Sunday, 15 January 2023

चुनी हुईं दिल्ली सरकार का क्या काम है?

अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुनवाईं करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वेंद्र सरकार से सवाल किया है कि अगर प्राशासन का पूरा नियंत्रण उसके पास है तो फिर दिल्ली में एक चुनी हुईं सरकार का क्या काम है? वेंद्र और दिल्ली के बीच कामकाज को लेकर जारी खींचतान के बीच सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को अंग्रोजी अखबार इंडियन एक्सप्रोस ने अपने पहले पóो पर जगह दी है। दिल्ली के कामकाज पर नियंत्रण को लेकर वेंद्र और दिल्ली सरकार के बीच खींचतान के एक मसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाईं कर रही है। इसकी अगुवाईं प्राधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ कर रहे हैं। पीठ ने वेंद्र सरकार की ओर से मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा—अगर सारा प्राशासन वेंद्र सरकार के इशारे पर ही चलाया जाना है तो फिर दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार का क्या उद्देश्य है? सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तुषार मेहता की उस दलील के बाद आईं जिसमें कहा—वेंद्र शासित प्रादेश को बनाने का एक स्पष्ट मकसद यह है कि वेंद्र इसका प्राशासन खुद चलाना चाहता है, इसलिए सभी वेंद्र प्रादेशों को वेंद्र के सिविल सर्विस अधिकारी और वेंद्र सरकार के कर्मचारी चलाते हैं। तुषार मेहता ने कहा कि अधिकारियों के कामकाज पर नियंत्रण और उनके प्राशासकीय या अनुशासन संबंधी नियंत्रण के बीच अंतर होता है। एक चुनी हुईं सरकार के प्रातिनिधि के तौर पर अधिकारियों का कामकाज संबंधी नियंत्रण हमेशा मंत्री के पास रहता है। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए बताया—जब एक वेंद्र सरकार के अधिकारी या आईंएएस अधिकारी को दादर और नागर हवेली में एक आयुक्त के तौर पर तैनात किया जाता है तो वह राज्य सरकार की नीतियों के हिसाब से चलता है। वह अधिकारी किसी को लाइसेंस जारी करने के लिए संबंधित राज्य के व्यापार नियमों को मानेगा और मंत्री के प्राति जवाबदेह होगा। मंत्री नीति बनाएंगे, वैसे लाइसेंस देना और वैसे नहीं देना है, किन मापदंडों पर विचार करना है और मंत्रालय वैसे चलेगा। कार्यं से जुड़ा नियंत्रण निर्वाचित मंत्री का होगा। तुषार मेहता ने कहा—हमारा लेना-देना प्राशासनिक नियंत्रण से है। जैसे कौन नियुक्ति करेगा, कौन विभागीय कार्रवाईं करता है, कौन ट्रांसफर करेगा। लेकिन वह अधिकारी गृह सचिव से यह नहीं पूछ सकता कि वह किसी को लाइसेंस जारी करे या नहीं? इसके लिए उसे मंत्री से पूछना पड़ेगा। यह दो अलग-अलग चीजें हैं और कामकाज का नियंत्रण हमेशा संबंधित मुख्यमंत्रियों के पास ही होता है। इस पर हैरानी जताते हुए सीजेआईं ने पूछा कि क्या इससे विषम स्थिति पैदा नहीं हो जाएगी। उन्होंने कहा मान लीजिए कि कोईं अधिकारी अपना काम ठीक से नहीं कर रहा, दिल्ली सरकार की यह कहने में कोईं भूमिका नहीं है कि इस अधिकारी के बजाय हम कोईं और अधिकारी को चाहते हैं.. देखिया कितना विषम हो सकता है। यह दिल्ली सरकार कहां है? क्या हम कह सकते हैं कि अधिकारी को कहां तैनात किया जाएगा, इस पर दिल्ली सरकार का कोईं नियंत्रण नहीं, फिर वह शिक्षा विभाग हो या कहीं और। इसके जवाब में मेहता ने कहा कि कानून के अनुसार अनुशासन संबंधी नियंत्रण गृह मंत्रालय के हाथ में होगा। ऐसे में उपराज्यपाल को सूचित किया जा सकता है कि वृपया इस अधिकारी को ट्रांसफर कर दीजिए और उपराज्यपाल इस निवेदन को आगे बढ़ाने के लिए बाध्य हैं। सुनवाईं कर रही पीठ में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस वृष्ण मुरारी, जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। इस मामले की सुनवाईं चल रही है।

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