Thursday, 30 May 2024

राम किरपाल बनाम मिसा भारती।

परिसीमन के बाद बिहार की राजधानी पटना को दो लोकसभा क्षेत्र मिले, जिनमें से एक पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र है, जिसका नाम पटना के पुराने नाम पर रखा गया है। बिहार की वीआईपी सीटों में एक पाटलिपुत्र भी शामिल है लालू प्रसाद यादव पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं. उनकी बेटी मीसा भारती भी दो चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रही हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों ही चुनावों में लालू प्रसाद के करीबी रहे राम कृपाल यादव उनके साथ आ गए हैं हैट्रिक लगाने का इरादा उधर, मीसा भारती के लिए रावड़ी देवी और तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत झोंक दी है. पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र जहानाबाद के फलवारी, तनापुर और विक्रम, आरा के पालीगंज और पटना के मुनीर को मिलाकर बनाया गया है. नए परिसीमन के बाद से पाटलिपुत्र सीट पर पहली बार चुनाव हुआ, 2009 में इस सीट पर राजद के कोटे से पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद यादव रहे मैदान में इस यादव बहुल सीट से लालू प्रसाद यादव की चुनावी जीत तय लग रही थी, लेकिन चुनाव के नतीजे ने सभी को चौंका दिया, लेकिन करीब डेढ़ दशक बाद एक बार फिर से रंजन यादव को हार का सामना करना पड़ा 2014 में बीजेपी की जीत के ध्वजवाहक रहे राम करपाल को पार्टी ने खूब तवज्जो दी और वह केंद्र में मंत्री भी बने. एक बार फिर राम करपाल और मीसा भारती आमने-सामने हैं चिनवी दंगल में दिलचस्प सियासी जंग पर टिकी हैं लोगों की निगाहें, लालू प्रसाद यादव की बड़ी बेटी हैं मिसाभारती 1993 में किस ने एजीएम मेडिकल कॉलेज, एल सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मीसा भारती ने एमएससीएम से डिस्टिंक्शन इन ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी कोर्स की पढ़ाई पूरी की थी। मीसा ने पहली बार पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ा था। वर्तमान पाटलिपुत्र सांसद राम कृपाल यादव कभी लालू प्रसाद यादव के विश्वासपात्र थे और वह पटना नगर निगम के डिप्टी मेयर भी थे - 1991 में पहली बार पटना लोकसभा क्षेत्र से डिप्टी मेयर बने। फिर 1996 और 2004 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर सांसद बने। राम कृपाल यादव चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला और 2014 में उन्होंने राजद से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए 2014 और 2019 के लगातार चुनाव में राम करपाल रहे लालू यादव के करीबी, जानिए ताकत और कमजोरी दोनों. (अनिल नरेंद्र)

सातवा मर्हला भाजपा के लिए परेशानी का सबब।

18वीं लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए परेशानी का सबब हैं। इस चरण में होने वाले चुनाव में पार्टी पर बिहार में भी अपनी सीटें बरकरार रखने का दबाव है। करीब ढाई महीने के इंतजार के बाद 1 जून को सातवें चरण का मतदान होना है. इस बार 400 पार के नारे के साथ मैदान में उतरी बीजेपी के लिए भी ये चरण सबसे अहम है. पश्चिम बंगाल के सातवें चरण की 9 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें मिलीं, पिछली बार इन दोनों राज्यों में बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली थी, पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने लगातार मेहनत की है रोड शो करने के साथ-साथ गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. बीजेपी ने सातवें चरण में 9 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है आधे सीटों पर जीत हासिल कर सकती है पार्टी छठे चरण में हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं, इस ध्रुवीकरण से बीजेपी को कोलकाता और उसके आसपास के शहरी भारतीय मतदाताओं पर उम्मीद जगी है भी इसी चरण में मतदान होना है। पिछली बार पंजाब में बीजेपी को केवल 2 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में थी, लेकिन इस बार दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं चुनाव में बीजेपी ने पंजाब में ज्यादा सीटें जीतने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेताओं (कैप्टन अमरिंदर सिंह, उनकी पत्नी परनीति कौर) को शामिल किया है. किसानों के विरोध का असर पंजाब में 4 जून को ही पता चलेगा और कांग्रेस अलग जरूर हैं, लेकिन उनकी भी अपनी ताकत है. आखिरी चरण में यूपी की 13 लोकसभा सीटें शामिल हैं. इनमें कोसी, बलिया और ग़ाज़ीपुर की तीन सीटें हैं जहां बीजेपी के लिए लंबी लाइन है पिछले दो चुनावों की तुलना में युवा 2019 के आम चुनाव में भी बीजेपी को कोसी और गाजीपुर में हार मिली थी. यूपी में सातवें चरण की सीटों में महाराजगंज, गोरखपुर, कोशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलीमपुर और चंदौली आदि सात सीटें हैं. आखिरी चरण में जहां विपक्ष 2022 में खाता भी नहीं खोल पाया है. कोसी और गाजीपुर और बलिया लोकसभा क्षेत्रों में बीजेपी को जिन सीटों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली है इन तीन निर्वाचन क्षेत्रों की 15 विधानसभा सीटों में से बाकी सात सीटें विपक्षी दलों, सपा, बसपा गठबंधन के खाते में चली गईं, अगर भाजपा को 400 के पार जाना है तो यह सातवां और आखिरी चरण सबसे महत्वपूर्ण है इस चरण में एक बड़ी जीत. (अनिल नरेंद्र)

Tuesday, 28 May 2024

बलिया में बाहर के साथ भीतर भी चुनौती

 भीतर भी चुनौती बगावत की अगुवाईं करने वाले बलिया की रगों में राजनीति फली है। इसलिए यहां के सियासी मिजाज को समझना आसान नहीं है। फिलहाल यहां पक्ष और विपक्ष दोनों ही उम्मीदवारों के सामने बाहर के साथ भीतर की लड़ाईं से भी जूझने की चुनौती है। बलिया में 7वें चरण यानि आखिरी चरण में 1 जून को चुनाव होने हैं। जाति के साथ सियासी वजूद बनाए रखने के अंतर्विरोध के सुर भी साफ सुने जा रहे हैं। इसलिए भाजपा और सपा दोनों एक-दूसरे के कोर में वोटरों में सेंधमारी के लिए पसीना बहा रहे हैं। भाजपा बलिया में जीत की हैट्रिक की लड़ाईं लड़ रही है। 2014 में भरत सिह ने एसपी के नीरज शेखर का ही रथ रोककर पहली बार कमल खिलाया था। इस बार नीरज खुद कमल के पैरोकार हैं। इस सीट पर सबसे अधिक आबादी ब्राrाणों की है। इसके बाद ठावुर, यादव और दलित है। राजभर, बिंदर, मल्लाह आदि अति पिछड़ी जातियों का असर है तो एक लाख से अधिक मुस्लिम वोटर भी हैं। जहुराबाद विधानसभा क्षेत्र में दिन में चाय के साथ चर्चा भी गर्म थी। बैठकी में प्राधान, शिक्षक, रिटायड प््िरांसिपल, एक बुजुर्ग पहलवान, वुछ और नौकरीपेशा लोग शामिल थे। चुनाव पर बात करने को लेकर सब सहज थे। नाम के सवाल पर जवाब था, क्या करिएगा जानकर? बात बेरोजगारी व महंगाईं के सवाल पर शुरू हुईं तो राम मंदिर और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे तीर भी तरकश से निकले। पहलवान के यथार्थ दांव ने चर्चा की टोन बदल दी। भक्क: ईं सब बेकार की बातें है। साफ सुन लीजिए। ये सामने की सड़क से शवयात्रा भी निकलेगी न तो लोग पहले प्राणाम नहीं करेंगे। पूछेंगे, कौन जात है? यही चुनाव की भी सच्चाईं है। ठावुर साहब नीरज के साथ हैं, पंडित जी लोग सनातन पर जोर लगा रहे हैं। मोहम्मदाबाद मेंे ही माफिया मुख्तार अंसारी का घर है। यहां से विधायक भी मुख्तार परिवार से सुहेब अंसारी हैं। मुख्तार के घर जिसे फाटक कहा जाता है, वहां से थोड़ी दूर पर नटराज कटरा है। यहां मोबाइल की दुकान चलाने वाले एक व्यक्ति कहते हैं कि मुख्तार के न रहने से गोल जुटेगी भी और टूटेगी। वह बताते हैं कि अंसारी परिवार की हर गांव में एक गोल है, जो उनकी सरपरस्ती व नाम की छाया में रहती रही है। इसमें भूमिहार, ब्राrाण, राजभर, ठावुर, बिद हर बिरादरी के लोग हैं। इसमें बहुत अब भी अंसारी परिवार के कहने पर ही वोट देंगे। लेकिन मुख्तार के न रहने से बहुत से ऐसे लोग जो दबाव में चुप रहते थे या दूसरी गोल जो दबी रहती थी अब वह भी एक्टिव हो जाएगी। सदर से 8 किमी दूर मंगल पांडेय का गांव नगवा है, जिन्होंने 1857 में व््रांति का बिगुल पूंका था। यहां उनकी मूर्ति लगी हुईं है। गांव में अलग-अलग बिरादरी के टोले हैं। यहां निर्मल पासवान ने कहा, यहां साइकिल का जोर है। लड़के पढ़कर भी बेरोजगार हैं। पांच किलो राशन से घर चलेगा? अगर ईंवीएम सेट नहीं हुईं तो कोईं रोक नहीं सकता। जब मैंने उनके ईंवीएम से जुड़े सवाल का आधार पूछा तो बोले मोबाइल पर देख कर सब पता चल जाएगा। दूर खड़ी महिला ने राशन मिलने का सुख तो गिनाया लेकिन कोटेदार की बदमाशी की शिकायत भी की। पिछली बार सनातन पांडे के जीतने के बाद हटा दिया गया था। इस बार इतना अंतर कर देना की खेल न होने पाए। ——अनिल नरेन्द्र

पांचवीं जीत तलाश रहे अनुराग

रहे अनुराग देश की राजनीति में अपनी एहमियत साबित कर चुके केन्द्रीय सूचना और प्रासारण मंत्री अनुराग ठावुर लगातार चार आम चुनाव जीतने के साथ पांचवीं जीत दर्ज करने की तैयारी में हैं। इस चुनाव में उन्हें अपने काम और प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर भरोसा है। हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में 1998 से 2019 तक भाजपा लगातार जीतती आईं है। इस बार के चुनाव में बदले सियासी समीकरणों में इस लोकसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री सुखविदर सिह सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री का होना अनुराग ठावुर को थोड़ी चुनौती दे रहा है। मुख्यमंत्री हमीरपुर जिले से हैं और उपमुख्यमंत्री ऊना से। वहीं दूसरी ओर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अपने जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में इस चुनाव में भी पहले की तरह प्राभावी होंगे। कांग्रोस द्वारा देरी से प्रात्याशी उतारने का फायदा भी अनुराग ठावुर को हो सकता है। कांग्रोस पाटा ने इस बार ऊना सदर के पूर्व विधायक सतपाल रायजादा को चुनाव में उतारा है। रायजादा ने अब तक विधानसभा के तीन चुनाव लड़े हैं और वह सिर्प एक बार ही जीत पाए हैं। जिससे कहा जा सकता है कि अनुराग ठावुर की ऊंची राजनीतिक कद-काठी के आगे सतपाल रायजादा का राजनीतिक वजन कम लगता है। इस बार के आम चुनाव में हिमाचल की कांग्रोस सरकार को गिराने की कोशिश का भी असर दिख रहा है। कांग्रोस से भाजपा में जो चार बागी शामिल हुए हैं, यह भी हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों से हैं। वहीं भाजपा में शामिल हुए दो निर्दलीय विधायक भी इसी क्षेत्र से हैं। यानि अनुराग ठावुर के लोकसभा क्षेत्र में मुकाबला रोचक हो सकता है। अनुराग ठावुर जनसभाओं में जहां राष्ट्रीय मुद्दों की बात कह रहे हैं, वहीं एनडीए सरकार के 10 साल के कार्यंकाल में गिनाने के लिए उनके पास उपलब्धियां खूब हैं। कांग्रोस प्रात्याशी सतपाल रायजादा सिर्प रेल नेटवर्व के अधूरे काम को अनुराग ठावुर की विफलता बता रहे हैं। सुखविदर सिह सुक्खू की सरकार की उपलब्धियों के साथ-साथ भ्रष्टाचार, महंगाईं, रोजगार इत्यादि राष्ट्रीय मुद्दे भी उठा रहे हैं। सतपाल रायजादा को राज्य में कांग्रोस सरकार होने का भी लाभ मिल रहा है। हमीरपुर सीट पर बीते ढाईं दशक से भाजपा का कब्जा है। वर्ष 1998 से लेकर अब तक भाजपा जीतती रही है, वर्ष 1998 से 2004 तक भाजपा के सुरेश चंदेल और उसके बाद अनुराग ठावुर जीत रहे हैं। अनुराग ठावुर के नेतृत्व में यहां विकास पर जोर है। यहां एम्स बिलासपुर मेडिकल कालेज, पीजीआईं सैटेलाइट केन्द्र ऊना, बलकड्रग पार्व (पडौरा) देहन का केन्द्रीय विश्वविदृालय वैम्पस निर्माण, ऊना और हमीरपुर में पासपोर्ट सेवा केन्द्र, ऊना रेलवे स्टेशन से 13 नईं ट्रेनों की शुरुआत, बिलासपुर-लेह रेलवे लाइन के लिए 1000 करोड़ से ऊपर का बजट इत्यादि-इत्यादि अनुराग ठावुर अपनी उपलब्धियों को गिनाते हैं।

