Tuesday, 28 February 2023

नया ट्रेंड : दो साल की सरकारें

इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् लोगों में अधिकारों को लेकर बढ़ती जागरुकता और जनमत के दबाव का नतीजा है कि दुनिया में लोकतांत्रिक सरकारें और उनके नेता अब तेजी से बदल रहे हैं। यूरोप के ज्यादातर देशों में हर दो साल में सरकार बदल रही है। इसका कारण है लोग दो साल से ज्यादा समय तक एक सरकार नहीं चाहते हैं। ब्रिटेन में 2022 में तीन प्राधानमंत्री बने। प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी में यह बात सामने आईं है। इसमें दूसरे विश्व युद्ध के बाद से 2022 तक ब्रिटेन के साथ ही यूरोपियन यूनियन के 22 देशों में सरकार के औसत कार्यंकाल का हिसाब लगाया गया। इसमें सामने आया कि ज्यादातर यूरोपीय देशों में दो साल में एक बार सरकार में बदलाव हो गया। बेल्जियम, फिनलैंड और इटली में सबसे कम कार्यंकाल वाली सरकारें रहीं। इन देशों में सरकारें औसतन एक साल भी नहीं चलीं। संविधान में तय कार्यंकाल से बहुत कम समय तक सरकारें चल सकीं। वहीं लग्जमबर्ग में सरकार का औसत कार्यंकाल सबसे ज्यादा साढ़े चार साल का रहा। हालांकि यह भी पांच साल के कार्यंकाल से कम रहा है। प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी में बहुमत जुटाकर भी सरकार में बदलाव हुए हैं। इसमें ब्रिटेन का उदाहरण दिया गया जहां 2022 में बिना चुनाव दो नए प्राधानमंत्री बने। यूरोप के सभी देशों में भी यही हुआ। ——अनिल नरेन्द्र

खबरों पर नहीं लगाएंगे रोक

सुप्रीम कोर्ट ने अडाणी-हिडनबर्ग मामले पर मीडिया पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। यह याचिका वकील एमएल शर्मा ने दायर की थी। प्राधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि हम मीडिया के खिलाफ कभी भी कोईं निषेधाज्ञा जारी नहीं करने जा रहे हैं। जब शर्मा ने यह कहते हुए अपने अनुरोध को दोहराया कि मीडिया सनसनी पैदा कर रही है, तो प्राधान न्यायाधीश ने दोहराया कि वाजिब बात कीजिए, मीडिया रिपोर्टिग पर रोक लगाने की बात मत कीजिए। उचित तर्व दें। मीडिया रिपोर्टिग पर रोक नहीं लगाईं जा सकती। प्राधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पीठ इस विवाद में जल्द ही आदेश पारित करेगी। पिछले हफ्ते न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाईं वाली पीठ ने अडाणी-हिडनबर्ग मामले में भारतीय निवेशकों की सुरक्षा के लिए नियामक तंत्र की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर सुनवाईं पूरी कर अपना पैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने प्रास्तावित समिति में शामिल करने के लिए सीलबंद लिफापे में वेंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए नामों को स्वीकार करने से भी इंकार कर दिया था। प्राधान न्यायाधीश की पीठ अडाणी मामले में कईं याचिकाओं पर एक साथ सुनवाईं कर रही है। जिसमें दो याचिकाओं में हिडनबर्ग के खिलाफ जांच के आदेश की मांग की गईं और दो याचिकाओं में अडाणी ग्राुप के खिलाफ जांच के आदेश की मांग के लिए दायर है। 24 जनवरी को हिडनबर्ग ने एक रिपोर्ट जारी कर अडाणी ग्राुप के खिलाफ कईं आरोप लगाए थे। जिसमें प्रातिभूतियों में हेरपेर जैसे गंभीर आरोप भी शामिल हैं।

प्रियंका ने क्यों छोड़ा यूपी का मैदान?

कांग्रोस संगठन में एक बड़े पेरबदल के तहत प्रियंका गांधी वाड्रा के उत्तर प्रादेश का प्राचार छोड़ने पर मुहर लगा दी गईं है। झारखंड के प्राभारी रहे अविनाश पांडे अब यूपी प्राभारी होंगे। कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी अब कांग्रोस के अखिल भारतीय प्राचार अभियान में जुटेंगी। प्रियंका गांधी ने अक्टूबर 2022 से ही कांग्रोस के प्राभारी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन इस पर अब मुहर लगी है। कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रादेश और उत्तर पूर्व के राज्यों में प्रियंका की वैंपेनिग के बाद ये साफ हो गया कि वो अब लोकसभा चुनावों में पाटा की स्टार प्राचारक के तौर पर दिखाईं देंगी। उत्तर प्रादेश विधानसभा चुनाव में कांग्रोस की बुरी हार के बाद उन्होंने कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रोस के लिए प्राचार किया था। कांग्रोस नेताओं का कहना है कि दोनों जगहों पर उनके प्राचार से पाटा को फायदा हुआ और उसे जीत मिली। एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि शायद अब वो भारत न्याय यात्रा में अपने भाईं राहुल गांधी का साथ देंगी। कांग्रोस के राजनीतिक पैसलों पर नजर रखने वालों का कहना है कि प्रियंका को यूपी का प्राचार काफी पहले छोड़ देना चाहिए था। उत्तर प्रादेश में प्राभारी रहते वो वुछ खास नहीं कर सकीं। ऐसे में सवाल है कि प््िरायंका गांधी से उत्तर प्रादेश का प्राचार होना राज्य की चुनावी राजनीति में उनकी नाकामी पर आधिकारिक मुहर है या फिर ये सोची समझी रणनीति है, जहां उन्हें यूपी की जगह उन राज्यों में जिम्मेदारी दी जाए जहां कामयाबी की संभावना ज्यादा है? जिस पाटा ने 1947 से 1989 के बीच वुछ वर्षो तक छोड़कर लगभग चार दशक तक यूपी में राज किया वो अब लोकसभा की एक सीट पर सिमट गईं है यह आज का कटु सत्य है। हालांकि प्रियंका के समर्थकों का कहना है कि यूपी में कांग्रोस काफी पहले से कमजोर हो गईं थी, ऐसे में महज तीन-चार साल में उनसे चमत्कार की उम्मीद वैसे की जा सकती है। लेकिन प्रियंका गांधी 1984 से राजीव गांधी के साथ अमेठी जाती रहीं हैं। भले सोनिया गांधी पूरे देश में प्राचार करने की वजह से वहां नहीं जा पती हों लेकिन प््िरायंका गांधी रायबरेली और अमेठी सीट पर प्राचार के लिए जरूर जाती थीं। इसका मतलब कम से कम दो सीटों पर तो कांग्रोस को जीतना चाहिए था। जब प््िरायंका के प्राभारी रहते कांग्रोस अमेठी हार गईं तो फिर उनके बने रहने का क्या तुक बनता है? ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रोस के अंदर एक बड़ा तबका है जो प््िरायंका गांधी के कामकाज के तरीके को पसंद नहीं करता है। वो कहते हैं पंजाब में कांग्रोस की जो दूरदशा हुईं उसके लिए पूरी तरह प्रियंका गांधी जिम्मेदार थीं। उन्होंने अमरिदर सिह को हटाकर चरणजीत सिह चन्नी को सीएम बनवाया। नवजोत सिह सिद्धू को काफी तवज्जो दी गईं। आखिरकार पंजाब कांग्रोस के हाथ से निकल गया। इसके लिए प्रियंका गांधी जिम्मेदार हैं क्योंकि पंजाब का सारा कामकाज वही देख रहीं थीं। ये ठीक है कि पूरे देश भर में प््िरायंका के प्राति एक आकर्षण है। लोग सभाओं में उन्हें देखने जाते हैं। वुछ लोगों को उनमें इंदिरा गांधी की झलक भी नजर आती हैं। लोग उनकी बात को सुनते भी हैं लेकिन प््िरायंका कांग्रोस को वोट दिला पाएंगी इसमें संदेह है। ऐसा भी लगता है कि प्रियंका इस बार लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। वुछ का यह भी मानना है कि हो सकता है कि मोदी के खिलाफ वाराणसी से लड़ें। ——अनिल नरेन्द्र

