Tuesday 13 December 2022

इस बंपर जीत का 2024 चुनाव पर क्या असर होगा?

इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् गुजरात की जीत के बाद प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में साल 2024 के चुनाव की तैयारियों की झलक देखने को मिली। प्राधानमंत्री मोदी ने अभी से ही साल 2024 का चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। जिस तरह से उन्होंने कार्यंकर्ताओं से बात की, उनकी सराहना की और अभिनंदन किया उससे साफ लगता है कि 2024 में क्या होने जा रहा है और मोदी किस तरह अभी से ही लामबंदी कर रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र में सत्ता संभाल रहे नेता हमेशा ही एंटी-इनवंमबेंसी के डर में रहते हैं। लेकिन भाजपा ने गुजरात में 27 सालों की सरकार के बाद अगले पांच और साल के लिए रिकॉर्डतोड़ बहुमत हासिल करके यह साबित कर दिया है कि अभी भारत में भाजपा ही सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है और वो अगले वुछ और सालों तक सत्ता में रहने का न सिर्प इरादा रखती है बल्कि तैयार भी है। प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार 12 साल गुजरात में सत्ता संभालने के बाद दिल्ली आए थे और पिछले आठ साल से भारत के प्राधानमंत्री हैं। उनके नेतृत्व में पाटा ने कईं चुनाव जीते हैं। कोरोना महामारी के बाद भाजपा ने सबसे अहम राज्यों में से एक उत्तर प्रादेश में भारी बहुमत से चुनाव जीता है। इसके अलावा असम, गुजरात और गोवा में भी सरकार बनाईं है। गुजरात के चुनाव को प्राधानमंत्री मोदी ने अपने शासन पर जनमत संग्राह बना लिया था। उन्होंने अपने नाम पर वोट मांगे और एक तरह से वो गुजरात को अपने पर्यांयवाची के रूप में पेश करते रहे हैं। गुजरात में भाजपा की प्राचंड जीत को भारतीय राजनीति में ब्रांड मोदी के और मजबूत होने के रूप में भी देखा जा रहा है। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या गुजरात, दिल्ली और हिमाचल प्रादेश के नतीजों पर आने वाले 2024 लोकसभा चुनावों पर असर हो सकता है? क्या इन सीटों की वजह से विपक्षी दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है? प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में 30 से अधिक रैलियां की। बार-बार गुजरात को अपने आपसे जोड़ा। उन्होंने गुजरात अस्मिता की बात की और मतदाताओं से खुद पर और भाजपा पर भरोसा करने का आह्वान किया। गुजरात चुनाव के दौरान भाजपा ने हिन्दुत्व की अपनी रणनीति पर जोर दिया। भाजपा के स्टार प्राचारकों के निशाने पर अल्पसंख्यक मुसलमान रहे। विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा हिन्दुत्व की अपनी विचारधारा को प्राकट तो करती ही है, लेकिन सिर्प हिन्दुत्व के नाम पर ही वोट नहीं मांगती है, बल्कि अपने मुद्दों के जरिये भी वह लोगों को अपनी तरफ खींच रही है। इस बार महिलाओं ने भी खुलकर दिल से भाजपा का साथ दिया है। यह कहना गलत है कि भाजपा सिर्प हिन्दुत्व की रणनीति पर चुनाव लड़ रही है। वह बिजली-पानी जैसे मूलभूत मुद्दे भी उठा रही है। सबसे अधिक कामयाब वही योजनाएं हैं जो इन मुद्दों के इर्दगिर्द हैं। एक लाभाथा वर्ग है जो भाजपा के साथ कनेक्टेड महसूस करता है। भाजपा को सिर्प हिन्दुत्व के दम पर नहीं बल्कि काम के दम पर भी कामयाबी मिली है। चुनाव पर मुद्दों का असर पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो हिमाचल में सरकार नहीं बदलती। दिल्ली एमसीडी में आम आदमी पाटा (आप) को इतनी भव्य सफलता नहीं मिलती। जनता के बीच पाटा की विश्वसनीयता अत्यंत जरूरी होती है। ——अनिल नरेन्द्र

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