Tuesday, 31 January 2023

दिल्लीवासियों को नहीं मिल रही बुनियादी सुविधाएं!

दिल्ली नगर निगम के चुनाव के बाद, उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने पार्षदों को शपथ लेने और मेयर, डिप्टी मेयर और 6 स्थायी समिति सदस्यों का चुनाव करने के लिए दो बार सदन बुलाने की अनुमति दी। लेकिन बीजेपी और आम आदमी पार्टी में झड़प हो गई। इस पर एमसीडी बैठक बिना किसी नतीजे के स्थगित कर दी गई, जबकि नियमों के मुताबिक सदन की पहली बैठक में मेयर का चुनाव पूरा हो जाना चाहिए था. लेकिन मेयर का चुनाव अभी दूर था. पार्षदों ने सदन की गरिमा तो तार-तार कर ही दी, लोकतंत्र का मखौल उड़ाकर जनता की उम्मीदों का भी गला घोंट दिया, जिन्होंने उन्हें ऐसा पार्षद चुनने के लिए भेजा था, जो सदन में बैठने लायक हो. दिन।आज जनता की उम्मीदों पर पानी फेर कर प्रतिनिधि उन्हें मेयर नहीं बनने दे रहे हैं। सच तो यह है कि मेयर नहीं बनने से जनहित की एक भी योजना शुरू नहीं हो पा रही है. इतना ही नहीं, पिछले 9 महीने से दिल्ली को मेयर नहीं मिलने से नागरिकों की बुनियादी सुविधाओं पर असर पड़ने लगा है. और यह पहली बार होगा कि स्थायी समिति में उपस्थित हुए बिना सदन में पार्षदों द्वारा विचार-विमर्श किए बिना प्रस्ताव पारित कर दिए जाएंगे। एमसीडी चुनाव में बहुमत के बावजूद आम आदमी पार्टी अपना मेयर नहीं बना पा रही है. नगर निगम चुनाव में AAP ने 250 में से 134 सीटें जीतीं. जबकि बीजेपी 104 पर सफल रही. लेकिन 30 सीटों के अंतर के बाद भी बीजेपी मेयर बनाने का दावा कर रही है और इसी दावे के चलते सदन में दो बार हंगामा हुआ. सूत्रों की मानें तो फिलहाल मेयर बनने का कोई संकेत नहीं है. तीनों निगमों के विलय के बाद केंद्र सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अश्विनी कुमार को मेयर के स्थायी समिति अध्यक्ष के साथ विशेष आयुक्त नियुक्त किया था. अधिकृत भी. लेकिन कारण जो भी हो, जनहित की योजनाएं होने के कारण विशेष पदाधिकारी अश्विनी कुमार ने फाइलों पर हस्ताक्षर करना कम कर दिया है. उनका कहना है कि अब मेयर आ रहे हैं और वहीं फैसला लेंगे. दिल्ली सीडी चुनाव में सफल होने और सदन की बैठक में शपथ लेने के बाद भी पार्षदों को अभी फंड नहीं मिलेगा. फंड की कमी के कारण वे अपने क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य नहीं कर पाएंगे. एमसीडी एक्ट परिचित के मुताबिक, मेयर बनने के साथ-साथ स्थायी समिति का चुनाव होने तक पार्षदों को फंड नहीं दिया जाएगा. नहीं, यह जारी रहेगा . हालांकि, वे अधिकारी की अनुशंसा कर अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्य करा सकेंगे. ताजा खबरों के मुताबिक अब मेयर चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, ऐसे में लगता है कि अप्रैल महीने में मेयर का चुनाव हो सकता है. (अनिल नरेंद्र)

खुलेआम धोखा धड़ी !

वित्तीय अनुसंधान फर्म हेडेनबर्ग ने आरोप लगाया है कि अदानी समूह खुलेआम शेयरों में हेरफेर कर रहा है और खाता धोखाधड़ी में शामिल रहा है। भारतीय अरबपति गौतम अडानी ने धोखाधड़ी के आरोपों के बाद अरबों रुपये खोने के बाद अनुसंधान फर्म पर दावा किया है। जवाब दिया। वहीं हेडेनबर्ग ने जवाब में कहा है कि वह अपनी रिपोर्ट को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं. एशिया के सबसे अमीर आदमी ने कहा कि उनकी कंपनी पर शेयरों में खुलेआम हेराफेरी करने और खातों में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया है, जो सही नहीं है. मतदाता पर गलत जानकारी देने का आरोप लगाया गया है. रिसर्च के खुलासे के बाद अडानी ग्रुप को अपने शेयरों की कीमत में करीब 11 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। अडानी ग्रुप अब न्यूयॉर्क स्थित हेडेनबर्ग रिसर्च कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहा है। इस बीच, हेडेनबर्ग ने कहा कि वह अपनी रिपोर्ट में बताए गए तथ्यों पर कायम हैं और किसी भी अमेरिकी अदालत में अडानी की कानूनी कार्रवाई का स्वागत करेंगे। हेडेनबर्ग रिसर्च ने कहा कि वह किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई करने के लिए तैयार है और अडानी ने हमारी रिपोर्ट के 36 घंटे के भीतर एक भी गंभीर मुद्दे पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिससे खुद को निर्दोष साबित करने का मौका मिलता है। अभी तक अडानी ने एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया है. उसी समय, जैसा कि हमें उम्मीद थी, अडानी ने डराने-धमकाने का रास्ता चुना। मीडिया को दिए एक बयान में, उन्होंने 720 से अधिक उदाहरणों के साथ हमारी 106-पृष्ठ, 32,000-शब्दों की रिपोर्ट को बिना शोध के बताया और कहा हम हमारे खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के लिए अमेरिकी और भारतीय कानूनों के तहत कानूनी आवश्यकताओं पर विचार कर रहे हैं। जहां तक ​​कंपनी द्वारा कानूनी कार्रवाई की धमकी का सवाल है, हम यह स्पष्ट करते हैं कि हम इसका स्वागत करेंगे। अगर अडानी गंभीर हैं तो अमेरिका में मुकदमा दायर करना चाहिए. अपनी रिपोर्ट में हेडनबर्ग ने अडानी पर कॉरपोरेट जगत के सबसे बड़े धोखाधड़ी करने वालों में से एक होने का आरोप लगाया है। ये आरोप ऐसे समय में आए हैं जब अडानी ग्रुप के शेयरों की सार्वजनिक बिक्री शुरू होने वाली है। अडानी ग्रुप के पास टैक्स हेवन्स में कंपनियों का स्वामित्व है। पूछताछ की गई है। हेडेनबर्ग ने कहा है कि शोध के लिए अडानी समूह के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों सहित कई लोगों से बातचीत की गई है। लगभग 6 देशों में हजारों दस्तावेजों की समीक्षा की गई है। स्थिति का पता लगाया गया है। क्या अब फूटेगा अडानी का गुब्बारा? (अनिल नरेंद्र)

Saturday, 28 January 2023

पारा -25 डिग्री चला जाता है पर जिंदगी चलती रहती है

नाव्रे जैसे देश के जहां तापमान माइनस 25 डिग्री तक चला जाता है वहां पर जिंदगी सामान्य रूप से चलती रहती है। 50-50 दिन सूरज नहीं निकलता। पारा माइनस 25 डिग्री तक चला जाता है। बर्प पर फिसलने से चोट लगना आम बात है। अंधेरे में एक्सीडेंट भी बहुत होते हैं। चीजें बहुत महंगी हैं। ऐसी जगह पर क्या आप रह पाओगे? मगर यह सिक्के का एक पहलू है। कईं बार निगेक्टिविटी में पॉजिटिविटी भी होती है। सिर्प नजरिया बदलने की जरूरत होती है। नजारा खुद बदल जाता है। यह रिपोर्ट पढ़ने के बाद गारंटी है कि आपको भी यह तो जरूर लगने लगेगा कि काश! मैं भी यहां जा पाता या फिर यहीं बस जाता। जैसा कि अभिषेक रंजन (रिसर्च पेलो, आर्टिक यूनिवर्सिटी ऑफ नाव्रे) को लगता है। करीब 70 हजार की आबादी वाले इस शहर का दूसरा पहलू यह है कि यह चारों तरफ ऊंचे पर्वतों से घिरा है। बीच में समुद्र है। आसमान में अरोटा (वुदरती रंगीन लाइट्स) और दोनों किनारों पर बसी आबादी का नजारा देखते ही बनता है। फिर 50 दिनों तक यहां सूरज नहीं निकलता, उससे पहले लोग विटामिन डी, विटामिन सी और आमेगा, बी-12 के सप्लीमेंट्स जुटा लेते हैं, ताकि शरीर में जरूरी चीजों की कमी न हो। सभी लोग रोज दिन में वुछ वक्त एलईंडी लाइट्स को देखते हैं, ताकि शरीर में सूरज की रोशनी की कमी पूरी कर सवें। पेड़-पौधों के सामने भी यही लाइट्स लगाते हैं ताकि वह जिंदा रह सवें। बर्प पर न फिसलें, उसके लिए स्पाइस लगाते हैं। बाहर निकलने के समय रेट्रो रिफ्लेक्टर पहनते हैं, जो बांह में लगता है। लाइट पड़ते ही चमकने लगता है ताकि एक्सीडेंट न हो। सदा हो या गमा, बर्पबारी हो या बारिश-यहां स्वूल-कॉलेज और ऑफिस का वक्त नहीं बदलता। इनकी टाइमिग सुबह आठ बजे से शाम करीब चार बजे की रहती है। लोग पूरी जिंदादिली से जीते हैं। हां, पैसे के बारे में तो सोचते भी नहीं। बचत नहीं करते क्योंकि इलाज-पढ़ाईं का खर्च सरकार उठाती है। ड्राइवर और क्लीनर जैसा काम करने वाले भी हर महीने ढाईं से तीन लाख रुपए कमा लेते हैं। एक सिनेमा हॉल है, जहां अलग-अलग भाषाओं की फिल्में लगती हैं, जिनमें अंग्रोजी में सब टाइटल्स होते हैं। हाल में लाल सिह चड्ढा, आरआरआर भी लगी थी। यहां व््राइम न के बराबर है, अगर आपका पर्स बस में गिर जाए तो संभवत: वापस मिल जाएगा। वैश का कोईं झंझट नहीं होता। सब वुछ डिजिटल है। हिसा तो दूर की बात, लोग चिल्लाते तक भी नहीं। ज्यादातर लोगों के पास ऑडी, मर्सिडीज व टेस्ला व््रौनी लग्जरी कारें हैं। स्किल्ड जॉब में न्यूनतम वेतन 1840 प्राति घंटा व अनस्किल्ड में 1,656 रुपए प्राति घंटा है। नौकरी गईं तो बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। पांच साल भी जॉब की तो पेंशन मिलना तय है, बच्चा है तो परवरिश के लिए प्रातिमाह 12 हजार रुपए। पत्नी गर्भवती है तो नौ महीने की पेड लीव है। इलाज खर्च 16 हजार रुपए तक इससे ऊपर प्री। ——अनिल नरेन्द्र