भिडरावाला समर्थक अमृतपाल का उभरना खतरनाक

एक खालिस्तानी समर्थक संगठन, वारिस पंजाब दे, के समर्थकों की हथियारबंद भीड़ ने अपने प्रामुख और उपदेशक अमृतपाल सिह के करीबी लवप्रीत तूफान की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के अजनाला थाने पर कब्जा कर जिस तरह पुलिस प्राशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया, वह पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य के लिए बेहद खतरनाक है। पंजाब के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए बेहद खतरनाक संकेत हैं। जरनैल सिह भिडरावाले को अपना आदर्श मानने वाले खालिस्तानी समर्थक संगठन वारिस पंजाब दे, के प्रामुख अमृतपाल सिह के समर्थकों ने तलवार और बंदूकों के साथ जो मुजाहरा किया उसने पंजाब में आतंकवाद युग की याद ताजा कर दी। हिसक भीड़ ने बैरिकेडिग को तोड़ दिया और कईं पुलिस वालों को घायल कर दिया। इतना ही नहीं, पुलिस पर दबाव बनाया और लवप्रीत तूफान की रिहाईं के आदेश प्राप्त कर लिए। खालिस्तानी समर्थक 29 वषाय अमृतपाल सिह का अचानक उभरना पंजाब में आम आदमी पाटा सरकार के लिए सिरदर्द बन सकता है। समर्थक उसे जरनैल सिह भिडरावाले का ही एक रूप कहने लगे हैं। यह ठीक उसी तरह के कपड़े पहनता है और दस्तार सजाता है जैसा जरनैल सिह भिडरावाला सजाता था। भिडरावाले की तरह ही अपने साथ हथियारबंद लोगों का जत्था रखता है और उन्हें लेकर साथ-साथ चलता है। उसका खालिस्तान समर्थक संगठन वारिस पंजाब दे, इन दिनों खुलकर खालिस्तान बनाने की बात कर रहा है। अमृतपाल लड़ने की बातें कर युवाओं को साथ जोड़ रहा है। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए भिडरावाले के लगभग चार दशक बाद एक बार फिर से पंजाब को उन्हीं रास्तों पर ले जाने की कोशिश की जा रही है, जहां से 15 साल की लड़ाईं के बाद पंजाब बाहर आया था। अभी पिछले साल ही जब तीन वृषि कानूनों को लेकर दिल्ली सीमा पर एक साल तक किसान बैठे रहे थे, तब अमृतपाल सिह दुबईं में एक ट्रांसपोर्ट वंपनी चला रहा था। भारत वापस आने पर तीन वृषि कानूनों को लेकर चल रहे आंदोलन में सव््िराय भूमिका निभाने वाला दीप सिद्धू ने वारिस पंजाब दे, का गठन किया था। सड़क हादसे में दीप सिद्धू की मौत के बाद अमृतपाल ने संगठन की कमान संभाली। भिडरावाले के मोगा स्थित गांव रोड़ में जाकर जिस प्राकार से एक बड़ी जनसभा की थी उससे भी इंटेलिजेंस एजेंसियों के कान खड़े हो जाने चाहिए थे। पंजाब एक बॉर्डर स्टेट है। पाकिस्तान पंजाब में उग्रावाद को पुन: उभारने में पूरी तरह जुटा हुआ है। आम आदमी पाटा की सरकार पर हमें शक है कि वह इस नईं स्थिति से प्राभावी ढंग से निपट सकती है? वेंद्र को पूरी नजर रखनी होगी। वह पंजाब सरकार पर भरोसा नहीं कर सकता। अगर स्थिति और बिगड़ती है तो वेंद्र को भगवंत मान की सरकार को बर्खास्त कर बागडोर अपने हाथों में लेनी पड़ सकती है। दोबारा से खालिस्तानी मूवमेंट किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल?

मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईंसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति सेवा की शर्ते और पदावधि) विधेयक के तहत कानून मंत्री की अध्यक्षता में दो सदस्यों को शामिल करते हुए एक खोज समिति गठित करने का प्रावधान किया गया है। समिति में शामिल दोनों सदस्य सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे। यह समिति सीईंसी या ईंसी के रूप में नियुक्ति के लिए पांच नाम सुझाएगी। इन नामों पर प्राधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति विचार कर नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को भेजेगी। बिल में सीईंसी और ईंसी की तीन सदस्यों वाली नियुक्ति कमेटी में सीजेआईं (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) की जगह वैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है। कांग्रोस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि वेंद्र सरकार स्वतंत्र चुनाव आयोग नहीं चाहती है। बिल की कवायद सरकार द्वारा चुनाव आयोग पर कब्जा कर इसे जेबी संस्था बनाना है। सुरजेवाला ने जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में इस बारे में दिए गए आदेश को पढ़ना शुरू किया तो सभापति जगदीप धनखड़ ने उन्हें रोक दिया। सांसद ने कहा कि संसद कानून बनाने वाली संस्था है और आप (सुरजेवाला) भी इसके सदस्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में अपने पैसले में कहा था कि चयन समिति में पीएम, नेता विपक्ष और देश के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने संसद में कानून बनने तक यही मानदंड लागू करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोहिग्टन नरीमन ने वर्तमान प्रावधानों पर चिता जताईं है। उनका कहना है कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्राधानमंत्री, एक वेंद्रीय मंत्री और एक विपक्ष के नेता की चयन समिति द्वारा की जाती है तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कल्पना बनकर रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो अदालत को इसे निरस्त कर देना चाहिए। अब नियुक्तियां विशुद्ध राजनीतिक होंगी। सरकार ने दावा किया कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार किया गया है। यह केवल आधा सच है, इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्राव््िराया तैयार करने का सुझाव दिया। कहा गया कि इसके तहत पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता और सीजेआईं चयन करेंगे, जिससे नियुक्तियों में विश्वास और मतदाता की नजर में आयोग का दावा मजबूत हो। लेकिन पारित बिल में सरकार ने प्राधान न्यायाधीश को प्राव््िराया से बाहर रखा है। समिति में भले ही विपक्ष की उपस्थिति है, लेकिन यह भागीदारी औपचारिक होगी। ऐसे में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता महत्वपूर्ण है, जो एक मजबूत लोकतंत्र का वेंद्र है। जाहिर है, आयोग में होने वाली नियुक्तियों को लेकर विश्वसनीयता का संकट उचित है। चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि देश में जहां भी चुनाव हो वहां स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराया जाए। अकेले चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि निर्वाचन प्राणाली पर जनता का यकीन कायम रहना लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद जरूरी है।

Thursday, 23 February 2023

भाजपा को 100 सीटों पर समेटा जा सकता है?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश वुमार ने शनिवार को कहा कि कांग्रोस को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से बने माहौल का लाभ उठाते हुए भाजपा विरोधी दलों को एकजुट कर गठबंधन बनाना चाहिए। जनता दल (यू) के नेता ने कहा कि यह गठबंधन जल्दी से जल्दी होना चाहिए ताकि लोकसभा में अभी 300 से ज्यादा सीटों वाली भाजपा को अगले साल होने वाले आम चुनाव में 100 से भी कम सीट पर समेटा जा सके। पटना में आयोजित एक कार्यंव््राम में नीतीश ने कांग्रोस नेता सलमान खुशाद की ओर मुड़ते हुए कहा कि कांग्रोस में अपने साथियों से कहना चाहता हूं कि यात्रा बहुत सफल रही। लेकिन उन्हें यहां नहीं रुकना चाहिए। खुशाद ने कहा कि जहां तक अपनी पाटा के बारे में मेरी समझ है, जो आप चाहते हैं, वही वहां भी सभी चाहते हैं। कांग्रोस पर विपक्षी एकता का दबाव बढ़ा है। नीतीश वुमार, राजद नेता व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक सुर में कांग्रोस को विपक्षी एकजुटता पर आगे बढ़ने का न्यौता दिया या यों कहें कि पैसला लेने का दबाव बढ़ाया। बिहार में समाजवादी कांग्रोस और वामदलों के महागठबंधन की सरकार है। मंच से नीतीश व तेजस्वी ने जिस तरह कांग्रोस पर दबाव बनाया, उससे साफ हो गया कि गेंद कांग्रोस के पाले में है। उसी की तरफ से देर है। दूसरा विपक्षी एकता पर बड़ी बैठक या संवाद न होने से सियासी गलियारों में जो भ्रम जद (यू) व राजद के संबंधों को लेकर पैदा हो रहा था, वह भी दूर हुआ। तेजस्वी ने कहा—नीतीश के साथ आने से विपक्ष को बल मिला है। अधिवेशन में नीतीश ने सलमान खुशाद की तरफ मुखातिब होकर कहा कि आप अपने नेतृत्व से कह दीजिए कि मेरी कोईं व्यक्तिगत ख्वाहिश नहीं है। हमारी एक ख्वाहिश है कि सभी को एकजुट कर देंगे तो गलत करने वालों से देशमुक्त होगा। वहीं कांग्रोस महासचिव जयराम रमेश ने रविवार को कहा कि 24 फरवरी से शुरू हो रहे पाटा के अधिवेशन में लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकजुटता पर चर्चा की जाएगी। इसके बाद आगे का रुख तय होगा। जयराम ने यह भी कहा कि कांग्रोस की मौजूदगी के बिना देश में विपक्षी एकता की कोईं भी कवायद सफल नहीं हो सकती। कांग्रोस ही इकलौती ऐसी पाटा है जिसने भाजपा के साथ कभी भी समझौता नहीं किया है, हमें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है कि हमें नेतृत्व करना है, वहीं विपक्षी एकता पर तंज कसते हुए वेंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय, सांसद सुशील मोदी और रविशंकर प्रासाद ने कहा कि विपक्ष की एकता का वेंद्र की मोदी सरकार पर कोईं असर नहीं होगा। राय ने दावा किया कि वर्ष 2024 में महागठबंधन का सफाया हो जाएगा। वहीं सुशील मोदी ने सवाल किया कि क्या विपक्ष देवेगौड़ा और गुजराल की तरह कमजोर सरकार बनाना चाहता है। रविशंकर प्रासाद ने आरोप लगाया कि जद (यू) में भगदड़ मची है। सीएम बिहार तो संभाल नहीं पा रहे बात महागठबंधन की कर रहे हैं। ——अनिल नरेन्

