हमेशा के लिए खत्म करना। इसमें अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या का भी प्लान है। इजरायल का दावा है कि उसने ईरान के यूरेनियम का पता लगा लिया है। माना जा रहा है कि सीज फायर के बाद मोसाद ने उस लोकेशन का पता लगा लिया है, जहां ईरान ने अपना सर्वाधिक यूरेनियम छिपा रखा है। उधर अमेरिका इस बात से भड़का हुआ है कि ईरान अपने एटमी मिशन का निरीक्षण नहीं करने दे रहा है। इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी और आईएईए प्रमुख राफेल ग्रैसी ने ईरान के एटमी मिशन को लेकर कहा है कि ईरान के पास एटमी हथियार हैं। इस बात के सुबूत तो नहीं हैं। लेकिन खतरा हर बीतते दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। ग्रैसी के कहने का मतलब ये है कि ईरान इतना सक्षम हो चुका है कि वो बहुत जल्द परमाणु परीक्षण कर सकता है। अपुष्ट दावों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि ईरान ने परमाणु बम तैयार कर लिए हैं। उधर ईरान भी अगले राउंड के लिए पूरी तरह तैयार है। वह चुनौती दे रहा है और कह रहा है कि अगर इस बार अमेरिका और इजरायल ने फिर ईरान पर हमला किया तो उन्हें ऐसा सबक सिखाया जाएगा जिसे वह भूलेंगे नहीं। हम पूरी ताकत से जवाब देंगे। पिछले 12 दिन के राउंड में हमने साबित कर दिया था कि हम कितनी तबाही कर सकते हैं। इस बार तो ईरान और ज्यादा मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है क्योंकि चीन, रूस और उत्तरी कोरिया का भी उसे पूरा खुला समर्थन मिल चुका है। कुल मिलाकर स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। उम्मीद करते हैं, ऊपर वाले सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे ताकि कहीं तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत न हो जाए।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 12 July 2025
पुलवामा हमला:टेरर फंडिंग भी ऑनलाइन
आतंकवादी पिछले कुछ वर्षों से अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देने के लिए पारंपरिक तरीके की बजाय आधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं। खासकर इंटरनेट के जरिए विभिन्न तरह की मदद हासिल करना उनके लिए आसान और सुलभ तरीका बन गया है। वैश्विक आतंकवाद वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ ने फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और गोरखनाथ मंदिर में हुई 2022 की घटना का हवाला देते हुए गत मंगलवार को कहा कि ई-कामर्स और ऑनलाइन भुगतान सेवाओं का दुरुपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। अपने विश्लेषण में एफएटीएफ ने आतंकवाद को सरकार द्वारा प्रायोजित किए जाने को भी चिह्नित करते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के विभिन्न स्त्राsतों और इस रिपोर्ट में प्रतिनिधिमंडलें के विचार से संकेत मिलता है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था एफएटीएफ की हालिया रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग पहलू की ओर ध्यान खिंचा है। इसमें बताया गया है कि कैसे टेक्नोलॉजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति की जरूरत हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर अमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों का लेन-देन में भी ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। यही नहीं आतंकी बम बनाने की विधि भी इंटरनेट से सीख रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में हुई कई आतंकी हमलों की जांच में इसके प्रमाण भी मिले हैं। इससे साफ है कि ऑनलाइन सेवाओं का दुरुपयोग किस कदर खतरनाक रूप ले चुका है। एफएटीएफ के अनुसार पुलवामा हमले में एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल विस्फोट के प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया गया था। जैश-ए-मुहम्मद ने फरवरी, 2019 में सुरक्षा बलें के काफिले पर आत्मघाती हमला किया था। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए विस्फोट में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा अतांकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। अब वे अपने को इंटरनेट की gदुनिया की ओर ले जा रहे हैं। एफएटीएफ की इस अपडेट रिपोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के दावे पर भी परोक्ष रूप से मुहर लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी अपने हिंसक अभियानों के लिए उपकरण, हथियार, रसायन और यहां तक कि थ्री डी प्रिटिंग सामग्री की खरीददारी भी ऑनलाइन सेवाओं के जरिए कर रहे हैं। यह बात सही है कि ऑनलाइन खरीददारी की व्यवस्था से लोगों को काफी सहुलियत हुई हैं, लेकिन इस सुविधा का उपयोग खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए न हो, इस पर सरकार को कड़ी नजर रखनी है और ऐसे नियम बनाने होंगे जिससे यह ऑनलाइन साइट्स की इस सुविधा का दुरुपयोग न कर सकें और आतंकवाद फैलाने में मदद न कर पाएं। साथ ही ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाले मंचों की भी जिम्मेदारी है कि वे इस तरह की सामग्री की नियमित निगरानी करें, ताकि इसके दुरुपयोग पर रोक सुनिश्चित हो सके। एफएटीएफ का यह खुलासा भी अहम है कि आतंकवादी संगठनों को कुछ देशों की सरकारों से वित्तीय और अन्य मदद मिलती रही है, जिसमें साजो-सामान और सामग्री संबंधित सहायता एवं प्रशिक्षण भी शामिल है। भारत समेत कई देश आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट प्रयासों पर बल दे रहे हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा देशों द्वारा आतंकियों के वित्त-पोषण से इस पर पलीता लग रहा है। आतंकवाद की इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास करने होंगे। इससे पहले भी हमने देखा कि किस तरह पाक प्रायोजित आतंकी घटनाएं हमारे खिलाफ की जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान आतंकियों का पालन-पोषण कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा कि कैसे इन ई-कामर्स कंपनियों पर पाबंदी लगाई जाए ताकि वे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां बंद करें।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 10 July 2025
राफेल गिरने पर चीन ने फैलाया भ्रम
आपको याद होगा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने भारत के कई विमानों को मार गिराया है। इनमें राफेल, सुखोई और मिग शामिल थे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या भारत के राफेल फाइटर जेट गिरे थे? एक इंटरव्यू में रक्षा सचिव आर के सिंह ने सीएनवीसी-टीवी-18 को कहा कि आपने राफेल्स शब्द बहुवचन में इस्तेमाल किया है। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यह बिल्कुल भी सही नहीं है। पाकिस्तान को ह्यूमन और सैन्य साजो समान दोनों स्तरों पर भारत की तुलना में कई गुना अधिक नुकसान हुआ और 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। वहीं, पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर ने कहा कि भारत से सैन्य संघर्ष के दौरान बाहरी समर्थन मिलने का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है। अब खबर आई है कि ऑपरेशन सिंदूर के दरम्यान हुई झड़पों के बाद निर्मित राफेल जेट विमानों के विषय में संदेह फैलाया गया था। चीन ने इस काम पर अपने दूतावास को तैनात किया था। फ्रांसीसी सैन्य अधिकारियों व खुफिया एजेंसियों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर बताया जा रहा है, फ्रांस के प्रमुख लड़ाकू विमान की प्रतिष्ठा व पी को क्षति पहुंचाने का बीजिंग प्रयास कर रहा था और लगातार कर भी रहा है। फ्रांसीसी खुफिया सेवा की रपट के आधार पर बताया कि चीन के दूतावासों में रक्षा अधिकारियों ने राफेल की पी को प्रभावित करने के लिए अभियान चलाया। इसका उद्देश्य उन राज्यों को राजी करना था, जिन्होंने पहले से ही फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान का आर्डर दे रखा है, विशेष रूप से इंडोनेशिया कि वे राफेल विमान न खरीदे तथा अन्य संभावित खरीददारों को चीन निर्मित विमान एफ-10 और एफ-15 इत्यादि या एफ-35 लड़ाकू विमान चुनने के लिए प्रोत्साहित हों। राफेल समेत अन्य तमाम हथियारों की पी फ्रांस के रक्षा उद्योग का प्रमुख कारोबार है, जिससे पेरिस के दुनिया भर के देशों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसमें चूंकि एशियाई देश भी शामिल हैं। जहां चीन प्रमुख शक्ति बन चुका है। चीन का पूर्वी एरिया में लगातार प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भारत-पाक संघर्ष के दौरान पड़ोसी मुल्क की वायु सेना द्वारा 5 भारतीय विमानों के मार गिराने का छद्म प्रचार किया गया था। जिनमें तीन राफेल बताए गए। फ्रांसीसी अधिकारियों का मानना है कि इस प्रमुख प्रचार से राफेल के प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगाने का प्रयास चीन ने किया। फ्रांसीसी वायुसेना प्रमुख जनरल जेरोम बेलगार ने कहा कि उन्होंने केवल तीन भारतीय विमानों को क्षति होने की ओर इशारा करते हुए सुबूत देखे हैं। जेरोम के मुताबिक इनमें एक राफेल, एक सुखोई और फ्रांस निर्मित एक मिराज 2000 लड़ाकू विमान शामिल हैं। फ्रांस ने 8 देशों को राफेल लड़ाकू विमान बेचे हैं जिनमें से भारत-पाक संघर्ष में इस विमान के गिरने का पहला ज्ञात मामला आया है। