Tuesday, 30 May 2023

न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की निचली अदालत के 68 न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविवुमार की पीठ ने कहा कि जिन न्यायिक अधिकारियों को पदोन्नत किया गया, फिलहाल उन्हें उनके मूल पद पर वापस भेजा जाए, जिनकी पदोन्नति पर रोक लगी है उनमें मानहानि मामले में राहुल गांधी को दोषी ठहराने और सजा सुनाने वाले जज हरीश हसमुख भाईं वर्मा भी हैं। गौरतलब है कि विभिन्न जिला जज की पदोन्नति के लिए गुजरात हाईं कोर्ट ने सिफारिश की थी। इसे लागू करने के लिए गुजरात सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी। इसी पर पीठ ने रोक लगाईं है। पीठ ने प्रातिवादियों को नोटिस भी जारी कर दिया है। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा जारी की गईं सूची और जिला न्यायाधीशों को पदोन्नति देने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश गैर-कानूनी है और इस अदालत के निर्णय के विपरीत है। इसलिए इसे बरकरार रखा जा सकता है। न्यायालय ने कहा—हम पदोन्नति सूची के व््िरायान्वयन पर रोक लगाते हैं। पदोन्नति पाने वाले संबंधित अधिकारियों को उनके मूल पदों पर भेजा जाता है जिन पर वह अपनी पदोन्नति से पहले नियुक्त थे। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया है कि वर्तमान स्थगन आदेश उन पदोन्नतियों पर भी लागू होगा जिनके नाम मेरिट लिस्ट में पहले 68 उम्मीदवारों में नहीं हैं। पीठ ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाईं वह पीठ करेगी जिसे प्राधान न्यायाधीश सौंपेंगे क्योंकि न्यायमूर्ति शाह जल्द सेवानिवृत हो रहे हैं। याचिका में गुजरात में 69 जिला जज की पदोन्नति को चुनौती दी गईं थी। दरअसल इन जज की पदोन्नति 65 प्रातिशत कोटा नियम के आधार पर हुईं थी। जिसे सीनियर सिविल जज वैडर के दो अधिकारियों ने चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि भता नियमों के अनुसार जिला न्यायाधीश का पद योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत और एक योग्यता परीक्षा पास करने के आधार पर 65 प्रातिशत आरक्षण रखते हुए भरा जाता है। उन्होंने कहा कि योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत को नजरंदाज किया गया और नियुक्तियां वरिष्ठता-सह-योग्यता के आधार पर की गईं। दोनों न्यायिक अधिकारियों ने 200 में से व््रामश: 135.5 और 140.5 अंक हासिल किए थे। इसके बावजूद कम अंक लाने वाले उम्मीदवारों को जिला न्यायाधीश नियुक्त किया गया। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईं कोर्ट और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। दिलचस्प बात यह है कि अदालत के नोटिस जारी करने से पहले ही हाईं कोर्ट ने विभिन्न जिला जज की पदोन्नति कर दी और नोटिस जारी होने के समय यह फाइल गुजरात सरकार के पास लंबित थी। इसके बाद एक हफ्ते के भीतर ही राज्य सरकार ने विभिन्न जजों की पदोन्नति की अधिसूचना जारी कर दी। ——अनिल नरेन्द्र

सवाल चीता प्राोजेक्ट पर?

वन विभाग वूनो नेशनल पार्व में मादा चीता दक्षा की मौत को प्रावृतिक बेशक मान रहे हैं पर मादा चीता ज्वाला के तीन शावकों की मौत ने जहां वन्य जीव पक्षियों को मायूस किया है। वहीं साउथ अप्रीका से चीते लाकर भारत को जंगलों को आबाद करने के इस प्राोजेक्ट को सवालों के घेरे में जरूर ला दिया है। इससे पहले 23 मईं को एक चीता शावक की मौत के बाद चिकित्सकीय जांच में तीनों बीमार मिले थे। यह भी बताया जाता है कि शावकों की मौत उसी शाम को हो गईं थी और इसकी औपचारिक जानकारी वन विभाग अधिकारियों ने गुरुवार को सार्वजनिक की। इस महत्वाकांक्षी प्राोजेक्ट के तहत नामीबिया से 20 चीते लाए गए थे और यहां आने के बाद 27 मार्च को ज्वाला ने चार शावकों को जन्म दिया लेकिन पिछले छह महीने में पहले तीन चीतों की मौत हुईं और फिर तीन शावक भी जीवित नहीं रह सके। वूनो प्राबंधन के अनुसार भीषण गमा के कारण शावकों की मौत हुईं है। जिस दिन उनकी स्थिति खराब हुईं, उस दिन वहां का तापमान 47 डिग्री सेल्सियस था। दक्षिण अप्रीकी विशेषज्ञों ने कहा—चीतों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण और असमय नहीं है। प्राधान मुख्य वन संरक्षक जेए चौहान के अनुसार 25 मईं को एक शावक की मौत के बाद शेष तीन शावकों एवं मादा चीता ज्वाला की पालपुर में वन्यप्राणी चिकित्सकों की टीम द्वारा लगातार निगरानी की गईं। ज्वाला को सप्लीमेंट पूड भी दिया गया। दोपहर बाद तीन शावकों की स्थिति सामान्य नहीं लगी। उस दिन का तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक चला गया था। दिनभर अत्याधिक गरम हवा एवं लू चलती रही। प्राबंधन एवं वन्यप्राणी चिकित्सकों की टीम ने तीन शावकों का उपचार शुरू किया, लेकिन दो शावकों को बचाया नहीं जा सका। एक शावक को गंभीर हालत में गहन उपचार एवं निगरानी में पालपुर स्थित चिकित्सालय में रखा गया है। नामीबिया एवं साउथ अप्रीका के सहयोगी चीता विशेषज्ञों एवं चिकित्सकों से भी लगातार सलाह ली जा रही है। मध्य प्रादेश का वन विभाग व अधिकारी मंगलवार को हुईं इन मौतों का कारण गमा, वुपोषण और उपचार के प्रायासों पर इनका कोईं रिस्पांस न देना बताया है। क्या इसका मतलब यह है कि इन चीतों और शावकों के लिए यहां का मौसम और परिवेश अपेक्षा से कहीं ज्यादा प्रातिवूल साबित हो रहा है? जानकारी के मुताबिक आमतौर पर संरक्षित क्षेत्र में चीतों के शावकों का सर्वाइवल रेट काफी अच्छा होता है। इस उम्र में शावकों के लिए सबसे पौष्टिक आहार मां का दूध होता है। करीब दो महीने की उम्र के यह शावक अगर कमजोर थे तो क्या इसका मतलब यह है कि इन्हें मां का दूध पर्यांप्त मात्रा में नहीं मिल रहा था और अगर यह सच है तो स्थिति चिंताजनक है। इतने कीमती चीतों की देखभाल, पालन-पोषण में लापरवाही दर्शाती है कि प्राोजेक्ट चीता गलत प्राोजेक्ट था जिसकी सही जांच चीतों को लाने से पहले ठीक से नहीं की गईं।

Tuesday, 23 May 2023

अध्यादेश को भी चुनौती दी जा सकती है?

वेंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के अधिकारों के मामले में अध्यादेश लाया गया है जिससे एलजी के पास वह सभी अधिकार हैं जो सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक पैसले के बाद आए थे। अब आगे क्या होगा क्योंकि दिल्ली सरकार ने वेंद्र के अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अब मामला आगे किस रूप में बढ़ेगा फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन वुछ पुराने मामलों पर नजर डालें तो यह समझा जा सकता है कि इस तरह के टकराव की स्थिति में क्या हो सकता है। बहुचर्चित एससी/एसटी एक्ट मामला : एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले में अग््िराम जमानत के प्रावधान को खत्म करने के लिए वेंद्र सरकार के कानून को सुप्रीम कोर्ट ने 10 फरवरी 2020 को बहाल रखा था। एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम 2018 कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को वैध ठहराया है। दरअसल 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के गिरफ्तारी के प्रावधान को हल्का कर दिया था और अंतिम जमानत का प्रावधान कर दिया था। साथ ही एफआईंआर से पहले प्रारंभिक जांच का प्रावधान कर दिया था। इस पैसले के बाद वेंद्र सरकार ने संसद के जरिये कानून में बदलाव किया और पहले के कानूनी प्रावधानों को बहाल कर दिया। इस कानूनी बदलाव के तहत वेंद्र सरकार ने अंतिम जमानत के प्रावधान को खत्म कर दिया था। वेंद्र सरकार के कानूनी बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं थी जिस पर सुनवाईं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पैसला सुनाया और वेंद्र के कानून को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एमएल लौहारी बताते हैं कि दिल्ली सरकार अध्यादेश को चुनौती दे सकता है। कोईं भी ऑर्डिनेंस या कानून ज्यूडिशियल स्व््राूटनी के दायरे में है या नहीं? तमाम ऐसे उदाहरण हैं जब वेंद्र सरकार के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं है। कईं बार वह ज्यूडिशियल स्व््राूटनी में टिकी है और कईं बार नहीं टिक पाईं। सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिह बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जब भी कोईं पैसला देती है तो वह संविधान की व्याख्या करती है। संविधान में जो अनुच्छेद और प्रावधान है उसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट व्याख्या करती है और अपना पैसला सुनाती है। मौजूदा मामले में भी अनुच्छेद-239एए के तहत जो संवैधानिक प्रावधान है उस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने व्याख्या की और विस्तार से व्याख्या के बाद ही पैसला दिया है कि एलजी लिस्ट तीन अपवाद को छोड़कर बाकी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह मानने को बाध्य है। अब देखते हैं कि वेंद्र के इस नए अध्यादेश में सुप्रीम कोर्ट क्या पैसला करता है।

नरेंद्र मोदी के लिए विपक्ष की चुनौती

कर्नाटक में सिद्धारमैया और उनकी सरकार के मंत्रियों के शपथ ग्राहण समारोह में विपक्ष के कईं प्रामुख नेता नजर आए और यहां से विपक्षी एकजुटता का संदेश देने का प्रायास किया गया। मंच पर एक साथ 16 दलों के नेता मौजूद थे। विपक्षी नेताओं ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर विजयी मुद्रा में ऊपर उठाया और एकजुटता का संदेश देने का प्रायास किया। शपथ ग्राहण समारोह में कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पाटा महासचिव प््िरायंका गांधी वाड्रा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री सुखविदर सिह सुक्खू और कांग्रोस के कईं अन्य वरिष्ठ नेता शामिल थे। राष्ट्रवादी कांग्रोस पाटा (राकांपा) के प्रामुख शरद पवार, बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल (यूनाइटेड) के शीर्ष नेता नीतीश वुमार, बिहार के उपमुख्यमंत्री एवं राजद नेता तेजस्वी यादव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, झारखंड के मुख्यमंत्री और झामुमो नेता हेमंत सोरेन इत्यादि ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराईं। नीतीश वुमार पिछले कईं दिनों से विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में जुटे हुए हैं। दरअसल विपक्षी एकता के लिए नीतीश के इन विपक्षी नेताओं से मिलने के वुछ खास मायने हैं। तेलंगाना, दिल्ली, पािम बंगाल, उत्तर प्रादेश, ओडिशा, झारखंड और महाराष्ट्र की वुल 220 लोकसभा सीटों में अकेले भाजपा के पास 133 सीटें हैं। यहां विपक्षी गठबंधन सफल हुआ तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत से वेंद्र की राजनीति में विरोधी दलों की हैसियत कम हुईं है। इसलिए हाल के समय में विपक्षी एकता को लेकर लगातार चल रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को करीब 38 प्रातिशत वोट के साथ 303 सीटें मिली थीं। वहीं दूसरे नम्बर पर कांग्रोस रही थी जिसे करीब 20 प्रातिशत वोट मिले थे और महज 52 सीटें मिली थीं। विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में यह समीकरण पूरी तरह से महागठबंधन के पक्ष में है। देशभर में अगर विपक्षी एकता बन भी जाए तो भी भाजपा को हटाना आसान नहीं होगा। विपक्षी एकता बनने के बाद ही भाजपा के पास 210 के आसपास सीटें होंगी। भाजपा उस सूरत में नम्बर वन पर होगी। कांग्रोस उस सूरत में नम्बर दो पर ही रहेगी और उसकी लगभग 80-90 सीटें आ सकती हैं। कईं सीटों पर भाजपा और कांग्रोस का सीधा मुकाबला है। आम आदमी पाटा भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। नीतीश की मेहनत कितना रंग लाती है यह अभी कहना मुश्किल है। इस साल राज्यों में होने वाले चुनाव विपक्षी एकता की एक तरह से परीक्षा है। उस पर बहुत वुछ निर्भर करेगा। ——अनिल नरेन्द्र

