Friday 27 September 2024

ओडिशा में मेजर से बदसलूकी


ओडिशा पुलिस का बहुत ही वीभत्स चेहरा सामने आया है। यूं तो गाहे बगाहे पुलिस के आए दिन कुछ न कुछ कारनामें देखने व सुनने को मिलते रहते हैं। फिर चाहे वह अजमेर में महिला सिपाही के साथ रंगरेलियां मनाने का मामला हो या फिर सड़कों पर वसूली से लेकर हो लेकिन यह चेहरा तो उससे ज्यादा चौंकाने वाला और दरिंदगी का है। ओडिशा के भरतपुर थाने में सेना के मेजर और उनकी मंगेतर के साथ यौन उत्पीड़न, मारपीट का मामला सामने आया है। पीड़ित महिला ने आरोप लगाया है कि थाने के इंस्पेक्टर इंचार्ज और एक अन्य अधिकारी ने उनका यौन उत्पीड़न किया। पीड़ित महिला ने बताया कि उन लोगों ने मेरी जैकेट से ही मेरे हाथ बांधे। महिला कांस्टेबल के दुपट्टे से मेरे पैरों को बांधा और एक कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद एक पुलिस वाला आया और उसने मेरे ऊपर के कपड़े हटाकर मेरे सीने पर लगातार कई लातें मारी। भारतीय सेना के एक मेजर की मंगेतर ने बताया कि यह सब कैसे हुआ? ओडिशा हाईकोर्ट के जमानत मिलने के बाद पीड़िता ने भुवनेश्वर के पुलिस थाने में उसके साथ हुई अभद्रता का खुलासा किया। पीड़िता ने बताया वह अपने मंगेतर के साथ 15 सितम्बर की रात घर जा रही थीं। रास्ते में कुछ लोगों ने उनका रास्ता रोककर मारपीट की कोशिश की। वह पुलिस से मदद लेने के लिए भरतपुर पुलिस थाने पहुंची तो वहां सिर्फ एक महिला पुलिसकर्मी मौजूद थी। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने और आरोपियों के पीछे पुलिस टीम भेजने की मांग की तो महिला पुलिसकर्मी ने उनके साथ बदतमीजी की और गालियां दीं। इस पर मैंने बताया कि मैं एक वकील हूं और आप एफआईआर लिखें। इस दौरान कई पुलिसकर्मी आ गए और मेरे मंगेतर को जेल में डाल दिया। मैंने कहा कि आप एक सैन्य अधिकारी को जेल में नहीं डाल सकते। इतने पर दो महिला पुलिसकर्मियों ने मेरे बाल पकड़कर मेरे साथ मारपीट करनी शुरू कर दी। एक महिला पुलिसकर्मी ने मेरा गला दबाने की कोशिश की तो मैंने बचाव के लिए उसका हाथ काट लिया। इसके बाद मुझे एक कमरे में बंद कर दिया। कुछ देर बाद एक वरिष्ठ अधिकारी ने मेरी पैंट उतारकर मुझे रेप की धमकी दी। इस खुलासे के बाद जहां सेना के वरिष्ठ अधिकारी हरकत में आ गए वहीं पुलिस महानिदेशक वाई.बी. खुरानिया ने थाना के तत्कालीन इंस्पेक्टर दीन कृष्ण मिश्र के साथ 5 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इन पांचों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने की तैयारी की जा रही है। बताया जाता है कि पुलिसकर्मियों ने इस दौरान मेजर से भी अभद्रता की और उनका पर्स, फोन, आर्मी का आईडी कार्ड सहित कार की चाबी छीन ली। इस कथित उत्पीड़न की घटना का स्वत संज्ञान लेते हुए ओडिशा हाईकोर्ट ने सोमवार को घटना पर चिंता व्यक्त की और मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया दोनों को पीड़िता के नाम व पहचान प्रकाशित करने से रोक दिया। हाईकोर्ट ने राज्य के सभी 650 पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाने को लेकर प्रशासन की कड़ी आलोचना की। कोर्ट ने एक वरिष्ठ अधिकारी को 8 अक्टूबर तक इस पर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

-अनिल नरेन्द्र

तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ता मध्य पूर्व


ये यकीन करना मुश्किल है कि लेबनान में हिज्बुल्लाह के इस्तेमाल में आने वाले पेजरों और वॉकी-टॉकी में हुए धमाकों को सिर्फ एक हफ्ता ही बीता है। उसके बाद से अब तक हिज्बुल्लाह के लिए विनाशकारी बमबारी का एक सिलसिला ऐसा चला कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। संचार नेटवर्क में बाघा लड़ाकों पर हमले, उनके कमांडरों को चुन-चुन कर मारा जा रहा है, इस वजह से हिज्बुल्लाह इस समय अपने सबसे बुरे संकट का सामना कर रहा है। इजरायल ने हिज्बुल्लाह के गढ़ लेबनान में बड़े हमले किए हैं। इन हमलों में रिपोर्ट आने तक लगभग 564 मौतें हो चुकी हैं। लोग मलबे के नीचे दबे हैं और आशंका जताई जा रही है कि मरने वालों की संख्या और बहुत बढ़ेगी। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। कयास लगाई जा रही है कि इन हमलों के पीछे भी इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ है। मोसाद ने ही हाल में लेबनान में पेजर, वॉकी-टॉकी और सोलर प्लांट में धमाकों को अंजाम दिया था। इससे पूरे लेबनान में आतिशबाजी जैसे हालात पैदा हो गए थे। वहीं लेबनान में बड़े स्तर पर किए गए हमलों के बाद इजरायल ने देश में एक हफ्ते के लिए इमरजेंसी लगा दी है। असल में रविवार को हिज्बुल्लाह ने उत्तरी इजरायल में 100 से अधिक राकेट दागे थे। राकेट इजरायल के हाईफा शहर के पास गिरे थे। इस हमले में कई लोग घायल हो गए थे। वहीं राकेट हमले के बाद हिज्बुल्लाह के नेता नईम कासिम ने खुली लड़ाई का ऐलान किया था। जवाबी कार्रवाई में इजरायल ने दक्षिणी लेबनान में हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर जबरदस्त हमला किया। इजरायल ने हमास के साथ गाजा में युद्ध के बाद उत्तरी सीमा में मोर्चा खोल दिया है। इन हमलों के कारण लेबनान के उत्तरी क्षेत्र से लोगों का पलायन शुरू हो गया है। इजरायल के रक्षा मंत्री चावे गैलेंट ने कहा कि उत्तरी सीमा के निवासियों को अपने घरों में सुरक्षित वापसी तक हिज्बुल्लाह के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। उधर इतने ताबड़तोड़ हमलों के बावजूद हिज्बुल्लाह का न तो मनोबल गिरा है और न ही उसकी सैन्य कार्रवाई में कोई कमी आई है। हिज्बुल्लाह ने मंगलवार की तबाही के बाद बुधवार तड़के इजरायल पर लगभग 300 से अधिक राकेट दागे। लेबनान के साथ लड़ाई में सीरिया भी शामिल हो गया है। जब से इजरायल-गाजा-लेबनान की लड़ाई शुरू हुई है तब से पहली बार इजरायल की राजधानी तेल अवीव भी निशाने पर आ गया है। हिज्बुल्लाह ने राजधानी तेल अवीव को पहली बार अपने निशाने पर लेते हुए इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के हेड क्वार्टर को निशाना बनाकर कादर-वन बैलिस्टिक मिसाइल दागी। लेबनान की तरफ से मिसाइल दागे जाने का पता लगते ही पूरे सेंट्रल इजरायल में हवाई हमले के सायरन बजने लगे। इतना साफ है कि अब यह युद्ध रूकने वाला नहीं है। अगर इजरायल ने लेबनान पर जमीनी हमला किया तो हिज्बुल्लाह भी तैयार है। उस सूरत में हमास, हिज्बुल्लाह, ईरान, सीरिया और यमन (हूती) यानि पांच तरफों से इजरायल घिर जाएगा। अमेरिका इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा है। खबर है कि अमेरिका ने एक और एयरक्राफ्ट कैरियर और सैंकड़ों अतिरिक्त सैनिक इजरायल की मदद को भेजे हैं। अगर यह युद्ध बढ़ता है तो पूरा विश्व खतरे में आ जाएगा। कहीं तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत न हो जाए। उम्मीद है कि स्थिति इस नौबत तक नहीं पहुंचेगी।

Thursday 26 September 2024

दस साल बाद फिर जनता की अदालत में

आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली की सड़कों पर जनता की अदालत में पहुंचे। रविवार को केजरीवाल जंतर-मंतर पर जमकर गरजे। बहुत दिनों बाद अपने पुराने आक्रामक अंदाज में वह नजर आए। अरविंद केजरीवाल ने 22 सितम्बर को जंतर-मंतर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत से पांच सवाल पूछे। दरअसल ये सवाल से ज्यादा मोहन भागवत से पीएम मोदी के साथ गृहमंत्री अमित शाह की शिकायत की। केजरीवाल ने अपने भाषण में कई बार मोहन भागवत का नाम लिया और भाजपा संघ के रिश्ते पर भी बात की। केजरीवाल ने सवाल ऐसे समय पूछे हैं जब उनको मालूम है कि भाजपा और संघ के संबंधों में कड़वाहट चल रही है। केजरीवाल ने यह कहकर मोदी का कद कम दिखाने की कोशिश की है कि आरएसएस ही मुखिया है और उसे अपने बच्चों को नियंत्रण में रखना चाहिए। केजरीवाल ने कहा कि आरएसएस भाजपा की मां की तरह है, लेकिन आज भाजपा अपनी मां को आंखे दिखा रही है। केजरीवाल का यह बयान जेपी नड्डा की उस टिप्पणी के संदर्भ में आया है जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि भाजपा को आरएसएस की जरूरत नहीं है। केजरीवाल ने रविवार को जंतर-मंतर पर आयोजित जनता की अदालत में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से पांच सवाल पूछे। केजरीवाल ने पूछा कि क्या आरएसएस केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर राजनीतिक दलों को तोड़ने, विपक्षी दलों की सरकारें गिराने और भ्रष्ट नेताओं को अपने पाले में करने की भाजपा की राजनीति से सहमत है? क्या सेवानिवृत्त की आयु से संबंधित भाजपा का नियम प्रधानमंत्री मोदी पर भी लागू होता है, जैसा कि लालकृष्ण आडवाणी पर लागू हुआ था। क्या भागवत राजनीतिक नेताओं को भ्रष्ट कहने और फिर उन्हें अपने पाले में शामिल करने की भाजपा की राजनीति से सहमत हैं? उन्हेंने मोहन भागवत से पूछा कि जब भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने कहा कि उनकी पार्टी को आरएसएस की जरूरत नहीं है तो उन्हें कैसा लगा? केजरीवाल ने कहा कि अगर वह भ्रष्ट और बेईमान होते तो उनकी सरकार दिल्ली के लोगों को इतनी सुविधाएं नहीं दे पाती। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने तो मुझे जमानत दी। लेकिन भाजपा ने मुझ पर भ्रष्टाचार और बेईमानी करने के जो झूठे आरोप लगाए हैं, ये दाग लेकर मैं जी नहीं सकता। मेरी चमड़ी इतनी मोटी नहीं है केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से कहा कि अगर आपको लगता है कि वह बेईमान और भ्रष्ट हैं तो वोट मत देना। उन्होंने बताया कि वह श्राद्ध के बाद अपना सरकारी घर खाली कर देंगे और लोगों के बीच जाकर रहेंगे। उन्होंने आगे कहा? आज मेरे पास रहने के लिए कोई घर भी नहीं है। मैंने 10 साल से जनता का प्यार और आशीर्वाद कमाया है। इसी प्यार की वजह से कई लोग मुझे घरों में रहने के लिए बुला रहे हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने केजरीवाल से सवाल किया। सचदेवा ने कहा केजरीवाल आरएसएस से तो बाद में सवाल करें, पहले वह अन्ना हजारे के सवालों का जवाब दें। उन्होंने कहा कि केजरीवाल का राजनीतिक सफर खत्म होने की दिशा में बढ़ रहा है। देखें अब संघ केजरीवाल के सवालों का जवाब देता है या नहीं, देता है तो क्या देता है? -अनिल नरेन्द्र

जबरदस्ती दबाव डालने की रणनीति

पीएम नरेन्द्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए। इस यात्रा के दौरान की एक तस्वीर चर्चा में है। इस तस्वीर में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी है। भारत की तरफ से इस तस्वीर में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री और अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा नजर आए। इस तस्वीर और अमेरिकी दौरे में जिनके ना दिखने को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए वो हैं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजित डोभाल। ऐसा आमतौर पर माना जाता है कि भारतीय डिप्लोमैसी में तीन लोग अहम हैं। एक खुद पीएम मोदी, दूसरे विदेश मंत्री एस. जयशंकर और तीसरे एनएसए अजित डोभाल। आमतौर पर मोदी जी के साथ डोभाल साथ होते हैं। ऐसे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिर डोभाल अमेरिका क्यों नहीं गए? शायद ये पहली बार है जब डोभाल या कोई एनएसए पीएम के साथ अमेरिका न गया हो। अजित डोभाल का अमेरिका ना जाना कई कारणों से चर्चा में है। हाल ही में पीएम मोदी के दौरे से ठीक पहले अमेरिका में शीर्ष अधिकारियों ने खालिस्तान समर्थक नेताओं से मुलाकात की थी। यह मुलाकात व्हाइट हाउस में हुई थी। पिछले कई दिनों से अमेरिका खालिस्तानियों को लेकर भारत पर दबाव बना रहा है। यह अमेरिका की पुरानी कूटनीतिक ट्रिक है। क्या यह महज इत्तिफाक है कि पीएम के दौरे से ठीक कुछ दिन पहले अमेरिका के न्यूयार्क की एक अदालत में एक मुकदमा दर्ज होता है। खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के प्रयास के आरोपों को लेकर अमेरिका की एक अदालत ने भारत सरकार और शीर्ष अधिकारियों को समन जारी किया जिस पर विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पन्नू ने अमेरिका की एक न्यूयार्क अदालत में दीवानी मुकदमा दायर किया है। जिसका उद्देश्य पिछले साल सरेआम हरदीप सिंह निज्जर की मौत और उसके तुरन्त बाद उसकी (पन्नू की) हत्या की साजिश रचने में कथित संलिप्तता के लिए भारत सरकार को जवाबदेही ठहराया गया है। इस मामले के आधार पर न्यूयार्क के दक्षिणी जिले में यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने समन जारी किया है। इसमें भारत सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, रॉ के पूर्व अध्यक्ष सामंत गोयल, रॉ एजेंट विक्रम यादव और भारतीय व्यवसायी निखिल गुप्ता का नाम है। अदालत ने भारत सरकार से इस संबंध में 21 दिनों के भीतर जवाब मांगा है। न्यूयार्क की इस अदालत ने भारत के कई लोगों को समन किया था। इस समन में अजित डोभाल, निखिल गुप्ता, सामंत गोयल जैसे शीर्ष अधिकारियों के नाम हैं। 21 दिनों के अंदर इस समन का जवाब दिया जाना है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस समन को गैर-जरूरी बताया है। ऐसे में कुछ हल्कों में यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या डोभाल समन के कारण ही मोदी जी के साथ अमेरिका नहीं गए? हालांकि यह सच नहीं है। डोभाल कश्मीर चुनाव को बिना किसी अड़चन के संपन्न करवा रहे हैं। हमारा मानना है कि यह अमेरिका की नाजायज दबाव बनाने की रणनीति का एक हिस्सा है, ठीक पीएम के दौरे से पहले ऐसा बेहूदा केस रजिस्टर करना अपने आप में अमेरिका की दबाव नीति को दर्शाता है। सारी दुनिया जानती है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू माने हुए आतंकी हैं जो दिन-रात भारत के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। यह बात गहराई से रेखांकित होनी चाहिए कि आतंकी गतिविधियों में लिप्त अमेरिका और कनाडा जैसी जगहों के जंगल पर पनाह पाए पन्नू जैसे लोगों के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।

Tuesday 24 September 2024

इससे तो बदल जाएगा युद्ध का तरीका


हिज्बुल्लाह से जुड़े एक सांसद अली उमर के बेटे की पेजर फटने से मौत हो गई थी। लेबनान में 18 सितम्बर को वॉकी टॉकी में हुए धमाकों में अब तक 20 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 450 से ज्यादा घायल हैं। ये जानकारी लेबनान के स्वास्थ्य मंत्री ने दी है, वॉकी-टॉकी हिज्बुल्लाह इस्तेमाल करता रहा है। धमाके जिन जगहों पर हुए हैं वो हिज्बुल्लाह की पैठ वाले इलाके माने जाते हैं। 17 सितम्बर को पेजर फटने के कारण जिन लोगों की मौत हो गई थी, उनमें से कुछ की अंतिम यात्रा के दौरान वॉकी-टॉकी में धमाके हुए। हिज्बुल्लाह के सदस्यों की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले पेजर्स 17 सितम्बर को अचानक फटना शुरू हो गए थे। इन धमाकों के लिए हिजबुल्लाह ने इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है। इजरायल ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। बीते दिनों इजरायल के रक्षा मंत्री ने युद्ध का नया दौर होने की बात कही थी। इजरायली सेना को भी उत्तरी इलाके में तैनात किया गया था। लेबनान रेड क्रॉस का कहना है कि अलग-अलग इलाकों में हुए कई धमाकों के बाद उसकी टीमें देश के दक्षिण और पूर्व में ग्राउंड पर हैं। कई घायलों को राजधानी बेरूत और बालबेक के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। हिज्बुल्लाह के गढ़ कहे जाने वाले दक्षिणी बेरूत में चार लोगों की अंतिम यात्रा के दौरान भी एक धमाका हुआ। रायटर्स के मुताबिक हिज्बुल्लाह जिस कम्युनिकेशन डिवाइस का इस्तेमाल करता है उसमें दो धमाके हुए हैं। पेजर बम हमले में नए खुलासे हुए हैं। ताइवान की गोल्ड अपोलो कंपनी ने एआर-942 मॉडल के 5 हजार पेजर हंगरी की बीएसी कंपनी से बनवाए थे। अपोलो के बयान के अनुसार बीएसी कंपनी की बुडापोस्ट फैक्टरी जिनके ट्रेडमार्क का इस्तेमाल करती है। सप्लाई लाइन में प्रोडक्शन के समय ही पेजर में करीब 3 ग्राम विस्फोटक आरडीएक्स की चिप के साथ डाला गया था। लगभग पांच महीने पहले एआर-942 मॉडल के पेजर के बैच में विस्फोटक फिट किए थे। पेजर सैंड मैसेज जाते ही 10 सेकेंड तक वाईब्रेशन बीप की आवाज आई थी, यूजर द्वारा कैंसल बटन दबाने के बाद ब्लास्ट हुआ था। इजरायल के इस हमले बल्कि यूं कहें कि इस आक्रामक रवैये से ईरान और पश्चिम एशिया में साख पर चोट पहुंची है। इजरायल ने ईरान समर्थक लेबनान के हिज्बुल्लाह को निशाने पर लिया है। ऐसा कर इजरायल अब ईरान को भड़का रहा है, जिससे ईरान मजबूर होकर जवाब दे। बता दें कि हिज्बुल्लाह का पूरा नेटवर्क ईरान के समर्थन से चलता है। सवाल यह उठता है कि क्या इस घटना से बदल जाएगा युद्ध का तरीका? फिलहाल इस तरह के हमलों के लिए कई देश तैयार नहीं हैं, लिहाजा भारत की सुरक्षा एजेंसियों को भी चौकस रहना होगा। और इन टेक्नोलॉजी की तोड़ निकालनी होगी। कल को कल्पना कीजिए कि लोगों के टीवी फटने लग जाएं तो क्या होगा? एक्सपर्ट का कहना है पेजर अटैक जैसे नए अटैक से युद्ध के तरीके ही बदल जाएंगे। एजेंसियों का कहना है कि इस तरह से तो न केवल पेजर, बल्कि मोबाइल फोन, एलसीडी, लेपटॉप या ऐसी कोई डिवाइस जिसका कनैक्शन डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से किसी सर्वर से हो उसे उड़ाया जा सकता है कि नहीं खौफनाक सिनेरियो।

-अनिल नरेन्द्र

आस्था पर घात


आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू के एक बयान ने गुरुवार को भूचाल ला दिया है। दरअसल नायडू ने एक दिन पहले बताया था कि तिरुपति स्थित तिरुमला मंदिर में मिलने वाले प्रसादम लड्डू में एनिमल फैट (पशु चर्बी) के अंश मिले हैं। जिस घी को शुद्ध देसी घी बताकर लड्डुओं में मिलाया जा रहा था उसमें फिश ऑयल और एनिमल फैट है। जिस कंपनी से घी लिया जा रहा था, उससे करार खत्म कर ब्लैक लिस्ट कर रहे हैं। मामले की जांच विजिलेंस को सौंप दी गई है। एक साल पहले ही कंपनी को सप्लाई का टेंडर मिला था। नायडू ने वाईएसआरसीपी और पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी पर श्रद्धालुओं की आस्था और तिरुमला मंदिर की पवित्रता से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जगमोहन सरकार ने प्रसादम की पवित्रता खंडित की है। बता दें कि तिरुमला मंदिर दुनिया के सबसे लोकप्रिय और अमीर धर्म स्थलों में से है। यहां हर दिन करीब 70 हजार श्रद्धालु भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करते हैं। इस सनसनीखेज खबर ने करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था पर घात लगाई है। यहां के लड्डू बहुत प्रसिद्ध हैं। तिरुपति के लड्डू में जानवरों की चर्बी और मछली का तेल मिलाने को लेकर बवाल अयोध्या तक पहुंच गया है। यहां के संतों का आरोप है कि तिरुपति के एक लाख लड्डू राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी बांटे गए थे, जिससे पवित्र कार्यक्रम में अयोध्या पहुंचे लाखों लोगों की आस्था और सनातन धर्म पर चोट पहुंची है। राम जन्म भूमि मंदिर के पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने कहा कि तिरुपति लड्डू में मिलावट के पीछे अंतर्राष्ट्रीय साजिश नजर आती है। दरअसल आंध्र प्रदेश सरकार ने घी सप्लाई का काम 29 अगस्त को केएमएफ को फिर से दिया है। केएमएफ नंदिनी ब्रांड का देसी घी सप्लाई करता है। उधर टीटीडी ने घी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए चार सदस्यीय विशेष समिति बना दी है, तिरुमला मंदिर का प्रशासन तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) संभालता है। मंदिर परिसर में बनी 300 साल पुरानी किचन में शुद्ध देसी घी के रोज 3.50 लाख लड्डू बनते हैं। यह मंदिर का मुख्य प्रसाद है, जिसे करीब 200 ब्राह्मण बनाते हैं। लड्डू में शुद्ध बेसन, बूंदी, चीनी, काजू और शुद्ध देसी घी होता है। हर महीने 1400 टन घी मंदिर में लगता है। मंदिर भगवान वैसे चलता है। पर धंधा करने वाले की श्रद्धा न तो भगवान के प्रति है और न भक्तों के प्रति। वे तमाम मंदिर जो अपने यहां से प्रसाद वितरित करते हैं या बेचते हैं, उन सबकी गुणवत्ता जांच की व्यवस्था जरूर करनी चाहिए। दोषियों को बचाने या अपराध छिपाने से काम नहीं चलेगा। तमाम मंदिरों को गुणवत्ता जांच से गुजरना चाहिए। बहरहाल तिरुपति में लड्डुओं का वितरण तत्कालिक प्रभाव से रौंद दिया गया है। अशुद्ध मिलावटी आपूर्ति के लिए जिम्मेदार ठेकेदार को काली सूची में डालना और उस पर जुर्माना लगाना ही पर्याप्त नहीं है। मिलावटी विरोधी कानूनों के सबसे कड़े प्रावधान उस पर लागू होने चाहिए और सजा ऐसी मिलनी चाहिए कि एक मिसाल बन जाए। यह काम स्वयं मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को सुनिश्चित करना चाहिए। इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए। तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम में इस्तेमाल घी की गुणवत्ता को लेकर श्रद्धालुओं की चिंताओं के बीच तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने कहा कि इस पवित्र प्रसाद की शुमिता बहाल कर दी गई है, मीडिया पर एक पोस्ट पर कहा कि मिलावटी लड्डू की पवित्रता अब बेदाग है।

