Tuesday, 28 May 2024

बलिया में बाहर के साथ भीतर भी चुनौती

 भीतर भी चुनौती बगावत की अगुवाईं करने वाले बलिया की रगों में राजनीति फली है। इसलिए यहां के सियासी मिजाज को समझना आसान नहीं है। फिलहाल यहां पक्ष और विपक्ष दोनों ही उम्मीदवारों के सामने बाहर के साथ भीतर की लड़ाईं से भी जूझने की चुनौती है। बलिया में 7वें चरण यानि आखिरी चरण में 1 जून को चुनाव होने हैं। जाति के साथ सियासी वजूद बनाए रखने के अंतर्विरोध के सुर भी साफ सुने जा रहे हैं। इसलिए भाजपा और सपा दोनों एक-दूसरे के कोर में वोटरों में सेंधमारी के लिए पसीना बहा रहे हैं। भाजपा बलिया में जीत की हैट्रिक की लड़ाईं लड़ रही है। 2014 में भरत सिह ने एसपी के नीरज शेखर का ही रथ रोककर पहली बार कमल खिलाया था। इस बार नीरज खुद कमल के पैरोकार हैं। इस सीट पर सबसे अधिक आबादी ब्राrाणों की है। इसके बाद ठावुर, यादव और दलित है। राजभर, बिंदर, मल्लाह आदि अति पिछड़ी जातियों का असर है तो एक लाख से अधिक मुस्लिम वोटर भी हैं। जहुराबाद विधानसभा क्षेत्र में दिन में चाय के साथ चर्चा भी गर्म थी। बैठकी में प्राधान, शिक्षक, रिटायड प््िरांसिपल, एक बुजुर्ग पहलवान, वुछ और नौकरीपेशा लोग शामिल थे। चुनाव पर बात करने को लेकर सब सहज थे। नाम के सवाल पर जवाब था, क्या करिएगा जानकर? बात बेरोजगारी व महंगाईं के सवाल पर शुरू हुईं तो राम मंदिर और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे तीर भी तरकश से निकले। पहलवान के यथार्थ दांव ने चर्चा की टोन बदल दी। भक्क: ईं सब बेकार की बातें है। साफ सुन लीजिए। ये सामने की सड़क से शवयात्रा भी निकलेगी न तो लोग पहले प्राणाम नहीं करेंगे। पूछेंगे, कौन जात है? यही चुनाव की भी सच्चाईं है। ठावुर साहब नीरज के साथ हैं, पंडित जी लोग सनातन पर जोर लगा रहे हैं। मोहम्मदाबाद मेंे ही माफिया मुख्तार अंसारी का घर है। यहां से विधायक भी मुख्तार परिवार से सुहेब अंसारी हैं। मुख्तार के घर जिसे फाटक कहा जाता है, वहां से थोड़ी दूर पर नटराज कटरा है। यहां मोबाइल की दुकान चलाने वाले एक व्यक्ति कहते हैं कि मुख्तार के न रहने से गोल जुटेगी भी और टूटेगी। वह बताते हैं कि अंसारी परिवार की हर गांव में एक गोल है, जो उनकी सरपरस्ती व नाम की छाया में रहती रही है। इसमें भूमिहार, ब्राrाण, राजभर, ठावुर, बिद हर बिरादरी के लोग हैं। इसमें बहुत अब भी अंसारी परिवार के कहने पर ही वोट देंगे। लेकिन मुख्तार के न रहने से बहुत से ऐसे लोग जो दबाव में चुप रहते थे या दूसरी गोल जो दबी रहती थी अब वह भी एक्टिव हो जाएगी। सदर से 8 किमी दूर मंगल पांडेय का गांव नगवा है, जिन्होंने 1857 में व््रांति का बिगुल पूंका था। यहां उनकी मूर्ति लगी हुईं है। गांव में अलग-अलग बिरादरी के टोले हैं। यहां निर्मल पासवान ने कहा, यहां साइकिल का जोर है। लड़के पढ़कर भी बेरोजगार हैं। पांच किलो राशन से घर चलेगा? अगर ईंवीएम सेट नहीं हुईं तो कोईं रोक नहीं सकता। जब मैंने उनके ईंवीएम से जुड़े सवाल का आधार पूछा तो बोले मोबाइल पर देख कर सब पता चल जाएगा। दूर खड़ी महिला ने राशन मिलने का सुख तो गिनाया लेकिन कोटेदार की बदमाशी की शिकायत भी की। पिछली बार सनातन पांडे के जीतने के बाद हटा दिया गया था। इस बार इतना अंतर कर देना की खेल न होने पाए। ——अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment