Saturday, 19 October 2024

महायुति बनाम महाविकास अघाड़ी

पिछले पांच वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रत्याशित उथल-पुथल हुई है। राज्य की जनता ने एक के बाद कई सियासी झटके देखे। लेकिन क्या जनता इन झटकों को पचा पाई, यह आने वाले हफ्तों में साफ हो जाएगा। चुनावों की घोषणा के साथ राज्य में छह प्रमुख राजनीतिक दलों की परीक्षा शुरू हो चुकी है। महाराष्ट्र में 288 सीटों पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। 2019 से 2024 तक पांच साल का कार्यकाल महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रत्याशित घटनाओं का दौर रहा है। इस बार चुनाव में दो नई पार्टियां नजर आएंगी। दरअसल, ये दोनों नई पार्टियां पिछली बार चुनाव लड़ चुकी दो पार्टियों से अलग होकर बनी हैं। पिछले पांच वर्षों की राजनीतिक घटनाओं की वजह से इन पार्टियों का गठन हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा में शिव सेना शिंदे गुट के पास 40 विधायक हैं। भाजपा के पास 103 विधायक और एनसीपी (अजित पवार) के पास 40 विधायक हैं। दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी से एनसीपी (शरद पवार) के पास 13 विधायक हैं, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के साथ 15 विधायक हैं और कांग्रेस के 43 विधायक हैं। इसके अलावा राज्य में बहुजन विकास अघाड़ी के तीन, समाजवादी पार्टी के 2, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदुल मुस्लिमीन के 2, प्रहार जन शक्ति 2, एमएनएस के 1, कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) 1, भारतीय किसान एवं मजदूर दल 1, स्वाभिमानी पक्ष 1, राष्ट्रीय समाज पार्टी 1, महाराष्ट्र जनसुराज शक्ति पार्टी के 1, क्रांतिकारी पार्टी के 1 और निर्दलीय 13 विधायक हैं। 2019 का विधानसभा चुनाव शिव सेना और भाजपा के गठबंधन ने मिलकर लड़ा था। दूसरी और कांग्रेsस और एनसीपी गठबंधन ने भी साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही महाराष्ट्र में दोनों गठबंधनों सत्तारुढ़ महायुति और महाविकास अघाड़ी (एमपीए) की चुनौतियां बढ़ गई हैं। महायुति की जीत की हैट्रिक लगाने की है तो एमवीए के सामने लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन बरकरार रखते हुए बीते दो चुनाव से जारी सूखा खत्म करने की। सवाल यही है कि क्या भाजपा की अगुवाई में महायुति महाराष्ट्र में हरियाणा जैसा पलटवार दोहरा पाएगी या फिर एमवीए हरियाणा की हार से सबक सीखते हुए इस बार बाजी मार जाएगी? लोकसभा चुनाव के नजरिए से देखें तो महाराष्ट्र और हरियाणा में कई समानताएं नजर आएंगी। हरियाणा में पांच सीटें छीनने वाली कांग्रेस को भाजपा से महज डेढ़ फीसदी अधिक वोट मिले और महाराष्ट्र में महायुति को 17 सीटों पर सीमित करने वाले एमवीए को महज 0.16 फीसदी वोट अधिक मिले। दोनों ही राज्यों में भाजपा की अगुवाई वाले राजग को ओबीसी, दलित वोट बैंक में सेंध लगने का नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाकर भाजपा ने कांग्रेsस से हिसाब-किताब बराबर कर लिया। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में लगे झटके से उबरने के लिए महायुति की निगाहें छिटक चुके 40 फीसदी ओबीसी और 10 फीसदी वोट दलित वोट बैंक पर हैं, जिसकी नाराजगी की कीमत आम चुनाव में उठानी पड़ी थी। दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी में शरद पवार जैसे चाणक्य मोर्चा संभाले हुए हैं। राहुल गांधी ने भी हरियाणा की हार से सबक सीखा है। पार्टी टूटने व सिंबल छिनने के बावजूद उद्धव ठाकरे अपनी जड़े जमाए हुए हैं और उनकी असली-नकली लोकप्रियता भी सामने हैं। इस चुनाव में पार्टी का भी फैसला होगा। लोकसभा चुनाव में एनसीपी (अजित) को सिर्फ 1 सीट मिली थी, वहीं शरद पवार गुट को 8 सीटें मिलीं तो शिवसेना (उद्धव) 9 तो शिवसेना (शिंदे) ने 7 सीटें जीतीं।

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