सेना से सबूत की जरूरत नहीं है

भारत जोड़ो यात्रा ने न केवल राहुल गांधी की छवि ही बदली है बल्कि उनमें मैच्यूरिटी भी आईं है। वह अब अपनी प्रोस कांप्रोंस में बड़े विश्वास के साथ परिपक्व जवाब देते हैं सवालों का। ताजा उदाहरण है कांग्रोस पाटा के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिह द्वारा पुलवामा आतंकियों के हमले के बारे में मांगे गए सबूतों का। राहुल गांधी ने लक्षित हमले पर पाटा के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिह की टिप्पणियों को हास्यास्पद करार दिया और कहा कि सशस्त्र बल असाधारण रूप से अच्छा काम कर रहे हैं और उन्हें कोईं सबूत दिखाने की जरूरत नहीं है। राहुल गांधी को लक्षित हमले एवं पुलवामा आतंकवादी हमले पर दिग्विजय सिह की टिप्पणियों को लेकर झज्जर कोटली/जम्मू में मंगलवार को पत्रकारों के सवालों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि पाटा सिह के बयान से पूरी तरह से असहमत है। गांधी ने प्रोस कांप्रोंस में कहा—ऐसे लोग हैं जो बातचीत के दौरान हास्यास्पद बातें कहते हैं। एक वरिष्ठ नेता के बारे में ऐसा कहते हुए मुझे दुख हो रहा है कि उन्होंने हास्यास्पद बात कही है। उन्होंने कहा—हमें अपनी सेना पर पूरा भरोसा है। अगर सेना कोईं काम करती है तो उसे कोईं सबूत देने की जरूरत नहीं है। मैं उनके बयान से पूरी तरह असहमत हूं और यह कांग्रोस पाटा की आधिकारिक स्थिति है कि यह दिग्विजय सिह का निजी दृष्टिकोण है। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सिह के बयान पर कहा कि हम हमारी सेना के साथ हैं। हम हमेशा देश की एकता के लिए काम करते आए हैं, आगे भी वैसे ही करेंगे। राहुल ने एक बार फिर संघ और भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि भारतीय जनता पाटा (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी छवि (पप्पू) बिगाड़ने के लिए व््रामबद्ध तरीके से हजारों करोड़ रुपए लगाए हैं। लेकिन सच हमेशा सामने आता है। कांग्रोस नेता ने कहा कि आप किसी को अपमानित कर सकते हैं, किसी की छवि बिगाड़ सकते हैं। किसी सरकार को खरीद सकते हैं। पैसे से वुछ भी किया जा सकता है, लेकिन वह सच नहीं होगा। सच हमेशा धन और ताकत को किनारे कर देता है और भाजपा के नेता धीरे-धीरे इस हकीकत से वाकिफ हो रहे हैं। इस बीच प्राख्यात लेखक पेरुमल मुरुगन तथा जम्मू-कश्मीर प्रादेश कांग्रोस समिति के अध्यक्ष विकार रसूल वानी, उनके पूर्ववता गुलाम अहमद मीर और पूर्व मंत्री तारिक हामिद भी तिरंगा लेकर सैकड़ों लोगों के साथ पद्यात्रा करते नजर आए। लद्दाख क्षेत्रीय कांग्रोस अध्यक्ष नवांग रिगजिन जोरा की अगुवाईं में लद्दाख के 65 सदस्यीय प्रातिनिधिमंडल ने यात्रा की शुरुआत में गांधी के साथ चलते हुए उन्हें लोगों के मुद्दों से अवगत किया। कश्मीरी पंडितों के एक प्रातिनिधिमंडल ने भी राहुल से एक घंटे तक बातचीत की और कश्मीरी पंडितों की समस्याओं से अवगत कराया। राहुल ने इसका जिव््रा अपनी प्रोसवार्ता में भी किया। जम्मू-कश्मीर में यात्रा के साथ जिस तरह स्थानीय जनता जुड़ रही है वह अभूतपूर्व है। राहुल की यात्रा से एक नया माहौल तैयार हुआ है, कार्यंकर्ताओं में नईं जान आईं है। फसल तैयार है पर काटने वाला चाहिए।देखना यह है कि राहुल की यात्रा का कांग्रोस फालोअप क्या करती है?

Tuesday, 24 January 2023

पाकिस्तान के हालात श्रीलंका से भी बदतर

पाकिस्तान आर्थिक दुष्चव््रा में पंसता जा रहा है। जनता को आटे जैसी जरूरी चीजों की किल्लत के साथ भयंकर महंगाईं का सामना करना पड़ रहा है। कर्ज 274 अरब डॉलर (करीब 62 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए) हो गया है, जो जीडीपी का 90 प्रातिशत है। उसकी स्थिति श्रीलंका से भी खराब है। विदेशी मुद्रा भंडार नौ साल के निचले स्तर पर 4.3 अरब डॉलर ही बचा है। जिससे मुश्किल से तीन हफ्ते तक आयात जारी रह सकता है। विदेशी मुद्रा संकट के कारण जरूरी सामग्री का आयात भी नहीं हो पा रहा है। जरूरी सामग्री से भरे हजारों टैंकर कराची पोर्ट पर भुगतान के अभाव में अटके हैं। कर्ज चुकाने के लिए पाक को पहली तिमाही में आठ अरब डॉलर चाहिए। पाक सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से छह अरब डॉलर की मदद मांगी थी, पर उसने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ाने की शर्त रख दी। आगामी चुनाव के चलते शहबाज सरकार कीमतें बढ़ाने से बच रही है। पाकिस्तानी रुपया गिरता जा रहा है। एक डॉलर के लिए 228 पाकिस्तानी रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और सेना की राजनीति में दखल ने हालत बदतर कर दी है। उस पर एक साल में कर्ज 11.9 लाख रुपए यानि 25 प्रातिशत बढ़ा है। दिसम्बर में महंगाईं 24.5 प्रातिशत पर पहुंच गईं। आगे पाकिस्तान के 90 लाख और लोग गरीबी की चपेट में होंगे। सियासी अस्थिरता है। इमरान सरकार ने जाते-जाते पेट्रोल-डीजल पर सब्सिडी का ऐलान कर दिया। अब शहबाज सरकार इसे वापस लेने की हिम्मत नहीं कर पा रही है। सब्सिडी वापस लेते ही दाम बढ़ने से महंगाईं और विकराल होगी। निम्न, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के नागरिकों की खरीदी क्षमता 30 प्रातिशत कम हो गईं है। महंगाईं बढ़ती जा रही थी। खरीदी की क्षमता कम हो रही थी। इसने हालात बदतर कर दिए। मांग कम हो गईं है और उदृाोग भी चपेट में आ गए हैं। डॉलर के अभाव में जरूरी सामग्री का आयात नहीं हो पा रहा है। आटा, प्याज और जरूरी दवाएं भी नहीं मिल रही हैं। बैंकों से लेटर ऑफ व््रोडिट न मिलने से हजारों वंटेनरों में पोर्ट पर सामग्री अटकी है। सप्लाईं चेन टूटी हुईं है। सोयाबीन का शिपमेंट ढाईं महीने से रुका है जिससे पोल्ट्री उत्पाद के दाम 45 प्रातिशत बढ़ गए हैं। टोयोटा, सुजूकी ने कार प्लांट बंद कर दिए हैं। प्रामुख उदृाोग टैक्सटाइल के भी कईं प्लांट बंद हैं। टोयोटा ने 30 दिसम्बर से उत्पादन रोक दिया है। मांग न होने से कार, ट्रैक्टर और फाइबर का उत्पादन बंद है या कटौती की गईं है। पिछले साल गर्मियों में भीषण बाढ़ से देश में 80 प्रातिशत फसलें तबाह हो गईं। इससे खादृान्नों की कमी हो गईं। एटलांटिक काउंसिल के पाकिस्तान इनीशिएटिव के उजैर यूनुस का कहना है कि बाढ़ ने मुसीबत और बढ़ा दी है। ——अनिल नरेन्द्र

