Saturday 7 September 2024

माधवी बुच को स्वयं पद से हट जाना चाहिए

सेबी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के खिलाफ आए दिन आरोप लगते रहते हैं। कभी हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उनके खिलाफ आरोप लगते हैं तो कभी सेबी के कर्मियों की तरफ से तो कभी कांग्रेस पार्टी की तरफ से। सबसे पहले तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उनके खिलाफ आरोप लगे। अब ताजा आरोप कांग्रेस ने लगाया है। कांग्रेस ने सेबी की अध्यक्ष माधवी बुच के खिलाफ हितों के टकराव के नए आरोप लगाते हुए सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी नियुक्ति के मामले में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के प्रमुख के रूप में स्पष्टीकरण देने की मांग की है। कांग्रेस ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष माधवी बुच पर आरोप लगाया है कि बुच सेबी के अध्यक्ष का पदभार संभालने के बावजूद आईसीआईसीआई बैंक से लाभ के पद पर हैं। बताया जा रहा है कि माधवी ने कंसल्टेंसी फर्म चलाकर नियमों का उल्लंघन करते हुए एक अन्य कंपनी से करोड़ों रुपए कमाए। रायटर्स ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के हवाले से जानकारी दी। माधवी ने अगोरा एडवाइजरी नामक कंपनी से सात साल में 3.71 करोड़ रुपए कमाए। कांग्रेस ने सोमवार को सेबी प्रमुख माधवी बुच पर कई आरोप लगाए। कांग्रेस ने कहा कि माधवी साल 2017 से 2021 तक सेबी की पूर्णकालिक सदस्य रही हैं। वह साल 2022 में चेयरपर्सन बनीं और साल 2017 से 2024 के बीच माधवी ने आईसीआईसीआई बैंक से 16.80 करोड़ रुपए की सैलरी ली है। दूसरी और आईसीआईसीआई बैंक ने कहा कि बुच ने 31 अक्टूबर 2013 को बैंक से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, इसके बाद बैंक ने उन्हें सेवाकाल के दौरान उनकी क्षमता के अनुसार वेतन, रिटायरमेंट बेनिफिट, बोनस आदि का ही भुगतान किया गया यानि की बैंक ने माना है कि उसने माधवी बुच को इतनी रकम अदा की। यही नहीं उधर जी एंटनटेंमेंट इंटर प्राइजेज के चेयरमैन सुभाष चंद्रा ने भी बुच पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, उनकी कंपनी के खिलाफ 2000 करोड़ रुपए के हेरफेर की जांच चल रही थी। इस साल फरवरी में मंजीत सिंह नामक व्यक्ति ने एक कीमत के एवज में जांच खत्म करने का ऑफर दिया था। चंद्रा के अनुसार एक बैंक के चेयरमैन ने मंजीत सिंह की सिफारिश उनसे की थी। चंद्रा का आरोप है, पहले बुच और उनके पति की सालाना आय एक करोड़ थी। माधवी के सेबी ज्वाइन करते ही यह बढ़कर 40-50 करोड़ रुपए हो गई। चंद्रा ने कहा, यह पता लगना चाहिए कि बुच के सेबी प्रमुख रहते किन-किन कारपोरेट के खिलाफ जांच निपटाई और इसके एवज में उन्होंने और उनके करीबियों ने कितनी फीस ली। दूसरी ओर सेबी ने चंद्रा के आरोपों का खंडन करते हुए दुर्भावना से प्रेरित करार दिया। सवाल यह उठता है कि माधवी पुरी बुच पर जब इतने आरोप लग रहे हैं तो उन्हें उनके वर्तमान पद से अलग क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इससे भाजपा नेतृत्व पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। यह मुद्दा दबने वाला नहीं। माधवी बुच को तो स्वयं अपने पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए। वह कह सकती हैं कि जब तक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पूरी नहीं होती मैं अपने पद से स्वेच्छा से हटती हूं ताकि यह कोई न कह सके कि मैंने जांच को किसी तरह प्रभावित किया है। -अनिल नरेन्द्र

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