Thursday, 20 February 2025

यमुना सफाईं अभियान शुरू

दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की यमुना नदी की सफाईं का दावा किया था। भाजपा की दिल्ली में शानदार जीत के बाद सरकार के गठन से पहले ही इस पर काम शुरू हो चुका है। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शनिवार को मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (सिचाईं एवं बाढ़ नियंत्रण) से मुलाकात की और उन्हें तुरन्त काम शुरू करने को कहा। इसके बाद रविवार को ट्रैश स्किमर्स, वीड हाव्रेस्टर्स और ड्रेज यूटिलिटी व््राफ्ट जैसी आधुनिक मशीनों को यमुना नदी में उतार दिया गया। इन मशीनों ने यमुना नदी में खर पतवार और कचरा को साफ करने का काम किया। यमुना नदी को साफ करने की महत्वाकांक्षी योजना के लिए लगभग 3 वर्षो को पूरा करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी), सिचाईं एवं बाढ़ नियंत्रण (आईंएंडएफसी) दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), पर्यांवरण विभाग, लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) जैसी विभिन्न एजेंसियों और विभागों के बीच बेहतरीन समन्वय की आवश्यकता होगी। इन कार्यो की निगरानी साप्ताहिक आधार पर उच्चतम स्तर पर की जाएगी। इसके अलावा, दिल्ली प्रादूषण नियंत्रण समिति, (डीपीसीसी) को शहर में औदृाोगिक इकाइयों द्वारा नालों में अनुप्राचरित अपशिष्ट के निर्वहन पर कड़ी निगरानी रखने का निर्देश दिया गया है। यमुना के कायाकल्प का काम जनवरी 2023 में मिशन मोड में शुरू हुआ था। इस चार स्तरीय रणनीति के तहत होगा यमुना का कायाकल्प। सबसे पहले यमुना नदी में जमा कचरा, गाद और अन्य गन्दगी को हटाया जाएगा। 2. साथ ही नजफगढ़ ड्रेन, सप्लीमेंट्री ड्रेन व अन्य बड़े नालों की सफाईं की जाएगी। 3. मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता और कामकाज की रोज निगरानी होगी। 4. करीब 400 एमजीडी सीवेज ट्रीटमेंट की कमी पूरी करने नए एसटीपी और डीएसटीपी बनाने व चालू करने की समयबद्ध यह योजना लागू की जाएगी। उपराज्यपाल योजना की निगरानी कर रहे थे और इससे संबंधित कार्यो का मौके पर जाकर निरीक्षण कर रहे थे। ऐसे में यमुना के पानी में सीओडी/बीओडी का स्तर महीने दर महीने थोड़ा सुधरने लगा था। मगर इस कार्यं विरोध में अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और 10 जुलाईं 2023 को तत्कालीन प्राधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ से एनजीटी के आदेश पर रोक लगवा दी। इसके बाद यमुना के कायाकल्प का काम फिर से रूक गया और इस साल की शुरुआत में रिकार्ड स्तर पर पहुंचने के साथ पानी में सीओडी/बीओडी का स्तर और खराब हो गया। हम नईं सरकार और प्राधानमंत्री के इस तेज रफ्तार से यमुना सफाईं अभियान चलाने का वह भी जब नईं सरकार का गठन नहीं हुआ, स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि वर्षो पुरानी दिल्ली वासियों की मांग कि यमुना साफ हो और दिल्ली वासियों को साफ पानी मिले जल्द हकीकत में बदले। ——अनिल नरेन्द्र

अमित शाह का नक्सलवाद मुक्त भारत मिशन

मुक्त भारत मिशन वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की नक्सलवाद मुक्त भारत मिशन को भारी बहुमत मिलती दिखने लगी है। पिछले छह वर्षो में वामपंथी उग्रावाद प्राभावित जिलों की संख्या 126 से घटकर 38 रह गईं है। इसी अवधि में उग्रावादी हिसा में 81 फीसद की कमी आईं है। जबकि सुरक्षा बलों और नागरिकों की हताहत संख्या में 85 फीसद की गिरावट दर्ज की गईं है। यह आंकड़े इस बात का प्रामाण है कि सरकार की नीति न केवल कारगर सिद्ध हो रही है। बल्कि नक्सलवाद का जड़ से खात्मा भी सुनिाित कर रही है। प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार केवल सैन्य कार्रवाईं तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन क्षेत्रों में विकास को भी प्राथमिकता दी, जहां नक्सलवाद की जड़े मजबूत थीं। सड़क निर्माण टेलीकॉम कनेक्टिविटी, बैकिग सुविधाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार के अवसरों को बढ़ाकर स्थानीय जनता को मुख्यधारा में लाने के लिए कईं योजनाएं चलाईं गईं। पिछले 5 वर्षो में वामपंथी उग्रावाद प्राभावित राज्यों में 2384.17 करोड़ रुपए की विशेष सहायता दी गईं, जिससे वहां के नागरिकों को आधारभूत सुविधाएं मिल सकीं। एक समय था जब युवाओं के पास रोजगार के सीमित अवसर थे जिससे वे उग्रावादी संगठनों के चगुंल में पंस जाते थे। लेकिन अब स्थिति बदल गईं है। केन्द्र सरकार ने कौशल विकास, स्टार्टअप प्राोत्साहन, आर्थिक समावेशन जैसी योजनाओं के जरिए युवाओं को एक नया भविष्य देने का काम किया है। इसमें वे अपने क्षेत्र में ही आत्मनिर्भर बन रहे हैं और नक्सलवाद से प्राभावित क्षेत्रों में सामान्य जीवन धीरे- धीरे लौट रहा है। वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में नक्सलवाद से निपटने की रणनीति आव््रामक लेकिन प्राभावी रही है। उन्होंने सुरक्षा बलों को प्राोत्साहित किया। खुफिया प्राणाली को मजबूत किया और वामपंथी उग्रावादियों के विभिन्न नेटवर्व को ध्वस्त करने के लिए कड़े कदम उठाए। उनकी यह नीति अब रंग ला रही है और भारत जल्द ही नक्सलवाद के अभिशाप से मुक्त होगा। आज जब भारत वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में अग्रासर है तो आतंरिक सुरक्षा को मजबूत करना अनिवार्यं है। नक्सलवाद जैसे खतरे को जड़ से मिटाना केवल सुरक्षा का सवाल नहीं, बल्कि सामाजिक उत्थान का भी भविष्य है। हमें यह सुनिाित करना होगा कि कोईं भी नागरिक या क्षेत्र विकास से वंचित न रहे। प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाईं में सरकार का यह संकल्प है कि आने वाले वर्षो में हर नागरिक को एक सुरक्षित और समृद्ध जीवन मिले। यह केवल युद्ध नहीं, बल्कि एक विचारधारा के अंत की शुरुआत है और वह दिन दूर नहीं जब भारत नक्सलवाद से पूर्णत: मुक्त होकर विकास और समृद्धि की नईं ऊंचाईंयों को छुएगा।

Tuesday, 18 February 2025

चुनाव आयोग ईंवीएम डाटा न हटाए

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि सत्यापन प्राव््िराया के दौरान ईंवीएम से डाटा मिटाया या फिर से अपलोड न किया जाए। शीर्ष अदालत ने एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोव््रोटिक रिफाम्र्स (एडीआर) की याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआईं) संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने एडीआर की ईंवीएम की जली हुईं मेमोरी और सिबल लोडिग मशीन यूनिट के सत्यापन की अनुमति की मांग करती याचिका पर यह निर्देश दिया। कोर्ट ने चुनाव आयोग से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें दावा किया गया है कि ईंवीएम के सत्यापन के लिए उसकी ओर से तैयार की गईं मानक संचालन प्राव््िराया (एसओपी) ईंवीएम-वीवी पैट मामले में 26 अप्रौल 2024 के कोर्ट के पैसले के अनुरूप नहीं है। एडीआर की ओर से वकील प्राशांत भूषण ने कहा कि 1 जून और 16 जुलाईं 2024 को चुनाव आयोग की ओर से जारी एसओपी में ईंवीएम और सिबल लोडिग यूनिट की जली हुईं मेमोरी या माइव््राो वंट्रोलर की जांच और सत्यापन के लिए पर्यांप्त दिशा-निर्देशों का अभाव है। एडीआर की याचिका में दावा किया गया है कि वर्तमान में निर्धारित जांच और सत्यापन प्राव््िराया में जली हुईं मेमोरी या माइव््राो वंट्रोलर के मूल डाटा को साफ करना भी हटाना शामिल है। जो किसी या वास्तविक जांच और सत्यापन को असंभव बना देता है। आवेदन में कहा गया है कि अनुपालन संबंधी दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति ऐतिहासिक निर्णय के सार को पराजित करती है जिसका उद्देश्य यह सुनिाित करना था कि मतदान के दौरान कोईं दुर्भावना या बेईंमानी न हो। पीठ ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिदर सिह से कहा कि पैसले में निर्देश ईंवीएम में मतदान डाटा को मिटाने या फिर से लोड करने का नहीं था। पैसले का उद्देश्य केवल यह था कि मतदान के बाद ईंवीएम का सत्यापन और जांच निर्माण वंपनी के एक इंजीनियर की ओर से की जाए।पीठ ने वकील से पूछा— अगर मतदान के बाद कोईं पूछता है तो इंजीनियर को आकर यह प्रामाणित करना चाहिए कि उनकी मौजूदगी में उनके अनुसार जली हुईं मेमोरी या माइव््राो-चिप स्टॉक में कोईं छेड़छाड़ नहीं की गईं है। बस इतना ही। आप डाटा क्यों मिटाते हैं? ——अनिल नरेन्द्र

