Tuesday, 29 October 2024

चुनाव के बाद घाटी में लौटता आतंक


रविवार को जम्मू-कश्मीर के गांदर बल जिले में एक निर्माणाधीन सुरंग के पास चरमपंथी हमला हुआ जिसमें दो मजदूरों की तो मौके पर ही मौत हो गई। जबकि डाक्टर और अन्य चार मजदूरों की इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। मारे गए लोगों की पहचान डॉ. शाहनवाज, फहीम, नजीर, कलीम, मोहम्मद हनीफ, शशि अबरोल, अनिल शुक्ला और गुरजीत सिंह के रूप में हुई है। चरमपंथियों ने हमला तब किया। जब गांदरबल में सोनभर्ग इलाके के गुंह में सुरंग परियोजना पर काम कर रहे मजदूर और अन्य कर्मचारी देर शाम अपने शिविर में लौट आए थे। दो मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई बाकी की अस्पताल में इलाज के दौरान हो गई। फिलहाल अन्य घायलों का इलाज चल रहा है। आठ अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर चुनाव के नतीजे आए थे और सरकार के गठन के बाद यह पहला मौका था जब इतना बड़ा चरमपंथी हमला हुआ है। कश्मीर घाटी में महीनों के बाद ऐसा हुआ कि 7 दिन में ही 4 आतंकी हमलों में 13 लोगों की जान चली गई। 18 अक्टूबर को शोपिया में हुए आतंकी हमले में बिहार के मजदूर की मौत, 20 अक्टूबर को गांदरबल में 6 गैर स्थानीय व एक स्थानीय डाक्टर की मौत और 24 अक्टूबर को गुलमर्ग में सैन्य वाहन पर हमले में 3 जवान व दो स्थानीय रिपोर्टर की जान गई। विधानसभा चुनावों के बाद ये हमले तेजी से बढ़े हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्वक चुनाव होने से पाक सेना और खुफिया एजेंसी और सरकार बौखला गई है। अब पाक समर्थित से आतंकी घाटी में अपनी मौजूदगी दिखाना चाहते हैं। वे संदेश देना चाहते हैं कि जम्मू कश्मीर में चुनी हुई सरकार बनाकर भले ही आपने लोकतंत्र का परचम बुलंद कर दिया हो, लेकिन हम अभी खत्म नहीं हुए हैं। 1989 से पाक लगातार घाटी में अशांति फैलाने की कोशिश कर रहा है। पर मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हमलों को कायरतापूर्ण बताते हुए इनकी निंदा की है। उन्होंने एक्स पर लिखाः सोनमर्ग क्षेत्र में गगनगीर में गैर-स्थानीय मजदूरों पर कायरतापूर्ण हमले की बेहद दुखद खबर है, ये लोग इलाके में एक प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना पर काम कर रहे थे। मैं निहत्थे, निर्दोष लोगों पर हुए इस हमले की कड़ी निंदा करता हूं और उनके प्रियजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं। पिछले कुछ दिनों में लगातार होते हमले पुलिस प्रशासन और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए बड़ी चुनौती हैं। पूरे राज्य में आतंकवादी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए खुफिया तंत्र, सुरक्षा उपायों को चाक-चौबंद और मजबूत करने की जरूरत है ताकि शांति भंग करने वाले समूहों को पराजित किया जा सके। हालांकि अलगाववादियों और आतंकवाद को जनता का समर्थन नहीं है जो उसकी तमाम धमकियों के बावजूद विधानसभा के लिए खुलकर वोट दिया और लोकतंत्र का समर्थन किया। लेकिन मुश्किल यह है कि सीमा पार से आने वाले घुसपैठियों का छोटा-सा समूह उग्रवाद को पाक सेना के उकसावे पर बढ़ावा दे रहा है। केंद्र और राज्य सरकार को अपने सियासी मतभेदों को दरकिनार करते हुए साझी रणनीति बनानी चाहिए। और इन हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा रणनीति बनानी चाहिए। चुनाव खत्म हो गए हैं। जनता ने अपना फैसला सुना दिया है अब अपने वादे पूरे करने की चुनौती राज्य सरकार, प्रशासन और केंद्र सरकार की है।

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र में लड़ाई असली और नकली में है


चाहे मामला महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का हो, चाहे उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनावों का हो दोनों ही स्थानों पर गठबंधनों का इस्तेमाल है। आज महाराष्ट्र की बात करें तो वहां गठबंधनों के बीच कड़ा मुकाबला तो है ही साथ-साथ वहां, सब की नजरें गठबंधन से ज्यादा असली-नकली पर लगी हुई है। मैं बात कर रहा हूं शिवसेना के दोनों गुटों की और पवार परिवार में चाचा-भतीजे की लड़ाई की। महाराष्ट्र विधानसभा में दो गठबंधन महायुति और महाविकास अघाड़ी आमने-सामने हैं। दोनों गठबंधनों में मुख्य तौर पर तीन-तीन पार्टियां शामिल हैं। पर असल में महाराष्ट्र चुनाव में मुख्य मुकाबला दो पार्टियों के बीच है। विभाजन के बाद दो पार्टियों से टूटकर बनी यह पार्टियों के बीच खुद को मतदाता के सामने असल पार्टी साबित करने की चुनौती है। वर्ष 2019 विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की सियासत काफी बदली है। कभी भाजपा की सबसे मजबूत सहयोगी माने जाने वाली शिव सेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ आने से प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदल गए है। इसके बाद 2022 में शिवसेना और एनसीपी में टूट ने प्रदेश की सियासत में नए समीकरण गढ़ दिए। शिवसेना और एनसीपी टूटकर दो पार्टियों से चार पार्टियों में बदल गई। लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) भाजपा की अगुवाई वाले महायुति गठबंधन पर भारी पड़ी। एमवीए में शामिल कांग्रेस, शिवसेना (यूटीबी) और एनसीपी (एसवी) 48 में से 30 सीट जीतने में सफल रही। जबकि महायुति में शामिल भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार) के हिस्से में सिर्फ 17 सीटें आईं। इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। इसी तरह वरिष्ठ नेता शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने अजीत पवार की एनसीपी से अच्छा प्रदर्शन किया। ऐसे में महाराष्ट्र चुनाव में महाविकास अघाड़ी और महायुति में सीधा मुकाबला होने के बावजूद असल लड़ाई शिवसेना और एनसीपी के अलग-अलग धड़ों के बीच है। विधानसभा चुनाव में मतदाता अपने वोट के जरिए यह साबित करेंगे कि उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे में असली शिवसेना किसकी है। इसी तरह चाचा शरद पवार और भजीते अजित पवार की अध्यक्षता वाली कौन सी एनसीपी ज्यादा प्रभावशाली है। लोकसभा चुनाव के परिणाम को विधानसभा की सीट के मुताबिक देखें तो एमवीए 156 और महायुति 126 सीट पर बढ़त बनाने में सफल रही है। इसलिए शिवसेना और एनसीपी के दोनों धड़ों के बीच आमने-सामने की लड़ाई तो है साथ ही अपने-अपने गढ़ को बरकरार रखने की चुनौती भी है। शिवसेना के दोनों हिस्सों के बीच जहां कोकणा की 39 सीट पर मुख्य मुकाबला है। इस क्षेत्र की 26 सीट पर उद्धव की शिवसेना और शिंदे की शिवसेना से आमने-सामने हैं। इसी तरह पश्चिमी महाराष्ट्र की 58 सीट पर मुकाबला शरद पवार और अजीत पवार की अध्यक्षता वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच है। वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया था। इस चुनाव में एनसीपी ने 54 सीटें जीती थीं। पर बाद में पार्टी में टूट के बाद 40 विधायक अजित पवार के साथ चले गए और राज्य में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में शामिल हो गए। कुल मिलाकर महाराष्ट्र में गठबंधनों के बीच लड़ाई तो है ही साथ-साथ असली-नकली लड़ाई भी चल रही है।

Saturday, 26 October 2024

प्रियंका गांधी को उम्मीदवार बनाकर साधे समीकरण

आखिरकार कांग्रेस पार्टी ने महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड उपचुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसके साथ ही भारतीय चुनावी राजनीति में प्रियंका की शुरुआत हो गई है। प्रियंका ने 23 अक्टूबर को केरल की वायनाड लोकसभा सीट से अपना पर्चा दाखिल कर दिया है। लेकिन पहली बार वे अपने लिए वोट मांग रही हैं। वहीं राहुल गांधी ने बहन के लिए प्रचार करते हुए कहा कि वायनाड के अब दो सांसद हैं एक औपचारिक और एक अनौपचारिक। ये सीट पहले उनके भाई राहुल गांधी के पास थी। उन्होंने दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, वायनाड और रायबरेली। अब पार्टी ने उनकी बहन प्रियंका गांधी के चुनावी डेब्यू के लिए वायनाड सीट को चुना है। राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, वायनाड के लोगों के लिए मेरे दिल में खास जगह है। मैं उनके प्रतिनिधि के तौर पर अपनी बहन से बेहतर किसी उम्मीदवार की कल्पना नहीं कर सकता था। मुझे उम्मीद है कि वो वायनाड की जरूरतों के लिए जी जान से काम करेंगी और संसद में एक मजबूत आवाज बनकर उभरेंगी। अगर प्रियंका गांधी जीतती हैं तो गांधी परिवार के मौजूदा तीनों सदस्य सांसद हो जाएंगे। राहुल गांधी लोकसभा के सदस्य हैं और सोनिया गांधी राज्यसभा में हैं। भारतीय जनता पार्टी ने वायनाड लोकसभा उपचुनाव के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा के खिलाफ नाव्या हरिदास को चुनाव मैदान में उतारा है। नाव्या हरिदास ने रविवार को कहा कि गांधी परिवार इन निर्वाचन क्षेत्र को महज एक विकल्प या दूसरी सीट के रूप में देख रहा है और इस क्षेत्र के लोगों को अब यह बात समझ आ गई है। कोझिकोड निगम में दो बार पार्षद रही हरिदास ने कहा कि वायनाड के मतदाता एक ऐसे नेता चाहते हैं जो उनके लिए खड़ा हो और उनकी समस्याओं का ध्यान करे। पत्रकारों से बातचीत के दौरान हरिदास ने कहा कि जहां तक पूरे देश का सवाल है, तो प्रियंका गांधी वाड्रा कोई नया चेहरा नहीं हैं लेकिन वायनाड के लिए वह नई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रियंका गांधी परिवार के प्रतिनिधि के रूप में आ रही हैं, जो वायनाड के मुद्दों को उठाने में असफल रहा है। कांग्रेस पार्टी ने बहुत सोच-समझकर सांसद में वायनाड से प्रियंका को चुनाव मैदान में उतारा है। इनके जरिए पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति के साथ केरल की सियासत को साधने की कोशिश की है। केरल में वर्ष 2026 में विधानसभा चुनाव है। पार्टी के अंदर लंबे समय से यह मांग उठती रही है कि प्रियंका को चुनाव मैदान में उतरना चाहिए पर कांग्रेस इसे टालता रहा। प्रियंका को उम्मीदवार बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि कांग्रेस ने वायनाड के साथ कोई धोखा नहीं किया। राहुल गांधी ने अगर रायबरेली चुनी है तो अपनी बहन को वायनाड भेजा है क्योंकि, दक्षिण भारत में कर्नाटक के अलावा पार्टी की स्थिति कहीं भी बहुत मजबूत नहीं हैं। प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने से यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस दक्षिण को लेकर गंभीर है। लोकसभा चुनाव में पार्टी केरल की 20 में 14 सीटें जीतने में सफल रही थी। पार्टी को उम्मीद है कि प्रियंका गांधी का असर विधानसभा चुनाव पर भी दिखाई देगा। इसके साथ प्रियंका गांधी के जरिए पार्टी ने उत्तर व दक्षिण दोनों में ही अपना संतुलन बनाया है। प्रियंका अगर जीत कर आती है तो लोकसभा में मजबूती से अपनी बातें हिन्दी में रखने वाली वक्ता बनेंगी। -अनिल नरेन्द्र