Saturday 21 September 2024

ट्रंप की हत्या की फिर कोशिश

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हत्या की एक बार फिर से कोशिश की गई। यह कोशिश उस समय की गई जब ट्रंप फ्लोरिडा के वेस्ट पाम बीच में रविवार को अपने गोल्फ क्लब में खेल रहे थे। संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) के अधिकारियों ने इस कोशिश को विफल कर दिया और संदिग्ध को हिरासत में ले लिया। अधिकारियों ने बताया कि ट्रंप पूरी तरह सुरक्षित है। नौ सप्ताह पहले एक बंदूकधारी ने पेसिल्वेनिया में 13 जुलाई को एक चुनावी रैली के दौरान ट्रंप (78) को निशाना बनाकर गोलीबारी की थी। उस हमले में एक गोली ट्रंप के दाहिने कान को चूकर निकल गई थी। मियामी में प्रभारी विशेष एजेंट राफेल बैटोस ने कहा कि सीक्रेट सर्विस के एजेंट ने वेस्ट पाम बीच में ट्रंप इंटरनेशनल गोल्फ क्लब की सीमा के पास मौजूद एक बंदूकधारी पर गोलियां चलाई। उन्होंने कहा कि एजेंसी अभी यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकती कि हिरासत में लिए गए आरोपी ने भी हमारे एजेंट पर गोली चलाई या नहीं। ट्रंप जहां गोल्फ खेल रहे थे, वहां से कुछ दूर पर छिपकर बैठे अमेरिकी सीक्रेट सर्विस के एजेंट ने देखा कि लगभग 400 गज की दूरी पर झाड़ियों के बीच एक राइफल की नाल दिख रही है। पाम बीच कानूनी के रोरिफ रिक क्रैडशा ने बताया, कि एक एजेंट ने गोली चलाई जिसके बाद वहां मौजूद संदिग्ध भाग गया। ट्रंप के प्रचार अभियान के संचार निदेशक स्टीवन चेउंग ने उसके तुरन्त बाद जारी एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास गोलियां चलीं लेकिन वह सुरक्षित हैं। इस समय और जानकारी नहीं दी जा सकती। ट्रंप ने अपने समर्थकों को भेजे संदेश में कहा कि मेरे आसपास गोलीबारी की आवाजें आ रही थी। लेकिन इससे पहले कि अफवाहे नियंत्रण से बाहर हो जाएं। मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैं सुरक्षित और ठीक हूं। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि मुझे कोई सीमा नहीं रोक सकती। बताया जा रहा है कि हवाई स्थित एक फोरी निर्माण कंपनी के 58 वर्षीय मालिकरमान बनेले राउज को रविवार की घटना के सिलसिले में हिरासत में लिया गया है। न्यूयार्क पोस्ट की रपट के अनुसार राउथ का नार्क कैरोलाइना में पुराना आपराधिक रिकार्ड रहा है और वह राजनीति से जुड़े मामलों पर अक्सर पोस्ट साझा करता है। पाम बीच बाउंडरी के रौरिफ ने बताया कि एफबीआई एजर ने रिक बैडशा पर करीब चार राउंड फायर किए। इसके बाद राइफल धारी अपने एके-47 जैसी असाल्ट राइफल, दो बैक पैक और अन्य वस्तुएं छोड़कर काले रंग की कार में वहां से भाग गया। संदिग्ध रेयान रुथ यूक्रेन समर्थक है। 2023 में उसने न्यूयार्क टाइम्स को साक्षात्कार में बताया था कि वह तालिबान शासन के बाद भागे अफगान सैनिकों को पाकिस्तान और ईरान से यूक्रेन ले जाना चाहता था। उधर यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा कि उनका संदिग्ध रुथ से कोई लेना देना नहीं है। वहीं रुस ने संकेत दिया था कि ट्रंप की हत्या के प्रयास और यूक्रेन और अमेरिकी समर्थक के बीच संबंध है। इस बीच ट्रंप ने उनकी हत्या के दूसरे प्रयास के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीक्रेट सर्विस को धन्यवाद दिया और उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने शानदार काम किया। मुझे अमेरिकी होने पर बहुत गर्व है। -अनिल नरेन्द्र

आतिशी ही क्यों

बिहार में नीतीश कुमार ने जब मई 2014 में अपने पद से इस्तीफा दिया तो सीएम पद के लिए जीतन राम मांझी पर भरोसा किया। झारखंड में हेमंत सोरेन ने जनवरी 2024 में जेल जाने से पहले यही भरोसा चंपई सोरेन पर किया और वो सीएम बनाए गए। लेकिन जब नीतीश और हेमंत की सत्ता में वापसी हुई तो जीतन राम मांझी, चंपई सोरेन ने अपनी राहें अलग कर लीं और भाजपा से हाथ मिला लिया। अब दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने जब सीएम पद से इस्तीफा देने का फैसला किया तो भरोसा आतिशी पर किया है। सवाल यह है कि नीतीश और हेमंत के साथ हुए मामलों को देखते हुए भी केजरीवाल ने आतिशी पर भरोसा क्यों किया? हालांकि उनके जेल जाने के बाद उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल भी सक्रिय हो गई थीं पर केजरीवाल ने आतिशी को चुना। आम आदमी पार्टी (आप) नेता सोमनाथ भारती ने द हिन्दू अखबार से कहाö जब अरविंद जी और मनीष जी जेल में थे। तब आतिशी ने पार्टी से जुड़े मसलों को संभालने के मामले में अपना लोहा मनवाया है। अरविन्द और सिसोदिया के निर्देशों को आतिशी ही विधायकों, पार्षदों तक पहुंचाती रही थी। इसके अलावा आतिशी पार्टी में महिला चेहरा भी हैं। विधायक संजीव झा कहते हैं कि विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही महीने बाकी हैं। हम पार्टी में कुछ बदलाव नहीं करना चाहते थे। आतिशी को इसलिए चुना गया क्योंकि वो अभी सबसे ज्यादा विभागों को संभाल रही थीं। आतिशी को गवर्नेंस की अच्छी समझ भी है। एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहाö आतिशी को चुना जाना स्वाभाविक था क्योंकि वो भरोसेमंद है और कभी भी पार्टी के खिलाफ नहीं गई है। केजरीवाल खुद आईआईटी ग्रेजुएट हैं और वो हमेशा पढ़े लिखे लोगों के साथ काम करना चाहते हैं। आतिशी बहुत पढ़ी लिखी महिला हैं। उनकी पढ़ाई दिल्ली के प्रिंगडेल्स स्कूल से हुई है। ग्रेजुएशन दिल्ली के सेंट स्टीफंस कालेज से हुई। फिर प्रतिष्ठित चिवनिंग स्कॉलरशिप मिली। आतिशी ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की है। बताते हैं कि आम आदमी पार्टी (आप) के अंदर कुछ लोग आतिशी को ऑक्सफोर्ड रिटर्न भी कहकर पुकारते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार आतिशी डेवलपमेंट सेक्टर में लौटना चाहती थीं मगर केजरीवाल ने ऐसा होने नहीं दिया और उन्हें पार्टी के साथ जुड़े रहने को कहा। आतिशी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव की करीबी रही थीं। योगेन्द्र यादव को बाद में पार्टी से निकाल दिया गया, प्रशांत भूषण भी अलग हो गए पर आतिशी पार्टी में बनी रहीं। कहा जाता है कि आतिशी के जरिए ही जेल से केजरीवाल दिल्ली सरकार चला रहे थे। आतिशी 2013 में पार्टी से जुड़ीं और 2015 से लेकर 2015 तक शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की सलाहाकर के तौर पर काम किया। उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों को दिशा सुधारने, स्कूल मैनेजमेंट कमेटियों के गठन और निजी स्कूलों को बेहिसाब फीस बढ़ोतरी से रोकने के लिए कड़े नियम बनाए। गोपाल राय ने 17 सितम्बर को जब आतिशी के सीएम चुने जाने की जानकारी मीडिया को दी तो कहा, आतिशी मुश्किल हालात में दिल्ली की सीएम बन रही हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान की बुनियाद पर बनी आम आदमी पार्टी (आप) में आतिशी एक बेदाग चेहरा हैं। सीएम के ऐलान के बाद आतिशी बोलीं जब तक मैं सीएम हूं। मेरा एक ही मकसद है कि अरविन्द केजरीवाल को बेदाग सीएम बनाना है। मैं अरविन्द केजरीवाल के मार्गदर्शन में काम करूंगी। मैं आज दिल्ली की दो करोड़ जनता की तरफ से से भी कहना चाहूंगी ]िक दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है और उसका नाम अरविन्द केजरीवाल है। आतिशी को नए पद ग्रहण करने की बधाई।

Thursday 19 September 2024

घाटी में निर्दलीयों पर खेला भाजपा ने दांव


10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव में क्या भारतीय जनता पार्टी चुनौतियों का सामना कर रही है? जम्मू जहां भाजपा अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रही है, वहां पार्टी के अंदर असंतोष की खबरे हैं। वहीं घाटी की 47 सीटों पर भाजपा ने सिर्फ 19 उम्मीदवार ही खड़े किए हैं। यानि 28 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार ही नहीं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा जम्मू-कश्मीर में अलोकप्रिय हो गई है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह व अन्य नेताओं ने दावा किया था कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से क्षेत्र में पहले की तुलना में शांति है और कश्मीर घाटी के लोगों में भी सरकार और भाजपा में भरोसा बढ़ा है। लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा का घाटी में उम्मीदवार नहीं उतारना और फिर विधानसभा में आधी से भी कम सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने से सवाल उठ रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने कश्मीर घाटी में उम्मीदवार नहीं उतारे थे और सिर्फ जम्मू में उतारे थे। भाजपा ने दावा किया कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद घाटी में शांति है और सामान्य जनजीवन पटरी पर आने लगा है। सरकार का यह दावा कितना खोखला निकला, इसी से पता चलता है कि कश्मीर घाटी में पार्टी आज तक चुनाव अपने बलबूते पर नहीं जीत सकी। देखो-देखो कौन आया, शेर आया, जेल का बदला वोट से। इंजीनियर रशीद जब दिल्ली की तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटने के बाद पहली बार बारामुला से अपने समर्थकों को संबोधित करने आए तो यह नारा लग रहा था। अब इंजीनियर रशीद खुलकर प्रचार में जुट गए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को यह उम्मीद है कि वह जम्मू क्षेत्र की अधिकतर सीटें जीतेंगे। अगर घाटी में उन्हें 20 सीटें भी मिल जाती हैं तो वह सरकार बना सकती है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं और बहुमत के लिए 46 सीटें समझो चाहिए। अगर घाटी में वह 30 सीटें भी जीत लेती है तो घाटी में खुद के उम्मीदवारों के अलावा कुछ उनके द्वारा खड़े किए गए निर्दलीयों की मदद से वह सरकार बना सकती है। रहा घाटी में आतंकवाद खत्म होने का दावा जो भाजपा नेतृत्व कर रही है तो शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटना न घटती हो। घाटी में इंजीनियर रशीद ने 35 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और उनका प्रदर्शन बहुत हद तक यहां के परिणाम को प्रभावित करेगा। उन्हें चुनाव प्रचार के लिए 20 दिन की जमानत मिली है। पिछले करीब 4 साल से आतंकियों ने कई वार किए हैं यहां सिक्यूरिटी फोर्स पर। इस साल जून और जुलाई के महीने में ही 10 सैनिक शहीद हुए। 2020 में 56, 2021 में 45, 2022 में 30, 2023 में 33 सैनिक शहीद हुए। इस साल अब तक आतंकियों से निपटने के लिए अलग-अलग और आतंकियों द्वारा घात लगाकर हमले में 20 सैनिक शहीद हुए हैं। पहले से शांत जम्मू क्षेत्र अब सबसे ज्यादा अशांत हो गया है। यह बहरहाल प्रसन्नता की बात है कि जम्मू-कश्मीर में जनता में चुनाव को लेकर काफी उत्साह है। कुछ पुराने आतंकी भी अब चुनाव लड़कर मुख्य धारा में आना चाहते हैं। कुछ कश्मीरी पंडित महिला भी चुनाव लड़ रही हैं। यह लोकतंत्र को मजबूती देगा। उम्मीद की जाती है कि जम्मू-कश्मीर देश की मुख्य धारा से फिर से जुड़े और राज्य में अमन-शांति लौटे।