Saturday, 25 May 2024

जहां हादसा, वो मोसाद का गढ़ रहा है


ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और उनके विदेश मंत्री सहित नौ अधिकारियों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत तेहरान के लिए जबरदस्त झटका है। अभी इसके पीछे कोई साजिश नहीं बताई गई है परन्तु अनाधिकृत तौर पर इसे इजरायल और अमेरिका का षड्यंत्र भी बताया जा रहा है। ईरान में भी कुछ लोग रईसी के ऐसे अचानक हेलीकॉप्टर क्रैश में मारे जाने पर सवाल उठा रहे हैं। बीते दिनों ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष देखने को मिला था। पहले सीरिया में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले का इल्जाम इजरायल पर आया। फिर जवाबी कार्रवाई में अप्रैल 2024 में ईरान ने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइल हमला किया। इस संघर्ष के बीच जब रईसी और ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्ला की अचानक मौत हुई तो कुछ लोगों ने इसे भरी निगाहों से इजरायल की तरफ इशारा किया। इजरायल ने इसका खंडन किया है। अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि इस हेलीकाप्टर क्रैश में अमेरिका का कोई रोल नहीं था। इसमें कोई शक नहीं है कि रईसी एक क्रूर आदमी थे। चाई नेट न्यूज वेबसाइट में इब्राहिम रईसी के की कहानी बताई गई है और इस रिपोर्ट को तेहरान का कसाई शीर्षक दिया गया है। एक अन्य वेबसाइट ने शीर्षक दिया है.... ईरान के सबसे नफरती आदमी की मौत। इस ओपिनियन पीस में लिखा गया है कि रईसी की मौत पर कोई सच्चा आंसू आंख से नहीं गिरेगा। हिजाब को लेकर की गई सख्ती के कारण महिलाएं रईसी से नफरत करती हैं। रईसी साल 1988 में बने उस खुफिया ट्राइब्यूनल में शामिल हुए जिन्हें डेथ कमेटी के नाम से जाना गया। इस ट्राइब्यूनल ने कुल कितने राजनीतिक कैदियों को मौत की सजा दी, इस संख्या के बारे में ठीक-ठीक मालूम नहीं है लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इनमें लगभग 5000 पुरुष और महिलाएं शामिल थीं। फांसी के बाद इन सभी को अज्ञात सामूहिक कब्रों में दफना दिया गया। राष्ट्रपति रईसी की मौत की जांच के नतीजे अभी आने हैं, लेकिन बड़ा सवाल क्रैश साइट अजरबैजान को लेकर है। ईरान के पड़ोसी देश अजरबैजान से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। अजरबैजान मध्य एशिया का एक मात्र मुस्लिम देश है जिसके इजरायल के साथ दोस्ताना रिश्ते हैं। रईसी का हेलीकॉप्टर अजरबैजान में जहां क्रैश हुआ वो पहाड़ी वाला दुर्गम इलाका इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद का गढ़ रहा है। यहां पर मोसाद के कई खुफिया एजेंट सक्रिय हैं, पिछले साल ईरान ने अजरबैजान में रहकर इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में एक महिला समेत चार लोगों को फांसी दी थी फिर रईसी के हेलीकॉप्टर के अलावा दो और हेलीकॉप्टर थे। यानि की तीन हेलीकाप्टरों ने उड़ान भरी। यह कैसे हुआ कि तीन में से सिर्फ एक हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ और बाकी दोनों सही सलामत पहुंच गए? ईरान में एविएशन का खराब रिकार्ड है। इसके बावजूद राष्ट्रपति रईसी ने अमेरिका के 45 साल पुराने बेल हेलीकॉप्टर में उड़ान भरी। प्रतिबंधों के कारण ईरान को कलपुर्जे नहीं मिल रहे थे। सवाल उठता है कि मौसम खराब होने के बावजूद पायलट ने पुराने हेलीकॉप्टर के साथ रिस्क लेकर उड़ान भरी। स्थानीय लोगों का कहना है कि रईसी को 150 किमी सड़क मार्ग से भी ले जाया जा सकता था। रईसी की मौत भारत के लिए भी अपूरणीय क्षति है।

-अनिल नरेन्द्र


सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत


ऐसे में जब मेन स्ट्रीम मीडिया सवालों के घेरे में है, सोशल मीडिया चुनाव में एक महत्वपूर्ण हथियार बन गया है। खासकर विपक्षी दलों के लिए। देश के एक बहुत बड़े तबके तक पहुंच होने के चलते राजनीतिक दल इस पर पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। भारत में जिस तरह से गांव-गांव लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं और इंटरनेट की सुविधा है। ऐसे में यह प्रचार का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। चाहे एक मिनट की रील हो या फिर एक्स या यूट्यूब, फेसबुक से लेकर इंस्टाग्राम, नेता अपनी बात को बड़े प्रभावी ढंग से देश के बड़े वर्ग तक पहुंचाने में सफल रहे हैं। देखा जाए तो इस बार चुनाव का नैरेटिव मेन स्ट्रीम मीडिया से नहीं, बल्कि सोशल मीडिया से तय किया जा रहा है। इस काम में पीएम मोदी का सीधा मुकाबला यदि कोई कर रहा है तो वह कांग्रेस के राहुल गांधी हैं। सोशल मीडिया की ताकत समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि देश में यूट्यूब के 46 करोड़ दर्शक हैं। इंस्टाग्राम पर 36 करोड़ भारतीय सक्रिय हैं। फेसबुक पर यह संख्या 38 करोड़ है और एक्स पर 2.71 करोड़ लोग सक्रिय हैं। इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय रील्स का बाजार है। शार्ट वीडियो बेस का चलन कितना है इसे आंकड़ों से समझा जा सकता है। औसतन एक भारतीय रील्स पर 38 मिनट का समय बिताता है। रील्स को देखने वाले 64 प्रतिशत लोग छोटे शहरों के हैं तो गांवों में रहने वाले 45 प्रतिशत हैं, सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी के एक्स पर 6 करोड़ फालोवर हैं तो वहीं इंस्टाग्राम पर 89.1 बिलियन लोग फॉलो करते हैं। सोशल मीडिया पर जो दो प्रमुख चेहरे छाए हुए हैं वह मोदी और राहुल हैं। राहुल गांधी के यूट्यूब पर पिछले माह 35 करोड़ व्यूज आए। इस समय राहुल गांधी का यूट्यूब चैनल नंबर वन पर है। उनके चैनल को 5.55 मिलियन लोगों ने सब्सक्राइब किया है। इनके इंस्टाग्राम एकाउंट पर 7.9 मिलयन सब्सक्राइबर हैं। एक्स पर उनको 25.5 मिलियन, फेसबुक पर 70 लाख और व्हाट्सप पर 63 बिलियन लोग फालो करते हैं। सोशल मीडिया की सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब पीएम मोदी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र पर सवाल उठाया, उसके बाद कांग्रेस के घोषणा पत्र को 88 लाख बार डाउनलोड किया गया। कांग्रेsस ने 20 हजार स्वयंसेवकों की फौज बना रखी है, जो व्हाट्सप के जरिए पांच लाख लोगों के सीधे संपर्क में है। इस मामले में भाजपा कांग्रेस से भी आगे है। पीएम मोदी कुछ सोशल मीडिया को लेकर बेहद सहज रहते हैं और इसी के चलते भाजपा के आईटी सेल के पास लाखों लोगों की टीम है जो भाजपा और सरकार तक मोदी व अन्य नेताओं के लिंक को हर मिनट शेयर करते हैं। सोशल मीडिया की ताकत को समझते हुए ही राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी अभियान का बहुत बड़ा फंड सोशल मीडिया पर खर्च किया है। सोशल मीडिया के बड़े प्लेटफार्म हजारों करोड़ रुपए की चांदी भारत के लोकसभा चुनाव में काट रहे हैं।

Thursday, 23 May 2024

पंजाब में पहली बार 4 दलों में टक्कर

सरहदी सूबे पंजाब में पहली बार चार प्रमुख सियासी दलों के बीच कांटे की टक्कर है। इसके अलावा एक अघोषित पार्टी किसान भी है, जिन्होंने चुनाव को गर्माया हुआ है। खासकर भाजपा को खासा परेशान कर रखा है। सरहद से लगती खडूर साहिब सीट पर असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तानी सिख समर्थक अमृतपाल सिंह ने आजाद उम्मीदवार ताल ठोकर तनाव बढ़ा दिया है। इसी मिजाज के सिमरनजीत सिंह मान ने भी 1989 में जेल में रहते हुए इस क्षेत्र में चुनाव लड़कर 93.92 प्रतिशत वोटों के साथ एकतरफा जीत दर्ज की थी। इस जीत को अमृतपाल से जोड़कर प्रचारित किया जा रहा है। इस पंथक सीट पर अमृतपाल के नामांकन करने से ज्यादा बैचेनी पंथक जनाधार वाले अकाली दल में है। सुखबीर बादल को बयान देना पड़ा कि अमृतपाल सिंह की रिहाईं के लिए नहीं, बल्कि खुद की रिहाईं के लिए लड़ रहा है। उनका इशारा साफ है कि बंदी सिंह की रिहाईं की लड़ाईं अकाली दल लड़ रहा है। मौजूदा समीकरणों में वुल 13 लोकसभा सीटों में से 5 से 6 सीटों पर कांग्रेस और 4 से 5 सीटों पर आम आदमी पार्टी मजबूत दिखती है। भाजपा को अपनी परंपरागत सीटें गुरदासपुर और होशियारपुर में भी कड़ी चुनौती मिल रही है। इन दोनों सीटों के अलावा लुधियाना, पटियाला में कांग्रेस से आप चेहरों और फरीदकोट से डेरे के वोटों के सहारे भाजपा मुकाबले में है, लेकिन जीत से अभी दूर है। अकाली दल बठिंडा सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर लड़ रही है। गहमा-गहमी इस कदर है कि कौन कितने वोट ले रहा है, इससे ज्यादा जोर आजमाइश इसे लेकर है कि कौन किसके कितने वोट काट रहा है। नतीजे भी इसी पर टिके हुए है। अकेले चुनाव लड़ रही जाटों की पर्टियां, आप, कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा के चेहरों की तलाश में खासी मुशक्कत करनी पड़ी। अभी तक चुनावी हवा में मतदाताओं के रुख में बड़ा बदलाव दिख रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में बदलाव के नाम पर एक पार्टी (आप) के पास इकट्ठा वोट लोकसभा चुनाव में अपनी-अपनी पार्टियों की ओर लौटता दिख रहा है। इसका ज्यादा फायदा कांग्रेस को हो रहा है। कांग्रेस और अकालियों से नाराज होकर वोट आम आदमी पार्टी को चला गया था। वह उसके पास लौटता दिख रहा है। आप सरकार को प्री बिजली का लाभ मिल रहा है लेकिन स्थानीय एंटी एंकम्बेंसी का नुकसान भी हो रहा है। उसके ज्यादातर विधायकों से नाराजगी है, इसलिए लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनके 5 मंत्री भी पंसे हुए हैं। आप को हिंदू चेहरे की कमी खल रही थी। अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत मिलने से उसकी भरपाईं होती दिख रही है। उन्होंने पंजाब में प्रचार शुरू कर दिया है। 2019 में 8 सांसदों वाली कांग्रेस मजबूत चेहरों और वैडर के कारण आगे दिख रही है। भाजपा हिंदू और अकाली गांवों में अपने पंथक वोटों के सहारे हैं। लेकिन इनके सामने संकट यह है कि एक भी सीट ऐसी नहीं है जो पूरी शहरी या गांवों की हों। अब तक ये हिंदू-सिख सांझा के नाम पर लड़ते थे। अलग होने से एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा रहे हैं। फिलहाल पहले, दूसरे, तीसरे स्थान के लिए लगातार हवा कर रुख बदल रहा है। 10 सीटों पर चतुष्कोणीय व तीन सीटों पर बसपा का प्रभाव होने से पंचकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। मतदान 1 जून को है। ——अनिल नरेन्