Thursday, 18 May 2023

कांग्रोस क्यों जीती भाजपा क्यों हारी

विपक्ष के कईं नेताओं ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रोस की सराहना की और कहा कि यह परिणाम दिखाता है कि प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी अजेय नहीं हैं। मोदी को हटाया जा सकता है। हिमाचल प्रादेश के बाद कर्नाटक में भाजपा हार गईं, मोदी-शाह हार गए और कांग्रोस जीत गईं। कांग्रोस क्यों जीती और भाजपा क्यों हारी इस पर तरह-तरह के विश्लेषण हो रहे हैं। मेरे अनुसार कांग्रोस की जीत का एक बड़ा कारण है राहुल गांधी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का भावनात्मक असर रहा है। पाटा के मुताबिक भारत जोड़ो यात्रा 20 विधानसभा सीटों से गुजरी थी जिनमें से 15 सीटों पर कांग्रोस ने जीत दर्ज की। यह यात्रा सबसे अधिक 21 दिन कर्नाटक में रही। इसके साथ राहुल की लोकसभा सदस्यता रद्द करने का भी जनता पर असर रहा। इससे भी कांग्रोस को सहानुभूति मिली। फिर समय से पहले चुनावी रणनीति तैयार करना और उस पर अमल शुरू करना कांग्रोस पाटा रणनीति कामयाब रही। पाटा ने जमीनी हालात का जायजा लेते हुए नईं चुनावी रणनीति बनाईं, भाजपा के नैरेटिव का मुकाबला किया और सत्तारूढ़ पाटा के खिलाफ अपने प्रामुख चुनावी मुद्दे के रूप में भ्रष्टाचार को प्राथमिकता दी। इसकी तैयारी पाटा ने पहले से ही कर ली थी। महीनों पहले बोम्मईं ने भी हार को स्वीकार करते हुए कहा कि कांग्रोस ने चुनावी तैयारी उनसे पहले शुरू कर दी थी। इस रणनीतिक पहल का लाभ कांग्रोस को मिला। कांग्रोस पाटा ने बोम्मईं सरकार के खिलाफ जनता के व््राोध को अच्छी तरह से अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। कन्नड़ प्राकाशित सबसे प्रामुख अखबार विजय कर्नाटक की हेडलाइन है कि जनता के व््राोध ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया। प्राधानमंत्री ने कर्नाटक में एक दर्जन के करीब रैलियां कीं, 26 किलोमीटर लंबा रोड शो किया पर कहीं भी उन्होंने लोकल मुद्दों पर एक शब्द नहीं बोला। कर्नाटक में भाजपा सरकार की बजाय वेंद्र सरकार की उपलब्धियां अधिक गिनाईं। दूसरी तरफ कांग्रोस पाटा ने न केवल स्थानीय नेताओं को महत्व दिया बल्कि लोकल मुद्दों को ही चुनावी मुद्दा बनाया। अब नंदनी दूध बनाम अमूल दूध का मामला ही ले लिया जाए। जैसे ही अमूल ने ऐलान किया कि वो राज्य में ऑनलाइन बिव््री करने के लिए मैदान में आ रहे हैं। इसे कांग्रोस ने लोकल बनाम बाहरी (गुजरात) के मामले के रूप में पेश किया और यह सफल भी रहा। अब बात करते हैं कि भाजपा कर्नाटक में क्यों हारी? सबसे पहले बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग के अनुसार भाजपा के 30 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गईं। भाजपा की वह छह गलतियां जिनकी वजह से उसे हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा सत्ता विरोधी लहर की कोईं मुनासिब काट नहीं कर पाईं। कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार का बड़ा कारण सत्ता विरोधी लहर था जिसकी काट के लिए पाटा मुनासिब उपाय करने में विफल रही। एक निाित अवधि तक सत्ता में रहने के बाद जनता अकसर सत्ताधारी दल के प्रादर्शन से असंतुष्ट हो जाती है और वह बदलाव चाहती है। भाजपा 2019 से सत्ता में थी। भाजपा को बेरोजगारी और आसमान छूती महंगाईं जैसे मुद्दों का सामना करना था। कांग्रोस ने इन्हीं मुद्दों को उठाया लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार भाजपा इस पर कोईं ठोस रणनीति तैयार करने में नाकाम रही। प्राधानमंत्री, गृहमंत्री, भाजपा अध्यक्ष, मंत्री इत्यादि किसी ने भी इन ज्वलंत मुद्दों पर एक शब्द नहीं कहा। स्टार वैंपेनर मोदी और पाटा के दूसरे वेंद्रीय नेताओं पर अधिक निर्भरता और स्थानीय नेताओं को चुनाव अभियान में अधिक अहमियत नहीं दी गईं और वेंद्र के नेताओं पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता थी। ब्रांड मोदी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल भी काम नहीं आया। भाजपा का ख्याल था कि पीएम मोदी की रैलियों और रोड शो से कम से कम अतिरिक्त 20 सीटें इसकी झोली में गिरेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुनावप्रा चार के अंतिम चरण में पीएम मोदी ने अभियान को तेजी देने की कोशिश की और अपने डेढ़ हफ्ते के प्रावास में औसतन हर दिन तीन से चार रैलियां, रोड शो, और सभाएं कीं। लोगों ने ध्रुवीकरण की राजनीति को सिरे से नकार दिया। हर तरह से कोशिश हुईं कि लड़ाईं सांप्रादायिक रूप ले, यहां तक कि बजरंग बली को भी प्राचार के दौरान ले आए। साफ है कि भाजपा की नफरत की सियासत की हार हुईं। मोदी ने जितना हो सके मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। अमित शाह और हिमंत बिस्वा सरमा ने प्राचार के आखिरी दिनों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ और भी बुरी बातें कही, लेकिन वो सब विफल रहे। दक्षिणपंथी विचारक और राजनीतिक विशेषज्ञों ने चुनावी मुहिम के समय कर्नाटक का दौरा किया था। वो कहते हैं—पाटा में जो बगावत हुईं और जिस तरह की कलह थी खासतौर पर सेंट्रल (लिंगायत वाला इलाका) और महाराष्ट्र से सटे कर्नाटक के इलाकों में उसने पाटा को बड़ा भारी नुकसान पहुंचाया। साथ ही जगदीश शैट्टार की मांगों को नजरंदाज किया गया। इसका खामियाजा पाटा को सेंट्रल और उत्तरी कर्नाटक में भुगतना पड़ा। पाटा में आपसी कलह, आंतरिक संघर्ष, गुटबाजी ने भी कमजोर किया। पाटा ने कद्दावर नेता येदियुरप्पा को नजरंदाज करने की भारी गलती की। भाजपा ने सत्ता में अपने पिछले कार्यंकाल के दौरान कईं वादे किए थे। लेकिन उन्हें पूरा करने में विफल रहे। इससे मतदाताओं का विश्वास और समर्थन पर असर पड़ा। कांग्रोस के सीएम अभियान को सही तरीके से काउंटर नहीं किया गया। कर्नाटक राज्य ठेकेदार संघ की शिकायत थी कि प्रात्येक टेंडर को पारित कराने के लिए 40 प्रातिशत कमीशन की मांग की जाती है, जिसे कांग्रोस पाटा ने अपने चुनावी फायदे के लिए भरपूर इस्तेमाल किया और बोम्मईं सरकार को मिस्टर 40 प्रातिशत कमीशन सरकार का नाम दे दिया गया। हालांकि इस भ्रष्टाचार के आरोप को साबित नहीं किया जा सका है लेकिन कांग्रोस ने जबरदस्त नैरेटिव बनाया जिससे उसे चुनाव में सफलता मिली। ——अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 16 May 2023

आर्यंन को न पंसाने के लिए 25 करोड़ मांगे थे

आपको याद होगा कि दो अक्तूबर 2021 को मशहूर व््राूज ड्रग केस में शाहरुख खान के बेटे आर्यंन खान को मादक पदार्थ रखने के मामले में समीर वानखेड़े ने गिरफ्तार किया था। मामले में बेकसूर आर्यंन खान ने चार सप्ताह बेकार जेल में बिताए थे। बाद में पता चला कि सारा मामला झूठा था और आर्यंन को रिहा कर दिया गया और अदालत ने क्लीन चिट दे दी थी। उस टाइम बहुत हंगामा हुआ था और समीर वानखेड़े पर तरह-तरह के आरोप लगे थे। उनका मुंबईं नारकोटिक वंट्रोल ब्यूरो से तबादला कर दिया गया था। अब खबर आईं है कि वेंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआईं) ने स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) के पूर्व अधिकारी समीर वानखेड़े और चार अन्य के खिलाफ एक व््राूज पोत से प्रातिबंधित मादक पदार्थ जब्त किए जाने के मामले में बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यंन खान को नहीं पंसाने के लिए 25 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इनके बाद उनके परिसरों की तलाशी ली गईं। उन्होंने कहा कि आर्यंन खान को दो अक्तूबर 2021 को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। एनसीबी ने इस मामले में आरोप पत्र दायर किया था और आर्यंन खान को क्लीन चिट दे दी थी। एनसीबी द्वारा गठित एक विशेष जांच दल (एसआईंटी) ने दावा किया था कि वानखेड़े के नेतृत्व वाली जांच में चूक हुईं थी। उन्होंने कहा कि मुंबईं, दिल्ली, रांची और कानपुर में 29 स्थानों की तलाशी ली गईं। अधिकारियों ने बताया कि आरोप है कि आईंआरएस अधिकारी वानखेड़े और अन्य ने आर्यंन खान को मादक पदार्थ मामले में न पंसाने के लिए 25 करोड़ की कथित तौर पर मांग की थी। अधिकारियों को जानकारी मिली कि अधिकारी और उनके साथी ने 50 लाख रुपए की राशि अग््िराम के तौर पर कथित तौर पर लिए थी। वानखेड़े आर्यंन खान की गिरफ्तारी के समय मुंबईं के एनसीबी के प्रामुख थे। साजिश रचने के मामले में आईंआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े के अलावा तत्कालीन अधीक्षक एनसीबी विश्व विनय सिह, एनसीबी के मुंबईं जोन यूनिट के तत्कालीन खुफिया अधिकारी आशीष रंजन, दो अन्य केपी गोस्वामी और सनविले डियूजा के अलावा अन्य के खिलाफ एफआईंआर दर्ज की गईं है। उस वक्त समीर खानखेड़े मुंबईं नारकोटिक्स बोर्ड के जोनल डायरेक्टर थे। ——अनिल नरेन्द्र