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर विवाद

भारतीय प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के बारे में भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रातिव््िराया दी है। साथ ही ब्रिटेन के प्राधानमंत्री त्रषि सुनक ने भी इस बारे में ब्रितानी संसद में उठे एक सवाल का जवाब दिया है। बीबीसी ने दो एपिसोड की एक डॉक्यूमेंट्री बनाईं है जिसका नाम है—इंडिया : द मोदी क्वेन। इसका पहला एपिसोड 13 जनवरी को ब्रिटेन में प्रासारित हो चुका है। अगला एपिसोड 24 जनवरी को प्रासारित होने जा रहा है। पहले एपिसोड में नरेंद्र मोदी के शुरुआती राजनीतिक करियर को दिखाया गया है जिसमें वह भारतीय जनता पाटा में आगे बढ़ते हुए, गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रावक्ता अरिदम बागची ने गुरुवार को प्रोसवार्ता के दौरान पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा—मुझे यह साफ करने दीजिए कि हमारी राय में यह एक प्राोपेगंडा पीस है। इसका मकसद एक तरह के नैरेटिव को पेश करना है जिसे लोग पहले ही खारिज कर चुके हैं। इस फिल्म या डॉक्यूमेंट्री को बनाने वाली एजेंसी और व्यक्ति इसी नैरेटिव को दोबारा चलाना चाह रहे हैं। बागची ने डॉक्यूमेंट्री बनाने की बीबीसी की मंशा पर भी प्राश्न उठाया। उन्होंने कहा—हम इसके मकसद और इसके पीछे के एजेंडे पर सोचने को मजबूर हैं। यह डॉक्यूमेंट्री एक अप्राकाशित रिपोर्ट पर आधारित है जिसे बीबीसी ने ब्रिटिश फोरेन ऑफिस से हासिल किया है। इस डॉक्यूमेंट्री में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में साल 2002 में हुईं हिसा में कम से कम 2000 लोगों की मौत पर सवाल उठाए गए हैं। ब्रिटिश विदेश विभाग की रिपोर्ट का दावा है कि मोदी साल 2002 में गुजरात में हिसा का माहौल बनाने के लिए प्रात्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे। पीएम मोदी हमेशा हिसा के लिए जिम्मेदार होने के आरोपों का खंडन करते रहे हैं। लेकिन जिस ब्रिटिश वूटनयिक ने ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के लिए रिपोर्ट लिखी है उससे बीबीसी ने बात की है और वह अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष पर कायम है। भारत का सुप्रीम कोर्ट पहले ही प्राधानमंत्री मोदी को गुजरात हिसा में किसी भी तरह की संलिप्तता से बरी कर चुका है। इस रिपोर्ट को लिखने वाले एक वूटनयिक बताते हैं—हमारी जांच के निष्कर्ष अब भी वाजिब हैं। साल 2002 में गुजरात में एक सुनियोजित हिसा में 2000 लोग मारे गए थे। यह एक तथ्य है। इस रिपोर्ट के बारे में बीबीसी ने खबर भी की थी। वूटनयिकों की यह रिपोर्ट उस समय के ब्रितानी विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ द्वारा ऑडिट की गईं जांच का हिस्सा थी। रिपोर्ट कहती है कि हिसा का विस्तार मीडिया में आईं रिपोर्टो से कहीं अधिक था और दंगों का उद्देश्य हिन्दू इलाकों से मुसलमानों को खदेड़ना था। ब्रिटेन के सांसद इमरान हुसैन ने यह मुद्दा वहां की संसद में उठाया और पूछा कि क्या प्राधानमंत्री त्रषि सुनक वूटनयिकों की इस रिपोर्ट से इत्तेफाक रखते हैं जिसमें मोदी को गुजरात हिसा के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया गया है। इस प्राश्न के उत्तर में प्राधानमंत्री त्रषि सुनक ने कहा कि सांसद द्वारा किए गए चरित्रीकरण से वह सहमत नहीं हैं। ब्रिटेन की सरकार की इस बारे में स्थिति लंबे समय से साफ है।

Thursday, 19 January 2023

पहले सफर पर निकल पड़ा गंगा विलास

इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् दुनिया के सबसे लंबे रिवर व््राूज अपने पहले सफर पर निकल पड़ा है। शुव््रावार को वाराणसी से रवाना हुआ एमवी विलास शाकाहारी भारतीय खानपान, एल्कोहलयुक्त जिम, स्पा और चिकित्सीय मदद जैसी कईं सुविधाओं से लैस है। इस जहाज पर सफर करने के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ेगी। एक यात्री का किराया करीब 50-55 लाख रुपए होगा। इतनी ऊंची कीमत के बावजूद इस व््राूज पर सफर करने की मंशा रखने वाले लोगों को एक साल से अधिक समय का इंतजार करना होगा। इसकी वजह यह है कि यह व््राूज मार्च 2024 तक पहले ही बुक हो चुका है यानि एमवी गंगा विलास व््राूज से वाराणसी-डिब्रूगढ़ का सफर तय करने के लिए किसी व्यक्ति को अप्रौल 2024 तक इंतजार करना होगा। गंगा विलास व््राूज वाराणसी के रविदास घाट से रवाना होगा और बिहार बंगाल के रास्ते बांग्लादेश होते हुए असम के डिब्रूगढ़ पहुंचेगा। पूरी यात्रा वुल 57 दिनों की होगी। लेकिन व््राूज के शुरू होने से पहले ही बिहार में इसका विरोध होने लगा है। बिहार के सत्ताधारी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिह ने आरोप लगाया है कि गंगा विलास व््राूज चलाना जनता के पैसे की लूट है। ललन सिह ने कहा है कि हर साल व््राूज चलाने के लिए गंगा नदी में जमा गाद को साफ किया जाएगा और फिर बाढ़ में इसमें गाद भरेगा। यह यात्री जहाज भारत और बांग्लादेश के 27 रिवर सिस्टम और सात नदियों—गंगा, भागीरथी, मेघना, हुगली, जमुना, पदमा और ब्रrापुत्र से होकर गुजरेगी। इस यात्रा से 50 पर्यंटन स्थल आपस में जुड़ेंगे। इससे पहले 11 जनवरी को 56 घंटे की यात्रा के बाद उत्तर प्रादेश के बलिया से यह जहाज वाराणसी पहुंच गया था। व््राूज के निदेशक राज सिह का कहना है कि यह अकेला ऐसा जहाज है जो स्वदेशी तकनीक और फनाचर से लैस है। व््राूज को भारत की ही आर्ट हिस्टोरियन डॉ. अन्नपूर्णा गरीमाला ने डिजाइन किया है। यह विशेष जहाज कोलकाता के पास एक शिपयार्ड में तैयार किया गया है। जहाज तो 2020 में ही तैयार हो गया था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसका उद्घाटन नहीं हो पाया था। लग्जरी सुख-सुविधाओं से लैस इस व््राूज में हर वो आधुनिक सुविधा मौजूद है, जिसकी दरकार किसी सफर में हो सकती है। 62.5 मीटर लंबे, 128 मीटर चौड़े और 1.35 मीटर गहरे इस तीन मंजिला जहाज में वुल 18 सूट यानि लग्जरी कमरे हैं। कमरे में कनवर्टिबल बैड, प्रोंच बालकनी, एयरकंडीशनर, सोफा, एलईंडी टीवी, स्मोक अलार्म, अटैच बाथरूम जैसी तमाम सुविधाएं हैं। जहाज पर जिम, स्पा, आउटडोर ऑब्जव्रेशन डेक, निजी बटलर सेवा और यात्रियों के लिए विशेष संगीत, सांस्वृतिक कार्यंव््राम का भी इंतजाम है। व््राूज के इंटिरियल को देश की संस्वृति और हैरिटेज को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। 13 जनवरी को वाराणसी से रवाना होने के 51 दिनों बाद यह जहाज एक मार्च को असम के डिब्रूगढ़ पहुंचेगा। इस दौरान यह भारत के पांच राज्यों—उत्तर प्रादेश, बिहार, झारखंड, पािम बंगाल, असम और साथ ही बांग्लादेश से होकर गुजरेगा। जहाज बांग्लादेश में 15 दिनों तक रुकेगा। इसके अलावा इस पूरी यात्रा में अलग-अलग राज्यों के वुल 50 टूरिस्ट स्पाट्स का भी लुत्फ पर्यंटक उठा सवेंगे। इसमें विश्व धरोहर स्थल, नेशनल पार्व, नदियों के घाट और अन्य जगहें शामिल होंगी। वुछ हलकों में इसका विरोध इसलिए भी किया जा रहा है कि गंगा और पवित्र नदियों में मांस, मदिरा का सेवन होगा। ——अनिल नरेन्द्र

