Saturday, 19 October 2024
झारखंड में दोनों झामुमो और भाजपा के लिए चुनौती
झारखंड में विधानसभा चुनाव की आधिकारिक घोषणा भले ही मंगलवार को हुई हो, लेकिन चुनावी बिसात पर शह-मात का खेल पिछले कई महीनों से जारी है। ईडी की कार्रवाई के कारण हेमंत सोरेन को पद छोड़ना पड़ा। वे लगभग 5 महीने जेल में रहे। जेल से वापस आने के बाद उन्हें अपने दल में उथल-पुथल का एहसास हुआ। समय रहते ही उन्होंने फिर मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया। कुछ समय बाद भाजपा ने उनके विश्वस्त पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को तोड़ लिया। हेमंत पर फिलहाल पूरे गठबंधन के नेतृत्व का दारोमदार है। सहुलियत के लिहाज से वे खाली कांग्रेस, राजद और वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। हेमंत की चुनौती फिर से सत्ता में वापसी की है। वहीं, विपरीत परिस्थितियों में जीत दिलाने में माहिर मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को राज्य में पार्टी के चुनाव की कमान सौंपने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय जनता पार्टी राज्य में सत्ता हासिल करने को लेकर किस कदर गंभीर हैं। वैसे भाजपा के लिए आसान नहीं है जीत हासिल करना। सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत लगा रही भाजपा के सामने झामुमो सबसे बड़ी बाधा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने और बाहर आने के दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने राज्य की राजनीति में अपनी पैठ गहरी की है। कल्पना के कार्यक्रमों में उमड़ रही भीड़ और महिलाओं का समर्थन झामुमो के लिए लाभ का सौदा हो सकता है। वहीं, भाजपा को आजसू व जद (यू) के साथ अपने गठबंधन के कारण सत्ता में लौटने का भरोसा है। साथ ही वह आदिवासी समुदाय में भी समर्थन हासिल कर रही है। झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा सहयोगी दलों जद यू और आजसू के साथ मिलकर मैदान में उतरी है। पार्टी को पिछली बार के मुकाबले ज्यादा लाभ की उम्मीद है, क्योंकि तब सब अलग-अलग लड़े थे और इससे भाजपा को नुकसान हुआ था। तत्कालीन सीएम रघुबर दास की गैर आदिवासी राजनीति पर जोर देने से भी भाजपा को घाटा हुआ था। यह नुकसान भाजपा को हाल के आम चुनाव में ही हुआ। हालांकि भाजपा रणनीतिकारों का कहना है कि झारखंड चुनाव इस बार भाजपा के लिए ज्यादा आसान होगा। हरियाणा में भाजपा को मिली जीत का असर भी झारखंड में पड़ सकता है और विरोधी खेमे में आत्म विश्वास कम हुआ है। झामुमो की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन की आस मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करिश्मे पर टिकी हैं। जमानत पर बाहर आने के बाद फिर से सरकार की बागडोर संभालने के बाद से ही हेमंत ने स्वजातीय वोट बैंक को साधने की पहल की है। वहीं भाजपा ने ओबीसी वोट बैंक को साधने और झामुमो के आदिवासी वोट बैंकों में सेंध लगाने की रणनीति बनाई है। वहीं झामुमो की रणनीति आदिवासी वोट बैंक को साधे रखने के साथ ही भाजपा के ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने की है। पार्टी को लगता है कि इसमें कांग्रेस और राजद मददगार साबित होंगे।
-अनिल नरेन्द्र
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