Wednesday, 19 July 2017

प्रधानमंत्री की ऐतिहासिक इजरायल यात्रा

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इजरायल की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही। जिस गर्मजोशी से इजरायल के प्रधानमंत्री बेन्थामिन नेतन्याहू ने मोदी का स्वागत किया उससे ऐसा लगा कि जैसे दो प्रधानमंत्री नहीं बल्कि वर्षों से बिछड़े हुए दो भाई गले मिल रहे हों। पिछले 70 सालों में बेशक भारत और इजरायल की दोस्ती रही हो पर इतने खुले रूप में पहली बार नजर आई। भारत और इजरायल का मिलन दरअसल दो संस्कृतियों का मिलन है। वह संस्कृतियां जो पुरातन हैं, जड़ों से जुड़ी हैं और जिन्हें मिटाने के लिए सदियां भी कम पड़ गई हैं। यह दो विचारों का मिलन है और आज के हालात में निहायत लाभदायक भी है। मुस्लिमों व अरबों की निगाह में अच्छा बने रहने के लिए कांग्रेस सरकारें अरब देशों का समर्थन करती रही हैं और ऊपरी तौर से इजरायल का विरोध जाहिर करती रही हैं। इजरायल को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि भारत उससे अरबों रुपयों के हथियार खरीदता रहा है। 70 वर्षों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा यह दर्शाती है कि हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति कितनी कमजोर है, जो हमारे घरों में बम बरसाते रहे, सीमा पर आए दिन कायराना हरकतें करते रहे, उनके लिए हम लाल कालीन बिछाते हैं, क्रिकेट खेलते रह़े, किंतु सुदूर एकांत में खड़ा प्रगतिशील और वैधानिक प्रगति के शिखर छू रहा एक देश हमें चाहता रहा, दोस्ती के हाथ बढ़ाए खड़ा रहा पर हम संकोच से भरे रहे। अब तक इजरायल से दूरी रखने के पीछे दो तर्क काम कर रहे थे। पहला, भारत के मुसलमानों का नाराज होना और दूसरा अरब देशों से भारत के रिश्तों में तनाव पैदा होना। लेकिन इन दोनों बातों में कोई दम नहीं है क्योंकि न तो भारत के मुसलमानों को इजरायल से कुछ लेना-देना हैन ही अरब देशों को इससे कोई मतलब है कि भारत किस-किस से दोस्ती  रखता है। मोदी के इस ऐतिहासिक दौरे के बाद भी भारत-अरब देशों के रिश्तों की स्थिति वही रहेगी जो कांग्रेस शासन में रही। वैसे तो इजरायल का क्षेत्रफल भारत का मात्र 160वां हिस्सा ही है। मगर कुछ तकनीकी क्षेत्रों में वह अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस से भी आगे है। डिफेंस टेक्नोलाजी के कुछ पहलुओं में इजरायल अमेरिका से भी सक्षम है। वह कृषि के क्षेत्र में नई-नई खोज कर सबसे उन्नत देशों में शुमार हो गया है। भारत को इससे लाभ मिल सकता है। वह खारे अथवा गंदे पानी को साफ करके खेती के काम में लाने, यहां तक कि पेयजल बनाने की तकनीक में माहिर है। भारत के खेतों में 90 प्रतिशत साफ-सुथरा पानी जाता है, जबकि इजरायल में पानी की जबरदस्त कमी है। भारत को हालांकि इस बात पर ध्यान देना होगा कि इजरायल की घनिष्ठता से अरब मुल्क हमसे दूर न हो जाएं।

-अनिल नरेन्द्र

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