महावुंभ में रिकार्ड 50 करोड़ श्रद्धालु

50 करोड़ श्रद्धालु महावुंभ में स्नान करने वालों की संख्या 50 करोड़ पार कर चुकी है।यह अपने आप में एक रिकार्ड है। इसे पूर्व के किसी भी वुंभ, महावुंभ में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान नहीं किया। खास बात यह है कि 50 करोड़ का आंकड़ा मेला अवधि पूरे होने से पूर्व ही पार हो गया है, मेला अभी 26 फरवरी तक है, इस दिन महाशिवरात्रि का स्नान होगा। महाशिवरात्रि तक लगभग 60 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान करने का अनुमान लगाया जा रहा है। गुरुवार की रात आठ बजे तक 49.14 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया था। शुव््रावार को शाम छह बजे तक 92.84 लाख श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाईं। मेला क्षेत्र में हालात ऐसे हैं कि यहां पर आम दिनों में भी माघ महीने के प्रामुख स्नान जैसा नजारा दिखता है। लोग सिर पर गठरी बांधे हर दिशा से मीलों पैदल चलकर संगम पहुंच रहे हैं। शुव््रावार को भी स्थिति ऐसी हो गईं कि कईं बार मेला व पुलिस प्राशासन को जोनल प्लान लागू कर श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र की बैरिकेडिग से रोकना पड़ा। ि़जससे संगम क्षेत्र पर ज्यादा दबाव न बन सके। पूरे दिन श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता रहा। काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने शुव््रावार को त्रिजटा स्नान मानकर डुबकी लगाईं। मान्यता है कि त्रिजटा स्नान पूर्व पर संगम में डुबकी लगाने से एक महीने का कल्पवास का पुण्य मिल जाता है। हालांकि तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि त्रिजटा स्नान शनिवार को है। संगम की रेती पर चल रहे महावुंभ में गुरुवार को अनूठा विश्व कीर्तिमान बनाया गया है। यह रिकार्ड नदी स्वच्छता का है। 300 से अधिक लोगों ने एक साथ गंगा सफाईं कर यह रिकार्ड बनाया। गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड और प्रायागराज मेला प्राधिकरण की टीम का कहना है कि अब तक इस जैसा रिकार्ड कभी नहीं बना। प्राशासन ने 300 सफाईं कर्मियों को एक साथ 30 मिनट तक गंगा स्वच्छता के अभियान का लक्ष्य दिया था। यह वुंभ कईं मायनों में अप््िरातम रहा है। उत्तर प्रादेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार भी अब तक प्रायागराज के इस महावुंभ में लगभग 50 करोड़ श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। शायद ही कोईं संत, महंत, साधु, नागा संन्यासी चाहे किसी अखाड़े या संप्रादाय से क्यों न जुड़ा हुआ हो। यहां न आया हो। राष्ट्रपति, प्राधानमंत्री से लेकर सत्ता, विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता वुंभ स्नान कर चुके हैं। अंबानी, अडानी सहित देश के शीर्षक उदृाोगपति परिवारों के लोग त्रिवेणी के जल में स्नान कर चुके हैं। फिल्म उदृाोग तथा अन्य गतिविधियों से जुड़े प्रासिद्ध और चर्चित चेहरे प्रायागराज की माटी चूम चुके हैं। सामान्य श्रद्धालुओं का जो उत्साह प्रारम्भ में उमड़ता हुआ दिखाईं दिया था उसकी उमड़ किसी भी दिन कम नहीं हुईं। मौनी अमावस्या के दिन दुखद दुर्घटना भी हो गईं। वुछ श्रद्धालुओं की मृत्यु भी हो गईं। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण था। प्रायागराज पहुंचने वाले हर मार्ग पर जो लंबी लाइने लगी हुईं हैं। श्रद्धालुओं को कईं-कईं घंटे लाइनों व जाम में पंसने से भी उनके उत्साह में कमी नहीं आईं। कईं मायनों में यह महावुंभ ऐतिहासिक रहा। हम मुख्यमंत्री योगी जी व उनके तमाम प्राशासनिक अधिकारियों को इस अत्यन्त सफल आयोजन की बधाईं देते हैं।

Saturday, 15 February 2025

ट्रंप के 6 फैसलों पर लगी रोक



20 जनवरी 2024 को जबसे डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में वापसी की है, उन्होंने अपने बदलाव वाले एजेंडे को तूफानी रफ्तार से आगे बढ़ाया है। अमेरिकी सरकार के प्रमुख के तौर पर उन्होंने पहले ही दिन जो बाइडन के बनाए नियमों को 78 शासकीय अध्यादेशों के जरिए खत्म कर दिया। तबसे उन्होंने अपने एजेंडे को लागू करने के लिए जिन दर्जनों आदेशों को जारी किया है, वे अगर लागू होते हैं तो अमेरिका में कार्यपालिका के काम के तरीके और आकार को नहीं बदलेंगे बल्कि सरकार के अन्य विभागों की शक्तियों पर असर पड़ेगा। उनके कुछ कदमों का असर कुछ संवैधानिक अधिकारों पर भी पड़ेगा। हालांकि फिलहाल उनके आदेशों को उनके समर्थक कई बड़े उत्साह से ले रहे हैं। ट्रंप के इन कदमों से अमेरिका में लाखों सरकारी कर्मचारी चिंतित हैं, जिन्हें अपनी नौकरी जाने का डर सता रहा है। इसके अलावा हजारों कंपनियां, एनजीओ भी असमंजस में हैं जो फंड, कांट्रेक्ट और सहायता उन्हें मिल रही थी, वो जारी रहेगी या नहीं? ट्रंप के इन आदेशों में से कई को अदालत में चुनौती दी गई है, कुछ आदेशों को देश के अलग-अलग हिस्से में अदालतों ने निलंबित कर दिया है, जिसने ट्रंप प्रशासन में हताशा पैदा कर दी है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपने गुस्से को जाहिर करते हुए कहा कि न्यायापालिका अपने फैसलों से हद पार कर रही है। जजों को कार्यपालिका की वैध शक्तियों को रोकने की इजाजत नहीं है। मंगलवार को डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डॉज) के प्रमुख और अरबपति एलन मस्क भी एक फैसले के लिए एक जज को निशाने पर लेते हुए लिखते हैं ः एक जज की पूरी जिंदगी जज बने रहने देने का विचार भले ही फैसले कितने बुरे हों। यह बहुत बकवास बात है। हो सकता है कि उन जजों की जांच करने की जरूरत हो। ऐसे छह मामले हैं जिसमें अमेरिकी न्याय प्रणाली ने ट्रंप प्रशासन के फैसलों पर रोक लगा दी है। आप्रवासी के बच्चों की नागरिकता के आदेश पर कई राज्यों की अदालतों के फैसले आए। विदेशियों के होने वाले बच्चों के जन्मसिद्ध नागारिकता के आधार पर खत्म करने का ट्रंप के फैसलों को सबसे पहले सीएटएल के एक संघीय जज ने 23 जनवरी को दिया जिसमें इस आदेश पर अस्थाई रोक लगा दी गई। मैरी लैंड के एक जज ने पूरे देश में ट्रंप के इस आदेश पर रोक लगा दी। जबकि 10 जनवरी को एक तीसरे जज ने ऐसा ही फैसला सुनाया । जनवरी के अंत में इस प्रशासन ने 20 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारियों को ऐसा नोटिस दिया, जिसमें मुआवजे के तौर पर 8 महीने के वेतन के बदले, उन्हें स्वेच्छा से इस्तीफा देने की पेशकश की गई। 6 फरवरी को एक संघीय जज ने इसे लागू होने पर रोक लगा दी और पेशकश स्वीकार करने की समय सीमा भी बढ़ा दी। नए प्रशासन ने यूएसएड के सभी तरह के अंतर्राष्ट्रीय सहायता कार्यक्रमों पर रोक लगा दी और अमेरिका से बाहर काम करने वाले सभी कर्मचारियों को वापस आने का आदेश देते हुए हजारों कर्मचारियों को नौकरी से निलंबित कर दिया। 7 फरवरी को एक संघीय जज ने ट्रंप प्रशासन की योजना पर तत्कालिक रोक लगा दी। इसके अलावा एलन मस्क के डिर्पाटमेंट डाज और यूएसएड के 2,200 कर्मचारियों को निलंबित किए जाने पर रोक लगा दी। इसी तरह कई और तुगलकी आदेशों पर वहां की अदालतों ने रोक लगा दी। और भी कई फैसलों पर रोक लगाई गई है। 31 जनवरी के आदेश में ट्रंप प्रशासन ने कहा कि अधिकारिक रूप से सिर्फ दो जेंडर को मान्यता दी जाएगी, इसमें ट्रांस लोगों के जीवन में भारी उथल-पुथल मच गया। ट्रंप प्रशासन के फैसलों पर अमेरिका में जमकर विरोध हो रहा है। कहा जा रहा है कि अमेरिका की सारी स्टेटों में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। भारी उथल-पुथल मच गई है।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली चुनाव और बिहार की राजनीति



दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस को परजीवी पार्टी कहा। उन्होंने कहा, बिहार में कांग्रेस जातिवाद का जहर फैलाकर अपनी सहयोगी आरजेडी की पेटेंट जमीन को खाने में लगी है। चूंकि इस साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए पीएम मोदी के भाषण का यह अंश चर्चा में है। विश्लेषकों के अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का बिहार में होने वाले चुनावों पर भी असर पड़ेगा। उनका मानना है कि दिल्ली की तरह बिहार में भी कांग्रेस अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश कर रही है, इसलिए वह बिहार चुनाव अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ेगी। अगर वो ऐसा कर जाती है तो संभव है कि वह बारगेनिंग पावर बढ़ा सके। वैसे भी बिहार में कार्यकर्ताओं की पूरी डिमांड है कि पार्टी अकेले चुनाव लड़े ताकि पार्टी को दूरगामी राजनीति में फायदा हो। दिल्ली चुनाव में नतीजों ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टियों की स्थिति को लेकर कयास तेज कर दिए हैं। जानकारों की मानें तो दोनों ही गठबंधन यानि एनडीए और इंडिया गठबंधन की पार्टियों में सीट शेयरिंग को लेकर नए समीकरण बनेंगे। भाजपा प्रवक्ता आसित नाथ तिवारी कहते हैं, एनडीए ने 225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और हम लोग अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चट्टानी एकता के साथ लड़ेंगे। वही जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा भी कहती हैं जिस निर्णय से एनडीए के पक्ष में निर्णय आएंगे वही फैसला लिया जाएगा। हालांकि सूत्रों की मानें तो जेडीयू 100, भाजपा 100, राजद 150 तो कांग्रेस 70 सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी ‘हम’ के लिए 20 सीटों की डिमांड पहले ही कर चुकी है। वहीं मुकेश साहनी की वीआईपी 40 सीटों पर दावेदारी कर रही है। जनसुराज ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की बात कही है। दिल्ली चुनाव नतीजों के बाद सबसे ज्यादा पेंच कांग्रेस को मिलने वाली सीट पर हो सकता है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीट में से सिर्फ 19 सीट जीत पाई थी। हालांकि लोकसभा में पार्टी ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 9 में से तीन सीट जीती। वरिष्ठ विश्लेषक का मानना है कि कांग्रेस बिहार में बारगेनिंग पोजीशिन में नहीं है, न तो उसके पास उम्मीदवार है न संगठन। राहुल गांधी इस साल दो बार पटना आ चुके हैं। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव जातिगत सर्वे लेते रहे हैं। यहां ये दिलचस्प है कि ये दोनों ही कार्यक्रम कांग्रेस के नहीं थे। एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि इन कार्यक्रमों में शामिल होकर वो पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को लक्ष्य करके अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर आप देखिए तो मोटे तौर पर ये राजद का कोर वोट है। वहीं राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, दिल्ली और बिहार में कुछ फर्क है। केजरीवाल और कांग्रेस के संबंध तल्ख हैं, लेकिन बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है। बिहार में प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज की तुलना भी आम आदमी पार्टी से की जाती है, वजह यह कि दोनों ही वैकल्पिक और साफ-सुथरी राजनीति की बात करते हैं। वहीं एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, पीके केजरीवाल ही साबित होंगे। ये दोनों ही नई राजनीति की बात करते हैं और करते कुछ और हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले। वह किस तरफ जाएंगे इस पर सवाल खड़े हैं। दूसरी ओर भाजपा अपनी पूरी ताकत से बिहार चुनाव लड़ेगी और चाहेगी कि इस बार बिहार का मुख्यमंत्री भाजपा का ही हो। अभी समय है, बिहार विधानसभा चुनाव साल के अंत तक होना है तब तक कई समीकरण बदलेंगे, परिस्थितियां बदलेंगी।

Thursday, 13 February 2025

कांग्रोस ने हारकर भी हिसाब चुकता किया


दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रोस हारकर भी जीत गईं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रोस पाटा को एक भी सीट जीतने में कामयाबी नहीं मिली हो, लेकिन उसने आप पाटा की हार सुनिाित करने में बड़ी भूमिका निभाईं। भले ही कांग्रोस पाटा को पराजय का सामना करना पड़ा हो लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में वह अपनी राह के बड़े कांटे को निकालने में सफल रही है। कारण यह है कि आम आदमी पाटा का जन्म कांग्रोस के विरोध से शुरू हुआ और धीरे-धीरे उसने देश के कईं हिस्सों में पाटा के जनाधार पर सेंध लगाने का काम किया। जहां पहले उसने दिल्ली की सत्ता से कांग्रोस को बेदखल किया तो उसके बाद कांग्रोस के एक अन्य गढ़ माने जाने वाले राज्य पंजाब में भी उसे हाशिए पर खड़ा कर दिया।

दो राज्यों में बेदखल करने के अलावा आम आदमी पाटा ने गुजरात, उत्तरांचल, गोवा, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रादेश के चुनाव में भी कांग्रोस को गहरी चोट दी। दिल्ली के विधानसभा परिणाम स्पष्ट दिखाते हैं कि कांग्रोस ने जो वोट लिए उसी की वजह से आम आदमी पाटा कम से कम 15-17 सीटों पर हार गईं। हार जीत में जितना वोटों का अंतर है उससे ज्यादा वोट कांग्रोस उम्मीदवारों को मिले। आज अगर केजरीवाल सत्ता से बाहर हैं तो इसके पीछे उनका अहंकार बड़ी वजह है। कांग्रोस तो हरियाणा में भी गठबंधन करना चाहती थी पर केजरीवाल ने न केवल मना कर दिया बल्कि सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। इनमें से अधिकतम की जमानत जब्त हो गईं। पर यह कांग्रोस को भी सत्ता में जीती बाजी हरवा गए। इसलिए वुछ विश्लेषक उन्हें भाजपा-आरएसएस की बी टीम कहते हैं। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में कांग्रोस को अकेले अपने दम पर उतरने के पीछे भी बड़ी वजह चुनाव जीतना नहीं बल्कि केजरीवाल के बढ़ते कदमों को रोकना था। पाटा के रणनीतिकार मानते थे कि यदि केजरीवाल की राह नहीं रोकी तो आने वाले दिनों में न केवल कईं अन्य राज्यों में वह कांग्रोस के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। ऐसे में कांग्रोस का चुनाव कईं अवसर के रूप में सामने आया और पाटा ने अपनी रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उल्लेखनीय है कि आम आदमी पाटा (आप) का जन्म ही कांग्रोस विरोध के नाम पर हुआ था। केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिल्ली से आगे बढ़कर अन्य राज्यों में भी सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रोस को पहुंचाना रहा। पिछले वुछ दिनों से तो केजरीवाल राहुल गांधी के खिलाफ खुलकर आरोप लगाने लगे थे ताकि कांग्रोस को नुकसान पहुंचे और वह खुद विपक्ष की राजनीति में भी राहुल के सामने खड़े हो सके। केजरीवाल, ममता और अन्य इंडिया गठबंधन ने तो कांग्रोस को विपक्षी गठबंधन से ही बाहर करने की कोशिश की। कांग्रोस को लगने लगा कि अगर उसे सियासत में जिदा रहना है तो अकेला खड़ा होना पड़ेगा और इस रणनीति में सबसे पहला कदम था दिल्ली में आम आदमी पाटा को सियासी मात दिलवाने में मदद करना।