हरियाणा में गैर जाटों के भरोसे भाजपा

के भरोसे भाजपा हरियाणा में इस बार भाजपा की 10 लोकसभा सीटें संकट में हैं।मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी जाट और किसानों का गुस्सा ठंडा नहीं पड़ा है। जाट गांवों में भाजपा प्रत्याशियों के लिए प्रचार करना खतरे से खाली नहीं है। कईं गांवों में इतना विरोध हो रहा है कि भाजपा प्रत्याशी गांव में प्रवेश भी नहीं कर पा रहे हैं। जाट युवकों ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की रैली के लिए लगाया गया टेंट तक तोड़ दिया था। अब भाजपा की उम्मीदें गैर जाट वोटों पर टिकी हैं। पत्रकारों ने गुरुग्राम, झज्जर और रोहतक के वुछ ग्रामीण इलाकों का दौरा कर लोगों से उनकी राय जानने की कोशिश की। जाट बहुल ग्रामीणों में भाजपा और जेजेपी से नाराजगी है। लेकिन गैर जाट बहुल गांव वाले भाजपा के प्रति समर्पित दिखते हैं। उनका कहना है कि जाट समुदाय की आबादी इतनी अधिक नहीं है कि वे चुनाव हरा सवें। 2019 के चुनाव में भी जाट बहुल रोहतक से गैर जाट भाजपा के अरविंद शर्मा चुनाव जीत गए थे। भाजपा ने करीब 10 साल पहले गैर जाट नेता मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर जाटों के सम्मान को ठेस पहुंचाईं थी। तब से जाट नाराज ही चल रहे थे कि किसान आंदोलन ने उस गुस्से को आग में घी डालने का काम कर दिया। 2019 के विधानसभा चुनाव में जाट वोट जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की तरफ चला गया और भाजपा की सीटें 47 से घटकर 40 रह गईं। कांग्रेस की सीटें 15 से बढ़कर 31 हो गईं। लेकिन वह सरकार बनाने से दूर रह गईं। जाट समुदाय का सारा वोट जेजेपी लीडर दुष्यंत चौटाला को मिल गया। चुनाव के बाद दुष्यंत चौटाला ने भाजपा से गठबंधन किया और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने। इससे जाट मतदाता दुष्यंत चौटाला से भी नाराज हो गया। आज स्थिति यह है कि दुष्यंत चौटाला जहां भी चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं तो जाट उनका विरोध करने लगते हैं। हालांकि जाटों की नाराजगी दूर करने के लिए भाजपा और दुष्यंत चौटाला ने मित्रवत संबंध तोड़ दिए, लेकिन जाट समुदाय इन दोनों दलों की इस मंशा को समझते हैं। जाटों का भाजपा-जजपा प्रत्याशियों से कहना है कि आप ने हमें दिल्ली जाने से रोका हम भी आपको दिल्ली जाने से रोवेंगे। जाटों की नाराजगी को देखते हुए भाजपा ने 2024 के चुनाव में गैर जाटों पर फोकस करते हुए सोशल इंजीनियरिंग की है। पार्टी ने पिछली बार भी गैर जाट को एकजुट करते हुए जाट लैंड यानी रोहतक से दीपेन्द्र हुड्डा और सोनीपत में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता को चुनाव हरा दिया था। इस बार भाजपा ने रोहतक और सोनीपत से ब्राrाण उम्मीदवारों को उतारा है। फरीदाबाद से वृष्णपाल गुर्जर और गुरुग्राम से राव इंद्रजीत सिंह को दोबारा टिकट देकर ओबीसी समुदाय को जोड़ने की कोशिश की है। जाट समुदाय को खुश करने के लिए रणजीत चौटाला को हिसार और धर्मवीर सिंह को महेन्द्रगढ़-भिवानी से चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर की जगह फिर से गैर जाट नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है। मनोहर लाल खट्टर करनाल से पार्टी की तरफ से उम्मीदवार हैं। बेशक कांग्रेस के अंदर भी टिकट वितरण में असंतोष चल रहा है पर हवा का रुख इंडिया गठबंधन की ओर बह रहा है। हालांकि भाजपा के नेता का कहना था कि भले ही जाट समुदाय भाजपा का विरोध कर रहे हैं, लेकिन वे केवल वुछ गांवों तक सीमित हैं। जाटों की संख्या भी 15 से 20 प्रतिशत की है, बाकी गैर जाट हैं।

Tuesday, 21 May 2024

क्या रिकिया के पापा हैट्रिक लगा सवेंगे?

 उत्तर-पूर्व लोकसभा सीट इन दिनों सबसे हॉट सीट बन गईं है। विकास मानकों पर अभी भी दिल्ली की सबसे पिछड़ी लोकसभा में शुमार उत्तर-पूवी संसदीय सीट पर पूर्वाचल के दो दिग्गजों में जबरदस्त सियासी जंग छिड़ चुकी है। आरोप-प्रात्यारोप का सिलसिला धीरे-धीरे क्लाइमैक्स पर पहुंच रहा है। इस सियासी जंग के चलते दिल्ली ही नहीं, देशभर की नजरें इस सीट पर हैं। यहां से रिकिया के पापा मनोज तिवारी और कन्हैया वुमार का सीधा मुकाबला है। शुव््रावार को कांग्रोस के उम्मीदवार कन्हैया वुमार पर चुनाव प्राचार के दौरान हमला भी हुआ। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के उस्मानपुर में आम आदमी पाटा के स्थानीय पाटा आफिस के बाहर प्राचार के दौरान उन पर पहले वुछ लोगों ने स्याही पैंकी और फिर उन्हें चांटा मारा। कन्हैया ने जवाब दिया, ऐ साहब गुंडा मत भेजिए, हमने तो आपकी पुलिस देखी है, आपकी जेल देखी है। हमारी रगो में स्वतंत्रता सेनानियों का खून बह रहा है। हम कांग्रोस के कार्यंकर्ता हैं, जब अंग्रोजों से नहीं डरे तो अंग्रोज के चापलूसों से क्या डरेंगे। उत्तर- पूर्वी दिल्ली सीट पर राजनीतिक दल जहां अपने सेनापतियों की जीत का दावा कर रहे हैं, वहीं जनता पुराने विकास कार्यो और दोनों प्रात्याशियों के दावों और वादों को कसौटी पर परख रही है। इस सीट पर लड़ाईं सीधे भाजपा और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के बीच है। भाजपा ने यहां से मनोज तिवारी को तीसरी बार उम्मीदवार बनाया है जो कि इस बार की जीत से हैट्रिक लगाने के चक्कर में हैं। यहां से तीसरी बार हैट्रिक की तैयारी में जुटे मनोज तिवारी उत्तर-पूवी जिले में हजारों करोड़ रुपए के विकास कार्यो को लेकर वोट मांग रहे हैं। वह कहते हैं कि मेरे कार्यंकाल में यहां दिल्ली मैट्रो का परिचालन शुरू हुआ। जाम खत्म करने के लिए फ्लाईं ओवर बनाए गए। भजनपुरा चौक पर फ्लाईं ओवर बन रहा है। एक नया हाईंवे शुरू होगा जो दिल्ली से वाया सहारनपुर व देहरादून तक जाएगा। कन्हैया वुमार ने 2019 में ही बेगुसराय से लोकसभा चुनाव लड़ा था और वह दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन इस बार बिहार की धरती की जगह वह दिल्ली की जमीन पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। साथ ही दोनों ही प्रात्याशी पूर्वाचल से संबंध रखते हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में पूर्वाचली काफी संख्या में रहते हैं। सूत्रों की मानें तो कन्हैया वुमार को अपने मुकाबले कम आंकना मनोज तिवारी के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। बेशक कन्हैया वुमार को टिकट देने पर कांग्रोस के वुनबे में नाराजगी रही हो, लेकिन अब कन्हैया वुमार, मनोज तिवारी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। भाजपा के लिए दोहरी चुनौती है दिल्ली में। कांग्रोस और आम आदमी पाटा सही मायनों में मिलकर चुनाव लड़ रही है। शनिवार को कन्हैया के लिए वोट मांगने के लिए एक विशाल जनसभा हुईं। इसको राहुल गांधी ने संबोधित किया। उन्होंने अपने भाषण में बार-बार आम आदमी पाटा के नतीजों और कार्यंकर्ताओ का जिव््रा किया। उन्होंने दिल्ली की सातों सीटों पर कांग्रोस और आम आदमी पाटा के उम्मीदवारों का भी परिचय कराया और अपील की कि कांग्रोस और आम आदमी पाटा को सही मायनों में मिलकर एक-दूसरे को जिताना है। मामला तगड़ा है। देखें, रिकिया के पापा अपनी हैट्रिक लगा सकते हैं? ——अनिल नरेन्द्र

कोर्ट की मंजूरी बिना ईंडी गिरफ्तार नहीं कर सकती

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर प्रावर्तन निदेशालय यानि ईंडी को कड़ी नसीहत दी है। दरअसल पिछले वुछ वर्षो से धन शोधन मामलों यानि पीएमएलए में जिस तरह ईंडी सव््िराय नजर आ रही है और विपक्ष के अनेक नेताओं और उनसे संबंधित लोगों को सलाखों के पीछे डाल रही है। उसे लेकर लगातार आपत्ति दर्ज कराईं जाती रही है। एक वर्ष पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि ईंडी भय का माहौल पैदा न करे। मगर उस नसीहत का ईंडी पर कोईं असर नहीं हुआ। विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां जारी रहीं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने ऐतिहासिक, दूरगामी पैसले में कहा कि धन शोधन से जुड़े मामले में विशेष अदालत द्वारा शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद ही ईंडी पीएमएलए की धारा-19 के तहत किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि किसी आरोपी को गिरफ्तार करना जरूरी है तो ईंडी को विशेष अदालत से पहले अनुमति लेनी होगी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने अपने पैसले में साफ किया है कि अगर धन शोधन मामले में आरोपी किसी व्यक्ति को ईंडी ने जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया है और पीएमएलए की विशेष अदालत आरोप पत्र पर संज्ञान लेकर उसे समन जारी करती है तो उसे अदालत में पेश होने के बाद पीएमएलए के तहत जमानत की दोहरी शर्त को पूरा करने की जरूरत नहीं होगी। पीठ ने कहा कि जब कोईं आरोपी किसी समन के अनुपालन में अदालत के समक्ष पेश होता है, तो एजेंसी को उसकी हिरासत पाने के लिए संबंधित अदालत में आवेदन करना होगा। अगर आरोपी समन (अदालत द्वारा जारी) के जरिए विशेष अदालत में पेश होता है तो यह माना जा सकता है कि वह हिरासत में है। ऐसी सूरत में तो एजेंसी को उसकी हिरासत पाने के लिए संबंधित अदालत में आवेदन करना होगा। पीठ ने अपने पैसले में कहा है कि जो आरोपी समन के बाद अदालत में पेश हुए, उन्हें जमानत के लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं है और इस तरह पीएमएलए की धारा 45 की जुड़वा शर्ते लागू नहीं होती हैं। धन शोधन कानून की धारा 45 का कहना है कि इस कानून के तहत सरकारी वकील को अधिकार है कि वह आरोपी की जमानत अजा का विरोध कर सके। माना जाता था कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद इस तरह के छापों और गिरफ्तारियों पर विराम लगेगा ताकि राजनेता चुनाव में समान अधिकार से चुनाव मैदान में उतर सवें। मगर इस दौरान भी न तो छापे रुके और न ही गिरफ्तारियां रुकीं। ईंडी की इस सव््िरायता के विरोध में विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाईं थी, मगर धन शोधन का मामला संवेदनशील होने की वजह से अदालत ने कोईं आदेश नहीं दिया। अब अगर सुप्रीम कोर्ट इसे लेकर गंभीर और कड़ा रुख अपनाए हुए है तो ईंडी को अपने दायरे का एहसास हो जाना चाहिए। धन शोधन मामले में कड़ी कार्रवाईं से इंकार नहीं किया जा सकता। यह देश की सुरक्षा से जुड़ता है। इसी दृष्टि से धन शोधन निवारण कानून को कड़ा बनाया गया था। मगर इस कानून को अगर ईंडी राजनीतिक विरोधियों को सबक सिखाने और चुनावों से दूर रखने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है, तो इस कानून का प्राभाव संदिग्ध हो जाता है। कईं मामलों में यह पैसले ऐतिहासिक और दूरगामी हैं।