फिर पहुंची सुप्रीम कोर्ट दिल्ली सरकार

सुप्रीम कोर्ट में केजरीवाल सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) के बीच अधिकारों को लेकर कानूनी लड़ाईं खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पैसला दिया कि अधिकारियों को पोस्टिंग और ट्रांसफर का हक दिल्ली सरकार का है। अब तक दिल्ली में सचिवों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार दिल्ली के एलजी को था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा—भूमि, लोक व्यवस्था और पुलिस का मामला वेंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। दिल्ली में सभी प्राशासनिक मामलों से सुपरविजन का अधिकार उपराज्यपाल के पास नहीं हो सकता। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले पर बंटा हुआ पैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गत गुरुवार को दिल्ली सरकार के पक्ष में पैसला सुनाते हुए कहा कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले में सर्वसम्मति से पैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि दिल्ली में सभी प्राशासनिक मामलों की सुपरविजन का अधिकार उपराज्यपाल के पास नहीं हो सकता। दिल्ली की चुनी हुईं सरकार के हर अधिकार में उपराज्यपाल का दखल नहीं हो सकता। पीठ ने कहा कि अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का अधिकार लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुईं सरकार के पास होता है। भूमि, लोक व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर सर्विस से जुड़े सभी पैसले, आईंएएस अधिकारियों की पोस्टिंग (भले ही दिल्ली सरकार ने किया हो या नहीं) उनके तबादले के अधिकार दिल्ली सरकार के पास होंगे। इस पैसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा—आठ सालों से हमारे हर काम को वेंद्र सरकार ने इस नियम के जरिये रोका है। शिक्षा का काम करना चाहा तो सचिव नियुक्त कर काम में अड़ंगा लगाया। मोहल्ला क्लिनिक के लिए ऐसा स्वास्थ्य सचिव चुना जो काम न होने दे। सुप्रीम कोर्ट के पैसले आने में अभी स्याही नहीं सूखी थी कि एक नया विवाद हो गया। अधिकारियों के तबादले और तैनाती पर नियंत्रण मिलने के 24 घंटे के भीतर दिल्ली की आम आदमी पाटा सरकार ने सेवा विभाग के सचिव आशीष मोरे के तबादले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। आप सरकार ने आरोप लगाया कि वेंद्र मोरे के तबादले में अड़ंगा लगा रहा है। शीर्ष अदालत इस मामले में अगले हफ्ते सुनवाईं को तैयार हो गईं। सीजेआईं की पीठ में दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिघवी ने बताया कि बृहस्पतिवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने पैसला दिया है। ऐसे में आदेश का पालन नहीं करना न्यायालय की अवमानना है। उन्होंने कहा—वेंद्र सेवा विभाग के सचिव के तबादले को लागू नहीं कर रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि लगता है वेंद्र सरकार दिल्ली में आम आदमी पाटा के स्वतंत्र रूप से कामकाज करने में हर प्राकार से अड़ंगा लगाने पर तुली हुईं है।

Friday, 12 May 2023

एर्दोगान को विपक्षी चुनौती

2003 में पहली बार तुर्विये का नेतृत्व करने के बाद से राष्ट्रपति एर्दोगान की शक्तियों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुईं है। राष्ट्रपति रजैब तैब एर्दोगान लगभग 20 सालों से भी ज्यादा समय से सत्ता में हैं और अब उनके शासन को सबसे बड़ी चुनौती है तुर्विये के छह विपक्षी दलों ने 14 मईं को राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के लिए एकजुट होकर विपक्षी नेता कमाल किलिदारोग्लू को अपने विपक्षी गठबंधन का उम्मीदवार चुना है। राष्ट्रपति एर्दोगान के शासन में तुर्विये निरवुंश हो गया है और विपक्षी इसमें तब्दीली लाने की कोशिश कर रहे हैं। तुर्विये में बढ़ती महंगाईं और दोहरे भूवंप से 50 हजार से ज्यादा मौतों के बाद राष्ट्रपति एर्दोगान कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। चुनाव में एर्दोगान की चुनौती सालों से तुर्विये तक तुर्विये में वोटर्स का ध्रुवीकरण हुआ है। लेकिन 69 वषाय एर्दोगान दबाव में हैं। ओपिनियन पोल से पता चलता है कि राष्ट्रपति पद के लिए उनके मुख्य प्रातिद्वंद्वी के पास अच्छी बढ़त है। एर्दोगान जिस पाटा से संबंध रखते हैं वो साल 2002 से सत्ता में हैं और खुद 2003 से (तब प्राधानमंत्री) सत्ता के शीर्ष पर बने रहे हैं। 60 लाख नए युवा वोटरों ने एर्दोगान के अलावा किसी और नेता को सत्ता में नहीं देखा है। शुरुआत में एर्दोगान प्राधानमंत्री थे। फिर साल 2016 में राष्ट्रपति बन गए। अब वह एक विशाल भवन में बैठकर पूरा देश चलाते हैं। तुर्विये की बढ़ती आबादी ने उन्हें महंगाईं के लिए दोषी ठहराया है, क्योंकि वो परंपरागत तरीके से ब्याज की दरों को बढ़ाने से इंकार करते रहे हैं। आधिकारिक मुद्रास्फीति की दर 50 प्रातिशत से ऊपर है। लेकिन शिक्षाविदों का कहना है कि यह वास्तव में 100 प्रातिशत से ज्यादा है। राष्ट्रपति एर्दोगान की सरकार की दो भूवंपों के बाद हालातों से निपटने के तरीके के लिए आलोचना की जा रही है। इस साल छह फरवरी को आए दोहरे भूवंप से हुईं तबाही के बाद मलबे में दबे लोगों की खोजबीन और लोगों के बचाव के तरीके को लेकर एर्दोगान और उनकी सत्तारूढ़ पाटा की आलोचना हुईं थी। इसके साथ ही उनकी सरकार तुर्विये में सालों तक वंस्ट्रक्शन की सही व्यवस्था को अपनाने और लागू करने में भी विफल रही है। भूवंप से प्राभावित 11 प्रांतों में लाखों तुर्विये नागरिक बेघर हो गए। चूंकि कईं इलाकों में एर्दोगान की पाटा के गढ़ के तौर पर देखा जाता है इसलिए देश का पूवा इलाका जीत और हार तय कर सकता है। उनकी एक पाटा की राजनीति इस्लाम की तरफ झुकी है। लेकिन उन्होंने अति राष्ट्रवादी पाटा एमएचपी के साथ गठबंधन किया है। 26 मार्च 2023 को इस्तांबुल, तुर्विये में एक सार्वजनिक कार्यंव््राम के दौरान विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पाटा (सीएचपी) के नेता किलिदारोग्लू तुर्विये में ओपिनियन पोल हमेशा विश्वसनीय नहीं होते, लेकिन कमाल किलिदारोग्लू के पहले राउंड में सीधे चुनाव जीतने की उम्मीदों को तब झटका लगा जब वाम झुकाव वाली पाटा के एक पूर्व सहयोगी मुहर्रम इंस ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों में शामिल होने का पैसला किया। 14 मईं को वोट पड़ने हैं, देखें, एर्दोगान अपनी सत्ता को बरकरार रखेंगे या नहीं? ——अनिल नरेन्द्र