3 दिन में सरकार बनानी होगी

महाराष्ट्र विधानसभा की तारीख बड़ी दिलचस्प है। यदि किसी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला या कोई मतभेद हो गया तो राष्ट्रपति शासन की नौबत आ जाएगी। दरअसल 20 नवम्बर को मतदान होगा और 23 नवम्बर को नतीजा आएगा। इसके 72 घंटे के अंदर नई सरकार को शपथ लेनी पड़ेगी। क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवम्बर को खत्म हो रहा है। नई सरकार इससे पहले बनना संवैधानिक बाध्यता है, दरअसल नतीजे 23 को देर शाम तक आएंगे। फिर विजेताओं को निर्वाचन आयोग सर्टिफिकेट देगा। बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन 24 को राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा करेगा। राज्यपाल जरूरी शर्तों की समीक्षा के बाद सरकार बनाने के लिए दावेदार को बुलाएंगे फिर शपथ ग्रहण होगा और सरकार बनेगी। बड़ा सवाल यह है कि यदि किसी को बहुमत न मिला तो राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का न्यौता दे सकते हैं। हालांकि यह न्यौता पाने वाले पर निर्भर है कि वह सरकार बनाए या नहीं। मान लें किसी गठबंधन के पास संख्या बल है पर घटक दलों में तनातनी हो जाए तो सरकार बनाने का रास्ता कठिन हो जाएगा। ऐसे में राष्ट्रपति शासन ही विकल्प बचेगा और इसका फैसला तुरन्त लेना पड़ेगा। यदि किसी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला तो उसे 24 को राज्यपाल से मिलने का समय लेना होगा। राजभवन को तत्काल मिलने का समय देना होगा, इसमें देरी भी हो सकती है। ऐसे में गठबंधन या पार्टी विधायक दल के नेता को 25 तक सरकार बनाने के लिए राज्यपाल को बुलाना होगा। 26 को शपथ ग्रहण करना होगा। महाराष्ट्र एक बहुत बड़ा राज्य है। दूरदराज इलाकों से जीते हुए विधायकों को भी समय पर पहुंचना होगा, जो काम आसान नहीं होगा। शिवसेना (उद्धव ठाकरे) नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग द्वारा महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के लिए केवल 48 घंटे का समय निर्धारित किया जाना भाजपा की चाल है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार बनाने का दावा करने में असमर्थ हो जाए। राज्यसभा सासंद ने संवाददाताओं से बातचीत में आरोप लगाया। अमित शाह के साथ भाजपा ने यह स्वीकार कर लिया है कि पार्टी महाराष्ट्र चुनाव नहीं जीत पाएगी। ऐसा लगता है कि महाविकास अघाड़ी को सरकार बनाने के बारे में चर्चा करने और निर्णय लेने के लिए समय सीमित करने की रणनीति है। अगर एमवीए के घटक दावा करने में विफल रहते हैं, तो राज्यपाल छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करेंगे। उन्होंने कहा कि मतगणना 23 नवम्बर को होगी, जिसका मतलब है कि एमवीए के घटक दलों - शिवसेना (यूवीटी), कांग्रेस - राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) और अन्य छोटे दलों के पास सरकार बनाने के लिए केवल 48 घंटे होंगे। यह सही नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग का यह कदम भाजपा प्रवक्ता के समान है। आयोग ईवीएम का समर्थन करता है, लेकिन जब हरियाणा चुनावों में इन मशीनों के साथ की गई छेड़छाड़ के बारे में कहते हैं तो यह चुप्पी साध लेती है, आयोग ने लोकसभा चुनावों के दौरान धन के दुरुपयोग की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने लगभग 200 विधानसभा क्षेत्रों में 15 करोड़ रुपए वितरित करने का फैसला किया है और यह सरकारी धन है।

Thursday, 24 October 2024

चूका इजराइल का एयर डिफेंस, नेतन्याहू के घर पर हमला


इजराइल में शनिवार को प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आवास पर ड्रोन हमला हुआ। यह कल्पना से बाहर था (अब तक) की कोई इतनी जुर्रत कर सकता है कि इजराइल के प्रधानमंत्री के आवास पर सीधा हमला करे। पर हिज्जबुल्ला ने यह करके दिखा दिया। इजराइली प्रधानमंत्री के कार्यालय ने बताया कि ड्रोन हमला नेतन्याहू के भूमध्य सागर के तटवर्ती शहर सीजेरिया में स्थित आवास पर हुआ इससे पहले लेबनान से बड़ी संख्या में राकेट और ड्रोन इजराइल पर छोड़े गए थे। इनमें से ज्यादातर को इजराइली एयर fिडफेंस सिस्टम ने आकाश में ही नष्ट कर दिया, लेकिन नेतन्याहू के आवास को निशाना बनाने वाले ड्रोन को नष्ट करने से सिस्टम चूक गया। इस चूक ने इजराइली सुरक्षा तंत्र की चिंता बढ़ा दी है। हिज्जबुल्ला ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह अब इजराइल के किसी भी कोने पर हमला कर सकता है। इससे पहले सितम्बर में यमन से हूती विद्रोहियों द्वारा दागी गई बैलिस्टिक मिसाइल दो हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करके बैनगुरियन एयरपोर्ट के पास तक आ गई थी। यह लगभग वही समय था जब प्रधानमंत्री नेतन्याहू का विमान उतरने वाला था। इस मिसाइल के एयर डिफेंस ने नष्ट करने का दावा किया था। बेजमिन नेतन्याहू ने अपने आवास पर हमले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि हिज्जबुल्ला ने मेरी हत्या की कोशिश करके बहुत बड़ी गलती की है। उनके कार्यालय ने एक बयान में बताया कि जिस वक्त यह हमला हुआ उस वक्त प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी वहां पर नहीं थे। इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ है, बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी निजी आवास पर छोड़े गए ड्रोन को लेकर कहा, ईरान की प्रॉक्सी हिज्जबुल्ला का मेरी और मेरी पत्नी की हत्या करने की कोशिश करना बहुत बड़ी गलती है। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर लिखा, यह मुझे या इजराइल को हमारे भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अपने दुश्मनों के खिलाफ युद्ध जारी रखने से नहीं रोकेगा। मैं ईरान और उसके प्रॉक्सी से कहना चाहता हूं, जो भी हमारे लोगों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। हम आतंकवादियों को खत्म करना जारी रखेंगे। हम अपने बंधकों को गाजा से वापस घर लेकर आएंगे। नेतन्याहू ने कहा कि हमने हत्यारे याहया सिनवार को मार दिया है। इसी बीच ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेइनी ने कहा कि सिनवार से पहले फिलिस्तीन के कई नेताओं के मारे जाने के बाद भी हमास अपना अभियान जारी रखे हुए है। उन्होंने कहा कि हमास जिंदा है और जिंदा रहेगा। नेतन्याहू के निजी आवास के पास हमले के बाद इजराइल ने गाजा और लेबनान दोनों मोर्चों पर लड़ाई तेज कर दी है। उधर अमेरिका उन लीक दस्तावेजों की जांच कर रहा है जिसमें आंकलन किया गया है कि इजराइल ईरान पर हमला करने का प्लान बना रहा है। एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि वैध दस्तावेज लग रहे हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के हवाले से चिह्नित सीक्रेट दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि इजराइल ईरान के हमले के जबाव में सैन्य हमले करने के लिए सैन्य साजो-सामान शिफ्ट कर रहा है।

-अनिल नरेन्द्र


जहाजों में बम की अफवाहों से खलबली।

पिछले सप्ताह ही कम से कम 30 ऐसी धमकियां मिलीं थीं जिनकी वजह से विमानों का रूट बदलना पड़ा था। फ्लाइट कैसिंल हुई या फिर काफी देर बाद उड़ान भरी गई। इस साल जून में एक ही दिन में 41 हवाई अड्डों को ईमेल के जरिए बम से उड़ाने की झूठी धमकियां मिली थीं। नागरिक उड्डयन मंत्री राजमोहन नायडू का कहना है कि मैं भारतीय एयरलाइंस को निशाना बनाने वाली हालिया घटनाओं से बहुत चिंतित हूं। इससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने प्रभावित हो रही हैं। इस तरह की शरारती और गैर कानूनी हरकतें गंभीरता का विषय है। एयर इंडिया, विस्तारा, अकासा एयर, स्पाइस जेट, स्टार एयरलाइंस और एलायंस एयर के विमानों को बम की धमकी मिली। उड़ानों को सोशल मीडिया से बम की धमकी दी गई। एक विमान के शौचालय में नोट मिला। भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाजार है। यहां ऐसी अफवाहें भारी नुकसान करती हैं। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अनुसार पिछले साल भारत में 15 करोड़ से अधिक यात्रियों ने घरेलू उड़ान भरी। देश में 33 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों सहित 150 से अधिक हवाई अड्डों से रोज 3000 से अधिक उड़ाने लैंड होती हैं या उड़ान भरती हैं। पिछले हफ्ते ये झूठी अफवाहों से स्थिति चरम पर थी। इस दौरान भारत की एयर लाइंस पर 14 अक्टूबर को एक दिन के रिकार्ड 4,84,263 यात्री सवार हुए। भारत में 700 से भी कम वाणिज्यक यात्री विमान हैं। विमानन कपंनियों को मिल रही धमकियों को लेकर सुरक्षा एजेंसियों की बेचैनी बढ़ गई है। गृह मंत्रालय ने उड्डयन मंत्रालय से रिपोर्ट तलब की है। शनिवार की शाम को सिविल एविएशन सिक्यूरिटी ने विमानन कपंनियों के प्रमुखों के साथ बैठक की जिसमें धमकियों के मद्देनजर यात्रियें को होने वाली असुविधा और आर्थिक नुकसान पर भी चर्चा हुई। सूत्रों ने बताया कि इन धमकियों की वजह से हुई अव्यवस्था के चलते करीब 80 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। सोशल मीडिया पर गुमनाम अकाउंट से बम धमकियों में नाटकीय वृद्धि के कारण अपराधियों की पहचान करने के प्रयास जटिल हो गए हैं। खासकर तब जब ईमेल सीधे एयरलाइंस को भेजे जा रहे हैं। इन धमकियों का मकसद साफ नहीं है और ये भी नहीं मालूम है कि इनके पीछे कोई एक व्यक्ति है या कोई गुट। पिछले हफ्ते इस तरह की धमकियां देने के लिए सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के आरोप में एक 17 वर्षीय लड़के को गिरफ्तार किया गया था। ये स्पष्ट नहीं कि उसने ऐसा क्यों किया लेकिन माना जाता है कि इसने चार उड़ानों को निशाना बनाया।