-अनिल नरेन्द्र


पीएम पद की पेशकश ठुकराई


भाजपा नेता राव इंद्रजीत सिंह, अनिल विज और नितिन गडकरी इन तीनों के बयान आजकल सुर्खियों में बने हुए हैं। राव इंद्रजीत सिंह और अनिल विज ने तो खुलकर हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है। वहीं नितिन गडकरी के एक बयान को भी विपक्ष के कुछ नेता उसी रूप में देख रहे हैं। पिछले हफ्ते केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दावा किया, मुझसे किसी नेता ने कहा कि अगर आप प्रधानमंत्री बनते हैं तो हम लोग आपका समर्थन करेंगे। कई बार विपक्षी नेता नितिन गडकरी को भाजपा के एक ऐसे नेता के रूप में पेश करते रहे हैं, जिनके पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से संबंध अच्छे नहीं हैं। ऐसी अटकलों को हवा कई बार गडकरी के कुछ बयानों से भी मिली। इसी कड़ी में गडकरी का ताजा बयान भी शामिल है। 14 सितम्बर 2024 को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए कहा मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता लेकिन एक बार किसी ने कहा था कि अगर आप प्रधानमंत्री बनने जा रहे हो तो हम आपका समर्थन करेंगे। गडकरी ने कहा मैंने पूछा कि आप मेरा समर्थन क्यों करेंगे और मैं आपका समर्थन क्यों लूं? प्रधानमंत्री बनना मेरी जिन्दगी का लक्ष्य नहीं है। मैं अपने संगठन और प्रतिबद्धता के प्रति ईमानदार हूं। मैं किसी पद के लिए समझौता नहीं करूंगा। मेरे लिए दृढ़ता सर्वोपरि है। गडकरी के बारे में कहा जाता है कि वह विपक्षी पार्टियों में भी अच्छी पैठ रखते हैं। हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम आइडिया एक्सचेंज में गडकरी से इसे लेकर सवाल पूछा गया था, सवालö आप उन कुछ भाजपा नेताओं में से हैं जो विपक्ष को दुश्मन या देश विरोधी नहीं मानते हैं। गडकरी ने जवाब दिया हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष दल होते हैं। ये कार या ट्रेन के पहियों की तरह अहम होते हैं और संतुलन जरूरी है। सबका विकास, सबका प्रयास हमारी भावना यही होनी चाहिए। गडकरी के बयान पर शिवसेना (यूटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सोशल मीडिया पर लिखा नितिन गडकरी जो शीर्ष की कुर्सी के लिए अपनी दिली ख्वाइश व्यक्त कर रहे हैं। वो इसके लिए विपक्षी दलों के बहाने मोदी जी को संदेश भेज रहे हैं। आरजेडी नेता मनोज झा ने कहा भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए लड़ाई शुरू हो चुकी है। आने वाले महीनों में आपको इसके नतीजे देखने को मिल सकते हैं। क्या इस बार भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना था? उन्हें एनडीए ने चुना था। दरअसल 2024 के नतीजों के बाद भाजपा की संसदीय दल बैठक नहीं हुई? क्यों नहीं हुई? क्या मोदी जी को डर था कि बैठक में उनके नेतृत्व पर सवाल उठेंगे और हो सकता है कि बगावत की स्थिति आ जाए। राज्यसभा के पूर्व सांसद और राजनीतिक विश्लेषक कुमार केतकर से सवाल पूछा गया कि क्या गडकरी भाजपा में नरेन्द्र मोदी की जगह ले सकते हैं? केतकर ने कहा कि अगर मोदी विश्वास प्रस्ताव हारते हैं तो दूसरे उम्मीदवार की मांग होगी, ऐसे में नितिन गडकरी उभर सकते हैं। गडकरी भाजपा में भी और संघ में भी पसंद किए जाते हैं। लोगों का तो कहना है कि गडकरी के पीछे संघ पूरी तरह खड़ा है। अगर भाजपा आगामी चार राज्यों के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो संभव है कि गुजरात लॉबी को चुनौती मिले और उस सूरत में नितिन गडकरी पहली पसंद हो सकती है। गडकरी बहुत सोच समझकर बयान देते हैं। उनके बयानों के कई मतलब निकाले जा सकते हैं।

Tuesday 17 September 2024

येचुरी का जाना इंडिया गठबंधन के लिए झटका


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी का गुरुवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। येचुरी 72 वर्ष के थे। वे लंबे समय से बीमार होने की वजह से आक्सीजन सपोर्ट पर थे। येचुरी के परिवार ने उनकी बॉडी रिसर्च के मकसद से एम्स को दान दी है। सीताराम येचुरी केवल बड़े वामपंथी नेता ही नहीं थे बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता के लिए इंडिया गठबंधन बनाने वाले सबसे प्रमुख स्तम्भ थे। इंडिया गठबंधन बनाने का श्रेय जद (यू) नेता नीतीश कुमार, शरद पवार, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और सीताराम येचुरी को जाता है। इंडिया गठबंधन बनने से पहले कांग्रेस की प्रमुख नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ विपक्षी एकता को लेकर येचुरी की कई बैठके हुईं। जब कांग्रेस ने चुनाव से पहले प्रधानमंत्री का पद नहीं मांगने जैसी बातों पर सहमति दे दी तब येचुरी ने विपक्षी गठबंधन बनाने को लेकर खुलकर और पर्दे के पीछे से बड़ी भूमिका निभाई। सभी दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ पुराने और अच्छे रिश्तों की वजह से येचुरी ने विपक्षी गठबंधन के काम को कुशलता से अंजाम दिया। विपक्षी गठबंधन बन जाने के बाद भी वरिष्ठ नेताओं के बीच जो मनमुटाव रहता था, उसे येचुरी ही दूर करते थे। जब जद (यू) नेता नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के संयोजक नहीं बनाए गए तो वे खफा हुए और उनके बिना भी विपक्ष को बांधे रखा सीताराम येचुरी ने। इंडिया गठबंधन हो या वामदलों के मतभेद हों दोनों को सुलझाने में येचुरी को कभी मुश्किल नहीं आई। येचुरी के परिवार में उनकी पत्नी सीमा चिश्ती हैं जो समाचार पोर्टल द वायर की संपादक हैं। उनकी तीन संतान दो बेटे और एक बेटी हैं। उनके एक बेटे आशीष येचुरी का 2021 में कोविड-19 संक्रमण के कारण निधन हो गया था। उनकी बेटी अखिला येचुरी एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं। जेएनयू के अपने छात्र दिनों में येचुरी ने भले ही इंदिरा गांधी के सामने प्रतिरोध दिखाया हो लेकिन पूर्व कांग्रेsस अध्यक्ष सोनिया गांधी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ येचुरी के करीबी संबंध रहे। संसद में अपने तीखे भाषणों के साथ-साथ अपने व्यंग के लिए पहचाने जाने वाले येचुरी संसद में लेफ्ट की जोरदार मौजूदगी हमेशा महसूस कराते थे। गठबंधन का ककहरा उन्होंने अपने सीनियर साथी हरकिशन सिंह सुरजीत के पदचिह्नों पर चलते हुए सीखा। यहीं से उन्होंने सबको साथ लेकर विपक्षी एकता का फार्मूला सीखा। साल 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार से लेकर यूपीए वन और यूपीए-2 तक के कॉमन मिनियम प्रोग्राम की दिशा में उनका काम और योगदान इसका सुबूत है। पिछले साल विपक्षी एकता के तौर पर भाजपा के सामने इंडिया एलायंस की चुनौती अगर सामने आई तो उसके पीछे येचुरी की कोशिशों को भी श्रेय जाता है। वह लगातार यह बात कहते थे भाजपा का सामना करने के लिए एकजुट होना होगा। उनके जाने से जहां इंडिया एलायंस को झटका लगा है वहीं देश ने एक महान, ईमानदार नेता खोया है। जाहिर है सीताराम येचुरी का जाना न केवल वामपंथी राजनीति, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए अपूरणीय क्षति है। हम भी सीताराम येचुरी को श्रद्धांजलि पेश करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल का चुनाव पर क्या असर होगा


सियासत के गलियारों में इन दिनों हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की चर्चा जोरों पर है। वैसे तो मुख्य मुकाबला कांग्रेsस और भाजपा के बीच माना जा रहा है पर जेजेपी, इनेलो और आम आदमी पार्टी यानि आप के अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों को लेकर भी चर्चाएं जोरों पर हैं। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर कांग्रेस और भाजपा में से किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो उस स्थिति में इन छोटे दलों और निर्दलीयों की भूमिका इस चुनाव में महत्वपूर्ण हो जाएगी। इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब तिहाड़ से बाहर आ गए हैं। इस साल मार्च में ईडी ने केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति के मामले में गिरफ्तार किया था। इसके बाद सीबीआई ने भी जून में सीएम केजरीवाल को तिहाड़ में ही गिरफ्तार कर लिया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत दे दी। ऐसे में अब अरविंद केजरीवाल का हरियाणा विधानसभा चुनावों में कितना असर पड़ेगा? 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 46 सीटों पर लड़ी थी। मगर पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। हालिया लोकसभा चुनाव में पार्टी को 3.9 फीसदी वोट मिले थे। दरअसल विश्लेषकों का कहना है कि आम आदमी पार्टी की हरियाणा में स्ट्रैंथ बहुत ज्यादा नहीं है, यह बात केजरीवाल खुद भी जानते हैं। पिछली बार जब चुनाव हुए थे तो उनको 0.5 फीसदी वोट मिले थे और इस बार जब कांग्रेस के साथ गठबंधन का विचार हो रहा था तो शुरू में आम आदमी पार्टी ने खुद 10 सीटें मांगी थीं और कांग्रेस उनको केवल 5 सीटों का ऑफर दे रही थी। पर अचानक आम आदमी पार्टी ने न केवल कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ दिया और राज्य की सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए। सवाल यह उठ रहा है कि ऐसा केजरीवाल ने क्यों किया? क्या आम आदमी पार्टी यह भाजपा के कहने पर कर रही है ताकि कांग्रेsस के वोट काटे जा सकें? इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि पहले दिन प्रधानमंत्री मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणेश वंदना करने जाते हैं और ठीक उसके अगले दिन केजरीवाल को जमानत मिल जाती है? क्या केजरीवाल और भाजपा नेतृत्व में कोई डील हुई है? वैसे हमारा मानना है कि केजरीवाल की पार्टी के उम्मीदवार दोनों कांग्रेस और भाजपा के वोट काट सकते हैं। हरियाणा में भाजपा का वोटर शहरी माना जाता है। आप पार्टी का भी जनाधार ब्राह्मणों और वैश्य समुदाय में ज्यादा है। केजरीवाल खुद वैश्य समुदाय से आते हैं। इस लिहाज से तो आप पार्टी भाजपा के शहरी वोट काटेगी। पर ऐसा नहीं कि कांग्रेsस को इसका नुकसान नहीं होगा। उनके भी वोट काट सकती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि केजरीवाल को ज्यादा चिंता अगले साल फरवरी में होने वाले दिल्ली चुनाव की है। वह कांग्रेस के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी प्रकार का गठबंधन नहीं करना चाहते। देखना यह होगा कि केजरीवाल और उनके नेता, कार्यकर्ता अब हरियाणा में क्या रुख अपनाते हैं। हमें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। बहुत जल्द ही तस्वीर साफ हो जाएगी।

