Tuesday, 11 February 2025

केजरीवाल को दिल्ली वालों ने दिल से क्यों निकाला


दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में न केवल आम आदमी पार्टी (आप) को करारी हार मिली बल्कि खुद अरविन्द केजरीवाल भी नई दिल्ली विधानसभा सीट नहीं बचा पाए। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा से चुनाव हार गए। केजरीवाल ने पिछले साल सितम्बर महीने में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। शायद उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि यह इस्तीफा कितना महंगा पड़ेगा। जब केजरीवाल पिछले साल 21 मार्च को जेल गए थे तभी विपक्षी पार्टियां उनके इस्तीफे की मांग कर रही थी और तंज कस रही थी कि दिल्ली की सरकार तिहाड़ जेल से चल रही है। अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की आबकारी नीति (जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था) में कथित अनियमितता मामले में छह महीने जेल में रहे थे। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए केजरीवाल ने कहा था, मैंने जनता की अदालत में जाने का फैसला किया है। जनता ही बताएगी कि मैं ईमानदार हूं या नहीं। अब दिल्ली की जनता ने अपना फैसला सुना दिया है। यह फैसला किसी के बेईमान और ईमानदार होने से ज्यादा यह है कि दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री केजरीवाल नहीं बल्कि कोई भाजपा से होगा। केजरीवाल ने राजनीति में दस्तक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के जरिए दी थी। वे अपनी पार्टी और खुद के कट्टर ईमानदार होने का दावा करते रहे हैं। ऐसे में जब भ्रष्टाचार के मामले में वह जेल गए तो यह उनकी छवि के बिल्कुल उलट था। राजनीति में जिस छवि के साथ केजरीवाल 12 साल पहले आए थे, वो कमजोर पड़ी है। भाजपा ने केजरीवाल की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को रणनीति के तहत कमजोर कर दिया। आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से पहले केजरीवाल दावा करते थे कि वह सरकारी बंगला नहीं लेंगे और अपनी छोटी कार वैगनार पर ही चलेंगे इत्यादि-इत्यादि पर उन्होंने किया बिल्कुल उल्टा। घर बनाया तो शीशमहल बना दिया। कारों का लंबा काफिला उनके साथ चलता था। उनका अहंकार आसमान छूने लगा था। उन्होंने पार्टी के संस्थापकों सहित सभी दिग्गज नेताओं को लात मार कर बाहर निकाल दिया। वह न तो किसी अन्य नेता की बात सुनते थे न ही ईमानदार अफसरों की। केजरीवाल की हार की सबसे बड़ी वजह यह है कि दिल्ली के लोगों के मन में यह शंका घर कर गई थी कि आम आदमी पार्टी ने जो वादा किया है उसे डिलीवर करना मुश्किल है। केजरीवाल अक्सर यह दावा करते थे कि उपराज्यपाल हमें काम नहीं करने देते। तो जनता ने फैसला किया कि क्यों न भाजपा को लाया जाए ताकि सरकार और उपराज्यपाल में बेहतर समन्वय हो और दिल्ली का विकास हो। केजरीवाल की हार का एक बड़ा कारण था कांग्रेस से गठबंधन तोड़ना। शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने केजरीवाल को जितना एक्सपोज किया और नुकसान पहुंचाया उतना शायद स्वाती मालीवाल, कुमार विश्वास ने भी नहीं किया। केजरीवाल को इतना अहंकार हो गया था कि उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर सोचा कि मैं अकेले ही मोदी का मुकाबला कर लूंगा। उनकी जमानत की शर्तों में एक शर्त यह भी थी कि वह मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते। इससे भी जनता में असर पड़ा कि अगर उन्हें चुन भी लिया तो मुख्यमंत्री की ड्यूटी तो यह कर नहीं पाएंगे। केजरीवाल ने कहा था कि वह आम आदमी हैं और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी आम आदमी की तरह रहेंगे। लेकिन यह झूठ साबित हुआ। केजरीवाल की पार्टी का कोई लोकतंत्र नहीं है और वह हिटलरी अंदाज में काम करते हैं। अब जब वह हार गए हैं तो सारी बातें खुलने लगेंगी। उनके हार के कई विश्लेषण होंगे। मोटे तौर पर अब उन्हें सोचने, समझने और सुधार करने का पर्याप्त समय दिल्लीवासियों ने दे दिया है। राजनीति में कोई खत्म नहीं होता। केजरीवाल को भी राइट ऑफ नहीं किया जा सकता।

No comments:

Post a Comment