Tuesday, 22 October 2024

यूक्रेनी महिलाओं ने मार गिराया रूसी ड्रोन


यूक्रेन का एक शहर है बुचा। यहां अंधेरा छाते ही रूस के हमलावर ड्रोन का झुंड आना शुरू हो जाता है। लेकिन ठीक उसी समय निकलती है कुछ बेखौफ महिलाएं। बात हो रही है यूक्रेन की एयर डिफेंस यूनिट की, जिसमें ज्यादातर महिलाएं ही शामिल हैं। ये महिलाएं खुद को विचेज ऑफ बुचा कहती हैं। ये एयर डिफेंस यूनिट की वालंटियर हैं। चूंकि पुरुषों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर भेजा जा रहा है ऐसे में महिलाएं यूक्रेन के आसमान की हिफाजत के लिए आगे आ रही हैं। यूक्रेन के सैनिक अक्सर रूस के उन ड्रोन्स पर निगाह रखते हैं, यह उनके मिसाइल हमलों से पहले एक साथ लहर के तौर पर भेजा जाता है ताकि यूक्रेनी सैनिकों की प्रमुख सुरक्षा पंक्ति पर हावी हुआ जा सके। कई लोग कहते हैं कि यह एक तरीका है। उस विवशता से बाहर आने का, जो उस वक्त महसूस हुई थी जब रूसी सेना ने बड़े पैमाने पर हमले कर बुचा पर कब्जा कर लिया था। ये उन दिनों की डरावनी कहानियां हैं, जिनमें हत्या, यातना और अपहरण जैसी घटनाएं शामिल हैं। ये तब बाहर आना शुरू हुईं जब मार्च 2022 के अंत में यूक्रेनी सेना ने इन इलाकों को आजाद करवा लिया। वेलेंतिना एक पशु चिकित्सक हैं, जो इन गर्मियों में ड्रोन बस्टर्स के तौर पर जुड़ी थीं, उनका कॉलसाइन (पुकारे जाने वाला नाम) वालिकरी है। मैं 51 साल की हूं। मेरा वजन 100 किलो है, मैं दौड़ नहीं सकती हूं। मुझे लगा था कि वो मुझे पैकिंग का काम सौंपेंगे मगर उन्होंने ड्रोन बस्टर्स टीम में ले लिया। वेलेंतिना कहती हैं, मैं यह काम कर सकती हूं। यह किट भारी है लेकिन हम महिलाएं ये कर सकती हैं। वेलेंतिना को ऐसा करके दिखाने का। मौका मिलता है, क्योंकि कुछ घंटों बाद पूरे इलाके में हवाई अलर्ट जारी हो जाता है। उनकी यूनिट अपने वेस से जंगल की ओर भागती है और हम अंधेरे में उनके पिकअप ट्रकों के पीछे चलते हैं जो मैदान के बीच से आगे बढ़ रहा है। इस टीम में एक मात्र पुरुष हैं जिन्हें इनमें कुलेंट के तौर पर हाथ से बोतल-पानी डालना पड़ता है। लेकिन बाबा आदम के जमाने के इन हथियारों का रखरखाव काफी अच्छा है। इन महिलाओं ने बताया कि उन्होंने इन हथियारों से अब तक तीन ड्रोन मार गिराए हैं। वेलेंतिना बताती हैं, मेरी भूमिका ड्रोन की आवाज ध्यान से सुनने की है। यह परेशान करने वाला काम है, लेकिन हमें हर पल हल्की सी आवाज को सुनने के लिए भी सतर्क रहना पड़ता है। वॉल्ँटियर यूनिट पर कोई सार्वजनिक डेटा नहीं है। ये नहीं मालूम कि इसमें कितनी महिलाएं शामिल हैं। मगर जैसे ही रात को रूस के विस्फोटकों से भरे ड्रोन आते हैं, तो ये यूनिट बड़े कस्बों और घरों के ऊपर एक अतिरिक्त ढाल के इर्द-गिर्द सुरक्षा की एक बड़ी ढाल बनाने में मदद करती हैं। इन महिलाओं ने अपनी तैनाती वाली जगह से अपने टैबलेट पर दो ड्रोन ट्रैक किए। ये दोनों पड़ोसी इलाके के ऊपर मंडरा रहे थे। शुरुआत में महिलाओं को सेना व सुरक्षा बलों में शामिल करने की बात को मजाक समझा जाता था। महिलाओं पर कम भरोसा किया जाता था। लेकिन अब ये सोच पूरी तरह बदल गई है। महिलाएं वीकेंड का अधिकतर वक्त मिलिट्री ट्रेनिंग लेने में बिताती हैं, मगर महिलाओं की प्रतिबद्धता और फोकस साफ है, वो अपनी निजी और गहरी वजहों से ऐसा कर रही हैं। वेलेंतिना कहती हैं मुझे मेरा पेशा याद है। मुझे अपने बच्चों की दहशत याद है, वो गहरी सांस लेकर कहती हैं, हम जब भाग रहे थे और बिखरी लाशें याद आ रही थीं।

-अनिल नरेन्द्र

विकास यादव कौन है, जिन पर लगे हत्या के आरोप


अमेरिका के न्याय मंत्रालय ने 17 अक्टूबर को भारतीय नागरिक विकास यादव के खिलाफ भाड़े पर हत्या और मनी लांड्रिग का मामला दर्ज करने की घोषणा की। ये मामला 2023 में न्यूयार्क शहर में अमेरिकी नागरिक और सिख अलगाववादी, आतंकवादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू के कत्ल की नाकाम साजिश से जुड़ा है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उसकी हत्या की साजिश में विकास यादव की अहम भूमिका थी। जहां अमेरिकी न्याय मंत्रालय ने यादव को भारत सरकार का कर्मचारी बताया है। वहीं भारत कह चुका है कि विकास यादव अब भारत सरकार के कर्मचारी नहीं है। अमेरिका ने विकास यादव और निखिल गुप्ता पर भाड़े पर हत्या की कोशिश का आरोप लगाया है जिसके लिए वहां के कानून के मुताबिक अधिकतम 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान है। साथ ही दोनों अभियुक्तों पर भाड़े पर हत्या करने की साजिश रचने का भी आरोप लगाया गया है जिसके लिए भी अधिकतम 10 वर्ष की जेल का प्रावधान है। अमेरिकी प्राधिकारियों ने भारत सरकार के इस पूर्व अधिकारी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजकीय यात्रा के आसपास यह आरोप लगाया। संघीय अभियोजकों ने न्यूयार्क स्थित एक अमेरिकी अदालत में दायर एक अभियान में दावा किया कि विकास यादव (39) कैबिनेट सचिवालय में कार्यरत था, जहां भारत की विदेश खुफिया सेवा रिसर्च एंड एनलाइसिस विंग (21) का मुख्यालय है। अमेरिका के मुताबिक यादव भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम करते थे जो कैबिनेट सचिवालय का हिस्सा है। अमेरिकी न्याय मंत्रालय ने कहा है कि विकास यादव ने अपने पद को वरिष्ठ फील्ड ऑफिसर के रूप में बताया है जहां उनकी जिम्मेदारियां सुरक्षा प्रबंधन और खुफिया प्रबंधन है। भारत सरकार ने अमेरिका की धरती पर किसी अमेरिकी नागरिक की हत्या की साजिश में अपनी संलिप्तता से इंकार किया है। अमेरिका के आरोपों के बाद भारत ने मामले की जांच के लिए एक भारतीय जांच समिति गठित की थी। अमेरिका ने इस मामले में भारत के सहयोग पर संतोष भी जताया है। अदालत में दूसरा अभियोग पत्र के मुद्दे पर संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई), न्याय मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की एक अंतर एजेंसी टीम के साथ बैठक के लिए यहां भारतीय जांच समिति की आने के 48 घंटे के भीतर दायर किया गया है। इस पूरे प्रकारण का भारत और अमेरिका के रिश्तों पर क्या असर होगा? जानकार कहते हैं मुझे नहीं लगता कि इस समय कोई सीधा असर होगा। दोनों देश जानते हैं कि इन घटनाओं से ज्यादा मायने रखता है, उनके बीच का बड़ा रिश्ता। अमेरिकी अच्छी तरह जानते हैं कि वे संप्रभुता के सिद्धांतों का इस्तेमाल कर आतंकवादियों, चरमपंथियों और अलगाववादियों को संरक्षण दे रहा है इस पर आवाज उठानी होगी। ऐसा नहीं है कि आप (अमेरिका) एक बड़ी ताकत है तो आप कुछ भी कर सकते हैं और उन देशों की सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में नहीं रखेंगे। जो आपके दोस्त या रणनीतिकार साझेदार हैं। अगर हमारे पास क्षमता और योग्यता है और अगर हमारे रणनीतिक साझेदार हमारी सुरक्षा चिंताओं का ख्याल नहीं रख सकते हैं तो हमें खुद ही उनका ख्याल रखना चाहिए। लेकिन यह भारत की नीति नहीं है। अमेरिका जैसे देश सिर्फ शक के आधार पर देशों पर बम गिराते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। और फिर आप उम्मीद करते हैं कि दूसरे अपनी रक्षा के लिए कुछ नहीं करेंगे और हाथ पर हाथ रखकर तमाशा देखते रहेंगे तो यह आपकी भूल है। भारत-अमेरिका को मिलकर इस मसले का हल निकालना होगा।

Saturday, 19 October 2024

झारखंड में दोनों झामुमो और भाजपा के लिए चुनौती

झारखंड में विधानसभा चुनाव की आधिकारिक घोषणा भले ही मंगलवार को हुई हो, लेकिन चुनावी बिसात पर शह-मात का खेल पिछले कई महीनों से जारी है। ईडी की कार्रवाई के कारण हेमंत सोरेन को पद छोड़ना पड़ा। वे लगभग 5 महीने जेल में रहे। जेल से वापस आने के बाद उन्हें अपने दल में उथल-पुथल का एहसास हुआ। समय रहते ही उन्होंने फिर मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया। कुछ समय बाद भाजपा ने उनके विश्वस्त पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को तोड़ लिया। हेमंत पर फिलहाल पूरे गठबंधन के नेतृत्व का दारोमदार है। सहुलियत के लिहाज से वे खाली कांग्रेस, राजद और वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। हेमंत की चुनौती फिर से सत्ता में वापसी की है। वहीं, विपरीत परिस्थितियों में जीत दिलाने में माहिर मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को राज्य में पार्टी के चुनाव की कमान सौंपने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय जनता पार्टी राज्य में सत्ता हासिल करने को लेकर किस कदर गंभीर हैं। वैसे भाजपा के लिए आसान नहीं है जीत हासिल करना। सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत लगा रही भाजपा के सामने झामुमो सबसे बड़ी बाधा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने और बाहर आने के दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने राज्य की राजनीति में अपनी पैठ गहरी की है। कल्पना के कार्यक्रमों में उमड़ रही भीड़ और महिलाओं का समर्थन झामुमो के लिए लाभ का सौदा हो सकता है। वहीं, भाजपा को आजसू व जद (यू) के साथ अपने गठबंधन के कारण सत्ता में लौटने का भरोसा है। साथ ही वह आदिवासी समुदाय में भी समर्थन हासिल कर रही है। झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा सहयोगी दलों जद यू और आजसू के साथ मिलकर मैदान में उतरी है। पार्टी को पिछली बार के मुकाबले ज्यादा लाभ की उम्मीद है, क्योंकि तब सब अलग-अलग लड़े थे और इससे भाजपा को नुकसान हुआ था। तत्कालीन सीएम रघुबर दास की गैर आदिवासी राजनीति पर जोर देने से भी भाजपा को घाटा हुआ था। यह नुकसान भाजपा को हाल के आम चुनाव में ही हुआ। हालांकि भाजपा रणनीतिकारों का कहना है कि झारखंड चुनाव इस बार भाजपा के लिए ज्यादा आसान होगा। हरियाणा में भाजपा को मिली जीत का असर भी झारखंड में पड़ सकता है और विरोधी खेमे में आत्म विश्वास कम हुआ है। झामुमो की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन की आस मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करिश्मे पर टिकी हैं। जमानत पर बाहर आने के बाद फिर से सरकार की बागडोर संभालने के बाद से ही हेमंत ने स्वजातीय वोट बैंक को साधने की पहल की है। वहीं भाजपा ने ओबीसी वोट बैंक को साधने और झामुमो के आदिवासी वोट बैंकों में सेंध लगाने की रणनीति बनाई है। वहीं झामुमो की रणनीति आदिवासी वोट बैंक को साधे रखने के साथ ही भाजपा के ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने की है। पार्टी को लगता है कि इसमें कांग्रेस और राजद मददगार साबित होंगे। -अनिल नरेन्द्र

महायुति बनाम महाविकास अघाड़ी

पिछले पांच वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रत्याशित उथल-पुथल हुई है। राज्य की जनता ने एक के बाद कई सियासी झटके देखे। लेकिन क्या जनता इन झटकों को पचा पाई, यह आने वाले हफ्तों में साफ हो जाएगा। चुनावों की घोषणा के साथ राज्य में छह प्रमुख राजनीतिक दलों की परीक्षा शुरू हो चुकी है। महाराष्ट्र में 288 सीटों पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। 2019 से 2024 तक पांच साल का कार्यकाल महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रत्याशित घटनाओं का दौर रहा है। इस बार चुनाव में दो नई पार्टियां नजर आएंगी। दरअसल, ये दोनों नई पार्टियां पिछली बार चुनाव लड़ चुकी दो पार्टियों से अलग होकर बनी हैं। पिछले पांच वर्षों की राजनीतिक घटनाओं की वजह से इन पार्टियों का गठन हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा में शिव सेना शिंदे गुट के पास 40 विधायक हैं। भाजपा के पास 103 विधायक और एनसीपी (अजित पवार) के पास 40 विधायक हैं। दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी से एनसीपी (शरद पवार) के पास 13 विधायक हैं, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के साथ 15 विधायक हैं और कांग्रेस के 43 विधायक हैं। इसके अलावा राज्य में बहुजन विकास अघाड़ी के तीन, समाजवादी पार्टी के 2, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदुल मुस्लिमीन के 2, प्रहार जन शक्ति 2, एमएनएस के 1, कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) 1, भारतीय किसान एवं मजदूर दल 1, स्वाभिमानी पक्ष 1, राष्ट्रीय समाज पार्टी 1, महाराष्ट्र जनसुराज शक्ति पार्टी के 1, क्रांतिकारी पार्टी के 1 और निर्दलीय 13 विधायक हैं। 2019 का विधानसभा चुनाव शिव सेना और भाजपा के गठबंधन ने मिलकर लड़ा था। दूसरी और कांग्रेsस और एनसीपी गठबंधन ने भी साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही महाराष्ट्र में दोनों गठबंधनों सत्तारुढ़ महायुति और महाविकास अघाड़ी (एमपीए) की चुनौतियां बढ़ गई हैं। महायुति की जीत की हैट्रिक लगाने की है तो एमवीए के सामने लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन बरकरार रखते हुए बीते दो चुनाव से जारी सूखा खत्म करने की। सवाल यही है कि क्या भाजपा की अगुवाई में महायुति महाराष्ट्र में हरियाणा जैसा पलटवार दोहरा पाएगी या फिर एमवीए हरियाणा की हार से सबक सीखते हुए इस बार बाजी मार जाएगी? लोकसभा चुनाव के नजरिए से देखें तो महाराष्ट्र और हरियाणा में कई समानताएं नजर आएंगी। हरियाणा में पांच सीटें छीनने वाली कांग्रेस को भाजपा से महज डेढ़ फीसदी अधिक वोट मिले और महाराष्ट्र में महायुति को 17 सीटों पर सीमित करने वाले एमवीए को महज 0.16 फीसदी वोट अधिक मिले। दोनों ही राज्यों में भाजपा की अगुवाई वाले राजग को ओबीसी, दलित वोट बैंक में सेंध लगने का नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाकर भाजपा ने कांग्रेsस से हिसाब-किताब बराबर कर लिया। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में लगे झटके से उबरने के लिए महायुति की निगाहें छिटक चुके 40 फीसदी ओबीसी और 10 फीसदी वोट दलित वोट बैंक पर हैं, जिसकी नाराजगी की कीमत आम चुनाव में उठानी पड़ी थी। दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी में शरद पवार जैसे चाणक्य मोर्चा संभाले हुए हैं। राहुल गांधी ने भी हरियाणा की हार से सबक सीखा है। पार्टी टूटने व सिंबल छिनने के बावजूद उद्धव ठाकरे अपनी जड़े जमाए हुए हैं और उनकी असली-नकली लोकप्रियता भी सामने हैं। इस चुनाव में पार्टी का भी फैसला होगा। लोकसभा चुनाव में एनसीपी (अजित) को सिर्फ 1 सीट मिली थी, वहीं शरद पवार गुट को 8 सीटें मिलीं तो शिवसेना (उद्धव) 9 तो शिवसेना (शिंदे) ने 7 सीटें जीतीं।

