Tuesday, 6 December 2022

खतरे की घंटी : एम्स सर्वर हैकिग

देश के सबसे बड़े संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का सर्वर पिछले 10-12 दिनों से हैक है। प्राशासन ने हालांकि स्टाफ बढ़ाकर ओपीडी को मैनुअली हैंडल करना शुरू कर दिया है। लैब का बारकोड नहीं बन रहा है, इसलिए मरीजों के फोन नम्बर के आधार पर इसे चलाया जा रहा है। हालांकि पहले की तुलना में रिपोर्ट मिलने में मरीजों को एक-दो दिन ज्यादा का इंतजार करना पड़ रहा है। भारत में लगभग सभी को पता है कि दिल्ली का एम्स देश का सबसे प्रातिष्ठित, पुराना, बड़ा और भरोसेमंद सरकारी अस्पताल है। एम्स तो 1956 से मरीजों के लिए खुल गया था लेकिन कम्प्यूटर पर डेटा सुरक्षित रखने की तकनीक आने के बाद से एक अनुमान है कि कम से कम पांच करोड़ मरीजों के सभी रिकॉर्ड इस अस्पताल में महपूज रहे हैं। 23 नवम्बर, 2022 तक क्योंकि इस दिन एम्स अस्पताल के कम्प्यूटर सर्वर पर एक जबरदस्त हमला हुआ था जिसके बाद लगभग सभी सर्वर ठप पड़ गए। इसमें अस्पताल का ईं-हॉस्पिटल नेटवर्व भी शामिल था जिसे नेशनल इंफाम्रेटिक्स सेंटर (एनआईंसी) संचालित करता है। मामला कितना गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि करोड़ों मरीजों के निजी मेडिकल इतिहास वाले एम्स डाटा बैंक में भारत के अब तक के लगभग सभी प्राधानमंत्रियों, वैबिनेट मंत्रियों, कईं वैज्ञानिकों और हजारों वीआईंपी लोगों का भी मेडिकल रिकॉर्ड है जो हो सकता खतरे में पड़ गया हो। सुरक्षा कारणों के चलते बिना उस फ्लोर व बिल्डिंग का नाम लिखते हुए यह बताया जा सकता है कि एम्स अस्पताल के एक बड़े मेडिकल सेंटर के एक खास फ्लोर पर प्राधानमंत्री को लेकर किसी मेडिकल जरूरत के लिए एक वार्ड 24 घंटे तैयार रहता है। इसमें हर मौजूदा प्राधानमंत्री की मेडिकल हिस्ट्री लगातार अपडेट की जाती है। इसके अलावा वहां कईं प्राइवेट वीवीआईंपी वार्ड हैं, जहां पूर्व प्राधानमंत्रियों और वरिष्ठ प्राशासनिक अधिकारियों का न सिर्प इलाज चलता है बल्कि उनका पूरा मेडिकल इतिहास कम्प्यूटर पर हमेशा मौजूद रहता है। खतरे की घंटी बजना लाजिमी है। एक और वजह इंटरनेट पर होने वाले व््राइम और साइबर वारपेयर पर काम करने वाले थिंक टैंक साइबर फाउंडेशन के मुताबिक दुनियाभर में साल 2021 के दौरान हुए साइबर हमलों में से 7.7 प्रातिशत का निशाना हेल्थ सेक्टर था जिसमें अमेरिका के बाद दूसरे सबसे ज्यादा हमले भारत में हुए। एम्स पर हुए साइबर हमले की गुत्थी अभी भी उलझी हुईं है क्योंकि हमले की मंशा पर जांच जारी है और 200 करोड़ रुपए की व््िराप्टोकरेंसी फिरौती की कथित मांग को दिल्ली पुलिस ने गलत खबर बताया है। अभी यह कहना मुश्किल है कि एम्स के सर्वर हैक करने वालों को कितना डेटा मिला होगा। यह सब निर्भर होगा एम्स में मरीजों का इतिहास इक्प्डिेट प्राणाली यानि कईं कोड वाली सुरक्षा में था या नहीं? लेकिन सिस्टम की कमियां तो थीं ही जिसके चलते यह सर्वर हैक हुआ। सवाल यह उठता है कि इसका कसूरवार आखिर कौन है? अगर प्राइवेट एजेंसी इस काम को कर रही थी तो क्या काम देने से पहले यह देखा गया था कि वह कितनी काबिल है? अब इस एजेंसी और इसे देने वालों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।

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