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट, कथित राफेल मलबा, छेड़छाड़ की गई तस्वीरों, एआई से बनाए कंटेंट व युद्ध का अनुकरण करने वाले वीडियो गेम वगैरह इस अभियान का हिस्सा था। हमारी राय में तो भारत सरकार को देश को अब बता देना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने विमानों को नुकसान हुआ था और यह कौन-कौन से विमान थे? छिपाने से अफवाह फैलती है और दुश्मनों को भ्रम फैलाने का अवसर मिल जाता है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 8 July 2025
पाकिस्तान तो महज चेहरा, सीमा पर कई दुश्मन थे
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को किस-किस मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह रहस्य अभी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। आपरेशन सिंदूर की परतें खुलने लगी हैं। ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य रणनीति में एक मील का पत्थर बनकर उभरा है। जो खुफिया जानकारी से संचालित युद्ध, वृद्धि पर नियंत्रण और तकनीकी तत्परता के बारे में बहुमूल्य सबक प्रदान करता है, यह बात डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही हैं। पावार को न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजी पर फिक्की के एक कार्पाम में बोलते हुए जनरल सिंह ने इस ऑपरेशन को भारत की एकीकृत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए सही समय पर संघर्ष को रोकने के लिए तैयार किया गया एक मास्टरली स्ट्रोक बताया। पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना रणनीतिक वृद्धि युद्ध शुरू करना आसान है, लेकिन इसे नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है। फिक्की के कार्पाम को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन की भूमिका पर बात की। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 5 साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है। सिंह का कहना है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान के साथ चीन की तो बड़ी भूमिका थी ही पर इस दौरान तुर्कीये की पाकिस्तान को दी गई सैन्य मदद का भी पा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन इस्तेमाल किए गए। जो तुर्किये से आए थे। वो कहते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कुछ सबक है जो मैं जरूरी समझता हूं बताना। सबसे पहले एक सीमा पर दो दुश्मन नहीं थे। हमने सिर्फ पाकिस्तान को तो सामने देखा, लेकिन दुश्मन असल में दो थे, बल्कि अगर कहें तो तीन या चार भी थे। पाकिस्तान तो सिर्फ सामने दिखने वाला चेहरा था। हमें चीन से (पाकिस्तान को) हर तरह की मदद मिलती दिखी और ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से पाकिस्तान की हर क्षेत्र में मदद करता रहा है। उनका कहना है एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो ये कि वो अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की लाइव लैब उसे मिल गई हो। इसके अलावा तुर्कीये ने भी बहुत अहम भूमिका निभाई, जो पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा था। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ उनके प्रशिक्षित लोग भी थे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक ये है कि कम्युनिकेशन निगरानी और सेना नागरिक तालमेल। इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब डीजीएमओ लेवल की बातचीत हो रही थी, तब पाकिस्तान कह रहा था कि हमें मालूम है कि आपकी एक यूनिट पूरी तरह तैयार है। कृपा इसे पीछे कर लें। यानि चीन उन्हें लाइव इनपुट दे रहा था। इस मामले में हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। मैंने इलेक्ट्रानिक वार फेयर की बात की और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत भी बताई। लेकिन हमारे आबादी वाले इलाकों की रक्षा भी जरूरी है। जहां तक बाकी बात है, हमारे पास वो सहूलियते नहीं है जो इजरायल के पास है। वहां आयरन डोम जैसा सिस्टम है और कई एयर डिफेंस फीचर हैं। हमारे देश का दायरा बहुत बड़ा है तो इस तरह की चीजों पर बहुत पैसा लगता है इसलिए हमें सैंसेटिव हल ढूंढने होंगे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक मिला कि हमारे पास मजबूत और सुरक्षित सप्लाई चेन होनी चाहिए। उन्होंने इसे सोच के नजरिए से समझाते हुए कहा कि जो उपकरण हमें इस साल जनवरी या पिछले साल अक्टूबर-नवम्बर तक मिलने चाहिए थे, वो वक्त पर नहीं पहुंच सके। मैंने ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को बुलाया था और पूछा था कि कितने लोग तय समय पर उपकरण दे सकते हैं। तो कई लोगों ने हाथ उठाए। लेकिन एक हफ्ते बाद जब फिर से बात की, तब कुछ भी सामने नहीं आया। इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि डिप्टी चीफ आर्मी स्टॉफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने सार्वजनिक मंच से वही बात साफ कर दी है जो लम्बे वक्त से चर्चा में थी। उन्हेंने एक्स पर लिखा और बताया कि किस तरह चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स की असाधारण तरीके से मदद की। यह वही चीन है जिसने पांच साल पहले लद्दाख में यथास्थिति पूरी तरह बदल दी थी। जनरल सिंह ने देश को चेता दिया है कि अगले संघर्ष में भारत को फिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 5 July 2025
ईरान का मोसाद से बदला
इजरायल के ईरान पर हमले की शुरुआत के बाद सामने आई रिपोर्ट्स से स्पष्ट संकेत मिला कि युद्ध का मोर्चा आसमान में नहीं बल्कि जमीन में भी पहले से ही खुल चुका था। काफी समय से ईरान में गहरी खुफिया और ऑपरेशन घुसपैठ के जरिए इजरायल में तैयारी कर रहा था। हालांकि, ईरानी अधिकारी पहले भी ये आशंका जता चुके हैं कि इजरायल ईरानी सुरक्षा बलों में घुसपैठ कर सकता है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इजरायल आमतौर पर मोसाद के कामकाज पर टिप्पणी नहीं करता और ईरान में चली रही कार्रवाईयों में दूसरी खुफिया एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं। फिर भी ऐसा माना जाता है कि मोसाद ने ईरानी जमीन पर लक्ष्यों की पहचान और ऑपरेशनों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ इजरायली अधिकारियों की टिप्पणियों से साफ होता है कि ईरान के भीतर एंटी-सबमरीन सिस्टम, मिसाइल गोदाम, कमांड सेंटर्स और चुनिंदा टॉप मिलिट्री और साइंटिस्टों को निशाना बनाकर एक साथ और बेहद सटीक हमले किए गए। ये हमले उन खुफिया गतिविधियों के जरिए मुमकिन हो पाए, जो काफी समय से ईरान के अंदर सक्रिय थीं। इजरायल के हमलों ने न सिर्फ ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि देश के भीतर उनकी खुफिया क्षमताओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया। उधर इजरायल के साथ हाल के संघर्ष के बाद ईरान में गिरफ्तारियों और मौत की सजा देने का मोसाद से बदला लेने का सिलसिला शुरू हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि इजरायल के एजेंटों ने ईरानी खुफिया सेवाओं में अभूतपूर्व ढंग से घुसपैठ कर ली है। इन अधिकारियों को इस बात का शक है कि ईरान के हाई प्रोफाइल नेताओं की जिस तरह से हत्या हुई है, उसमें इजरायली सेना को दी खुफिया एजेंटों से मिली जानकारियों का हाथ रहा होगा। इजरायल ने हाल के संघर्ष में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कई सीनियर कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी। ईरानी अधिकारियों ने इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में तीन लोगों को फांसी दे दी है। तेहरान ने संघर्ष विराम के एक दिन बाद जहां 3 मोसाद जासूसों को फांसी दी वहीं सेना ने 700 से अधिक इराकी संबंध रखने वाले जासूसों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा ईरान ने यह भी कहा है कि सुरक्षा एजेंसियें ने हाल के हफ्तों में तेहरान और अन्य शहरों में मोसाद एजेंटों द्वारा संचालित कई भूमिगत ड्रोन सुविधाओं को भी नष्ट कर दिया है। इन तीन मोसाद एजेंटों को ईरानी शहर उरमिया में फांसी दी गई। ईरानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को बरकरार रखा जिसके बारे में उनका कहना है कि यह व्यापाक कानूनी कार्रवाई के बाद हुआ था। तीनों लोगों की पहचान इदरीस अली, आजाद शोजाई और रसूल अहमद रसूल के रूप में हुई है। उन पर आरोप था कि तीनों लोगों ने इजरायल की मोसाद के सहयोग करके प्रतिष्ठित ईरानी हस्तियों के लिए ईरान के अंदर ही बम और विध्वंस के सामान की तस्करी की। ईरानी टीवी रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायिक रिकार्ड बताते हैं कि इन व्यक्तियों ने पड़ोसी देश में एक प्रमुख मोसाद एजेंट के माध्यम से पेय पदार्थों की तस्करी की और तदनुसार किसी ईरानी व्यक्ति की हत्या कर सकते थे। जैसा मैंने कहा ईरान ने मोसाद से बदला लेना शुरू कर दिया है और घर के अंदर दुश्मनों की सफाई शुरू कर दी है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 3 July 2025
ईरान और आईएईए के बीच तनातनी
ईरान और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने भरोसे की कमी और बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के डायरेक्टर जनरल रफाएल ग्रोसी की संभावित यात्रा से साफ इंकार कर दिया। अरागची ने यह भी साफ किया कि ईरान एक नया कानून लागू करने जा रहा है, जिसमें खास शर्तें पूरी होने तक आईएईए से सहयोग रोकने की बात है। उधर, ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ नाराजगी को देखते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसकी निंदा की है और आईएईए के काम का खुलकर समर्थन किया। आईएईए के लिए ईरान का यह सख्त रुख उसके परमाणु ठिकानों पर हुए इजरायल और अमेरिका के हमलों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिससे आगे परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ी निगरानी और ज्यादा पेचीदा हो सकती है। आईएईए प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने 24 जून को ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम की घोषणा के बाद अब्बास अरागची से मिलने और आईएईए-ईरान की बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने 26 जून को सरकारी चैनल आईआरआईएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा ः इस वक्त हमारा बिल्कुल भी कोई इरादा नहीं है कि हम रफाएल ग्रोसी को बुलाएं। वह हमारे परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इजरायल के हमलों से हुए ऩुकसान का आकलन करना चाहते हैं। उन्होंने कहा ग्रोसी ने अपनी रिपोर्ट में ईमानदारी से काम नहीं लिया। जब हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ तब एजेंसी ने उस हमले की निंदा तक नहीं की। अरागची ने यह भी बताया कि ईरान ने आईएईए के साथ सहयोग रोकने के लिए एक नया कानून पारित किया है। इस मामले पर एक विधेयक संसद से पास हुआ, गार्डियन काउंसिल से मंजूरी भी मिल गई है और अब यह कानून बन चुका है, जिसे हमें मानना ही पड़ेगा। अमेरिका ने ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ उठ रही आवाजों पर सख़्त रुख़ अपनाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा-ईरान में आईएईए के महानिदेशक रफाएल ग्रोसी की गिरफ्तारी और फांसी की मांगें अस्वीकार्य हैं और इनकी निंदा की जानी चाहिए। हम ईरान में आईएईए के अहम जांच और निगरानी काम का समर्थन करते हैं। बता दें कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जिसे दुनिया के एटम्स फॉर पीस एंड डवेलपमेंट के नाम से भी जाना जाता है। यह परमाणु क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मुख्य केंद्र है, जो अपने सदस्य देशों और दुनियाभर के कई साझेदारों के साथ मिलकर परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, भरोसेमंद और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। 2018 में अमेरिका के इस संगठन से बाहर होने के बाद और नए प्रतिबंधों के बाद ईरान ने समझौते की शर्तों का पालन कम कर दिया। उसने यूरेनियम संवर्धन की सीमा बढ़ा दी। अमेरिका के ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी के बाद अब यह संभावना तय है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा और जल्द ही हमें यह जानकारी मिल सकती है कि ईरान अब परमाणु शक्ति बन गया है और जिस दिन यह घोषणा हुई उसी दिन से पूरी दुनिया की राजनीति बदल सकती है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 1 July 2025
भारत में एफ-35बी का उतरना रहस्यमय
केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर कुछ दिन पहले शनिवार के दिन रात एक अत्याधुनिक ब्रिटिश स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 बी की इमरजैंसी लैंडिंग ने न सिर्फ हमारी सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अटकलों का बाजार भी गर्म कर दिया। यह वहीं एफ-35 बी है जिसे अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है और जो नाटो देशों का राजनीतिक हथियार माना जाता है। यह अमेरिका का सबसे आधुनिक पांचवीं जेनरेशन का एडवांस जैट फाइटर है, जिसे अमेरिका भारत को बेचने का प्रयास व दबाव डाल रहा है। लैंडिंग का कारण ः ईंधन या तकनीकी गड़बड़ी या फिर भारत की जासूसी? शुरुआती रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि विमान का ईंधन खत्म होने के कारण इसे लैंडिंग करनी पड़ी। लेकिन बाद में सामने आया कि हाइड्रोलिक सिस्टम में गंभीर खराबी भी आ गई थी और यह तकनीकी गड़बड़ी इतनी गंभीर थी कि अब तक विमान उड़ान नहीं भर सका है और अभी भी तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर खड़ा है। रायल नेवी के युद्धपोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स से रातोंरात विशेषज्ञों को हेलीकॉप्टर के जरिए भेजा गया ताकि मरम्मत तुरन्त शुरू हो सके। लैंडिंग के बाद विमान से एक पल के लिए भी दूर नहीं होना चाहता पायलट। जब तकनीकी की टीम नहीं पहुंची वह एयरसाइड पर ही विमान के पास एक कुर्सी पर बैठा रहा। इसी दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटिड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ने विमान को ट्रैप करके उसकी पहचान कर ली। इस एफ-35 बी को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग साजिश की थ्योरी चल रही है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों और वेरिफाइड अकांट्स का कहना है कि यह भारतीय वायु सुरक्षा प्रणाली की परख भी हो सकती हैö जैसे यह देखना कि भारत के राडार इस स्टेला विमान को पकड़ सकते हैं या नहीं? विशेषकर जब तक भारत में हाल ही में आपरेशन सिंदूर के तहत चीन और पाकिस्तान के पास आए ड्रोन और मिसाइलों को रोककर अपनी एयर डिफेंस क्षमता का प्रदर्शन किया है। क्या इमरजेंसी थी या? कोई रणनीतिक योजना? इस सवाल का कोई आधिकारिक जवाब अब तक नहीं मिला है। लेकिन भारत की सतर्कता ने एक बात तो साफ कर दी कि भारतीय एयरफोर्स और एटीसी की प्रतिािढया तेज, सटीक और पेशेवर थी। ब्रिटिश नौसेना पहले जैट को हैंगर में नहीं ले जाना चाहती थी। उन्हें डर था जैट की तकनीकी जानकारी दूसरे लोग देख सकते हैं। दो सप्ताह इंकार के बाद ब्रिटेन ने आखिरकार फंसे विमान को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के हैंगर में शिफ्ट करने की सहमति दे दी। ब्रिटिश नेवी को डर है कि कहीं भारत या दूसरे मित्र देश (रूस) जैट की खास तकनीक को न देख सकें और उसे एनालाइन करके कापी न कर लें। एफ-35बी पांचवीं पीढ़ी का अमेरिकी निर्मित रटेल्स फाइटर जेट है और सबसे उन्नत स्टेन्थ फाइटर जेट है। इतिहास का सबसे महंगा फाइटर जेट प्रोग्राम है। एफ-35बी मल्टी रोल वाला विमान है और ये हवाई, जमीनी जंग में मदद और इलैक्ट्रोनिक युद्ध में महारत रखता है। ये इलैक्ट्रानिक युद्ध, खुफिया जानकारी जुटाने, हवा से जमीन और एयर टू एयर में एक साथ मिशन चलाने की क्षमता रखता है। इसके सैंसर से जमा हुई जानकारी अपने कमांड सेंटर को सुरक्षित भेज सकता है।