Thursday, 17 October 2024

उत्तर प्रदेश के उपचुनाव सभी के लिए चुनौती


लोकसभा चुनावों में जोरदार कामयाबी के बाद उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए चुनौती है। हरियाणा की अप्रत्याशित सफलता के बाद से उत्साहित भाजपा के सामने अब झारखंड व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के साथ उत्तर प्रदेश में होने वाले दस विधानसभा सीटों में से 9 पर उपचुनाव की बड़ी चुनौती है। याद रहे कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से ही बड़ा झटका लगा था। जिसकी वजह से वह अपने दम पर स्पष्ट बहुमत हासिल करने में चूक गई थी। उत्तर प्रदेश में जिन दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं इनमें नौ सीटें विधायकों के लोकसभा सांसद बनने से खाली हुई हैं। जबकि सीसामऊ की एक सीट पर चुनाव सपा विधायक इरफान सोलंकी की सदस्यता रद्द होने से हो रहा है। इन दस सीटों में सपा के पास 5, भाजपा के पास तीन और दो सीटें उसके सहयोगी रालोद व निषाद पार्टी के पास हैं। इसमें अयोध्या की अति प्रतिष्ठित सीट मिल्कीपुर भी शामिल है। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि विधानसभा चुनाव में आमतौर पर स्थानीय मुद्दों व सामाजिक समीकरणों से प्रभावित होता है। ऐसे में इनको लोकसभा चुनाव के परिणामों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। अब हरियाणा से निकला जाट बनाम गैर जाट ओबीसी का यह नैरेटिव आगे बढ़ता है तो भाजपा की यूपी में चिंता बढ़ाएगा। दरअसल भाजपा को खासतौर पर उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन को मजबूत बनाए रखना है। वहां भाजपा हरियाणा की तरह यादव बनाम अन्य ओबीसी नहीं कर सकती। क्योंकि यादवों का करीब-करीब एक मुश्त वोट सपा के समर्थन में रहता है। मगर सपा-कांग्रेस गठबंधन जाटों के साथ दलित और मुस्लिम समीकरण बनाते हैं तो भाजपा की राह पथरीली हो जाती है। अन्य ओबीसी में सेंध लगाकर सपा से पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव में भाजपा का नुकसान कर दिया। वैसे सीएम योगी का कटेंगे तो बटेंगे वाला बयान इस प्रयास का हिस्सा है। वहीं, भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व योगी सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री नरेन्द्र कश्यप को विश्वास है कि जाट नाराज नहीं हैं। भाजपा को रालोद से गठबंधन का भी लाभ मिलेगा। उधर यह उपचुनाव इंडिया और विशेषकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती पेश करेंगे। कांग्रेस ने 10 सीटों में से पांच पर दावा किया है। उधर अखिलेश यादव ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कांग्रेस और सपा के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनती है या नहीं। अखिलेश ने यह तो घोषणा कर दी है कि यूपी में सपा-कांग्रेस का गठबंधन जारी रहेगा। हरियाणा परिणामों के बाद कांग्रेस की सौदेबाजी करने की स्थिति अब मजबूत नहीं है। हमें लगता है कि सीट बंटवारे में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। लोकसभा में अभूतपूर्व सफलता के बाद अखिलेश के सामने यह उपचुनाव जीतने की भारी चुनौती है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी सियासी भविष्य इस चुनाव पर टिका हुआ है। यह किसी से नहीं छिपा की दिल्ली उनको हटाना चाहती है। वह देख रही है कि इन उपचुनावों का परिणाम क्या होता है। इन उपचुनावों में जहां मोदी-शाह-योगी की इज्जत दांव पर लगी है वहीं इंडिया एलायंस, अखिलेश यादव और कांग्रेस की भी प्रतिष्ठा दांव पर है।

-अनिल नरेन्द्र

 

सवाल बाबा सिद्दीकी की हत्या की टाइमिंग पर


महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और अजित पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता बाबा सिद्दीकी के शव को रविवार शाम राजकीय सम्मान के साथ मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में दफनाया गया। बाबा सिद्दीकी की अंतिम यात्रा से पहले उनके आवास के बाहर नमाज-ए-जनाजा पढ़ी गई। अंतिम यात्रा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। इस मामले में शनिवार रात गिरफ्तार हुए दो लोगों में से एक शुभम लोनकर के भाई प्रवीण लोनकर को रविवार को पुणे से गिरफ्तार किया गया। माना जाता है कि प्रवीण लोनकर ने अपने भाई शुभम लोनकर के साथ मिलकर साजिश रची थी। प्रवीण लोनकर ने ही धर्मराज कश्यप और शिव कुमार गौतम को इस साजिश में शामिल किया था। धर्मराज कश्यप और गुरमेल सिंह पुलिस हिरासत में हैं। तीसरा अभियुक्त शिव कुमार फरार बताया जाता है और चौथे अभियुक्त मोहम्मद जीशान अख्तर के बारे में कहा जा रहा है कि वो बाकी तीन को गाइड कर रहा था। बाबा सिद्दीकी की शनिवार रात गोली मारकर हत्या के बाद महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था के ध्वस्त होने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। एक प्रेस कांफ्रेंस में मुंबई क्राइम ब्रांच के पुलिस आयुक्त दत्ता नलवाडे ने कहा है कि इस मामले में लारेंस बिश्नोई गैंग की भूमिका को लेकर जांच की जा रही है। बता दे कि लारेंस बिश्नोई इस समय अहमदाबाद की साबरमती जेल में एक साल से बंद है। प्रश्न यह भी उठ रहा है कि इतनी दूर से वो भी अतिसुरक्षित जेल से लारेंस बिश्नोई ऐसे जोखिम भरे हत्याकांड को कैसे अंजाम दे सकता है? क्या लारेंस बिश्नोई महज एक सुविधाजनक मैन है और उसके पीछे असल चेहरा और साजिश छिपी हुई है? बाबा सिद्दीकी की हत्या के बहुत बड़े मायने हैं और इसका चौतरफा असर हो सकता है। हरियाणा में भाजपा की जीत के बाद महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए बड़े जोश से भर गई भाजपा और एनडीए को इस हत्या ने बचाव की मुद्रा में ला दिया है। दोनों राज्यों में जल्द चुनाव होंगे। घोषणा से ठीक पहले इस हत्या के सियासी मायने के अलावा अपराधों के नजरिए से भी बड़ा मतलब है। क्या लारेंस बिश्नोई दाउद इब्राहिम की राह पर चलने की कोशिश कर रहा है? क्या मुंबई में 90 के दशक के गैंगवार की स्थिति फिर से स्थापित करने की कोशिश की जा रही है? दशहरे के दिन उद्धव ठाकरे और सीएम एकनाथ शिंदे ने मुंबई के दो बड़े मैदानों में अलग-अलग बड़ी सभाएं की। उसके थोड़ी देर बाद बांद्रा ईस्ट जैसे एरिया से बाबा सिद्दीकी की घटना घटती है। इसका असर दिल्ली तक महूसस किया गया है। मल्लिकार्जुन, राहुल गांधी से लेकर शरद पवार, उद्धव ठाकरे और संजय राउत तक हमलावर हो गए। बाबा सिद्दीकी तीन बार कांग्रेस के विधायक और राज्य सरकार में मंत्री रहे थे। छह महीने पहले ही वह अजित पवार गुट में शामिल हुए थे। बाबा और अन्य कुछ नेताओं से सलाह कर अजीत पवार विधानसभा में कुछ मुस्लिम नेताओं को टिकट देना चाहते थे। मकसद था मुस्लिम समुदाय में उनका अच्छा संदेश देना पर अब उल्टा मैसेज चला गया है। कानून-व्यवस्था पर विपक्ष के निशाने पर देवेन्द्र फडण्वीस जो गृह मंत्री भी हैं महाराष्ट्र के। चुनाव सिर पर आ गया है और इस समय हत्या पर भी प्रश्नचिह्न लगता है। हत्या की टाइमिंग पर गौर करे। ठीक विधानसभा चुनाव से पहले बाबा सिद्दीकी की हत्या से किस को और किन ताकतों को फायदा होगा? सवाल महाराष्ट्र पुलिस पर भी उठ रहे हैं। दूसरी तरफ लारेंस बिश्नोई जैसे गिरोह सरगनाओं की ओर से लगातार वारदात करने से देश और राज्यों के खुफिया तबके के अलावा पुलिस व अन्य एजेंसियों पर भी सवालिया निशाना लग रहे हैं।

Tuesday, 15 October 2024

जेलों में जातिगत भेदभाव


जेलों में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी। इतनी ही प्रशंसा उस रिपोर्ट या याचिका की भी होनी चाहिए जिसने सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा पर प्रहार का जरूरी साहस दिखाया। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के 11 राज्यों में जेल मैनुअल में जाति आधारित भेदभाव वाले प्रावधानों को खारिज करते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन हम अभी तक जाति आधारित भेदभाव को जड़ से समाप्त नहीं कर पाए हैं। ऐतिहासिक फैसले में जेलों में जाति के आधार पर कैदियों के बीच काम के बंटवारे को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि भेदभाव बढ़ाने वाले सभी प्रावधानों को खत्म किया जाए। शीर्ष अदालतों ने राज्यों के जेल मैनुअल के जाति आधारित प्रावधानों को रद्द करते हुए सभी राज्यों को फैसले के अनुरूप तीन माह में बदलाव का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि भेदभाव करने वाले सभी प्रावधान असंवैधानिक ठहराये जाते हैं। पीठ ने जेल में जातिगत भेदभाव पर स्वत संज्ञान लेते हुए रजिस्ट्री को तीन महीने बाद मामले को सूची करने का निर्देश दिया। इस फैसले को सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने महिला पत्रकार सुकन्या शांता की तारीफ करते हुए कहा कि सुकन्या शांता आपके रोषपूर्ण लेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके लेख से ही इस मामले की सुनवाई की शुरुआत हुई। पता नहीं इस लेख के बाद हकीकत कितनी बदली होगी, लेकिन हमें उम्मीद है कि इस फैसले से हालात बेहतर होंगे। जब लोग लेख लिखते हैं। शोध करते हैं और मामलों को अदालतों के सामने इस तरह से लाते हैं कि समाज की वास्तविकता दिखा सकें, तो हम इन समस्याओं का निदान कर सकते हैं। ये सभी प्रक्रियाएं कानून की ताकत को रेखांकित करती हैं। सुकन्या शांता द वायर डिजिटल प्लेटफार्म के लिए काम करती हैं। उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों में जेलों में जाति-आधारित भेदभाव पर रिपोर्टिंग कर एक सीरिज की। इस सीरिज में उन्होंने कैदियों को जाति के आधार पर दिए जाने वाले काम और जाति के आधार पर कैदियों के साथ भेदभाव जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया। इस सीरिज के प्रकाशित होने के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान लिया। इसके बाद सुकन्या ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और फैसला अब आपके सामने हैं। सरकारी दस्तावेजों में जाति नाम चिह्नित करना अनिवार्य है। कानून में संशोधन कर इस तरह के भेदभाव समाप्त करने में सरकारें संकुचाती हैं। क्योंकि जाति आधारित राजनीति करने में ये माहिर हैं। इसलिए उनकी प्राथमिकताओं में अंग्रेजों के बनाए नियमों को सुधारने की बात ही नहीं उठती। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बावजूद हम अब तक जातियों के पूर्वाग्रह और अंतहीन जंजाल से निकलने में पूर्णत असफल रहे हैं। अपराधियों को सजा बेशक अदालत देती है पर कैद के दौरान उनके साथ किया जाने वाला जेल अधिकारियों का बर्ताव भी कई दफा पक्षपाती होता है। ये सलाह सिर्फ जेल नियमावली तक ही नहीं सीमित होना चाहिए। बल्कि इस तरह का सुधारवादी कदम पूरे समाज में सख्तीपूर्वक लागू किए जाने की जरूरत है। ये छुआछात या जाति-आधारित भेदभाव से समाज को मुक्त कराने की जरूरत है। अदालत ने पहल कर दी है।

