Saturday, 22 July 2017

खोई जमीन पाने के लिए बहन जी का सियासी दांव

मायावती ने जिस तरह से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया उससे तो यही लगता है कि वह ऐसा करने का मन बनाकर आई थीं। हमें यह समझ अब तक नहीं आया कि बहन जी ने उपसभापति (कांग्रेसी) कुरियन से नाराज होकर इस्तीफा दिया है या मोदी सरकार से खफा होकर? मैं उस समय राज्यसभा की कार्रवाई इत्तेफाक से देख रहा था, जब मायावती उत्तर प्रदेश के दलितों के कथित उत्पीड़न का मुद्दा उठा रही थीं। उन्हें बोलने से उपसभापति पीजे कुरियन जो कांग्रेस के सदस्य हैं, रोकने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि आपने अपनी बात रख दी है, भाषण देने का समय नहीं है। शरद यादव ने भी उनसे विनती की थी कि मायावती को बोलने दिया जाए, लेकिन उपसभापति महोदय ने इसकी इजाजत नहीं दी। फिर मायावती नाराज होकर सदन से चली गईं। मायावती को स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी नाराजगी की असली वजह भाजपा की मोदी सरकार है या कांग्रेस के सांसद उपसभापति पीजे कुरियन? दलितों पर हमले की घटनाओं और खासकर सहारनपुर की हिंसा पर बोलने के दौरान उन्होंने इतने मात्र से आपा खो दिया कि तीन मिनट होते ही कुरियन ने घंटी बजा दी। यह कोई नई-अनोखी बात नहीं। राज्यसभा में अच्छा-खासा समय बिता चुकी मायावती को अच्छे से पता है कि इस तरह की घंटी बजती ही रहती है। मायावती ने कहा कि वह दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और यदि उनके मुद्दे को वह राज्यसभा में नहीं उठा सकतीं, तो उन्हें वहां रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। ऐसा लग सकता है कि मायावती ने कुछ हड़बड़ी में यह कदम उठाया है, मगर वही जानती होंगी कि उनके इस कदम के पीछे सिर्फ तात्कालिक भावुकता नहीं, बल्कि सोची-समझी राजनीतिक रणनीति है। अभी सत्र का दूसरा दिन ही था और उनके पास राज्यसभा के नियम 267 के तहत दलितों के उत्पीड़न के मुद्दे पर बहस कराने का नोटिस देने का अधिकार था। दलितों के बीच खिसकते जनाधार से मायावती का परेशान होना स्वाभाविक है। वास्तव में 2012 से उत्तर प्रदेश में उनके जनाधार को जो धक्का पहुंचना शुरू हुआ उसकी परिणति हाल के विधानसभा चुनाव में नजर आई, जब 403 सदस्यीय विधानसभा में बसपा की सिर्फ 19 सीटें रह गईं। वैसे भी मायावती का राज्यसभा का कार्यकाल अगले वर्ष अप्रैल में खत्म होना था और उन्हें अहसास होगा कि वह अब सिर्फ बसपा के बूते दोबारा वहां नहीं पहुंच सकतीं। देखना तो यह होगा कि उनका त्याग क्या उन्हें नए सिरे से पहले जैसी सियासी ताकत देगा?

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