Saturday 14 September 2024

राम रहीम को 6 बार जेल से निकालने वाला


हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूर्व जेलर सुनील सांगवान को चरखी दादरी से टिकट दिया है। सुनील सांगवान सुर्खियों में हैं क्योंकि उनके जेल अधीक्षक के कार्यकाल के दौरान गुरमीत राम रहीम (डेरा सच्चा सौदा) को 6 बार पैरोल या फरलो मिली थी। गुरमीत राम रहीम रेप और हत्या के दोषी हैं और रोहतक की सुनारिया जेल में कैद हैं। जेल अधीक्षक पद से वीआरएम यानि स्वैच्छिक सेवानिवृत्त लेने के बाद सुनील सांगवान बीते दिनों भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा ने चरखी दादरी से उन्हें चुनावी मैदान में उतारा है। वीआरएस से पहले सुनील सांगवान गुरुग्राम भौंडसी जेल में बतौर जेलर कार्यरत थे। इससे पहले सुनील पांच साल तक रोहतक जेल के अधीक्षक के तौर पर काम कर चुके हैं। साल 2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और सजा काटने के लिए रोहतक के सुनारिया जेल भेजा गया था। उस समय सुनील सांगवान रोहतक जेल के जेलर थे। इसके बाद उनका ट्रांसफर गुरुग्राम की भोंडसी जेल में हो गया। सुनील सांगवान को भाजपा में शामिल कराने में इतनी जल्दी दिखाई गई कि हरियाणा सरकार ने रविवार यानि 1 सितम्बर को ही गुरुग्राम जिला जेल के अधीक्षक पद से वीआरएस के उनके आवेदन को मंजूर करने की प्रक्रिया पूरी कर ली। जेल महानिदेशक (डीजी) ने 1 सितम्बर को राज्य के सभी जेल अधीक्षकों को एक ई-मेल भेजा, जिसमें उन्होंने उसी दिन नो ड्यूज प्रमाण-पत्र जारी करने का निर्देश दिया। डीजी की तरफ से जारी पत्र में कहा गया, सुनील सांगवान, अधीक्षक जेल, जिला जेल, गुरुग्राम ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए अनुरोध किया है। इसलिए आग्रह है कि सुनील सांगवान के पक्ष में नो-ड्यूज प्रमाण-पत्र शाम 4 बजे तक जारी कर दिया जाए। गुरमीत राम रहीम को कुल 10 बार पैरोल या फरलो पर जेल से बाहर भेजा जा चुका है। इनमें 6 बार ऐसा सुनील सांगवान के बतौर जेल अधीक्षक रहते हुए हुआ। रोहतक की सुनारिया जेल में उन्होंने पांच साल तक सेवाएं दीं, ये वो ही जेल है जहां राम रहीम जेल काट रहे हैं। भाजपा से टिकट मिलने के बाद सुनील सांगवान की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना भी हो रही है। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने एक्स पर लिखा कि कौन इतना नादान है जो इस खबर से हैरान है। इसके अलावा सोशल मीडिया यूजर्स गुरमीत राम रहीम को कई बार मिली पैरोल सांगवान की उम्मीदवारी और भाजपा के साथ उनके रिश्ते पर सवाल उठा रहे हैं। सुनील सांगवान इस बात को खारिज करते हैं कि गुरमीत राम रहीम को उनकी वजह से 6 बार पैरोल या फरलो नहीं मिली। वे कहते हैं, मुझे ट्रोल किया जा रहा है कि मेरे कार्यकाल में बाबा को 6 बार पैरोल या फरलो मिली। इसमें पहली बात तो ये है कि पैरोल जेल अधीक्षक के हस्ताक्षर से नहीं मिलती। बल्कि इसकी अनुमति डिविजनल कमिश्नर के हस्ताक्षर से होती है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुनील सांगवान जेल अधीक्षक के पद से हटना नहीं चाहते थे, लेकिन उनके पिता सतपाल सांगवान की बढ़ती उम्र की वजह से भाजपा का दादरी से एक अपेक्षाकृत युवा चेहरा चाहिए था। जो जाट समुदाय का वोट भी हासिल कर सके। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में चरखी दादरी से बबीता फोगाट, सतपाल सांगवान भी मैदान में थे। पर वह दूसरे नंबर पर रहे। यहां से निर्दलीय उम्मीदवार सोमवीर ने बाजी मार ली थी।

öअनिल नरेन्द्र

दिल्ली में राष्ट्रपति शासन!


भाजपा क्या चोर दरवाजे से दिल्ली की चुनी हुई सकार को बर्खास्त कराना चाहती है। यह बात आप की वरिष्ठ नेता व दिल्ली की कैबिनेट मंत्री आतिशी ने मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की खबरों पर साझा करते हुए कही। आतिशी ने कहा कि भाजपा का एक मात्र काम चुनी हुई विपक्षी सरकारों को गिराना है। उन्होंने कहा कि भाजपा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक नहीं खरीद सकी इसलिए अब दिल्ली की चुनी हुई दो तिहाई बहुमत पाने वाली सरकार को गिराने के लिए षड्यंत्र शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा कोई षड्यंत्र रचकर अरविंद केजरीवाल की सरकार गिराएगी तो आने वाले चुनावों में दिल्ली की जनता भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देगी। वहीं भाजपा ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से मुलाकात कर केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है। भाजपा का कहना है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से दिल्ली में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। 30 अगस्त को दिल्ली भाजपा के विधायक विजेन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिले और उन्हें ज्ञापन दिया था। राष्ट्रपति सचिवालय ने भाजपा के ज्ञापन को गृह सचिव के पास भेज दिया है। सचिवालय का कहना है कि दिल्ली में चल रहे संवैधानिक संकट पर उचित ध्यान देने की जरूरत है। भाजपा विधायकों ने दिल्ली सरकार की अव्यवस्थाओं, वित्तीय अनियमितताओं और लोगों के हालात पर राष्ट्रपति से शिकायत की थी। उनकी शिकायत पर राष्ट्रपति ने संज्ञान लिया है। उन्होंने शिकायत गृह मंत्रालय के अधिकारियों को भेज दी और कहा कि इस पर विचार किया जाए। भाजपा के इस कदम के बाद दिल्ली के राजनीतिक क्षेत्रों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्या संवैधानिक संकट को लेकर केजरीवाल सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है? आप सरकार की मंत्री आतिशी ने दावा किया कि अगर भाजपा षड्यंत्र रचकर अरविंद केजरीवाल की सरकार गिराएगी तो आने वाले चुनावों में दिल्ली की जनता भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देगी। आज दिल्ली विधानसभा में भाजपा के 8 विधायक हैं और यदि राष्ट्रपति शासन लगा तो अगली बार भाजपा का सूपड़ा साफ होगा और भाजपा की जीरो सीट आएंगी क्योंकि दिल्ली के लोग अरविंद केजरीवाल के कदमों से खुश हैं और वो केजरीवाल जी से प्यार करते हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने कहा है कि केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करने की नौबत के पीछे आप सरकार का भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूबना है। वहीं उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और आप के बीच दिल्ली की सत्ता के लिए घमासान मचा हुआ है। इस कारण भाजपा ने केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है। दोनों दलों के नेता जनता के प्रति किसी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि 10 वर्षों के शासन में आम आदमी पार्टी के पास कोई ठोस उपलब्धि नहीं है। हमें लगता है कि भाजपा नेतृत्व दिल्ली विधानसभा में लगातार हार से बौखला गई है। पिछले 25 वर्षों से ज्यादा भाजपा दिल्ली विधानसभा नहीं जीत सकी हैं जबकि वह लगभग पूरे देश में राज कर रही है। ऐसा भी लगता है कि भाजपा नेतृत्व को सबसे ज्यादा खौफ आम आदमी पार्टी और केजरीवाल से है। देखा जाए तो आज भी दिल्ली में भाजपा की ही सरकार है। दिल्ली के असल मालिक तो उपराज्यपाल विनय सक्सेना हैं। फिर क्या मजबूरी है राष्ट्रपति शासन लगाने की?

Thursday 12 September 2024

विनेश के दांव से हरियाणा की सियासत गरमाई

हरियाणा में चुनाव से ऐन पहले पहलवानों के कांग्रेस ज्वाइन कर लेने के बाद सियासत गरमा गई है। सबसे ज्यादा तकलीफ भाजपा के पूर्व सांसद और कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण को हुई है। उन्होंने विनेश और बजरंग पूनिया पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि फेडरेशन के नियमों को दरकिनार करते हुए ट्रायल को हाई जैक कर विनेश ने एक ही दिन अलग-अलग दो भार वर्गों में अपना वजन करवाकर जूनियर पहलवानों का हक मारा है। नियम की इस अनदेखी का नतीजा ओलंपिक में पूरे देश ने देखा। कहा कि जब जतंर-मंतर पर महिला पहलवानों का आंदोलन शुरू हुआ था तभी हमने साफ कर दिया था कि इस प्रदर्शन के पीछे दीपेन्द्र और भूपेन्द्र हुड्डा के अलावा कांग्रेस का हाथ है। ब्रजभूषण सिंह के इस बयान से पूरा जाट समाज नाराज हो गया। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि हम अपनी बेटी की इस तरह बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकते। यहां तक कहा गया कि ब्रजभूषण में हिम्मत है तो हरियाणा में आकर विनेश के खिलाफ प्रचार करें। केवल हरियाणा कांग्रेस ही नहीं बल्कि एनडीए के घटक रालोद ने भी आंखें fिदखाई। राज्य की जुलाना सीट से लड़ रही विनेश के खिलाफ ब्रजभूषण शरण का आपत्तिजनक, शर्मनाक बयान के बाद एनडीए के घटक दल राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने विनेश फोगाट का समर्थन कर भाजपा नेताओं को असहज कर दिया है। चौतरफा ब्रजभूषण के बयान की आलोचना से भाजपा हाई कमान घबरा गया और भाजपा नेतृत्व ने ब्रजभूषण शरण सिंह को विनेश और बजरंग के खिलाफ बयानबाजी से बचने की हिदायत दी है। पार्टी नेतृत्व को डर है कि इसका असर हरियाणा विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है। वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत ने भी भाजपा नेता ब्रजभूषण के बयान पर टिप्पणी की है। पवन खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस गलत के खिलाफ आवाज उठाती है और भविष्य में भी उठाएगी। सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा नेता ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि ये शर्म की बात है जिस शख्स पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगे हों, उसे सदन में बैठने का मौका दिया गया। ब्रजभूषण सिंह शायद दंगल गर्ल बबीता फोगाट के बारे में भूल गए जब वे 2019 में दादरी से चुनाव में भाजपा की ओर से उतरी थीं लेकिन जीत नहीं पाईं। वहीं पहलवान योगेश्वर दत्त कुश्ती का अखाड़ा छोड़कर सियासी दंगल में कूद गए। 2019 में भाजपा ने उन्हें बरोदा विधानसभा चुनाव में उतारा लेकिन कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा से हार गए। उधर कांग्रेस उम्मीदवार विनेश फोगाट ने अपना चुनाव अभियान शुरू करते हुए कहा कि उन्हें लोगें के आशीर्वाद से हर लड़ाई जीतने की उम्मीद है। फोगाट (30) को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जुलाना विधानसभा क्षेत्र से उतारा गया है। हरियाणा में 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान पांच अक्टूबर को होगा जबकि मतगणना 8 अक्टूबर को होगी। जुलाना पहुंचते ही विनेश का गर्म जोशी से स्वागत किया गया तथा बुजुर्गों, महिलाओं और विभिन्न खापों के सदस्यों समेत उनका माला पहनाकर स्वागत और आशीर्वाद दिया गया। विनेश की एक झलक पाने के लिए लोग अपनी घरों की छत पर खड़े थे। ढोल की थाप के बीच उनके समर्थकों ने विनेश फोगाट जिंदाबाद के नारे लगाए। विनेश ने कहा कि ब्रजभूषण देश नहीं हैं, मेरा देश मेरे साथ खड़ा है। -अनिल नरेन्द्र

