Wednesday, 26 July 2017

सैनेटरी नैपकिन जैसी जरूरी चीज पर 12… जीएसटी?

दुनियाभर के विकसित देशों में सैनेटरी पैड को हेल्थ प्रॉडक्ट माना जाता है। अमेरिका में तो इसे मेडिकल डिवाइस माना गया है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन इस पर निगरानी रखता है। इसे कई क्वालिटी टेस्ट पास करने पड़ते हैं। जबकि भारत में इसे तौलिये और पेन्सिल की तरह मिसलेनियस आइटम की श्रेणी में रखा गया है। हमारे देश में करीब 43 करोड़ महिलाएं हैं। यह सैनेटरी नैपकिन उनके लिए सबसे जरूरी चीज है, लेकिन सरकार इसे मिसलेनियस (विविध) की श्रेणी में रखकर 12… जीएसटी लगा रही है। इसका देशभर में विरोध होना स्वाभाविक ही है। सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली को इसके विरोध में वीडियो भेजने वाली वनश्री वनकर का कहना है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों में सैनेटरी पैड इस्तेमाल करने की आदत नहीं है। ऐसे में उन्हें जागरूक करना है तो फ्री में पैड उपलब्ध कराना होगा। ऐसे में 12… टैक्स देना तो पूरी तरह गलत है। अगर सरकार फ्री नहीं दे सकती तो कम से कम इस पर सब्सिडी तो दे सकती है। सैनेटरी पैड पर जीएसटी वापस करना चाहिए। इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरमैन ललित कुमार मंगलम कहती हैं कि सेल्फ हैल्प गुप्स के बनाए पैड पर जीएसटी बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। वे यूं भी कॉटन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए कमी या छूट कुछ शर्तों के साथ ही होनी चाहिए। वह गांवों में मुफ्त नैपकिन उपलब्ध कराएं और महिलाओं को जागरूक भी करें। इसके साथ ही प्रॉडक्ट की क्वालिटी भी चैक होना चाहिए। असम से सांसद सुष्मिता देव कहती हैं कि सैनेटरी नैपकिन पर इतना ज्यादा जीएसटी लगाने का अर्थ है कि महिलाओं को इसका इस्तेमाल करने के प्रति हतोत्साहित करना। नेशनल हैल्थ मिशन के तहत चल रही स्कीम को मजबूत किया जाना चाहिए। सरकार का यह फैसला बिल्कुल गलत है। महिलाओं की इस मांग से खुद केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी भी इत्तेफाक रखती हैं। उन्होंने कहा कि हमने सैनेटरी नैपकिन को लेकर वित्तमंत्री को कई बार लिखा है। यही नहीं, इसके खिलाफ चल रहे कैंपेन का भी समर्थन किया। सरकार के इस कदम को शेट्टी वुमन आर्गेनाइजेशन के तहत काम करने वाले एनजीओ `शी सेज' ने कोर्ट में भी चुनौती दी है। उसका कहना है कि उसे मिसलेनियस की कैटेगरी से निकालकर बेसिक जरूरतों वाली लिस्ट में रखने की जरूरत है। इसकी अगली सुनवाई 24 जुलाई को होने वाली है। इस संस्था के अनुसार देश की 49.7 करोड़ महिलाओं में से करीब 88… महिलाएं (करीब 43.7 करोड़) सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं। वे इसकी जगह फटे-पुराने कपड़ों, फूस, रेत, अखबार तथा प्लास्टिक आदि का इस्तेमाल करती हैं। सैनेटरी नैपकिन से जीएसटी पूरी तरह हटना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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