कांग्रोस जानती थी कि वह दिल्ली में जीत नहीं सकती थी पर उसका मकसद आम आदमी पाटा को सत्ता से बेदखल करना था जिसमें वह सफल भी हो गईं।

——अनिल नरेन्द्र 

मिल्कीपुर में भाजपा की जीत



भाजपा की जीत उत्तर प्रादेश उपचुनाव में भाजपा को मिली जीत के कईं संदेश हैं।

पहली बात तो यह है कि यहां पिछड़ी जातियों के ज्यादातर मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया। इस सीट पर भाजपा के चंद्रभानू पासवान ने 61,719 वोट के अंतर से अपने निकटतम प्रातिद्वंद्वी सपा के अजीत प्रासाद को हराया। चंद्रभानू को 1,46,397 वोट मिले जबकि सपा उम्मीदवार को 84,000 से अधिक वोट हासिल हुए। पारंपरिक तौर पर ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम वोटरों का प्राभाव समाजवादी पाटा की तरफ रहता है लेकिन इस उपचुनाव में सपा को लोकसभा चुनाव की तरह मुस्लिम मतदाताओं का साथ नहीं मिला। सपा के लिए प्राचार करने वाले अयोध्या के पूर्व विधायक पवन पांडे भी पाटा के लिए ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए। माना जाता है कि पवन पांडे का ब्राrाण समुदाय में अच्छा आधार है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के पीडीए का पैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में जो जादू चला था वो मिल्कीपुर उपचुनाव में नहीं चल सका। मगर जातीय आंकड़ों की बात करें तो मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में वुल मतदाताओं में से 30 प्रातिशत दलित समुदाय है।

वहीं यादव और मुस्लिम समुदाय लगभग बराबर संख्या में है। इसके अलावा ब्राrाण, ठावुर, बनिया समेत अगड़ी जाति के वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। बाकी के वोटरो में धोबी, वुम्हार, लोधी, लोहार समेत अन्य जाति पिछड़े वर्ग से आते हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती यादवों को अपनी तरफ मोड़ना था। भाजपा ने चुपचाप इस मिशन पर काम किया, पाटा के कार्यंकर्ताओं ने समुदाय के प्राधान, समुदाय के पूर्व प्राधानों से संपर्व किया और उन लोगों से संपर्व किया, जिन्होंने छोटेछोटे चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। यादवों को एकजुट करने में आरएसएस पदाधिकारी ने अहम भूमिका निभाईं और वो इसके लिए पिछले छह महीने से काम कर रहे थे। उधर एक स्थानीय नेता का कहना था कि समाजवादी पाटा ने ब्राrाणों के बीच कोईं ठीक काम नहीं किया। मिल्कीपुर में दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इनमें से बड़ी संख्या में लोगों की पहली पसंद इस चुनाव में भाजपा रही। इस निर्वाचन क्षेत्र में दो प्रामुख दलित समुदाय है, पासी और कोरी। भाजपा ने इन दोनों प्रामुख समूहों के बीच पाटा की पैठ बनाने में अहम भूमिका निभाईं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पारम्परिक तौर पर सपा को मुस्लिम वोट मिलता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। उनका वोट टर्न आउट कम रहा। इनका यह भी कहना है कि उपचुनाव में सत्ताधारी पाटा को हटाना आसान नहीं होता क्योंकि सारी सरकारी मशीनरी उनके साथ होती है। वरिष्ठ पत्रकार हालांकि यह भी कहते हैं कि मिल्कीपुर में मिला जनादेश भाजपा को मिला जनादेश का मुकाबला अयोध्या में भाजपा की हार से पुख्ता नहीं होता। दिल्ली विधानसभा चुनाव और मिल्कीपुर उपचुनाव के नतीजों पर सपा प्रामुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर चुनाव में ईंमानदारी न बरतने का आरोप लगाते हुए कहा पीडीए की पहली शक्ति का सामना भाजपा वोट के बल पर नहीं कर सकती है। इसलिए वो चुनावी तंत्र का दुरुपयोग करके जीतने की कोशिश करती है। ऐसी चुनावी धांधली करने के लिए जिस स्तर पर अधिकारियों को हेरापेरी करनी होती है वो एक विधानसभा में तो भले किसी तरह संभव है, लेकिन 403 विधानसभाओं में से चार सौ बीस नहीं चलेगी। उन्होंने आगे कहा जो लोग ये कह रहे हैं कि मिल्कीपुर जीतकर अयोध्या का बदला ले लिया, अयोध्या का बदला कोईं नहीं ले सकता। इसमें कोईं संदेह नहीं कि उत्तर प्रादेश से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिल्कीपुर को अपनी प्रातिष्ठा का प्राश्न बना लिया था।


Tuesday, 11 February 2025

डंकी रूट के ट्रेवल एजेंटों पर कार्रवाई



यह अच्छी खबर है कि अवैध रूप से अमेरिका जाने वाले भारतीयों के निर्वासन के बाद इसके लिए दोषी माने जा रहे ट्रेवल एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है। पंजाब के डीजीपी गौरव यादव ने अन्य वरिष्ठ अफसरों के साथ चार सदस्यीय कमेटी बनाई है जो अवैध प्रवास या मानव तस्करी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर जांच करेगी। अमृतसर पुलिस ने इस मामले में पहला केस ट्रेवल एजेंट सतनाम सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया है। वहीं करनाल में भी अमेरिका से निर्वासित किए गए पीड़ितों ने एजेंटों के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज कराए हैं। धोखाधड़ी के मामले में 7 साल कैद और पंजाब ट्रेवल प्रोफेंशनल्स रेगुलेशन एक्ट के तहत सात साल से दस साल की कैद और दस से 20 लाख रुपए, जमीन तथा आफिस सील किया जा सकता है। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने खुलासा किया है कि बीते तीन वर्षों में लगभग 4200 भारतीयों के अवैध रूप से अमेरिका पहुंचने की जांच चल रही है। ईडी ने गुजरात और पंजाब में पीय एजेंटों के नेटवर्क का भंडाफोड़ किया है। जो अवैध रूप से भारतीयों को विभिन्न रास्तों से अमेरिका भेजने का काम कर रहे थे। जांच में सामने आया है कि अवैध प्रवास के लिए एजेंटों ने शिक्षा के नाम पर एक जाल बिछाया है। इसके तहत अमेरिका जाने के इच्छुक भारतीय नागरिकों को पहले कनाडा के कालेजों में एडमिशन दिलाया जाता है। इसके आधार पर वे कनाडा का वीजा प्राप्त करते और वहां पहुंचने के बाद कालेज की पढ़ाई छोड़कर अमेरिका की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। ईडी की रिपोर्ट के अनुसार इन कालेजों की फीस भुगतान के लिए ई बिक्स कैश नामक एक वित्तीय सेवा कंपनी का इस्तेमाल किया जाता है। जांच में पाया गया है कि 7 सितम्बर 2021 से 9 अगस्त 2024 के बीच गुजरात से कनाडा स्थित विभिन्न कालेजों में 8,500 ट्रांजेक्शन किए गए। इन में से 4300 दोहराए गए ट्रांजेक्शन ऐसे थे जिनका इस्तेमाल अवैध रूप से अमेरिका जाने के लिए किया गया। ईडी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि एजेंटों को प्रत्येक व्यक्ति को अवैध रूप से अमेरिका भेजने के लिए 40 से 50 लाख रुपए तक की राशि मिलती थी। इसके बाद वे छात्रों के नाम से कनाडा के कालेजों में प्रवेश दिलवाते और फीस भरते थे। जब व्यक्ति कनाडा पहुंच जाता तो किसी ने किसी बहाने कालेज से दाखिला रद्द कर दिया जाता। सरकार ने पावार को लोकसभा में बताया कि वर्तमान में विदेशी जेलों में बंद भारतीय कैदियों की संख्या 10,152 है। विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में ये डाटा साझा किया। साझा किए गए डाटा के मुताबिक सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, नेपाल, पाकिस्तान, अमेरिका, श्रीलंका, स्पेन, रूस, इजरायल, चीन, बांग्लादेश और अर्जेंटीना सहित 86 देशों की जेलों में भारतीय कैदियों के आंकड़े शामिल हैं। उम्मीद की जाती है कि अवैध तरीके से भारतीयों को विदेश भेजने वाले इन ट्रैवल एजेंटों पर सख्त कार्रवाई होगी महज लीपापोती नहीं। इनकी वजह से आज भारत पूरी दुनिया में बदनाम हो रहा है। सारी दुनिया ने देखा कि किस तरह बेड़ियों में जकड़े अवैध प्रवासी अमृतसर हवाई अड्डे उतरे। भारत सरकार ने ट्रंप प्रशासन से अनुरोध भी किया है कि इनसे मानवीय व्यवहार किया जाए।