सोरोस के आरोपों पर सियासी घमासान

भारतीय जनता पाटा (भाजपा) ने अमेरिकी बिजनेसमैन जॉर्ज सोरोस पर जमकर हमला किया है। शुव््रावार को वेंद्रीय मंत्री स्मृति ईंरानी ने एक प्रोस कांप्रोंस कर कहा कि जॉर्ज सोरोस का बयान भारत की लोकतांत्रिक प्राव््िराया को बर्बाद करने की घोषणा है। जॉर्ज सोरोस ने जर्मनी के म्यूनिख रक्षा सम्मेलन में कहा था कि भारत तो एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं और मोदी के तेजी से बड़ा नेता बनने की अहम वजह भारतीय मुसलमानों के साथ की गईं हिसा है। उन्होंने कहा कि भारत रूस से कम कीमत पर तेल खरीदता है। जॉर्ज सोरोस के अनुसार गौतम अडाणी मामले में मोदी फिलहाल खामोश हैं लेकिन विदेशी निवेशकों और संसद में सवालों का उन्हें जवाब देना होगा। इससे सरकार पर उनकी पकड़ कमजोर होगी। उनका यहां तक दावा था कि इससे भारत में लोकतांत्रिक प्राव््िराया का पुनरुत्थान होगा। इससे पहले जनवरी 2020 में दावोस में हुईं वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक के एक कार्यंव््राम में प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए सोरोस ने कहा था कि भारत को हिन्दू राष्ट्रवादी देश बनाया जा रहा है। जॉर्ज सोरोस ने उस समय कहा था कि यह भारत के लिए सबसे बड़ा और भयानक झटका है। जहां लोकतांत्रिक रूप से चुनकर आए नरेंद्र मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी कश्मीर पर प्रातिबंध लगाकर वहां के लोगों को दंडित कर रहे हैं और नागरिकता कानून (सीएए) के जरिये लाखों मुसलमानों से नागरिकता छीनने की धमकी दे रहे हैं। शुव््रावार को सोरोस पर हमला करते हुए स्मृति ईंरानी ने कहा कि विदेशी धरती से भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। उनके अनुसार यह भारत के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी की कोशिश है। ईंरानी ने सभी भारतीयों से इसका मुंहतोड़ जवाब देने की अपील की। कांग्रोस ने भी जॉर्ज सोरोस के बयान पर अपनी प्रातिव््िराया दी है। कांग्रोस महासचिव और पाटा के मीडिया प्रामुख जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा—पीएम से जुड़ा अडाणी घोटाला भारत में लोकतांत्रिक पुनरुत्थान शुरू करता है या नहीं, यह पूरी तरह कांग्रोस, विपक्ष और हमारी चुनावी प्राव््िराया पर निर्भर है। इसका जॉर्ज सोरोस से कोईं लेना-देना नहीं है। हमारी नेहरूवादी विरासत सुनिाित करती है कि उन जैसे लोग हमारे चुनाव परिणाम तय नहीं कर सकते। उन्होंने ट्वीट किया—जॉर्ज सोरोस कौन हैं और भाजपा का ट्रोल मंत्रालय उन पर प्रोस कांप्रोंस क्यों कर रहा है? वैसे मंत्री जी भारत की चुनावी प्राव््िराया में इजरायली एजेंसी की दखलंदाजी पर आप वुछ कहना चाहेंगी? भारत के लोकतंत्र के लिए वह ज्यादा बड़ा खतरा है। तृणमूल कांग्रोस की लोकसभा सांसद महुआ माइया ने स्मृति ईंरानी पर तंज कसते हुए कहा—आदरणीय वैबिनेट मंत्री जी ने हर भारतीय से जॉर्ज सोरोस को मुंहतोड़ जवाब देने को कहा है। आज शाम छह बजे वृपया थाली पीटें। जॉर्ज सोरोस एक अमेरिकी उदृाोगपति हैं। ब्रिटेन में उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की तरह जाना जाता है जिसने 1992 में बैंक ऑफ इंग्लैंड को बर्बाद कर दिया था।