Saturday, 18 May 2024

पासवान विरासत बचाने की जंग


हाजीपुर से आठ बार जीतने वाले राम विलास पासवान की कमी उनके चाहने वाले बहुत महसूस करते हैं। इतना ही नहीं सोमवार को आयोजित चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उन्हें याद कर भावुक हो गए। मौसम वैज्ञानिक के नाम से विख्यात रामविलास पासवान की कमी उनके बेटे चिराग पासवान पूरा करने का वायदा कर रहे हैं। वह लोगों से यह अपील कर वोट मांग रहे हैं कि आपका एक-एक वोट रामविलास पासवान के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए मुझे मजबूत बनाएगा। लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) उम्मीदवार शिवचंद्र राम की दलील है कि स्थानीय उम्मीदवार ही हाजीपुर की समस्या से रूबरू होकर निदान करा सकता है। स्थानीय उम्मीदवार ही हाजीपुर की समस्या से रूबरू होकर निदान करा सकता है। स्थानीय और बाहरी को लेकर ये वोट देने की अपील कर रहे हैं। इन्हीं दोनों में सीधी लड़ाई है। मगर मुकाबला टक्कर का बताया जा रहा है। हाजीपुर, लालगंज, महनार, महुआ, राजापाकड़, राघोपुर छह विधानसभा क्षेत्र हैं। यहां के 19 लाख 53 हजार से ज्यादा मतदाता पांचवें चरण में 20 मई को अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। पूर्व-मध्य रेलवे का मुख्यालय हाजीपुर में बनाने का श्रेय स्व. रामविलास पासवान को ही लोग देते हैं। गंगा और बूढ़ी गंडक नदी से घिरे रहने वाले हाजीपुर का केला देश ही नहीं दुनिया में मशहूर है। 2019 का चुनाव चिराग के चाचा पशुपति नाथ पारस लड़े थे और राजद के शिवचंद्र राम को दो लाख से ज्यादा मतों से पराजित किया था। अब पारस और चिराग साथ नहीं हैं। बल्कि पारस खुद यहां से लड़ना चाहते थे। मगर बाजी चिराग के पक्ष में चली गई, लेकिन मनमुटाव की वजह से भीतरघात का खतरा है। मनमुटाव का अंदाजा इसी बात से भी लगाया जा सकता है कि चिराग के नामांकन में पारस कहीं नहीं नजर आए। बल्कि जुबानी जंग दोनों में अब भी जारी है, चिराग पासवान 2014 और 2019 में जमुई से सांसद निर्वाचित हुए थे। तब उनके पिता रामविलास पासवान जीवित थे। यह पहला चुनाव है जब खुद की उम्मीदवारी के साथ लोजपा (रा) की पांच सीटों को बचाने का दारोमदार चिराग पर है। यह अलग बात है कि भाजपा और जद (एकी) साथ है। जमुई से इन्होंने अपने बदले अपने जीजा अरुण भारती को उतारा है। यहां पहले चरण का चुनाव हो चुका है। 1977 में चार लाख 69 हजार से अधिक मतों से हाजीपुर सीट पर विजय पताका फहराने वाले रामविलास पासवान नए होते हुए भी गिनीज बुक में नाम दर्ज कराया था। फिर 1989 में कांग्रेस के महावीर पासवान को 5 लाख 4 हजार से अधिक वोटों से हराकर अपना रिकार्ड बेहतर किया था। 1984 में इन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के रामरतन राम ने इनको हराया था। 1957 से 2019 तक हुए संसदीय चुनाव में से पांच दफा कांग्रेस जीती। 1991 में जनता दल के राम सुंदर दास जीते। 2009 का चुनाव भी इन्होंने ही जीता मगर जद (एकी) का तीर पकड़कर। आठ बार रामविलास पासवान ने विजय झंडा फहराया मगर लोकदल जनता पार्टी, जनता दल, जद (एकी) फिर लोजपा बनाकर सफलता पाई। देखें कि चिराग पासवान क्या अपने पिता की विरासत को बचाने में सफल रहते हैं या नहीं।

-अनिल नरेन्द्र


दोनों ही रामलल्ला से अपना जुड़ाव बता रहे हैं


देशभर में राम मंदिर भाजपा के लिए मुख्य चुनाव आधार मुद्दा है लेकिन अयोध्या में मंदिर समाजवादी पार्टी के लिए भी यह उतना ही महत्व रखता है। राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद पहली बार यहां लोकसभा चुनाव हो रहा है। भाजपा उम्मीदवार लल्लू सिंह खुद को राम भक्त और राम मंदिर निर्माण को उपलब्धि व पार्टी के लिए आस्था का विषय कहते हैं। सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद कहते हैं कि हमारे रोम रोम में राम हैं। वे अपने दादा निवल, पिता दुखी राम, मामा परशुराम और बड़े भाई रामहोत का नाम लेकर कहते हैं कि हम तो पीढ़ियों से भगवान राम को मानते आ रहे हैं। भगवान का हमें भी आशीर्वाद मिलता है। फैजाबाद जिले के नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया है लेकिन लोकसभा सीट अब भी फैजाबाद ही है। भाजपा के लल्लू सिंह जहां जीत की अपनी हैटट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरे हैं तो सपा 1998 से इस सीट पर नहीं जीत पाई है। सपा ने जीत के लिए जातिगत समीकरणों के तहत पासी (एससी) समुदाय के अवधेश प्रसाद को उतारा है। अवधेश वर्तमान में लोकसभा क्षेत्र की मिल्कीपुर से नौ बार के विधायक और पांच बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं। बसपा ने सच्चिदानंद पांडेय को प्रत्याशी बनाया है। कभी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद रहे यादव के भाई और रिटायर्ड आईपीएस अरविंद सेन सीपीआई के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के लिए यह सीट बहुत महत्व रखती है, यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रोड शो भी कर चुके हैं। चुनाव की घोषणा के बाद राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ रामलल्ला के दर्शन कर चुके हैं। भाजपा उम्मीदवार लल्लू सिंह पार्टी के काम के आधार पर वोट मांगते दिख रहे हैं। राम मंदिर व विकास योगी और मोदी सरकारों की जन हितैषी योजनाओं को आधार बना रहे हैं। वहीं सपा प्रत्याशी मोदी-योगी सरकार की खामियां और लोकतंत्र एवं संविधान बनाने की दुहाई देकर वोट मांग रहे हैं। यहां सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर है। मंदिर के साथ ही सरकार ने जो योजनाएं शुरू की हैं। उससे लोगों की उम्मीद जागी है। हवाई अड्डा शुरू हो चुका है। नई अयोध्या बस रही है। कई बड़े हाउEिसग प्रोजेक्ट और होटल निर्माण के सैंकड़ों प्रस्ताव आए हैं। भाजपा उम्मीदवार लल्लू सिंह कहते हैं कि चुनाव जीतने के बाद अयोध्या का व्यवस्थित विकास सुनिश्चित करेंगे। घाटों का निर्माण, सुरक्षा, पर्यटन और रोजगार हमारी प्राथमिकता है। वहीं सपा उम्मीदवार अवधेश हते हैं कि अयोध्या के आसपास की सारी जमीनें गुजरातियों व गुजराती कारोबारियों को दे दी गई है। अब वे ही कारोबार करेंगे। मैं जीता तो एक-एक सौदे की जांच करवाऊंगा। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर लोगों के घरों को बड़ी संख्या में तोड़ा और मुआवजा भी नहीं दिया। मुआवजे के संबंध में लल्लू सिंह कहते हैं कि जिन लोगों ने दस्तावेज दिए उन्हें अपना मुआवजा मिला है लेकिन दस्तावेज न होने पर समस्या आई है। यहां करीब 1.50 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। सबसे ज्यादा 7.20 लाख ओबीसी वोटर है। उसके बाद फिर कुर्मी, पाल सहित कई जातियां हैं। एससी वोटरों की संख्या 4.70 लाख, सवर्णों की 5.66 लाख है। फैजाबाद सीट पर पांच विधानसभाएं हैं। अयोध्या, रुदौली, बीकापुर, गोसाईगंज व मिल्कीपुर (सुरक्षित) है।

Thursday, 16 May 2024

जय प्रकाश अग्रवाल बनाम प्रवीन खंडेलवाल


दिल्ली की चांदनी चौक सीट न केवल एक प्रतिष्ठा की सीट है बल्कि कई मायनों में ऐfितहासिक भी है। इस बार मुख्य मुकाबला कांग्रेस के जय प्रकाश अग्रवाल और भाजपा के प्रवीन खंडेलवाल के बीच है। प्रवीन खंडेलवाल बड़े व्यापारी है और व्यापारी संघ के पदाधिकारी भी हैं। जय प्रकाश अग्रवाल राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और दिल्ली की जाने-माने वाली हस्तियों में से हैं। वह मिलनसार स्वभाव के हैं और लोगों की हर संभव मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। लोगों के सुख-दुख में हमेशा शरीक होते हैं। जय प्रकाश अग्रवाल चांदनी चौक सीट से चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं। इसी संसदीय क्षेत्र से वह पहले तीन बार सांसद रह चुके हैं। चांदनी चौक क्षेत्र में पले-ब़ड़े अग्रवाल का यह आठवां लोकसभा चुनाव है। उनका कहना है कि विरोधी दल को शायद चांदनी चौक के भूगोल और लोकसभा क्षेत्र की पूरी और सही जानकारी नहीं है। जयप्रकाश अग्रवाल का परिवार करीब 100 साल से चांदनी चौक में बसा है। चांदनी चौक में स्थित किनारी बाजार का नौघरा राजनीतिक घटनाक्रम का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। यहां मकान नंबर 1998 आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानियों का अड्डा रहा। लाला रामचरण अग्रवाल इसी घर में रहते थे। वह इसी मकान से आजादी की लड़ाई में तीन बार जेल गए। फिर उन्होंने 1945 में म्यूनिसपल कमिटी का पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ जो अब तक जारी है। आज आम आदमी पाटी और कांग्रेस के गठबंधन इंडिया की ओर से प्रत्याशी जय प्रकाश अग्रवाल इस घर के पते से लोकसभा चुनाव के लिए 10 बार खड़े हुए हैं। जय प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि इस घर से अब तक करीब 20 चुनाव लड़े जा चुके हैं। यह अपने आप में दिल्ली में एक ऐसा मकान है जहां से इतने चुनाव लड़े जा चुके हैं। यह अपने आप में दिल्ली में ऐसा मकान है जहां से इतने चुनाव लड़े गए। जय प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि 1983 में मैं कारपोरेशन का मेंबर चुना गया। 1984 से अब तक इस मकान से लोकसभा के 10 चुनाव लड़ा चका हूं। इसी घर से राज्यसभा का चुनाव लड़ा है। आज भी इसी घर के पते पर इलेक्शन आईकार्ड है। भले ही अब मैं यहां नहीं रहता हूं लेकिन आना-जाना बराबर बना हुआ है। यहां भाई का दफ्तर है, किसी समय यहां एक गेट में 9 घर थे, लिहाजा नौघरा नाम पड़ा। जय प्रकाश ने बताया कि पंडित जवाहर लाल नेहरू खाने-पीने के शौकीन थे। वह एक बार यहां पराठे वाली गली से पराठे खाने आए थे, तब हमारे घर भी पहुंचे। लाल बहादुर शास्त्राr भी इस मकान में आ चुके हैं। जब पिता लाल रामचरण अग्रवाल की मृत्यु हुई थी, तब इंदिरा गांधी भी घर आई थी। जय प्रकाश अग्रवाल ने अपने नामांकन करने के मौके पर कहा कि विकास के नाम पर जनता एक बार फिर उन्हें जिताएगी। उनका कहना है कि चांदनी चौक की जनता को ठगा गया है। जय प्रकाश अग्रवाल पर कोई आपराधिक केस दर्ज नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

कश्मीर में भाजपा चुनाव क्यों नहीं लड़ रही है?


