Tuesday 4 April 2023

धर्म का राजनीति में इस्तेमाल बंद हो

हेट स्पीच का मामला पिछले कईं दिनों से चर्चा में है। अंतत: माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस क्षण धर्म और राजनीति को अलग कर दिया जाएगा और राजनेता सियासत में धर्म का इस्तेमाल करना बंद कर देंगे, उसी क्षण नफरती भाषण बंद हो जाएंगे। यह टिप्पणी आज के परिपृश्य में बहुत महत्वपूर्ण है, आंखें खोलने वाली है कि जब राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे और नेता धर्म के जरिये राजनीति में ऊंचे मुकाम हासिल करने का सपना छोड़ देंगे तभी हेट स्पीच को खत्म किया जा सकता है। हर पक्ष के खुराफाती तत्वों की तरफ से ही ऐसे भाषण दिए जा रहे हैं। लोगों को भी खुद को संयमित रखना चाहिए। जस्टिस केएम जोसेफ व जस्टिस बीबी नागरत्ना की पीठ ने नफरती भाषणों पर गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा कि आखिर अदालतें कितने लोगों के खिलाफ अवमानना के मामले शुरू कर सकती है? देश के लोग ही दूसरे लोगों या समुदायों के खिलाफ गलत नहीं बोलने का संकल्प क्यों नहीं ले सकते? पीठ ने कहा—प्रात्येक दिन खुराफाती (प््िरांज) तत्व टीवी और सार्वजनिक मंचों समेत अन्य जगहों पर लोगों के प्राति नफरत पैलाने वाले भाषण दे रहे हैं। इसमें हर तरफ के लोग हैं। बयानबाजी के बाद अदालत पहुंचते हैं और एक-दूसरे के खिलाफ अवमानना की कार्रवाईं की मांग करते हैं। शीर्ष अदालत शाहीन अब्दुल्ला की याचिका पर सुनवाईं कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र में पिछले चार महीने में 50 से ज्यादा नफरती भाषण देने के मामले सामने आए हैं। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को जवाब देने के लिए नोटिस जारी करने के साथ ही मामले की सुनवाईं 28 अप्रौल तक स्थगित कर दी। हेट स्पीच को दुष्चव््रा बताते हुए कोर्ट ने कहा कि इससे फायदा उठाने के प्रायास में छोटी मानसिकता के लोग ऐसे-ऐसे भाषण देते हैं जिनसे हालात में तनाव के सिवाय वुछ हासिल नहीं होता। कोर्ट की टिप्पणियां नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने को लेकर राज्यों के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाईं के दौरान सामने आईं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा—हम कहां जा रहे हैं? हमारे पास पूर्व प्राधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वक्ता हुआ करते थे। लोग दूरदराज के इलाकों, नुक्कड़ चौराहों और ग्रामीण क्षेत्रों से उन्हें सुनने के लिए आते थे। अब जिनके पास कोईं जानकारी नहीं है, वह इस तरह के नफरती भाषण दे रहे हैं। यह काम पूरी तरह से सरकारों का है कि ऐसी घटनाओं पर नजर रखें और आवश्यक कार्रवाईं करें। इसी कर्तव्य का निर्वाहन करते हुए बैंच ने पूछा कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद क्या कार्रवाईं की गईं? पिछले साल अक्तूबर में सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा था कि संविधान भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखता है और दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड सरकारों को प्रातीक्षा किए बगैर दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज करने चाहिए।

No comments:

Post a Comment