-अनिल नरेन्द्र

हरियाणा चुनाव ः किस पर दबाव कम हुआ किस पर बढ़ा


आरक्षण और संविधान पर खतरे को लेकर विपक्ष की बनाई धारणा के कारण लोकसभा चुनाव में पहुंचे नुकसान के बाद हरियाणा के नतीजे नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए संजीवनी से कम नहीं है। हरियाणा में जीत की हैट्रिक और जम्मू-कश्मीर में पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन से न सिर्फ मोदी पर दबाव कम होगा बल्कि पार्टी का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। मोदी जी पर पिछले कुछ समय से दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था। पार्टी के अंदर बढ़ते मतभेद, विपक्ष का तीखा हमला और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से बढ़ती आलोचना। मोदी नड्डा कई मोर्चो पर एक साथ लड़ रहे थे। हरियाणा के चुनाव परिणाम अगर भाजपा के खिलाफ आते तो संघ का मोदी-शाह जोड़ी पर और दबाव बढ़ता और प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर मोदी सरकार की नीतियों पर जो हमले हो रहे थे इनमें और तेजी आ जाती। मोदी ब्रैंड पर प्रश्नचिह्न लगने शुरू हो गए थे। पार्टी के अंदर यह आशंका भी जाहिर की जा रही थी कि अब मोदी ब्रांड चुनाव में चल ही रहा है। हरियाणा के परिणामों से न केवल इन अटकलों, आलोचनाओं पर विराम लगा बल्कि अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के अलावा उत्तर प्रदेश में अहम माने जाने वाले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर भी इसका असर पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी और कांग्रेsस पार्टी की इस हार की वजह से उन पर दबाव बढ़ेगा। राहुल गांधी जीत के दावे कर रहे थे। वोEिटग से पांच दिन पहले एक्स पर राहुल ने लिखा था, हरियाणा में दर्द के दशक का अंत करने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी शक्ति के साथ एकजुट है, संगठित है, समर्पित है। ये दावे कितने खोखले निकले परिणामों ने बता दिए। कई विश्लेषक इस हार को राहुल गांधी की व्यक्तिगत हार मान रहे हैं। लेकिन हमारा ऐसा मानना नहीं है। राहुल ने ईमानदारी से पूरी ताकत लगाई पर न तो स्थानीय नेताओं ने साथ दिया न ही संगठन ने। अब राहुल रैली में आई भीड़ को पोलिंग बूथ पर तो नहीं ले जा सकते। पर हो राहुल व कांग्रेस की इंडिया गठबंधन में बारगेनिंग की पोजीशन कम जरूर हुई है। होनी भी चाहिए थी क्योंकि कांग्रेस को कुछ ज्यादा अहंकार हो गया था। इसे आप पार्टी व समाजवादी पार्टी को साथ हरियाणा में लड़ना चाहिए था। अहीरवाल क्षेत्र में अखिलेश यादव की एक-दो सभा करनी चाहिए थी। इस हार से राहुल, प्रियंका और सोनिया को इतना तो समझ आ गया होगा कि पार्टी के अंदर बैठे जयचंदों से कैसे निपटा जाएगा। लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद जिस तरह विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लाक में कांग्रेस का रुतबा बढ़ा था हरियाणा की हार से उस पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है। उसके सहयोगी दल ही उन्हें आंखें दिखाने लगे हुए हैं। उधर उत्तर प्रदेश में सपा ने उपचुनाव के लिए अपने छह उम्मीदवारों की घोषणा कर दी हैं इनमें दो सीटें वह भी है जिन पर कांग्रेस दावा कर रही थी। सहयोगी आरोप लगा रहे हैं कि जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में होती है वहां वह सहयोगियों को एडजस्ट नहीं करती है। जम्मू-कश्मीर, हरियाणा के नतीजों का राहुल के नेतृत्व पर क्या असर पड़ेगा ये कहना जल्दबाजी होगी। अभी दो राज्यों के चुनाव बाकी हैं, जिनमें महाराष्ट्र और झारखंड शामिल हैं। इन दोनों राज्यों में राहुल गांधी के सामने चुनौती बढ़ गई है। इस बात में कोई शक नहीं कि कांग्रेस का पलड़ा हल्का हुआ है। टिकट बंटवारे इत्यादि में गठबंधन की पार्टियां अब कांग्रेस पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती हैं। कुल मिलाकर मैंने जैसे कहा कि नरेन्द्र मोदी की छवि बढ़ी है। उन पर दबाव कम हुआ है और राहुल गांधी की मेहनत को धक्का लगा है और उन पर दबाव बढ़ा है।

Friday, 11 October 2024

सीटें तो बढ़ी पर कश्मीरियों का दिल नहीं जीत पाई

जम्मू-कश्मीर में भाजपा सत्ता तक तो नहीं पहुंच पाई लेकिन 25.63 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा वोट शेयर करने में सफल रही। 2014 में उसे 22.98 प्रतिशत वोट मिले थे। पार्टी को राज्य में अब तक की सबसे ज्यादा सीटें भी मिली हैं। 2014 में भाजपा को पहली बार 25 सीटें मिली थीं। इस बार 29 सीटों पर पहुंच गई। भाजपा को 1987 के बाद साढ़े तीन दशक में सबसे बड़ी सफलता मिली है। हालांकि कश्मीर संभाग में 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, पर एक भी नहीं जीत सका। चुनाव में लोगों को राहुल-अब्दुल्ला का साथ रास आया और 1987 के बाद पांचवीं बार गठबंधन सरकार का रास्ता साफ हुआ। नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन पर कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में तो सफल रही, लेकिन सीटों के साथ वोट शेयर भी घट गया। 2014 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 18.01 फासदी मत प्रतिशत के साथ 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि इस चुनाव में उसे कुल 6 सीटें मिली और मत प्रतिशत भी गिर कर 11.97 प्रतिशत रह गया। दस साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी को भारी झटका लगा है। 2014 में भाजपा के साथ सरकार बनाने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। खुद चुनाव से दूर रहकर महबूबा मुफ्ती ने अपनी बेटी इल्तिजा पर दांव लगाया था, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पीडीपी का मत प्रतिशत भी गिरकर 8.87 फीसदी रह गया जो 2014 के चुनाव में 22.67 प्रतिशत था। 2014 में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं। इल्तिजा मुफ्ती का कहना है कि भाजपा के साथ गठबंधन की वजह से पार्टी की हार नहीं हुई। कई कारण रहे। घाटी में नेशनल कांफ्रेंस-पीडीपी में से एक को जनता ने मौका दिया। अनुच्छेद 370 व 35ए की बेड़ियों से जम्मू-कश्मीर की आजादी दिलाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में पहली सरकार बनाने का भाजपा के सपनों को न केवल झटका लगा है बल्कि अपने बलबूते पहली बार सूबे में सरकार बनाने का दावा भी खोखला निकला। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत पहली बार जेके में अनसूचित जाति (एसटी) को राजनीतिक आरक्षण देते हुए विधानसभा की नौ सीटें आरक्षित कीं। पर यहां भी उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। भाजपा को तमाम जतन के बाद भी पोरागंल में जोरदार झटका लगा। राजौरी-पुंछ की आठ में एसटी के लिए आरक्षित पांच सीटों पर वह करिश्मा नहीं कर सकी। इन दोनों जिलों की सात सीटों भाजपा हार गई। केवल चार-पांच सीटों की उम्मीद थी। भाजपा को यहां केवल बालाकोट-सुंदरबन सीट पर ही जीत मिली। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र रैना भी हार गए। खास बात यह रही कि पहाड़ी समुदाय को पहली बार भाजपा ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया था और उसे उम्मीद थी कि पहाड़ी समुदाय भाजपा का साथ देगी। गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रैलियां भी काम नहीं आई। चिनाव वैली में पिछला प्रदर्शन दोहराने में सफल रही। -अनिल नरेन्द्र

फसल बोई कांग्रेस ने, काटी भाजपा ने

हरियाणा राज्य के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी ने लगातार तीन बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की हो। हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत के जोर-शोर से दावे कर रही थी। तमाम सर्वेक्षण, पोल सर्वे, विश्लेषक कांग्रेस की जबरदस्त जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे। जानकार भी हरियाणा में बीते इस साल में भाजपा की सरकार को लेकर सत्ता विरोधी लहर का दावा कर रहे थे। एग्जिट पोल में कांग्रेस को न केवल जीतते हुए दिखाया गया बल्कि 90 सीटों में से कांग्रेsस को करीब 60 तक की सीटें मिलने का दावा कर रहे थे। कहा गया था कि हरियाणा में किसानों का मुद्दा हो, पहलवानों का मुद्दा हो, अग्निवीर जैसा मुद्दा हो इनकी वजह से भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी है। दावा तो यहां तक किया जा रहा था कि यह चुनाव हरियाणा की जनता बनाम भाजपा है। हरियाणा में दस साल बाद कांग्रेस अपनी सरकार बनाने का सपना पालती रही के हाथों में करारी हार लगी। वजह कई रही। इन नतीजों के पीछे सबसे बड़ी वजह रही है भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट। इसका असर हुआ कि हुड्डा के गढ़ सोनीपत की पांच में से चार सीटों पर कांग्रेस हार गई। हरियाणा के एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक हरियाणा में करीब 22 फीसदी जाट वोट हैं जो काफी लोकल हैं यानि खुलकर अपनी बात रखते हैं। गैर-जाटों को लगा कि कांग्रेस के जीतने पर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बनेंगे इसलिए उन्होंने खामोशी से भाजपा के पक्ष में वोट दिया। इस बार के विधानसभा चुनावों में वोटों का बंटवारा जाट और गैर-जाट के आधार पर हो गया, जिसका सीधा नुकसान कांग्रेsस को हुआ। हरियाणा में कांग्रेsस की हार के पीछे एक बड़ा कारण था पार्टी के अंदर गुटबाजी। जानकार मानते हैं कि राज्य में कांग्रेस के उम्मीदवारों को इस तरह से भी देखा जा रहा था कि कौन हुड्डा खेमे से है, कौन शैलजा खेमे से है। यही नहीं कांग्रेस के कई उम्मीदवारों को आलाकमान यानि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के कहने से मैदान में उतारा गया जिनका हरियाणा में कोई जनाधार नहीं था। इनमें से प्रमुख नाम लिया जा रहा है कांग्रेस संगठन मंत्री के सी वेणुगोपाल का। वेणुगोपाल ने सुना है 5 नाम दिए थे, सभी पांच हार गए। हुड्डा और शैलजा की आपसी खींचतान से भी पार्टी को नुकसान हुआ। शैलजा का घर बैठना और यह कहना कि पार्टी में उनका अपमान हुआ है ने दलित वोटों को खिसका दिया और इसका फायदा भाजपा को हुआ। हरियाणा में गुटबाजी और गलत तरीके से टिकट बांटने की वजह से कांग्रेस को लगभग 13 सीटें गंवानी पड़ी। इनमें आलाकमान, हुड्डा और शैलजा तीनों के चुनिंदा उम्मीदवार थे। कांग्रेsस के कई नेताओं का ध्यान चुनावों से ज्यादा चुनाव जीतने के पहले ही मुख्यमंत्री कुर्सी पर था। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने कहा है कि इन चुनावों का सबसे बड़ा सबक यही है कि अति आत्म विश्वास कभी नहीं करना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा ने 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए थे। इनमें 16 उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर ली। कांग्रेस ने अपने किसी विधायक का टिकट नहीं काटा और उसके आधे उम्मीदवारों की हार हो गई। उम्मीदवारों को नहीं बदलना भी कांग्रेsस के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों में से यह बात भी सामने आई कि 10 से ज्यादा सीटों पर छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार कांग्रेsस की हार के पीछे बड़ी वजह रही हैं। भाजपा ने उन सभी सीटों पर कांग्रेस विरोधी उम्मीदवारों की मदद की। खासकर उन जगहों पर जहां उसकी जीत की संभावना कम थी और कांग्रेस की जीत भी स्पष्ट नहीं दिख रही थी। कांग्रेस के संगठन में एक बार फिर कमी दिखाई दी। वो उमड़ती भीड़ को वोटों में तब्दील नहीं कर सके और अति उत्साह में जीती बाजी हार गई। इसलिए कहता हूं कि फसल बोई कांग्रेस ने, काटी भाजपा ने।