- अनिल नरेन्द्र
Saturday, 28 June 2025
इजरायल-ईरान युद्ध के क्या निकले नतीजे
इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग के क्या नतीजे निकले? इस जंग में तीन प्रमुख देश शामिल थेö इजरायल, ईरान व अमेरिका। इसके तीन ही प्रमुख किरदार थे... अयातुल्ला अली खामेनेई, बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रंप। अगर हम किरदारों की बातें करें तो सबसे बड़े हीरो रहे अयातुल्ला खामेनेई। न सिर्फ उन्होंने इजरायल को उनके इतिहास में पहली बार ऐसी मार मारी की उसे अपने असितत्व को बचाने के लिए ट्रंप के आगे भीख मांगनी पड़ी। बता दें कि इजरायल ने 12 दिन के इस युद्ध को दो उद्देश्यों से शुरू किया था। पहला ः ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म करा जाए। दूसरा उद्देश्य था कि ईरान से अयातुल्ला रेजीम को खत्म करके अपने पिठ्ठओं को बैठाना। इजरायल दोनों मामलों में नाकाम रहा। ईरान ने इजरायल सेना पर तबाड़तोड़ जवाबी हमला किया कि उसके अस्तित्व पर ही खतरा हो गया और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ट्रंप की शरण में जाना पड़ा। रहा सवाल सत्ता परिवर्तन का तो ईरान पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हो गया और मजबूत हो गया। इजरायल की मध्य पूर्व में बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो गई। और जहां तक परमाणु कार्पाम रोकने का सवाल है बेशक अमेरिका ने ईरान के कुछ परमाणु संयंत्रों पर जबरदस्त हमले किए पर वह ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म नहीं कर सके। ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। अमेरिकी पेंटागन से जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है अमेरिका और इजरायल के हमले से ईरान का परमाणु कार्पाम पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि ट्रंप इसे फेक न्यूज कहते हैं। अब बात करते हैं इजरायल और नेतान्याहू की। नेतान्याहू ने इजरायल को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है जितना उसको 70-75 वर्षों के इतिहास में किसी ने नहीं पहुंचाया। इसने इजरायल के मध्य पूर्व में न केवल धौंस को ही खत्म कर दिया बल्कि दुनिया को यह साबित कर दिया कि वह अभेद देश नहीं, उस पर भी हमले हो सकते हैं। इजरायल की चौधराहट हमेशा के लिए खत्म हो गई है। नेतान्याहू चले तो खामेनेई को हटाने कहीं खुद को न हटना पड़ जाए? अब बात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। वह बार-बार झूठे साबित हो चुके हैं पर उनके सीज फायरों (युद्ध विराम) की घोषणाएं भी मजाक बनकर रह गई हैं। उल्लेखनीय है कि संघर्ष के 12वें दिन ट्रंप के सीजफायर ऐलान के कुछ ही घंटों में इजरायल और ईरान ने फिर से हमले करने शुरू कर दिए। यह खुशी की बात है कि फिलहाल युद्ध विराम लागू है, कितने दिनों तक रहता है यह कहना मुश्किल है। जहां तक ट्रंप के सीजफायर की बात है तो आपरेशन सिंदूर संघर्ष को रुकवाने का श्रेय वह अब तक 17 बार ले चुके हैं जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसे ही ट्रंप ने रूस-पोन के युद्ध विराम की झूठी घोषणा की थी किन्तु यह संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी सीजफायर घोषणाओं को भी नोबेल पुरस्कार के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हैं। हालांकि तथ्य यह है कि नोबेल पुरस्कार तत्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। कुल मिलाकर ईरान और अयातुल्ला का पलड़ा सबसे भारी रहा। मैंने लिखा था कि ईरान बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा यह सत्य होता जा रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 26 June 2025
ईरान के पास पलटवार के विकल्प
रविवार सुबह इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका के सीधे कूदने से पूरे विश्व में चिन्ता की लहर दौड़ गई। घोषित रूप से अमेरिका ने ईरान के परमाणु उपामों को निशाना बनाया और इसकी आशंका संघर्ष की शुरुआत से ही जताई जा रही थी। अमेरिका ने अपने सबसे दूसरे बड़े बम कल्संटर बम जो कि बी-2 बॉम्बर से फेंका गया या इस्तेमाल करके अब ईरान के लिए जवाबी कार्रवाई अपनी पूरी ताकत के साथ करने का रास्ता खोल दिया। इजरायल और अमेरिका दो प्रमुख लक्ष्य के साथ इस संघर्ष में उतरे थे। ईरान का परमाणु कार्पाम का पूरी तरह से खात्मा और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के शासन का अंत। हमें नहीं लगता कि अमेरिकी बमबारी के बाद भी वह अपने इन लक्ष्यों में से कोई भी लक्ष्य पूरा होने के करीब पहुंचा। आज ईरान को अमेरिका को भी मुहंतोड़ जवाब देने का मौका मिल गया। जब से इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु स्थलों पर बम फेंके हैं और युद्ध शुरू किया है। तब से ईरान के सर्वोच्च नेता से लेकर कई अधिकारियों ने अमेरिका को इस युद्ध से दूर रहने के कहा था। अब देखना है कि ईरान के पास जवाबी कार्रवाई करने के विकल्प क्या हैं? ईरान होर्मूज जलडमरूमध्य को को निशाना बना सकता है। ईरान फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। बता दें कि वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल तेल व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत इसी होर्मूज के जरिए ही होता है। इसका दुनिया पर क्या परिणाम होगा कल्पना भी करना मुश्किल है। दूसरा ः अमेरिकी ठिकानों और सहयोगियों पर हमला कर सकता है ईरान। अमेरिका ने इस क्षेत्र में हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं। इनमें कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में स्थायी अड्डे शामिल हैं। इन ठिकाने पर इजरायल जैसे ही अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्था है। लेकिन मिसाइलों की बौछार या सशस्त्र ड्रोनों के झुंडों से पहले अलर्ट के लिए बहुत कम समय होगा। ईरान उन देशों में प्रमुख तेल और गैस संयंत्रों पर भी हमला कर सकता है। ऐसा करके ईरान युद्ध में अमेरिका की भागीदारी के लिए इन देशों को सबक सिखाना चाहेगा। इजरायल अपनी प्रवासियों-हिजबुल्ला, हमास, हूती से भी अमेरिका और इजरायल पर हमले करवा सकता है। ईरान ने अमेरिकी हमलों की कड़ी निन्दा की है और इसे अपमानजनक बताया है। ईरान ने दूरगामी नतीजों की चेतावनी भी दी है। ईरान को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जवाब देने का हक है और वह इजरायल के साथ अमेरिका को भी निशाना बना सकता है। अव्वल तो ट्रंप के संघर्ष में कूदने की अमेरिका में ही निन्दा हो रही है। विपक्षी दल युद्ध भड़काने वाले इस एकतरफा कदम की तीखी आलोचना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इजरायल में नेतान्याहू की और अमेरिका में ट्रंप की सत्ता को ही चुनौती मिल सकती है। रहा सवाल ईरान का और अयातुल्ला अली खामेनेई को सत्ता से हटाने के लक्ष्य का। सवाल है आज ईरान एकजुट हो गया है और पूरी ताकत से अयातुल्ला खामेनेई के पीछे खड़ा है। एक के बाद एक महामारी और युद्धों से जूझती जा रही दुनिया का सबसे ज्यादा स्थायित्व और शांति की जरूरत थी लेकिन डर है कि अमेरिकी हमले ने ऐसी किसी उम्मीद पर पानी फेर दिया है। यही नहीं पूरे विश्व को तीसरे महायुद्ध के दरवाजे पर ला खड़ा कर दिया है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 19 June 2025
क्या ईरान मध्य-पूर्व एशिया का नया सुपर पावर बनेगा