समलैंगिक शादियों से परिवार संस्था नष्ट हो जाएगी

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाईं के बीच 121 पूर्व जजों, छह पूर्व राजदूतों समेत 101 पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। समलैंगिक विवाह मुद्दे पर पत्र में कहा गया है कि इसको कानूनी वैधता प्रादान करने की कोशिशों से उन्हें धक्का पहुंचा है। पत्र में कहा गया है कि अगर इसकी अनुमति दी गईं तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। हमें लोगों की चिंता है। हमारा समाज सेम सेक्स यौन संस्वृति को स्वीकार नहीं करता। विवाह की अनुमति देने पर यह आम हो जाएगा। इससे परिवार और समाज नाम की संस्थाएं नष्ट हो जाएंगी। पत्र में कहा गया है कि हमारे बच्चों का स्वास्थ्य और सेहत दोनों खतरे में पड़ जाएंगे। पत्र में यह भी कहा गया है कि इस बारे में कोईं भी पैसला करने का अधिकार केवल संसद को है, जहां लोगों के प्रातिनिधि होते हैं। इससे पहले वेंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि अदालत न तो कानूनी प्रावधानों को नए सिरे से लिख सकती है, न ही किसी कानून के मूल ढांचे को बदल सकती है, जैसा कि इसके निर्माण के समय कल्पना की गईं थी। वेंद्र ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी देने संबंधी याचिकाओं में उठाए गए प्राश्नों को संसद के लिए छोड़ने पर विचार करें। पत्र में लिखा गया कि हम भारत के कर्तव्यनिष्ठ बुजुर्ग नागरिक लगातार हो रही घटनाओं से स्तब्ध हैं। हमारी बुनियादी सांस्वृतिक परंपराओं पर हमले हो रहे हैं। पत्र लिखने वालों में महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रावीण दीक्षित, जस्टिस कमलेश्वर नाथ, आर. राठौर, एसएन ढींगरा, वीजी बिष्ट, राजीव महर्षि, आईंएएस एलसी गोयल, शशांक सुधीर वुमार, गोपाल वृष्ण, मध्य प्रादेश के कर्नाटक दिल्ली मुंबईं उच्च न्यायालय के पूर्व जजों सहित देश के वरिष्ठ लोगों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर हो रही सुनवाईं के बीच वेंद्रीय विधि मंत्री किरिन रिजिजू ने कहा कि विवाह संस्था जैसा महत्वपूर्ण मामला देश के लोगों द्वारा तय किया जाना है। यह मामला केवल बहुसंख्यकों के धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। इस्लामिक धार्मिक संस्था जमीयत-ए-हिन्द द्वारा भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए गए हैं, जिसमें कहा गया है इस समलैंगिक विवाह जैसी धारणाएं पािमी संस्वृति से पैदा होती हैं जिसके पास कट्टरपंथी नास्तिक विश्व दृष्टि है और इसे भारत पर कतईं थोपा नहीं जाना चाहिए। बार काउंसिल ऑफ इंडिया की भी मजा है कि यह मामला वेंद्र सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए। इस केस में में सबसे जरूरी है कि संभल कर कदम बढ़ाए जाएं।

Thursday, 11 May 2023

गले की फांस बने राजाैरी व पुंछ जिले

पिछले 30 महीनों से अर्थात पिछले ढाईं सालों से एलओसी से सटे राजाैरी व पुंछ के जुड़वां जिले जंग के मैदान में बदल चुके हैं। यह जंग 26 सैनिकों और नौ नागरिकों की जान ले चुकी है। सेना के लिए गले की फांस बने दोनों जिलों में चिंता इस बात की है कि उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद स्थानीय नागरिक आतंकवाद की ओर मुड़ने लगे हैं। इन दोनों जिलों में पैली इस जंग के प्राति कहा जा रहा है कि मुकाबला अदृश्य दुश्मन से है। यह दुश्मन स्थानीय ओजीडब्ल्यू तो है ही, एलओसी के पास होने से उस पार से आने वाले विदेशी नागरिक भी हैं जिन पर नकेल नहीं कसी जा सकी है। जबकि आतंकी हमलों और नरसंहार की घटनाओं में शामिल सभी आतंकी फिलहाल गिरफ्त से बाहर हैं। इन दोनों जिलों में आतंकवादियों द्वारा सेना को लगातार निशाना बनाए जाने से सेना की परेशानी सैनिकों के मनोबल को बनाए रखने की हो गईं है। अक्तूबर 2021 के दो हमलों की तरह जिसमें नौ सैनिक मारे गए थे इस बार 17 दिनों के भीतर फिर से 10 सैनिकों को मारने वाले आतंकी स्नाइपर राइफलों और अत्याधुनिक हथियारों से लैस होने के साथ ही क्षेत्र से भलीभांति परिचित होने वाले बताए जा रहे हैं। एक अधिकारी के बकौल स्थानीय समर्थन के कारण ही वह पुंछ के भाटा धुनियां इलाके से राजाैरी के कड़ी क्षेत्र तक के 50-60 किलोमीटर के सफर को पूरा कर रहे हैं। पिछले 17 दिनों में आतंकियों के हाथों 10 जवानों की मौत राजाैरी और पुंछ के एलओसी से सटे इन जुड़वां जिले में कोईं पहली घटना नहीं थी बल्कि पांच अगस्त 2019 को धारा 370 हटाए जाने के बाद आतंकियों ने कश्मीर में इन जुड़वां जिलों की ओर रुख करते हुए पहले सूरनकोट के चमरेट इलाके में 11 अक्तूबर 2020 को पांच सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। इस हमले के बाद इसी आतंकी गुट ने पुंछ के भट्टा दुराईं इलाके में सैनिकों पर एक और घात लगाकर हमला किया तो चार सैनिक शहीद हो गए। जम्मू-कश्मीर के राजाैरी जिले के घने जंगली क्षेत्र में जारी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों ने शनिवार को एक आतंकी को मार गिराया, जबकि अन्य आतंकी के घायल होने की संभावना है। सेना ने यह जानकारी दी कि राजाैरी में जारी अभियान के दौरान शुव््रावार को आतंकियों ने सेना के पांच जवान शहीद किए और मेजर रैंक के एक अधिकारी घायल हो गए। इस घटना के बाद अब सेना ने ऑपरेशन त्रिनेत्र शुरू किया है। तलाशी अभियान के दौरान 280 से अधिक लोगों को वारदात के सिलसिले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। दरअसल ऑपरेशन त्रिनेत्र जैसे अभियानों की सफलता के लिए जरूरी है कि मुखबिरों का सहारा लिया जाए, इंटेलिजेंस और स्थानीय लोगों का ज्यादा से ज्यादा सहयोग लिया जाए। ——अनिल नरेन्द्र