Tuesday, 21 February 2023

सरकार को सुप्रीम झटका

अडाणी-हिडनबर्ग मामले में नियामक संस्था सेबी के कामकाज की निगरानी के लिए विशेषज्ञों की समिति न्यायालय खुद बनाएगी। समिति की नियुक्ति से जुड़े मुद्दे पर प्राधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की पीठ ने शुव््रावार को अपना पैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में आदेश जारी करेगी, जिसमें समिति के बारे में जानकारी दी जाएगी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि वह वेंद्र द्वारा समिति के सदस्यों के लिए नामों के प्रास्ताव को सीलबंद लिफापे में स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि अदालत इस मामले में पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहती है। अदालत ने कहा कि समिति इस पर काम करेगी कि इस तरह के मामलों में आम निवेशकों के हितों की रक्षा वैसे हो व इसके लिए सुरक्षा नियामक को मजबूत वैसे किया जाए। दरअसल शेयर बाजार के लिए नियामक उपायों को मजबूत करने के मामले में विशेषज्ञ समिति के मुद्दे पर सरकार ने अदालत को सुझावों को सीलबंद लिफापे में देने का प्रास्ताव रखा था, जिससे न्यायालय ने अब साफ इंकार कर दिया है। पीठ में प्राधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। उच्चतम न्यायालय कांग्रोस नेता जया ठावुर की याचिका पर सुनवाईं कर रहा था। याचिका में शीर्ष अदालत के किसी मौजूदा न्यायाधीश की देखरेख में जांच कराने का अनुरोध किया गया था। जया ठावुर की याचिका में बड़ी मात्रा में लोगों का धन अडाणी उपव््रामों में निवेश करने में भारतीय जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक की भूमिका की जांच के लिए दिशानिर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। वेंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत किसी पूर्व न्यायाधीश को सुझाव पर तामील के लिए नियुक्त कर सकती है। लेकिन बस ऐसा न हो कि शेयर बाजार पर कोईं प्राभाव पड़े। पीठ ने कहा कि हम निवेशकों की सुरक्षा के लिए पूर्ण पारदर्शिता चाहते हैं। हम एक समिति बनाएंगे। अदालत के प्राति भरोसे की भावना होगी। प्राधान न्यायाधीश ने कहा (उच्चतम न्यायालय) के मौजूदा न्यायाधीश मामले की सुनवाईं कर सकते हैं और वह समिति का हिस्सा नहीं हो सकते हैं। अमेरिकी वंपनी हिडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडाणी समूह की वंपनियों पर धोखाधड़ी और शेयर के मूल्यों में पेरबदल करने के लगाए आरोपों को किसी समिति या उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में बड़ी वेंद्रीय एजेंसियों से जांच कराने वाली एक और याचिका गुरुवार को अदालत में दाखिल की गईं है। वेंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत किसी पूर्व न्यायाधीश को सुझाव पर तामील के लिए नियुक्त कर सकती है। लेकिन बस ऐसा न हो कि शेयर बाजार पर कोईं प्राभाव पड़े। लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को आपने कमेटी का अधिकार क्षेत्र के सुझाव संबंधी दस्तावेज नहीं मुहैया कराए हैं। हम पूरी तरह से पारदर्शिता चाहते हैं। पीठ ने कहा—हम सीलबंद लिफापे में वेंद्र के सुझावों को स्वीकार नहीं करेंगे, हम पारदर्शिता सुनिाित करना चाहते हैं। जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ब्यूरोव््रोसी या ज्यूडिश्यरी से जुड़े लोगों को शीर्ष पद छोड़ते ही सरकारी या राजनीतिक पद हासिल करना चाहिए या नहीं। इस पर एक बार फिर बहस शुरू हो गईं है। बहस के वेंद्र में हैं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जिन्हें रिटायर होने के चन्द दिनों के बाद ही आंध्र प्रादेश का राज्यपाल बना दिया गया। मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले जस्टिस नजीर इस साल चार जनवरी को अपने पद से रिटायर हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए वह कईं अहम पैसले देने वाली खंडपीठ में शामिल रहे हैं। नवम्बर 2019 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर ऐतिहासिक पैसला देने वाली बेंच में भी जस्टिस नजीर शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने तीन तलाक को अवैध ठहराया था, उसमें भी जस्टिस नजीर शामिल थे। जस्टिस नजीर को राज्यपाल बनाए जाने के पैसले पर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं लेकिन जस्टिस नजीर ऐसे पहले जज नहीं हैं, जिन्हें रिटायर होने के बाद अहम पद मिला है। साल 2014 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था। वह सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद अपने गांव लौट गए थे। उनका कार्यंकाल निर्विवाद रहा और उन्होंने कईं अहम पैसले दिए। हाल ही में भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रजन गोगोईं को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने मार्च 2020 में राज्यसभा के लिए नामित किया था। 2019 में अयोध्या विवाद पर पैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच की अध्यक्षता रंजन गोगोईं ने ही की थी। इसके अलावा उन्होंने रापेल सौदे की समीक्षा और राहुल गांधी के खिलाफ अदालत की अवमानना के मामलों की भी सुनवाईं की। रापेल सौदे में सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे लेकिन रंजन गोगोईं की बेंच ने रापेल सौदे की जांच को लेकर दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। जस्टिस रंजन गोगोईं ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 रद्द कर दिए जाने के बाद दायर की गईं बंदी प्रात्यक्षीकरण याचिका को भी खारिज कर दिया था। यह मामला सिर्प जजों के सरकारी पदों पर नियुक्ति तक सीमित नहीं है। चुनाव से ठीक पहले आईंएएस-आईंपीएस अधिकारी भी नौकरी छोड़कर चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं। आरोप लगाते रहे हैं कि कईं बार अपनी सेवा के अंतिम दिनों में राजनीतिक आकांक्षाओं के कारण ऐसे नौकरशाह खास राजनीतिक दल के नजदीक हो जाते हैं, जिससे इनकी निष्ठा भी प्राभावित होती है। रिटायरमेंट के तुरन्त बाद राजनीति में प्रावेश के मामले में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों का शुरू से विरोध रहा है। चुनाव आयोग ने इसे गलत परंपरा मानते हुए रिटायरमेंट के बाद कम से कम दो साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का प्रास्ताव किया है। इसे वूलिंग ऑफ पीरियड भी कहा जाता है। आयोग का तर्व था कि रिटायरमेंट के बाद प्राइवेट वंपनियों में भी काम करने के लिए वूलिंग ऑफ पीरियड दो साल होता है। हालांकि 2015 में इसमें बदलाव करते हुए दो साल से घटाकर एक साल कर दिया गया था। कांग्रोस और विपक्षी दलों का कहना है कि जस्टिस अब्दुल नजीर को सरकार के हक में महत्वपूर्ण केसों में अहम पैसले देने में योगदान के लिए पुरस्वृत किया गया है। ——अनिल नरेन्द्र

Thursday, 16 February 2023

एक तीर से कईं निशाने

राज्यपालों की ताजा नियुक्ति कईं राज्यों में विभिन्न समीकरणों को ध्यान में रखकर की गईं है। इसमें कोईं रहस्य नहीं कि ताजा नियुक्ति आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर की गईं है। असम के नए राज्यपाल गुलाब चन्द कटारिया वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं और उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों में से एक के रूप में देखा जा रहा था। राजस्थान में इस साल के अंत तक चुनाव होंगे। राजस्थान इकाईं में गुटीय विवाद को हल करने और चुनाव में एकजुटता दिखाने व एकजुट चेहरा सामने रखने के लिए संघर्ष कर रहे राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ, कटारिया के गवर्नर पद पर पदोन्नति से उस पर दबाव वुछ कम हो सकता है। सूत्रों ने कहा कि यह कदम राज्य इकाईं में समीकरण बदल सकता है। मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदान होने के साथ, भाजपा के सूत्रों ने कहा कि पाटा दोनों राज्यों के राजभवन में अनुभवी हाथ चाहती है। दोनों राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता और बार-बार राजनीतिक बदलाव का इतिहास रहा है। ऐसे में राज्यपाल चुनाव के बाद के परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बिहार के निवर्तमान राज्यपाल फागू चौहान को मेघालय भेजा गया है। मणिपुर के राज्यपाल और पािम बंगाल में कार्यंकारी राज्यपाल रहे एल. गणेशन को नागालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। पूर्व लोकसभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी राधावृष्ण के तमिलनाडु इकाईं से बाहर होने से प्रादेश अध्यक्ष अन्नामलाईं की स्थिति और मजबूत हो सकती है। पाटा सूत्रों के मुताबिक राधावृष्णन के प्रादेश अध्यक्ष के साथ मतभेद थे और उनकी कार्यंशैली को लेकर शिकायत थी। अन्नामलाईं के काम करने और राज्य इकाईं का नेतृत्व करने के तरीके से भाजपा नेतृत्व काफी खुश है। कर्नाटक चुनाव के लिए अन्नामलाईं को सह-प्राभारी नियुक्त करने का नेतृत्व का कदम इसका एक संकेत है। राधावृष्णन ने दो बार 1998 और 1999 कोयंबटूर लोकसभा सीट जीती और राज्य में पाटा संगठन के निर्माण में अहम भूमिका निभाईं। वह राज्य इकाईं के अध्यक्ष भी थे और भाजपा के लिए केरल के प्राभारी थे। संभावना है कि भाजपा नेतृत्व अन्नामलाईं को कोयंबटूर से उम्मीदवार बना सकती है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व वेंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में भाजपा के मौजूदा सचेतक शिव प्राताप शुक्ला की हिमाचल प्रादेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति उम्मीद के अनुरूप है। उनकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में एक मजबूत पृष्ठभूमि है। सो भाजपा नेतृत्व ने एक तीर से कईं निशाने साधने का प्राचार किया। यह दाव कितना सही पड़ता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। ——अनिल नरेन्द्र

