Friday, 9 December 2022
सरकारें झुकती हैं, झुकाने वाले चाहिए
ईंरान इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। ईंरान में महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में हुईं मौत के बाद हिजाब को लेकर जो उग्रा प्रादर्शन हुए उससे अंतत: ईंरान सरकार को झुकना ही पड़ा। ईंरान की सरकार ने वहां हिजाब के खिलाफ हो रहे विरोध-प्रादर्शन के बीच नैतिकता पुलिस (मोरेलिटी पुलिस) को खत्म कर दिया है। इसे विरोध प्रादर्शन कर रही महिलाओं के लिए बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा रहा है। वहां के अटाना जनरल मोहम्मद जफर मोंटेनेरी ने समाचार एजेंसी आईंएसएनए को बताया कि नैतिकता पुलिस का न्यायपालिका से कोईं लेना-देना नहीं है। इसलिए इसे खत्म किया जा रहा है।
मोंटेनेरी की टिप्पणी एक धार्मिक सम्मेलन में आईं है, जहां उन्होंने एक प्रातिभागी को जवाब दिया—उसने पूछा था कि नैतिकता पुलिस को बंद क्यों किया जा रहा है? ईंरान की नैतिकता पुलिस को औपचारिक रूप से गश्त- ए-इरशाद के रूप में जाना जाता है। वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अहमदीजाद ने इस एजेंसी का गठन विनम्रता और हिजाब की संस्वृति को पैलाने के लिए किया था। ईंरान में 16 सितम्बर को 22 साल की छात्रा महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद हिजाब विरोधी प्रादर्शन शुरू हो गए थे। सरकार विरोधी प्रादर्शनों में अब तक तीन सौ लोग मारे जा चुके हैं और हजारों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया है। नैतिकता पुलिस उन लोगों और खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाईं करती आ रही है। जो देश के इस्लामी कानून के हिसाब से कपड़े नहीं पहनते या किसी भी तौर पर शरिया कानून को तोड़ते हैं। वहां राष्ट्रपति हसन रूहानी के दौर में लिबास को लेकर वुछ राहत दी गईं थी। तब महिलाओं को ढीली जींस और रंगीन हिजाब पहनने की मंजूरी दी गईं थी। जुलाईं में जब इब्राहिम रईंसी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने बहुत सख्ती से पुराना कानून लागू कर दिया। गौरतलब है कि ईंरान में 14 सितम्बर को 22 साल की महिला महसा अमीन की मौत पुलिस हिरासत में हो गईं थी। ईंरान की पुलिस ने महसा अमीनी को इसलिए हिरासत में लिया था, क्योंकि उन्होंने अपने सिर को नहीं ढका था यानि हिजाब नहीं पहना था। ईंरान में महिलाओं के लिए हिजाब एक जरूरी कानून है। महसा अमीनी की मौत के बाद पूरे देश में विरोध प्रादर्शन शुरू हुआ और हजारों महिलाएं और पुरुष सड़कों पर उतर आए। ईंरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में जरूरी करार दिया गया था। वर्ष 1979 से पहले शाह दहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईंरान काफी आजाद-ख्याल था। 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जाने लगीं। 1967 में ईंरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिनमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले। पढ़ाईं में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। ईंरान सरकार 40 साल पुराने हिजाब कानून पर फिर से गौर करने को तैयार है। ईंरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रामानी ने शनिवार को इस कानून में लचीलापन लाने का संकेत दिया है।
द कश्मीर फाइल्स पर विवाद भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव के निर्णायक मंडल के सदस्य ब्रिटिश अकादमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन आट्र्स के विजेता जिन्को गोटोह और दो अन्य सदस्यों ने द कश्मीर फाइल्स पर की गईं निर्णायक मंडल के अध्यक्ष नदाव लैपिड की टिप्पणी का समर्थन किया है। गोटोह ने ट्वीट कर कहा है कि द कश्मीर फाइल्स दुष्प्राचार करने वाली फिल्म है। उन्होंने नौ दिवसीय फिल्मोत्सव में अपने भाषण में द कश्मीर फाइल्स को भद्दी और प्राचार फिल्म कहा था। अमेरिकी निर्माता जिन्को गोटोह, प्रांसीसी फिल्म संपादक पॉस्कल चावांस और प्रांसीसी वृत्तचित्र फिल्म निर्माता जेवियर एंगुलो बारटुरेन ने लैपिड की टिप्पणी का समर्थन करते हुए ट्विटर पर एक बयान पोस्ट किया, जिसने इस पर सप्ताहभर पहले ही बहुत विवाद पैदा कर दिया था। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में जूरी के अध्यक्ष लैपिड ने सोमवार को नौ दिवसीय फिल्मोत्सव के समापन के दौरान पुरस्कार समारोह में अपने भाषण में द कश्मीर फाइल्स को भद्दी और प्राचार फिल्म कहा था।
विवेक अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित द कश्मीर फाइल्स, पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों द्वारा विशेष समुदाय के सदस्यों की हत्या के बाद कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन को चिर्तित करती है। गोटोह द्वारा ट्वीट किए गए संयुक्त बयान में तीनों सदस्यों ने कहा कि वह निर्णायक मंडल की ओर से किए गए लैपिड के बयान से सहमति रखते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह फिल्म की सामग्री पर कोईं राजनीतिक रुख नहीं ले रहे थे। हम एक कलात्मक बयान दे रहे थे और यह देखकर हमें बहुत दुख होता है कि महोत्सव के मंच का राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और नदाव पर व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ था।
निर्णायक मंडल के एक अन्य सदस्य सुदीप्तो सेन ने कहा कि मैंने न लैपिड के बयान का खंडन किया था। सुदीप्तो ने कहा कि अब वह देश में नहीं हैं।
मैं देश में हूं। इसलिए मैं उसका बचाव करने के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति होता, लेकिन उन्होंने मुझे शामिल नहीं किया। सेन ने कहा कि नदाव समापन समारोह में क्या कहने जा रहे हैं, इस पर अन्य सदस्यों से कभी विचारविमर्श नहीं किया। इसलिए उन्होंने जो पढ़ा, वह आधिकारिक बयान नहीं था। सेन ने कहा कि अब उसके बाद अगर कोईं सार्वजनिक तौर पर जाता है और किसी खास फिल्म को चुनता है और वुछ ऐसा कहता है जिसकी उम्मीद नहीं है तो यह उनकी निजी भावना है। उधर भारत में इजरायली राजदूत नोर गिलोन ने एक इजरायली फिल्मकार द्वारा द कश्मीर फाइल्स फिल्म पर की गईं टिप्पणी को लेकर विवाद के बीच कथित रूप से प्राप्त एक यहूदी-विरोधी संदेश का चित्र शनिवार को ट्विटर पर साझा किया कि यह उनका प्रात्यक्ष संदेशों में से एक है, जो उन्हें प्राप्त हुआ था। उन्होंने ट्वीट किया—मैं प्राप्त वुछ संदेशों में से एक को साझा करना चाहता था।
——अनिल नरेन्द्र
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