Saturday, 15 February 2025

दिल्ली चुनाव और बिहार की राजनीति



दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस को परजीवी पार्टी कहा। उन्होंने कहा, बिहार में कांग्रेस जातिवाद का जहर फैलाकर अपनी सहयोगी आरजेडी की पेटेंट जमीन को खाने में लगी है। चूंकि इस साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए पीएम मोदी के भाषण का यह अंश चर्चा में है। विश्लेषकों के अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का बिहार में होने वाले चुनावों पर भी असर पड़ेगा। उनका मानना है कि दिल्ली की तरह बिहार में भी कांग्रेस अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश कर रही है, इसलिए वह बिहार चुनाव अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ेगी। अगर वो ऐसा कर जाती है तो संभव है कि वह बारगेनिंग पावर बढ़ा सके। वैसे भी बिहार में कार्यकर्ताओं की पूरी डिमांड है कि पार्टी अकेले चुनाव लड़े ताकि पार्टी को दूरगामी राजनीति में फायदा हो। दिल्ली चुनाव में नतीजों ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टियों की स्थिति को लेकर कयास तेज कर दिए हैं। जानकारों की मानें तो दोनों ही गठबंधन यानि एनडीए और इंडिया गठबंधन की पार्टियों में सीट शेयरिंग को लेकर नए समीकरण बनेंगे। भाजपा प्रवक्ता आसित नाथ तिवारी कहते हैं, एनडीए ने 225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और हम लोग अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चट्टानी एकता के साथ लड़ेंगे। वही जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा भी कहती हैं जिस निर्णय से एनडीए के पक्ष में निर्णय आएंगे वही फैसला लिया जाएगा। हालांकि सूत्रों की मानें तो जेडीयू 100, भाजपा 100, राजद 150 तो कांग्रेस 70 सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी ‘हम’ के लिए 20 सीटों की डिमांड पहले ही कर चुकी है। वहीं मुकेश साहनी की वीआईपी 40 सीटों पर दावेदारी कर रही है। जनसुराज ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की बात कही है। दिल्ली चुनाव नतीजों के बाद सबसे ज्यादा पेंच कांग्रेस को मिलने वाली सीट पर हो सकता है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीट में से सिर्फ 19 सीट जीत पाई थी। हालांकि लोकसभा में पार्टी ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 9 में से तीन सीट जीती। वरिष्ठ विश्लेषक का मानना है कि कांग्रेस बिहार में बारगेनिंग पोजीशिन में नहीं है, न तो उसके पास उम्मीदवार है न संगठन। राहुल गांधी इस साल दो बार पटना आ चुके हैं। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव जातिगत सर्वे लेते रहे हैं। यहां ये दिलचस्प है कि ये दोनों ही कार्यक्रम कांग्रेस के नहीं थे। एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि इन कार्यक्रमों में शामिल होकर वो पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को लक्ष्य करके अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर आप देखिए तो मोटे तौर पर ये राजद का कोर वोट है। वहीं राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, दिल्ली और बिहार में कुछ फर्क है। केजरीवाल और कांग्रेस के संबंध तल्ख हैं, लेकिन बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है। बिहार में प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज की तुलना भी आम आदमी पार्टी से की जाती है, वजह यह कि दोनों ही वैकल्पिक और साफ-सुथरी राजनीति की बात करते हैं। वहीं एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, पीके केजरीवाल ही साबित होंगे। ये दोनों ही नई राजनीति की बात करते हैं और करते कुछ और हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले। वह किस तरफ जाएंगे इस पर सवाल खड़े हैं। दूसरी ओर भाजपा अपनी पूरी ताकत से बिहार चुनाव लड़ेगी और चाहेगी कि इस बार बिहार का मुख्यमंत्री भाजपा का ही हो। अभी समय है, बिहार विधानसभा चुनाव साल के अंत तक होना है तब तक कई समीकरण बदलेंगे, परिस्थितियां बदलेंगी।

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