Tuesday, 7 January 2025
नीतीश कुमार पर फिर अटकलें
कहा जाता है कि राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है न कोई स्थायी दुश्मन, स्थायी होता है तो राजनीतिक स्वार्थ। यह भी कहा जाता है कि राजीति में कुछ भी बेवजह नहीं होता। संभव है कि वजह बाद में पता चले। बिहार में नीतीश कुमार कुछ भी खेला करने वाले होते हैं तो उसके संकेत पहले से ही मिलने लगते हैं। कई बार लगता है कि ये तो सामान्य बात है लेकिन कुछ समय बाद ही असामान्य हो जाती है। नीतीश कुमार की एक तस्वीर पर खूब चर्चा हो रही है। इस तस्वीर में नीतीश कुमार ने हंसते हुए तेजस्वी यादव के कंधे पर हाथ रखा है और तेजस्वी हाथ जोड़कर थोड़ा झुककर कर हंस रहे हैं। हालांकि यह एक सरकारी कार्यक्रम की तस्वीर है जहां पक्ष और विपक्ष का आना एक औपचारिक रस्म होती है। दरअसल आरिफ मोहम्मद खान राज्यपाल की शपथ ले रहे थे और इसी कार्यक्रम में नीतीश कुमार भी मौजूद थे और प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव तीनो नेताओं की यह तस्वीर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के उस बयान के बाद आई है। जिसमें उन्होंने एक चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे खुले हुए हैं। बिहार में इसी साल में विधानसभा चुनाव होने हैं और राज्य के सियासी गलियारों में पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। इन अटकलों को नीतीश कुमार की चुप्पी ने भी हवा दी है। दरअसल बिहार की राजनीति के धुरंधर नेताओं की पुरानी केमेस्ट्री ने एक बार फिर राजनीतिक सुगबुगाहट पैदा कर दी है। जहां राष्ट्रीय जनता दल और इंडिया गठबंधन के नेता लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार को फिर से साथ आने का निमंत्रण दे दिया, वहीं नीतीश ने भी सीधा खंडन करने के बजाए इसे हंसकर टाल दिया है। इसके बाद कयासबाजी का यह दौर शुरू हुआ, जिसने राजनीति के सभी धड़ों के कान खड़े कर दिए। समकालीन राजनीति में नीतीश कुमार महज उनमें से एक नेता हैं जो पिछले एक दशक में चार बार पाला बदलकर बिहार की सत्ता में बने हुए हैं। यही नहीं वह आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। लालू के इस बयान के बाद बिहार में कांग्रेस नेता शकील अहमद ने भी कहा, गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करने वाले लोग गोडसेवासियों से अलग हो जाएंगे, सब साथ हैं। नीतीश कुमार तो गांधी जे के सात उपदेश अपने टेबल पर रखते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश राजनीतिक तौर पर मजबूत हैं। इसलिए उनकी चर्चा होती रहती है। अगर भाजपा ने नीतीश की पार्टी तोड़ी तो भी उनका वोट नहीं ले पाएंगे। नीतीश के भरोसे ही केंद्र सरकार चल रही है यह बात भाजपा को भी मालूम है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि नीतीश अगर पलटी मारते हैं तो उनकी जदयू को भाजपा वाले तोड़ देंगे और उनके बड़ी संख्या में सांसद और विधायक नीतीश का साथ छोड़ देंगे। बिहार के उपमुख्यमंत्री भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि बिहार में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई जाए। हालांकि जल्द ही उन्होंने इस बयान से किनारा कर दिया, लेकिन तब तक नुकसान भी हो चुका था। यह परसेटशन पहले से ही बना हुआ है कि भाजपा बिहार की राजनीति में जद यू और नीतीश की अनिवार्यता जल्द से जल्द समाप्त करना चाहती है। नीतीश की बेचैनी तब से और बढ़ गई जब एक चैनल में गृहमंत्री अमित शाह ने इस सवाल कि बिहार में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा के जवाब में कह दिया यह तो चुनाव बाद संसदीय बोर्ड तय करेगा? इसी बयान से नीतीश बेचैन हो गए और उन्होंने सब ओर हाथ पांव मारने शुरू कर दिए। अब देखना यह है कि नीतीश केंद्र से सौदेबाजी कर रहे हैं या फिर एक बार पलटी मारने जा रहे हैं?
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