Sunday, 15 January 2023
क्या 2024 की बिसात इस साल बिछेगी
इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् इस साल की राजनीतिक गतिविधियों से सिर्प 2024 की सियासी बिसात ही नहीं बिछेगी बल्कि लोकसभा चुनाव की दशा और दिशा भी तय हो जाएगी। इस वर्ष नौ राज्यों में चुनाव होने हैं। साल के शुरू में चार राज्यों में चुनाव हैं जबकि साल के आखिर में पांच राज्यों में चुनाव हैं।
दक्षिण भारत के कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होंगे तो पूवरेत्तर के मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और मिजोरम में चुनाव होने हैं जबकि हिन्दी पट्टी के तीन बड़े राज्यों—मध्य प्रादेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं। कर्नाटक, मध्य प्रादेश और त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है, जबकि नगालैंड, मेघालय और मिजोरम की सत्ता पर क्षेत्रीय दल काबिज हैं, लेकिन भाजपा सहयोगी दल के तौर पर है। वहीं राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रोस की सरकार है तो तेलंगाना में केसीआर की पाटा टीआरएस काबिज है। इन राज्यों के चुनाव देश की सियासत के लिहाज से बेहद अहम हैं। क्योंकि इसके बाद ठीक लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ज्यादातर राज्यों में भाजपा और कांग्रोस के बीच सीधा मुकाबला है तो क्षेत्रीय दलों की भी अग्नि-परीक्षा है। जिन राज्यों में चुनाव हैं उनमें से ज्यादातर और अहम राज्यों में कांग्रोस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाईं है। मध्य प्रादेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कांग्रोस और भाजपा के बीच सीधी चुनावी जंग होगी। इन चार राज्यों में से कांग्रोस और भाजपा के पास दो-दो राज्य हैं। ऐसे में कांग्रोस अपने दोनों राज्यों की सत्ता बचाए रखते हुए भाजपा से कर्नाटक और मध्य प्रादेश की सत्ता हासिल करने की कोशिश में रहेगी, लेकिन राजस्थान का सियासी रिवाज हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का रहा है, ऐसे में कांग्रोस के लिए काफी जद्दोजहद करनी होगी। वहीं भाजपा को 2018 में इन चार राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा था। कर्नाटक में वह बहुमत साबित नहीं कर पाईं थी।
2019 के बाद मध्य प्रादेश और कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस के जरिये कांग्रोस विधायकों की बगावत ने भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। ऐसे में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण भारत के अपने इकलौते दुर्ग को बचाए रखने की है, क्योंकि रेड्डी बंधुओं ने अपनी अलग पाटा बना ली है। जबकि तेलंगाना में टीआरएस के लिए इस बार भाजपा से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने केसीआर के खिलाफ आकर्षक मोर्चा खोल रखा है तो कांग्रोस भी पूरे दमखम के साथ है। इसके अलावा पूवरेत्तर के त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम में भी क्षेत्रीय दलों से ही दो-दो हाथ करने होंगे। त्रिपुरा में लेफ्ट को अपनी वापसी के लिए भाजपा से ही नहीं बल्कि टीएमसी से भी टकराना होगा। ऐसे ही मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में कांग्रोस के अगुवाईं वाले क्षेत्रीय दलों के गठबंधन और भाजपा के गठबंधन से मुकाबला है। ऐसे में अगर क्षेत्रीय दलों ने अपना प्रादर्शन बेहतर किया तो छोटे दलों की अहमियत बढ़ेगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का आगामी चुनाव में क्या असर पड़ेगा यह भी देखना होगा। वुल मिलाकर यह साल सियासत के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा।
——अनिल नरेन्द्र
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