आर्थिक प्रागति की गति बढ़ाएगा एक्सप्रोसवे

आजादी के अमृतकाल में दिल्ली-मुंबईं एक्सप्रोसवे के पहले चरण में दिल्ली-दौसा-लालसोढ़ सेक्शन के शुभारंभ से सड़कों के ढांचागत तंत्र के विकास में नया अध्याय जुड़ गया। प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को हरियाणा के गुरुग्राम, पलवल व नूंह जिला से होकर गुजरने वाले देश के सबसे लंबे एक्सप्रोसवे के पहले चरण में 12,150 करोड़ रुपए की लागत से तैयार 246 किलोमीटर लंबे सेक्शन का लोकार्पण किया। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि दिल्ली-वडोदरा-मुंबईं एक्सप्रोसवे दिल्ली और मुंबईं अथवा पांच राज्यों को जोड़ने वाला मार्ग ही नहीं बल्कि यह राजमार्ग हमारी आर्थिक स्थिति को आगे बढ़ाने वाला है। यह हरियाणा की सांस्वृतिक पहचान को मुंबईं के आधुनिकरण के साथ-साथ महाराष्ट्र की संस्वृति के साथ भी जोड़ेगा। मुख्यमंत्री मनोहर लाल हिलालपुर में दिल्ली-वडोदरा-मुंबईं एक्सप्रोसवे के लोकार्पण कार्यंव््राम से सीधे जुड़ने के उपरांत जनता से संवाद कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक्सप्रोसवे के नूहं से गुजरने से यहां उदृाोग आएंगे, जिससे क्षेत्र का विकास और यहां के लोगों को रोजगार के नाते बहुत बड़ा लाभ होगा। इंप्रास्ट्रक्चर से हमारे देश की आर्थिक प्रागति होगी और निाित रूप से प्राधानमंत्री का भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने को साकार करने में सभी राज्य योगदान देंगे। हरियाणा पहले से ही इस दिशा में विशेष योगदान दे रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षो से वेंद्र सरकार ने जितने प्राोजेक्ट हरियाणा को दिए हैं, चाहे वह राजमार्गो के हों या रेलवे के उन सबके माध्यम से हम हरियाणा की और अधिक प्रागति करेंगे। उन्होंने कहा कि हरियाणा एक लैंडलाक्ड राज्य है और हमारा प्रादेश इस एक्सप्रोसवे के माध्यम से समुद्री पोर्ट से जुड़ेगा, तो हम निाित रूप से राज्य के एक्सपोर्ट को भी बढ़ाएंगे। यह एक्सप्रोसवे हरियाणा में बनने वाले उत्पादों को देश के बंदरगाहों तक लेकर जाना सुगम बनाएगा। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि इस ऐतिहासिक एक्सप्रोसवे के पहले हिस्से का उद्घाटन होने से इस इलाके के लोगों को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इंप्रास्ट्रक्चर मजबूत होने से विकास को गति मिलेगी और आने वाले समय में ईं-कॉमर्स व्यापार के बढ़ने से गुरुग्राम, नूंह और फरीदाबाद को काफी फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्राधानमंत्री ने आज दौसा से ही तीन अन्य सड़क परियोजनाओं की भी आधारशिला रखी है। जिनसे अंबाला, कोटपुतली कॉरिडोर से प्रादेश के कईं जिलों की कनेक्टिविटी बढ़ेगी। सरकार का लक्ष्य आईंजीआईं एयरपोर्ट से जेवर एयरपोर्ट को जोड़ने का है। राज्यमंत्री एवं गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिह ने कहा कि दिल्ली-वडोदरा-मुंबईं एक्सप्रोसवे के इस पहले सैक्शन के खुलने से नूंह जिला में विकास की नईं बयार बहने जा रही है।