-अनिल नरेन्द्र


केजरीवाल को दिल्ली वालों ने दिल से क्यों निकाला


दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में न केवल आम आदमी पार्टी (आप) को करारी हार मिली बल्कि खुद अरविन्द केजरीवाल भी नई दिल्ली विधानसभा सीट नहीं बचा पाए। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा से चुनाव हार गए। केजरीवाल ने पिछले साल सितम्बर महीने में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। शायद उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि यह इस्तीफा कितना महंगा पड़ेगा। जब केजरीवाल पिछले साल 21 मार्च को जेल गए थे तभी विपक्षी पार्टियां उनके इस्तीफे की मांग कर रही थी और तंज कस रही थी कि दिल्ली की सरकार तिहाड़ जेल से चल रही है। अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की आबकारी नीति (जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था) में कथित अनियमितता मामले में छह महीने जेल में रहे थे। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए केजरीवाल ने कहा था, मैंने जनता की अदालत में जाने का फैसला किया है। जनता ही बताएगी कि मैं ईमानदार हूं या नहीं। अब दिल्ली की जनता ने अपना फैसला सुना दिया है। यह फैसला किसी के बेईमान और ईमानदार होने से ज्यादा यह है कि दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री केजरीवाल नहीं बल्कि कोई भाजपा से होगा। केजरीवाल ने राजनीति में दस्तक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के जरिए दी थी। वे अपनी पार्टी और खुद के कट्टर ईमानदार होने का दावा करते रहे हैं। ऐसे में जब भ्रष्टाचार के मामले में वह जेल गए तो यह उनकी छवि के बिल्कुल उलट था। राजनीति में जिस छवि के साथ केजरीवाल 12 साल पहले आए थे, वो कमजोर पड़ी है। भाजपा ने केजरीवाल की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को रणनीति के तहत कमजोर कर दिया। आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से पहले केजरीवाल दावा करते थे कि वह सरकारी बंगला नहीं लेंगे और अपनी छोटी कार वैगनार पर ही चलेंगे इत्यादि-इत्यादि पर उन्होंने किया बिल्कुल उल्टा। घर बनाया तो शीशमहल बना दिया। कारों का लंबा काफिला उनके साथ चलता था। उनका अहंकार आसमान छूने लगा था। उन्होंने पार्टी के संस्थापकों सहित सभी दिग्गज नेताओं को लात मार कर बाहर निकाल दिया। वह न तो किसी अन्य नेता की बात सुनते थे न ही ईमानदार अफसरों की। केजरीवाल की हार की सबसे बड़ी वजह यह है कि दिल्ली के लोगों के मन में यह शंका घर कर गई थी कि आम आदमी पार्टी ने जो वादा किया है उसे डिलीवर करना मुश्किल है। केजरीवाल अक्सर यह दावा करते थे कि उपराज्यपाल हमें काम नहीं करने देते। तो जनता ने फैसला किया कि क्यों न भाजपा को लाया जाए ताकि सरकार और उपराज्यपाल में बेहतर समन्वय हो और दिल्ली का विकास हो। केजरीवाल की हार का एक बड़ा कारण था कांग्रेस से गठबंधन तोड़ना। शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने केजरीवाल को जितना एक्सपोज किया और नुकसान पहुंचाया उतना शायद स्वाती मालीवाल, कुमार विश्वास ने भी नहीं किया। केजरीवाल को इतना अहंकार हो गया था कि उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर सोचा कि मैं अकेले ही मोदी का मुकाबला कर लूंगा। उनकी जमानत की शर्तों में एक शर्त यह भी थी कि वह मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते। इससे भी जनता में असर पड़ा कि अगर उन्हें चुन भी लिया तो मुख्यमंत्री की ड्यूटी तो यह कर नहीं पाएंगे। केजरीवाल ने कहा था कि वह आम आदमी हैं और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी आम आदमी की तरह रहेंगे। लेकिन यह झूठ साबित हुआ। केजरीवाल की पार्टी का कोई लोकतंत्र नहीं है और वह हिटलरी अंदाज में काम करते हैं। अब जब वह हार गए हैं तो सारी बातें खुलने लगेंगी। उनके हार के कई विश्लेषण होंगे। मोटे तौर पर अब उन्हें सोचने, समझने और सुधार करने का पर्याप्त समय दिल्लीवासियों ने दे दिया है। राजनीति में कोई खत्म नहीं होता। केजरीवाल को भी राइट ऑफ नहीं किया जा सकता।

Saturday, 8 February 2025

गाजा पर अमेरिका कब्जा करेगा



हमें समझ नहीं आता कि अमेरिकी जनता ने क्या सोचकर इस खुराफाती शख्स जिसका नाम डोनाल्ड ट्रंप है को क्या सोचकर देश का राष्ट्रपति बनाया? यह तो पुरानी दुनिया का नक्शा बदलने के चक्कर में है। आए दिन इनके ऐसे बयान आ रहे हैं। जिसमें पूरी दुनिया में चिंता हो गई है कि यह क्या करने का इरादा रखता है। अब ताजा खबर आई है कि श्रीमान जी कह रहे हैं कि गाजा पट्टी पर अमेरिका कब्जा करेगा और यहां पर रिजार्ट सिटी बनाई जाएगी। यह पश्चिमी एशिया के लिए रोजगार और टूरिज्म का सेंटर बनेगा। ट्रंप ने कहा कि बदहाल गाजा अब बाधित जगह है, जहां कोई नहीं जाना चाहता है। गाजा बारूदी सुरंगों और आतंकी गुफाओं से पटा पड़ा है। पूरे गाजा को समतल बना कर वहां इंफ्रास्क्ट्रचर डेवलप किया जाएगा। वाशिंगटन में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप ने कहा गाजा में रहने वाले 23 लाख लोगों को मिस्र और जार्डन जैसे देशों में बसाया जाएगा। पश्चिमी एशिया की समस्या को सुलझाने के बारे में अमेरिका ने अब लंबी अवधि के प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। ये प्लान दुनिया भर के लिए फायदेमंद साबित होने वाला है। इसके नतीजे जल्द ही सामने आएंगे। नेतान्याहू ने कहा ये ऐतिहासिक होने वाला है। ट्रंप ने कहा कि हम वहां मौजूद खतरनाक बमों व अन्य हथियारों को निपिय करेंगे। तबाह हो चुकी इमारत को हटाने की जिम्मेदारी हमारी होगी। ट्रंप बोले फिलस्तनियों के पास कोई विकल्प नहीं है। यही कारण है वह गाजा वापस जाना चाहते हैं। पर वहां हर इमारत ढह गई है। ट्रंप के बयान पर हमास प्रवक्ता ने कहा कि हम ट्रंप के उन बयानों को खारिज करते हैं जिसमें उन्होंने कहा कि गाजा पट्टी के निवासियों के पास वहां से भले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा स्वतंत्र फलस्तीनी राष्ट्र का सऊदी अरब लंबे समय से आ"ान करता रहा है। उसका यह रुख अटूट है। वहीं एक अमेरिका सीनेटर कुन्स ने कहा कि ट्रंप का बयान खतरनाक है, इससे दुनिया में हमारे बारे में सोचने का जोखिम उत्पन्न हो गया है कि हम गैर भरोसेमंद साथी हैं। भारत में कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को कहा, गाजा को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति का प्रस्ताव अस्वीकार्य है। सरकार को मामले में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर कहा, गाजा को भविष्य पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सोच खतरनाक है। ट्रंप के प्लान में अब तक कई अरब देश विरोध में आ चुके हैं। इनमें प्रमुख अरब देश सऊदी अरब मिस्र, जार्डन, कतर, तुर्किए आ चुके हैं। गाजा पर शासन करने वाले हमास ने तो इसे जातीय नरसंहार दिया है। खतरा यह भी है कि गाजा में अमेरिकी सेना उतार सकता है ट्रंप या इसे लीज पर ले सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