लोकतंत्र मजबूत करने हेतु 80 हजार लोग सड़कों पर

इजरायल में नईं सरकार के न्यायिक प्राणाली में व्यापक सुधारों को लेकर और उन्हें लागू करने की योजना के विरोध में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। शनिवार रात राजधानी तेल अवीव में 80 हजार से ज्यादा लोगों ने सरकार के खिलाफ प्रादर्शन किया। अन्य शहरों में भी विरोध प्रादर्शन किए गए, विरोध रैलियां निकाली गईं। यरुशलम में पीएम आवास के बाहर और फाइफा में भी लोग सड़कों पर उतर आए। लोगों ने सरकार के खिलाफ व््िरामिनल गवर्नमेट और दी एंड ऑफ डेमोव््रोसी व पागलपन बंद करो के नारे लगाए। तेल अवीव में एक जगह प्रादर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प भी हुईं। लोग सरकार की सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की कोशिशों का विरोध कर रहे हैं। दरअसल प्राधानमंत्री नेतन्याहू सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को लेकर एक प्रास्ताव जारी किया है। इस प्रास्ताव के पास होने पर इजरायल की संसद को सुप्रीम कोर्ट के पैसलों को पलटने का अधिकार मिल जाएगा। संसद में जिसके पास भी बहुमत होगा, वह सुप्रीम कोर्ट के पैसले को पलट सकेगा। नए प्रास्तावों के पारित होने पर जजों को चुनने वाली कमेटी में ज्यादातर सदस्य सत्ताधारी पाटा से होंगे। इससे जजों की नियुक्ति में सरकार का दखल बढ़ जाएगा और कानूनी सलाहकारों की स्वतंत्रता भी प्राभावित होगी। सरकार के मन से सुप्रीम कोर्ट का डर ही खत्म हो जाएगा। सरकार विरोधियों का कहना है कि इस योजना को लागू होने के बाद सरकार बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ चल रहे मामलों को खत्म कर सकती है। लोगों का मानना है कि इससे देश का लोकतंत्र और सुप्रीम कोर्ट कमजोर होगा। भ्रष्टाचार बढ़ेगा और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कमी आएगी, इसलिए वह इकट्ठे होकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। वह पीएम नेतन्याहू की तुलना रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से कर रहे हैं। इजरायल के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस्थर हयात, मुख्य विपक्षी नेता और अटाना जनरल ने भी सरकार की इस योजना का विरोध किया है। इस बीच इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमार बेन-ग्विर ने पुलिस से सड़क रोकने और फिलिस्तीनी झंडे लहराने वाले प्रादर्शनकारियों पर सख्त कार्रवाईं करने को कहा है। लगभग यही स्थिति हमारे देश में भी चल रही है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट की कईं मुद्दों पर ठनी हुईं है। कोलेजियम से लेकर संसद के अधिकारों पर सरकार व सुप्रीम कोर्ट में विवाद छिड़ा हुआ है। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए यह अति-आवश्यक है कि जुडिशियरी पूरी तरह से स्वतंत्र हो और सरकार के गलत कदमों का गलत विधेयकों की समीक्षा कर सके। सुप्रीम कोर्ट पर किसी प्राकार की पाबंदी लोकतंत्र के लिए घातक होगी। सबसे अच्छा रास्ता तो यह है कि सरकार और न्यायपालिका मिल बैठ कर विवादों को खत्म करे। संविधान सवरेपरि है। संविधान के अनुसार दोनों की शक्तियां तय होनी चाहिए।

Tuesday, 17 January 2023

टीवी चैनल समाज में दरार डाल रहे हैं

दरार डाल रहे हैं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में टेलीविजन चैनल समाज में दरार पैदा कर रहे हैं। ऐसे चैनल एजेंडे से संचालित होते हैं और सनसनीखेज समाचारों के लिए प्रातिस्पर्धा करते हैं। यह पैसा लगाने वालों के आदेश पर काम करते हैं। चैनलों पर नफरत पैलाने वाले बयान पर नाराजगी जताते हुए अदालत ने कहा—नफरती भाषण, एक राक्षस है, जो सबको निगल जाएगा। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीबी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि देश में बेरोजगारी, महंगाईं सरीखी कईं अन्य समस्याएं हैं। लेकिन इन पर बहस के बजाय नफरती भाषण का सहारा लिया जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। पीठ ने स्पष्ट किया कि वह किसी एक या खास धर्म के बारे में नहीं बोल रहे हैं। जस्टिस जोसेफ ने टिप्पणी की, जब आप बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा करते हैं, तो आपको ऐसा कार्यं करना चाहिए, जैसी आपसे उम्मीद की जानती है। अन्यथा हमारे लिए क्या गरिमा बची है। शीर्ष अदालत शुव््रावार को नफरती भाषण के खिलाफ कदम उठाने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाईं कर रही थी। कोर्ट ने अपने आदेश में दर्ज किया, वेंद्र सरकार समस्याओं से निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर विचार कर रही है। इनमें ऐसी बातों से निपटने के लिए एक कानून भी शामिल है। पीठ ने न्याय मित्र को अगली तारीख पर मसौदा दिशानिर्देश पेश करने के निर्देश भी दिए। जस्टिस जोसेफ ने कहा—चैनल मूल रूप से परस्पर प्रातिस्पर्धा कर रहे हैं। वह इसे सनसनीखेज बनाते हैं। बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण है। लेकिन क्या दर्शक एजेंडे को समझ सकते हैं? चैनल के पीछे पैसा है। मुद्दा यह भी है कि कौन पैसा लगा रहा है? यह तय करते हैं सब वुछ। पीठ ने समाचार प्रासारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) और वेंद्र सरकार से पूछा कि वह इस तरह के प्रासारण को वैसे नियंत्रित कर सकती है? वेंद्र सरकार ने कहा कि वह नफरती भाषण से निपटने के लिए दंड प्राव््िराया संहिता (सीआरपीसी) में व्यापक संशोधन करने की योजना बना रही है। वेंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा—हम सीआरपीसी में संशोधन पर विचार कर रहे हैं। यह भारत सरकार का रुख है। पीठ ने यह भी पूछा—अगर समाचार एंकर खुद नफरत पैलाते हैं, तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाईं की जा सकती है? पीठ ने कहा—एनबीएसए को पक्षपात नहीं करना चाहिए। एकतरफा कार्यंव््राम नहीं हो सकते। लाइव कार्यंव््राम की निष्पक्षता एंकर पर निर्भर करती है। कोर्ट ने कहा—अगर एंकरों को पता हो कि उसे कीमत चुकानी पड़ सकती है, तो वह इससे बचेंगे। एंकरों को हटाया जा सकता है। कोर्ट ने जोर दिया कि मीडियाकर्मियों को पता होना चाहिए कि खुद पर नियंत्रण वैसे किया जा सकता है। ——अनिल नरेन्द्र

राहुल के निशाने पर आरएसएस

राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को 21वीं सदी का कौरव बताया है और कहा है कि धनवानों से उनकी सांठगांठ है। भारत जोड़ो यात्रा के व््राम में हरियाणा और पंजाब के रास्ते पद्यात्रा कर रहे पूर्व कांग्रोस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा—कौरव कौन थे? मैं आपको 21वीं सदी के कौरवों के बारे में बताना चाहता हूं, वो खाकी हाफ पैंट पहनते हैं, हाथों में लाठी लेकर चलते हैं और शाखा का आयोजन करते हैं। भारत के दोतीन अरबपतियों का इनको समर्थन है और इन कौरवों के साथ वह खड़े हैं। बीते वर्ष सितम्बर में दक्षिण भारतीय राज्य केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से शुरू हुईं पद्यात्रा के दौरान भाजपा और आरएसएस लगातार राहुल गांधी के निशाने पर रहे हैं। राहुल गांधी ने आरएसएस-भाजपा को असली टुकड़ेटुकड़ े गैंग, भय और नफरत की सियासत करने वाला करार दिया था। उन्होंने संघ की तुलना मिरत्र में प्रातिबंधित संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड तक से की। राहुल के इतने तल्ख हमलों के बावजूद आरएसएस के रुख को लेकर चर्चा तेज है। राजनीतिक विश्लेषक सवाल कर रहे हैं कि जिस संघ ने महात्मा गांधी की हत्या से जोड़े जाने वाले बयान पर राहुल गांधी को अदालत में घसीटा था, वह हाल के वक्तव्यों पर उतना हो-हल्ला क्यों नहीं कर रहा है? हालांकि आरएसएस के नेता इंद्रेश वुमार ने पिछले दिनों जरूर राहुल गांधी की यात्रा पर सवाल उठाए थे। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था—भारत में कईं लोगों ने यात्राएं की हैं, लेकिन राहुल गांधी नफरत वाली भाषा इस्तेमाल करते हैं। आरएसएस को लगातार निशाना बनाकर वह भारत को जोड़ने की नहीं बल्कि तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व इस पर खामोश है। इसके उलट राम मंदिर ट्रस्ट के दो अहम पदाधिकारियों-जनरल सैव््रोटरी चम्पत राय और कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरी ने भारत जोड़ो यात्रा को लेकर ऐसे बयान दिए हैं, जिन्हें वुछ लोग राहुल गांधी की तारीफ के तौर पर देख रहे हैं। चम्पत राय ने अपने बयान में आरएसएस से अपने रिश्ते पर भी जोर दिया। चम्पत राय ने कहा—देश में एक नौजवान पैदल चल रहा है। अच्छी बात है। इसमें खराब बात क्या है? मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यंकर्ता हूं। संघ से किसी ने आलोचना की है क्या? प्राइम मिनिस्टर साहब ने उनकी यात्रा की आलोचना की है क्या? एक नौजवान देश का भ्रमण कर रहा है, देश को समझा रहा है, यह एक प्राशंसा की बात है। 50 साल का नौजवान हिन्दुस्तान के तीन हजार किलोमीटर की दूरी पैदल चलेगा और इस मौसम में भी चलेगा तो इसको हम एप्रीशिएट (तारीफ) ही करेंगे। चम्पत राय विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने यह बयान उस सवाल के जवाब में दिया था, जिसमें पूछा गया था कि राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने भारत जोड़ो यात्रा को आशीर्वाद दिया है, उस पर वह क्या कहेंगे। स्वामी गोविंद देव गिरी ने कहा—जो भी भगवान राम का नाम लेता है, जो भारत माता का नाम लेता है और उसके लिए वुछ करता है, हम उसे सराहेंगे और कहेंगे कि भगवान राम उन्हें प्रोरणा दें ताकि देश संगठित और सक्षम रह सके। कांग्रोस इन बयानों को राहुल गांधी और यात्रा की तारीफ के तौर पर पेश कर रही है। खासतौर पर राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय के बयान को। क्या भाजपा और संघ में वुछ मतभेद पैदा हो गए हैं?

