Thursday, 6 February 2025

जाने नागा साधुओं से जुड़े रहस्य



महाकुंभ 2025 को भव्य आगाज हुए कई दिन बीत गए हैं। इस मेले का सभी श्रद्धालुओं और संन्यासियों को बेसब्री से इंतजार था। महाकुंभ में एक विशेष आकर्षण नागा साधुओं का रहा है। 12 सालों में लगने वाला महाकुंभ हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। देश-विदेश से करोड़ों लोग महाकुंभ में शामिल होने आते हैं। इस महाकुंभ की भव्य शुरुआत प्रयागराज से पौष पूर्णिमा से हुई वहीं इसका समापन महाशिव रात्रि के दिन यानी 26 फरवरी 2025 को होगा। इस दौरान करोड़ों भक्तों ने गंगा में डुबकी लगाई और यह सिलसिला अभी जारी है। हालांकि महाकुंभ में सभी साधु-संत और आमजन शामिल होते हैं, लेकिन नागा साधु हमेशा से ही कुंभ मेले में आकर्षण का केंद्र बने रहे है। महाकुंभ में किए जाने वाले अमृत स्नान यानी शाही स्नान में सबसे पहले स्नान या अधिकार नागा साधुओं को दिया गया है ओर इनके स्नान करने के बाद ही अन्य संत स्नान करते है। आमतौर पर साधु-संत लाल या पीला, केसरिया रंग के कपड़ों में नजर आते हैं, लेकिन नागा साधु कभी कपड़े नहीं पहनते है। नागा साधु कंपकपाती ठंड में हमेशा नग्न ही रहते हैं। नागा साधु अपने शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर रहते हैं। नागा का अर्थ होता है नग्न नागा साधू का आजीवन नग्न ही रहते हैं और वे खुद को भगवान का दूत मानते हैं। नागा साधु वो होते हैं जो सांसारिक जीवन त्यागकर भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते है। नागा साधु पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और सांसारिक सुखों से दूर रहते हैं। वे शिवजी की भक्ति में ही लीन रहते हैं। नागा साधुओं का मानना है कि व्यक्ति निर्वस्त्र दुनिया में आता है और यह अवस्था प्राकृतिक हैं, इसलिए नागा साधु जीवन में कभी भी कपड़े नहां पहनते और निर्वस्त्र रहते हैं। बता दें कि किसी व्यक्ति को नागा साधु बनने में 12 साल का समय लगता है। नागा पंथ में शामिल होने के लिए नागा साधु के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी होना बेहद आवश्यक माना जाता है। कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है जिसके बाद वे हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं। नागा साधु दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते है और वे भोजन भी भिक्षा मांगकर करते हैं। नागा साधु को दिन में 7 घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत है। अगर उन्हें किसी दिन 7 घरों से भिक्षा हीं मिलती है तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है। नागा साधु ठंड से बचने के लिए तीन प्रकार के योग करते हैं, साथ ही नागा साधु अपने विचारों और खानपान पर भी संयम रखते हैं। कठोर तपस्या, सात्विक आहार, नाड़ी शोधन और अग्नि साधना के कारण नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती हैं। नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या घर भी नहीं होता है। ये कहीं भी कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। सोने के लिए भी नागा साधु किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते है, बल्कि हमेशा जमीन पर सोते हैं। नागा साधु तीर्थ यात्रियों द्वारा दिए जाने वाले भोजन ही ग्रहण करते हैं। इनके लिए दैनिक भोजन का कोई महत्व नहीं होता है और न ही अन्य किसी सांसारिक चीज का महत्व होता है। नागा साधु केवल सात्विक और शाकाहारी भोजन ही खाते हैं। भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहते हुए नागा साधु 17 श्रृंगार करने में विश्वास रखते हैं, जिनमें भभूत, रुद्राक्ष माला, चंदन, डमरु, चिमटा और पैरों में कड़े आदि शामिल हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागा साधु के 17 श्रृंगार शिव भक्ति के प्रतीक है। कुंभ में ज्यादातर नागा दो विशेष अखाड़ों से आते हैं। एक अखाड़ा है वाराणसी का महापरिनिर्वाण अखाड़ा और दूसरा है पंच दशनाम जूना अखाड़ा। इन दोनों अखाड़ों के नागा साधु कुंभ का हिस्सा बनते हैं और कुंभ की समाप्ति पर अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते है। बहुत से साधु हिमालय के जंगलों और अन्य एकांत में तपस्या करने चले जाते हैं।

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