जम्मू-कश्मीर से चार साल पहले अनुच्छेद 370 हटाने वाली सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने फैसला लिया है कि वह कश्मीर घाटी में लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी और मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी की तीनों सीटों में से एक सीट पर भी अपना उम्मीदवार नहीं fिदया है। राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी पार्टी के नेताओं का कहना है कि भाजपा का यह फैसला यहां के लोगों के बीच फैले गुस्से की तरफ इशारा करता है, जिसे पार्टी मान रही है। कश्मीर और दिल्ली के बीच दशकों से संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। भारत सरकार के खिलाफ चरमपंथ और उसे दबाने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई ने पिछले तीन दशकों में हजारों लोगों की जान ली है। हालात तब और खराब हुए जब साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू और कश्मीर को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांट दिया, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को अच्छी खासी स्वायत्तता देता था। साथ ही केन्द्र सरकार ने इंटरनेट और संचार व्यवस्था को भी समिति करते हुए तीन पूर्व मुख्य मंत्रियों सहित सैकड़ों नेताओं को महीने तक जेल में डाल दिया। तब से पीएम मोदी और उनके मंत्री साल 2019 में लिए गए फैसले को न केवल सही बताते हैं बल्कि अपनी बड़ी उपलब्धियों में गिनाते हैं और दावा करते थकते नहीं कि इससे जम्मू और कश्मीर में शांति आई है। इसलिए आम चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को मैदान में न उतारने के पार्टी के फैसले पर हैरानी हो रही है। हिंदू बहुल जम्मू की दोनों सीटें फिलहाल भाजपा के पास है। लेकिन मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी की तीनों में से एक भी सीट भाजपा के पास नहीं है। जहां तक यह दावा किया जा रहा है कि कश्मीर में आतंकवाद पर काबू लगा है यह भी सही नहीं है। कश्मीर में 2021 से लेकर अब तक 50 से ज्यादा टारगेट किलिंग हुई है। क्या कश्मीर घाटी में अपने उम्मीदवार को न खड़ा करने के पीछे यह सोच तो नहीं है कि पार्टी ने यह फैसला सोच समझकर किया है। कश्मीर की तीन सीटों पर प्रत्याशी घोfिषत न करने के मुद्दे पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बड़ा लक्ष्य पाने के लिए छोटे मुद्दे छोड़ने पड़ते है। पार्टी ने कश्मीर में छोटी राजनीतिक पार्टियों को एनडीए में शामिल करने की योजना बनाई है। पार्टी इन्हीं दो दलों का समर्थन करेगी, लेकिन पार्टी का बड़ा लक्ष्य नेशनल कांफ्रेंस को हराना और परोक्ष रूप से पीडीपी को जिताना है, क्योंकि नेशनल कांफ्रेंस कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है। पीडीपी चुनाव जीतकर भी कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी। वह भाजपा का साथ दे सकती है। भाजपा को उम्मीद थी कि अनुच्छेद 370 हटाने से वहां पार्टी का जनाधार बढ़ेगा, लेकिन कश्मीर में इनका कोई असर नहीं पड़ा। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की उपलब्धि बताकर दूसरे राज्यों में बेचा जा रहा है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि भाजपा, 2019 में लिए गए अपने फैसले को रेफरेंडम में तब्दील होने से बचाना चाहती है, जिसकी वजह से उसने कश्मीर में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, अगर अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले से बुरा होता तो भाजपा चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटती। भाजपा खुद को बेनकाब नहीं करना चाहती और चेहरे को बचाने के लिए न लड़ने का फैसला लिया है।

Tuesday, 14 May 2024

प्रभावित पहलवानों का संघर्ष लाया रंग!

सांसद, भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को कोर्ट ने तलब किया था और पीड़ित महिला पहलवानों को यौन उत्पीड़न का आरोपी साबित करने के लिए काफी देर तक कोर्ट में दो बहसें करनी पड़ीं ऐसा बीच में मजिस्ट्रेट की अदला-बदली के कारण हुआ. दूसरी बहस खत्म होने के बाद कोर्ट ने 27 फरवरी को आरोप तय करने के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. लेकिन आदेश आने से पहले ही बर्ज भूषण शरण सिंह ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने एक अन्य याचिका दायर की, जिसे 26 अप्रैल को खारिज कर दिया गया, जिसमें छह महिला पहलवानों द्वारा उसके खिलाफ दायर यौन उत्पीड़न मामले की आगे की जांच की मांग की गई थी और आगे की जांच के लिए समय मांगा गया था वह तारीख जब एक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपों पर चर्चा के दौरान शिकायतकर्ताओं और पुलिस ने अदालत को बताया कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत थे। दिल्ली पुलिस ने आरोपी के तर्क को खारिज कर दिया चूंकि कथित घटनाएं अदालतों के अधिकार क्षेत्र में नहीं आतीं , आरोपी सांसद ने कथित अपराध की रिपोर्ट नहीं की। शिकायतकर्ताओं के बयानों में देरी और विसंगतियों का दावा करते हुए, बृज भूषण शरण सिंह की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि घटनाएं कथित तौर पर 2012 में हुईं लेकिन रिपोर्ट की गईं 2020 में पुलिस को सिंह ने कहा कि मॉनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें निर्दोष नहीं माना जा सकता, लेकिन यह रिपोर्ट उनकी बेगुनाही साबित करने की संभावना को भी खारिज करती है। बाद में 28 अप्रैल, 2023 को मामले में एफआईआर दर्ज की गई बृज भूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी को लेकर पहलवानों की ओर से 23 अप्रैल 2023 को जंतर-मंतर पर धरना भी दिया गया था. इस धरने में जो हुआ वह किसी से छिपा नहीं है प्रकाश और दिल्ली की अदालत ने महिला पहलवानों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है.इस मामले में जूम ने बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया. कोर्ट ने माना कि 46 में से 5 शिकायतों में भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व प्रमुख के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत थे प्रियंका राजपूत ने एक शिकायत को खारिज कर दिया और अदालत ने बृज भूषण शरण सिंह पर धारा 354 और यौन उत्पीड़न (354-ए) और आपराधिक धमकी के तहत एक महिला के खिलाफ हमला करने या उसकी छवि को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आपराधिक बल का उपयोग करने का आरोप लगाया। धारा 506. इन पर 21 मई को चर्चा होगी. धारा 354 में अधिकतम पांच साल, धारा 354-ए में तीन साल और धारा 506 में अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है. (अनिल नरेंद्र)

विरासत बचाने और किले को भेदने की लड़ाई!

राहुल गांधी के रायबरेली के चुनावी घमासान में उतरते ही यहां का चुनावी माहौल गरमा गया है. आखिरी वक्त में राहुल के रायबरेली से और पंडित किशोरी लाल के अमेठी से चुनाव लड़ने के फैसले ने न सिर्फ बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. कांग्रेसी खुद हैरान हैं. और चुनिंदा वीआईपी सीटों में से एक सीट गांधी परिवार का गढ़ रही है. इस बार राहुल को टक्कर देने के लिए बीजेपी ने योगी सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि बीएसपी ने ठाकुर को मैदान में उतारा है. प्रसाद यादव इस चुनाव में रायबरेली की लड़ाई कई मायनों में खास है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल अपने परिवार की विरासत को बचा पाते हैं और कांग्रेस को अपनी मां सोनिया गांधी पर बड़ी जीत दिला पाते हैं वहीं, बीजेपी के पास कांग्रेस के इस गढ़ को ध्वस्त करने का विकल्प है. वहीं, बीएसपी रायबरेली की लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश करेगी. यहां से गांधी परिवार का तीसरा उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है पहला चुनाव राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी ने लड़ा था, जिसके बाद यहां से इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी चुनाव लड़ चुकी हैं। यही वजह है कि गैर कांग्रेसी होते हुए भी इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है एम. 1977 में राजनारायण और 1996 और 1998 में बीजेपी के अशोक सिंह चुनाव जीते. 2004 के बाद से लगातार सभी चुनाव नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहे हर बार कम हो रहा है।रायबरेली सीट पर कांग्रेस को मिलेगा एसपी का समर्थनरायबरेली लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं। 2022 में एसपी को 4 सीटों पर सफलता मिली थी। यहां बीसी वोटर करीब 23 फीसदी और 9 फीसदी यादव वोटर हैं। यह गणित कांग्रेस की राह को आसान बनाने में मददगार हो सकता है. इस सीट पर एसपीए संगठन भी कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है इसके पारंपरिक मतदाता 2014 के चुनाव में बसपा ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था, उस समय उम्मीदवार 63,633 वोटों के साथ पांचवें स्थान पर थे। इस सीट का इतिहास इस बार दिलचस्प है यहां से बड़े सूरमा हार चुके हैं. 1977 में इंदिरा गांधी भी चुनाव हार चुकी हैं. इसके अलावा भीमराव अंबेडकर की पत्नी श्वेता अंबेडकर, विजय राजे सिंधिया, विने कटियार यहां से चुनाव हार चुके हैं यह लगभग तय है कि वे कितने वोटों से जीतते हैं और वोट प्रतिशत कितना बढ़ा पाते हैं इसका सीधा असर आसपास की सीटों पर भी पड़ सकता है। (अनिल नरेंद्र)

Saturday, 11 May 2024

मायावती ने क्यों हटाया भतीजे आकाश को


बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने मंगलवार देर रात अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद को उनके पद से हटाने का ऐलान करके सबको चौंका दिया। मायावती ने पूर्ण परिपक्वता हासिल करने तक उन्हें अपने उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी से भी मुक्त कर दिया है। देश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग खत्म होने के चंद घंटे बाद ही बहन जी के इस ऐलान ने पार्टी कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों और तमाम विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया है। मायावती ने मंगलवार को देर रात अपने ट्वीट में लिखाः विदित है कि बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहेब अम्बेडकर के आत्मसम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेंट है जिसके लिए माननीय श्री कांशीराम जी व मैंने खुद भी अपनी पूरी जिंदगी समर्पित की है और इसे गति देने के लिए नई पीढ़ी को भी तैयार किया जा रहा है। उन्होंने लिखा इसी क्रम में पार्टी में अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही आकाश आनंद को नेशनल कोऑडिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया किंतु पार्टी व मूवमेंट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता से अभी उन्हें इन दोनों अहम जिम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है। जबकि इनके पिता श्री आनंद कुमार पार्टी व मूवमेंट में अपनी जिम्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे। सवाल यह है कि मायावती ने ऐसे वक्त पर यह कदम क्यों उठाया, जब लोकसभा चुनाव के चार चरण बाकी हैं? वो भी पार्टी के स्टार प्रचारक आकाश आनंद के खिलाफ जिन्होंने पिछले कुछ समय से अपनी रैलियों से बीएसपी को मतदाताओं के बीच काफी चर्चा में ला दिया था। सवाल यह है कि क्या वो आकाश आनंद को राजनीतिक तौर पर पूरी तरह परिपक्व नहीं मानती? अगर वो पूर्ण परिपक्व नहीं हैं तो मायावती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी और पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाकर गलती की थी और क्या अब उन्होंने उन्हें हटाकर गलती सुधारी है? आकाश आनंद अपनी पिछली कुछ चुनावी रैलियों में बेहद आक्रामक अंदाज में दिखे हैं। 28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में सीतापुर की रैली में उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सरकार की तालिबान से तुलना करते हुए उसे आतंकवादियों की सरकार कहा था। इसके अलावा उन्होंने लोगों से कहा था कि वो ऐसी सरकार को जूतों से जवाब देंगे। आक्रामक भाषण पर हुए मुकदमे के बाद ही आकाश ने 1 मई को औरैया और हमीरपुर रैली रद्द कर दी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मायावती आकाश आनंद को लेकर काफी नाराज थीं। वह नहीं चाहती इस समय वो कोई मुश्किल में फंसें। और इससे भी बड़ी बात यह है कि वो इस समय भाजपा से अपने संबंध नहीं बिगाड़ना चाहती। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती और उनकी पार्टी के लिए ये लोकसभा चुनाव करो या मरो का चुनाव है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी, सपा के साथ मिलकर लड़ी थी। पार्टी ने दस सीटें जीती थी। जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। पिछले कुछ अर्से से बीएसपी की भाजपा के प्रति कम आक्रामकता दिखी है। इस चुनाव प्रचार के दौरान आकाश आनंद जिस तरह से आक्रामक रैली में भाषण दे रहे थे वह शायद भाजपा को नागवार लगा। आमतौर पर इस फैसले से यह धारणा पक्की हुई है कि बीएसपी चुनाव में भाजपा की मदद कर रही है और कइयों का मानना है कि बीएसपी भाजपा की बी टीम है।

