Tuesday, 6 December 2022
कोलेजियम व्यवस्था को बेपटरी न करें
सुप्रीम कोर्ट ने शुव््रावार को कहा कि मौजूदा कोलेजियम प्राणाली को वुछ ऐसे लोगों के बयानों के आधार पर बेपटरी नहीं की जानी चाहिए जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। इसके साथ ही उसने जोर दिया कि सर्वोच्च अदालत सबसे पारदशा संस्थानों में से एक है। न्यायपालिका के भीतर कार्यं विभाजन और न्यायाधीशों द्वारा संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था को लेकर सरकार के साथ बढ़ते विवाद के बीच शीर्ष अदालत ने कहा कि वह वुछ पूर्व न्यायाधीशों के बयानों पर कोईं टिप्पणी नहीं करना चाहते जो कभी उच्चतम कोलेजियम के सदस्य थे और अब व्यवस्था के बारे में बोल रहे हैं। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविवुमार की पीठ ने कहा—इन दिनों कोलेजियम के उस समय के पैसलों पर टिप्पणी करना एक पैशन बन गया है, जब वह (पूर्व न्यायाधीश) कोलेजियम का हिस्सा थे। हम उनकी टिप्पणियों पर वुछ भी नहीं कहना चाहते हैं। पीठ ने कहा—मौजूदा कोलेजियम प्राणाली जो काम कर रही है, बेपटरी नहीं होनी चाहिए। कोलेजियम किसी ऐसे व्यक्ति के आधार पर काम नहीं करता, जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हों, कोलेजियम को अपने कर्तव्यों के अनुसार काम करने दें, हम सबसे पारदशा संस्थान में से एक हैं। आरटीईं (सूचना का अधिकार) कार्यंकर्ता अंजली भारद्वाज की उस याचिका पर सुनवाईं कर रही थी, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गईं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें 12 दिसम्बर 2018 को हुईं सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की बैठक के एजेंडे की मांग की गईं थी, जब उच्चतम न्यायालय में वुछ न्यायाधीशों की पदोन्नति को लेकर कथित रूप से वुछ निर्णय लिए गए थे। भारद्वाज की ओर से पेश अधिवक्ता प्राशांत भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एमबी लोवुर, जो 2018 में कोलेजियम का हिस्सा थे, ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उस वर्ष 12 दिसम्बर को कोलेजियम की बैठक में लिए गए पैसलों को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए था।
——अनिल नरेन्द्र
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