Tuesday 20 December 2022

हम यहां क्यों बैठे हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन पर अगर कदम नहीं उठाते हैं तो हम यहां क्यों हैं? मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ ने कहा—शीर्ष अदालत नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़े मामलों में कार्रवाईं नहीं करता तो यह संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत मिली शक्तियों का उल्लंघन होगा। चीफ जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहबाद हाईं कोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए सवाल किया—हम यहां क्यों हैं अगर हम अपनी अंतरात्मा की नहीं सुनते? पीठ ने कहा—सुप्रीम कोर्ट के लिए कोईं भी मामला छोटा नहीं होता। अगर हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में कार्रवाईं नहीं करते हैं और राहत नहीं देते हैं, तो हम यहां क्या कर रहे हैं? सीजेआईं चंद्रचूड़ ने यह टिप्पणी बिजली चोरी के एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाईं के दौरान की। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा—सुप्रीम कोर्ट के लिए कोईं मामला छोटा नहीं है। सीजेआईं की इस टिप्पणी को कानून मंत्री किरन रिजिजू का जवाब समझा जा रहा है। रिजिजू ने एक दिन पहले ही संसद में कहा था—सुप्रीम कोर्ट को जमानत जैसे मामलों की सुनवाईं नहीं करनी चाहिए, बल्कि संवैधानिक मामलों की सुनवाईं तक सीमित रहना चहिए। मामले में याचिकाकर्ता को बिजली चोरी के नौ मामलों में हर में दो-दो साल की सजा सुनाईं गईं थी। प्राधिकार ने पैसला दिया कि सजाएं अलग-अलग चलेंगी। इससे उसकी वुछ सजा 18 साल हो गईं। याचिकाकर्ता इसके खिलाफ शीर्ष कोर्ट पहुंचा था। पीठ ने कहा कि मामले के तथ्य शीर्ष अदालत को हर नागरिक को मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के रक्षक के रूप में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने का एक और मौका, एक स्पष्ट मौका देता है। पीठ ने कहा—अगर कोर्ट ऐसा नहीं करेगी तो एक नागरिक की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी। नागरिकों की शिकायतों से जुड़ी कोर्ट नियमित मामलों में इस अदालत के दखल से न्याय शास्त्रीय और संविधानिक मुद्दों से संबंधित पहलू उभर कर सामने आते हैं। सीजेआईं चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएम नरसिंहा की पीठ ने मामले को चौंकाने वाला करार दिया। पीठ ने पाया कि अपीलकर्ता तीन साल की सजा काट चुका है। इलाहाबाद हाईं कोर्ट ने सजा साथ-साथ चलने के उसके अनुरोध को नहीं माना। तब उसने शीर्ष अदालत का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी तुरन्त रिहाईं के आदेश दिए। पीठ ने सुनवाईं के दौरान मद्रास हाईं कोर्ट के पूर्व जज एस. नागामुलू की सहायता मांगी। वह संयोग से एक अन्य मामले के लिए अदालत में थे। नागामुलू ने इसे असाधारण स्थिति बताया। उन्होंने हाईं कोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए कहा—यह बिजली चोरी के लिए एक तरह से आजीवन कारावास है। सीजेआईं ने कहा कि इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की जरूरत है। बिजली चोरी कत्ल के बराबर का मामला नहीं है।

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