आबकारी केस : भ्रष्टाचार के कोईं सुबूत नहीं हैं

आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े मामले में दो आरोपियों को राउज एवेन्यू कोर्ट से जमानत मिलने के बाद आम आदमी पाटा ने कोर्ट के आदेश के हवाले से दावा किया है कि इस मामले में सीबीआईं और ईंडी के पास कोईं सुबूत नहीं है। आम आदमी पाटा ने प्राधानमंत्री और भाजपा से मांग की कि पिछले एक साल से पूरे देश को गुमराह करने और आम आदमी पार्टी के साथ अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को बदनाम करने के लिए वह देश और जनता से माफी मांगें। सीएम अरविन्द केजरीवाल ने भी ट्वीट करके कहा—अब तो कोर्ट ने भी कह दिया है कि इस मामले में रिश्वत या मनी लांड्रिंग का कोईं ठोस सुबूत नहीं है। रविवार को दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने पाटा कार्यांलय में एक प्रोस कांप्रोंस की। उन्होंने दावा किया कि शनिवार को राउज एवेन्यू कोर्ट ने इस केस के आरोपी राजेश जोशी और गौतम मल्होत्रा को जमानत देते हुए 85 पेज का जो ऑर्डर जारी किया है, उससे यह बात सामने आईं है कि ईंडी के पास इस मामले में कोईं सुबूत नहीं हैं। आतिशी ने कहा कि इस केस में दो मुख्य आरोप थे। पहला आरोप था कि नईं शराब नीति बनाने की एवज में शराब कारोबारियों से 100 करोड़ रुपए की रिश्वत ली गईं। दूसरा यह कि 100 करोड़ रुपए आम आदमी पाटा ने गोवा के चुनाव में लगाए, लेकिन कोर्ट के ऑर्डर से पता चलता है और यह स्पष्ट हो गया कि सीबीआईं और ईंडी के पास एक नए पैसे के भ्रष्टाचार का सुबूत नहीं है। आतिशी के मुताबिक आदेश में बार-बार जज ने एक ही बात दोहराईं है कि ईंडी ने कोईं सुबूत सामने नहीं रखा है। यहां तक कि 100 करोड़ रुपए के अमाउंट की बात कहां से आईं, यह भी स्पष्ट नहीं है। क्योंकि ईंडी ने अपनी चार्जशीट में केवल 30 करोड़ रुपए की बात कही है और इसके लेनदेन का भी कोईं सुबूत ईंडी पेश नहीं कर पाईं है। उन्होंने दावा किया कि पर्चियों के माध्यम से 30 करोड़ रुपए के लेनदेन का आरोप भी कोर्ट में साबित नहीं हो पाया। इस रकम के गोवा चुनाव में इस्तेमाल करने का जो आरोप था, उसे लेकर ईंडी ने कोर्ट में कहा है कि आप ने गोवा के चुनाव में केवल 19 लाख रुपए वैश में खर्च किए। बाकी सारी पेमेंट चेक से हुईं। आतिशी ने कहा कि एक तरह से ईंडी ने साबित कर दिया कि आम आदमी पाटा देश की सबसे ईंमानदार पाटा है। साथ ही कोर्ट के आदेश ने सीबीआईं और ईंडी का भी पर्दाफाश कर दिया है। इससे साफ है कि यह चार्जशीट पीएमओ में लिखी जाती है और एजेंसियों को देकर आरोपों को साबित करने के लिए गवाह और सुबूत लाने को कहा जाता है। अदालत ने अपने ऑर्डर के पैरा 74 में स्पष्ट कहा है कि ऐसा कोईं सुबूत सामने नहीं आया जिससे रिश्वत का मामला साबित होता है।

Tuesday, 9 May 2023

18 मर्डर, कोर्ट में सगाईं और बेल पर शादी

यह कहानी है पािमी उत्तर प्रादेश के वुख्यात गैंगस्टर अनिल दुजाना उर्प अनिल नागर की। अनिल का मेरठ में हुए मुठभेड़ के दौरान मौत का दावा किया गया है। यूपी एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश ने कहा—वांछित अपराधी अनिल दुजाना को हमारी टीम ने गुरुवार दोपहर मेरठ के एक गांव में घेरा। दुजाना ने भागने के इरादे से हमारी टीम पर गोली चलाईं और जवाबी कार्रवाईं में वो मारा गया। यूपी पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्राशांत वुमार ने मीडिया को बताया कि एटीएस और बदमाशों के बीच मुठभेड़ हुईं। इस मुठभेड़ में गैंगस्टर अनिल दुजाना घायल हुआ। बाद में उसकी मृत्यु हो गईं। वह चार पहिया गाड़ी से यात्रा कर रहा था। उसके पास से दो पिस्तौल और भारी मात्रा में कारतूस बरामद हुए हैं। पािमी यूपी के बड़े गैंगस्टरों में से एक माना जाने वाला अनिल दुजाना हफ्तेभर पहले ही जेल से बाहर आया था। दुजाना पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानन (रासुका), आम्र्स और गैंगस्टर एक्ट के तहत भी केस दर्ज किए गए थे। माना जाता है कि अनिल दुजाना का खौफ दिल्ली-एनसीआर में भी पैला था। यूपी पुलिस ने दुजाना के सिर पर इनाम भी रखा था। अनिल दुजाना की वुख्यात माफिया सुंदर भाटी और उसके गैंग से रंजिश रही है। इस रंजिश में यूं तो अब तक कईं हत्याएं हो चुकी हैं, लेकिन जब अनिल दुजाना ने अपराध की दुनिया में कदम रखा था तो उस समय यह दोनों साथ काम कर रहे थे। पािमी यूपी में गैंगवार की शुरुआत महेंद्र फौजी और सतबीर गुर्जर की दुश्मनी से हुईं थी। दोनों 1990 के दशक में एनकाउंटर में मारे गए थे। साल 2000 से पहले अनिल दुजाना सुंदर भाटी के लिए अवैध सरिये का कारोबार करता था। दुजाना ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए सुंदर भाटी के नाम का सहारा लिया और धीरे-धीरे उसका वर्चस्व बढ़ता गया। साल 2004 की बात है, जब सुंदर भाटी गैंग ने नरेश भाटी की हत्या कर दी थी। यूपी एसटीएफ के अनुसार अगले ही साल यानि 2005 में नरेश भाटी की हत्या का बदला लेने के लिए उनके छोटे भाईं रगपाल भाटी ने सुंदर भाटी के भतीजे लाला फौजी की हत्या कर दी। तभी से अनिल दुजाना और सुंदर भाटी गैंग के बीच गैंगवार चली आ रही थी। 2011 में सुंदर भाटी को मारने के लिए उनके भांजे की शादी में ही रणदीप भाटी और अमित कसाना ने अनिल दुजाना के साथ मिलकर एके-47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं। हालांकि इस हमले में सुंदर भाटी बच निकला। लेकिन इस हमले में तीन लोगों की मौत हो गईं। इसी मामले में साल 2012 में अनिल दुजाना को पुलिस ने पकड़ा और जेल भेज दिया। साल 2014 में सुंदर भाटी ने अपने ऊपर हुए हमले का बदला लिया और अनिल दुजाना के भाईं की हत्या कर दी। 21 साल पहले दर्ज हुआ हत्या का पहला केस 2002 में गाजियाबाद से दुजाना की अपराध की कहानियां शुरू हुईं। अब यूपी पुलिस के अनुसार अनिल दुजाना पर हत्या के 18 मामले दर्ज हैं। कोर्ट में पेशी के दौरान सगाईं, फिर बेल पर शादी दुजाना ने जेल से की और जेल में रहते हुए दुजाना ने 2015 में जिला पंचायत चुनाव लड़ा और जीता। ——अनिल नरेन्द्र

जंतर-मंतर में दंगल जारी है

सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलनकारी पहलवानों की याचिका पर सुनवाईं यह कहते हुए बंद कर दी कि उन्हें सुरक्षा दे दी गईं है, जिन्होंने ब्रजभूषण शरण सिह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं। अदालत ने आगे कहा कि इस पर एफआईंआर दर्ज हो चुकी है। याचिकाकर्ताओं को अब आगे की कार्रवाईं के लिए कोर्ट या निचली अदालत में जाना चाहिए। गुरुवार को जब यह पैसला आया उसी रात को पहलवानों के साथ दिल्ली पुलिस की झड़प भी हुईं। इस झड़प में कईं पहलवानों को चोट भी आईं। दिल्ली पुलिस का दावा है कि पहलवानों ने आरोपों से संबंधित कोईं भी साक्ष्य नहीं दिए हैं। पर द इंडियन एक्सप्रोस अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में भारतीय वुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिह पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों का ब्यौरा प्राकाशित किया है। रिपोर्ट के मुताबिक ब्रजभूषण शरण सिह पर आरोप लगाने वाली सात में से दो महिला पहलवानों ने पुलिस को दी शिकायत में कईं बार यौन उत्पीड़न किए जाने का जिव््रा किया है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक यह शिकायतें 21 अप्रौल को दिल्ली के कनॉट प्लेस थाने में दी गईं थी। इनमें कम से कम आठ घटनाओं का जिव््रा है। दोनों शिकायतकर्ताओं ने दावा किया है कि ब्रजभूषण शरण सिह ने उनकी सांस जांचने के बहाने उन्हें गलत तरीके से छुआ और यौन उत्पीड़न किया। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इन घटनाओं की वजह से उनका शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ है। अपनी शिकायत में एक महिला पहलवान ने सिह पर कम से कम पांच अलग-अलग घटनाओं के दौरान यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं। एक घटना 2016 के एक टूर्नामेंट के दौरान की है जब एक रेस्तरां में कथित रूप से ब्रजभूषण शरण सिह ने महिला पहलवान को अपने पास बुलाकर गलत तरीके से उसकी छाती और पेट को छुआ। अपनी शिकायत में महिला पहलवान ने कहा कि इस घटना के बाद वो खाना तक नहीं खा पाईं थी और उसकी नींद खराब हो गईं थी जिसकी वजह से वो अवसाद में चली गईं। महिला पहलवान का आरोप है कि सिह ने 21 अशोक रोड स्थित अपने बंगले में भी उसे गलत तरीके से छुआ। ब्रजभूषण शरण सिह के इसी संसदीय निवास में भारतीय वुश्ती संघ का दफ्तर भी है। महिला पहलवानों ने आरोप लगाया है कि पहले दिन सिह ने उसकी जाघों और वंधों को छुआ और दूसरे दिन उसकी छाती और पेट को यह कहते हुए गलत तरीके से छुआ कि वह उसकी सांस की जांच कर रहे हैं। ऐसे आरोप कईं पहलवानों ने भी लगाए हैं। सवाल अब यह है कि अगर इन महिला पहलवानों ने ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं तो पुलिस को इनकी अविलंब जांच करके, अगर इनमें सच्चाईं है तो ब्रजभूषण शरण सिह को तुरन्त गिरफ्तार करके उचित कार्रवाईं करनी होगी। अब जंतरमंतर पर धरने पर बैठे पहलवानों का समर्थन बढ़ता जा रहा है। इससे पहले कि कोईं और अप््िराय घटना घटे समस्या का समाधान होना चाहिए।