शुक्रवार को इजरायल ने ईरान के खिलाफ यह कहते हुए बड़े हमलों को अंजाम दिया कि ईरान उनके लिए और दुनिया के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। इसी उद्देश्य को बताते हुए इजरायल ने तेहरान पर ताबड़तोड़ हमला किया। इजरायल और उसके समर्थक देशों ने सोचा था कि इस हमले के बाद जिसमें उसने ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशीप व परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी सोचा कि ईरान अब घबराकर चुप बैठ जाएगा पर इतनी बर्बादी के 24 घंटे के अंदर-अंदर ईरान ने इजरायल पर इतना जबरदस्त जवाबी हमला किया कि इजरायल-अमेरिका तमाम साथी तिलमिला गए। इजरायल के शुक्रवार को किए गए हमले के जवाब में ईरान ने शनिवार को ही जवाबी हमला कर दिया। इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) के मुताबिक ईरान ने शनिवार देर रात करीब 24 घंटे में 150 से ज्यादा इजरायली ठिकानों को निशाना बनाया और तब से लेकर इस लेख लिखने तक ईरान इजरायल पर अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों के जरिए ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। ईरान ने इजरायल के कई महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को सीधा निशाना बनाया है, इनमें सेना का हेडक्वार्टर से लेकर वाइजमैन सेंटर जहां से इजरायल सारी सैनिक कार्रवाईयां तय करता है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के निवास तक को नहीं छोड़ा। दरअसल ईरानी मिसाइलें इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम को गच्चा देकर अपने निशाने पर पहुंच गई। इससे सारी दुनिया चौंक गई। ईरान ने साबित कर दिया कि उसकी टेक्नोलॉजी अमेरिका, रूस और चीन के लगभग बराबर पहुंच गई है। इसी से इजरायल और अमेरिका में घबराहट पैदा हो गई है। यही नहीं अन्य अरब देशों में भी दहशत पैदा हो गई है। ईरान दरअसल पिछले बीस-पच्चीस साल से इस लम्हे की तैयारी कर रहा था। इजरायल का ईरान पर हमला करने के पीछे कई उद्देश्य थे। दरअसल वो चाहते हैं कि ईरान में इन आयतुल्ला रैजीम का तख्ता पलट करवा दें और अपनी मनपसंद, हमदर्द सरकार को सत्ता सौंप दे। इस मकसद में ईरान के अंदर से भी उसको मदद मिल रही है। मौसाद ने ईरान के अंदर कई स्लीपर सेल तैयार कर लिए हैं जो आयतुल्ला खामेनेई सरकार के खिलाफ इजरायल के लिए काम करते हैं। फिर शाह रजा पल्लवी के समर्थक अभी भी ईरान में मौजूद हैं। शुक्रवार को जब इजरायल ने पहली बार ईरान पर हमला किया था तो उसमें ईरान के अंदर ड्रोनों से हमला किया गया था। इसका मतलब है कि मौसाद ने ईरान के अंदर ही ड्रोन फैक्ट्री तैयार कर ली थी। ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशिप की पुख्ता जानकारी भी रही। ईरानी मौसाद एजेंटों ने इजरायल को जानकारी दी होगी तभी तो मौसद ने ठीक ठिकानों पर हमला किया। इस बीच इजरायल सरकार ने ईरानी लोगों से खामेनेई को सत्ता के विरोध का आ"ान किया है। इसके लिए इजरायल की ओर से फारसी भाषा में संदेश जारी किए जा रहे हैं। इस बीच यह भी संकेत मिला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या करने की इजरायल की योजना पर रोक लगा दी है। कुल मिलाकर जिस तरीके से ईरान इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा जो रूकने के नाम नहीं ले रहे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि मिडल ईस्ट में एक नया पावर सेंटर ईरान बनने जा रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 17 June 2025
अगर जंग बढ़ी तो क्या होगा?
पहले से युद्धरत इजरायल ने ईरान के परमाणु व सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसमें कई शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर मारे गए हैं। अपने लिए युद्ध का न केवल एक मोर्चा खोल दिया है बल्कि यूं कहें कि न केवल पश्चिम एशिया को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एक खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल, इजरायल का कहना है कि यह ऑपरेशन राइजिंग लायन ईरान की कथित परमाणु हथियार महत्वाकांक्षाओं को विफल करने के लिए किया गया है। इजरायल के हमले के जवाब में पावार रात ईरान ने अपना जवाबी ऑपरेशन लांच किया। इजरायल में राजधानी तेल अवीव, यरूशलम में कई जगहों पर कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गईं और ड्रोन से हमला किया। सोशल मीडिया में इजरायल ईरान के हमले से हुई बर्बादी की कई तस्वीरें आई हैं। ईरान ने दावा किया है कि उसने इजरायल के मिलिट्री कमांड सेंटर जहां से इजरायल के सारे हमले आपरेशन तय किए जाते हैं उसको भी नष्ट कर दिया है। इजरायल का शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम कई मिसाइलों और ड्रोन को गिरा सका पर बहुत से मिसाइलें और ड्रोन सटीक अपने निशाने पर लगे। अब इजरायल की बारी है और फिर ईरान उसका जवाब देगा। ईरान बेशक यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्पाम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है लेकिन उस पर गुप्त ढंग से परमाणु कार्पाम चलाने के जो आरोप लगते रहे हैं, वे आशंकाएं भी पैदा करता है। इसके अतिरिक्त ईरान की ओर से बार-बार यरूशलम को नष्ट करने की धमकियां और उसके द्वारा समर्पित हमास, हिजबुल्ला व हुती जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इजरायल की चिंताओं को और ठोस करती है। फिर सवाल केवल इजरायल की सुरक्षा का नहीं है, एक परमाणु संपन्न ईरान पूरे पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को बिगाड़ने का बताया जा रहा है। फिर सवाल यह भी किया जा सकता है कि पाकिस्तान भी तो एक इस्लामी परमाणु संपन्न देश है तो उससे न तो अमेरिका को कोई चिंता है और न ही इजरायल को। क्या हम यह मानकर चलें कि पाकिस्तान गुप्त रूप से अमेरिका और इजरायल के साथ है। सोशल मीडिया में तो यहां तक दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के करीबी संबंध हैं और सूचनाओं के आदान-प्रदान में साझे हैं। जब पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं तो ईरान से क्यों? विगत दशकों में हमने पश्चिम एशिया में बहुत खून-खराबा देखा है। लाखों बेगुनाह मारे जा चुके हैं। ऐसे में अगर इजरायल और ईरान के बीच युद्ध और बढ़ता है तो बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे। इराक व अफगानिस्तान की तबाही लोग भूले नहीं हैं और बीच में बसे इजरायल और ईरान की तबाही कोई नहीं चाहेगा। अगर सोशल मीडिया पर भरोसा किया जाए तो कुछ मध्य एशिया विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ईरान में अयातुल्लाह रेजीम को खत्म करके अपने हित वाली सरकार बनाना चाहता है। ईरान को बम बनाने की जल्दी है, जबकि अमेरिका के सहयोगी देश ऐसा नहीं चाहते। ईरान की इस कोशिश पर इजरायल को सख्त आपत्ति है और उसका मानना है कि अगर ईरान का परमाणु कार्पाम अभी न रोका गया तो बहुत देर हो जाएगी और ईरान एक परमाणु संपन्न देश बन जाएगा। जो इजरायल के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा। इसलिए वह जल्दी में है। आज युद्ध और युद्ध का माहौल दोनों से बचने की जरूरत है। कुछ लोगों के अहंकार की वजह से आम लोगों का खून नहीं बहना चाहिए। इसके साथ ही यह मुस्लिम देशों के लिए भी अमन-चैन से सोचने का समय है। उन्हें मजहब की बुनियाद पर किसी भी गुटबाजी या जंग की हिमायत से बचना होगा। रही बात इजरायल की तो अमेरिका ऐसे हर मोर्चे पर पल्ला झाड़कर खड़ा हो जाता है। यह किसी से छिपा नहीं कि इस लड़ाई में अमेरिका पूरी ताकत से इजरायल के साथ खड़ा है। बल्कि हम यह कहें कि यहां सारी खुराफात के पीछे अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हाथ है। उसका पिट्ठू नेतान्याहू बगैर अमेरिका के एक कदम नहीं उठाता है। ट्रंप को लगता है कि इस बात की भी कतई चिंता नहीं कि ईरान-इजरायल युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में न बदल जाए, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऊपर वाला सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे और जंग रोकने में मदद करे।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 14 June 2025
डिप्लोमेसी या डबल गेम?
