Friday, 4 October 2024
कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो
तिरुपति में लड्डू विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नसीहत दी है। राजनेताओं से कहा है कि कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो। यह लोगों की आस्था का मामला है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुबूत मांगते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के इस दावे पर सवाल उठाया कि तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही इस पर सख्त रुख अपनाते हुए चंद्रबाबू नायडू की तीखी आलोचना की। तिरुपति के प्रसाद से जुड़े इस विवाद को आधार बनाते हुए जो पांच याचिकाएं दायर की गई हैं, उन पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई हालांकि जारी है, लेकिन पहले ही दिन कोर्ट की नजर में यह तथ्य आ गया कि प्रसाद में मिलावटी घी के इस्तेमाल का कोई ठोस सबूत अभी तक नहीं पाया गया है। इससे न केवल यह पूरा मामला या विवाद ही निराधार साबित हो रहा है बल्कि यह सवाल भी सामने आया कि आखिर क्यों इस विवाद को तूल दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री से संबंधित दावा 18 सितम्बर को किया, जबकि मामले में प्राथमिकी 25 सितम्बर को दर्ज की गई और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन 26 सितम्बर को किया गया। पीठ ने कहा कि एक अन्य संवैधानिक पदाधिकारी के लिए सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देना उचित नहीं है जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। राजनीति और धर्म को मिलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नायडू ने दावा किया था कि पिछली सरकार के दौरान तिरुपति लड्डू बनाने में इस्तेमाल किया गया घी शुद्ध होने की बजाए जानवरों की चर्बी से युक्त था। अदालत ने सवाल किया कि जांच जब जारी है तो रिपोर्ट आने से पहले आप मीडिया में क्यों गए? लड्डू का स्वाद खराब होने की श्रद्धालुओं की शिकायत की बात उठने पर राज्य सरकार से सवाल किया कि आप कह सकते हैं कि टेंडर गलत तरीके से दिया गया। मगर यह कहना कि मिलावटी घी प्रयोग किया गया, इसका सबूत कहां है? तिरुपति मंदिर देश का एक ऐसा प्रमुख श्रद्धा का केंद्र है, जहां से करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने चंद्रबाबू नायडू पर राजनीति के लिए भगवान का प्रयोग करने और जनता का ध्यान सरकार के कामों से हटाने का आरोप लगाया। मंदिर की पवित्रता को ठेस लगाने वाली ये खबरें श्रद्धालुओं के लिए किसी सदमे से कम नहीं कही जा सकतीं। मगर जैसा शीर्ष अदालत ने कहा है कि धर्म को राजनीति से मिलाने की जरूरत नहीं है। आस्था-विश्वास के प्रति राजनीतिज्ञों को विशेष सतर्कता बरतनी सीखनी चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए लोग ये धर्म का दुरुपयोग जनता को दिग्भ्रमित करने और समुदायों के दरम्यान दरारे डालने वालों पर सख्ती की जानी आवश्यक है। सनसनी फैलाने वाले दोषमुक्त नहीं हो सकते। यदि वास्तव में किसी भी तरह की मिलावट हुई है, तो आस्था से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। इस तरह लोगों की आस्था से खेलकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश वैसे भी हमारे संवैधानिक मूल्यों पर भी आघात है।
-अनिल नरेन्द्र
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