 

हमें हथकड़ियां, पैरों में बेड़ियां पहनाई गईं



अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को खदेड़ने की सबसे बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है। अमेरिका से अवैध प्रवासी भारतीयों के पहले ग्रुप को डिपोर्ट कर दिया गया है। भारतीय समयानुसार मंगलवार तड़के अमेरिकी सैन्य विमान सी-17 ग्लोब मास्टर इन्हें लेकर सैन एटोनिया से रवाना होने के बाद लगभग 40 घंटे की उड़ान के बाद अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा। कड़े पहरे में 104 भारतीयों को सी-17 अमेरिकी विमान में चढ़ते देखना जितना शर्मसार करने वाला था, उतना ही दर्दनाक और अमेरिकी निष्ठुरता को प्रतिबंधित करने वाला था। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब अवैध प्रवासी भारतीय वापस भेजे गए हों लेकिन इस बार कई ऐसी बातें हैं जो इसे अतीत की ऐसी घटनाओं से अलग करती हैं। अवैध प्रवासियों की उचित तरीकों से पहचान कर उन्हें उनके देशों में वापस भेजा जाना एक स्वाभाविक प्रािढया रहा है। भारत का इस मामले में शुरू से सहयोगात्मक रुख रहा है। पर सवाल वापसी के तरीकों का है। अमेरिकी विमान से बुधवार को लाए गए 104 निर्वासितों में शामिल जसपाल सिंह ने दावा किया कि पूरी यात्रा (लगभग 40 घंटे)। उन्हें निर्वासित प्रवासियों को हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां बांधी गईं तथा अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद ही उन्हें हटाया गया। अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के तहत डोनाल्ड ट्रंप सरकार द्वारा भेजा गया यह भारतीयों का पहला जत्था है। निर्वासित लोगों में 19 महिलाएं, 13 नाबालिग शामिल हैं, जिसमें एक चार वर्षीय लड़का, पांच व सात साल की दो लड़कियां शामिल हैं। इस 36-40 घंटे की उड़ान में अप्रवासियों को न तो कुछ खाने को दिया गया, न ही पानी की सुविधा। टॉयलेट जाने के लिए एक सैनिक साथ जाता था और टॉयलेट का दरवाजा खुला रखने का आदेश था। सवाल उठता है कि क्या यह अप्रवासी कोई आतंकवादी है या कोई अपराधी? इतना अमानवीय व्यवहार कैसे किया जा सकता है। हमसे तो छोटा सा देश कोलंबिया बेहतर रहा जहां मुश्किल से 5 करोड़ लोगों की आबादी है ने अमेरिकी सैन्य विमान जिसमें कोलंबिया के वे अप्रवासी वापस भेजे गए थे को अपने हवाई अड्डे पर उतरने की इजाजत नहीं थी। उन्होंने अपने दो विमान अमेरिका भेजे और अपने नागरिकों को पूरे सम्मान के साथ वापस लाया। हवाई अड्डे पर खुद कोलंबिया के राष्ट्रपति मौजूद थे अपने नागरिकों के स्वागत करने के लिए। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद अमेरिका की एजेंसियों ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ जो अभियान चलाया हुआ है, उसे कठोर कहने वाले भी हैं, लेकिन ट्रंप की यही शैली है। अलबत्ता भारत के नजरिए से यह जरूर एवं गंभीर मुद्दा है। अवैध रूप से विदेश जाने के लिए लोग अक्सर लाखों रुपए खर्च कर डंकी रूट या दूसरे खतरनाक रास्तों का उपयोग करते हैं, जो न केवल उनमें जीवन के लिए जोखिम भरा है, बल्कि मानव तस्करी जैसे अपराधों को भी बढ़ावा देता है। सवाल उन परिस्थितियों पर भी उठने चाहिए, जिनसे बचने के लिए देश के युवा इतना जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं। जो वापस आ रहे हैं, उनके सहारे उन माफियाओं तक तो पकड़ बनाई जा सकती है, जो लोगों को अवैध ढंग से दूसरे देशों में भेजने के काम में लिप्त हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि अवैध प्रदेश या घुसपैठ किसी देश को मान्य नहीं हो सकता। भारत खुद इनका सबसे बड़ा शिकार है। लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ-साथ हजारों रोहिंग्या यहां वर्षों से रह रहे हैं। भारत सरकार को और अवैध प्रवासियों को वापस लाने की प्रािढया तय करनी होगी और अमेरिका के अमानवीय व्यवहार पर आपत्ति दर्ज करानी चाहिए।

Thursday, 6 February 2025

अयोध्या में दलित युवती की नृशंस हत्या



उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में 22 वषीय दलित युवती का शव मिलने के बाद परिवार ने पुलिस पर निक्रियता का आरोप लगाया है और कहा है कि गुमशुदी की रिपोर्ट के बावजूद अधिकारियों ने सक्रीयता से उसकी तलाश नहीं की। पीड़िता गुरुवार रात से ही लापता थी, जब वह कथित तौर पर भागवत कथा में भाग लेने के लिए गई थी। जिसके बाद उसके परिवार ने उसकी तलाश शुरू की। पुलिस के अनुसार शनिवार की सुबह उसके जीजा को उसका शव उनके गांव से सिर्फ 500 मीटर दूर एक छोटी नहर में पड़ा हुआ मिला। परिवार के सदस्यों ने दावा किया है कि युवती के हाथ और पैर रस्सियों से बंधे हुए थे उसके शरीर पर गहरे घाव थे और उसका एक पैर फ्रैक्चर हो गया था। युवती की आंखें फोड़ दी गई थी उसकी हड्डियां तोड़ दी गई थी। परिवार ने दुष्कर्म और हत्या का आरोप लगाया। पुलिस ने कहा है कि पीड़िता के गांव से दो लोगों को हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ जारी है। उधर, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक पोस्ट में कहा, अगर प्रशासन ने 3 दिन से गूंज रही लड़की के परिवार की मदद की गुहार पर ध्यान दिया होता तो शायद उसकी जान बच सकती थी। प्रियंका गांधी ने भाजपा पर निशाना साधा और दोषियों व कथित निष्क्रय पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। वहीं बसपा सुप्रीमों मायावती ने कहा-यह बहुत गंभीर मामला है। सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि ऐसी घटना दोबारा न हो। फैजाबाद के सपा सांसद अवधेश प्रसाद पीड़ित परिवार से मिलने के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में रो पड़े। उन्होंने कहा मैं उसे बचाने में विफल रहा। मुझे दिल्ली, लोकसभा जाने दीजिए। मैं इन मामले को पीएम मोदी के समक्ष उठाऊंगा। अगर हमें न्याय नहीं मिला तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। वही सीएम योगी आदित्यनाथ ने रविवार को अयोध्या के मिल्कीपुर में सपा रैली में यह मुद्दा उठाया जहां 5 फरवरी को उपचुनाव है। योगी ने कहा कि अयोध्या में एक बेटी के साथ घटना हुई। उनके (सपा) सांसद इस मुद्दे पर नाटक कर रहे है। योगी ने कहा कि कानून अपना काम करेगा, लेकिन मेरी बात पर गौर करे, जब जांच आगे बढ़ेगी तो सपा के किसी अपराधी की संलिप्तता जरूर सामने आएगी। यह दुख की बात है कि ऐसी भीभत्स घटना पर भी राजनीति हो रही है। यूपी सरकार प्रशासन को चाहिए कि इस मामले की तुरंत जांच कराए और दोषी को सख्त से सख्त सजा दिलवाएं ताकि दूसरे ऐसी अनुवृत्ति रखने वालों को भी सबक मिले। हम उस युवती को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं और उनके परिवार को भगवान धैर्य दें इतनी बड़ी त्रासदी सहने के लिए।

