Saturday 23 December 2023

विपक्ष मुक्त संसद

सोमवार को विपक्ष के 78 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। मंगलवार को एक बार फिर लोकसभा से 49 सांसदों को सस्पैंड कर दिया गया। पिछले हफ्ते निलंबित किए गए 14 सांसदों को मिला लें, तो संसद के शीतकालीन सत्र में निलंबित सांसदों की वुल संख्या 141 हो गईं। इन सभी सांसदों को मौजूदा सत्र के बाकी बचे दिनों के लिए निलंबित किया गया। सरकार का कहना है कि इन सांसदों ने अपनी मांग के समर्थन में संसद में हंगामा किया और कामकाज में अड़ंगा डाला। सदन का कामकाज न होने की वजह से इन सांसदों को निलंबित किया गया। हालांकि विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार मनमानी पर उतर आईं है। वो बेहद अहम बिलों को बगैर बहस के मनमाने ढंग से पारित कराना चाहती है। इसलिए वे संसद में विपक्षी सांसदों को नहीं देखना चाहती। मोदी सरकार विपक्ष मुक्त देश की बात इसलिए करती है ताकि अपनी मनमानी कर सके। कांग्रोस ने इसे संसद और लोकतंत्र पर हमला बताया। विपक्ष का कहना है कि सरकार विपक्ष मुक्त संसद चाहती है ताकि अहम बिलों को मनमानी ढंग से पारित करा सके। सरकार संसद की सुरक्षा को नजरअंदाज कर लोगों का ध्यान भटकाने का काम कर रही है। दूसरी ओर भारतीय जनता पाटा (भाजपा) का कहना है कि ये सरकार को अहम बिलों को पारित करने से रोकने के लिए विपक्ष की सोची-समझी साजिश है। उसने कांग्रोस और उसके सहयोगी दलों पर लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के अध्यक्ष का अपमान करने का भी आरोप लगाया। तृणमूल कांग्रोस प्रामुख और प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनजा ने कहा कि मोदी सरकार बेहद अधिनायकवादी रवैया दिखा रही है। उसे सदन चलाने का कोईं नैतिक अधिकार अब नहीं रह गया है। सरकार डरी हुईं है।उन्होंने कहा, अगर उनके पास बहुमत है तो विपक्ष से क्यों डर रहे हैं।सांसदों के न रहने पर लोगों की आवाज कौन उठाएगा। सरकार इस तरह के कदम उठा कर जनता का व लोकतंत्र का गला घोंट रही है।मोदी और शाह लोगों को डराकर लोकतंत्र को खत्म करना चाहते हैं।डिपल यादव का मामला नजीर है। वो तो अपनी सीट से भी हिली नहीं थीं। वो सिर्प वहां खड़ी थीं लेकिन उन्हें निलंबित कर दिया। बात इतनी सी है कि विपक्ष 13 दिसम्बर को संसद हमले की बरसी पर फिर से इतिहास दोहराए जाने की मॉक कवायद पर सरकार से स्पष्टीकरण मांग रहा था। सरकार जो प्राचंड बहुमत में है और विधानसभाओं में भी जिसकी लहर चल रही है। वही संसद में संवाद को लेकर बहुत कम चितित दिखाईं देती है। इसे विपक्ष सरकार का अराजक आचरण कहता है। संसदीय इतिहास का यह सबसे बड़ा निलंबन है। संसद संवाद का साकार विग्राह होती है, जो सत्ता एक प्रातिपक्ष के सहयोग से ही संभव होता है। पर बहुमत की जिम्मेदारी इसमें सबसे अधिक आंकी गईं है, लेकिन जिस तरह से नियमित तौर पर निलंबन हुआ है। उससे इस जिम्मेदारी से पलायन ही दिखता है। यह तर्व सीमित मायने में ठीक हो सकता है कि लोकसभा अध्यक्ष ने जब कह दिया कि इसकी जांच की जा रही है तब विपक्ष को शांत हो जाना चाहिए। पर इससे सरकार की जवाबदेही समाप्त नहीं हो जाती। अगर संसद में प्राधानमंत्री या गृहमंत्री दो लाइन का बयान दे देते तो सारा मामला टल सकता था।

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