अमेरिका ने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की खुलकर तारीफ की है, बल्कि पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिका आमंत्रित किया है। इससे ठीक पहले असीम मुनीर ने एक ऐसा बयान दिया था, जिसे भारत ने जम्मू-कश्मीर में हुए 22 अप्रैल के आतंकी हमले से जोड़कर देखा। दरअसल ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के साथ ही यह देखा जा रहा है कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का ट्रंप प्रशासन का रुख कुछ बदला हुआ है। गत बुधवार को यह काफी स्पष्ट भी हो गया कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका का रवैया बदला हुआ है। पिछले कुछ घंटों में अमेरिकी सरकार ने तीन स्तरों पर ऐसे संकेत दिए हैं जो भारत की चिंताओं को बढ़ाते हैं। पहलाöअमेरिकी सेना के केंद्रीय कमांड (यूएस सेंटकॉम) के प्रमुख माइकल कुरिल्ला ने कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पाकिस्तान एक जबरदस्त साझीदार है। दूसराö14 जून को अमेरिकी सेना दिवस की परेड में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया है। तीसरा-व्हाइट हाउस ने संकेत दिए है कि कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हस्तक्षेप कर सकते हैं। अमेरिकी सेंटकॉम के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अमेरिकी सरकार के कानूनी बाडी हाउस कमेटी आन आर्मड सर्विसेज की एक सुनवाई में कई बातें कही। हमें भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रिश्ते बनाकर रखने की जरूरत है। हम ऐसा विचार नहीं रख सकते कि अगर भारत के साथ संबंध रखना है तो हम पाकिस्तान के साथ नहीं रख सकते। पाकिस्तान के साथ हमारी काफी जबरदस्त साझेदारी है। पाकिस्तान ने आईएसआईएस-खोरासान के आतंकियों के खिलाफ काफी कार्रवाई की है, दर्जनों आतंकवादियों को मारा है। अमेरिका के साथ सूचनाएं साझा की है और बड़े आतंकियों को पकड़ने में मदद की है। सेंटकॉम चीफ ने असीम मुनीर का भी जिक्र करते हुए तारीफ की है कि कैसे सबसे पहले उन्होंने सरीफुल्लाह की गिरफ्तारी की सूचना उनको दी। सेंटकॉम प्रमुख ने पाकिस्तान सरकार के इस तर्क पर भी मुहर लगाई कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई तो लंबे समय से लड़ी जा रही है। उसमें भी वह प्रभावित हुए हैं। उक्त बयान के कुछ घंटों के बाद ही सूचना आई कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को अमेरिकी सैन्य समारोह में आमंत्रित किया गया है। यह समारोह 14 जून को है। ये वही मुनीर हैं जिन्होंने 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में एक भाषण में कश्मीर को पाकिस्तान को अपनी अपनी जीवन रेखा बताया था। उन्होंने टू नेशन थ्योरी का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिमों को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे हिंदुओं से अलग हैं। मुनीर के इस भड़काऊ बयान के बाद ही 22 अप्रैल को बारीसरन, पहलगाम में आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक शहीद हो गए। आखिर अमेरिका क्या कहना चाहता है? असीम मुनीर जैसे विवादित व्यक्ति को बुलाना भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। हालांकि आज भारत वैश्विक मंचों पर बहुत ऊंचे स्थान पर है। एक विचार है कि अमेरिका का असीम मुनीर को बुलाना और पाकिस्तान को अभूतपूर्व साझेदार कहना भले ही रणनीतिक हो लेकिन भारत के लिए ये साफ संकेत है कि वाशिंगटन अब इस क्षेत्र में बैलेंस बनाकर चलना चाहता है। इससे भारत की नई थर्ड पार्टी पॉलिसी को चुनौती मिलती है। हालांकि दोनों देशों से संबंध बनाएं रखने में अमेरिका की पुरानी नीति रही है, फिर भी यह कदम कूटनीतिक रूप से भारत के लिए असहज जरूर हैं। टैंशन नहीं, लेकिन सतर्कता जरूरी है। अमेरिका की मंशा और सोच पर कई सवाल खड़े होते हैं। फील्ड मार्शल मुनीर के बयान पहलगाम आतंकी हमले से जुड़े हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका की यह डिप्लोमेसी है या डबल गेम?
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 12 June 2025
पाक को अलग-थलग करने में हम विफल रहे
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीते 9 मई को, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज के रूप में एक अरब डॉलर की किश्त की मंज़ूरी दे दी। ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को 40 बिलियन डॉलर देने का निर्णय लिया... फिर एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पाकिस्तान को 800 बिलियन डॉलर दिए और कुछ दिन पहले 4 जून को पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया। पाकिस्तान के संदर्भ में हुई इन सभी डेवलपमेंट्स को कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सामने रखा है और भारत की विदेश नीति के पतन से जोड़कर देखा है। साथ ही उन्होंने वैश्विक समुदाय पर भी सवाल खड़े किए हैं।
पाकिस्तान इन नियुक्तियों को एक बड़ी जीत के रूप में पेश कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है यह उनके देश के लिए बहुत गर्व की बात है। उन्होंने एक्स पर किए एक पोस्ट में लिखा है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महत्वपूर्ण नियुक्तियां प्रमाणित करती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की आतंकवाद-रोधी कोशिशों पर पूरा भरोसा है। शरीफ ने कहा पाकिस्तान उन देशों में से एक है जो आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित है। आतंकवाद के कारण अब तक देश में 90,000 लोगों की जान जा चुकी है। देश को 150 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हो चुका है। पर भारत ने इसे लेकर खासी आपत्ति जताई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बीते 22 अप्रैल को निर्दोष, निहत्थे पर्यटकों पर हुए हमले के लिए भारत ने पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है। इससे पहले भी अलग-अलग म़ौकों पर, मसलन साल 2016 में उरी में भारतीय सैनिकों पर हमला, साल 2019 में पुलवामा में हुआ विस्फ़ोट या फिर साल 2008 में मुंबई के होटलों पर हुए हमले .साबित करते हैं कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान है। उनकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। ऑपरेशन सिंदूर भारत को मजबूरी में करना पड़ा। तीन-चार दिन के संघर्ष के बाद भारतीय सांसदों के सात अलग-अलग शिष्टमंडलों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा किया। पीआईबी की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक इस दौरे का मकसद ऑपरेशन सिंदूर और सीमापार आतंकवाद के खिलाफ भारत की निरंतर लड़ाई के बारे में सदस्य देशों को अवगत कराना था, जहां एक तरफ भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों के समक्ष सीमापार आतंकवाद का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान को घेरने की कोशिश में जुटा था, वहीं पाकिस्तान को इस यूएनएससी के आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुन लिया गया। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के डिप्लोमेटिक एडिटर सुभाजित राय ने लिखा है-शायद इन्हीं कारणों से भारत में एक असहजता की स्थिति नजर आ रही है। राजस्थान के एक पुलिस, सिक्यूरिटी एंड क्रिमिनल जस्टिस के इंटरनेशनल अ़फेयर्स असिस्टेंट प्ऱोफेसर विनय कौड़ा का कहना है कि पाकिस्तान जैसे देश को यूएनएससी जैसी संस्था में कोई भी ज़िम्मेदारी देना केवल कूटनीतिक संवेदनहीनता नहीं बल्कि इस पूरे ढांचे की खामी को उजागर करता है। पाकिस्तान को इन समितियों का हिस्सा बनाना उसी देश को आतंकवाद पर निगरानी की ज़िम्मेदारी सौंपने जैसा है, जिस पर स्वयं आतंकवाद को पनाह देने, जन्म देने और उसे विदेश नीति के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप हैं। ये भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद-रोधी ढांचे की विश्वसनीयता के लिए भी एक चिंता का विषय है। पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति कोई नया मुद्दा नहीं है, यह ऐतिहासिक तथ्यों और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दर्ज है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादियों को शरण देना हो, जैसे ओसामा बिन लादेन या हा]िफज़ सईद या फिर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को खुला समर्थन देना हो। पाकिस्तान ने लगातार आतंकवाद को अपनी राजनीति का उपकरण बनाया है, विशेष रूप से भारत के विरुद्ध। जेएनयू में असिस्टेंट प्ऱोफेसर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ये खबर भारत के लिए चिंता पैदा करने वाली है। ऐसी नियुक्तियां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों की तऱफ से हरी झंडी मिलने के बाद ही होती हैं और हरी झंडी देने का मतलब है ये स्वीकारना की पाकिस्तान का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है। हमारी कोशिश रही है कि आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका रही है पर दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ऐसा शायद नहीं मानते। जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान को सर्टिफिकेट देना उसकी बड़ी उपलब्धि रही है, वहीं यह भारत की एक बड़ी विफलता मानी जाएगी। हमारी विदेश नीति एक बार फिर नाकारा साबित होती है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 10 June 2025
