Saturday 22 July 2017

रायसीना हिल पर राम

बेशक भाजपा के रामनाथ कोविंद देश के चौदहवें राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं और उनकी जीत निश्चित भी थी पर उन्हें सिर्फ 65.65 प्रतिशत वोट ही मिले। यह 44 साल में किसी राष्ट्रपति को मिला सबसे कम वोट शेयर भी है। इससे पहले 1974 में कांग्रेस के फखरुद्दीन अहमद को 56.23 प्रतिशत वोट मिले थे। कोविंद 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। उनको जीत भले ही कम वोट से मिली हो पर वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुन लिए जाने के बाद भाजपा को पहली बार अपना राष्ट्रपति मिला है और भाजपा 33 साल पहले कांग्रेस जितनी मजबूत हो जाएगी। यह पहला मौका होगा जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति भाजपा के होंगे। लोकसभा में बहुमत भी है और 17 राज्यों में उसकी सरकार भी है। 1984 में 404 सीटें जीतकर राजीव गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनाई थी। तब 17 राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और उपराष्ट्रपति वेंकटरमण भी कांग्रेसी थे। रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश मूल के पहले राष्ट्रपति हैं। इसके पहले देश में 13 राष्ट्रपति हुए। इनमें तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन जरूर उत्तर प्रदेश के थे लेकिन मूल रूप से वह आंध्रप्रदेश के हैदराबाद में एक बड़े जमींदार परिवार में जन्मे थे। अखबार पढ़ने वालों या टीवी देखने वालों के लिए भले ही रामनाथ कोविंद का नाम ज्यादा परिचित न रहा हो, पर भाजपा के विश्वासपात्र को खबरों में रहना पसंद नहीं और वह लो-प्रोफाइल व्यक्ति रहे हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के फारुख गांव स्थित उनके पैतृक आवास में जश्न का माहौल होना स्वाभाविक है। कोविंद 71 वर्षीय राष्ट्रपति निर्वाचित होने वाले भाजपा के प्रथम सदस्य और दूसरे दलित नेता हैं। यूपी के दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद को देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचाकर भाजपा ने 2019 के आम चुनाव के लिए सामाजिक समीकरणों की जमीन भी तैयार करने का प्रयास किया है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति कोविंद अब भले ही भाजपा के सक्रिय नेता न रहे हों, लेकिन वह परोक्ष रूप से भाजपा के सबसे बड़े दलित चेहरा बन गए हैं। भाजपा की चुनावी रणनीति में दलित व पिछड़ा समीकरण सबसे ऊपर है। दोनों सर्वोच्च पदों पर दलित व पिछड़े वर्ग के नेता उनकी नई पहचान बनते जा रहे हैं। रामनाथ कोविंद के लिए बेशक यह जीत आसान थी पर आगे की चुनौतियां निश्चित तौर पर उतनी आसान नहीं होंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि उन्हें राजनीति के मंजे हुए विद्वान नेता प्रणब मुखर्जी की जगह लेनी है। पांच साल के पूरे कार्यकाल में ऐसा मौका शायद नहीं ही आया, जब प्रणब मुखर्जी के किसी फैसले पर अंगुली उठाने का मौका मिला हो, जबकि वह एक ऐसे दौर में राष्ट्रपति रहे, जब देश में एक बहुत बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ। इस पूरे दौर में उन्होंने न सिर्फ एक आदर्श राष्ट्रपति की छवि पेश की बल्कि जहां जरूरत पड़ी, सरकार को चेताने का काम भी किया। लेकिन रामनाथ कोविंद का पूरा राजनीतिक सफर जिस तरह से निर्विवाद रहा है, उसे देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं कि वह इन चुनौतियों पर खरे उतरेंगे और चुनौतियां कोविंद के लिए भी कम नहीं होंगी। सबसे अहम मुद्दा जो निकट भविष्य में सामने आएगा वह है अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है। अदालत कह चुकी है कि दोनों पक्षों को कोर्ट से बाहर समझौता कर लेना चाहिए। हालांकि फिलहाल तो इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही। अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अगर भाजपा की उम्मीदों के पलट कोई फैसला दिया तो सरकार उसके अनुसार कोई संवैधानिक कदम उठा सकती है। ऐसे में राष्ट्रपति भवन बड़ा सहारा होगा। भाजपा धर्म के आधार पर सिविल कोड का शुरू से ही विरोध करती आ रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान ट्रिपल तलाक बड़ा मुद्दा बना था। इस मामले में 2019 के चुनाव से पहले कोई बिल लाया जा सकता है। लोकसभा में भाजपा का बहुमत है पर राज्यसभा में 49 वोट कम पड़ेंगे। अगर राज्यसभा में वेंकैया सहयोगी दलों के समर्थन से बिल पास करवाने में सक्षम हुए तो राष्ट्रपति भी कोई अड़चन पैदा नहीं करेंगे। हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के मामले में कोई मुद्दा नहीं होता पर इस पद के लिए दोनों उम्मीदवारों का दलित वर्ग से होने से दलितों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। पर राष्ट्रपति कोविंद पूरे देश के मुखिया हैं, किसी वर्ग विशेष के नहीं इसलिए उन्हें सिर्फ दलित वर्ग के नेता के रूप में अब नहीं देखा जा सकता। लेकिन फिर भी उनके राष्ट्रपति बनने से एक फर्क तो पड़ेगा ही, देश का दलित वर्ग इसमें अपनी सशक्तिकरण की झलक देखेगा। उसका भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास और पुख्ता जरूर होगा। ग्रामीण आंचल से एक गरीब परिवार व दलित वर्ग का व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच जाए यह भारत जैसे मजबूत लोकतंत्र में ही संभव है। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्री रामनाथ कोविंद अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह पद की गरिमा और संवैधानिक तकाजों के अनुरूप ही करेंगे। हम श्री कोविंद को भारत के चौदहवें राष्ट्रपति बनने पर हार्दिक बधाई देते हैं।

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