Tuesday, 10 September 2024

रेप के 10 में से 7 केस में नहीं मिलती है सजा

पश्चिम बंगाल के आरजी कर मेडिकल कालेज अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में एक महीने के भीतर तृणमूल की ममता सरकार नया विधेयक लेकर आई है। विधानसभा में सर्वसम्मति से अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक 2024 पारित भी कर दिया है। इस विधेयक में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर भारतीय न्याय संहिता 2023 (बीएनएस) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस) और बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बने पॉस्को कानून 2012 में संशोधन किए गए हैं। राज्य सरकार का कहना है कि प्रस्तावित कानून एक ऐतिहासिक कानून है जिससे सर्वाइवर को जल्द न्याय मिलेगा। हालांकि कानून के जानकारों का कहना है कि जल्दबाजी में लाया गया विधेयक है जिसमें इंसाफ होने के साथ-साथ अन्याय का भी डर है। विधेयक में एफआईआर के 21 दिन में जांच पूरी करने और दोष साबित होने पर 10 दिन में फांसी का प्रावधान है। अभी जांच की प्रचलित समय सीमा दो महीने है। ममता के मुताबिक वे चाहती थीं कि केंद्र कड़ा कानून लाए, जो नहीं किया गया। भाजपा नेता और विपक्ष के नेता शुभेंद्र अधिकारी ने विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार नहीं किया गया। ममता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और उन मुख्यमंत्रियों की कड़ी निंदा की जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी ढंग से कानून लागू नहीं कर पाए। देश में बता दें कि रेप के खिलाफ कड़े कानून पहले से ही हैं। 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद उमड़े अभूतपूर्व जन संतोष का एक परिणाम कानूनों में बदलाव के रूप में भी सामने आया था जिसके तहत रेप के लिए मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया था। बावजूद इसके रेप के आंकड़ों में कमी नहीं आई, उल्टा देश में रेप की घटनाएं लगातार बढ़ती गई हैं। दरअसल रेपिस्टों के लिए मौत की सजा की मांग जनभावनाओं के तत्कालिक उभार को शांत करने में भले ही सहायक हो, एक्सपर्ट पहले से कहते रहे हैं कि इससे अपराध को काबू करने में कोई खास मदद नहीं मिलेगी। उल्टे डर रहता है कि कहीं रेपिस्ट विक्टिम को मार ही न डालें क्योंकि उसे पता होता है कि रेप की सजा फांसी हो सकती है, लेकिन हत्या के बाद विक्टिम द्वारा पहचाने जाने की संभावना खत्म हो जाती है, वैसे भी देश में रेप केसों में सजा मिलने का ट्रैक रिकार्ड बहुत खराब है। हर कोई आरोपियों के लिए सख्त सजा की मांग तो कर रहा है लेकिन अक्सर देखा गया है कि रेप के मामले में आरोपियों को सजा मिलते मिलते काफी लंबा अरसा बीत जाता है, जांच में देरी के चलते सालों तक मुकदमा चलता रहता है। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच करना बड़ी चुनौती है। 2022 में लगभग 45,000 रेप के मामलों की जांच पुलिस को सौंपी गई। केवल 26,000 मामलों में ही पुलिस की ओर से चार्जशीट दाखिल की गई। रेप के 10 में से 7 केस में दोषी को सजा मिल पाई। देश में दुष्कर्म से जुड़े मामले में दोष सिद्धी की कम दर को बढ़ाने हेतु सभी राज्यों के लिए चुनौती बना हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि पुलिसिंग का हर पहलू ऐसी घटनाओं को रोकने और तेज जांच के लिए काफी अहम है। अधिकारी मानते हैं कि लगातार बढ़ते अपराध के बावजूद कम दोष सिद्धी दर की बड़ी वजहों में जांच में देरी, जरूरी सबूतों को एकत्र करना, फोरेसिंक सहित अन्य वैधानिक जांच के लिए इफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना भी बड़ा मुद्दा है। हकीकत यह है कि केवल कानून से इन दुष्कर्मियों पर काबू नहीं पाया जा सकता। सुरक्षा व्यवस्था में कोताही के प्रति जिम्मेदार लोगों पर भी लगाम कसनी जरूरी है। यह कानून से नहीं सामाजिक चेतना पर ज्यादा निर्भर करता है। इसके लिए समाज भी कम कसूरवार नहीं है। अनिल नरेन्द्र

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