Sunday, 15 January 2023

क्या 2024 की बिसात इस साल बिछेगी

इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् इस साल की राजनीतिक गतिविधियों से सिर्प 2024 की सियासी बिसात ही नहीं बिछेगी बल्कि लोकसभा चुनाव की दशा और दिशा भी तय हो जाएगी। इस वर्ष नौ राज्यों में चुनाव होने हैं। साल के शुरू में चार राज्यों में चुनाव हैं जबकि साल के आखिर में पांच राज्यों में चुनाव हैं। दक्षिण भारत के कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होंगे तो पूवरेत्तर के मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और मिजोरम में चुनाव होने हैं जबकि हिन्दी पट्टी के तीन बड़े राज्यों—मध्य प्रादेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं। कर्नाटक, मध्य प्रादेश और त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है, जबकि नगालैंड, मेघालय और मिजोरम की सत्ता पर क्षेत्रीय दल काबिज हैं, लेकिन भाजपा सहयोगी दल के तौर पर है। वहीं राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रोस की सरकार है तो तेलंगाना में केसीआर की पाटा टीआरएस काबिज है। इन राज्यों के चुनाव देश की सियासत के लिहाज से बेहद अहम हैं। क्योंकि इसके बाद ठीक लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ज्यादातर राज्यों में भाजपा और कांग्रोस के बीच सीधा मुकाबला है तो क्षेत्रीय दलों की भी अग्नि-परीक्षा है। जिन राज्यों में चुनाव हैं उनमें से ज्यादातर और अहम राज्यों में कांग्रोस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाईं है। मध्य प्रादेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कांग्रोस और भाजपा के बीच सीधी चुनावी जंग होगी। इन चार राज्यों में से कांग्रोस और भाजपा के पास दो-दो राज्य हैं। ऐसे में कांग्रोस अपने दोनों राज्यों की सत्ता बचाए रखते हुए भाजपा से कर्नाटक और मध्य प्रादेश की सत्ता हासिल करने की कोशिश में रहेगी, लेकिन राजस्थान का सियासी रिवाज हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का रहा है, ऐसे में कांग्रोस के लिए काफी जद्दोजहद करनी होगी। वहीं भाजपा को 2018 में इन चार राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा था। कर्नाटक में वह बहुमत साबित नहीं कर पाईं थी। 2019 के बाद मध्य प्रादेश और कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस के जरिये कांग्रोस विधायकों की बगावत ने भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। ऐसे में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण भारत के अपने इकलौते दुर्ग को बचाए रखने की है, क्योंकि रेड्डी बंधुओं ने अपनी अलग पाटा बना ली है। जबकि तेलंगाना में टीआरएस के लिए इस बार भाजपा से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने केसीआर के खिलाफ आकर्षक मोर्चा खोल रखा है तो कांग्रोस भी पूरे दमखम के साथ है। इसके अलावा पूवरेत्तर के त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम में भी क्षेत्रीय दलों से ही दो-दो हाथ करने होंगे। त्रिपुरा में लेफ्ट को अपनी वापसी के लिए भाजपा से ही नहीं बल्कि टीएमसी से भी टकराना होगा। ऐसे ही मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में कांग्रोस के अगुवाईं वाले क्षेत्रीय दलों के गठबंधन और भाजपा के गठबंधन से मुकाबला है। ऐसे में अगर क्षेत्रीय दलों ने अपना प्रादर्शन बेहतर किया तो छोटे दलों की अहमियत बढ़ेगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का आगामी चुनाव में क्या असर पड़ेगा यह भी देखना होगा। वुल मिलाकर यह साल सियासत के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा। ——अनिल नरेन्द्र

चुनी हुईं दिल्ली सरकार का क्या काम है?

अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुनवाईं करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वेंद्र सरकार से सवाल किया है कि अगर प्राशासन का पूरा नियंत्रण उसके पास है तो फिर दिल्ली में एक चुनी हुईं सरकार का क्या काम है? वेंद्र और दिल्ली के बीच कामकाज को लेकर जारी खींचतान के बीच सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को अंग्रोजी अखबार इंडियन एक्सप्रोस ने अपने पहले पóो पर जगह दी है। दिल्ली के कामकाज पर नियंत्रण को लेकर वेंद्र और दिल्ली सरकार के बीच खींचतान के एक मसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाईं कर रही है। इसकी अगुवाईं प्राधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ कर रहे हैं। पीठ ने वेंद्र सरकार की ओर से मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा—अगर सारा प्राशासन वेंद्र सरकार के इशारे पर ही चलाया जाना है तो फिर दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार का क्या उद्देश्य है? सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तुषार मेहता की उस दलील के बाद आईं जिसमें कहा—वेंद्र शासित प्रादेश को बनाने का एक स्पष्ट मकसद यह है कि वेंद्र इसका प्राशासन खुद चलाना चाहता है, इसलिए सभी वेंद्र प्रादेशों को वेंद्र के सिविल सर्विस अधिकारी और वेंद्र सरकार के कर्मचारी चलाते हैं। तुषार मेहता ने कहा कि अधिकारियों के कामकाज पर नियंत्रण और उनके प्राशासकीय या अनुशासन संबंधी नियंत्रण के बीच अंतर होता है। एक चुनी हुईं सरकार के प्रातिनिधि के तौर पर अधिकारियों का कामकाज संबंधी नियंत्रण हमेशा मंत्री के पास रहता है। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए बताया—जब एक वेंद्र सरकार के अधिकारी या आईंएएस अधिकारी को दादर और नागर हवेली में एक आयुक्त के तौर पर तैनात किया जाता है तो वह राज्य सरकार की नीतियों के हिसाब से चलता है। वह अधिकारी किसी को लाइसेंस जारी करने के लिए संबंधित राज्य के व्यापार नियमों को मानेगा और मंत्री के प्राति जवाबदेह होगा। मंत्री नीति बनाएंगे, वैसे लाइसेंस देना और वैसे नहीं देना है, किन मापदंडों पर विचार करना है और मंत्रालय वैसे चलेगा। कार्यं से जुड़ा नियंत्रण निर्वाचित मंत्री का होगा। तुषार मेहता ने कहा—हमारा लेना-देना प्राशासनिक नियंत्रण से है। जैसे कौन नियुक्ति करेगा, कौन विभागीय कार्रवाईं करता है, कौन ट्रांसफर करेगा। लेकिन वह अधिकारी गृह सचिव से यह नहीं पूछ सकता कि वह किसी को लाइसेंस जारी करे या नहीं? इसके लिए उसे मंत्री से पूछना पड़ेगा। यह दो अलग-अलग चीजें हैं और कामकाज का नियंत्रण हमेशा संबंधित मुख्यमंत्रियों के पास ही होता है। इस पर हैरानी जताते हुए सीजेआईं ने पूछा कि क्या इससे विषम स्थिति पैदा नहीं हो जाएगी। उन्होंने कहा मान लीजिए कि कोईं अधिकारी अपना काम ठीक से नहीं कर रहा, दिल्ली सरकार की यह कहने में कोईं भूमिका नहीं है कि इस अधिकारी के बजाय हम कोईं और अधिकारी को चाहते हैं.. देखिया कितना विषम हो सकता है। यह दिल्ली सरकार कहां है? क्या हम कह सकते हैं कि अधिकारी को कहां तैनात किया जाएगा, इस पर दिल्ली सरकार का कोईं नियंत्रण नहीं, फिर वह शिक्षा विभाग हो या कहीं और। इसके जवाब में मेहता ने कहा कि कानून के अनुसार अनुशासन संबंधी नियंत्रण गृह मंत्रालय के हाथ में होगा। ऐसे में उपराज्यपाल को सूचित किया जा सकता है कि वृपया इस अधिकारी को ट्रांसफर कर दीजिए और उपराज्यपाल इस निवेदन को आगे बढ़ाने के लिए बाध्य हैं। सुनवाईं कर रही पीठ में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस वृष्ण मुरारी, जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। इस मामले की सुनवाईं चल रही है।