Thursday, 4 May 2023

एकनाथ शिदे सरकार का भविष्य?

एकनाथ शिदे के नेतृत्व में शिवसेना में पिछले साल हुईं टूट और 16 विधायकों की योग्यता पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आने वाले पैसलों को लेकर अटकलों का बाजार गरम हो रखा है। शीर्ष अदालत के संभावित पैसले में महाराष्ट्र की राजनीति में एक और भूचाल आने या न आने के बारे में जमकर चर्चा हो रही है। लोग जानना चाहते हैं कि विपक्ष के नेता अजीत पवार सरकार बचाने के लिए क्या उसका समर्थन करेंगे? चर्चा मुख्यमंत्री बदलने और दल-बदल फिर शुरू होने को लेकर भी चल रही है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के नेता संजय राउत ने बीते दिनों भविष्यवाणी वाले अंदाज में कहा—यह सरकार टिकने वाला नहीं है। इस सरकार का डेथ वारंट जारी हो चुकी है। अब सिर्प एक बात तय होनी है कि इस पर कब और कौन दस्तखत करता है। इससे वुछ दिन पहले संजय राउत ने कहा था कि दल-बदल का दूसरा सीजन फिर शुरू होने वाला है। हालांकि ऐसी भविष्यवाणी केवल संजय राउत ही नहीं, कईं और नेता भी ऐसा कह रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इस सरकार के अस्थिर होने के दावे क्यों किए जा रहे हैं? इसके पीछे दो वजह बताईं जा रही हैं। पहला कारण वर्तमान सरकार के सामने मौजदा कानूनी अड़चनें हैं और दूसरा कारण दलगत राजनीति है। संजय राउत के सरकार गिर जाएगी वाले बयान के बाद उनके संपादन में छपने वाले शिवसेना के मुखपत्र सामना में मंगलवार 25 अप्रौल को एक लेख प्राकाशित हुआ। इस लेख में भी भविष्यवाणी की गईं है कि सीएम एकनाथ शिदे अपना पद छोड़ देंगे। इस आलेख में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस पर तंज कसा गया है। इसके अनुसार सीएम बनने की उम्मीद पाले फड़नवीस के साथ पिछली बार जो हुआ, लगता है इससे अभी तक वो उबरे नहीं हैं और अब विखे पाटिल या अजीत पवार के नाम की चर्चा हो रही है। आलेख में लिखा गया है कि शिदे समूह मुख्यमंत्री की वुसा बचाने के लिए बेताब है। मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना के बारे में एनसीपी के वरिष्ठ नेता छग्गन भुजबल से जब पूछा गया तो उन्होंने भी इस संभावना से इंकार नहीं किया। भुजबल ने कहा—दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट का पैसला अगर शिदे के खिलाफ गया तो मुख्यमंत्री बदला जा सकता हैं, लेकिन सरकार नहीं गिरेगी। हमने अखबार में पढ़ा है कि 16 विधायकों का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसमें निर्णय 16 विधायकों के खिलाफ होगा। उनके विधायक हार जाएंगे। अयोग्य ठहराए जाने वाले विधायकों में एकनाथ शिदे भी शामिल होंगे। अगर उन्हें अयोग्य ठहराया गया तो वो सीएम का पद छोड़ देंगे और उनकी जगह नया मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, तो मौजूदा सरकार के पास 165 विधायकों का समर्थन रहेगा। 16 अयोग्य होने के बाद भी 149 विधायक होंगे इसलिए मुख्यमंत्री तो बदला जाएगा पर सरकार बरकरार रहेगी। ——अनिल नरेन्द्र

अरविन्द केजरीवाल का राजमहल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के मुख्यमंत्री आवास के सौंदयाकरण पर करोड़ों खर्च के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इस मसले पर जहां राजनिवास व दिल्ली सरकार के बीच में ठन गईं है, वहीं भाजपा ने इस मुद्दे पर लड़ाईं करने का मन बना लिया है। भाजपा ने डॉ. हर्षवर्धन के नेतृत्व में मुख्यमंत्री आवास के नजदीक अनिाितकालीन धरना देने का पैसला किया है। भाजपा की मांग है कि मुख्यमंत्री अपने महलरूपी बंगले को मीडिया के माध्यम से सभी दिल्लीवासियों को देखने का मौका दें। भाजपा प्रादेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि दिल्ली सरकार एक अकर्मड भ्रष्ट सरकार है जो केवल अपने नेताओं की स्वार्थसिद्धि एवं वोट बैंक निर्माण के लिए काम करती है। इस सरकार ने शिक्षा व््रांति की बात की तो वहां स्वूल-रूम घोटाला किया, सार्वजनिक परिवहन की बात कही तो मेट्रो के चौथे पेज को लटका दिया और बस खरीदने में घोटाला किया, स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोरोनाकाल तक घोटाले किए व दिल्ली को मोहल्ला क्लीनिक जैसा छलावा दिया। इसी तरह मुफ्त बिजली-पानी के नाम पर बिजली छूट घोटाला किया। उन्होंने कहा कि यह आार्यंजनक है कि इतने घोटाले करके भी मुख्यमंत्री का मन नहीं भरा और उन्होंने अपने राजमहलरूपी बंगले को लेकर भी ऐसे टाइम में घोटाला किया जब दिल्ली में कोरोना अपने विकराल रूप में था और रोजाना सैकड़ों लोगों की जान जा रही थी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अपने महलरूपी बंगले को मीडिया के माध्यम से सभी दिल्लीवासियों को देखने का मौका दें। उधर मुख्यमंत्री आवास के सौंदयाकरण पर करोड़ों खर्च के मामले में राजनिवास और दिल्ली सरकार आमने-सामने आ गईं है। बीते दिनों उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इस मामले में संज्ञान लेकर अधिकारियों को सीएम आवास के सौंदयाकरण पर हुए खर्च का रिकॉर्ड सुरक्षित रखने और 15 दिन में मामले की रिपोर्ट तलब की। इस पर दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने मुख्यमंत्री आवास सौंदयाकरण के दस्तावेज जमा करने के आदेश को असंवैधानिक करार दिया है। इस आरोप पर उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली सरकार को खुला चैलेंज किया है। कहा कि राजनिवास सौंदर्यंकरण में महज 15 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उन्होंने कहा कि राजनिवास सबके लिए खुला है। कोईं भी आकर देख सकता है। उधर भाजपा लगातार मांग कर रही है कि मुख्यमंत्री आवास को भी देखने की अनुमति कम से कम मीडिया को मिलनी चाहिए ताकि आम जनता देख सके कि 45 करोड़ रुपए की लागत से घर को वैसे शीश महल बनाया गया है। बंगले के निर्माण को लेकर वुछ नए दस्तावेज भी सामने आए हैं और भाजपा ने दावा किया है कि इस नवीनीकरण की आड़ में आसपास के और भी मकान आएंगे। इस योजना के तहत वर्तमान आवास के क्षेत्रफल को 4.27 एकड़ से बढ़ाकर 7.45 एकड़ किए जाने की तैयारी है। भाजपा प्रावक्ता हरीश खुराना ने यह जानकारी दी है।

Tuesday, 2 May 2023

कर्नाटक की वुसा पर कौन बैठेगा?

