Thursday, 12 January 2023

अनियंत्रित विकास ने पहाड़ों की नींव हिलाईं

पहाड़ों की नींव हिलाईं पर्यांवरण विशेषज्ञों का कहना हैं कि उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में चल रही अनियंत्रित विकास की गतिविधियों ने जोशीमठ शहर की नींव हिलाकर रख दी है। यह संकट गंभीर है तथा सरकार को तत्काल इस क्षेत्र में सुरंग बनाने और पहाड़ों में विस्फोटों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए। क्लाइमेट ट्रेंड्स की तरफ से जारी बयान में विशेषज्ञों ने इस पर गहरी चिंता प्रकट की है। भारतीय इंस्टीटाूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी इंडियन स्वूल ऑफ बिजनेस के सहायक एसोसिएट प्रोपेसर आईंपीसीसी की रिपोर्ट के एक लेखक डा. अंजल प्रकाश ने कहा है कि 2019 और 2022 में प्रकाशित आईंपीसीसी की दो रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह क्षेत्र आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील है। इसलिए इस क्षेत्र के ढांचागत विकास के लिए पर्यांवरण अनुवूल योजनाएं बनानी चाहिए। जहां तक बिजली उत्पादन की बात है, उसके लिए अन्य तरीकों की तलाश की जानी चाहिए। इस क्षेत्र में पनबिजली परियोजनाओं से जितना फायदा होगा, उससे कहीं ज्यादा पर्यांवरण को नुकसान होगा। गढ़वाल विश्वविदृालय के भूवि™ ान विभागाध्यक्ष प्रोपेसर वाईंपी सुंदरियाल के अनुसार, जोशीमठ में चल रहा संकट मुख्य रूप से मानवजनित गतिविधियों के कारण है। यहां जनसंख्या से कईं गुना वृद्धि हुईं है। बुनियादी ढांचे में अनियंत्रित तरीके से वृद्धि हुईं है। इसके बावजूद कस्बे में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है। मलबे की चट्टानों के बीच महीन सामग्री के व्रमिक अपक्षय के अलावा पानी के रिसाव से चट्टानों की शक्ति कम हुईं है। इससे भूस्खलन हुआ है और घरों में दरारें आ गईं हैं। जलविदृाुत परियोजनाओं के लिए इन सुरंगों का निर्माण ब्लास्टिंग के माध्यम से किया जा रहा है, जिससे स्थानीय भूवंप के झटके पैदा हो रहे हैं और घरों में दरारें आ रही हैं। सरकार ने 2013 की केदारनाथ आपदा और 2021 की त्रषिकेश गंगा की बाढ़ से वुछ भी नहीं सीखा। भू-गर्भीय हलचल को लेकर जोशीमठ बेशक इन दिनों सुर्खियों में है लेकिन जोशीमठ ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के नैनीताल, उत्तरकाशी एवं चम्पावत को वैज्ञानिकों ने भू-स्खलन व भू-कटाव के लिहाज से भी गंभीर बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रवृति से छेड़- छाड़ के बजाए इसे बनाए रखने की ठोस नीति की आवश्यकता है। वुमाऊ विश्वविदृालय के भू-गर्भ विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. बीएस कोटलिया ने कहा है कि नैनीताल के मुहाने पर स्थित बलियानाला क्षेत्र भूस्खलन की प्रविष्ठ के अति संवेदनशील है। रिसर्च में पाया गया है कि क्षेत्र की पहाड़ी हर वर्ष करीब एक मीटर ढह रही है। उत्तरकाशी में चूने की पहािड़या हैं। ठीक जोशीमठ की तर्ज पर ही उत्तरकाशी की नींव टिकी हुईं है। चम्पावत में रॉक कमजोर है। सूखी डांग में सबसे अधिक कमजोर पहाड़ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है। जोशीमठ मामले को लेकर प्रधानमंत्री प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने रविवार को उत्तराखंड के जोशीमठ की स्थिति को लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। उम्मीद की जाती है कि सरकार समस्या को गंभीरता को समझे और उचित नीतियां बनाए जिसमें पर्यांवरण का विशेष ध्यान रखा जाए। जरूरत पड़े तो विशेषज्ञों को भी नीति बनाने में शामिल करें।

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