Thursday, 12 January 2023

चार को फांसी, वुल 40 को सजाएं मौत

40 को सजाएं मौत ईंरान में हिजाब के विरोध में करीब चार माह से चल रहे आंदोलन को बलपूर्वक वुचलने का सिलसिला अब भी जारी है। ऐसे ही प्रदर्शनों में शामिल होने के आरोप में शनिवार को पूर्व राष्ट्रीय कराटे चैंपियन मोहम्मद मेहदी करामी और बच्चों के कराटे कोच सैयद मोहम्मद हुसैनी को फांसी पर लटका दिया गया। ईंरान के न्याय विभाग की समाचार एजंेसी मिजान के मुताबिक करामी और हुसैनी को तीन नवम्बर को पैरा मिलिट्री अधिकारी रोहल्ला अजामियान की हत्या का दोषी पाया गया है। हिजाब विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े मामलों में अब तक वुल चार लोगों को फांसी दी जा चुकी है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शन से जुड़े 41 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को फांसी की सजा सुनाईं गईं है। वहीं, एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि फांसी पर लटकाए गए चारों प्रदर्शकारियों सहित वुल 26 प्रदर्शनकारियों के नाम अब तक सामने आ चुके हैं जिन्हें फांसी की सजा दी गईं है। इनमें से तीन को जल्द ही फांसी पर लटकाया जा सकता है। हिजाब नहीं पहनने के जुर्म में 16 सितंबर को महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद पूरे देश में ये हिजाब के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए थे। अब तक 19,262 प्रदर्शनकारियांे को गिरफ्तार किया जा चुका है। कार्रवाईं में 516 प्रदर्शनकारियांे की जान जा चुकी है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार, उच्चायुक्त सहित तमाम मानवाधिकारी संगठनों का दावा है कि ईंरान की निष्पक्ष सुनवाईं और बचाव का पर्यांप्त मौका दिए बिना ही प्रदर्शनकारियों को मनमाने तरीके से फांसी की सजा दी जा रही है। दोनों प्रदर्शकारियों की फांसी की सजा देने के खिलाफ यूरोपीय संघ के विदेश मामले व सुरक्षा समिति के प्रमुख जोसप बोरेल ने ईंरान में फांसी की सजा की आलोचना की। ईंरान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि रॉबर्ट माले ने इन्हें न्यायिक हत्या करार दिया। ब्रिटिश विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने कहा, हम इस व्रूरता को तुरंत रोकने की मांग करते हैं। प्रांस के विदेश मंत्रालय ने कहा, ईंरानी सरकार बहुत ही घिनौने तरीके से अपने उन लोगों की हत्याएं कर रही है जो वाजिब हक मांग रहे हैं। मानव अधिकार समूहों ने बताया कि 15 अन्य लोगों को मृत्यु दंड दिया जा सकता है। इनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में मौत की सजा का प्रावधान है। मृत्यु दंड प्राप्त अधिकतर लोगों पर मोहरेबेह का आरोप लगाया गया है। इसका अर्थ ईंश्वर के खिलाफ युद्ध छेड़ना है। इस आरोप में मौत की सजा सुनाईं जाती है। सभी लोगों पर व्रांतिकारी अदालत में बंद कमरे में मुकदमें चलाए गए हैं। इसमें सरकारी वकील आरोपियों की पैरवी करते हैं। अक्सर फर्जी सुबूत पेश किए जाते हैं। जबरिया कबूलनामे और वुछ धुंधले अस्पष्ट वीडियो की घटना का आधार बनाया गया है। ——अनिल नरेन्द्र

अनियंत्रित विकास ने पहाड़ों की नींव हिलाईं

पहाड़ों की नींव हिलाईं पर्यांवरण विशेषज्ञों का कहना हैं कि उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में चल रही अनियंत्रित विकास की गतिविधियों ने जोशीमठ शहर की नींव हिलाकर रख दी है। यह संकट गंभीर है तथा सरकार को तत्काल इस क्षेत्र में सुरंग बनाने और पहाड़ों में विस्फोटों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए। क्लाइमेट ट्रेंड्स की तरफ से जारी बयान में विशेषज्ञों ने इस पर गहरी चिंता प्रकट की है। भारतीय इंस्टीटाूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी इंडियन स्वूल ऑफ बिजनेस के सहायक एसोसिएट प्रोपेसर आईंपीसीसी की रिपोर्ट के एक लेखक डा. अंजल प्रकाश ने कहा है कि 2019 और 2022 में प्रकाशित आईंपीसीसी की दो रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह क्षेत्र आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील है। इसलिए इस क्षेत्र के ढांचागत विकास के लिए पर्यांवरण अनुवूल योजनाएं बनानी चाहिए। जहां तक बिजली उत्पादन की बात है, उसके लिए अन्य तरीकों की तलाश की जानी चाहिए। इस क्षेत्र में पनबिजली परियोजनाओं से जितना फायदा होगा, उससे कहीं ज्यादा पर्यांवरण को नुकसान होगा। गढ़वाल विश्वविदृालय के भूवि™ ान विभागाध्यक्ष प्रोपेसर वाईंपी सुंदरियाल के अनुसार, जोशीमठ में चल रहा संकट मुख्य रूप से मानवजनित गतिविधियों के कारण है। यहां जनसंख्या से कईं गुना वृद्धि हुईं है। बुनियादी ढांचे में अनियंत्रित तरीके से वृद्धि हुईं है। इसके बावजूद कस्बे में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है। मलबे की चट्टानों के बीच महीन सामग्री के व्रमिक अपक्षय के अलावा पानी के रिसाव से चट्टानों की शक्ति कम हुईं है। इससे भूस्खलन हुआ है और घरों में दरारें आ गईं हैं। जलविदृाुत परियोजनाओं के लिए इन सुरंगों का निर्माण ब्लास्टिंग के माध्यम से किया जा रहा है, जिससे स्थानीय भूवंप के झटके पैदा हो रहे हैं और घरों में दरारें आ रही हैं। सरकार ने 2013 की केदारनाथ आपदा और 2021 की त्रषिकेश गंगा की बाढ़ से वुछ भी नहीं सीखा। भू-गर्भीय हलचल को लेकर जोशीमठ बेशक इन दिनों सुर्खियों में है लेकिन जोशीमठ ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के नैनीताल, उत्तरकाशी एवं चम्पावत को वैज्ञानिकों ने भू-स्खलन व भू-कटाव के लिहाज से भी गंभीर बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रवृति से छेड़- छाड़ के बजाए इसे बनाए रखने की ठोस नीति की आवश्यकता है। वुमाऊ विश्वविदृालय के भू-गर्भ विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. बीएस कोटलिया ने कहा है कि नैनीताल के मुहाने पर स्थित बलियानाला क्षेत्र भूस्खलन की प्रविष्ठ के अति संवेदनशील है। रिसर्च में पाया गया है कि क्षेत्र की पहाड़ी हर वर्ष करीब एक मीटर ढह रही है। उत्तरकाशी में चूने की पहािड़या हैं। ठीक जोशीमठ की तर्ज पर ही उत्तरकाशी की नींव टिकी हुईं है। चम्पावत में रॉक कमजोर है। सूखी डांग में सबसे अधिक कमजोर पहाड़ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है। जोशीमठ मामले को लेकर प्रधानमंत्री प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने रविवार को उत्तराखंड के जोशीमठ की स्थिति को लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। उम्मीद की जाती है कि सरकार समस्या को गंभीरता को समझे और उचित नीतियां बनाए जिसमें पर्यांवरण का विशेष ध्यान रखा जाए। जरूरत पड़े तो विशेषज्ञों को भी नीति बनाने में शामिल करें।

Tuesday, 10 January 2023

रातोरात 50 लोगों को बेघर मत करो!

सुप्रीम कोर्ट ने हलद्वानी में कब्जे और पुनर्वास के मामले में तत्काल राहत दी है, जो स्वागत योग्य बात है. होय ने कहा है कि यह एक मानवीय मुद्दा है, लेकिन इसका औपचारिक समाधान खोजने की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि सात दिनों में 50,000 से अधिक लोगों को रातों-रात नहीं हटाया जा सकता है. बता दें कि 20 दिसंबर 2022 को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि मैंने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था, जिसके बाद रेलवे अधिकारियों ने इनका सर्वे कराया. विरोध के बीच अवैध बस्तियां 10 जनवरी को बर्बरता की कार्यवाही होनी थी और फैसले से प्रभावित लोगों ने उचित कदम उठाया और सुप्रीम कोर्ट में अंतिम अपील दायर की। जीवन एक समस्या है। भले ही लोग यहां रेलवे की जमीन पर दशकों से रह रहे हैं और वहां बिजली, पानी और स्कूल आदि तमाम सुविधाएं हैं, लेकिन वोट बैंक के आधार पर सभी पार्टियां गुप्त रूप से इन लोगों का समर्थन करती हैं और चुनावों में वोट लेती हैं। तर्क यह है कि बताया जा रहा है कि यहां अवैध निर्माण हैं। फिर वे सुविधाएं क्यों देंगे? बहरहाल, गलत की चर्चा और राजनीतिक नफा-नुकसान की राजनीति तो चलती रहेगी, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार को मानवीय कृत्य के तौर पर कानून से ऊपर उठकर सोचना होगा। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और रेलवे को नोटिस जारी किया. अब अगला 7 फरवरी को होगा. सुप्रीम कोर्ट के स्टे से हजारों लोगों को इस कड़ाके की ठंड में राहत मिली है, राज्य सरकार का भी हिस्सा है? अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उनके पास पट्टे के कागजात हैं और वे 1947 में स्थानांतरित हुए और जमीन की नीलामी की गई। उनका यह भी दावा है कि वे वर्षों से यहां रह रहे हैं, इसलिए उन्हें बसाया जाना चाहिए। वहीं रेलवे की ओर से कहा गया है कि इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई रातों-रात नहीं हुई है, मामला कई दिनों से चल रहा है और मामला बेहद गंभीर है. जमीन रेलवे की है, यह राज्य के विकास की बात है, यह क्षेत्र राज्य का प्रवेश द्वार है. जस्टिस कोल का कहना है कि हम इस मामले में समाधान चाहते हैं और आगे कोई निर्माण या कब्ज़ा नहीं होगा. जस्टिस ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से कहा कि जिन लोगों को जमीन की जरूरत है, उन्हें पहले लोगों को बसाना चाहिए सबसे अहम कसौटी सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए दी कि मुद्दे का स्थायी समाधान निकाला जाना चाहिए. उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे अन्य मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट की राय पर गौर किया जाएगा। (अनिल नरेंद्र)

पत्थर तो दिखते हैं, लेकिन राम सेतु के अवशेष नहीं कह सकते!