हार न मानने का जज्बा

भारतीय पैरा खिलाड़ियों का असाधारण जज्बा पेरिस पैरालंपिक में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के रूप में सामने आया है। इन खेलों में जहां स्थापित नाम उम्मीदों पर खरे उतरे वहीं कई नए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने अपने ही रिकार्ड तोड़ते हुए बड़े मंच पर अपनी जगह बनाई। भारत ने सात स्वर्ण समेत 29 पदक जीते। 2016 के रियो पैरालंपिक में भारत ने केवल 4 पदक ही जीते थे। टोक्यो में 19 पदक जीते। इस बार तो टोक्यो को भी पीछे छोड़ दिया गया। ट्रेक एंड फील्ड में ही 17 पदक मिले। इस प्रदर्शन ने भारत को पेरालंपिक में नई ताकत के रूप में उतरा है। भारत के 84 संसदीय दल में शामिल उत्तर प्रदेश की प्रीति पाल ने ट्रेक स्पर्धा में पहली बार के पदक दिलाए। हरविंदर सिंह ने तीरदांजी में गोल्ड मेडल जीता। वही महिला टी 35 200 और 200 मीटर में प्रीति पाल ने ब्राऊंज मेडल जीता। पैरालंपिक खेलों में देश का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। ये हर भारतीय खेल प्रेमियों के लिए खुशी और गर्व की बात है, लेकिन इसके साथ ही कई लोग इस सफलता से हैरान भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि पेरालंपिक खेलों के कुछ दिन पहले हुए ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक रहा था। भारत ने 110 खिलाड़ियों का दल ओलंपिक में भेजा था, इसके बावजूद भारत एक रजत और 5 कांस्य पदक यानी कुछ छह पदक ही जीत पाया था। ऐसे में कई लोग हैरान हैं कि हमने ओलंपिक के मुकाबले पैरालंपिक में बेहतर प्रदर्शन कैसे किया? हालांकि दोनों खेलों की तुलना नहीं की जा सकती है कि एक तरफ जहां ओलंपिक किसी खिलाड़ी के शारीरिक स्तर पर परीक्षा होती है वही पैरालंपिक किसी खिलाड़ी के दृढ़ संकल्प और साहस की परीक्षा होती है। पैरालंपिक में ओलंपिक की तुलना में ज्यादा मेडल दिए जाते हैं और कम देश इसमें हिस्सा लेते हैं। पेरिस ओलंपिक में 204 टीमों ने कुल 32 खेलों में 329 स्वर्ण पदकों के लिए हिस्सा लिया। जबकि पैरालंपिक में 170 टीमें, 22 खेलों में 549 स्वर्ण पदकों के लिए हिस्सा ले रही हैं। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर पैरालंपिक में पदक जीतने की संभावना अधिक होती है और देश दोनों में यानी पैरालंपिक और ओलंपिक में हिस्सा लेते है। कई स्टडिज से पता चला है कि ओलंपिक प्रदर्शन का सीधा सदस्य किसी देश की जनसंख्या और जीडीपी से हो सकता है। इसीलिए कहा जाता है ओलंपिक तालिका में टॉप-10 देश अपेक्षाकृत अमीर होते हैं। पैरालंपिक मामले में दो चीजें जो पैसे से ज्यादा निर्णायक है वो देश की स्वास्थ्य सुविधाएं और विकलांगता के प्रति रवैया। कई देशों में विकलांग लोगों को अपमानित किया जाता है या उसके साथ दया का व्यवहार दिखाया जाता है। लेकिन हाल के दिनों में सामाजिक स्तर और खेलों के नजरिए में भी बड़ा बदलाव देखने को मिला है, शारीरिक अक्षमताओं का सामना करने वाला खिलाड़ी इससे बाहर आकर अपनी आजाद पहचान बनाने का इच्छुक होता है और इनके लिए वे किसी हद तक जा सकता है। अगर उन्हें पूरा मौका दिया जाए तो वे खरे उतरते है। जैसे कि पेरिस पैरालंपिक में उन्होंने साबित कर दिया है। यह दुख की बात है कि हमारे देश में पैरा-फ्रेडली नहीं है, न ही हमारे पास सार्वजनिक स्थल है जो व्हील चेयर प्रेंडली हों। पैरालंपिक में सफलता की सबसे अहम सीख है तो यह कि हम इन खिलाड़ियों को पूरा प्रोत्साहन देना होगा, पूरी सुविधाएं देनी होगी। हमें सब विजेताओं को हार्दिक बधाई देना चाहते हैं।

Tuesday 10 September 2024

रेप के 10 में से 7 केस में नहीं मिलती है सजा

पश्चिम बंगाल के आरजी कर मेडिकल कालेज अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में एक महीने के भीतर तृणमूल की ममता सरकार नया विधेयक लेकर आई है। विधानसभा में सर्वसम्मति से अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक 2024 पारित भी कर दिया है। इस विधेयक में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर भारतीय न्याय संहिता 2023 (बीएनएस) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस) और बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बने पॉस्को कानून 2012 में संशोधन किए गए हैं। राज्य सरकार का कहना है कि प्रस्तावित कानून एक ऐतिहासिक कानून है जिससे सर्वाइवर को जल्द न्याय मिलेगा। हालांकि कानून के जानकारों का कहना है कि जल्दबाजी में लाया गया विधेयक है जिसमें इंसाफ होने के साथ-साथ अन्याय का भी डर है। विधेयक में एफआईआर के 21 दिन में जांच पूरी करने और दोष साबित होने पर 10 दिन में फांसी का प्रावधान है। अभी जांच की प्रचलित समय सीमा दो महीने है। ममता के मुताबिक वे चाहती थीं कि केंद्र कड़ा कानून लाए, जो नहीं किया गया। भाजपा नेता और विपक्ष के नेता शुभेंद्र अधिकारी ने विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार नहीं किया गया। ममता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और उन मुख्यमंत्रियों की कड़ी निंदा की जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी ढंग से कानून लागू नहीं कर पाए। देश में बता दें कि रेप के खिलाफ कड़े कानून पहले से ही हैं। 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद उमड़े अभूतपूर्व जन संतोष का एक परिणाम कानूनों में बदलाव के रूप में भी सामने आया था जिसके तहत रेप के लिए मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया था। बावजूद इसके रेप के आंकड़ों में कमी नहीं आई, उल्टा देश में रेप की घटनाएं लगातार बढ़ती गई हैं। दरअसल रेपिस्टों के लिए मौत की सजा की मांग जनभावनाओं के तत्कालिक उभार को शांत करने में भले ही सहायक हो, एक्सपर्ट पहले से कहते रहे हैं कि इससे अपराध को काबू करने में कोई खास मदद नहीं मिलेगी। उल्टे डर रहता है कि कहीं रेपिस्ट विक्टिम को मार ही न डालें क्योंकि उसे पता होता है कि रेप की सजा फांसी हो सकती है, लेकिन हत्या के बाद विक्टिम द्वारा पहचाने जाने की संभावना खत्म हो जाती है, वैसे भी देश में रेप केसों में सजा मिलने का ट्रैक रिकार्ड बहुत खराब है। हर कोई आरोपियों के लिए सख्त सजा की मांग तो कर रहा है लेकिन अक्सर देखा गया है कि रेप के मामले में आरोपियों को सजा मिलते मिलते काफी लंबा अरसा बीत जाता है, जांच में देरी के चलते सालों तक मुकदमा चलता रहता है। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच करना बड़ी चुनौती है। 2022 में लगभग 45,000 रेप के मामलों की जांच पुलिस को सौंपी गई। केवल 26,000 मामलों में ही पुलिस की ओर से चार्जशीट दाखिल की गई। रेप के 10 में से 7 केस में दोषी को सजा मिल पाई। देश में दुष्कर्म से जुड़े मामले में दोष सिद्धी की कम दर को बढ़ाने हेतु सभी राज्यों के लिए चुनौती बना हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि पुलिसिंग का हर पहलू ऐसी घटनाओं को रोकने और तेज जांच के लिए काफी अहम है। अधिकारी मानते हैं कि लगातार बढ़ते अपराध के बावजूद कम दोष सिद्धी दर की बड़ी वजहों में जांच में देरी, जरूरी सबूतों को एकत्र करना, फोरेसिंक सहित अन्य वैधानिक जांच के लिए इफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना भी बड़ा मुद्दा है। हकीकत यह है कि केवल कानून से इन दुष्कर्मियों पर काबू नहीं पाया जा सकता। सुरक्षा व्यवस्था में कोताही के प्रति जिम्मेदार लोगों पर भी लगाम कसनी जरूरी है। यह कानून से नहीं सामाजिक चेतना पर ज्यादा निर्भर करता है। इसके लिए समाज भी कम कसूरवार नहीं है। अनिल नरेन्द्र

आईसी-814: कंधार अपहरण

कंधार अपहरण की भयावह घटना 24 साल पहले हुई थी लेकिन एक बार फिर यह घटना चर्चा में आ गई है। कारण है कि नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज आईसी-814। फिल्म मेकर अनुभव सिन्हा के द्वारा बनाई गई यह शानदार फिल्म वेब सीरिज हाल ही में ओटीटी प्लेटफार्म नेटफिल्क्स पर रिलीज हुई। फिल्म ये कंधार प्लेन हाईजेक पर आधारित है। सोशल मीडिया पर यूजर्स खासकर भाजपा मीडिया सेल का आरोप है कि अनुभव सिन्हा ने जानबूझकर तथ्यों के साथ घोषणा की है। उनका कहना है कि सीरीज का इस्तेमाल एक प्रोपेगंडा के तौर पर किया गया है क्योंकि इस सीरीज में हाईजैकर्स के नाम चीफ, डाक्टर, बर्गर, भोला और शंकर बताए गए हैं। आरोप लगाया गया है कि वेब सीरीज में चार हाईजैकर्स के नाम जानबूझकर बदले गए हैं। इस विवाद को ज्यादा हवा दी है भाजपा के सोशल मीडिया हेड अमित मालवीय ने उन्होंने निर्माताओं पर निशाना साधते हुए कहा- आईसी-814 के हाईजैकर्स आतंकवादी थे। उन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान को छिपाया था। अनुभव सिन्हा ने उनके गैर-मुस्लिम नाम देकर उनके अपराध को छिपाने की कोशिश की है। इसका परिणाम क्या होगा? दशकों बाद लोग सोचेंगे कि आईसी-814 को हिन्दुओं ने हाइजैक किया था। इस मामले में अनुभव सिन्हा ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है लेकिन उन्होंने कांग्रेsस प्रवक्ता डाक्टर अरुणेश कुमार यादव की एक पोस्ट को रिपोर्ट किया है जिसमें बताया गया है कि भारत सरकार ने खुद हाईजैकर्स के नाम बताए थे। हाईजैकर्स के नाम को लेकर कुछ लोग बवाल कर रहे हैं, कह रहे हैं कि उनका असली नाम क्यों नहीं इस्तेमाल किया गया? भोला और शंकर कहकर बुलाना हिन्दू धर्म का अपमान करने जैसा है। सच तो ये है कि हाईजैकर्स इसी नाम से प्लेन में दाखिल हुए थे। उनका असली नाम अब विवाद के बाद सीरीज के शुरू में ही दे दिया गया है जो पहले सीरीज के आखिर में आता है। पीटीआई को वेब सीरीज के कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश चावड़ा ने बताया है कि शो के लिए पूरी रिसर्च की गई थी। अपहरणकर्ता एक-दूसरे को इन्हीं नामों से पुकार रहे थे। दरअसल 6 जनवरी 2000 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक, हाईजैकर्स के सही नाम इब्राहिम अतहर (बहालपुर), शाहिद अख्तर सईद (गुलशन इकबाल, कराची) सनी अहमद काजी (डिफेंस एरिया, कराची), मिस्त्राr जहूर इब्राहिम (अख्तर कालोनी, कराची और शाकिर (सुक्कुर सिटी) से थे। इसी बयान में बताया गया था कि पैसेजेंर्स के सामने हाईजैकर्स एक दूसरे को चीफ, बर्गर, डाक्टर, भोले और शंकर कहकर संबोधित कर रहे थे। गृह मंत्रालय का यह बयान भारत के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर आज भी मौजूद है, हाईजैक की घटना के बाद खुफिया एजेंसियों ने मुंबई से चार चरमपंथियों को गिरफ्तार किया था। इनसे पता चला था कि हाईजैक की पूरी योजना पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक ऑपरेशन था जिसे चरमपंथी संगठन हरकत-उल-अंसार ने अंजाम दिया था। 24 दिसम्बर 1999 को नेपाल की राजधानी काठमांडू से दिल्ली जा रही उड़ान को हरकत-उल-अंसार के पांच आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। इस दौरान विमान में पैसेंजर्स और क्रू मेंबर्स को मिलाकर कुल 180 लोग सवार थे। अपहरण के कुछ ही घंटों बाद आतंकियों ने एक यात्री रूपिन कटियाल को मार दिया। रात दो बजे यह विमान दुबई पहुंचा जहां के शेख ने ईंधन भरे जाने के एवज में कुछ यात्रियों को रिहा करवा लिया था। 27 यात्री रिहा हुए थे। बाद में यह विमान अमृतसर होते हुए कंधार पहुंच गया था। वहां क्या हुआ सबको मालूम ही है। वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख उमर को लेकर कंधार गए और यात्रियों को रिहा करा लिया।

