Thursday, 5 January 2023
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
कोर्ट की मुहर देश की सर्वोच्च अदालत ने साल 2016 में हुईं नोटबंदी के खिलाफ दायर 58 याचिकाओं पर अपना पैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में केन्द्र सरकार के इस पैसले से जुड़े अलग- अलग पहलुओं को चुनौती दी गईं थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने अपने पैसले में नोटबंदी के पैसले को सही ठहराया है। हालांकि जस्टिस नागरत्ना ने अपने पैसले में इसे गैर-कानूनी बताया है। जस्टिस एस नजीर की पीठ ने किन वजहों से याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज किया और किस आधार पर नोटबंदी के पैसले को सही ठहराया है यह जानना अहम है। लॉख लॉ में प्रकाशित खबर के मुताबिक जस्टिस गवईं ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक कानून की धारा 26/2 में दी गईं शक्तियों के आधार पर किसी बैंक नोट की सभी सीरीज को प्रतिबंधित किया जा सकता है और इस धारा में इस्तेमाल किए गए शब्द को किसी संर्कीणता के साथ नहीं देखा जा सकता। उन्होंने इस धारा में जिस किसी शब्द का इस्तेमाल किया गया है, उसकी प्रतिबंधित व्याख्या नहीं की जा सकती। आधुनिक चलन व्यवहारिक व्याख्या करना है। ऐसी व्याख्या से बचना चाहिए जिससे अस्पष्टता पैदा हो और व्याख्या के दौरान कानून के उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को सेंट्रल बोर्ड के साथ सलाह-मशविरा करने की जरूरत होती है और ऐसे में इनबिल्ट सेफगार्ड है। आर्थिक नीति के मुद्दे पर बेहद संयम बरतने की जरूरत है, हालांकि जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सभी नोटों को प्रतिबंधित किया जाना बैंक की ओर से किसी बैंक नोट की किसी सीरीज के चलन से बाहर निकाले जाने से कहीं ज्यादा गंभीर है। ऐसे में इस मामले में सरकार को कानून पास करना चाहिए था। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, जब नोटबंदी का प्रस्ताव केन्द्र सरकार की ओर से आता है तो वे आरबीआईं कानून की धारा (262) के तहत नहीं आता है। इस मामले में कानून पास किया जाना था। दूसरे शब्दों में इसे संसद के पास भिजवाना चाहिए था और अगर गोपनीयता की जरूतर होती तो इसमें आर्डिनेंस लाने का रास्ता अपनाया जा सकता था। वहीं जस्टिस गवईं ने कहा कि इन कदम के लिए जिन उद्देश्यों को जिम्मेदार बताया गया था वो सही उद्देश्य थे। केन्द्र सरकार ने बताया कि साल 2016 में 8 नवम्बर की शाम एकाएक 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया था। इसके बाद कईं हफ्तों तक देशभर में बैंकों और एटीएम के सामने पुराने नोट बदलकर नए नोट हासिल करने वालांे की लंबी कतारें देखी गईं थी। इसके बाद कईं पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाईं करते हुए सोमवार को पैसला सुनाया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाईं से पहले ही कह दिया था कि अगर ये मुद्दा अकादमिक है तो अदालत का समय बर्बाद करने का कोईं मतलब नहीं है। क्या हमें समय बीतने के बाद इसे इस स्तर पर उठाना चाहिए? इसके बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि सवाल इस बात का है कि क्या भविष्य में इसे कानून की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है? आरबीआईं के वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता इस अदालत से मांग कर रहे हैं कि यह केन्द्र सरकार की इस शक्ति को छीन लें, जिसके जरिए वह आरबीआईं के सुझाव पर अति मुद्रास्फीति जैसे मौकों पर चलन में मौजूद समूची मुद्रा को वापस ले सकती है।
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