पिछले कुछ वर्षों से, विशेषकर पिछला आम चुनाव, भाजपा ने श्री राम के नाम पर लड़ा था, अब वे फिर से श्री राम के नाम पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने त्रिपुरा राज्य की चेन्नई में एक रैली में घोषणा की कि अगले साल 1 जनवरी 2024 तक अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा, यानी आशु लोकसभा चुनाव लड़ा जाएगा। एक तरफ बीजेपी श्री राम की शरण में आती है और उनके सहारे सत्ता तक पहुंचती है. मैं बात कर रहा हूँ श्री राम द्वारा निर्मित राम सेतु की। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को राज्यसभा में रामसेतु पर अपना पक्ष रखा. एक सवाल पर प्रतिक्रिया देते हुए परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ''प्रौद्योगिकी के माध्यम से, कुछ हद तक, हम राम सेतु के टूटे हुए द्वीप और एक प्रकार के चूना पत्थर के ढेर की पहचान करने में सक्षम हैं। ये पुल के हिस्से या अवशेष हैं "कह नहीं सकता. राम सेतु की खोज में हमारी कुछ सीमाएं हैं, इसका इतिहास 18 हजार साल पुराना है, जिस पुल की बात की जा रही है वह 56 किमी लंबा था। सरकार प्राचीन काल और ऐसे मामलों की जांच कर रही है. 2007 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चूंकि कोई संवैधानिक सबूत नहीं है, इसलिए इस जगह को इंसानों ने बनाया है. जब इस मुद्दे पर भारी विरोध हुआ तो सरकार ने हलफनामा वापस ले लिया. अब सरकार कह रही है कि पत्थर दिख रहे हैं और राम सेतु के अवशेष हैं, क्या वे ऐसा नहीं कह सकते? भारत में राम सेतु पर विवाद और राजनीति अच्छी हो गई है. एक बार फिर राम सेतु राजनीतिक दलों की लड़ाई का अखाड़ा बन गया है. हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथो के अनुसार, इस सीटू का निर्माण भगवान राम ने किया था, जबकि अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहते हैं। मुसलमानों के अनुसार, इसका निर्माण हजरत एडम ने किया था। कहा जाता है कि जब लंका का राजा रावण माता के हिरण को ले गया था सीता। इसलिए भगवान राम ने वानरसेना की मदद से इस पुल का निर्माण किया। इस स्थल से होते हुए पुरी वानर सेना लंका पहुंची और राक्षसों को घेरकर माता को मुक्त कराया। भारत में राम सेतु पर असली विवाद 2005 में शुरू हुआ जब तत्कालीन सरकार ने सेतु समुद्रम शिपिंग नहर परियोजना को मंजूरी दी। यह परियोजना इस स्थल को तोड़कर बनाई जानी थी एक चैनल जिसके माध्यम से बंगाल की खाड़ी से आने वाले जहाजों को श्रीलंका के आसपास नहीं जाना पड़ेगा, जिससे समय और दूरी की बचत होगी। और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। मान लीजिए कि सेतु समुद्रम परियोजना को वाजपेयी सरकार ने मंजूरी दी थी। इस बात से इनकार करना हानिकारक होगा कि राम सेतु का अश्व करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा से जुड़ा है। यदि आप भगवान राम में विश्वास करते हैं तो आपको राम सेतु में भी विश्वास करना होगा। करोड़ों हिंदुओं का मानना ​​है कि इस स्थल का निर्माण भगवान राम ने किया था, अगर कोई सरकार इसका विरोध करेगी तो उसे नुकसान होगा। सरकार को न केवल इसे स्वीकार करना होगा, बल्कि जय श्री राम से राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित करना होगा! (अनिल नरेंद्र)

Thursday, 5 January 2023

पावर में आए तो पहले करेंगे ये तीन काम

अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दिल्ली पड़ाव में राहुल गांधी आत्मविश्वास से लबरेज नजर आए। लाखों लोगों से सीधा संवाद करने के बाद राहुल में एक नईं रोशनी नजर आईं। शनिवार को राहुल गांधी ने देश में भाजपा के खिलाफ बड़े पैमाने पर एक अंडरकरंट का दावा करते हुए कहा कि विपक्ष ने प्रभावी ढंग से वैकल्पिक नजरिया सामने रखा तो अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए जीत बेहद मुश्किल हो जाएगी। राहुल गांधी ने शनिवार को एक प्रेस कांप्रेंस की, जब उनसे पूछा गया कि अगर वह पीएम बने तो सबसे पहले तीन काम करेंगे? राहुल बोले-सत्ता में आए तो हम ये काम करेंगे : सबसे पहले शिक्षा का सिस्टम बदलना चाहूंगा। हमारा एजुकेशन सिस्टम ठीक नहीं। 99.9 प्रतिशत बच्चे कहते हैं कि डाक्टर, लॉयर, इंजीनियर, पायलट या आईंएएस बनना चाहते हैं। सिस्टम बता रहा है कि इस पांच के अलावा वुछ नहीं कर सकते। दूसरा : हम बिना स्किल का सम्मान किए युवाओं को रोजगार नहीं दे सकते। अभी जिसके पास स्किल है, हम उनकी मदद नहीं कर सकते। उनकी स्किल को खत्म करने की कोशिश करते हैं। तीसरा : हमें देश में भाईंचारा और प्रेम बढ़ाना है। देश में हिंसा, नफरत का फायदा दूसरे देश उठाते हैं। हमारी विदेशी नीति भ्रमित करने वाली है। इससे देश को नुकसान होगा। राहुल गांधी ने कहा कि आज पाकिस्तान और चीन एक हो गए हैं। यह खतरनाक है। जब हमारी सरकार थी तो हमने उन्हें एक नहीं होने दिया था। चीन-पाकिस्तान एक हुए क्योंकि मौजूदा सरकार लोगों को संभालने में विफल रही। सरकार को सेना का राजनीतिक इस्तेमाल बंद करना पड़ेगा। सावधानी से कदम उठाने होंगे। जो सीमा पर हो रहा है उसे छिपाइए मत। उन्होंने कहा कि मैं भाजपा और आरएसएस को अपना गुरू मानता हूं। वे हमें रास्ता दिखा रहे हैं कि हमें क्या-क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। राहुल ने कहा, सरकार चाहती है कि मैं बुलेटप्रूफ गाड़ी में बैठकर भारत जोड़ो यात्रा करूं। बुलेटप्रूफ में बैठकर यात्रा करना स्वीकार्यं नहीं, भाजपा के नेता रोड शो करते हैं, बुलेटप्रूफ गाड़ी से बाहर निकलते हैं। प्रोटोकाल तोड़ते हैं। उनके लिए नियम अलग हैं। मेरे लिए अलग। राहुल ने कहा, यात्रा के बाद में वीडियो बनाऊंगा कि टी-शर्ट में वैसे चला जाता है। मैं जानता हूं कि विपक्ष के नेता हमारे साथ खड़े हैं। आज हिन्दुस्तान में राजनीतिक मजबूरी और दूसरी मजबूरियां होती है। मैं टिप्पणी नहीं करूंगा कि कौन आ रहा है, कौन नहीं आ रहा है। विपक्ष का बहुत सम्मान करता हूं मगर आप समाजवादी पार्टी को देखें तो उनके पास राष्ट्रीय विचारधारा नहीं है। उनकी उत्तर प्रदेश में जगह है और शायद अपनी इसी जगह की रक्षा करते हैं, इसलिए (साथ) नहीं आए। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश वुमार ने शनिवार को स्पष्ट किया कि राज्य में उनकी सहयोगी कांग्रेस द्वारा अगले आम चुनाव में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर जोर देने से उन्हें कोईं समस्या नहीं है। ——अनिल नरेन्द्र

नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

कोर्ट की मुहर देश की सर्वोच्च अदालत ने साल 2016 में हुईं नोटबंदी के खिलाफ दायर 58 याचिकाओं पर अपना पैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में केन्द्र सरकार के इस पैसले से जुड़े अलग- अलग पहलुओं को चुनौती दी गईं थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने अपने पैसले में नोटबंदी के पैसले को सही ठहराया है। हालांकि जस्टिस नागरत्ना ने अपने पैसले में इसे गैर-कानूनी बताया है। जस्टिस एस नजीर की पीठ ने किन वजहों से याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज किया और किस आधार पर नोटबंदी के पैसले को सही ठहराया है यह जानना अहम है। लॉख लॉ में प्रकाशित खबर के मुताबिक जस्टिस गवईं ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक कानून की धारा 26/2 में दी गईं शक्तियों के आधार पर किसी बैंक नोट की सभी सीरीज को प्रतिबंधित किया जा सकता है और इस धारा में इस्तेमाल किए गए शब्द को किसी संर्कीणता के साथ नहीं देखा जा सकता। उन्होंने इस धारा में जिस किसी शब्द का इस्तेमाल किया गया है, उसकी प्रतिबंधित व्याख्या नहीं की जा सकती। आधुनिक चलन व्यवहारिक व्याख्या करना है। ऐसी व्याख्या से बचना चाहिए जिससे अस्पष्टता पैदा हो और व्याख्या के दौरान कानून के उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को सेंट्रल बोर्ड के साथ सलाह-मशविरा करने की जरूरत होती है और ऐसे में इनबिल्ट सेफगार्ड है। आर्थिक नीति के मुद्दे पर बेहद संयम बरतने की जरूरत है, हालांकि जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सभी नोटों को प्रतिबंधित किया जाना बैंक की ओर से किसी बैंक नोट की किसी सीरीज के चलन से बाहर निकाले जाने से कहीं ज्यादा गंभीर है। ऐसे में इस मामले में सरकार को कानून पास करना चाहिए था। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, जब नोटबंदी का प्रस्ताव केन्द्र सरकार की ओर से आता है तो वे आरबीआईं कानून की धारा (262) के तहत नहीं आता है। इस मामले में कानून पास किया जाना था। दूसरे शब्दों में इसे संसद के पास भिजवाना चाहिए था और अगर गोपनीयता की जरूतर होती तो इसमें आर्डिनेंस लाने का रास्ता अपनाया जा सकता था। वहीं जस्टिस गवईं ने कहा कि इन कदम के लिए जिन उद्देश्यों को जिम्मेदार बताया गया था वो सही उद्देश्य थे। केन्द्र सरकार ने बताया कि साल 2016 में 8 नवम्बर की शाम एकाएक 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया था। इसके बाद कईं हफ्तों तक देशभर में बैंकों और एटीएम के सामने पुराने नोट बदलकर नए नोट हासिल करने वालांे की लंबी कतारें देखी गईं थी। इसके बाद कईं पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाईं करते हुए सोमवार को पैसला सुनाया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाईं से पहले ही कह दिया था कि अगर ये मुद्दा अकादमिक है तो अदालत का समय बर्बाद करने का कोईं मतलब नहीं है। क्या हमें समय बीतने के बाद इसे इस स्तर पर उठाना चाहिए? इसके बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि सवाल इस बात का है कि क्या भविष्य में इसे कानून की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है? आरबीआईं के वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता इस अदालत से मांग कर रहे हैं कि यह केन्द्र सरकार की इस शक्ति को छीन लें, जिसके जरिए वह आरबीआईं के सुझाव पर अति मुद्रास्फीति जैसे मौकों पर चलन में मौजूद समूची मुद्रा को वापस ले सकती है।

Tuesday, 3 January 2023

नए साल में पठानकोट द्वितीय की साजिश

खुफिया सूत्रों की मानें तो अपनी वुसा बचाने के लिए चीन की कठपुतली बने पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने नए साल में भारत पर आतंकी हमले की कमान अपने हाथ में ले ली है। ड्रैगन के इशारे पर इमरान ने अपने ट्रेस्टेड आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के चीफ से पाक खुफिया एजेंसी आईंएसआईं की निगरानी में बैठक की और भारत पर पठानकोट जैसे हमले का प्लान तैयार किया। टारगेट पर जम्मू-कश्मीर और पंजाब के राज्यों में सैनिक प्रातिष्ठान, सुरक्षा बल और धार्मिक स्थल हैं। खुफिया विभाग ने इस बाबत सरकार को रिपोर्ट दे दी है और सुरक्षा बलों को अलर्ट जारी किया गया है। खुफिया सूत्रों के अनुसार लश्कर और जैश के आतंकवादी सुरक्षा प्रातिष्ठानों और सुरक्षा बलों पर पठानकोट जैसे आतंकी हमले करने की साजिश में जुटे हैं। चीन भारत से गलवान घाटी का बदला लेना चाहता है। इसके लिए ड्रैगन ने आतंकवादियों के लिए अपनी तिजाैरी खोल दी है, वहीं अत्याधुनिक हथियार और ड्रोन मुहैया कराने को भी तैयार हो गया है। आतंकी पठानकोट जैसे आतंकी हमले के लिए बामियाल इंटरनेशनल बॉर्डर के जरिये घुसपैठ कर सकते हैं। पठानकोट में एक सैन्य अड्डे पर आतंकी हमले के बारे में जानकारी मिलने के बाद अलर्ट जारी कर दिया गया है। पाक सेना और पाक रेंजर्स का उद्देश्य कश्मीर घाटी में और पंजाब में इन लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठनों को एक साथ लाना है ताकि समन्वित आतंकी हमलों को अंजाम दिया जा सके। इन संगठनों को एक साथ लाने के लिए नवम्बर में पीओके में चीन, आईंएसआईं, पाक सेना और आतंकियों के बीच बैठकों का दौर चला। हथियारों की खेप को भारत में पाकिस्तान के नारोवाल क्षेत्र से लेकर पंजाब में डेरा बाबा नानक तक ड्रोन का उपयोग कर तस्करी किए जाने की संभावना है। इनपुट में यह भी कहा गया है कि इस खेप के आतंकवादी गतिविधियों के लिए आगे जम्मू और कश्मीर और पंजाब में लाने की संभावना है। ——अनिल नरेन्

और अब ब्रिटेन से आया नया वायरस स्ट्रेन

ब्रिटेन से पैले कोरोना विषाणु के नए रूप ने एक बार फिर दुनिया के समक्ष महामारी के और गंभीर रूप से लौटने का खतरा पैदा कर दिया है। ब्रिटेन से भारत लौटे लोगों में से छह के नमूनों में सार्स-सीओवी2 यानि कोरोना का नया रूप (स्ट्रेन) पाए जाने से देश के आम नागरिकों में भय और दहशत व्याप्त है। सबसे पहले ब्रिटेन में मिला वायरस का नया स्वरूप अब भारत के अलावा डेनमार्व, हॉलैंड, ऑस्ट्रेलिया, इटली, स्वीडन, प्रांस, स्पेन, स्विटजरलैंड, जर्मनी, कनाडा, जापान, लेबनान और सिगापुर में मिल चुका है। 25 नवम्बर से 23 दिसम्बर की आधी रात तक ब्रिटेन से भारत आए करीब 33,000 लोगों की जांच की जा रही है, उनके सम्पर्व में आए तमाम लोगों को भी जांचा जा रहा है। संदिग्धों को खोज- खोज कर सामान्य आबादी से अलग किया जा रहा है, यह तो बहुत जरूरी है।हालांकि वेंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास भी इस बात का कोईं पुख्ता प्रामाण नहीं हैं कि देश में कितने लोग कोरोना के नए रूप की चपेट में हैं। चिन्ता की बात यह है कि ब्रिटेन से आए लोग पूरे देश में पैल चुके हैं। उस पर मुश्किल यह भी दरपेश है कि पिछले एक वर्ष के दौरान कोरोना वायरस कईं रूप बदल चुका है।वैज्ञानिक तथ्य यह हैं कि वायरस अपना रूप बदलता रहा है। वुछ जल्द बदलते हैं, वुछ देर से अपना रूप बदलते हैं। पिछले एक साल में यह कोरोना विषाणु कईं रूप बदल चुका है। लेकिन इसका अब जो नया रूप सामने आया है कहा जा रहा है कि वह कईं गुना ज्यादा घातक है और इसके पैलने की रफ्तार भी काफी ज्यादा है। ऐसे में यह चिन्ता बढ़नी स्वाभाविक है कि अब संव््रामण को पैलने से वैसे रोका जाए? हालांकि सरकार ने विषाणु के नए रूप के सामने आने के बाद निगरानी, नियंत्रण और सतर्वता बरतने के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किए हैं।लेकिन संकट की गंभीरता को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि महीनेभर के दौरान ब्रिटेन से भारत आए हर व्यक्ति को तलाशा जाए और उसकी जांच करवाईं जाए। कर्नाटक में ऐसे लोगों की संख्या तीन से ज्यादा है जो महीनेभर के दौरान ब्रिटेन से लौटे हैं और अपनी पहचान उजागर नहीं कर रहे हैं। पंजाब में ऐसे लोगों की तादाद ढाईं हजार बताईं जा रही है। और जगहों पर भी ऐसा ही आलम है। अगर ऐसे लोगों की पहचान नहीं हुईं तो विषाणु के नए रूप से पैलने वाले संव््रामण का पता ही नहीं चल पाएगा। दिक्कत यह है कि मनुष्य अगर वायरस से संव््रामण का इलाज ढूंढ लेता है तो वायरस संव््रामित करने के नए-नए रास्ते ढूंढ लेता है। हालांकि कोरोना वायरस के नए रूप को लेकर दुनियाभर में व्याप्त चिन्ता और आशंका के बीच चिकित्सा वैज्ञानिकों ने लोगों को आश्वस्त किया है कि विकसित की गईं या विकसित की जा रही कोरोना-रोधी वैक्सीन वायरस के इस नए रूप के विरुद्ध भी कारगर होगी। इस आश्वासन के बावजूद मानव जाति और वायरस के बीच चल रहा संघर्ष अभी लंबे समय तक जारी रहेगा। यह कहना मुश्किल है कि यह जंग कब तक जारी रहेगी और दुनिया को इसकी भारी कीमत कब तक चुकानी पड़ेगी। लेकिन देशवासियों को कोरोना वैक्सीन से संबंधित अच्छी खबर देर-सबेर मिल सकती है। ब्रिटेन ने बुधवार को कोरोना वैक्सीन की विश्व में इमरजैंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। भारत इसी बात का इंतजार कर रहा था। भारत के दवा नियंत्रक की सब्जैक्ट एक्सपर्ट कमेटी से देश में इस वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी मिल गईं है और आम लोगों को यह वैक्सीन जल्द ही उपलब्ध हो सकेगी।