-अनिल नरेन्द्र

जाने नागा साधुओं से जुड़े रहस्य



महाकुंभ 2025 को भव्य आगाज हुए कई दिन बीत गए हैं। इस मेले का सभी श्रद्धालुओं और संन्यासियों को बेसब्री से इंतजार था। महाकुंभ में एक विशेष आकर्षण नागा साधुओं का रहा है। 12 सालों में लगने वाला महाकुंभ हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। देश-विदेश से करोड़ों लोग महाकुंभ में शामिल होने आते हैं। इस महाकुंभ की भव्य शुरुआत प्रयागराज से पौष पूर्णिमा से हुई वहीं इसका समापन महाशिव रात्रि के दिन यानी 26 फरवरी 2025 को होगा। इस दौरान करोड़ों भक्तों ने गंगा में डुबकी लगाई और यह सिलसिला अभी जारी है। हालांकि महाकुंभ में सभी साधु-संत और आमजन शामिल होते हैं, लेकिन नागा साधु हमेशा से ही कुंभ मेले में आकर्षण का केंद्र बने रहे है। महाकुंभ में किए जाने वाले अमृत स्नान यानी शाही स्नान में सबसे पहले स्नान या अधिकार नागा साधुओं को दिया गया है ओर इनके स्नान करने के बाद ही अन्य संत स्नान करते है। आमतौर पर साधु-संत लाल या पीला, केसरिया रंग के कपड़ों में नजर आते हैं, लेकिन नागा साधु कभी कपड़े नहीं पहनते है। नागा साधु कंपकपाती ठंड में हमेशा नग्न ही रहते हैं। नागा साधु अपने शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर रहते हैं। नागा का अर्थ होता है नग्न नागा साधू का आजीवन नग्न ही रहते हैं और वे खुद को भगवान का दूत मानते हैं। नागा साधु वो होते हैं जो सांसारिक जीवन त्यागकर भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते है। नागा साधु पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और सांसारिक सुखों से दूर रहते हैं। वे शिवजी की भक्ति में ही लीन रहते हैं। नागा साधुओं का मानना है कि व्यक्ति निर्वस्त्र दुनिया में आता है और यह अवस्था प्राकृतिक हैं, इसलिए नागा साधु जीवन में कभी भी कपड़े नहां पहनते और निर्वस्त्र रहते हैं। बता दें कि किसी व्यक्ति को नागा साधु बनने में 12 साल का समय लगता है। नागा पंथ में शामिल होने के लिए नागा साधु के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी होना बेहद आवश्यक माना जाता है। कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है जिसके बाद वे हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं। नागा साधु दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते है और वे भोजन भी भिक्षा मांगकर करते हैं। नागा साधु को दिन में 7 घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत है। अगर उन्हें किसी दिन 7 घरों से भिक्षा हीं मिलती है तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है। नागा साधु ठंड से बचने के लिए तीन प्रकार के योग करते हैं, साथ ही नागा साधु अपने विचारों और खानपान पर भी संयम रखते हैं। कठोर तपस्या, सात्विक आहार, नाड़ी शोधन और अग्नि साधना के कारण नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती हैं। नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या घर भी नहीं होता है। ये कहीं भी कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। सोने के लिए भी नागा साधु किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते है, बल्कि हमेशा जमीन पर सोते हैं। नागा साधु तीर्थ यात्रियों द्वारा दिए जाने वाले भोजन ही ग्रहण करते हैं। इनके लिए दैनिक भोजन का कोई महत्व नहीं होता है और न ही अन्य किसी सांसारिक चीज का महत्व होता है। नागा साधु केवल सात्विक और शाकाहारी भोजन ही खाते हैं। भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहते हुए नागा साधु 17 श्रृंगार करने में विश्वास रखते हैं, जिनमें भभूत, रुद्राक्ष माला, चंदन, डमरु, चिमटा और पैरों में कड़े आदि शामिल हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागा साधु के 17 श्रृंगार शिव भक्ति के प्रतीक है। कुंभ में ज्यादातर नागा दो विशेष अखाड़ों से आते हैं। एक अखाड़ा है वाराणसी का महापरिनिर्वाण अखाड़ा और दूसरा है पंच दशनाम जूना अखाड़ा। इन दोनों अखाड़ों के नागा साधु कुंभ का हिस्सा बनते हैं और कुंभ की समाप्ति पर अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते है। बहुत से साधु हिमालय के जंगलों और अन्य एकांत में तपस्या करने चले जाते हैं।

Tuesday, 4 February 2025

विवादों में ममता कुलकर्णी और किन्नर अखाड़ा


ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाकर सुर्खियों में आया किन्नर अखाड़ा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। खुद को किन्नर अखाड़े का संस्थापक बताने वाले ऋषि अजयदास ने बड़ा दावा करते हुए कहा, मैंने अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और ममता कुलकर्णी को पद से हटा दिया है। उनका कहना है कि फिल्मी ग्लैमर से जुड़ी ममता कुलकर्णी को बिना किसी धार्मिक और अखाड़े की परम्परा को मानते हुए वैराग्य दिशा के बगैर सीधे महाभिषेक कर महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई। ऋषि अजयदास ने पक्ष जारी करते हुए कहा कि किन्नर अखाड़े का संस्थापक होने के नाते जानकारी देता हूं कि किन्नर अखाड़े के 2025-26 उज्जैन कुंभ में मेरे द्वारा नियुक्त आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को मैं उनके पद से मुक्त करता हूं। उन्होंने वजह बताई कि जिस धर्म के प्रचार-प्रसार व धार्मिक कर्मकांड के साथ किन्नर समाज को उत्थान आदि की आवश्यकता से उनकी नियुक्ति की गई थी, उस पर से सर्वथा मुकर गए हैं। उन्होंने बिना अनुमति के जूना अखाड़ा के साथ लिखित 2019 के प्रयागराज कुंभ में किया जो अनैतिक ही नहीं 420 है। कहा कि बिना संस्थापक की सहमति एवं हस्ताक्षर के जूना अखाड़ा एक किन्नर अखाड़ा के बीच का अनुबंध विधि अनुकूल नहीं है। अनुबंध में जूना अखाड़े ने किन्नर अखाड़ा को संबोधित किया है। इसका अर्थ है कि किन्नर अखाड़ा 14वां अखाड़ा हैं उन्होंने यह स्वीकार किया है तो इसका अर्थ है कि सनातन धर्म में 13 नहीं अपितु 14 अखाड़े मान्य हैं। यह बात अनुबंध से स्वयं सिद्ध होती है। उन्होंने कहा कि आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने असंवैधानिक ही नहीं अपितु सनातन धर्म व देश हित को छोड़कर ममता कुलकर्णी जैसी महिला जो फिल्मी ग्लैमर से जुड़ी हैं, उन्हें बगैर किसी धार्मिक और अखाड़े की परम्परा को मानते हुए वैराग्य की दिशा की बजाए सीधे उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दे दी। उधर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि अजयदास किस हैसियत से कार्रवाई करेंगे। वह तो किसी पद पर है ही नहीं। उन्हें तो 2017 में ही अखाड़े से निकाला जा चुका है। मीडिया को दिए बयान में उन्होंने कहा है, मेरा पद किसी एक व्यक्ति की नियुक्ति या सहमति पर आधारित नहीं था। 2015-16 उज्जैन में 22 प्रदेशों से किन्नरों को बुलाकार अखाड़ा बनाया गया था। मुझे महामंडलेश्वर चुना गया और उस वक्त ऋषि अजयदास हमारे साथ थे। उन्होंने 2017 को मुंबई की यात्रा की। उनके कर्मों की वजह से उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जिन्होंने ममता कुलकर्णी को प्रयागराज महाकुंभ के दौरान महामंडलेश्वर बनाया था जिस पर सारा विवाद खड़ा हो गया है उन्होंने आगे कहा कि जो भी मेरे बोर्ड और मेरे खेमे में होगा वही मुझे निकाल सकता है। त्रिपाठी ने कहा कि ममता कुलकर्णी महामंडलेश्वर बनी रहेंगी। उनके खिलाफ अब कोई आरोप नहीं है और सारे मामले रद्द किए जा चुके हैं। हमारी टीम अजयदास के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए पहल करेगी। उन्होंने आगे आरोप लगाते हुए कहा कि जिस व्यक्ति (ऋषि अजयदास) को हमने 2017 में मुक्त कर दिया और वह  गृहस्थ जीवन जीने लगे और 2016 से उज्जैन कुंभ में किन्नर अखाड़े का सारा पैसा गबन करने का उन पर आरोप लगाया जा रहा है वह कैसे मुझे बर्खास्त कर सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