Friday, 10 February 2023

अडाणी के समर्थन में उतरा आरएसएस

संकट में पंसे अडाणी समूह के बचाव में अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उतरा है। संघ के मुख पत्र ऑग्रेनाइजर ने एक आलेख में कहा है कि यह हमला बहुत वुछ वैसा है जैसा भारत विरोधी जॉर्ज सोरोस ने बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ थाइलैंड पर किया और उन्हें बर्बाद कर दिया था। शार्ट-सेलर हिडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद भारतीयों की एक लॉबी ने अडाणी के खिलाफ एक नकारात्मक कहानी तैयार की। इस लॉबी में वाम विचारधारा से जुड़े देश के वुछ प्रासिद्ध प्राोपेगंडा, वेबसाइटों और एक बड़े वामपंथी नेता की पत्रकार पत्नी शामिल हैं। ऑग्रेनाइजेर ने लिखा—अडाणी समूह पर यह हमला असल में हिडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद 25 जनवरी को शुरू नहीं हुआ बल्कि ऑस्ट्रेलिया से वर्ष 2016-17 में इसकी शुरुआत हुईं। सिर्प गौतम अडाणी को बदनाम करने के लिए एक ऑस्ट्रेलियाईं एनजीओ ने एक वेबसाइट शुरू की। पर्यांवरण हितैषी माने जाने वाला एनजीओ बॉब ब्राउन फाउंडेशन (बीबीएफ) अडाणी वॉच डॉट ओआरजी नामक वेबसाइट चलाता है। इसकी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में अडाणी के कोयला खदान प्राोजेक्ट के विरोध से हुईं थी लेकिन यह यहीं तक नहीं सीमित रहा। अब वह वेबसाइट अडाणी से दूर-दूर तक जुड़े किसी भी काम या प्राोजेक्ट के बारे में छापती है। इस एनजीओ का एकमात्र मकसद अडाणी की ब्रांड छवि को नुकसान पहुंचाना है। इसके प्राोपेगंडा लेख भारतीय राजनीति, अभिव्यक्ति ी आजादी आदि में भी घुसपैठ करते हैं। ऑग्रेनाइजर ने लिखा है कि अडाणी समूह को ऑस्ट्रेलिया में 2010 में कारमाइकल कोयला खदान के लिए एक प्राोजेक्ट मिला। 2017 में 350.ओआरजी एनजीओ के नेतृत्व में वुछ एनजीओ अडाणी का विरोध करना शुरू करते हैं। वह इस प्राोजेक्ट को रोकने के लिए हैशटैगस्टॉप अडाणी समूह का गठन करते हैं। एनजीओ 350.ओआरजी को टाइड्स फाउंडेशन की ओर से भारी-भरकम पंड मिलता है। इन एनजीओ ने अपने दानदाताओं का खुलासा नहीं किया। हालांकि उसने सैन प्रांसिस्को के टाइड्स फाउंडेशन से पंड मिलने की बात स्वीकार की। जॉर्ज सोरेस और टॉम स्टेयर ने भी इस एनजीओ में भारी मात्रा में योगदान किया है। टाइड्स फाउंडेशन को पंड देने वालों में सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकपेलर, ओमिडयार और बिल गेट्स के नाम भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर दानदाता वाम शुधार बोले गैर सरकारी संगठनों को पंड देते हैं। आग्रेनाइजेशन ने लिखा कि एक भारतीय एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआईं) को भी सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकपेलर, ओमिडयार, बिल गेट्स और अजीम प्रोमजी से पंड मिला। अजीम प्रोमजी के नेतृत्व में एनजीओ आईंपीएसएमएफ की शुरुआत हुईं जो वाम विचारधारा से जुड़े भारत के वुछ प्रासिद्ध प्राोपेगंडा वेबसाइटों को पंड देता है। संघ ने बड़े गंभीर आरोप लगाए हैं। भारत सरकार को इस मसले की जांच करवा दूध का दूध-पानी का पानी करवाना चाहिए। ——अनिल नरेन्द्र

सरकार की आलोचना अपराध नहीं है

जामिया हिसा मामले में दिल्ली की निचली अदालत ने शरजील इमाम सहित 11 लोगों को आरोपमुक्त करते हुए सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि जांच एजेंसियों को विरोध करने और बगावत के बीच फर्व को समझना होगा। असहमति और वुछ नहीं बल्कि अनुच्छेद-19 के तहत अभिव्यक्ति के अमूल्य मौलिक अधिकार का ही रूप है, जो वाजिब रोक के दायरे में है। असहमति और विरोध प्रादर्शन को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कईं बार टिप्पणी कर चुकी है। 28 अगस्त 2018 को भीमा कोरेगांव हिसा मामले में पांच मानवाधिकार कार्यंकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मामला व्यापक है, आरोप है कि आप असहमति को वुचलना चाहते हैं। असहमति लोकतंत्र का सेफ्ट वॉल्व है और अगर आप इसकी इजाजत नहीं देंगे तो प्रोशर वॉल्व फट जाएगा। तीन जून 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने जर्नलिस्ट विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह के केस को खारिज कर दिया और तब कहा था कि सरकार की आलोचना का दायरा तय है और उस दायरे में आलोचना राजद्रोह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केदारनाथ से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट ने जो पैसला दिया था उस पैसले के तहत हर पत्रकार प्राोटेक्शन का हकदार है। हमारा मत है कि याचिकाकर्ता विनोद दुआ पर राजद्रोह और अन्य धाराओं के तहत कार्यंवाही अन्यायपूर्ण होगी। कोईं भी कानूनी कार्यंवाही अनुच्छेद-19(1)(ए) के तहत विचार अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उल्लंघन होगा। 1962 में दिए पैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर नागरिक को सरकार के व््िरायापालन यानि कामकाज पर टिप्पणी करने और आलोचना करने का अधिकार है। आलोचना का दायरा तय है और उस दायरे में आलोचना करना राजद्रोह नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि आलोचना ऐसी हो जिसमें पब्लिक ऑर्डर खराब करने या हिसा पैलाने की कोशिश न हो। 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ बनाम बिहार सरकार के वाद में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्राशासन पर कमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। 1995 में बलवंत सिह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्प नारेबाजी से राजद्रोह नहीं हो सकता। वैजुअल तरीके से कोईं नारेबाजी करता है तो वह राजद्रोह नहीं माना जाएगा। राजद्रोह तभी बनेगा जब नारेबाजी के बाद विवाद पैदा हो जाए और समुदाय में नफरत पैले। तीन मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार के मत से अलग विचार की अभिव्यक्ति करना राजद्रोह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला के बयान पर उनके खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की थी। याचिका में कहा गया था कि फारुख अब्दुल्ला ने 370 को बहाल करने का जो बयान दिया है, वह राजद्रोह है।