Saturday 7 September 2024

माधवी बुच को स्वयं पद से हट जाना चाहिए

सेबी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के खिलाफ आए दिन आरोप लगते रहते हैं। कभी हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उनके खिलाफ आरोप लगते हैं तो कभी सेबी के कर्मियों की तरफ से तो कभी कांग्रेस पार्टी की तरफ से। सबसे पहले तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उनके खिलाफ आरोप लगे। अब ताजा आरोप कांग्रेस ने लगाया है। कांग्रेस ने सेबी की अध्यक्ष माधवी बुच के खिलाफ हितों के टकराव के नए आरोप लगाते हुए सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी नियुक्ति के मामले में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के प्रमुख के रूप में स्पष्टीकरण देने की मांग की है। कांग्रेस ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष माधवी बुच पर आरोप लगाया है कि बुच सेबी के अध्यक्ष का पदभार संभालने के बावजूद आईसीआईसीआई बैंक से लाभ के पद पर हैं। बताया जा रहा है कि माधवी ने कंसल्टेंसी फर्म चलाकर नियमों का उल्लंघन करते हुए एक अन्य कंपनी से करोड़ों रुपए कमाए। रायटर्स ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के हवाले से जानकारी दी। माधवी ने अगोरा एडवाइजरी नामक कंपनी से सात साल में 3.71 करोड़ रुपए कमाए। कांग्रेस ने सोमवार को सेबी प्रमुख माधवी बुच पर कई आरोप लगाए। कांग्रेस ने कहा कि माधवी साल 2017 से 2021 तक सेबी की पूर्णकालिक सदस्य रही हैं। वह साल 2022 में चेयरपर्सन बनीं और साल 2017 से 2024 के बीच माधवी ने आईसीआईसीआई बैंक से 16.80 करोड़ रुपए की सैलरी ली है। दूसरी और आईसीआईसीआई बैंक ने कहा कि बुच ने 31 अक्टूबर 2013 को बैंक से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, इसके बाद बैंक ने उन्हें सेवाकाल के दौरान उनकी क्षमता के अनुसार वेतन, रिटायरमेंट बेनिफिट, बोनस आदि का ही भुगतान किया गया यानि की बैंक ने माना है कि उसने माधवी बुच को इतनी रकम अदा की। यही नहीं उधर जी एंटनटेंमेंट इंटर प्राइजेज के चेयरमैन सुभाष चंद्रा ने भी बुच पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, उनकी कंपनी के खिलाफ 2000 करोड़ रुपए के हेरफेर की जांच चल रही थी। इस साल फरवरी में मंजीत सिंह नामक व्यक्ति ने एक कीमत के एवज में जांच खत्म करने का ऑफर दिया था। चंद्रा के अनुसार एक बैंक के चेयरमैन ने मंजीत सिंह की सिफारिश उनसे की थी। चंद्रा का आरोप है, पहले बुच और उनके पति की सालाना आय एक करोड़ थी। माधवी के सेबी ज्वाइन करते ही यह बढ़कर 40-50 करोड़ रुपए हो गई। चंद्रा ने कहा, यह पता लगना चाहिए कि बुच के सेबी प्रमुख रहते किन-किन कारपोरेट के खिलाफ जांच निपटाई और इसके एवज में उन्होंने और उनके करीबियों ने कितनी फीस ली। दूसरी ओर सेबी ने चंद्रा के आरोपों का खंडन करते हुए दुर्भावना से प्रेरित करार दिया। सवाल यह उठता है कि माधवी पुरी बुच पर जब इतने आरोप लग रहे हैं तो उन्हें उनके वर्तमान पद से अलग क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इससे भाजपा नेतृत्व पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। यह मुद्दा दबने वाला नहीं। माधवी बुच को तो स्वयं अपने पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए। वह कह सकती हैं कि जब तक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पूरी नहीं होती मैं अपने पद से स्वेच्छा से हटती हूं ताकि यह कोई न कह सके कि मैंने जांच को किसी तरह प्रभावित किया है। -अनिल नरेन्द्र

किसी का भी घर यूं नहीं ढहाया जा सकता!

देशभर में विभिन्न मामलों के आरोपियों के घरों पर हो रहे बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। इस बात को लेकर पिछले कुछ समय से सवाल उठने शुरू हो गए थे कि अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध का आरोपी है तो सिर्फ इस कारण उसके घर को बुलडोजर से कैसे गिराया जा सकता है? अब इस मामले पर दाखिल याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है और साफ कर दिया है कि किसी भी व्यक्ति का मकान महज आरोप के आधार पर नहीं गिराया जा सकता। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथ की पीठ ने राज्य सरकारों के बुलडोजर एक्शन पर सवाल खड़े किए। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से जस्टिस गवई ने पूछा किसी का घर केवल इस आधार पर कैसे ढहाया जा सकता है कि वो किसी मामले में अभियुक्त है? जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि कोई व्यक्ति दोषी भी है तो कानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय का एक ट्वीट कहता है कि राज्य में बुलडोजर की कार्रवाई कथित पेशेवर अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ है। अलग-अलग राज्यों में आरोपियों और अपराधियों के खिलाफ की जा रही बुलडोजर कार्रवाई जीरो टालरेंस के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा था जिससे कई तरह के सवाल खड़े हो रहे थे। यह ट्रेंड उत्तर प्रदेश से शुरू है, अब इसका इस्तेमाल अन्य राज्यों में भी शुरू हो गया था। गैर-भाजपा सरकारें भी त्वरित न्याय का संदेश देने के लिए इस तरह की कार्रवाई का इस्तेमाल करने से खुद को भी नहीं रोक सकीं। हालांकि इस तरह की कार्रवाई के पक्ष में हर जगह दलील यही दी जा रही थी कि सरकारी बुलडोजर अवैध निर्माण को ही निशाना बना रहे हैं। लेकिन जिस तरह से एक धर्म के लोगों के खिलाफ यह कार्रवाई की जा रही थी उससे साफ था कि मामला सिर्फ अवैध निर्माण का नहीं था। ताजा उदाहरण कांग्रेस के स्थानीय नेता हाजी शहजाद अली का है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार के दौर में शुरू हुई ऐसी कार्रवाई आगे भी चलती रही। हाजी शहजाद अली मध्य प्रदेश के छतरपुर में पिछले महीने यानि अगस्त में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक विवादित टिप्पणी के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इस दौरान पुलिस को ज्ञापन देने पहुंची भीड़ ने कोतवाली पर पत्थरबाजी कर दी थी। इसी मामले में हाजी शहजाद के मकान पर बुलडोजर चला दिया गया था। घर के बाहर खड़ी तीन कारों को भी बुलडोजर से कुचल दिया गया था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख की बारीकियां खासतौर पर गौर करने लायक हैं। कोर्ट ने पहले तो यह साफ किया कि इस आधार पर किसी का भी घर नहीं ढहाया जा सकता कि वह किसी मामले में आरोपी है। यहां तक कि अगर कोई अपराधी साबित हो जाता है। तब भी उसका घर नहीं गिराया जा सकता। फिर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह किसी भी रूप में गैर-कानूनी निर्माण का बयान करने के मूड में नहीं। राज्य सरकारों के बुलडोजर एक्शन पर यह भी सवाल उठाया जाता है कि कोई व्यक्ति किसी अपराध का अभियुक्त है तो उसकी सजा पूरे परिवार को क्यों दी जाए? शायद यही वजह ही है जोकि शीर्ष अदालत ने संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे ताकि अचल संपत्तियों को विध्वंस होने से बचाया जा सके और इस मुद्दे पर पूरे देश के लिए एक ठोस दिशा-निर्देश जारी किया जा सके।

Thursday 5 September 2024

अब नमाज ब्रेक विवाद में फंसे हिमंत सरमा


असम के बड़बोले मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा एक बार फिर विवादों में फंसते नजर आ रहे हैं। वह अक्सर विवादास्पद बयान देते रहते हैं। ताजा मामला असम में विधानसभा के कामकाज से जुड़े एक फैसले को लेकर है। उनके इस बयान से जहां विपक्ष नेता हावी हुए हैं वहीं एनडीए के कुछ घटक दल भी इनके खिलाफ खुलकर सामने आ चुके हैं। दरअसल हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य विधानसभा में मुस्लिम विधायकी को नमाज के लिए मिलने वाले दो घंटे के ब्रेक को खत्म कर दिया है। इस फैसले की जहां विपक्षी पार्टियां आलोचना कर रही हैं, वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए में भी इस फैसले के खिलाफ आवाज उठ रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के दो प्रमुख सहयोगी दलों जद (यू) और लोक जनशक्ति पार्टी ने इसकी आलोचना की है। बता दें कि मुस्लिम विधायकों को नमाज के मद्देनजर दो घंटे की ब्रेक देने की 1937 से चली आ रही परम्परा को बिस्वा ने समाप्त कर दी है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि हिन्दू और मुस्लिम विधायकों के साथ बैठकर यह फैसला किया है लेकिन एनडीए के घटक दलों ने संविधान में दी गई धार्मिक आजादी का उल्लघंन बताते हुए इसकी आलोचना की। आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को कहा था कि असम के मुख्यमंत्री सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं, उन्होंने एक्स पर अपने वीडियो के साथ कुछ ऐसे शब्द लिखे जिसको लेकर भाजपा का आरोप है कि यह एक नस्लीय टिप्पणी है। उन्होंने अपनी पोस्ट में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना असम के मुख्यमंत्री हिमंत सरमा से करते हुए चीन का जिक्र किया है। बता दें कि तेजस्वी के बयान पर भाजपा और मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह अपनी आपत्ति जता चुके हैं। लेकिन अब खुद हिमंत का बयान आ चुका है। उन्होंने पत्रकारों से शनिवार को कहा, कौन क्या बयान देता है। उससे हमारा काम थोड़े ही रूकेगा। हमारा काम तो आगे ही जाता है। तेजस्वी ने अपने बयान में कहा कि हिमंत योगी आदित्यनाथ का चाइनीज वर्जन हैं। वह केवल ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे हैं। वहीं नीतीश कुमार की पार्टी नेता नीरज कुमार ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि हिमंता बिस्वा सरमा को गरीबी उन्मूलन और बाढ़ की रोकथाम जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। असम के मुख्यमंत्री की ओर से लिया गया फैसला देश के संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। हर धार्मिक आस्था को अपनी परम्पराओं को सुरक्षित रखने का अधिकार है। मैं असम के सीएम सरमा से पूछना चाहता हूं कि आप रमजान के दौरान शुक्रवार की छुट्टियों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं और बाबा कहते हैं कि इससे कार्य क्षमता बढ़ेगी। हिन्दू परम्परा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मां कामाख्या मंदिर हैö क्या आप वहां बलि प्रथा पर प्रतिबंध लगा सकते हैं? वरिष्ठ जद (यू) नेता केसी त्यागी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता का प्रावधान है। किसी को भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे संविधान की भावना और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे। चिराग पासवान ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताई है।