Thursday, 10 October 2024

सिर्फ सरकार की आलोचना पर केस नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पत्रकारिता कर रहे लोगों के लिए सुकून दे ही, हो सकती है कि सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गत शुक्रवार को कहा कि पत्रकारों के अधिकारों को देश के संविधान 19(1) के तहत संरक्षित किया गया है। एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में मानकर उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। साथ ही निर्देश दिया कि राज्य प्रशासन उनके लेख के संबंध में कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति एनवीएन भट्टी की पीठ ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया है। पीठ ने याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब पांच नवम्बर को होगी। अपने संक्षिप्त आदेश में पीठ ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ प्रासंगिक टिप्पणियां की। पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकारों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत संरक्षित किया जाता है। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन से सरकार की आलोचना के रूप में माना जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं लगाया जाना चाहिए। दरअसल, सरकारों को अपनी आलोचना करनी रास नहीं आती, मगर पिछले कुछ वर्षों में सरकारें इसे लेकर प्रकट रूप से सख्त नजर आने लगी हैं। सरकार के खिलाफ अखबारों में खबरें, लेख या कोई वैचारिक टिप्पणी करने पर कई पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएं सामने आई हैं। यहां तक कि कुछ पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम के तहत भी मुकदमें दर्ज किए गए हैं, जिसमें जमानत मिलना मुश्किल होती है। इस धारा के तहत कई पत्रकार अब भी सलाखों के पीछे हैं। कुछ मामलों में पहले ही सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं माना जा सकता। मगर किसी सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। किसी देश की पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र है और कितने साहस के साथ अपने सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना कर पा रही है, उससे उस देश की खुशहाली का भी पता चलता है। यह उदाहरण नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व खुशहाली सूचकांक में भारत निरंतर नीचे खिसकता गया है। सवाल यह है कि सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय की नसीहत को कितनी गंभीरता से लेती है और स्वतंत्र पत्रकारिता करने की इजाजत देती है? -अनिल नरेन्द्र

ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड का एक साल

यह नाम था हमास के उस ऑपरेशन का जो उसने पिछले साल यानि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला किया था। पिछले साल सात अक्टूबर को हुए हमले को एक साल पूरा हो चुका है। एक साल हो गया जब हमास ने इजरायल पर हमला कर 1200 लोगों की हत्या कर दी थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया था। इजरायल ने इसके जवाब में गाजा में बड़े पैमाने पर हवाई और जमीनी हमले करके गाजा को लगभग मिट्टी में मिला दिया। हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इसमें 41,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए। इजरायल हमास युद्ध की वजह से फिलस्तीन का गाजा शहर आज मलबों के ढेर में तब्दील हो गया है। पिछले एक साल में इस शहर में 4.2 करोड़ टन से भी अधिक मलबा जमा हो गया है। इसमें टूटी और ध्वस्त दोनों इमारतें शामिल हैं। चिंता की बात है कि मलबा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के उपग्रह डाटा के मुताबिक गाजा की युद्ध पूर्व संरचनाओं में से दो तिहाई यानि 1,63,000 से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं या ढह गई हैं। इनमें से करीब एक तिहाई ऊंची इमारतें थीं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने गाजा के आठ शरणाथी शिविरों के आंकलन का हवाला देते हुए कहा कि करीब 23 लाख टन मलबा दूषित हो सकता है। इसमें से कुछ नुकसानदायक भी है। धूल एक गंभीर चिंता है। यह पानी और मिट्टी को दूषित कर सकती है। फेफड़े की बीमारी का कारण बन सकती है। मलबे में ऐसे शव हैं, जो बरामद नहीं हुए हैं। फिलस्तीन स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन शवों की संख्या करीब 10,000 है। कुछ बम भी हैं, जो फटे नहीं। यानि सात अक्टूबर के दिन ही पिछले साल हमास ने इजरायल पर हमला किया था और उसके बाद इजरायल ने हमास पर अटैक शुरू किया जो अब इजरायल के लिए सात फ्रंट वार में तब्दील हो गया है। एक साल से मध्य पूर्व में तनाव लगातार बढ़ ही रहा है और पिछले हफ्ते इजरायल पर ईरान की तरफ से हुए मिसाइल अटैक के बाद तो राकेट और मिसाइलों के हमलों से संकट और गहरा गया है। इजरायल ने अभी तक ईरान में जवाबी कार्रवाई की नहीं है लेकिन खतरा लगातार बना हुआ है। सवाल यह है कि अगर इजरायल ईरान पर हमला करता है तो ईरान भी जवाबी कार्रवाई करेगा। हमास और हिज्बुल्लाह और हूती मिलकर एक साथ अटैक का प्लान कर रहे हैं। जिस तरह इजरायल छह फ्रंट पर एक साथ लड़ रहा है उससे किसी भी तरफ के अटैक की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके लिए इजरायल ने अमेरिका और नाटो देशों की मदद से पुख्ता तैयारी कर रखी है। देखना यह है कि मध्य-पूर्व में जंग का विस्तार होता है या यह सीमित रहती है। सारा खेल पिछले साल 7 अक्टूबर को ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड से शुरू हुआ है।

Tuesday, 8 October 2024

हाथ में राइफलöमुस्लिम देशों से अपील


ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई करीब पांच साल बाद जुमे की नमाज के दिन सार्वजनिक तौर पर उपस्थित हुए। खामेनेई की यह सार्वजनिक मौजूदगी इसलिए भी खास है क्योंकि इजरायल और ईरान के बीच तनाव के माहौल में उनके भूमिगत हो जाने की अटकले लगाई जा रहीं थीं। इन अटकलों के पीछे की वजह कुछ दिनों के अंदर ही हमास और हिज्बुल्लाह के कई वरिष्ठ नेताओं और कमांडरों की हत्या भी है। ईरान इसके लिए इजरायल को दोषी ठहराता है और इसी का बदला लेने के लिए उसने इजरायल पर जबरदस्त मिसाइली हमला किया था। ईरान इंटरनेशनल मीडिया ग्रुप के मुताबिक, करीब पांच साल बाद शुक्रवार की नमाज में खामेनेई की पहली बड़ी सार्वजनिक मौजूदगी थी। उसके मुताबिक खामेनेई ने वही पुरानी इजरायल और अमेरिका के खिलाफ भारत समेत उस वैचारिक नैरेटिव की बात कही जो उन्होंने 1979 से जारी रखी है। 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद वहां नई सत्ता कायम हुई थी। ईरान पर नजर रखने वाले लोग मानते हैं कि यह कार्यक्रम खामेनेई के प्रति समर्थन और तेहरान की सुरक्षा को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम का मकसद उन अफवाहों को दूर करना भी था जिसमें कहा गया था कि 28 सितम्बर को बेरुत में हिज्बुल्लाह नेता नसरुल्लाह की मौत के बाद खामेनेई एक गुप्त बंकर में छिपे हुए हैं। इजरायल के प्रमुख अखबार द टाइम्स ऑफ इजरायल लिखता है कि ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने अपने उपदेश के दौरान हाथ में बंदूक लेकर दावा किया कि इजरायल हमास और हिज्बुल्लाह को कभी नहीं हटा पाएगा। खामेनेई ने शुक्रवार को अपने धार्मिक उपदेश में इसी सप्ताह इजरायल पर किए गए मिसाइल हमले का समर्थन किया। इन मिसाइल हमलों की वजह से क्षेत्रीय युद्ध की आशकाएं बढ़ गई हैं। इजरायल किसी भी समय ईरान पर जवाबी हमला कर सकता है। निशाने पर है ईरान के तेल भंडार और परमाणु ठिकाने। द टाइम्स ऑफ इजरायल के मुताबिक खामेनेई ने आतंकी प्रमुखों की हत्या के बाद यह बयान दिया है और कहा है कि ईरान के मिसाइल हमले यहूदी अपराधों की न्यूनतम सजा है। इस अवसर पर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने तेहरान के मुख्य प्रार्थना स्थल मोसल्ला (ग्रेंड मस्जिद) पर हिज्बुल्लाह चीफ नसरुल्ला की याद में नमाज प़ढ़ी। इसके बाद उन्होंने एकत्रित हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के तमाम मुसलमानों को इजरायल के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। खामेनेई ने इस्लामी देशों के साथ देने की अपील करते हुए कहा कि वह इजरायल को खत्म करके रहेंगे। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से यमन और ईरान से गाजा तक साथी देश शत्रु पर कार्रवाई को तैयार हैं। करीब 40 मिनट लंबे भाषण में खामेनेई ने इजरायल पर मंगलवार दागी गई करीब 200 मिसाइलों को ईरान सशस्त्र बलों की शानदार कामयाबी बताया। आयतुल्लाह खामेनेई ने इजरायल से हो रही जंग में मारे जाने वाले लड़ाकों को बहादुर और इस्लाम की राह में कुर्बान होने वाला बताया। उन्होंने कहा लेबनान और फिलस्तीन में रहने वाले आप लोग बहादुर हैं, आप वफादार और धैर्यवान हैं। ये शहादतें और जो खून बहाया गया है, वह आपके और हमारे दृढ़ संकल्प को हिला नहीं सकता। खामेनेई ने अरब देशों को संबोधित करते हुए अपना आधा भाषण अरबी भाषा में ही दिया। उन्होंने इस्लामी देशों की एकजुटता का भी आह्वान किया। न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि खामेनेई ने पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमलों की प्रशंसा की है। उन्होंने फिलस्तीनी इलाकों पर इजरायल के लंबे समय से चले आ रहे कब्जे की वजह से हमास के हमलों को तार्किक, न्यायसंगत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनन वैध बताया।