 

मतदान की वीडियो क्लिप सुरक्षित रखने का आदेश


उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को निर्देश दिया कि वह प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1,200 से बढ़ाकर 1,500 करने के उसके निर्णय के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई लंबित रहने तक मतदान की वीडियो क्लिप सुरक्षित रखें। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने यह आदेश उस समय पारित किया जब निर्वाचन आयोग की ओर से पेश हुए वकील नरेन्द्र प्रकाश सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए और समय देने का अनुरोध किया था। सिंह ने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के प्रति मतदान केंद्र में मतदाताओं की संख्या बढ़ाने संबंधी अगस्त 2024 के आयोग के परिपत्र को चुनौती दी है। पीठ ने कहा, प्रतिवादी संख्या एक की ओर से उपस्थित वकील हल्फनामा दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय का अनुरोध कर रहे हैं। हल्फनामा आज से तीन सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए। हम प्रतिवादी संख्या एक को सीसीटीवी रिकार्डिंग को बनाए रखने का निर्देश देना उचित नहीं समझते हैं, जैसा कि वे पहले कर रहे थे। शीर्ष अदालत ने 15 जनवरी को कांग्रेsस महासचिव जयराम रमेश की याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा था, जिसमें 1961 के चुनाव नियमों में सीसीटीवी तक सार्वजनिक पहुंच पर रोक सहित हाल के संशोधनों के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने 24 अक्टूबर को निर्वाचन आयोग को कोई नोटिस जारी करने से इंकार कर दिया था लेकिन याचिकाकर्ता को इसका प्रति निर्वाचन आयोग के स्थायी वकील को देने की अनुमति दी थी ताकि इस मुद्दे पर उसका रुख पता चले। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि निर्वाचन आयोग के फैसले से महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं पर सीधा असर पड़ेगा।

Saturday, 1 February 2025

महाकुंभ में भारी त्रासदी का जिम्मेदार कौन?



महाकुंभ में मची भगदड़ ने एक बार फिर पुराने जख्मों को कुरेद दिया है। आजादी के बाद से लेकर प्रयागराज के महाकुंभ मेलों में कई बार भगदड़ मची है। सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है, लेकिन इन सभी हादसों से कोई सबक नहीं लिया गया। बार-बार प्रशासन की व्यवस्था पर प्रश्न उठता रहा है पर हर बार लीपापोती करके अगले हादसे का इंतजार होता है। इस बार प्रशासन ने मौनी अमावस्या के मौके पर एक नहीं दो स्थानों पर भगदड़ मची। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि 30 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हैं। इसके अलावा अब तक दो बार महाकुंभ में आग भी लग चुकी है। मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है। सरकार-प्रशासन तथ्य छिपाने की कोशिश कर रहा है। पर सोशल मीडिया में कई चैनलों के रिपोर्टरों ने सच्चाई सामने ला दी है। दुर्घटना के कई कारण सामने आए हैं। महाकुंभ की सुरक्षा संभाल रहे जिम्मेदार लोगों को पता था कि मौनी अमावस्या पर बड़ी संख्या में लोग स्नान के लिए आएंगे तो इसकी व्यवस्था उसी के अनुरूप क्यों नहीं की गई? समूचा मीडिया मेला प्रबंधन का प्रशस्ति गान कर रहा था। श्रद्धालुओं की वाइट चलाई जा रही थी और बताया जा रहा था कि कुंभ में कितनी बढ़िया व्यवस्था है। अब सवाल उठता है कि जब मेला प्रबंधन को यह पूर्वानुमान था कि 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज पहुंचेंगे तो क्या उन्होंने अपनी हर आशंका का निर्णय कर लिया था। भगदड़ के जो कारण सामने आए हैं। एक कारण था कि संगम किनारे शुभ मुहूर्त प्रारंभ होने के साथ ही डूबकी लगाने का पुण्य लेने के आशय से बड़ी संख्या में जाकर वहां सो गए थे। जब अनियंत्रित भीड़ का रैला बैरीकेड तोड़ता हुआ पहले डूबकी लगाने की मंशा से आगे बढ़ा तो पहले से वहां विश्राम कर रहे श्रद्धालु उनके पैरों तले आकर कुचल गए। कोई संदेह नहीं कि घायलों को तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई फिर भी सवाल उठता है कि अधिक नियंत्रित भीड़ संगम स्थल पर तमाम व्यवस्थाओं के रहते पहुंची कैसे? और बैरिकेड तोड़ सकी। जब इतनी भीड़ संगम स्थल पर बढ़ रही थी तो पुलिस प्रशासन ने उन्हें दूर क्यों नही रोका? घटना के कुछ समय बाद कुंभ यथावत चलने लगा हो, लेकिन श्रद्धालुओं की मौत का दाग इस कुंभ पर लग ही गया है। कांग्रेस समेत अन्य दलों ने इस भगदड़ को लेकर राज्य की योगी सरकार पर निशाना साधा है और कहा है कि इस घटना के लिए कुप्रबंधन और आधी-अधूरी व्यवस्था जिम्मेदार है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोशल मीfिडया एक्स पर पोस्ट में कहा-श्रद्धालुओं के परिजनों के प्रति हमारी गहरी संवेदनाएं और घायलों की शीघ्र अतिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ की हम कामना करते हैं। खरगे ने दावा किया कि आधी-अधूरी व्यवस्था, प्रबंधन से ज्यादा स्व-प्रचार पर ध्यान देना और बदइंतजामी इसके लिए कौन जिम्मेदार है? लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि इस दुखद घटना के लिए वीआईपी मूवमेंट पर प्रशासन का विशेष ध्यान होने को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा, अभी कुंभ का काफी समय बचा हुआ है, कई और महास्नान होने हैं। ऐसी दुखद घटना आगे न हो, इसके लिए सरकार को व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। वीआईपी संस्कृति पर लगाम लगानी चाहिए और सरकार को आम श्रद्धालुओं की जरूरत की पूर्ति के लिए बेहतर इंतजाम करने चाहिए। वहीं आम आदमी पार्टी (आप) ने महाकुंभ में भगदड़ जैसी स्थिति के लिए प्रशासनिक कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया तथा वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने तथा भीड़ प्रबंधन के कड़े इंतजाम करने की मांग की। आप के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान धार्मिक आयोजन के दृश्यों को डरावना बताया। शिव सेना (यूबीटी) के नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने योगी सरकार पर हमला बोला और कहा कि वीआईपी पहुंचते हैं तो पूरे घाट को बंद कर दिया जाता है। मीलों मील एक तरफ का कर्फ्यू लगा दिया जाता है। रक्षा मंत्री और गृहमंत्री गए थे तो पूरे घाट को बंद कर दिया गया। इससे व्यवस्था के ऊपर दबाव बढ़ा। इसके कारण भी भगदड़ मची। एक अन्य कारण रहा कि श्रद्धालुओं में अखाड़ों को खासकर नागा साधुओं और अघोरी साधुओं को देखने के लिए धक्का-मुक्की हुई। सभी अखाड़ों का अमृत स्नान देखने के लिए संगम पहुंचना चाह रहे थे। ऐसे में भीड़ जुटती गई और हादसे का एक बड़ा कारण यह बनी। संगम क्षेत्र पर एंट्री-एग्जिट के रास्ते अलग-अलग नहीं थे। लोग जिस रास्ते से आ रहे थे उसी से वापस जा रहे थे। बैरिकेट से भगदड़ मची तो निकलने का मौका ही नहीं मिला। प्रशासन ने अखाड़ों के अमृत स्नान के लिए ज्यादातर पीपा पुल बंद कर दिए। इससे बाहर जाने वाले श्रद्धालु स्नान के बाद कुछ निकल नहीं पाए। इससे भी भगदड़ मची। मामले की जांच हो रही है और हादसे से सबक सीखते हुए कुछ नियमों में भी परिवर्तन किया गया है। नई-नई पाबंदियां भी लगाई गई है। हम मृत परिवारों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उम्मीद करते हैं कि प्रबंधन में जरूरी बदलाव किए जाएं ताकि आने वाले स्नानों में कोई अप्रिय घटना न हो।

-अनिल नरेन्द्र