Tuesday, 6 June 2023
एफआईंआर में लगे बृजभूषण पर संगीन आरोप
जब एक महीने तक विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया दिल्ली के जंतर-मंतर में धरना-प्रादर्शन पर बैठे तो उन्होंने कभी रोते हुए, कभी सहजता से, बार-बार डर का जिव््रा किया। यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत का अपने वैरियर को खत्म होने का और यहां तक कि अपनी जान जाने का डर, अब जब महिला पहलवानों द्वारा अप्रौल में दायर की गईं यौन उत्पीड़न की एफआईंआर की जानकारी सामने आईं है, तो उसमें भी हर पóो पर उस डर का जिव््रा है। इंडियन एक्सप्रोस ने लगातार दो दिन पहले पóो पर इस एफआईंआर की तफ्सील से डिटेल दी है। महिलाओं के खिलाफ हिसा के कईं मामलों पर काम कर चुकी सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील वृंदा ग्राोवर ने कहा—नाबालिग समेत सभी महिलाओं के ब्यौरों में उनके उत्पीड़न के लिए बार-बार ताकत और सत्ता के गलत इस्तेमाल का उल्लेख है जो आईंपीसी और पॉक्सो दोनों के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। वुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा के सांसद ब्रजभूषण शरण सिह के खिलाफ एक नाबालिग समेत सात महिलाओं (पहलवानों) ने दो एफआईंआर दायर कराईं थी। एफआईंआर में सिह के अलावा वुश्ती महासंघ के कईं पहलवानों ने उनके साथ काम कर रहे एक और वरिष्ठ सदस्य के खिलाफ उत्पीड़न में अबैटमेंट यानि साथ देने का आरोप लगाया है। बृजभूषण शरण सिह और उस सदस्य ने सभी आरोपों से इंकार किया है। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिह के मुताबिक एक व्यक्ति के खिलाफ कईं महिलाओं की शिकायतें और उनमें एक तरह का पैटर्न उभरना उस व्यक्ति के चरित्र के बारे में बताता है। साथ ही शिकायतकर्ताओं के आरोपों को विश्वसनीयता भी देता है।
यह दो एफआईंआर महिला पहलवानों के थाने जाने पर नहीं, बल्कि उनके सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने और कोर्ट के दिल्ली पुलिस को नोटिस दिए जाने के जवाब में दायर हुईं। एफआईंआर में यौन उत्पीड़न से जुड़ी धाराओं 354, 354ए, 354डी) के अलावा पॉक्सो कानून की धरा (10) एग्रोबेटेड सेक्सुअल असॉल्ट (यानि गंभीर यौन हिसा) है। इन धाराओं में औरत की सहमति के बिना सेक्सुअल मंशा से उसकी सहमति के बिना उसे छूने की कोशिश करना, उससे यौन संबंध बनाने की मांग करना, अश्लील बातें करना, बार-बार पीछा करना इत्यादि शामिल हैं।
एफआईंआर में साल 2012 से 2022 के बीच घटी जिन अलग-अलग यौन उत्पीड़न की वारदातों का ब्यौरा है। उनमें कईं एक जैसी बातें दिखाईं देती हैं। इंदिरा जयसिह के मुताबिक शिकायतों में समानता पर उनकी सच्चाईं का प्रामाण नहीं माना जा सकता, पर वारदात की पुष्टि के लिए तहकीकात जरूरी है और सुबूतों और तथ्यों के बिनाह पर किसी मामले में अपराध साबित करना आसान हो सकता है और किसी में नहीं भी। वृंदा ग्राोवर के मुताबिक इस तहकीकात के लिए बृजभूषण शरण सिह के बयान लेना काफी नहीं है, उनकी हिरासत जरूरी है।
वो कहती हैं, एफआईंआर में जो ब्यौरा है, उनकी पुष्टि के लिए पुलिस हिरासत में पूछताछ की, कॉल रिकॉर्ड निकलवाना, गवाहों के बयान लेने की और फोन जब्त करने जैसे कदम उठाने की सख्त जरूरत है जिसे करने के लिए दिल्ली पुलिस इच्छुक नहीं दिखती। ब्यौरे में वुश्ती महासंघ के प्राशासन में 12 साल से अध्यक्ष होने की वजह से बृजभूषण शरण सिह के प्राभुत्व और ताकत का बार-बार उल्लेख है।
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