Tuesday 23 May 2023

अध्यादेश को भी चुनौती दी जा सकती है?

वेंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के अधिकारों के मामले में अध्यादेश लाया गया है जिससे एलजी के पास वह सभी अधिकार हैं जो सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक पैसले के बाद आए थे। अब आगे क्या होगा क्योंकि दिल्ली सरकार ने वेंद्र के अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अब मामला आगे किस रूप में बढ़ेगा फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन वुछ पुराने मामलों पर नजर डालें तो यह समझा जा सकता है कि इस तरह के टकराव की स्थिति में क्या हो सकता है। बहुचर्चित एससी/एसटी एक्ट मामला : एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले में अग््िराम जमानत के प्रावधान को खत्म करने के लिए वेंद्र सरकार के कानून को सुप्रीम कोर्ट ने 10 फरवरी 2020 को बहाल रखा था। एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम 2018 कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को वैध ठहराया है। दरअसल 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के गिरफ्तारी के प्रावधान को हल्का कर दिया था और अंतिम जमानत का प्रावधान कर दिया था। साथ ही एफआईंआर से पहले प्रारंभिक जांच का प्रावधान कर दिया था। इस पैसले के बाद वेंद्र सरकार ने संसद के जरिये कानून में बदलाव किया और पहले के कानूनी प्रावधानों को बहाल कर दिया। इस कानूनी बदलाव के तहत वेंद्र सरकार ने अंतिम जमानत के प्रावधान को खत्म कर दिया था। वेंद्र सरकार के कानूनी बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं थी जिस पर सुनवाईं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पैसला सुनाया और वेंद्र के कानून को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एमएल लौहारी बताते हैं कि दिल्ली सरकार अध्यादेश को चुनौती दे सकता है। कोईं भी ऑर्डिनेंस या कानून ज्यूडिशियल स्व््राूटनी के दायरे में है या नहीं? तमाम ऐसे उदाहरण हैं जब वेंद्र सरकार के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं है। कईं बार वह ज्यूडिशियल स्व््राूटनी में टिकी है और कईं बार नहीं टिक पाईं। सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिह बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जब भी कोईं पैसला देती है तो वह संविधान की व्याख्या करती है। संविधान में जो अनुच्छेद और प्रावधान है उसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट व्याख्या करती है और अपना पैसला सुनाती है। मौजूदा मामले में भी अनुच्छेद-239एए के तहत जो संवैधानिक प्रावधान है उस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने व्याख्या की और विस्तार से व्याख्या के बाद ही पैसला दिया है कि एलजी लिस्ट तीन अपवाद को छोड़कर बाकी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह मानने को बाध्य है। अब देखते हैं कि वेंद्र के इस नए अध्यादेश में सुप्रीम कोर्ट क्या पैसला करता है।

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