Saturday, 16 December 2023

नए मुख्यमंत्रियों पर चले कईं और दांव

सिर्प उम्र और वोट बैंक नहीं, भाजपा ने तीन नए मुख्यमंत्रियों से कईं और दांव भी चले। भारतीय जनता पाटा ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रादेश और राजस्थान में मुख्यमंत्रियों के चुनाव से मानना पड़ेगा कि सबको चौंका दिया। नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की अगुवाईं में भाजपा पहले भी ऐसा कर चुकी है। लेकिन सवाल है कि आखिर भाजपा ऐसा क्यों करती है? इस सवाल के एक नहीं कईं जवाब हैं। भाजपा ने फिर एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चौंकाने वाले ऐसे चेहरे दिए हैं जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी और न ही इनके नामों की कहीं चर्चा थी। भाजपा दरअसल एक नहीं कईं तथ्यों पर नजर रखती है।इसका शीर्ष नेतृत्व अकसर रहस्यमयी तरीके से काम करता है। तीन राज्यों में मुख्यमंत्रियों का अप्रात्याशित चुनाव इसका एक उदाहरण है।छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साईं, मध्य प्रादेश में मोहन यादव और राजस्थान में मदन लाल शर्मा का चयन। इन स्पष्ट आार्यंजनक पैसलों के पीछे एक पैटर्न नजर आता है। क्या किसी को पता था कि 2001 में जब गुजरात में केशुभाईं पटेल के संभावित उत्तराधिकारी के रूप में कईं नामों की चर्चा हो रही थी तो नरेन्द्र मोदी जैसे एक गुप्त संघ प्रातिभा को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा? इसी तरह हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के चुनाव में सबको चौंकाया था। छत्तीसगढ़ में साईं, एमपी में यादव और राजस्थान में शर्मा को शामिल करने को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। इनमें यादव और शर्मा को लोकप््िराय दावेदारों व््रामश: शिवराज सिह चौहान और वसुंधरा राजे को दरकिनार करके गद्दी सौंपी गईं। अगर हम सोशल इंजीनियरिग की बात करें तो छत्तीसगढ़ के साईं एक आदिवासी हैं और उनके दो डिप्टी सीएम ओबीसी (अरुण साव) और ब्राrाण (विजय शर्मा) समुदाय से हैं। मध्य प्रादेश में उपमुख्यमंत्री राजेश शुक्ला और जगदीश दबेड़ा व््रामश: ब्राrाण और अनुसूचित जाति के हैं। जबकि सीएम मोहन यादव ओबीसी हैं। मध्य प्रादेश के सीएम मोहन यादव पड़ोसी राज्य उत्तर प्रादेश के लिए भी एक संकेत हो सकते हैं, जहां ज्यादातर यादव भाजपा को वोट नहीं करते हैं। नरेन्द्र सिह तोमर, जो एक राजपूत हैं विधानसभा अध्यक्ष होंगे। राजस्थान में शर्मा एक ब्राrाण हैं और उनके दो डिप्टी सीएम राजपूत और दलित हैं।हालांकि विभिन्न समुदाय के चेहरों को संतुलित करने का यह पैटर्न भाजपा के लिए अटपटी बात नहीं है, बल्कि यह तो मंडल की राजनीति से शुरू होने के बाद सोशल इंजीनियरिग के साथ प्रायोग करने वाली पाटा में से एक रही है। हालांकि भाजपा के पास एक विशेष ताकत है, उसके पास सरकार और पाटा में पदों के लिए प्रातिभाओं की कमी नहीं है।अधिकांश पार्टियों के पास संभावित नेताओं के तीन स्नेत होते हैं। कोईं अंदरूनी सूत्र, बाहरी लोग और नौकरशाही या कापरेरेट क्षेत्र वैसी प्रातिभाएं जो पूर्व में राजनीति से दूर रही हों। भाजपा के पास एक और रत्रोत है और वह है संघ परिवार। वर्तमान मुख्यमंत्रियों और शीर्ष पदों के लिए संभावित शीर्ष दावेदारों पर नजर डालते हैं। यूपी में गोरखपुर से 5 बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ बेशक संघ से न रहे हों पर अब पाटा का डर और संघ दोनों में बेहद लोकप््िराय हैं। असम में हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रोस से आए हैं। खट्टर, देवेन्द्र फर्णाडीस संघ से हैं। अकसर मौजूदा लोगों को बदलने में जोखिम रहता है लेकिन भाजपा आलाकमान का स्पष्ट रूप से मानना है कि मोदी का जादू राजस्थान और मध्य प्रादेश में किसी भी नुकसान की भरपाईं कर देगा।

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