कर्नाटक में प्राचार के मुश्किल से 10-11 दिन रहते प्राचार के बाण और घमासान अपने चरम पर है। भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। पीएम मोदी, राजनाथ सिह, अमित शाह, जेपी नड्डा कईं अन्य वेंद्रीय मंत्री और बड़े नेताओं ने प्राचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रोस की तरफ से प््िरायंका गांधी वाड्रा, मल्लिकार्जुन खड़गे और जेडीएस की तरफ से एचडी देवेगौड़ा प्राचार को धार दे रहे हैं। जहरीले सांप और विष कन्या जैसे बोल भी अन्य मुद्दों के अलावा छा रहे हैं। एबीपी-सी वोटर के ताजा सव्रेक्षण के अनुसार कर्नाटक में कांग्रोस नम्बर वन पाटा के रूप में उभरी है। उसके अनुसार कांग्रोस को 40 प्रातिशत वोट शेयर मिल रहा है और सीटों के हिसाब से उसे 107-119 के बीच सीटें मिल सकती हैं। वहीं भाजपा का वोट शेयर 35 प्रातिशत है और उसके हिस्से में 74-86 सीटें आ सकती हैं। जेडीएस तीसरे नम्बर पर 17 प्रातिशत वोट शेयर और 23-25 सीटें ले सकती है। भाजपा और कांग्रोस के सामने जो चुनौतियां हैं, वो एकदम अलग हैं। दोनों पार्टियों में से किसी की भी कोईं गलती उनके लिए सांप और सीढ़ी का खेल बन सकती है। चुनाव के तीसरे दावेदार जनता दल (सेक्युलर) भाजपा और कांग्रोस में से किसी के लड़खड़ाने का इंतजार कर रही है ताकि वह किग न सही, किग मेकर तो बन सके। जेडीएस की इच्छापूर्ति इस बात पर निर्भर करती है कि राज्य की राजनीति के प्रामुख दावेदारों यानि कांग्रोस और भाजपा अपनी चुनौतियों का सामना वैसे करते हैं। यदि भाजपा या उसके विधायक एंटी इंकमबैंसी (सत्ता विरोधी लहर) व भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, तो कांग्रोस ऐसी जमीन पर चल रही है, जो पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। वुछ हफ्ते पहले राज्य के सामने जितने विवादित मामले थे, अब उतने मुद्दे नहीं बचे हैं। उदाहरण के तौर पर संशोधित आरक्षण नीति को अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताईं है। हालांकि वेंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कईं जगहों पर मुसलमानों के लिए आरक्षण हटाने को सही ठहराया और विवाद में पंसाने के लिए कांग्रोस के सामने चारा पेंक दिया हैं। अमित शाह ने एक जनसभा में यह भी कहा कि अगर कर्नाटक में कांग्रोस की सरकार चुनी जाती है तो राज्य में सांप्रादायिक दंगे होंगे। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक में सांप्रादायिक मुद्दे इतने चरम पर पहुंच गए हैं। शाह के अलावा बाकी नेताओं के नेरेटिव में अचानक बदलाव होना काफी महत्वपूर्ण है। इससे पता चलता है कि राज्य में तीनों दल बड़ी सावधानी से काम कर रहे हैं। 10 मईं को होने वाला मतदान तय करेगा कि अगले पांच साल तक कर्नाटक में कौन राज करेगा। ——अनिल नरेन्द्र

आनंद मोहन की रिहाईं पर बवाल

पूर्व सांसद और बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की 15 साल बाद जेल से रिहाईं पर न केवल बिहार बल्कि पूरे देशभर में हंगामा हो गया है। गोपाल गंज डीएम जी वृष्णैया हत्याकांड में तय सजा (14 साल) से डेढ़ साल ज्यादा जेल में गुजार कर गत गुरुवार की सुबह सहरसा जेल से बाहर निकले पूर्व सांसद आनंद मोहन ने इस बात को सिरे से नकारा कि सत्ताधारी जमात ने चुनावी फायदे के लिए कानून बदलकर उनको जेल से छुड़ाया? उन्होंने कहा—यह बिल्वुल गलत बात है। मेरी रिहाईं का विरोध करने वाले दरअसल संविधान और कोर्ट को नकार रहे हैं, उसका अपमान-अवमानना कर रहे हैं। ध्यान रहे कि भाजपा व जी वृष्णैया का परिवार आनंद की रिहाईं की यही वजह बता रहे हैं। उन्होंने कहा—संविधान की मूल आत्मा, समानता के अधिकार पर आधारित है। यह आम और खास में कोईं अंतर नहीं करती। हर आदमी का, चाहे वह जो हो, की जान की कीमत को एक मानती है। सबके लिए एक तरह के न्याय व कानून की बात करती है। लेकिन व्यवहारिक रूप में ऐसा था नहीं, किसी राज्य में कोईं नौ साल की सजा के बाद छूटा, तो कहीं 11 या 16 साल में छूटता रहा है। यह एकरूपता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट लगातार राज्यों को इसमें एकरूपता लाने की बात कहती रही है। दरअसल गोपाल गंज के जिलाधिकारी जी. वृष्णैया की हत्या में पहले फांसी, फिर उम्रवैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को बिहार सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव कर रिहा किया है। सरकार ने सरकारी कर्मचारी की हत्या करने वाली धारा हटा दी, जिससे मोहन की रिहाईं संभव हो सकी। सरकार लाख दलील दे कि किसी भी शख्स की रिहाईं जेल में उसका आचरण और अनुशासन के आधार पर तय होती है। मगर आनंद मोहन की छवि राज्य में वैसी रही है यह तथ्य जगजाहिर है। यही वजह है कि राज्य में इस मसले पर राजनीति भी जमकर हो रही है। आलोचकों का तर्व है कि गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन की रिहाईं राजपूत समुदाय को खुश करने का प्रायास है, जो वर्षो से उनकी रिहाईं की मांग कर रहा है। दूसरी ओर विपक्षी दलों विशेष रूप से दलित हितों का प्रातिनिधित्व करने वालों ने इस पैसले की कड़ी निंदा की है। उनका दावा है कि यह न्याय को कमजोर करता है और जाति आधारित हिसा के अपरधियों को एक खतरनाक संदेश भेजता है। आनंद मोहन की रिहाईं ने बिहार में भी जनमत को विभाजित कर दिया है। यह समाज के वुछ वर्ग इसे सुलह और माफी की दिशा में एक कदम मानते हुए उनकी रिहाईं का समर्थन कर रहे हैं, वहीं अन्य इसे न्याय के साथ विश्वासघात और दलित, संप्रादाय के अधिकारों की अवहेलना के रूप में देखते हैं। यह मुद्दा अत्याधिक ध्रुवीवृत हो गया है, जिसमें सभी के राजनीतिक तेवर उलझे हुए हैं।