मस्क बनाम ट्रंप बनाम अडानी
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आजकल प्रमुख उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं। पहले बात करते हैं एलन मस्क की। दुनिया के सबसे अमीर शख्स में से एक एलन मस्क और सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरा टकराव हो गया है। दोनों के बीच की असहमति अब पूरी तरह जुबानी जंग में तब्दील हो चुकी है। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर उनमें तलवारें खींची हुई हैं। मस्क की तरफ से ट्रंप के बार-बार टैक्स बिल के आलोचना किए जाने पर ट्रंप ने बेहद नाराजगी जताई। ट्रंप ने संघीय सरकार के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले एलन मस्क के कारोबारी सौदों को लेकर धमकी दी है। ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया वेबसाइट पर धमकी देते हए लिखा, अगर बजट में बात करनी है तो इसका सबसे आसान तरीका है एलन मस्क को मिलने वाली अरबों डालर की सब्सिडी और कांट्रेक्ट खत्म कर दिए जाएं। फिलहाल तो ट्रंप और मस्क के झगड़े के बाद मस्क की कंपनी टेस्ला के शेयर गुरुवार को 14 फीसदी गिर गए। हालांकि यह जंग एकतरफा का नहीं थी। ट्रंप के हमले के बाद मस्क ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाने तक की बात की और मांग कर दी। मस्क ने पलटवार करते हुए यहां तक कह दिया कि मैं न होता तो ट्रंप चुनाव हार जाते। उन्होंने ट्रंप पर बेवफाई का आरोप भी लगाया। यही नहीं मस्क ने कहा कि अब नई पार्टी बनाने का समय आ गया है जोकि 80 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करे। इस टकराव का असर अमेरिका की राजनीति, अंतरिक्ष कार्पामों और वैश्विक टेक जगत पर भी पड़ सकता है। इधर ट्रंप और उनकी एजेसियां भारत के बड़े उद्योगपति गौतम अडानी के पीछे भी हाथ धोकर पड़ी हुई है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिकी अभियोजक जांच कर रहा है कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अडानी की कंपनियों ने मुद्रा पोर्ट के रास्ते में ईरानी लिक्विडफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का आयात किया था। हालांकि अडानी एंटरप्राइजेस ने एक बयान में इस रिपोर्ट को बेबुनियाद और नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा, हमें इस मामले पर अमेरिकी अधिकारियों की ओर से की गई किसी जांच के बारे में जानकारी नहीं है। वाल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि उसे गुजरात के मुद्रा बंदरगाह और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले टैकरों में कुछ ऐसे संकेत दिखे हैं, जो एक्सपर्ट्स के अनुसार प्रतिबंधों से बचने वाले जहाजों में आम होते हैं। अपनी रिपोर्ट में अखबार ने यह भी कहा कि अमेरिका का न्याय विभाग अडानी समूह की प्रमुख इकाई अडानी एंटरप्राइजेज को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई एलपीजी टैकरों की गतिविधियों की समीक्षा कर रहा है। ये जांच ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई में ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स की खरीद पर पूरी तरह रोकने का आदेश दिया था और कहा था कि जो देश या व्यक्ति ईरान से खरीददारी करेगा, उस पर तुरन्त से सेकेंडरी सेक्शंस लगाए जाएंगे। अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में लिखा कि एशिया के हमारे सबसे बड़े अमीर शख्स गौतम अडानी अपने खिलाफ अतीत में लगे आरोपों को खारिज करवाने की कोशिशों में जुटे हैं। बीते साल नवम्बर में ही गौतम अडानी पर अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वत का मुकदमा दायर किया गया था। अखबार ने लिखा है कि ब्रकलिन में अमेरिकी अटार्नी कार्यालय की ओर से की जा रही जांच अडानी के लिए समस्या साबित हो सकती है। वाल स्ट्रीट के अनुसार बीते साल की शुरुआत में अमेरिकी एजेंसियों ने मुद्रा पोर्ट से फारस की खाड़ी जाने वाले जहाजों की गतिविधियों को जांचा था। जहाजों को ट्रैक करने वाले एक्सपर्टस का कहना है कि ऐसे जहाजों में देखा गया है जो आवाजाही के दौरान अपनी पहचान स्पष्ट नहीं रखते। वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट पर अडानी समूह ने बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी है कि अडानी समूह की कंपनियों और ईरान एलपीजी के बीच संबंध का आरोप लगाने वाली वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट निराधार और नुकसान पहुंचाने वाली है। अडानी जानबूझकर किसी भी तरह के प्रतिबंधों से बचने का ईरानी एलपीजी से जुड़े व्यापार में संलिप्तता से साफ इंकार करते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 7 June 2025
न्यायपालिका में सवाल भ्रष्टाचार का
भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाओं का जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे पूरी व्यवस्था की अखंडता में विश्वास कम होता है। ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने पर एक गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यदि कोई जज सेवानिवृत्ति के तुरन्त बाद सरकार के साथ कोई अन्य नियुक्ति लेता है या चुनाव लड़ने के लिए बेंच से इस्तीफा देता है तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इसकी सार्वजनिक जांच होनी चाहिए। सीजेआई ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कहा कि जब भी भ्रष्टाचार और कदाचार के ये मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित उपाय किए हैं। इसके अलावा हर प्रणाली चाहे वह कितनी भी मजबूत क्यों न हो, पेशेवर कदाचार के मुद्दों के लिए अतिसंवेदनशील होती है। सीजेआई ने कहा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामलों से लोगों के मन में इसके प्रति विश्वास कम होता है। हालांकि, इस विश्वास को इन मुद्दों पर त्वरित निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई से दोबारा कायम किया जा सकता है। भारत में भी ऐसे मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित कदम उठाए हैं। सीजेआई की यह टिप्पणी इलाहाबाद के जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार आरोपों के मुद्दे पर आई। वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हर लोकतंत्र में न्यायपालिका को न केवल न्याय प्रदान करना चाहिए बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रख सकती है। हम सीजेआई के शब्दों के लिए उनकी सराहना करते हैं। अगर हम पिछले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना को छोड़ दें तो उससे पहले कई सीजेआई पर सत्ता की तरफ झुकने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ को तो सत्ता के हक में फैसले देने के लिए सेवानिवृत्त होने के बाद पुरस्कृत भी किया गया। प्रधान न्यायाधीश गवई ने भारतीय न्यायपालिका के भी जड़े जमा रही या जमा चुकी उन समस्याओं को दबे साफ शब्दों में स्वीकार किया। जिन्हें लेकर उंगुलियां उठती रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय और कुछ हाईकोर्टों के जजो के राजनीतिक दबाव में या निजी स्वार्थ साधने के मकसद से फैसले सुनाने को लेकर काफी असंतोष जाहिर किया जाता रहा है। कटु सत्य तो यह है कि राजनीतिक लाभ और सत्तापक्ष के दबाव से मुक्त हुए बिना न्यायपालिका सही अर्थों में अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह नहीं कर सकती। इसीलिए प्रधान न्यायाधीश का इस दिशा में प्रयास सराहनीय है। लोकतंत्र में न्यायपालिका पर जनता का विश्वास इसलिए भी बने रहना बहुत जरूरी है कि यही एक स्तंभ है जिस पर संविधान की रक्षा का दायित्व और राजनीतिक तथा व्यवस्थागत कदाचार पर नकेल कसने का मजबूत अधिकार है। चीफ जस्टिस गवई ने यह भी साफ कर दिया है कि देश में न तो कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया सबसे ऊपर है, सबसे ऊपर देश का संविधान है और देश संविधान से ही चलेगा। सीजेआई के वक्तव्यों की हम सराहना करते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 5 June 2025