-अनिल नरेन्द्र

शहजादे बताएं अडाणी-अंबानी से कितना माल उठाया


यह हमारे प्रधानमंत्री ने क्या कह दिया? उद्योगपति मुकेश अंबानी और अपने परम मित्र गौतम अडाणी का नाम अकसर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषणों में सुनाई देता रहा। मगर प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली बार है जब नरेन्द्र मोदी ने चुनावी सभा में अंबानी और अडाणी का नाम लेते हुए कांग्रेस पर हमला बोला है। पीएम नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को तेलंगाना के करीमनगर में एक चुनावी सभा में कहाः जब से चुनाव घोषित हुआ है, इन्होंने (राहुल गांधी) अंबानी, अडाणी को गाली देना बंद कर दिया। राहुल गांधी की तरफ इशारा करते हुए पीएम मोदी बोले-मैं आज तेलंगाना की धरती से पूछना चाहता हूं कि शहजादे घोषित करें कि चुनाव में ये अंबानी-अडाणी से fिकतना माल उठाया है। काले धन के कितने बोरे भरकर नोट हैं। आज टैंपों भरकर नोट कांग्रेस के लिए पहुंचे हैं क्या? क्या सौदा हुआ है? आपने रातोंरात अंबानी, अडाणी को गाली देना बंद कर दिया। जरूर दाल में कुछ काला है। पांच साल तक अंबानी-अडाणी को गाली दी और रातोंरात गालियां बंद हो गई। मतलब कोई न कोई चोरी का माल टैंपो भरकर आपने पाया है। देश को जवाब देना पड़ेगा। पीएम मोदी के इस बयान पर राहुल गांधी ने भी बुधवार रात को जवाब दिया। राहुल गांधी ने कहा, नमस्कार मोदी जी, थोड़ा सा घबरा गए क्या? आमतौर पर बंद कमरों में आप अडाणी और अंबानी जी की बात करते हो, यह पहली बार पब्लिक में अंबानी, अडाणी बोला। आपको ये भी मालूम है कि ये टैम्पों से पैसा देते हैं। निजी अनुभव है क्या? राहुल बोले, एक काम कीजिए सीबीआई और ईडी को इनके पास भेजिए, पूरी जानकारी करिए। जांच करवाइए, जल्द से जल्द करवाइए। घबराएं मत मोदी जी मैं देश को फिर कह रहा हूं कि fिजतना पैसा नरेन्द्र मोदी जी ने इनको दिया है न... उतना ही पैसा हम हिंदुस्तान के गतबों को देने जा रहे हैं। इन्होंने 22 अरबपति बनाए हैं, हम करोड़ों लखपति बनाएंगे, सत्य तो यह भी है कि पिछले पांच साल से राहुल गांधी अडाणी पर सीधा हमला करते रहे हैं। फरवरी 2023 में राहुल गांधी ने लोकसभा के अंदर गौतम अडाणी और पीएम को प्लेन में बैठे हुए एक तस्वीर दिखाई थी। राहुल गांधी ने संसद में मोदी से सवाल पूछा था, आप अडाणी जी के साथ कितनी बार विदेश दौरे पर गए? कितनी बार आपके दौरे के बाद अडाणी उस देश में पहुंचे हैं? दौरे के बाद कितने देशों से अडाणी को कान्ट्रेक्ट मिले हैं। इसके कुछ दिनों बाद मार्च 2023 में मानहानि से जुड़े एक केस में सूरत की कोर्ट ने राहुल को दो साल की सजा सुनाई और उनकी सांसदी चली गई, घर गया। कांग्रेस कह रही है कि सवाल अब भी वही है, मोदी का अडाणी से रिश्ता क्या है? फरवरी 2024 में राहुल ने कहा कि राम मंदिर के कार्यक्रम में अंबानी दिखे पर कोई गरीब नहीं दिखा। इंडिया टीवी से बातचीत में गौतम अडाणी ने कहा था कि 2014 के चुनाव के बाद में जो लगातार राहुल जी हमारे पर हमला किए हैं उससे आप लोगों को भी अडाणी कौन है, ये जानने का मौका मिला, सवाल यह भी है कि मोदी ने कहा कि काला धन अंबानी और अडाणी ने टैंपो भरकर राहुल को पहुंचाया? क्या उसका मतलब है कि अभी भी देश में काला धन है? हमाने तो सोचा था कि नोट बंदी के बाद काला धन समाप्त हो गया था? मोदी जी ने पता नहीं यह काम क्यों किया? जो हाथ खिलाता रहा है उसी को काट दिया। मोदी का यह दांव बौखलाहट दर्शाता है जो कहीं उल्टा न पड़ जाए।

Thursday, 9 May 2024

पीयूष गोयल की पहली चुनावी परीक्षा

महाराष्ट्र में इस बार का आम चुनाव कई मायने में रोचक है। देश की आर्थिक राजधानी की मुंबई उत्तर सीट पर भाजपा ने दो बार सांसद रहे गोपाल शेट्टी का टिकट काटकर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को मैदान में उतारा है। महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद पीयूष गोयल पहली बार लोकसभा चुनाव के रण में उतरे हैं। वहीं कांग्रेस ने ढाई दशक से पार्टी संग खड़े जमीनी नेता भूषण पाटिल पर भरोसा जताया है। दोनों चुनावी महाभारत में मराठी वोट साधने के साथ गुजराती और मारवाड़ी आबादी को पाले में करने पर जोर दे रहे हैं। मुंबई उत्तर सीट पर 47 प्रतिशत मतदाता मराठी हैं जबकि 20 प्रतिशत मुस्लिम हैं। 13 प्रतिशत वोटर गुजराती और मारवाड़ी हैं तथा उनका कुल वोट दो लाख से अधिक है। बाकी वोट अन्य समुदायों में है। भाजपा को उम्मीद है कि मराठी और मारवाड़ी वोट के साथ अन्य का वोट मिलता है तो 2019 के आम चुनाव में मिली रिकार्ड जीत को आसानी से दोहराया जा सकता है। कांग्रेस ने भी पहले गुजराती मूल के व्यक्ति के नाम पर विचार किया था, पर बाद में पाटिल को मैदान में उतारा। इस सीट पर भाजपा सात बार जबकि कांग्रेस छह बार जीत दर्ज कर चुकी है, इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे के तहत उद्धव गुट ने यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी थी। सीट बंटवारे में जब यह सीट उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस को दी तो पार्टी ने यहां से लड़ने से ही मना कर दिया था। कांग्रेस ने क्षेत्र से उद्धव गुट के नेता विनोद घोसांलकर को कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। कांग्रेस ने भूषण पाटिल को पीयूष गोयल के सामने खड़ा किया। 2019 में महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुआ था। इनमें 105 सीटें भाजपा, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। मुंबई उत्तर सीट के तहत आने वाले बोरीवली विधानसभा क्षेत्र में बोरीवाली नेशनल पार्क आकर्षण का केन्द्र है। बोरीवाली का इलाका गार्डेन के तौर पर विकसित हुआ है और यहां हर आधे किलोमीटर पर अलग-अलग थीम पर हरियाली देखने को मिलती है। गोपनीथ मुंडे गार्डन में ताड़ के पेड़ लोगों को खूब भाते हैं। कान्हेरी गुफा भी पर्यटकों को खूब लुभाती है। पीयूष गोयल ने दावा किया है कि उत्तर मुंबई को उत्तम मुंबई बनाएंगे। क्षेत्र में पानी की समस्या सुलझाएंगे। उत्तर मुंबई और गोरई की झुग्गी में रहने वालों को वहीं पर पक्के मकान में बसाया जाएगा। उनके अनुसार, नई भाजपा सरकार के गठन के बाद लोगों की हर समस्या का निराकरण ही प्राथमिकता होगी। कांग्रेस ने भूषण पाटिल को गोयल के खिलाफ मैदान में उतारा है। वह युवा इकाई के कांग्रेस अध्यक्ष हैं व 2009 के आम चुनाव में बोरीवली सीट से भी चुनाव लड़ चुके हैं। पाटिल पिछले 25 साल से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। पाटिल केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड की समिति के सदस्य होने के साथ बेस्ट समिति के भी सदस्य के रूप में शामिल हैं। - अनिल नरेन्द्र

शत्रुघ्न सिन्हा बनाम एसएस अहलूवालिया

पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट कभी माकपा का गढ़ हुआ करती थी। अब इस सीट पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेsस के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। तृणमूल कांग्रेस ने अभिनेता से नेता बने शट गन सिन्हा यानि शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतारा है। वहीं उपचुनाव में सीट गंवाने वाली भाजपा ने जीत पक्की करने के लिए भाजपा के नेता एसएस अहलूवालिया को मैदान में उतारा है। दोनों दल दावा कर रहे हैं कि वे इस बार रिकार्ड मतों से जीत दर्ज करेंगे। एसएस अहलूवालिया 2014 के आम चुनाव में दार्जिलिंग और 2019 के चुनाव में बर्दवान-दुर्गापुर सीट से चुनाव जीते थे। हालांकि आसनसोल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सात सीटें आती हैं। इनमें से पांडवेश्वर, रानीगंज, जमूरिया, आसनसोल उत्तर, बारबानी पर तृणमूल कांग्रेsस का कब्जा है। वहीं दो सीटें कुल्टी व आसनसोल दक्षिण पर भाजपा का कब्जा है। आसनसोल से चुनाव लड़ रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा है कि जनता मुझे रिकार्ड मतों से संसद पहुंचाएगी। मेरी जीत का पिछला रिकार्ड भी इस बार टूट जाएगा। आसनसोल संसदीय क्षेत्र से लगातार पिछड़ रही तृणमूल की जीत का सपना शत्रुघ्न सिन्हा ने ही साकार किया है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने विजेता बनने के लिए काफी मेहनत की थी। हालांकि भाजपा ने यहां बाजी मार ली थी। सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था। 1957 और 1962 का चुनाव कांग्रेsस ने 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने जीता था। कांग्रेस चार जबकि सीपीआईएम नौ बार जीती है। 1989 से 2009 तक लगातार सात बार सीपीआईएम जीती। भाजपा के टिकट पर 2014 और 2019 का चुनाव बाबुल सुप्रियो जीते। सुप्रियो के भाजपा छोड़ने के बाद सीपीआईएम के किले में तृणमूल ने 2022 के उपचुनाव में पहली बार सेंध लगाई और शत्रुघ्न सीट से सांसद चुने गए। बाबुल सुप्रियो मार्च 2014 में भाजपा में शामिल हुए थे। 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने इन्हें आसनसोल से मैदान में उतारा और इन्होंने तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार डोला सेना को हरा दिया। केंद्र सरकार में इन्होंने शहरी विकास और आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय और भारी उद्योग मंत्रालय संभालने की जिम्मेदारी भी निभाई। 2019 की सरकार में इन्हें पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया। 31 जुलाई 2021 को इन्होंने पार्टी से इस्तीफे की घोषणा कर दी और 18 सितम्बर 2021 को अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल का दामन थाम लिया। 16 अप्रैwल 2022 को बालीगंज विधानसभा सीट से विधायक बने और ममता सरकार ने इन्हें मंत्री बनाया। भाजपा ने भोजपुरी संगीतकार पवन सिंह को मैदान में उतारा था लेकिन बाद में उन्हेंने नाम वापस ले लिया था। आसनसोल क्षेत्र औद्योगिक इलाका है जिनमें मुख्य रूप से लोहा व कोयला आधारित उद्योग है। यह बंगाल का दूसरा बड़ा और अधिक संख्या वाला इलाका है। आसन एक वृक्ष की प्रजाति है जो 30 मीटर तक लंबा होता है। सोल जमीन को कहते हैं। इन्हीं दो शब्दों से इस सीट का नाम पड़ा है।