मामला जग्गी वासुदेव यानि सद्गुरु का


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन आश्रम में दो महिलाओं को कथित तौर पर अवैध रूप से बंधक बनाकर रखने के मामले की पुलिस जांच पर प्रभावी ढंग से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति द्वारा मद्रास हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया, जिसमें आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के परिसर में बंधक बनाकर रखा गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक रिटायर्ड प्रोफेसर कामराज की उस याचिका के बाद ये आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि उनकी दो बेटियां योग केंद्र में हैं और उन्हें बाहर लाया जाए। प्रोफेसर का आरोप है कि उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है और उन्हें सेंटर में कैद करके रखा गया है। लेकिन प्रोफेसर की बेटियों ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि वे ईशा सेंटर में अपनी मर्जी से रह रही हैं। ईशा योग केंद्र ने भी कहा है कि किसी को शादी करने या सन्यास लेने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है, इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को जांच करने के आदेश दिए थे और 4 अक्टूबर को रिपोर्ट जमा करने को कहा था। इसके बाद पुलिस ने ईशा योग केंद्र पर छापा मारा और यह कार्रवाई बुधवार शाम तक चली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को इस तरह से संस्थान में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। कोयम्बटूर के जिला पुलिस अधीक्षक कार्तिकेयन के नेतृत्व में समाज कल्याण विभाग व बाल कल्याण अधिकारियों की संयुक्त टीम ने ईशा योग केंद्र की तलाशी ली थी। जांच रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट में 18 अक्टूबर को जमा करवानी होगी। ईशा योग केंद्र की स्थापना 1992 में जग्गी वासुदेव ने तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के वेलिगिरी में की थी। इस केंद्र में हजारों विवाहित, अविवाहित और कुछ ब्रह्मचार्य पथ पर चलने वाले लोग रहते हैं। बेटियों के पिता कामराज तमिलनाडु विश्वविद्यालय के कृषि इंजीनियर विभाग के पूर्व प्रमुख हैं। उनकी 42 और 39 साल की दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी ने इंग्लैंड के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रोनिक्स में मास्टर्स किया है। साल 2008 में उनका तलाक हो गया था, उसके बाद वह ईशा सेंटर से जुड़ गईं। छोटी बेटी साफ्टवेयर इंजीनियर है। अपनी याचिका में बेटियों के पिता कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों को उनके दिभाग की कार्यक्षमता को कम करने के लिए दवा दी गई थी और इसी वजह से उन्हेंने परिवार से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। आरोप लगाया कि बेटियों को ब्रेनवॉश करके उन्हें जवान संन्यासी बना दिया जाता है और उन्हें अपने माता-पिता से भी मिलने नहीं दिया जाता है। मद्रास हाईकोर्ट में सुनवाई के समय दोनों बेटियां अदालत में मौजूद थीं और उन्होंने कहा कि वह अपनी मर्जी से रह रही हैं और किसी ने उन्हें मजबूर नहीं किया। जजों ने सवाल किया कि सद्गुरु के नाम से जाने वाले जग्गी वासुदेव योग केंद्र में अपनी बेटी की शादी क्यों करते हैं और अन्य महिलाओं को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासी के रूप में रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं? न्यायाधीशों ने अदालत में मौजूद महिलाओं से पूछा था, आप आध्यात्मिक मार्ग पर होने का दावा करती हैं। क्या अपने माता-पिता को छोड़ना पाप नहीं लगता? मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि इसके पीछे की सच्चाई का पता लगाने के लिए आगे की जांच की जरूरत है। ईशा योग केंद्र के एक प्रवक्ता ने एक लिखित बयान में कहा कि ईशा योग केंद्र किसी को शादी करने या संन्यास लेने के लिए मजबूर, प्रोत्साहित या प्रेरित नहीं करता। ईशा योग केंद्र के मुताबिक 2016 के जजों ने कहा था माता-पिता का दायर मामला सच नहीं है और हम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जिन लोगों को हिरासत में लिए जाने का आरोप है, वे अपनी मर्जी से केंद्र में रह रही हैं।

-अनिल नरेन्द्र


Friday, 4 October 2024

कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो

तिरुपति में लड्डू विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नसीहत दी है। राजनेताओं से कहा है कि कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो। यह लोगों की आस्था का मामला है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुबूत मांगते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के इस दावे पर सवाल उठाया कि तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही इस पर सख्त रुख अपनाते हुए चंद्रबाबू नायडू की तीखी आलोचना की। तिरुपति के प्रसाद से जुड़े इस विवाद को आधार बनाते हुए जो पांच याचिकाएं दायर की गई हैं, उन पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई हालांकि जारी है, लेकिन पहले ही दिन कोर्ट की नजर में यह तथ्य आ गया कि प्रसाद में मिलावटी घी के इस्तेमाल का कोई ठोस सबूत अभी तक नहीं पाया गया है। इससे न केवल यह पूरा मामला या विवाद ही निराधार साबित हो रहा है बल्कि यह सवाल भी सामने आया कि आखिर क्यों इस विवाद को तूल दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री से संबंधित दावा 18 सितम्बर को किया, जबकि मामले में प्राथमिकी 25 सितम्बर को दर्ज की गई और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन 26 सितम्बर को किया गया। पीठ ने कहा कि एक अन्य संवैधानिक पदाधिकारी के लिए सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देना उचित नहीं है जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। राजनीति और धर्म को मिलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नायडू ने दावा किया था कि पिछली सरकार के दौरान तिरुपति लड्डू बनाने में इस्तेमाल किया गया घी शुद्ध होने की बजाए जानवरों की चर्बी से युक्त था। अदालत ने सवाल किया कि जांच जब जारी है तो रिपोर्ट आने से पहले आप मीडिया में क्यों गए? लड्डू का स्वाद खराब होने की श्रद्धालुओं की शिकायत की बात उठने पर राज्य सरकार से सवाल किया कि आप कह सकते हैं कि टेंडर गलत तरीके से दिया गया। मगर यह कहना कि मिलावटी घी प्रयोग किया गया, इसका सबूत कहां है? तिरुपति मंदिर देश का एक ऐसा प्रमुख श्रद्धा का केंद्र है, जहां से करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने चंद्रबाबू नायडू पर राजनीति के लिए भगवान का प्रयोग करने और जनता का ध्यान सरकार के कामों से हटाने का आरोप लगाया। मंदिर की पवित्रता को ठेस लगाने वाली ये खबरें श्रद्धालुओं के लिए किसी सदमे से कम नहीं कही जा सकतीं। मगर जैसा शीर्ष अदालत ने कहा है कि धर्म को राजनीति से मिलाने की जरूरत नहीं है। आस्था-विश्वास के प्रति राजनीतिज्ञों को विशेष सतर्कता बरतनी सीखनी चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए लोग ये धर्म का दुरुपयोग जनता को दिग्भ्रमित करने और समुदायों के दरम्यान दरारे डालने वालों पर सख्ती की जानी आवश्यक है। सनसनी फैलाने वाले दोषमुक्त नहीं हो सकते। यदि वास्तव में किसी भी तरह की मिलावट हुई है, तो आस्था से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। इस तरह लोगों की आस्था से खेलकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश वैसे भी हमारे संवैधानिक मूल्यों पर भी आघात है। -अनिल नरेन्द्र

वांगचुक को हिरासत में लेने पर सियासी संग्राम

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 700 किलोमीटर लंबी दिल्ली चलो यात्रा को लेकर सोनम वांगचुक को दिल्ली के सिंघु बार्डर पर पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हिरासत में लिए जाने से नाराज सोनम वांगचुक मंगलवार को अनशन पर बैठ गए। दरअसल, सोनम वांगचुक सवा सौ साथियों के साथ सोमवार देर रात करीब 11 बजे सिंघु बार्डर पहुंचे थे। इस दौरान आउट नार्थ जिला पुलिस ने उनके काफिले को रोक लिया और वापस जाने के लिए कहा। जब वे नहीं माने तो पुलिस ने सोनम वांगचुक और उनके साथियों को हिरासत में ले लिया। पुलिस सोनम और उनके 40 साथियों को बवाना थाने ले गई। इसके अलावा अन्य को अलग-अलग थानों में रखा गया। सोनम वांगचुक को हिरासत में लेने के बाद सियासत गर्मा गई है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी वांगचुक से मिलने बवाना थाने पहुंचीं, लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पुलिस की कार्रवाई को गलत बताया है। इधर इस मुद्दे पर आक्रामक कांग्रेस ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए इसे तानाशाही रवैया करार दिया। मुख्यमंत्री आतिशी ने वांगचुक की गिरफ्तारी और पुलिस के रवैये पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने मांग की कि लद्दाख और दिल्ली के एलजी राज खत्म हो और दोनों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। चुनी हुई सरकार की प्रतिनिधि को वांगचुक से मिलने नहीं देना निंदनीय है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल और वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने भी भाजपा और केंद्र पर हमला बोला। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में आने से कभी किसानों को रोका जाता है तो कभी लद्दाख के लोगों को। दिल्ली आने का अधिकार सभी को है। निहत्थे शांतिपूर्ण लोगों से आखिर इन्हें क्या डर लग रहा है? वहीं लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने राजधानी में प्रवेश से रोकने के लिए वांगचुक को हिरासत में लेने के कदम को अस्वीकार्य करार दिया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लद्दाख के लोगों की आवाज सुननी पड़ेगी। लद्दाख में वांगचुक के लिए जनसमर्थन की लहर बढ़ी है और संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी समुदायों की सुरक्षा की व्यापक मांग हो रही है। मगर मोदी सरकार अपने करीबी दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए लद्दाख के परिस्थितिकी रूप से संवेदनशील हिमालयी ग्लेशियरों का दोहन करना चाहती है। राहुल गांधी ने कहा कि पर्यावरण और संवैधानिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक पदयात्रा कर रहे सोनम वांगचुक और लद्दाख के लोगों को हिरासत में लेना अस्वीकार्य है। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और कई अन्य को दिल्ली सीमा पर हिरासत में लिए जाने के खिलाफ मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता के वकील ने मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष मामले को सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया। अदालत ने मामले को मंगलवार सूचीबद्ध करने से इंकार करते हुए इस बात पर सहमति व्यक्त की कि यदि अपराह्न साढ़े तीन बजे तक उसके काम की स्थिति सामान्य हो जाती है तो मामले को जल्द की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। उधर वांगचुक अपने साथियों के साथ बवाना थाने में बेमियादी अनशन पर बैठ गए हैं। वांगचुक को बुधवार को रिहा कर दिया गया।

Thursday, 3 October 2024

नसरुल्लाह विलेन या हीरो?

लेबनान पर इजरायली हमले वैसे तो सितम्बर के मध्य से ही हो रहे थे, लेकिन 27 सितम्बर की शाम राजधानी बेरुत के घनी आबादी वाले दक्षिणी हिस्से में स्थित हिज्बुल्लाह मुख्यालय में हुए हमले में हिज्बुल्लाह प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह की मौत ने पहले से ही अस्थिर पश्चिम एशिया में स्थितियों को और जटिल तो बनाया ही है, इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध विराम के समर्थकों को भी भारी धक्का लगा है। नसरुल्लाह का मारा जाना हिज्बुल्लाह के लिए ऐसा झटका है, जिससे उभरना उसके लिए आसान नहीं होगा। नसरुल्लाह की मौत से तमाम अरब दुनिया में शोक का माहौल है। बहुत से इस्लामिक देश उसे अपना हीरो मानते थे जो इजरायल से पिछले तीन दशकों से टक्कर ले रहा था। नसरुल्लाह तीन दशक से ज्यादा समय से हिज्बुल्लाह का नेतृत्व कर रहा था। अपने लेबनानी शिया अनुयायियों के आदर्श और अरब तथा इस्लामिक जगत के लाखों लोगों के बीच सम्मानित नसरुल्लाह को सैयद की उपाधि दी गई थी। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देश और इजरायल उसे दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी मानते थे। उसके मरने के बाद कई देशों ने खुशियां मनाई, मिठाइयां बांटी। नसरुल्लाह को इजरायल ने किस बखूबी से मारा वह भी चौंकाने वाला है। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने अपने मुखबिरों से पता कर लिया था कि नसरुल्लाह किस दिन, किस समय, किस घर में होगा। कहा जा रहा है कि मोसाद का गुप्तचर कोई ईरानी हो सकता है क्योंकि ईरान के पास ही नसरुल्लाह की पूरी जानकारी रही होगी। खैर, ठीक समय में इजरायल ने अपने विमानों से बंकर बस्टर बम गिराए। नसरुल्लाह घर की बेसमेंट में एक कांक्रीट बंकर में मीटिंग लेने गया था जब यह बम आ गिरा। इजरायल ने 80 से अधिक बंकर बस्टर बम गिराए। ये बम इतने शक्तिशाली हैं कि जमीन के भीतर 60 फीट तक की गहराई में तथ्य को ध्वस्त कर सकते हैं। यह बम स्टील, कांक्रीट की मोटी दीवारों को तोड़ सकते हैं। ये गाडेड बम तहखाने, बंकर या सुरंगों को उड़ाने के लिए ही अमेरिका ने तैयार किए हैं। कहा जा रहा है कि इजरायल ने जो बम गिराए वह अमेरिका ने उसे दिए हैं। इजरायली सेना और नेतन्याहू सरकार के लिए यह बड़ी कामयाबी मानी जा रही है, मुझे अफसोस इस बात पर भी है। कथित झटके या कामयाबी के बाद भी इस क्षेत्र में शांति की संभावना मजबूत नहीं हुई है। इसके उलट संघर्ष के बेकाबू होने का खतरा है। पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय में हिज्बुल्लाह का नेतृत्व कर रहा नसरुल्लाह मध्य पूर्व के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में शुमार किया जाता था। उसकी कमी की जल्द भरपाई होना भी आसान नहीं है। मगर हिज्बुल्लाह के लिए यह इकलौता झटका नहीं है। हाल के हमलों में उसके एक दर्जन से ज्यादा टॉप कमांडर मारे जा चुके हैं। बहुचर्चित पेजर और वॉकी-टॉकी हमलों ने उसके इंटर कम्युनिकेशन सिस्टम को भी लगभग खत्म कर दिया है। ताजा झटका कितना बड़ा भी क्यों न हो, यह समझना गलत होगा ]िक इससे हिज्बुल्लाह इजरायल के सामने समर्पण कर देगा। कुछ समय पहले तक 12 देशों की ओर से प्रस्तावित युद्धविराम को लेकर जो भी बची-खुची उम्मीद थी, अब वह समाप्त हो गई है। इजरायल अभी रूका नहीं है वह अब लेबनान के अंदर घुसकर पूरा आक्रमण करने जा रहा है, इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। निगाहे ईरान पर भी टिकी हैं, तेहरान के ही गेस्ट हॉउस में हमास नेता इस्माइल हानिया की मौत का बदला भी उसने लेना है, नसरुल्लाह की मौत उसके लिए भी झटका है। देखना होगा कि उसकी प्रतिक्रिया कितनी और कैसी होगी। -अनिल नरेन्द्र

