Friday 23 December 2022

बढ़ती झड़पें— बढ़ता व्यापार

भारत और चीन की सीमाओं पर एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है। इस बार तनाव के वेंद्र में लद्दाख की जगह अरुणाचल प्रादेश की सीमाएं हैं। इसकी वजह है कि नौ दिसम्बर की सुबह तवांग सैक्टर के माउंट्र्स में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिसक झड़प हुईं। इस झड़प में वुछ भारतीय सैनिकों को चोट भी आईं। इससे पहले गलवान की हिसक झड़प में 20 भारतीय जवानों की मौत हो गईं थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच अपने चरम पर पहुंच गया था तनाव। गलवान से पहले दोनों देश डोकलाम में करीब ढाईं महीने तक एक-दूसरे के सामने तने रहे। पिछले सात साल में चीन और भारत के बीच एक तरफ जहां गतिरोध बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ चीन पर भारत की निर्भरता में भी कोईं कमी नहीं है। इस बीच चीन से सामान खरीदने में भारत ने करीब 60 प्रातिशत की बढ़ोत्तरी की है। आसान शब्दों में कहें तो साल 2014 में भारत, चीन से सामान खरीदने पर 100 रुपए खर्च करता था जो आज बढ़कर 160 रुपए हो गया है। वूटनीतिक यह कहते हैं कि जिस मुल्क से खतरा महसूस हो तो उस पर निर्भरता को कम कर लेना चाहिए। ऐसे ही वादे हाल के दिनों में रूस-यूव््रोन युद्ध के बाद पािम के देशों ने भी किए हैं कि वह रूस पर अपनी निर्भरता को कम करने की लगातार कोशिशें करते हुए देखे जा सकते हैं। क्या वजह है कि चीन के साथ सीमाओं पर तनातनी के बावजूद भारत अपनी निर्भरता कम नहीं कर पा रहा है? वो कौन-से सामान हैं जो भारत चीन से सबसे ज्यादा खरीदता है? इस रास्ते पर अगर भारत चलता रहा तो उसे भविष्य में कईं तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत ने साल 2021-22 में दुनियाभर के 216 देशों और क्षेत्रों से सामान खरीदा। इस पर भारत ने 61 हजार 305 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च किए। भारत के वाणिज्य एवं उदृाोग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस खर्च में सबसे ज्यादा फायदा चीन को मिला। भारत के वुछ आयात में चीन की हिस्सेदारी 15.42 प्रातिशत रही। टॉप-10 देशों में चीन के अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात, अमेरिका, इराक, सऊदी अरब, स्विट्जरलैंड, हांगकांग, सिगापुर, इंडोनेशिया और कोरिया का नाम शामिल है। भारत-चीन ताजा विवाद के वुल आयात में किस देश का कितने प्रातिशत हिस्सा? चीन पर भारत की निर्भरता के पीछे अर्थशास्त्री, औदृाोगिक नीति न होने को एक बड़ी वजह मानते हैं। बीबीसी हिन्दी से बातचीत में अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा कहते हैं कि पिछली सरकार ने 2011 में नईं मैन्युपैक्चरिग रणनीति बनाईं थी उसे वो लागू नहीं कर पाईं। 1992 से 2014 तक भारत की जीडीपी में मैन्युपैक्चरिग का अनुपात 17 प्रातिशत बना रहा, लेकिन 2014 के बाद इसमें दो से तीन प्रातिशत की कमी दर्ज की गईं। सरल शब्दों में कहें तो 100 रुपए में से 15 रुपए का सामान भारत अकेले चीन से खरीदता है। इसमें इलैक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, उपकरण, स्पेयर पाट्र्स, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन और दूसरी कईं चीजें शामिल हैं। टॉप-10 चीजों की बात करें तो इसमें इलैक्ट्रॉनिक सामान के बाद न्यूक्लियर रिएक्ट्र्स, बॉयलर, आग्रेनिक वैमिकल, प्लास्टिक का सामान, फर्टिलाइजर, वाहनों से जुड़ा सामान, वैमिकल प्राॉड्क्टस, आयरन एंड स्टील का सामान और एलुमीनियम शामिल हैं। अगर चीन के साथ व्यापार घाटे की बात करें तो यह साल 2014-15 में करीब 48 अरब डॉलर था जो साल 2021-22 में बढ़कर करीब 73 अरब डॉलर हो गया। हमें चीन पर निर्भरता घटानी होगी। जनता को चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए, भले ही महंगा देसी सामान क्यों न खरीदना पड़े।

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