Friday, 12 May 2023
समलैंगिक शादियों से परिवार संस्था नष्ट हो जाएगी
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाईं के बीच 121 पूर्व जजों, छह पूर्व राजदूतों समेत 101 पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। समलैंगिक विवाह मुद्दे पर पत्र में कहा गया है कि इसको कानूनी वैधता प्रादान करने की कोशिशों से उन्हें धक्का पहुंचा है। पत्र में कहा गया है कि अगर इसकी अनुमति दी गईं तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। हमें लोगों की चिंता है। हमारा समाज सेम सेक्स यौन संस्वृति को स्वीकार नहीं करता। विवाह की अनुमति देने पर यह आम हो जाएगा। इससे परिवार और समाज नाम की संस्थाएं नष्ट हो जाएंगी। पत्र में कहा गया है कि हमारे बच्चों का स्वास्थ्य और सेहत दोनों खतरे में पड़ जाएंगे। पत्र में यह भी कहा गया है कि इस बारे में कोईं भी पैसला करने का अधिकार केवल संसद को है, जहां लोगों के प्रातिनिधि होते हैं। इससे पहले वेंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि अदालत न तो कानूनी प्रावधानों को नए सिरे से लिख सकती है, न ही किसी कानून के मूल ढांचे को बदल सकती है, जैसा कि इसके निर्माण के समय कल्पना की गईं थी। वेंद्र ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी देने संबंधी याचिकाओं में उठाए गए प्राश्नों को संसद के लिए छोड़ने पर विचार करें। पत्र में लिखा गया कि हम भारत के कर्तव्यनिष्ठ बुजुर्ग नागरिक लगातार हो रही घटनाओं से स्तब्ध हैं।
हमारी बुनियादी सांस्वृतिक परंपराओं पर हमले हो रहे हैं। पत्र लिखने वालों में महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रावीण दीक्षित, जस्टिस कमलेश्वर नाथ, आर. राठौर, एसएन ढींगरा, वीजी बिष्ट, राजीव महर्षि, आईंएएस एलसी गोयल, शशांक सुधीर वुमार, गोपाल वृष्ण, मध्य प्रादेश के कर्नाटक दिल्ली मुंबईं उच्च न्यायालय के पूर्व जजों सहित देश के वरिष्ठ लोगों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर हो रही सुनवाईं के बीच वेंद्रीय विधि मंत्री किरिन रिजिजू ने कहा कि विवाह संस्था जैसा महत्वपूर्ण मामला देश के लोगों द्वारा तय किया जाना है। यह मामला केवल बहुसंख्यकों के धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। इस्लामिक धार्मिक संस्था जमीयत-ए-हिन्द द्वारा भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए गए हैं, जिसमें कहा गया है इस समलैंगिक विवाह जैसी धारणाएं पािमी संस्वृति से पैदा होती हैं जिसके पास कट्टरपंथी नास्तिक विश्व दृष्टि है और इसे भारत पर कतईं थोपा नहीं जाना चाहिए। बार काउंसिल ऑफ इंडिया की भी मजा है कि यह मामला वेंद्र सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए। इस केस में में सबसे जरूरी है कि संभल कर कदम बढ़ाए जाएं।
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