वित्त मंत्री सीतारमण पर एफआईआर

शायद यह पहली बार हो रहा है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी भी केंद्रीय वित्त मंत्री पर एफआईआर दर्ज हुई हो। इससे पहले जहां तक मेरी जानकारी है कभी भी किसी केंद्रीय वित्त मंत्री पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई। मामला इलेक्टोरल बांड संबंधी है। अब समाप्त हो चुकी चुनावी बांड योजना से संबंधित एक शिकायत के बाद बेंगलुरू से चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए नामित मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के बाद इलेक्टोरल बांड के मुद्दे पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ जबरन वसूली और आपराधिक साजिश का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। कोर्ट ने यह फैसला आदर्श अय्यर की याचिका पर सुनाया था। आदर्श जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष हैं। उन्होंने मार्च में स्थानीय पुलिस को एक शिकायत दी थी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। हाईकोर्ट के आदेश के अगले ही दिन यानि शनिवार दोपहर तीन बजे एफआईआर दर्ज की गई। इसमें केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण, ईडी के अधिकारी, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के पदाधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 304 (जबरन वसूली) 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य इरादे से कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कृत्य) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। जनाधिकार संघर्ष परिषद के सह-अध्यक्ष आदर्श आर अय्यर ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने चुनावी बांड की आड़ में जबरन वसूली की और 8000 करोड़ रुपए से अधिक का फायदा उठाया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सीतारमण ने ईडी अधिकारियों की गुप्त सहायता और समर्थन के माध्यम से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर दूसरों के फायदे के लिए हजारों करोड़ रुपए की जबरन वसूली की। शिकायत में कहा गया है कि चुनावी बांड की आड़ में जबरन वसूली का काम विभिन्न स्तरों पर भाजपा के पदाधिकारियों की मिलीभगत से चलाया जा रहा था। फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इससे संविधान के तहत सूचना के अधिकार और भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लघंन होता है। इस केस की जानकारी सामने आते ही भाजपा और कांग्रेस ने एक दूसरे पर निशाना साधना शुरू कर दिया। कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता आर आशोक ने कहा कि इलेक्टोरल बांड का लाभार्थी कांग्रेस भी रही है और निर्मला सीतारमण ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की तरह अपने ही परिवार को फायदा पहुंचाने के लिए पैसे नहीं लिए हैं। जब से राज्यपाल का पद गहलोत ने सीएम सिद्धरमैया के खिलाफ मूडा मामले में केस चलाने की मंजूरी दी है, तब से भाजपा उनका इस्तीफा मांग रही है। कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से राज्यपाल की दी गई मंजूरी को रद्द करने के लिए दी गई याचिका जिसे खारिज कर दिया गया। उधर कांग्रेस ने इस संबंध में कहा कि लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए वित्त मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्री खुद से ऐसा नहीं कर सकतीं। हम जानते हैं कि नंबर-1 और नंबर-2 कौन है और यह किसके निर्देश पर किया गया। सिंघवी ने इसे ईबीएस (इंक्सटॉशनिस्ट बीजेपी स्कीम) करार देते हुए कहा था कि बड़ा मुद्दा समान अवसर उपलब्ध कराने का है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है। इस बीच कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार का वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ इस मामले की जांच पर रोक लगा दी है। भाजपा नेता नलिन कुमार ने उन्हें आरोपी के रूप में नामजद करने वाली एफआईआर को चुनौती दी थी। अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी। देखें, अब आगे क्या होता है। वैसे यह अभूतपूर्व मामला है जहां किसी केंद्रीय मंत्री को किसी केस में आरोपी बनाया गया हो।

Tuesday, 1 October 2024

अमेरिका की दहलीज तक पहुंचने वाली चीनी मिसाइल

चीन ने प्रशांत महासागर में बुधवार को एक अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) का परीक्षण किया। चीनी मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि मिसाइल पर प्रतिरूपी आयुध (डमी वार हैड) लगाया था, जिसे समुद्र के एक निषेध क्षेत्र में गिराया गया। चीन की इस डीएफ-41 मिसाइल को साल 2017 में सेना के अंदर शामिल किया गया था। इसकी मारक क्षमता 12 हजार से लेकर 15 हजार किलोमीटर तक है। ऐसे में यह मिसाइल अमेरिका की मुख्य भूमि के अंदर तबाही मचा सकती है। चीनी अखबार साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार इससे पहले चीन ने मई 1980 में अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल डीएफ-5 का परीक्षण किया था। चीन की इस पहली मिसाइल की मारक क्षमता 9 हजार किलोमीटर तक थी। हालांकि ताजा लांच अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास के अनुरूप है और किसी भी देश की ओर इसे टारगेट नहीं किया गया पर जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने इस टेस्ट पर चिंता जाहिर की है। इस लांच से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में तनाव बढ़ा है। जानकारों का मानना है कि इससे पता चलता है कि चीन की लंबी दूरी तक हमला करने की न्यूक्लियर क्षमता बढ़ी है। अमेरिका ने बीते साल आगाह किया था कि चीन ने डिफेंस अपग्रेड के तहत अपनी परमाणु ताकतों को मजबूत किया है। चीन ने जिस मिसाइल यानि आईसीबीएम का परीक्षण किया है वह 5000 से 12000 किलोमीटर तक मार कर सकती है। इससे चीन की पहुंच अब अमेरिका और हवाई द्वीप तक हो गई है। लेकिन चीन की सैन्य ताकत अब भी रूस और अमेरिका से करीब पांच गुना कम है। चीन कहता रहा है कि उसका न्यूक्लियर रखरखाव सिर्फ इसलिए है कि कोई और हमला न करे। विश्लेषकों का कहना है कि आमतौर पर चीन परीक्षण देश के अंदर ही किसी हिस्से में किया करता था। अतीत में शिजियांग प्रांत के एक रेगिस्तान में ऐसे परीक्षण किए गए थे। न्यूक्लियर मिसाइल विशेषज्ञ अंकित पांडे ने बीबीसी से कहा, इस तरह के परीक्षण अमेरिका जैसे दूसरे देशों के लिए असाक्ष्य नहीं है, मगर चीन के मामले में यह सामान्य बात नहीं है। अंकित ने कहा चीन के परमाणु आधुनिकीकरण के परिणामों के चलते पहले ही काफी बदलाव आ चुके हैं। ये लांच अब चीन के रुख में बदलाव को दिखाता है। जापान ने भी गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि चीन की ओर से कोई नोटिस नहीं दिया गया था। आस्ट्रेलिया ने कहा कि इस कदम से क्षेत्र में अस्थिरता और गलत आंकलन का जोखिम बढ़ता है। आस्ट्रेलिया ने भी इस मामले में चीन से जवाब मांगा है। न्यूजीलैंड ने चीन के परीक्षण का स्वागत नहीं किया है और इसे चिंता पैदा करने वाली हरकत बताया। अंतर्राष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर लिप एरिक एसले ने कहा कि अमेरिका के लिए साफ संदेश है कि ताइवान, स्ट्रेट संघर्ष में किसी भी तरह का सीधा दखल अमेरिका की धरती को भी खतरे में डाल सकता है। उन्होंने कहा चीन का ये परीक्षण अमेरिका और एशिया में उसके सहयोगियों को ये दिखाता है कि चीन कई मोर्चों पर एक साथ लड़ सकता है, बता दें कि यह मिसाइल ताइवान, फिलीपींस और गुआव के पास से गुजरती हुई प्रशांत महासागर में जा गिरी। यह भारत के लिए भी चिंता का विषय है। -अनिल नरेन्द्र

हरियाणा में बागी व छोटे दल बिगाड़ रहे हैं गणित

गुटबाजी भाजपा और कांग्रेस दोनों में है देखना यह होगा कि कौन मतदान से पहले इस पर काबू पा सकता है। कहा तो जा रहा है कि हरियाणा में माहौल कांग्रेsस का है। लेकिन आपसी गुटबाजी जीती हुई बाजी को नुकसान में भी बदल सकती है। राहुल गांधी की सभा में बेशक कुमारी शैलजा व भूपेन्द्र सिंह हुड्डा एक मंच पर दिखे पर इससे क्या गुटबाजी का सिलसिला थम गया है। वहीं भाजपा में भी गुटबाजी चरम पर है। वहां तो कई नेताओं ने अभी से अपने आप को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया है। गांव-देहात में भाजपा उम्मीदवारों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कई गांवों में तो भाजपा प्रत्याशी को गांव में घुसने ही नहीं दिया जा रहा है। बड़े-बड़े दिग्गजों को अपनी जान बचाने के लिए मौके से भागना पड़ा। भाजपा का सबसे बड़ा वोट केंपेनर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अंभी तक हुई दो चुनावी सभाओं में भीड़ नदारद थी। पांच से दस हजार लोग ही उपस्थित थे। जहां डेढ़-दो लाख आदमियों का हुजूम प्रधानमंत्री को सुनने के लिए आता रहा है। एक तरफ मुख्यमंत्री सैनी का गुट है, दूसरी तरफ मनोहर लाल खट्टर का गुट है तो तीसरी तरफ अनिल विज का गुट डटा हुआ है। संघ अलग नाराज चल रहा है। कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। वहीं रही-सही कसर बागी और निर्दलीय उम्मीदवार उतार रहे हैं। दोनों प्रमुख पार्टियों की तुलना करते समय कहा जाता है कि भाजपा के साथ एक संगठित सुव्यवस्थित संगठन है। यह संगठन बिल्कुल नीचे तक है। बूथ इंचार्ज से लेकर पन्ना प्रमुख तक सारे पदों पर लोग तैयार हैं, उनकी भूमिका तय है। कहा तो यह भी जाता है कि भाजपा हर समय चुनाव लड़ते रहने वाली दुनिया की एक सबसे बड़ी मशीन है। इसके विपरीत कांग्रेस में संगठन नाम मात्र के लिए है। जैसा कि हमने मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में देखा था। माहौल पक्ष में होने के कारण अति-विश्वास भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। जैसा कि हमने छत्तीसगढ़ में देखा जैसे-जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ रहा है हरियाणा में मुकाबले कड़े होते जा रहे हैं। बेशक मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। चुनिंदा सीटों को छोड़ दिया जाए तो राज्य की 90 सीटों में से ज्यादातर पर मुकाबला नजदीकी बताया जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है दोनों दलों के प्रत्याशियों के अतिरिक्त निर्दलीय, इनेलो, जजपा और आप प्रत्याशियों का भी पूरा जोर लगाना है। 30 से ज्यादा सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय या तीन से अधिक प्रत्याशियों में हो गया है। इस कारण से मुकाबला नजदीकी होता जा रहा है। 15 सीटों पर भाजपा और 29 सीटों पर कांग्रेस के 29 बागी मैदान में है। मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों की पहचान वाले इस राज्य में एक बार फिर वह हाशिए पर हैं। इनके चुनिंदा प्रत्याशी ही प्रभावी दिख रहे हैं। इनसे अधिक निर्दलीय और बागी चर्चा में हैं। इनेलो, जजपा और निर्दलीय में बंटे बेनिवाल परिवार के 8 प्रत्याशी मैदान में हैं। अब प्रचार उफान पर है। रैलियां और रोड शो हो रहे हैं, कांग्रेस-भाजपा अपनी गारंटी और संकल्प पत्र के साथ आम जनता के बीच है। मतदान में मुश्किल से चंद दिन ही बचे हैं। अब प्रचार और मुद्दे आक्रामक व तीखे होंगे। ऐसे में मुकाबलों की दिशा बदल सकती है। वैसे माना जाता है कि हरियाणा में तीन मुद्दे सबसे ज्यादा प्रभावी होते हैं, किसान, जवान और पहलवान।