-अनिल नरेन्द्र

बिहार में क्या खेला चल रहा है


बिहार में कोई न कोई खेला जरूर चल रहा है, कम से कम जनता दल यूनाइटेड (जद यू) में तो जरूर चल रहा है। सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड के मंत्री अशोक चौधरी के बयान पर पार्टी एक मत नहीं है बल्कि कहें तो बंटी हुई है। अशोक चौधरी का एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह अप्रत्यक्ष रूप से जहानाबाद लोकसभा सीट पर पार्टी की हार के लिए भूमिहार जाति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। जहानाबाद में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अशोक चौधरी इलाके के दबंग भूमिहार नेता जगदीश शर्मा को निशाने पर ले रहे थे। दलित नेता अशोक चौधरी ने कहा था कि कुछ लोगों ने जेडीयू का समर्थन नहीं किया। उन्होंने जहानाबाद सीट पर जद यू उम्मीदवार चंद्रेशरी की हार के लिए भूमिहारों को दोषी ठहाराया था। उन्होंने कहा था जो सिर्फ कुछ पाने के लिए नीतीश जी के साथ रहते हैं, हमें वैसे नेता नहीं चाहिए। हम भूमिहारों को अच्छी तरह से जानते हैं। इस साल लोकसभा चुनाव में जद (यू) के चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी की राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार सुरेन्द्र यादव से हार गए थे। खबर के मुताबिक जगदीश शर्मा इस सीट पर अपने बेटे को टिकट दिलवाना चाहते थे जनता दल यूनाइटेड के भीतर हाल के दिनों में कई चीजें देखने को मिली हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जद (यू) के कई नेताओं ने कई जातियों पर वोट नहीं देने का आरोप लगाया है। इसके बाद केसी त्यागी ने जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया। हाल के दिनों में केसी त्यागी एनडीए का हिस्सा रहते हुए भाजपा की नीतियों की खुलकर आलोचना कर रहे थे। माना जा रहा है कि केसी त्यागी को इसी वजह से जाना पड़ा। यह सब ऐसे वक्त पर हो रहा है, जब बिहार के सियासी दल राज्य विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी कर रहे हैं। इसी साल लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतकर नीतीश कुमार ने कई सियासी पंडितों को के हैरान कर दिया था। लेकिन उनकी इस जीत का श्रेय भाजपा के साथ गठबंधन को भी दिया गया। बिहार में भूमिहार नीतीश कुमार को ही वोट करते हैं। ललन सिंह भूमिहार जाति से हैं, जिन्हें नीतीश ने मोदी मंत्रिमंडल में शामिल करवाया, ललन सिंह का मुसलमान-यादवों की मदद न करने का वाला बयान क्या नीतीश की राजनीति से मेल खाता है? जहानाबाद में भूमिहार और यादव जातियों का चुनाव में बड़ा असर रहा है। अशोक चौधरी के बयान पर नए प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद कहते हैं अब इस पर कहने के लिए कुछ बचा नहीं है क्योंकि उन्होंने स्पष्टीकरण भी दे दिया है, जनता विवेकशील है पर बिहार के जातिवाद सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में भूमिहार आबादी तीन फीसदी से थोड़ी कम है। पर बाकी जातियों की तुलना में भूमिहार आर्थिक और राजनीतिक रूप से संपन्न तबका है। चौधरी के बयान पर प्रवक्ता और बिहार विधान परिषद सदस्य नीरज कुमार ने भी उन पर निशाना साधा था, जिसके बाद जद (यू) के अंदर एक नया विवाद खड़ा हो गया था। नीरज जुमाकर खुद भी भूमिहार जाति से आते हैं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जद (यू) नेता ने इस साल के लोकसभा चुनाव में वोट न देने के लिए किसी जाति या धर्म के लोगों पर टिप्पणी न की हो। इसके पहले सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने लोकसभा परिणाम आने के बाद कहा था कि यादव और मुसलमानों ने उन्हें वोट नहीं दिया, इसलिए वो उनकी कोई मदद नहीं करेंगे। बिहार में विधानसभा चुनाव अगले साल होने हैं। जनता दल के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है। कई मोर्चों पर लड़ाई छिड़ी हुई है जो नीतीश के लिए शुभ संकेत नहीं है।

Tuesday 3 September 2024

हरियाणा चुनाव की कमान संघ के हाथ


आगामी अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को हैट्रिक दिलवाने के लिए सूत्रों का दावा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने कमान संभाल ली है। संघ के सभी सांप्रदायिक संगठन पूरी ताकत के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ खड़े होंगे। चुनाव में टिकट वितरण से लेकर रणनीति तैयार करने जैसे सभी मामलों में संघ से राय-मशविरा किया जा रहा है। भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए संघ का जोर मत प्रतिशत बढ़ाने और 60 फीसदी सीटों पर प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल करने पर है। इसके लिए संघ ने भाजपा हाईकमान को 70 फीसदी सीटों पर नए चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए का सुझाव दिया है। संघ के सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन की व्यापक समीक्षा में पाया गया कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी, अंदरूनी कलह, अति आत्मविश्वास को बेहतर तालमेल की कमी के कारण पार्टी आधी से अधिक बूथों पर प्रतिद्वंद्वियों से पीछे रह गई थी। जिन बूथों पर पार्टी उम्मीदवार पीछे रहे, वहां लचर प्रबंधन और कार्यकर्ताओं की उदासीनता सबसे बड़ा कारण रहा। संघ ने तय किया है कि सभी बूथों पर भाजपा के साथ संघ के कार्यकर्ता भी सक्रिय होंगे। मतदान से पहले हर हाल में एक-एक परिवार से संपर्क किया जाएगा। लोकसभा चुनाव में पार्टी 19,812 बूथों में से 10,072 बूथों पर पीछे रह गई। भाजपा का लक्ष्य विधान चुनावों में 11000 बूथों पर बढ़त हासिल करने का है। इसके लिए संपर्क अभियान में संघ के सभी अनुषांगिक संगठन हिस्सा लेंगे। उधर हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक फ्री-पोर्टल सर्वे आया है। इस सर्वे के अनुसार 90 विधानसभा सीटों वाले प्रदेश में भाजपा के साथ बड़ा खेला हो सकता है। हरियाणा को लेकर लोक पोल ने फ्री-पोल सर्वे किया है। इस फ्री-पोल सर्वे में किसे कितनी सीटें मिलने वाली हैं। इसका अनुमान प्रस्तुत किया गया है। यह फ्री पोल सर्वे 30 अगस्त 2024 को नवभारत टाइम्स में प्रकाशित किया गया है। इस ओपिनियन पोल का साइज 67,500 है। यानि इसमें हरियाणा के 67,500 लोगों से राय ली गई है। लोक पोल सर्वे के मुताबिक हरियाणा में इस बार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर वापसी करेगी। कांग्रेस को इस चनाव में 58-65 सीटें मिलने का अनुमान है। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 46-48 फीसदी हो सकता है। वहीं भाजपा की बात करें तो सर्वे के अनुसार उसे 20-29 सीटें हासिल हो सकती हैं और इसका वोट शेयर 35-37 फीसदी रह सकता है। इस सर्वे के अनुसार तीन से पांच सीटें अन्य के खाते में भी जा सकती हैं। हरियाणा में मुख्य फाइट कांग्रेस और भाजपा में रहेगी। जेजेपी और जैसे क्षेत्रीय दलों का असर न के बराबर रहेगा। लोक-पोल ने 26 जुलाई से 24 अगस्त, 2024 के बीच यह सर्वे किया है, जिसका सैंपल साइज 67,500 का पोर्टेबल डिवाइस पर लोगों से फेस टू फेस इंटरव्यू किए गए थे। इन सर्वे की माने तो जाट, सिख और जाटव बड़े स्तर पर कांग्रेस के समर्थन में जाएंगे। एंटी-इंकंवैंशी फैक्टर का असर भी भाजपा पर पड़ा है।

-अनिल नरेन्द्र

करोड़ों में बनी शिवाजी प्रतिमा 8 माह में गिरी


महाराष्ट्र के मालवन में समुद्र तट पर 8 महीने पहले लगभग 5 करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा सोमवार दोपहर अचानक भरभराकर गिर गई। छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फुट ऊंची प्रतिमा के धराशाही होने की घटना सिर्फ इसलिए दुखद नहीं है कि यह प्रतिमा हमारे एक महानायक की महान स्मृतियों से जुड़ी थी और इसमें भारतीय नौ सेना की साख भी जुड़ी हुई थी बल्कि यह इसलिए भी गंभीर चिंता का विषय है कि हमारे सार्वजनिक निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की कलई खुल गई। गौर कीजिए इस प्रतिमा का निर्माण करोड़ों रुपए की लागत से किया गया और इसी 4 दिसम्बर को नौसेना दिवस पर इसका अनावरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया था। इस घटना पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिवाजी से माफी मांगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को महाराष्ट्र में एक सभा को संबोधित करते हुए कहाö मैं इस घटना पर सिर झुकाकर माफी मांगता हूं। हमारे लिए शिवाजी आराध्य देव हैं। उन्होंने यह बयान शुक्रवार को राज्य के पालघर जिले में वधावन बंदरगाह परियोजना के शिलान्यास समारोह के दौरान दिया। इससे पहले राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी कहा था कि वो इस घटना के लिए माफी मांगने को तैयार हैं। वहीं राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार भी इस घटना के लिए माफी मांग चुके हैं। पीएम मोदी की ओर से माफी मांगने के बावजूद विपक्ष के हमले जारी हैं। विपक्ष कह रहा है कि भ्रष्टाचार की वजह से मूर्ति गिरी है, इसलिए सीएम शिंदे और दोनों डिप्टी सीएम को हटाएं। जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा और उनके सहयोगियों की पहले से ही हालत पतली है। जैसे कि लोकसभा के चुनाव परिणामों ने दर्शा दिया। पत्रकारों से बात करते हुए जयंत पाटिल ने कहा, केवल आठ महीने पहले बनाई गई मूर्ति गिर गई है। यह मूर्ति नहीं गिरी है। महाराष्ट्र का गौरव गिरा है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि तेज हवा चल रही थी इसलिए मूर्ति गिरी। अगर ऐसा होता तो दो या तीन पेड़ गिर जाते, वहीं लगे नारियल के पेड़ों से लटके नारियल भी गिर जाते पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, केवल मूर्ति ही क्यों गिरी? इसका मतलब है कि मूर्ति का काम सही तरीके से नहीं हुआ। मूर्ति का काम कम अनुभव वाले व्यक्ति को दिया गया था जिसे दो फुट की मूर्ति बनाने का अनुभव है, उसे 35 फुट की मूर्ति बनाने का काम दिया गया। कहा तो यह भी जा रहा है कि करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फर्णांडीस ने विपक्ष पर इस मामले को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाया था। इस पर प्रेस कांफ्रेस में शरद पवार ने कहा, इसमें राजनीति कहां है? शिवाजी महाराज के शासनकाल के दौरान जब एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ तो शिवाजी ने व्यक्ति के हाथ और पैर कटवा दिए थे। उन्होंने लोगों के सामने अपराध को लेकर इतना सख्त रुख अपनाया था लेकिन आज भ्रष्टाचार हुआ है। वो भी शिवाजी महाराज की प्रतिमा बनाने के फैसले को उन्होंने कहा जहां-जहां प्रधानमंत्री खुद गए हैं वहां-वहां प्रतिमा गिरी हैं। इससे पता चलता है कि भ्रष्टाचार किस हद तक पहुंच गया है। मूर्ति बनाने में जल्दबाजी की गई इसमें जितना समय लगना चाहिए था उसमें इसलिए जल्दबाजी की गई ताकि विधानसभा चुनाव में इसका राजनीतिक लाभ मिल सके। राजनीतिक लाभ तो दूर की बात अब तो नुकसान का आंकलन करना चाहिए।