Thursday, 27 July 2017

आरटीआई से खुलासा ः ईवीएम में गड़बड़ी हुई

5 राज्यों में हुए चुनाव के परिणाम सामने आते ही विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी के आरोप लगने शुरू हुए। अब ईवीएम मशीन में गड़बड़ी एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। आज आम आदमी पार्टी ने ईवीएम को लेकर एक बार फिर सवाल उठाए हैं। आम आदमी पार्टी ने रविवार को कहा कि अब तो  चुनाव अधिकारी ने सूचना के अधिकार के तहत मान लिया है कि चुनाव में गड़बड़ी हुई थी, निर्दलीय उम्मीदवार का वोट भाजपा को गया। आप ने कहा कि भाजपा को अब यह मान लेना चाहिए कि यह मोदी लहर नहीं, बेइमानी की लहर थी। भाजपा ईवीएम में बड़े स्तर पर पूर्व नियोजित सेटिंग कर सभी चुनावों को बेइमानी से जीतती आई है और अब चुनाव आयोग को सभी दलीलें किनारे कर उच्च स्तरीय जांच करनी चाहिए। आप के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने महाराष्ट्र में हुए उपचुनाव को लेकर ट्वीट कर कहा कि आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि निर्दलीय उम्मीदवार को मिले वोट भाजपा को चले गए। यह मामला बुलढाणा जिला चुनाव परिषद का है। रिटर्निंग आफिसर ने इस मामले की पुष्टि की है। चुनाव आयोग के दावों के विपरीत महाराष्ट्र में ईवीएम से छेड़छाड़ की बात साबित हुई है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से यह खुलासा हुआ है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने बताया कि महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में हाल ही में हुए परिषदीय चुनाव के दौरान लोगार के सुल्तानपुर गांव में मतदान के दौरान ईवीएम से छेड़छाड़ की बात सामने आई है। गलगली ने कहा, मतदाता जब भी एक प्रत्याशी को आवंटित चुनाव चिन्ह नारियल का बटन दबाते तो बीजेपी के चुनाव चिन्ह कमल के सामने वाला एलईडी जल उठता। निर्वाचन अधिकारी ने इसकी जानकारी जिलाधिकारी को दी, जिसका खुलासा आरटीआई से मिली जानकारी से हुआ। निर्वाचन क्षेत्र से कई निर्वाचन अधिकारियों द्वारा जिलाधिकारी के पास शिकायत करने के बाद उस मतदान केंद्र पर मतदान रद्द कर दिया गया, मतदान केंद्र को बंद कर दिया गया, गड़बड़ ईवीएम मशीन को सील कर दिया गया। बाद में मतदान पूरी तरह रद्द कर पांच दिन बाद 21 फरवरी को पुनर्मतदान करवाया गया। क्या वाकई में ईवीएम मशीन में गड़बड़ संभव है? क्यों दुनिया के विकसित देशों ने इस तकनीक को नहीं अपनाया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये सर्वविदित है की ईवीएम विसंगतियों से ग्रस्त है और इसके साथ आसानी से छेड़छाड़ की जा सकती है और इसके लिए रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है। उन्नत टेक्नोलॉजी के दौर में तो ये और भी संवेदनशील मुद्दा बन गया है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका इससे पहले ही तौबा कर चुके हैं। नीदरलैंड ने ईवीएम मशीन से पारदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए पाबंदी लगा दी थी। आयरलैंड ने 51 मिलियन इसके अनुसंधान पर खर्च करने के बाद पारदर्शिता का हवाला देते हुए पाबंदी लगा दी। जर्मनी ने भी इसमें पारदर्शिता न होने का हवाला देकर इसको असंवैधानिक करार दिया और पाबंदी के साथ यह भी कहा कि इसके साथ छेड़छाड़ करना आसान है। अमेरिका के कैलीफोर्निया ने इसमें पेपरट्रेल न होने की वजह से बैन कर दिया। फ्रांस व इंग्लैंड में भी इसका प्रयोग नहीं किया जाएगा। वहीं यह भी सच है कि आज तक भारत में कोई भी राजनीतिक दल ईवीएम की हैकिंग का पुख्ता सुबूत नहीं दे पाया है। चुनाव आयोग का हमेशा से यह स्टैंड रहा है कि मशीन को दो बार चैक किया जाता है। उसे उम्मीदवार के सामने जांचा और सील किया जाता है। काउंटिंग से पहले भी ई&वीएम को उम्मीदवार के सामने खोला जाता है। बता दें कि इससे पहले  भी छेड़छाड़ की शिकायतों को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट खारिज कर चुकी है। चुनाव आयोग ने दावा किया था कि ये मशीनें पूरी तरह सुरक्षित हैं और इसमें किसी भी तरह की गड़बड़ी किए जाने की गुंजाइश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग को लेकर फिलहाल कोई आदेश देने से इंकार कर दिया है। चूंकि अब आरटीआई ने नया खुलासा किया  है इसलिए ईवीएम पर नई बहस शुरू हो गई है। सबसे बेहतर विकल्प है ईवीएम में पेपर ट्रेल देने का। चुनाव आयोग को अपनी हठ छोड़नी चाहिए और पारदर्शिता लाने के लिए वीवीपेट के साथ भविष्य में सभी चुनाव करवाने चाहिए।

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