Tuesday, 7 May 2024

इस बार गिरिराज सिंह का सीधा मुकाबला है

कभी कांग्रेस और वापपंथ का गढ़ रहा बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र पर पिछले एक दशक से भाजपा का कब्जा रहा है। इस बार यहां से भाजपा प्रत्याशी के रूप में केन्द्राrय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह एक बार फिर मैदान में हैं। उनका मुकाबला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के अवधेश राय से है। इस बार भाजपा के सामने जीत की हैट्रिक लगाने की चुनौती है। वहीं भाकपा करीब तीन दशक बाद यहां जीत हासिल कर वापसी के लिए जुटी है। यहां आम चुनावों में भले ही जीत किसी दल की हुई हो, अधिकतर बार मुकाबले में भाकपा ही रही है। 1952 से 2019 तक के लोकसभा चुनावों में नौ बार यहां से सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। दो-दो बार माकपा, जदयू और भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की। इस लोकसभा क्षेत्र में 2014 में पहली बार भाजपा का खाता खुला था। पिछले लोकसभा चुनाव में यह संसदीय क्षेत्र जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व भाकपा उम्मीदवार कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने के कारण सुर्खियों में आया था। तब भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने कन्हैया को पराजित किया था। हालांकि उस समय चुनावी लड़ाई का एक कोण राजद प्रत्याशी तनवीर हसन भी बने थे और उन्होंने करीब दो लाख वोट हासिल किए थे। इसके बावजूद गिरिराज चार लाख से अधिक मतों के अंतर से जीते थे, इस बार माकपा ने बछवाड़ा विधानसभा से तीन बार विधायक रहे अवधेश राय पर भरोसा जताया है। वर्ष 2019 में एनडीए एकजुट और विपक्ष बिखरा हुआ था, लेकिन इस बार राजनीतिक तस्वीर बदली है। एनडीए का आकार बढ़ा है तो इंडिया गठबंधन में राजद-कांग्रेस और वामदल एक साथ हैं। ऐसे में बेगूसराय में कांटे की टक्कर के आसार हैं। महागठबंधन का मजबूत आधार जातीय, सामाजिक समीकरण है तो एनडीए मोदी मैजिक के सहारे बाजी पलटने को तैयार है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विकास कार्य भी एनडीए के साथ है। क्षेत्र से मौजूदा सांसद गिरिराज सिंह एनडीए के टिकट पर लगातार दूसरी बार मैदान में हैं। बेगूसराय में दोनों गठबंधन अपने-अपने समीकरण साधने में जुटे हैं। जातीय आधार पर ध्रुवीकरण की स्थिति भाजपा की चिंता बढ़ा सकती है। बेगूसराय सीट आजादी के बाद पहले चुनाव 1952 में ही अस्तित्व में आ गई थी। इन 70 सालों में क्षेत्र की तस्वीर भी बदली। पहले बेगूसराय में दो संसदीय क्षेत्र थे। एक बलिया दूसरा बेगूसराय लेकिन अब दोनों को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र बेगूसराय बन गया है। 2009 के परिसीमन के बाद इस सीट पर एनडीए का कब्जा है। 2009 में जदयू के मोनजिर हसन ने भाकपा के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हराया था। 2014 में भाजपा और जदयू के अलग हो जाने के बाद नवादा के सांसद भोला सिंह को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया और वह जीते। चुनाव प्रचार तेज होने के साथ ही क्षेत्र के मुद्दे भी मुखर हो रहे हैं। साहेबपुर कमाल प्रखंड के कुरहा बाजार के निवासी कहते हैं कि बेगूसराय में बेहतर अस्पताल के अभाव में सैकड़ों जटिल व असाध्य रोगी देशभर में भटकते हैं। केशावे किसान का कहना है कि किसानों को समय-समय पर प्रशिक्षण और खाद, बीज मिल रहा था लेकिन जिले में कृषि प्रसंस्करण का अभाव है। यहां के किसानों को मक्का, आलू इत्यादि उत्पाद से बनने वाले दर्जनों उत्पाद को प्रसंस्करण के द्वारा ज्यादा मुनाफा कमाने का मौका मिलना चाहिए। -अनिल नरेन्द्र

क्या सेक्स स्कैंडल चुनावी फिजा बदलेगा?

कर्नाटक में भाजपा-जेडीएस गठबंधन के उम्मीदवार प्रज्वल रेवन्ना के कथित यौन उत्पीड़न के वीfिडयो को पेन ड्राइव के जरिए सार्वजनिक करने का मामला कर्नाटक में किसी स्कैंडल के भंडाफोड़ के तरीके में एक बड़े बदलाव को दिखाता है। वो भी ऐसे समय में जब राज्य में लोकसभा चुनावों का घमासान उफान पर है। इससे पहले राज्य के चुनावी इतिहास में किसी कथित सेक्स स्कैंडल का इस तरह से भंडाफोड़ नहीं हुआ था। हर तरह के पार्टी कार्यकर्ता सोशल मीfिडया प्लेटफार्मों के इस्तेमाल के बजाए इस तरह से पेन ड्राइव को बस स्टॉप, पार्कों, गांवों में लगने वाले मेलों और यहां तक कि घरों में डंप किए जाने से निराश हैं। पेन ड्राइव ऐसे समय में सार्वजनिक किए गए हैं जब हासल लोकसभा सीट पर वोटिंग में सिर्फ पांच दिन बचे थे। कर्नाटक में हासल लोकसभा सीट उन 14 सीटों में से एक है। जहां राज्य के पहले और दूसरे चरण के तहत वोटिंग हुई। दो चरण का चुनाव होते ही विपक्ष को ऐसा चुनावी हथियार मिल गया है जिसके बूते पर वह बाकी चरणों में चुनाव की फिजा को बदलने की कोशिश में जुट गया है। भाजपा के ध्रुवीकरण की रणनीति से बैकफुट पर चल रहे विपक्ष को कर्नाटक के जेडीएस नेता प्रज्वल रेवन्ना के मुद्दे ने ऐसी संजीवनी दी है जिसके कि बैकफुट पर आया विपक्ष फ्रंट पर आ गया है और फ्रंट फुट पर आकर खेलने लगा है। इस पूरे प्रकरण से महिला सुरक्षा का मुद्दा चुनाव के केंद्र में आ गया है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच में भले ही एक-दूसरे को दोषी ठहराया जा रहा हो, लेकिन जनता के बीच में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ही नहीं इंडिया गठबंधन के अन्य दल भी अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाकर भाजपा और उसके सहयोगियों को घेरने में जुटे हैं, विपक्ष हमलावर है और सत्तापक्ष सफाई में जुटा है। चुनावी मौसम में कर्नाटक के इस चर्चित सेक्स स्कैंडल के आने से महिलाओं से जुड़े अन्य मुद्दे भी उखड़ने शुरू हो गए हैं। विपक्ष मणिपुर से लेकर उन्नाव, हाथरस, कानपुर और वाराणसी, बिलकिस बानो के अपराधियों को फूल माला से स्वागत की घटनाओं को उछालकर भाजपा पर आक्रामक है। देश की पहलवान बेटियों के साथ हुए मामले को भी तूल दिया जा रहा है। इन सबके द्वारा विपक्ष मतदाताओं के बीच यह नेरेटिव बनने में जुट गया है कि भाजपा महिला विरोधी है। हालांकि मामला जेडीएस के नेता का है, लेकिन चूंकि उसका गठबंधन भाजपा के साथ है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रज्वल रेवन्ना के लिए खासतौर पर वोट मांगा था, वह भी जानते हुए कि वह एक बलात्कारी हैं, इसने विपक्ष के हमलों को और तीखा कर दिया है। विपक्ष को लग रहा है कि प्रज्वल रेवन्ना के रूप में उसे ऐसा मुद्दा मिल गया है जो कि आने वाले चरणों में भाजपा के चुनावी अभियान को डेंट पहुंचा सकता है। विपक्ष इसी आधार पर इस सेक्स स्कैंडल से अपनी संभावनाएं तलाश रहा है। विपक्ष इस पूरे मुद्दे पर अपना एजेंडा सेट कर रहा है और भाजपा को सफाई देनी पड़ रही है। विपक्ष के जवाब में गृहमंत्री अमित शाह भले ही उसके विदेश भागने को लेकर राज्य की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हों। लेकिन जनता के बीच यह मुद्दा काफी गर्म है। पीएम मोदी से लेकर तमाम बड़े नेता डैमेज कंट्रोल में लगे हुए हैं। मातृ शक्ति के साथ खड़े होने की बात कह रहे हैं।

Saturday, 4 May 2024

दिलचस्प होने जा रहा है हरियाणा का चुनाव?


इस बार लोकसभा का चुनाव हरियाणा में दिलचस्प होने जा रहा है। हरियाणा में इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव पिछले कई चुनावों से अलग है। हर बार चुनावी रण में कूदने वाले हरियाणा के कई राजनीतिक दिग्गज इस बार लोकसभा रण से बाहर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला, पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला तीनों ही रण से बाहर बैठकर अपनी पार्टी की चुनावी कमान संभाले हुए हैं। ओपी चौटाला उम्रदराज होने और दस साल सजा के चलते चुनावी मैदान में नहीं हैं, जबकि उनके बेटे और जननायक जनता पार्टी के संस्थापक डॉ. अजय सिंह चौटाला भी दस साल की सजा होने के चलते चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। पिछली बार चुनावे लड़ने वाले हुड्डा और दुष्यंत दोनों ने ही बाहर से अपनी-अपनी पार्टी की कमान संभाल रखी है। तीनों प्रत्याशियों के प्रचार को धार देंगे। पिछली बार पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सोनीपत से और दुष्यंत ने हिसार से चुनाव लड़ा था और दोनों को हार का सामना करना पड़ा था। जजपा ने इस बार दुष्यंत चौटाला के स्थान पर हिसार से विधायक नैना सिंह चौटाला पर दांव खेला है। हालांकि पहले तैयारी थी कि दुष्यंत को ही मैदान में उतारा जाए, लेकिन पार्टी के पदाधिकारियों के इस्तीफे के बाद संगठन को संभालने के लिए दुष्यंत ने फैसला किया कि वह प्रदेशभर में प्रत्याशियों के लिए प्रचार करेंगे। हरियाणा में लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार कई सीट हॉट रहने वाली हैं। लेकिन सबसे दिलचस्प मुकाबला हिसार लोकसभा सीट पर देखने को मिल रहा है। हिसार लोकसभा सीट पर एक ही परिवार के तीन सदस्य चुनाव लड़ रहे हैं। वो भी अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर। हिसार संसदीय क्षेत्र में पहली बार ऐसा हो रहा है जब देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के परिवार के तीन सदस्य एक ही सीट पर आमने-सामने हैं। हिसार लोकसभा सीट पर भाजपा ने पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल के बड़े बेटे रणजीत सिंह चौटाला को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने नैना चौटाला को मैदान में उतरा है। नैना जेजेपी अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला की पत्नी हैं। जो देवीलाल के दूसरे बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के बेटे हैं। इसी तरह से इंडियन नेशनल लोकदल ने पार्टी की महिला शाखा की महासचिव सुनैना चौटाला को हिसार सीट से मैदान में उतारा है। सुनैना रवि चौटाला की पत्नी हैं। रवि चौटाला चौधरी देवी लाल के सबसे छोटे बेटे प्रताप सिंह चौटाला के बेटे हैं। इस तरह से साफ है कि हिसार लोकसभा सीट पर सियासी हालात ऐसे हैं कि दो बहुओं और एक ससुर के बीच लड़ाई लोगों को देखने को मिल रही है। खास बात यह है कि सभी तीन उम्मीदवार चौधरी देवी लाल के परिवार से हैं। चौधरी देवीलाल के परिवार की बात करें तो एक चौथा परिवार चौटाला परिवार का सदस्य अभय सिंह चौटाला (पुत्र ओम प्रकाश चौटाला) कुरुक्षेत्र की लोकसभा सीट से मैदान में है।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा का अभेद्य गृह राज्य गुजरात