यूक्रेन ने रूस में 4000 किमी घुसकर मारा
करीब तीन साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन ने रविवार को रूस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला (ड्रोन) किया। इसमें यूक्रेन के अनुसार रूस के सैन्य विमान तबाह करने का दावा किया गया है। हमले से हुए नुकसान की अनुमानित लागत 1.5 अरब पाउंंड (करीब 1.72 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा बताई गई है। यूक्रेन ने इस अभियान को ऑपरेशन स्पाइडर वेब का नाम दिया। उधर रूस पर हुए इस हमले को रूस का पर्ल हार्बट कहा जा रहा है। इस बीच रूस ने भी यूक्रेन पर अब तक का सबसे बड़ा हमला ड्रोन से किया है। 472 ड्रोन और 7 मिसालें दागी गईं। इस हमले में यूक्रेन के 12 सैनिक मारे गए और 60 से ज्यादा घायल हुए। रूसी मीडिया और युद्ध समर्थकों ने इसे रूस के लिए एविएशन का सबसे बड़ा काला दिन बताया और पुतिन से परमाणु हमले की मांग की। ड्रोन को ट्रकों में कंटनेर के जरिए रूस के अंदर ले जाया गया। एक ट्रक मुरमांस्क के ओलेनेर्गस्क में पेट्रोल पंप पर रूका था, जहां से ड्रोन निकालकर एयरबेस की ओर बढ़े। ड्रोन एफपी की तकनीक से लैस थे और सैटेलाइट से नियंत्रित हो रहे थे। बाद में इस कंटेनर को भी उड़ा दिया गया। रूस के बेलाया एयरबेस समेत कई एयरफील्डस को निशाना बनाया गया। हमला रूस के इरकुत्स्क क्षेत्र में हुआ जो यूक्रेन से 4 हजार किलोमीटर दूर है। जिन विमानों पर यूक्रेन ने हमला किया, वे परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थे। रूस की परमाणु नीति के अनुसार अगर किसी हमले से उसकी परमाणु क्षमता प्रभावित होती है तो वह परमाणु जवाब दे सकता है। इसीलिए पुतिन के समर्थक खुलेआम मांग कर रहे हैं कि रूस यूक्रेन पर परमाणु जवाबी हमला करे। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता होनी है। इससे पहले इस तरह का बड़ा हमला रूस पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। कुछ अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक में स्थित रूस के परमाणु बेस पर भी हमला हुआ है। यह बेस रूस की उत्तरी पलीर का मुख्यालय है। कोला प्रायद्वीप पर हुए विस्फोटों के बाद काले धुएं का वीडियो भी सामने आया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि वहां क्या निशाना बना। एक यूक्रेनी सैन्य अफसर ने बताया कि यह ऑपरेशन करीब डेढ़ साल की तैयारी के बाद अंजाम दिया गया। इसकी योजना खुद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की निगरानी में बनाई गई। इन हमले में इस्तेमाल ड्रोन यूक्रेन में विकसित और निर्मित थे, जो रूस की सीमा पर सटीकता से निशाना बनाने में सफल रहे। यह हमला रूसी डिफेंस को कमजोर करने के लिए था। इसके जरिए रूसी वायुसेना को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान होने का भी दावा किया जा रहा है। इस हमले में मिग और सुखोई जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान, निगरानी विमान और कुछ परिवहन विमानों को नष्ट करने की बात भी सामने आई है। रूस को जो नुकसान पहुंचा हो शायद विश्लेषक उसका आंकलन कर रहे हों या न कर रहे हों। लेकिन ऑपरेशन स्पाइडर वेब से एक महत्वपूर्ण संदेश सिर्फ न रूस बल्कि यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों को भी गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा कर रहे थे कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध को रूकवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। यह तो उल्टा बढ़ गया है और निहायत खतरनाक दौर में पहुंच गया है। ऊपर वाला दोनों रूस-यूक्रेन को सद्बुद्धि दे और इस युद्ध को रोकने का हरसंभव प्रयास करें।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 3 June 2025
रक्षा सौदों की आपूर्ति में देरी
पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को लेकर तीनों सेनाओं की हो रही सराहना के बीच वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने मानो एक बम फोड़ दिया है। वायुसेना प्रमुख ने रक्षा सौदे होने के बावजूद आपूर्ति में देरी पर खुलेतौर पर गंभीर चिंता का इजहार किया। भारतीय वायुसेना को लाइट काम्बेट एयराफ्ट (एलसीए) तेजस की आपूर्ति में हो रही देरी की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई बार हम रक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय जानते हैं कि ये उपकरण सिस्टम में समय पर नहीं आएंगे। वायुसेना प्रमुख ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि एक भी परियोजना समय पर पूरी नहीं हुई है। रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों और एजेंसियों को बेबाक संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि हम ऐसा वादा ही क्यों करें, जो पूरा नहीं हो सकता। वायुसेना प्रमुख ने पावार को शीर्ष उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना बैठक के एक सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। दुनिया फिलहाल जिस संवेदनशील दौर से गुजर रही है और भारत के सामने अपने कुछ पड़ोसी देशों के अस्थिर रुख की चुनौतियां खड़ी रहती हैं, वैसे में सुरक्षा का हर मोर्चा हर वक्त पूरी तरह चौकन्ना और दूरुस्त रहना एक अनिवार्य तकाजा है। रक्षा परियोजनाओं में देरी पर एयर मार्शल एपी सिंह की चिंता और सवाल वाजिब है। दोतरफा मोर्चे पर जूझ रही भारतीय सेना के आधुनिकता में तेजी लाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत भी रक्षा उत्पादन में तेजी लानी होगी। कटु सत्य तो यह है कि पिछले दस-ग्यारह सालों से केंद्र सरकार ने रक्षा उत्पादों की ओर ध्यान नहीं दिया है। हमारी वायुसेना में 200 फाइटर जेट्स की कमी पिछले कई सालों से चली आ रही है। एयर मार्शल एपी सिंह समय-समय पर चेताते भी रहे हैं। पर न तो रक्षा मंत्री ने कोई ध्यान दिया न केंद्र सरकार ने। हम अभी 10 साल पहले के दौर में हैं जहां तक काम्बेट एयराफ्ट का सवाल है और हमारे दुश्मन चीन 5वीं जेनेरेशन के फाइटर एयराफ्ट बना चुका है और पाकिस्तान को देने को तैयार है। भारतीय वायुसेना के पास 42.5 स्क्वाडन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 301 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तैनात मार्क ए की डिलीवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायुसेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही जिस तरह चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। रक्षा परियोजनाओं के तहत अगर किसी संदर्भ में वादे किए जाते हैं तो उन्हें समय पर पूरा करने को लेकर भी उतनी ही सत्यता होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी और संसाधनों के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता सबसे बेहतर समाधान है, लेकिन तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। एयर मार्शल एपी सिंह की पीड़ा को हम समझ सकते हैं। बावजूद इन कमियों के हमारे जवानों ने दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारतीय वायुसेना की है।
-अनिल नरेन्द्र
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