Tuesday, 7 February 2023

बेल के बावजूद रिहाईं में देरी

चलो आखिर विचाराधीन वैदियों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट ने ध्यान तो दिया। वैदी अगर गरीब और अनपढ़ हुए तो उनका पूरा जीवन नारकीय परिस्थितियों में कटता है। न्याय प्राशासन और जेल प्राशासन अपनी पुरानी रीतियों से इस कदर बंधा चला जाता है कि आज की उन्नत तकनीक के युग में उसकी कईं बातें हास्यास्पद लगती हैं। उदाहरण के तौर पर अदालत से जमानत का आदेश हो जाने के बाद भी बहुतों की रिहाईं सिर्प इसलिए टल जाती है क्योंकि समय पर उस आदेश की कॉपी जेल प्राशासन को नहीं मिलती है। जमानत के पात्र होने या जमानत दिए जाने पर भी ज्यादातर वैदियों के सलाखों के पीछे रहने का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जमानत मिलने के बावजूद वैदी एक महीने के भीतर बांड पेश करने में विफल रहते हैं तो अदालतें लगाईं गईं शर्तो को संशोधित करने पर विचार करें। वह इस बात पर विचार करें कि जमानत की शर्त में छूट दी जा सकती है क्या? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नालसा रिपोर्ट भी तैयार कर रही है जिसके तहत यह पता चलेगा कि कितने आरोपी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और बेल बांड भरने की स्थिति में नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया कि पांच हजार से ज्यादा वैदी जेल की क्षमता से ज्यादा हैं और आए दिन ऐसे मामले देखने को मिल रहे हैं कि जमानत के बाद भी आरोपी नहीं छूट पा रहे हैं, क्योंकि वह बेल बांड नहीं दे पा रहे हैं। जस्टिस एमके कौल की अगुआईं वाली बेंच के सामने कोर्ट सलाहकार गौरव अग्रावाल, एल. मैथ्यू और देवेश ए. मेहता की ओर से सुझाव व रिपोर्ट पेश की गईं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वेंद्र सरकार नालसा (नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी) से बातचीत करे और यह देखे कि क्या ईं-प््िराजन पोर्टल पर स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी और जिला लीगल सर्विस अथॉरिटी को पहुंचा दी जा सकती है जिससे तालमेल बने। वेंद्र सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह निर्देश लेकर कोर्ट को अवगत कराएंगे। क्या कहा कोर्ट ने गाइड लाइंस में—कोर्ट जैसे ही जमानत दे आदेश की स्पॉट कॉपी ईं-मेल पर जेल सुपरिटेंडेंट को भेजें और उनके जरिये आरोपी को उसी दिन मिले। आरोपी जमानत आदेश के सात दिनों में रिहा नहीं किया गया तो जेल सुपरिटेंडेंट डीएलएसए के सैव््रोटरी को बताए। डीएलएसए पैरा वॉलंटियर या जेल विजिटिग एडवोकेट की नियुक्ति करेगा, जो जमानत की शर्त पूरी करवा रिहाईं करवाए। पीठ का विचार था कि ऐसे मामलों में जहां अंडर-ट्रायल या दोषी अनुरोध करता है कि वह रिहा होने के बाद जमानत बांड या जमानत दे सकता है, तो एक उपयुक्त मामले में अदालत अभियुक्त को एक निर्दिष्ट अवधि के लिए अस्थायी जमानत देने पर विचार कर सकती है ताकि वह जमानत बांड या जमानत राशि प्रास्तुत कर सके। यह बात भी विभिन्न अध्ययनों से सामने आती रही है कि जेलों में बंद लोगों का बड़ा हिस्सा ऐसा होता है जो ढंग का वकील रखने या अपने हक की लड़ाईं लड़ने में समर्थ नहीं होता। जाहिर है कि ऐसे तमाम लोगों के लिए अदालतें ही उम्मीद बन सकती हैं। बशत्रे वह इस सिद्धांत पर सख्ती से अमल करें कि आरोप साबित होने से पहले हर कोईं बेकसूर है। ——अनिल नरेन्द्र

धुंध साफ हो, सव््िरायता दिखाए सेबी

जब से अडाणी समूह को लेकर हिडनबर्ग की रिपोर्ट आईं है, एक तरफ स्टॉक माव्रेट में भारी उथल-पुथल देखी जा रही है, वहीं विपक्ष के निशाने पर सरकार आ गईं है। विपक्षी दलों की मांग है कि इस मामले में सरकार जवाब दे। इस हंगामे के चलते संसद का बजट सत्र बार-बार स्थगित करना पड़ा। कामकाज बाधित रहा। हालांकि अडाणी समूह इस मामले में लगातार सफाईं देने और अपनी स्थिति सुधारने में जुटा हुआ है, मगर शेयर बाजार में उसकी वंपनियों के शेयर लगातार नीचे की तरफ रुख किए हुए हैं। दुखद पहलू यह है कि सरकारी संस्थाएं इस पूरे प्राकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं। माना कि भाजपा नेतृत्व ने अडाणी को कईं कांट्रेक्ट दिलाने में मदद की हो पर नेतृत्व ने यह तो नहीं कहा कि आप जानबूझ कर शेयरों में हेरापेरी करें, प्राॉड करें। विपक्ष इस बहाने प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने में जुटा हुआ है। यह मामला हमें नहीं लगता कि अब दबने वाला है। मुझे लगता है कि वर्तमान बजट सत्र भी इसकी भेंट चढ़ेगा। विपक्ष के हमलावर रवैये का एक कारण नियामक संस्थाओं का आगे आकर स्थिति को स्पष्ट न करना भी है। हिडनबर्ग की रिपोर्ट को आए करीब 12 दिन हो गए हैं। लेकिन अब तक न तो सेबी ने कोईं जांच करने की जरूरत समझी, न ही अन्य नियामक संस्थाओं ने। यह ठीक है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कहा कि अडाणी समूह को लेकर उपजे विवाद से निवेशकों के भरोसे पर कोईं असर नहीं पड़ेगा और बाजार पूरी तरह नियामक संस्थाओं के नियंत्रण में है, लेकिन प्राश्न यह है कि यह संस्थाएं उन सवालों का ठोस जवाब देने के लिए आगे क्यों नहीं आ रही हैं, जो सतह पर उभर आए हैं। उन्हें समझना चाहिए कि अडाणी समूह की तरफ से जितनी भी सफाईं दी जाए वह काफी नहीं। जनता चाहती है कि सेबी मामले की बारीकी से जांच करे और सही तस्वीर पेश करे। भारत के शेयर बाजार में भले ही इतना फर्व न पड़े पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख को भारी धक्का लगा है। डाउ जोंस, व््रोडिट सजू, सिटी बैंक इत्यादि ने अडाणी के शेयर की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी है या आगे शेयरों पर लोन देने से मना कर दिया है। सेबी व अन्य सरकारी संस्थाएं जितनी चुप्पी साधेंगी उतनी ही उलट-पुलट खबरें बाजार में आएंगी और भाजपा को इसका नुकसान होगा। ध्यान रहे कि इन सवालों का सही तरह समाधान अडाणी समूह की ओर से दिए गए जवाबों से नहीं हो सकता है और शायद यही कारण है कि शेयर बाजार में उसकी वंपनियों के शेयरों के भाव गिरते चले जा रहे हैं। एक सप्ताह पहले फोब्र्स की अरबपतियों की सूची में दुनिया के तीसरे सबसे धनी थे गौतम अडाणी लेकिन बुधवार आते-आते वह फिसलकर 15वें स्थान पर पहुंच गए हैं। बहरहाल अभी विवाद थमता नहीं नजर आ रहा। सरकार पर विपक्ष का दबाव आने वाले दिनों में बढ़ना तय है।