आएगा तो मोदी ही। कांग्रेस खत्म हो चुकी है। भाजपा क्लीन स्वीप करेगी। ये वो शब्द हैं जो गुजरात की प्रत्येक लोकसभा सीट पर हर दूसरा या तीसरा मतदाता दोहराता है। लेकिन भाजपा इन्हीं शब्दों से परेशान है। भाजपा को डर यह है कि कहीं उसका कैडर वोटर अति आत्मविश्वास में वोट डालने नहीं गया तो? अगर गुजरात में 6 से 7 प्रतिशत वोटिंग कम होती है तो भाजपा को 3 से 4 सीटों पर नुकसान हो सकता है। बीते दो चुनावों में भाजपा को कांग्रेस से 26 से 30 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले थे। भाजपा के लिए अभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, प्लस प्वाइंट बने हुए हैं। मोदी की गारंटी शब्द पर मतदाता भरोसा करने को तैयार हैं। अयोध्या राम मंदिर, 370 का खात्मा, सर्जिकल स्ट्राइक, इकोनॉमिक ग्रोथ, चीन-पाकिस्तान पर प्रैशर, विकसित भारत, हिंदुत्व की एकजुटता जैसे मुद्दे भाजपा का सबसे बड़े टॉनिक बने हुए हैं। हालांकि कुछ माइन्स प्वाइंट भी हैं। स्थानीय नेताओं के भ्रष्टाचार, घमंड व बयानबाजी नेगेटिव प्वाइंट हैं। टिकटों में मनमानी से कार्यकर्ता नाराज हैं। अमरेली के रुपाला को राजकोट, भावनगर के मांडविया को पोरबंदर, मोरबी के चंदू शिरोही को सुरेन्द्र नगर से टिकट देने पर स्थानीय कार्यकर्ता नाराज चल रहे हैं। देशभर की राजनीति में अचानक चर्चा में आए गुजरात के क्षत्रिय चुनावी रंग की नई इबारत लिखने का दावा कर रहे हैं। खुद को मजबूत हिंदू समझने वाले क्षेत्रिय हिंदुत्व की लय पर चलने वाली भाजपा से बैर लेने में हिंदुत्व पर ही हिचक रहे हैं। शायद यही वजह है कि वो भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन के लिए काले नहीं, बल्कि भगवा झंडे का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह अपने आप में पहला और अनूठा है। राजनीति दो लफ्जों से बदल सकती है। ब्रिटिशर्स के सामने राजा-महाराजा झुक भी गए और रोटी-बेटी तक का व्यवहार किया। केन्द्राrय मंत्री राजकोट से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी पुरुषोतम रुपाला के इन्हीं दो लफ्जों ने राजनीति के राजपूत एंगल में भूचाल ला दिया है। हुआ यूं कि पिछले महीने रुपाला दलित समाज के एक व्यक्ति के यहां किसी की मृत्यु पर शोक संवेदनाएं प्रकट करने गए थे। वो दलितों की प्रशंसा करते हुए कहने लगे कि आप लोग कभी झुके नहीं, आपके कारण ही सनातन धर्म टिका हुआ है। वरना राजा-महाराजों ने अपनी बेटियों की शादी अंग्रेजों से कर डाली। रुपाला के बयान पर क्षत्रिय समाज नाराज हो गया और उन्होंने भाजपा से रुपाला का टिकट वापस लेने की मांग की। विरोध में रैलियां होने लगीं। जामनगर, सुरेन्द्र नगर, भावनगर और ऐसी ही कुछ 5-6 जगहों पर क्षत्रिय समाज का जुटना हुआ। राजकोट में रैली हुई तो कई लाख लोग शामिल हुए। इसमें 30 हजार तो महिलाएं थीं। खास ये था कि इस रैली के लिए न किसी को बुलाया गया न ही बस और गाड़ियां बुक हुईं। लोग खुद यहां पहुंचे। उनका बैर न भाजपा से था न मोदी से। उनकी मांग थी रुपाला से टिकट वापस लो। भाजपा हाईकमान इस विरोध का ड्रैमेज कंट्रोल करने में लगा हुआ है। देखना यह है कि वह कितना डैमेज कंट्रोल कर पाता है? क्षत्रिय विवाद से कांग्रेस को कितना नफा-नुकसान होगा, इस सवाल पर कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है।

Thursday, 2 May 2024

क्या फिर राजस्थान में लगेगी हैट्रिक


पिछले चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग, किसान और जाटों की नाराजगी, दल-बदल के कारण इस बार राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की 25 की हैट्रिक बनने की राह मुश्किल नजर आ रही है। इस बार 2019 जैसी मोदी हवा नहीं दिखती। वर्तमान सांसदों के खिलाफ लोगों में रोष दिखा। चूरू, नागौर, झुंझुनू, सीकर, दौसा, कोटा, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर और बांसवाड़ा लोकसभा सीटों पर विपक्षी उम्मीदवारों की भाजपा उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर नजर आ रही है। पिछले दो बार से राजस्थान की जनता ने भाजपा की झोली में 25 की 25 लोकसभा सीटें डाली थीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था, लेकिन इस बार स्थिति उतनी आसान नहीं दिखती। राजस्थान में पहले चरण में 12 और दूसरे चरण में 13 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ है। मतदान के बाद भाजपा नेताओं ने आपस में लंबी चर्चा की। 26 अप्रैल के मतदान के दिन सुबह से ही भाजपा के बड़े नेता जयपुर में पार्टी कार्यालय में मतदान और हर एक सीट की बारीकी से निगरानी कर रहे थे, क्योंकि इस बार भाजपा ने प्रदेश के सात सांसदों के टिकट काटे थे। तीन सांसदों ने विधानसभा चुनाव लड़ा। इनमें राज्यवर्धन सिंह राठौर और महारानी दीया कुमारी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि योगी बालकनाथ को कुछ नहीं मिला, जबकि उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चल रहा था। टिकट कटने के कारण कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी तो कुछ नाराज होकर घर बैठ गए। प्रदेश चुनाव में अग्निवीर, किसानों की नाराजगी, जाट, राजपूत की नाराजगी भी चुनावी मुद्दा बने। पहले चरण में ज्यादा कम वोटिंग हुई है। इस चरण में नुकसान की आशंका बढ़ने पर भाजपा ने दूसरे चरण में जोर लगाया था और वोटिंग बढ़ाई थी। वोटिंग तो बढ़ी है, लेकिन इन क्षेत्रों में ज्यादा वोटिंग हुई जहां सांसदों के खिलाफ नाराजगी थी। चूरू से भाजपा के बागी सांसद राहुल कासंवा ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। भाजपा ने उनके खिलाफ पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता देवेन्द्र झाझरिया को टिकट दिया था। इस बार लोग कांग्रेस से बड़ी उम्मीद लगाए हुए हैं। नागौर सीट पर इस बार भाजपा ने हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करने के बजाए कांग्रेस से आई ज्योति मिर्धा को टिकट दिया हालांकि यहां मिर्धा परिवार का वर्चस्व रहा है, लेकिन बेनीवाल ने कांग्रेस का समर्थन किया और यहां किसानों ने सरकार के खिलाफ खूब प्रदर्शन किया था। 2019 में बेनीवाल ने भाजपा के समर्थन से कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को हराया था और अब बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। ज्योति मिर्धा भाजपा की तरफ से चुनाव मैदान में हैं। राजस्थान के वर्तमान माहौल को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि भाजपा राज्य में हैट्रिक लगाने जा रही है।

      -अनिल नरेन्द्र

तीसरा चरण भाजपा के लिए बड़ी चुनौती


दूसरे चरण का चुनाव संपन्न होने के बाद भाजपा के लिए तीसरा चरण बेहद महत्वपूर्ण है। इसी चरण में भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में सबसे अधिक 75 सीटें जीती थीं। बिहार में पुराना एनडीए दोबारा एकजुट हो गया है, लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना के अलग होने का नुकसान उठाना पड़ सकता है। तीसरे चरण में 12 राज्यों की 94 सीटों के लिए 7 मई को मतदान होगा। इस चरण में 2019 में हुए चुनाव में भाजपा को 70 और एनडीए को 78 सीटें मिली थीं। अब तक दो चरणों में हुए चुनाव में 191 संसदीय सीटों पर मतदान हो चुका है। इसमें 2019 में भाजपा को 40 सीटें मिली थीं। दूसरे चरण में 88 सीटों के लिए चुनाव हुआ जिसमें भाजपा की झोली में 62 सीटें गईं। अब 7 मई को होने वाले तीसरे चरण में 12 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों की 94 सीटों पर मतदान होगा। तीसरे चरण में 12 राज्यों, इसमें असम की चार, बिहार की पांच, छत्तीसगढ़ की सात, गोवा की दो, गुजरात की सभी 26, कर्नाटक की 14, मध्य प्रदेश की आठ, महाराष्ट्र की 11, उत्तर प्रदेश की 10, पश्चिम बंगाल की चार, दादरा और नगर हवेली एवं दमन द्वीप की दो और जम्मू-कश्मीर की अंतननाग, राजौरी सीट पर चुनाव होंगे। भाजपा ने असम की चार में से एक गुवाहटी की सीट जीती थी। बिहार में पांच में से भाजपा को एक सीट मिली थी, लेकिन उनकी चार सीटें एनडीए में शामिल जेडीयू और लोजपा को मिली थीं। छत्तीसगढ़ में 7 में से 6 सीटें भाजपा ने जीती थीं। गोवा की दो में से एक सीट भाजपा की झोली में गई थी। सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा को गुजरात से मिला था। वहां से 26 में से 26 सीटें भाजपा को मिली थीं। कर्नाटक की 14 सीटों के लिए चुनाव होगा जिसमें 11 सीटें भाजपा के पास है। मध्य प्रदेश की 9 में से 9 सीटें भाजपा ने जीती, जबकि महाराष्ट्र की 11 में से 5 भाजपा जीती थी। शिवसेना ने चार सीटें जीती थीं। इस बार शिवसेना अलग है। एकनाथ शिंदे गुट भाजपा के साथ है। इस गुट की भी कड़ी परीक्षा होनी है। उत्तर प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होना है। इनमें से भाजपा के पास 8 और समाजवादी पार्टी के पास दो सीटें हैं। तीसरे चरण में पश्चिम बंगाल की चार सीटों पर चुनाव है जिसमें से भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। तीसरे चरण में भाजपा के पास उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में सीटें बढ़ाने का मौका है। बाकी राज्यों में भाजपा की सीटें कम होने का खतरा मंडरा रहा है। भाजपा की कोशिश है कि यदि सीटें न बढ़े तो कम भी नहीं होनी चाहिए इसलिए पार्टी ने चुनावी अभियान को ध्रुवीकरण की तरफ मोड़ fिदया है। तीसरे चरण तक देश की 543 सीटों में से 284 सीटों पर चुनाव हो चुके होंगे। पिछले चुनाव के आंकड़ों के अनुसार भाजपा इनमें से 162 सीटें जीती थी। इनमें एनडीए की 10 सीटें जोड़े दी जाएं तो 172 हो जाती है। अबकी बार 400 पार का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भाजपा को बाकी 259 सीटों में अधिक सीटें जीतनी होगी और यह बहुत बड़ी चुनौती है।